राष्ट्रीय धरोहर या पूरे राष्ट्र का अभिमान कहे जाने वाले, भारत के दिग्गज सरोद वादक उस्ताद अली अकबर खां ने 14 अप्रैल 1922 को कोमिला (जो कि अब बांग्लादेश में है) में जन्म लिया था. पश्चिम में अपने देश के संगीत का परिचय कराने वाले खां साहब का किडनी की लम्बे समय तक चली बीमारी के चलते 18 जून 2009 को सेन फ्रांसिस्को, संयुक्त राज्य अमेरिका में निधन हो गया था.

भारतीय संगीत का अभिमान समझे जाने वाले अली अकबर खां ऐसे पहले भारतीय संगीतकार थे जिन्हें साल 1991 में यूएस के मैकअर्थर फाउंडेशन द्वारा जीनियस ग्रांट फैलोशिप से नवाजा गया था. इसके अलावा साल 1997 में उन्हें कला के प्रतिष्ठित नेशनल हेरिटेज फैलोशिप के लिए राष्ट्रीय एन्डोमेंट से सम्मानित किया गया था, जो पारंपरिक कलाओं में सर्वोच्च अमेरिकी सम्मान था.

13 साल की उम्र में, खां साहब ने इलाहाबाद के एक संगीत सम्मेलन में अपना पहला सार्वजनिक प्रदर्शन दिया था और इसके तीन साल बाद उन्होंने उस समय के महान सितार वादक पंडित रविशंकर जी के साथ अपना पहला 'जुगलबंदी' यानि कि युगल प्रदर्शन दिया था.

उन्होंने कई प्रतिष्ठित फिल्मों जैसे चेतन आनंद की 'आंधियां', सत्यजीत रे की 'देवी', मर्चेंट-आइवरी के 'द हाउसहोल्डर', तपन सिन्हा की 'खुदीतो पाषाण', बर्नार्डो बर्टोलुची की 'लिटिल बुद्धा' के लिए अपना संगीत दिया.

खान साहब द्वारा कई राग बनाई गई, उनमें से एक राग "चन्द्रनंदन" है जो चार ईवनिंग रागों पर आधारित एक रचना है. यह राग दुनिया भर में प्रचलित है. इसने वैश्विक पैमाने पर लोकप्रियता भी प्राप्त की और कई कलाकारों द्वारा ये आज भी प्रैक्टिस की जाती है.

भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रसार के लिए, खां साहब ने साल 1956 में कलकत्ता में ‘अली अकबर कॉलेज ऑफ म्यूजिक’ नाम से एक विश्वविद्यालय खोला. इसके बाद साल 1967 में कैलिफोर्निया के बर्कले में भी इसी नाम से इसे शुरु किया, जिसे बाद में कैलिफोर्निया के सैन राफेल शहर में स्थानांतरित कर दिया गया था. खां साहब ने आगे बढ़ते हुए साल 1985 में स्विट्जरलैंड के बेसल में भी इसकी एक और शाखा खोल दी.

आपको जानकर हैरानी होगी कि खान पश्चिमी देशों के एक नियमित भारतीय कलाकार थे और बोस्टन और मैडिसन स्क्वायर गार्डन जैसे कई स्थानों में लगातार अपनी प्रस्तुति देते रहते थे. उस्ताद अली अकबर खां अमेरिकी टेलीविजन पर सरोद का प्रदर्शन करने वाले और अमेरिका में भारतीय शास्त्रीय संगीत के लिए एलपी रिकॉर्ड यानि कि विनील रिकॉर्ड, करने वाले पहले भारतीय संगीतकार थे.

उन्हें साल 1989 में भारत सरकार द्वारा संगीत में उनके अद्वितीय प्रदर्शन के लिए पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया. अली अकबर खां साहब को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई फैलोशिप्स भी प्राप्त थी. बात यहीं ही खत्म नहीं होती, खां साहब ने पांच ग्रैमी अवार्ड में नॉमिनेशन भी हासिल किया है.

उस्ताद अली अकबर खां के अनुसार ‘यदि आप दस साल तक सरोद बजाने का  अभ्यास करते हैं, तो आप अपने आप को प्रसन्न करना शुरू कर देते हैं, इसके 20 सालों के बाद आप एक कलाकार या एक प्रस्तुतकर्ता बनते हैं और अपने दर्शकों या श्रोताओं को खुश कर सकते हैं, यहां तक की इसके भी 30 सालों के बाद आप अपने गुरु को भी प्रसन्न कर सकते हैं, लेकिन एक सच्चा कलाकार बनने के लिए आपको अंततः और निरंतर प्रयास करते रहना होगा"

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