मेरा 5 वर्षीय बेटा प्रांशुल टैलीविजन का बहुत शौकीन है. वह खासकर ‘आहट’ या फिर ‘कोई है’, जैसे डरावने सीरियल भी डरतेडरते देख लेता है. एक दिन की बात है. मैं पीहर में सब के साथ लौन में बैठी थी. प्रांशुल चिल्लाते हुए आया, ‘‘मम्मी, आत्मा आ गई, मम्मी आत्मा आ गई, गेट बंद कर लो.’’ हम सब चौंक गए कि आखिर माजरा क्या है. जा कर देखा, तो पिताजी के पुराने मित्र थे, जिन्होंने प्रांशुल से पूछा कि तुम्हारे नानाजी कहां है, जा कर कहो कि उन का दोस्त आत्मा आया है.
बस, फिर क्या था, मेरा बेटा एकदम डर गया. अभी तक उस ने ‘आत्मा’ नाम का मतलब ‘आहट’ सीरियल की आत्मा से ही जाना था. जब आत्माराम अंकल को सारी बात का पता चला तो वे भी हमारे साथ हंस पड़े. वैसे, इस तरह के सीरियल अंधविश्वास फैलाने के सिवा कुछ भी सीख नहीं देते इसलिए बच्चों को इस से दूर ही रखें तो बेहतर है.
- अंजु सिगंड़ोदिया
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मेरा 7 वर्षीय भांजा बहुत ही नटखट है. वह टैलीविजन पर फिल्म व गाने बड़े गौर से देखता व सुनता है. एक दिन हम सब बैठे ऐसे ही उस से उस की शादी के लिए कहकह कर छेड़ रहे थे. कुछ देर तो वह सुनता रहा, फिर बोला, ‘‘शादी के बारे में बोले जा रहे हैं, पहले मुझे यह तो बताओ कि लड़की मिलेगी तो मैं कौन सा गाना उस के लिए गाऊंगा.’’ उस की भोली बात सुन कर हम सब बहुत हंसे.
- तृप्ता अग्रवाल
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मैं उत्तर प्रदेश के एक कसबे के इंटर कालेज में उपप्रधानाचार्य था. कसबे के पुलिस इंस्पैक्टर मिस्टर भारद्वाज का बेटा मनोज मेरे बेटे अतुलेश का सहपाठी था. दोनों कक्षा 4 में पढ़ते थे. एक दिन शाम के समय वे दोनों हमारे घर में खेल रहे थे. किसी बात पर दोनों में नाराजगी हो गई. मनोज ने कहा, ‘‘पता है, मेरे पापा पुलिस इंस्पैक्टर हैं.’’ इस के जवाब में अतुलेश बोला, ‘‘और तुम्हें मालूम है, मेरे पापा 22 स्कूलों के प्रिंसिपल (वाइस प्रिंसिपल) हैं.’’