22 अगस्त, 2017 को शायरा बानो सही टाइम पर कोर्ट पहुंची गई थीं. सब से पहले वह अपने वकील से मिलीं. वकील साहब ने उन्हें आश्वस्त किया, ‘‘डरने की कोई बात नहीं है. हिम्मत रखो, फैसला तुम्हारे ही पक्ष में आएगा. यह भी हो सकता है कि तुम देश और धर्म के लिए ऐतिहासिक महिला बन जाओ.’’
22 अगस्त, 2017 को 3 तलाक पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आने वाला था. सुबह से ही मीडियाकर्मी व अन्य लोग कोर्ट के बाहर जमे हुए थे. यह ऐतिहासिक फैसला सुनाने के लिए अलगअलग धर्म के 5 न्यायमूर्ति तय किए गए थे, जो सही समय पर अपनीअपनी कुरसी पर विराजमान हो गए थे.
खचाखच भरी अदालत में सब से पहले अपना फैसला पढ़ने की शुरुआत मुख्य न्यायाधीश जे.एस. खेहर ने की. उन्होंने अपना फैसला पढ़ना शुरू किया, ‘‘3 तलाक पर्सनल ला का हिस्सा है और इसे संविधान में मिली धार्मिक आजादी में संरक्षण प्राप्त है. इसलिए अदालत इस में दखल नहीं दे सकती.’’
यह सुनते ही अदालत में मौजूद एक बड़े वर्ग के चेहरे पर मुसकान उभर आई. लेकिन जब जस्टिस खेहर ने आगे कहा कि 3 तलाक पर सरकार कानून बनाने पर विचार करे और जब तक यह कानून बने, तब तक 3 तलाक पर पूरी तरह से रोक लगी रहेगी तो तमाम लोगों के चेहरे पर निराशा के भाव उभर आए.
जस्टिस खेहर के बाद जस्टिस कुरियन जोसेफ ने मुख्य न्यायाधीश के फैसले पर असहमति जताते हुए अपना फैसला पढ़ा. उन्होंने 3 तलाक को असंवैधानिक घोषित कर दिया. इस के बाद जस्टिस आर.एफ. नरीमन ने अपनी और जस्टिस यू.यू. ललित की राय बताते हुए मुख्य न्यायाधीश की राय से असहमति जताई.
उन्होंने 3 तलाक को असंवैधानिक घोषित किया तो अदालत में मौजूद लोगों के चेहरों पर तरहतरह के भाव उभर आए. जस्टिस खेहर ने चारों जस्टिस के फैसला सुनने के बाद अपना आखिरी फैसला सुनाया. उन्होंने अंतिम फैसला सुनाते हुए कहा कि न्यायाधीशों के बीच मतभिन्नता के बीच बहुमत से दिए गए फैसले में 3 तलाक निरस्त किया जाता है.
इस से यह बात साफ हो गई कि सर्वोच्च न्यायालय ने 3 तलाक पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी. इस तरह 14 सौ साल पुरानी मुसलिम रूढि़वादी परंपरा के खत्म होते ही यह ऐतिहासिक फैसला बन चुका था, जिस से मुसलिम औरतों को बड़ी राहत मिलने वाली थी.
भारत के सर्वोच्च न्यायालय का अधिकार है कि वह भारतीय संविधान के दूसरे पार्ट के अधिनियम संख्या 32 के अंतर्गत देश के नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करे. इस की स्थापना अक्तूबर, 1937 में हुई थी. भारतीय संविधान के तहत यह न्यायालय भारत का अंतिम और सवर्ोेच्च न्यायालय है, जो ‘यतो धर्मस्ततो जय:’ की नीति को खुद में समाहित कर के चलता है.
इसी सर्वोच्च न्यायालय ने मुसलिम महिलाओं के लिए अभिशाप माने जाने वाले 3 तलाक को खत्म कर के उन्हें बहुत बड़ी निजात दिलाई है. आज के दौर में शायद ही कोई ऐसा परिवार होगा, जिस में पारिवारिक कलह न हो. किसी न किसी बात को ले कर हर घर में लड़ाईझगड़ा आम बात है.
हालांकि घर के मामले अधिकांशत: घर में ही निपटा लिए जाते हैं. कोर्टकचहरी तक बहुत कम मामले पहुंचते हैं. लेकिन मामला घर से बाहर समाज से लड़ने का हो तो बहुत हिम्मत चाहिए. समाज से टकराना अपनी जिंदगी को दांव पर लगाने जैसा है.
लेकिन उत्तराखंड निवासी शायरा बानो ने यह हिम्मत दिखाई. पति ने दर्द दिया तो वह उस दर्द का इलाज ढूंढने कोर्ट जा पहुंची. वह जानती थीं कि उन्होंने जो रास्ता चुना है, वह समाज से होते हुए ही उन के पति तक पहुंचेगा. जबकि समाज से टकराना जोखिम भरा काम था. लेकिन जब इंसान के हौंसले बुलंद हों तो राह में आने वाली सारी बाधाएं खुदबखुद हटने लगती हैं.
शायरा बानो ने जिस सामाजिक कुरीति के विरुद्ध केस लड़ने की ठानी थी, वह थी मुसलिम समाज में सदियों से चली आ रही 3 तलाक की परंपरा. 3 तलाक मुसलिम समाज में पत्नी से अलग होने के वह जरिया था, जिस में पति अपनी पत्नी को 3 बार तलाक… तलाक…तलाक… कह कर उस से जिंदगी भर के लिए छुटकारा पा सकता था.
इस मामले में न तो देश का कोई भी कानून या न्यायपालिका हस्तक्षेप कर सकती थी और न ही समाज. 3 तलाक की परंपरा में कई बार ऐसा भी होता था कि जल्दबाजी या गुस्से में पति पत्नी को तलाक तो दे देता था, लेकिन बाद में उसे पश्चाताप होता था. क्योंकि औरतें गुलामों की तरह काम तो करती ही थीं, साथ ही बच्चे भी पालती थीं. कुछ पढ़ीलिखी औरतें पैसा कमा कर घर भी चलाती थीं.
इसलिए कुछ लोगों को अपनी बीवी पर तरस आने लगता था और वह अपनी पत्नी को वापस लाना चाहते थे. लेकिन तलाकशुदा बीवी को दोबारा अपनाने का एक ही तरीका था हलाला. हलाला के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं, क्योंकि इस शब्द का संबंध मुसलमानों के वैवाहिक जीवन और शरीयत के महिला विरोधी कानून से है.
शरीयत के इस जंगली कानून की आड़ में मुल्लामौलवी और मुफ्ती खुल कर अय्याशी करते थे. मुसलिम महिलाओं के लिए हलाला शब्द ही सब से दुखदाई था, जो बलात्कार की श्रेणी में आता था. हलाला तब तक जायज नहीं माना जाता था, जब तक तलाकशुदा औरत किसी दूसरे मर्द के साथ निकाह करने के बाद उस के साथ सहवास न कर ले.
इस के बाद वह आदमी उसे तलाक दे देता था, उस के बाद वह अपने पूर्व पति से फिर से निकाह कर सकती थी. कई बार ऐसा भी होता था कि इस बीच अगर तलाकशुदा औरत को वह शख्स पसंद आ जाता था तो वह उसी के साथ रहने लगती थी. इस स्थिति में उस का पहला पति या शरीयत कानून कुछ नहीं कर सकता था.
हालांकि मुसलमानों में 2-3 औरतें रखना जायज माना जाता है. वैसे भी मुसलिम समाज में रिश्ते की बहनों से भी शादियां जायज हैं. मुसलिम लोग अक्सर संयुक्त परिवार में रहना पसंद करते हैं. इसलिए पतिपत्नी में झगड़े होना आम बात है. ऐसे में कभी पति गुस्से में पत्नी को तलाक दे देता था. हलाला का समय भी कम से कम 3 महीने का होता है.
बहरहाल, 22 अगस्त, 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए मुसलिम समाज में 14 सौ सालों से प्रचलित 3 तलाक के चलन को असंवैधानिक करार दे कर निरस्त कर दिया. कोर्ट ने 2-3 के बहुमत से फैसला देते हुए कहा कि एक साथ 3 तलाक संविधान में दिए गए बराबरी के अधिकार का हनन है. तलाक ए बिद्दत इसलाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है, इसलिए इसे संविधान में दी गई धार्मिक आजादी (अनुच्छेद 25) में संरक्षण नहीं मिल सकता.
इस के साथ ही कोर्ट ने शरीयत कानून 1937 की धारा-2 में एक बार में 3 तलाक को दी गई मान्यता निरस्त कर दी. 5 जजों में से 3 जज जस्टिस नरीमन, जस्टिस ललित और जस्टिस कुरियन इसे असंवैधानिक घोषित करने के पक्ष में थे. वहीं 2 जज चीफ जस्टिस खेहर और जस्टिस नजीर इस के पक्ष में नहीं थे.
इस मामले की जीत का श्रेय शायरा बानो और अन्य 4 मुसलिम महिलाओं, जिन में सहारनपुर, उत्तर प्रदेश निवासी मजहर हसन की बेटी आतिया साबरी, जयपुर निवासी आफरीन रहमान, रामपुर, उत्तर प्रदेश निवासी गुलशन परवीन व बिहार के नवादा जिले की रहने वाली इशरत जहां को जाता है.
लेकिन इन से पहले भी इंदौर की रहने वाली मुसलिम महिला शाहबानो 3 तलाक के इस मामले को जीत कर भी हार गई थीं. शाहबानो के पति मोहम्मद खान ने सन 1978 में उन्हें तलाक दे दिया था. मोहम्मद अहमद खान ने 2 शादियां की थीं, जिस की वजह से आए दिन घर में तकरार होती रहती थी.
शाहबानो को जो हासिल नहीं हो पाया था, अब सन 2017 में अपने हक की लड़ाई लड़ने वाली शायरा बानो और अन्य 4 महिलाएं मुसलिम समाज की 14 सौ साल पुरानी परंपरा को खत्म करने में कामयाब रहीं. हालांकि मुसलिम समाज की कई महिलाओं ने 3 तलाक के विरुद्ध आवाज उठाते हुए कोर्ट में केस दायर किया था.
लेकिन 3 तलाक के इस फैसले का श्रेय उत्तराखंड निवासी इकबाल अहमद की बेटी शायरा बानो को जाता है. काशीपुर (उत्तराखंड) के हेमपुर डिपो में रहता है इकबाल अहमद का परिवार. उन के 3 बच्चों में शायरा बानो सब से बड़ी थी. उन के 2 बेटे हैं शकील अहमद और अरशद अली.
इकबाल अहमद हेमपुर डिपो में एकाउंटैंट हैं. उन का सुशिक्षित और सभ्य परिवार है. उन्होंने अपने तीनों बच्चों को भी उचित शिक्षा दिलाई. शायरा बानो ने हेमपुर डिपो के पास स्थित गांव प्रतापपुर से हाईस्कूल किया. जीजीआईसी काशीपुर से इंटरमीडिएट करने के बाद उन्होंने काशीपुर के ही राधे हरि राजकीय महाविद्यालय से एमए किया.
हालांकि शायरा बानो पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थीं, लेकिन घर में सब से बड़ी होने के नाते उन्हें विवाह जैसे बंधन में बंधने पर मजबूर होना पड़ा. अब से करीब 15 साल पहले सन 2002 में शायरा बानो का रिश्ता इलाहाबाद के बारा बाजार के रहने वाले रिजवान के साथ हो गया.
रिजवान के पिता इकबाल अहमद का प्रौपर्टी का काम था. इकबाल का भी परिवार शायरा के परिवार की तरह छोटा था. उन के 2 बेटे इरशाद अहमद, रिजवान अहमद और एक बेटी थी. रिजवान ने अपने पिता का प्रौपर्टी डीलिंग का काम संभाल रखा था. घरपरिवार ठीक था. इकबाल अहमद ने रिजवान से शायरा का निकाह कर दिया. शायरा और रिजवान की शादी के बाद सब कुछ ठीकठाक चलता रहा.
शादी के बाद शायरा ने नौकरी करने की इच्छा जाहिर की तो घर वालों को उन की यह बात पसंद नहीं आई, जिस की वजह से शायरा को मन मार कर घर में बैठना पड़ा.
वह अच्छे परिवार की पढ़ीलिखी लड़की थी. इस के बावजूद उस की सास रईसा बेगम उसे बिलकुल पसंद नहीं करती थीं. वह उसे बातबात में रोकतीटोकती रहती थीं.
सास की इस हरकत से आजिज आ कर शायरा ने रिजवान से शिकायत की तो वह भी अपनी अम्मी के पक्ष में दलीलें देने लगा. इस से शायरा का मन ससुराल से उचटने लगा. सास रईसा बातबात पर उसे डांटती तो रहती ही थीं, आए दिन दहेज के लिए ताने भी मारती थीं.
अब तक शायरा एक के बाद एक 2 बच्चों की मां बन चुकी थी, बड़ा बेटा इरफान अहमद और उस से छोटी बेटी हुमेरा नाज. इस बीच शायरा की तबीयत खराब रहने लगी. अब उस की सास उसे और भी ज्यादा परेशान करने लगी. घर के विवाद ने जब भयानक रूप ले लिया तो मजबूरन रिजवान को किराए का मकान ले कर अलग रहना पड़ा.
अलग होने के बाद रिजवान का अपने घर आनाजाना लगा रहता था. वह जब भी घर आता, उस की अम्मी रईसा उसे शायरा बानो के प्रति भड़काने का काम करती. आखिरकार मियांबीवी में हर वक्त तकरार रहने लगी.
उसी दौरान अचानक शायरा बानो की तबीयत खराब हुई तो रिजवान उसे अनदेखा कर ज्यादातर अपने घर पर ही रहने लगा. पति और सास के अत्याचारों से आजिज आ कर शायरा बानो को अपने मायके आने पर मजबूर होना पड़ा. इलाहाबद से मुरादाबाद तक रिजवान शायरा और बच्चों के साथ आया और वहीं से वापस लौट गया.
11 अप्रैल, 2015 के बाद न तो रिजवान अपने बीवीबच्चों से मिलने आया और न ही उस ने कोई फोन किया. जब शायरा को लगने लगा कि अब उस का पति उसे लेने नहीं आएगा तो उस ने अपने बच्चों के भविष्य को देखते हुए काशीपुर के फैमिली कोर्ट में उन के भरणपोषण के लिए खर्च देने का दावा कर दिया.
शायरा की ओर से बच्चों के भरणपोषण का नोटिस पहुंचने के बाद भी रिजवान ने उस से किसी तरह की कोई बात नहीं की. उसी दौरान 10 अक्तूबर, 2015 को इकबाल अहमद के घर के पते पर शायरा बानो के नाम स्पीड पोस्ट से एक पत्र आया. शायरा बानो ने उसे खोल कर देखा तो उस की आंखों के आगे अंधेरा छा गया.
उस में लिखा था, ‘मैं रिजवान अहमद आज से तुम्हें पूरी तरह से आजाद करता हूं. मैं तुम्हें तलाक देता हूं. तलाक…तलाक… तलाक… आज के बाद मुझ से तुम्हारा किसी तरह का कोई रिश्ता नहीं रहा.’
स्पीड पोस्ट से आए इस पत्र के मिलते ही इकबाल अहमद के घर मातम सा छा गया. शायरा बानो का रोरो कर बुरा हाल था. लेकिन वह उस वक्त कुछ भी नहीं कर सकती थी. इतना सब कुछ होने के बाद भी शायरा बानो के मायके वालों ने उसे समझाते हुए कहा कि वह हिम्मत न हारे, पूरा परिवार उस के साथ है.
शायरा बानो ने उसी दिन कसम खाई कि जहां तक हो सकेगा, इस तलाक के खिलाफ वह मुकदमा लड़ेगी और न्याय पा कर ही रहेगी.
रिजवान द्वारा तलाक देने के बाद इकबाल अहमद ने अपनी बेटी को साथ ले जा कर काशीपुर के फैमिली कोर्ट में धारा 125 के तहत अधिवक्ता गोपाल कृष्ण द्वारा भरणपोषण का मुकदमा दायर करा दिया. रिजवान को जब काशीपुर अदालत से भेजा गया भरणपोषण का नोटिस मिला तो उस ने तत्काल इलाहाबाद के परिवार न्यायालय में हक-ए-जोजियत का मुकदमा दर्ज करा दिया.
कुछ ही दिनों में इलाहाबाद के न्यायालय से शायरा को नोटिस प्राप्त हुआ, जिसे ले कर शायरा ने अधिवक्ता गोपाल कृष्ण से संपर्क किया. नोटिस देखने के बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से स्टे लेने की बात कही.
शायरा ने इस फैसले के खिलाफ स्टे लेने के लिए सुप्रीम कोर्ट की शरण ली. दिल्ली में वह सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता बालाजी श्रीनिवासन से मिली और अपनी दुख भरी दास्तान उन्हें सुनाई. बालाजी श्रीनिवासन ने 3 तलाक को घोर अमानवीय और असंवैधानिक मानते हुए इस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने की सलाह दी. शायरा बानो की तरफ से तलाक की याचिका दायर होते ही श्रीनिवासन ने उन्हें कानूनी सहायता भी उपलब्ध कराई.
इस याचिका के दायर होने के बाद यह मामला मीडिया की सुर्खियां बना तो एक के बाद एक ऐसी कई याचिकाएं दायर हो गईं. फिर तो तलाक का मामला इतना उछला कि सुप्रीम कोर्ट को इस की सुनवाई के लिए संविधान पीठ का गठन करना पड़ा. शायरा बानो के अलावा 3 तलाक को ले कर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाली जो अन्य मुसलिम महिलाएं थीं, उन की दुखभरी दास्तान भी कुछ कम नहीं थी. जयपुर निवासी आफरीन रहमान की कहानी भी शायरा बानो ही जैसी थी.
लंबी लड़ाई के बाद आफरीन भी इंसाफ पाने में सफल रही. सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुनने के लिए वह 22 अगस्त की सुबह 5 बजे ही दिल्ली पहुंच गई थी. इस ऐतिहासिक फैसले के आते ही आफरीन खूब खुश थी. इसी तरह आतिया भी 3 तलाक का शिकार हो कर जिंदगी को दांव पर लगा बैठी थी. उन्होंने भी सर्वोच्च नयालय में याचिका दायर कर रखी थी.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले को सुन कर आतिया ने अपनी खुशी का इजहार करते हुए कहा कि एक साथ 3 तलाक को असंवैधानिक घोषित कर के सर्वोच्च न्यायालय ने मुसलिम महिलाओं के साथ इंसाफ किया है. आतिया को उम्मीद है कि सरकर जो भी कानून बनाएगी, वह मुसलिम महिलाओं के हक में ही होगा.
रामपुर निवासी गुलशन परवीन के पति ने भी उसे कुछ इसी तरह से तलाक दे कर उस से पीछा छुड़ाने की कोशिश की थी. गुलशन की शादी अप्रैल, 2013 को हुई थी. शादी के बाद कुछ दिनों तक तो सब कुछ ठीक रहा. लेकिन एक साल बीततेबीतते उस का उस के पति से मनमुटाव रहने लगा. गुलशन का पति नोएडा में काम करता था. जबकि वह स्वयं रामपुर स्थित अपनी ससुराल में रहती थी.
गुलशन ने कई बार अपने पति से साथ ले चलने को कहा, लेकिन वह किसी भी सूरत में उसे साथ रखने को तैयार नहीं था. उस के ससुराल वाले उसे अपने ऊपर बोझ समझ कर दहेज लाने के लिए मजबूर कर रहे थे.
हालांकि उस की शादी में उस के घर वालों ने दहेज के रूप में उसे 2.5 लाख रुपए नकद दिए थे, साथ ही इलैक्ट्रौनिक का सामान व फर्नीचर सेट के साथ उन की मांग के अनुसार कपड़े भी दिए थे. इस के बाद भी उस का पति और उस के घर वाले खुश नहीं थे. इसलिए वे दहेज मांगते हुए उसे तंग करते थे. उन्होंने उस के सारे जेवर भी छीन लिए थे.
गुलशन ससुराल वालों से बुरी तरह तंग आ चुकी थी. इस के बावजूद उस का पति भी जब कभी नोएडा से आता, वह भी उसे बुरी तरह प्रताडि़त करता. गुलशन ने काफी दिनों तक ससुराल वालों की प्रताड़ना झेली, लेकिन जब उस का शरीर जवाब दे गया तो उस ने यह बात अपने बड़े भाई रईस अहमद को बताई. गुलशन का भाई रईस भी गाजियाबाद में नौकरी करता था.
गुलशन की परेशानी देखते हुए रईस उसे अपने साथ गाजियाबाद ले गया. रईस ने उस के पति को समझाने की काफी कोशिश की, लेकिन उस ने उस की एक नहीं सुनी. जब मामला ज्यादा बढ़ गया तो रईस अहमद ने उस के विरुद्ध रामपुर में ही दहेज उत्पीड़न और आपराधिक धमकी का केस दर्ज करा दिया. उसी रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.
इस के बाद से गुलशन मायके में ही रहने लगी. उसी दौरान उस के पति ने 10 रुपए के एक स्टांप पेपर पर तलाकनामा लिख कर भेज दिया. लेकिन गुलशन ने उसे स्वीकार करने से मना कर दिया. इस पर उस के पति ने रामपुर की फैमिली कोर्ट की शरण ली और उसी तलाकनामे के आधार पर शादी तोड़ने की मांग की.
यह जानकारी मिलते ही गुलशन के भाई रईस अहमद ने उसे उत्तराखंड काशीपुर निवासी शायरा बानो के वकील से मिलने को कहा. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने उस की याचिका को भी संयोजित कर लिया.
3 तलाक के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वाली बिहार के नवादा की रहने वाली इशरत जहां ने भी थाना गोलाबाड़ी, हावड़ा कोर्ट से ले कर सुप्रीम कोर्ट तक लंबी लड़ाई लड़ी.
मूलरूप से बिहार के नवादा जिले की रहने वाली इशरत जहां का निकाह नवादा निवासी मुर्तजा के साथ सन 2001 में हुआ था. शादी के वक्त दोनों नवादा में ही रहते थे. लेकिन निकाह के बाद दोनों हावड़ा जा कर रहने लगे थे. हावड़ा जाने के बाद कुछ दिनों तक दोनों एक किराए के मकान में रहे. इशरत की परेशानी को देखते हुए उस के मायके वालों ने उसे हावड़ा में एक मकान दिला दिया था.
मुर्तजा अंसारी दुबई में काम करता था. गुजरते वक्त के साथ इशरत जहां एक के बाद एक 3 बेटियों की मां बनी. बेटी ही बेटी होने के कारण उस के ससुराल वालों ने उसे तंग करना शुरू कर दिया. जबकि मुर्तजा अंसारी को इस बात से कोई लेनादेना नहीं था. वह दुबई में रह रहा था. लेकिन ससुराल वालों ने इशरत को बेटे के लिए प्रताडि़त करना शुरू कर दिया.
इशरत जानती थी कि उसे ससुराल वालों के साथ एक ही घर में रहना है. यही सोच कर वह उन से किसी तरह का बैर नहीं लेना चाहती थी. इस के बावजूद उस के ससुराल वाले मुर्तजा अंसारी से फोन कर के उसे इशरत के प्रति भड़काते रहे. फलस्वरूप दुबई में रहने के दौरान ही उस के पति मुर्तजा ने उसे फोन पर ही अचानक 3 बार तलाक कह कर निकाह तोड़ दिया.
इशरत ने यह बात अपने मायके वालों को भी बता दी थी. इस के बाद ससुराल वालों ने उसे घर से निकल जाने को कहा. वह घर से नहीं निकली तो उन्होंने उस के घर का बिजली का कनेक्शन कटवा दिया, जिस में वह रहती थी. फोन पर तलाक मिलते ही इशरत ने सन 2015 में निचली अदालत में केस डाल दिया. इस के बाद उस ने जुलाई, 2016 में अधिवक्ता नाजिया खान इलाही खान के जरिए सुप्रीम कोर्ट की शरण ली.
3 तलाक के खिलाफ जंग लड़ने वाली इशरत जहां ने सोचा था कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उन की मुश्किलें कम हो जाएंगी. लेकिन वह यह नहीं जानती थी कि इस ऐतिहासिक फैसले के बाद उन का सामाजिक बहिष्कार हो सकता है.
इशरत जहां की एक जंग खत्म होते ही अपनों के बीच दूसरी जंग शुरू हो गई. गरीबी के बावजूद सामाजिक न्याय के लिए लड़ने वाली इशरत जहां को उस के ही रिश्तेदारों और पड़ोसियों की आलोचना और बदजुबानी का शिकार होना पड़ रहा. कोर्ट के फैसले के बाद उस के ससुराल वाले और पड़ोसी उस के चरित्र को दागदार बताने में लगे हैं.
इशरत जहां हावड़ा में पिलखना स्थित मकान में रहती है. यह मकान उस के पति ने सन 2004 में शादी के बाद मिली दहेज की रकम से खरीदा था. इस मकान में उस के पति के बड़े भाई और परिवार के अन्य लोग भी रहते थे. कोर्ट का फैसला आने से इशरत जहां के हौसले बुलंद हो गए हैं.
इशरत जहां का कहना है कि सभी को अपने अधिकारों के लिए लड़ाई लड़नी चाहिए. तलाक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में मुहिम छेड़ने वाली इशरत जहां को इन दिनों ससुराल वालों और पड़ोसियों द्वारा धमकी भरे फोन किए जा रहे हैं.
इन धमकियों को देखते हुए इशरत ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को पत्र लिख कर सुरक्षा की गुहार लगाई है. इशरत जहां ने अपने और बच्चों के लिए खतरे को देख कर उस पत्र की कौपी हावड़ा के पुलिस कमिश्नर औफिस और लोकल पुलिस स्टेशन को भी भेजी है.
3 तलाक को ले कर भले ही 5 महिलाएं ही अपना हक पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की शरण में गईं. लेकिन इस फैसले के आते ही देश के कोनेकोने से ऐसी महिलाओं की आवाज उभर कर सामने आ रही है, जो इस 3 तलाक से अपनी बसीबसाई जिंदगी को बरबाद कर के खून के आंसू रोने पर मजबूर हो गई थीं.
इस 3 तलाक के मुद्दे पर पहले से ही 2 धड़ों में बंटे मुसलिम रहनुमाओं की सियासत में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद गरमी आ गई है. जहां एक तरफ सुन्नी समुदाय के लोगों को इस फैसले से जबरदस्त आघात पहुंचा है, वहीं शिया समुदाय के लोग इस के पक्ष में आ खड़े हुए हैं.
3 तलाक के मामले पर सुप्रीम कोर्ट फैसला सुना चुकी है. अदालत ने इसे असंवैधानिक घोषित कर दिया है. लेकिन सवाल यह है कि क्या शायरा बानो और उन के साथ खड़ी 4 तलाक पीडि़त महिलाओं को सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से कोई लाभ मिल पाएगा, यह अभी पूरी तरह भविष्य के गर्भ में है.
15 साल में 4 निकाह 3 तलाक
उत्तर प्रदेश का बड़ा शहर है बरेली. तारा इसी शहर की है. जब वह 20 साल की थी, तभी मांबाप ने उस का निकाह जाहिद के साथ कर दिया था. कुछ दिनों तक सब ठीक रहा. लेकिन बच्चे नहीं हुए तो जाहिद ने दूसरी शादी कर ली और तारा को तलाक दे दिया. तारा का 7 साल का वैवाहिक जीवन बहुत ही नारकीय रहा.
तारा मांबाप के पास आ गई. चंद दिनों बाद उस का निकाह पप्पू के साथ कर दिया गया. निकाह के कुछ दिनों बाद पप्पू ने उस पर दबाव बनाया कि वह गैरमर्दों के साथ सोए. तारा ने इस का विरोध किया तो 3 साल बाद उस ने भी तलाक दे दिया.
2 बार 3 तलाक का दंश झेल चुकी तारा फिर मांबाप के पास आ गई. मांबाप गरीब थे, बेटी का घर बसाने के लिए उन्होंने एक बार फिर उस का निकाह सोनू से करवा दिया.
सोनू और तारा के बीच एक अन्य औरत के आ जाने से दोनों में झगड़ा बढ़ा और बात मारपीट तक जा पहुंची. तारा का विरोध करना सोनू को अच्छा नहीं लगा. सो 2 साल बाद उस ने भी 3 बार तलाक कह कर तारा को घर से बाहर कर दिया. मजबूरी में तारा को इस बार अपने मामू के यहां शरण लेनी पड़ी.
वहां रहते हुए 8 महीने पहले उस का चौथा निकाह शमसाद से करा दिया गया. शमसाद बच्चा चाहता था. बच्चा नहीं हुआ तो दोनों में झगड़ा रहने लगा.
फलस्वरूप बात चौथे तलाक तक आ गई. लेकिन सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद तारा ने पुलिस की शरण ली. पुलिस अब दोनों को परामर्श केंद्र भेज कर समझौता कराने की कोशिश कर रही है. तारा अब तलाक लेना नहीं चाहती.