सदाबहार सब्डी की खेती सभी प्रकार की जमीन में हो सकती है, मगर अच्छे जलनिकास वाली दोमट मिट्टी व जैविक खादों से भरपूर खेत इस के लिए ज्यादा बढि़या साबित होते हैं. इस की खेती हलकी अम्लीय जमीन में भी की जा सकती है.

1.बोआई का समय : गरमियों की भिंडी की खेती करने के लिए आसाम, बंगाल, उड़ीसा और बिहार के कुछ हिस्सों में जनवरी के अंत तक बोआई कर दी जाती है. इन सूबों में पाले का खतरा कम होता है. उत्तर भारत के राज्यों में भी भिंडी की अगेती फसल लेने के लिए जनवरी में ही पलवार आदि बिछा कर इस की खेती आसानी से कर सकते हैं. अगर ऐसा मुमकिन न हो तो उत्तरी राज्यों में मध्य फरवरी तक इस की बोआई कर देनी चाहिए. दरअसल इस के बीजों का जमाव 20 डिगरी सेंटीग्रेड से नीचे नहीं हो पाता?है. इसलिए यदि तापमान अनुकूल न हो तो पलवार का सहारा जरूर लेना चाहिए. पहाड़ी इलाकों में भिंडी की बोआई अप्र्रैल और मई में की जाती है.

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2.बीज दर : भिंडी के बीज काफी कठोर होते हैं, लिहाजा बीज के जमाव में 10-12 दिन तक लग जाते?हैं. इसलिए बेहतर है कि बोने से पहले बीजों को 24 घंटे के लिए पानी में भिगो दें या 12 घंटे भिगोने के बाद किसी सूती कपड़े को भिगो कर उस में बीजों को रख दें. इस से जमाव जल्दी होने की संभावना बढ़ जाएगी. जहां तक बीज दर की बात है तो आमतौर पर 20 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से जरूरी होते?हैं.

3.खेत की तैयारी : भिंडी की खेती के लिए मिट्टी खूब भुरभुरी होनी चाहिए. खेत को 1 बार गहराई से मिट्टी पलटने वाले हल से और 2-3 बार हैरो या देशी हल से जोत कर बढि़या तरीके से तैयार करना चाहिए.

सिंचाई एकसमान मिले इस के लिए खेत का समतलीकरण भी खूब अच्छी तरह से करें. यदि खेत में पर्याप्त नमी नहीं है, तो बोआई से पहले 1 बार सिंचाई जरूर कर देनी चाहिए. पलेवा भी किया जा सकता है.

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4.खाद व उर्वरक : बोआई से 2 हफ्ते पहले खेत में खूब सड़ी हुई गोबर की खाद 30 टन प्रति हेक्टेयर की दर से डालनी चाहिए. रासायनिक उर्वरकों को खेत की मिट्टी की जांच के अनुसार ही प्रयोग करना चाहिए. वैसे मोटे तौर पर 80 किलोग्राम नाइट्रोजन,40 किलोग्राम फास्फोरस व 50 किलोग्राम पोटाश प्रयोग किया जा सकता?है.

5.प्रजातियां : अपने इलाके के अनुकूल रोगरोधी प्रजातियों की ही बोआई करनी चाहिए.

सिंचाई ?: 5-6 दिनों पर या जरूरत के हिसाब से सिंचाई करते रहना चाहिए.

6.खरपतवार नियंत्रण : भिंडी में यदि शुरुआती 30-40 दिनों के अंदर खरपतवार पर नियंत्रण कर लिया जाए तो फसल अच्छी होती है. इसलिए बोआई के बाद व जमाव से पहले ही किसी अच्छे खरपतवारनाशी जैसे पेंडीमिथलीन या एलाक्लोर का इस्तेमाल करना चाहिए.

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7.खास रोग व कीट : भिंडी की फसल को कीटों और रोगों से तकरीबन 40-50 फीसदी तक नुकसान होता है, लिहाजा कीटों व रोगों की सही तरीके से रोकथाम करनी चाहिए. भिंडी के खास रोग व कीट निम्न प्रकार हैं:

8.पीत शिरा मोजैक : यह भिंडी का सब से खतरनाक रोग है. वायरस से होने वाले इस रोग की वजह से कई बार पूरी फसल चौपट हो जाती?है. रोग के ज्यादा बढ़ने पर इस का इलाज मुमकिन नहीं हो पाता है. इस रोग का फैलाव सफेद मक्खी द्वारा होता है. इस रोग की वजह से पत्तियों पर नसों का पीला जाल सा दिखाई पड़ता है, शिराएं सामान्य से मोटी, चमकीली व पीली हो जाती हैं, पत्तियां छोटी रह जाती हैं और पूरा पौधा बौना रह जाता?है.

इलाज

इस की रोकथाम के लिए विषाणु फैलाने वाली सफेद मक्खियों पर काबू पाना बेहद जरूरी?है. पीत शिरा मोजैक अवरोधी प्रजातियां जैसे पंजाब पद्मिनी, पंजाब 8, परभनी क्रांति, हिसार उन्नत या अपने क्षेत्र विशेष की अवरोधी प्रजातियों का चयन करना चाहिए. खेत में इस रोग के लक्षण दिखाई देते ही प्रभावित पौधों को तुरंत सावधानीपूर्वक उखाड़ कर जला दें. जरूरत पड़ने पर अच्छी दवाओं जैसे इंडोक्साकार्बा का आधा मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए.

9.चूर्णिल आसिता : यह फफूंद के कारण फैलने वाली बीमारी है. फफूंद के बीजाणु पत्तियों की निचली सतह पर सफेद रंग के चूर्ण की तरह जमा हो जाते?हैं. ज्यादा प्रभावित पत्तियां पीली पड़ कर गिर जाती हैं. इस की रोकथाम के लिए रोग के लक्षण दिखाई पड़ते ही 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से सल्फरयुक्त कोई रसायन या मैंकोजेब जैसे किसी फफूंदीनाशी का इस्तेमाल करना चाहिए.

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10.पत्तीधब्बा : यह रोग भी फफूंद के कारण फैलता है. इस में पहले पत्तियों पर छोटेछोटे गोल, अंडाकार या अनियमित आकार के गहरे भूरे धब्बे पड़ते?हैं, जो बाद में बढ़ कर पूरी पत्ती को घेर लेते हैं. अंत में पत्ती सूख कर गिर जाती है. इस की रोकथाम के लिए मैंकोजेब का 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बना कर 2-3 बार छिड़काव करें.

11.तनाबेधक व फलबेधक कीट : इस कीट की सूड़ी का रंग सफेद होता है, जिस के ऊपर काले और भूरे धब्बे पाए जाते?हैं. इसलिए इसे चित्तीदार सूड़ी भी कहते?हैं. ये सूडि़यां तने व फलों में छेद कर के नुकसान पहुंचाती हैं, नतीजतन तने व फल मुरझा कर गिर जाते?हैं.

इस कीट की सूंडि़यां भिंडी के फूलों, कलियों व पौधों की कोमल टहनियों को नुकसान पहुंचाती हैं. इन के प्रकोप से कलियां नहीं खिलतीं, फूल झड़ने लगते हैं और फल खाने लायक नहीं रह जाते हैं.

इलाज

रोकथाम के लिए प्रभावित शाखाओं व फलों को तोड़ कर नष्ट कर दें. प्रकाश प्रपंच और फेरोमोन ट्रैप का इंतजाम करें. जरूरी होने पर कृषि वैज्ञानिकों की सलाह से किसी रासायनिक दवा का कुछ दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें.

12.हरा फुदका (जैसिड) : ये हरे रंग के कीट होते हैं, जिन की पीठ के पिछले भाग पर काले रंग के धब्बे पाए जाते हैं. ये पौधे की पत्तियों व नर्म भागों से रस चूसते?हैं, जिस से पत्तियां मुड़ जाती हैं और बाद में धीरेधीरे सूखने लगती हैं. रासायनिक रोकथाम के लिए मैलाथियान दवा की 2 मिलीलीटर मात्रा का प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें.

13.सफेद मक्खी : ये पत्तियों की निचली सतह पर बैठ कर रस चूसती हैं, जिस से पत्तियां पीली पड़ जाती?हैं और पौधों की बढ़वार रुक जाती है, पौधों में फूलों व फलों की संख्या कम हो जाती है. यह कीट अपने शरीर से एक मीठा पदार्थ भी छोड़ता है, जिस के ऊपर काली फफूंद उग आती है.

इलाज

रोकथाम के लिए खेत में उगे खरपतवारों को नष्ट कर देना चाहिए. रासायनिक इलाज के लिए डायमेथोएट (रोगोर) दवा का 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए.

तोड़ाई : भिंडी की तोड़ाई प्रजातियों के अनुसार फूल खिलने के 5-7 दिनों बाद की जाती?है. केवल नरम भिंडियों की तोड़ाई ठीक रहती है.

कुछ ध्यान देने वाली बातें

.* रासायनिक दवाओं द्वारा रोकथाम करने की दशा में, दवाओं का बेहतर तरीके से पत्तियों व तनों के पिछले भागों पर भी प्रयोग करें. कई बार लोग दवाओं का छिड़काव तो कर देते?हैं, मगर फिर भी इस का पूरा फायदा नहीं मिल पाता है. इस की वजह यह?है कि कीड़े या उन के लारवे वगैरह पीछे छिपे रह जाते?हैं और उन पर दवा नहीं पड़ पाती है.

* रासायनिक दवाओं के घोल में किसी अच्छे चिपकने वाले रसायन का प्रयोग करें, इस से ज्यादा प्रभावकारी असर होगा.

* समस्या से नजात पाने के लिए ज्यादा खतरनाक रसायन का प्रयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि भिंडियों को जल्दी ही सब्जी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.

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