बेकारी की समस्या इस देश में विकराल नहीं दिखती क्योंकि यहां लोग 2 घंटे काम कर के भी अपने को काम पर समझते हैं और उन्हें गुजारे लायक पैसा मिल जाता है. यूरोप, अमेरिका बेकारी की मार से कराह रहे हैं. अमेरिका, जहां की केवल 7.5 प्रतिशत आबादी बेकारों के रजिस्टर में है, बेकारी राष्ट्रपति के लिए रात की नींद उड़ा देती है और हर सप्ताह वह गिनता है कि कितनी नई नौकरियां निकलीं.
दूसरी तरफ अटलांटिक पार, ग्रीस में बेकारी 60 प्रतिशत है,?स्पेन में 56, इटली में 38, हंगरी, पोलैंड, आयरलैंड, पुर्तगाल आदि में लगभग 30 प्रतिशत. इन देशों में मुख्य सड़कों पर आएदिन बड़ेबड़े धरनेप्रदर्शन होते रहते हैं. युवा सरकारों को कोसते नजर आते हैं. बेकारी से जूझना आसान नहीं होता. जब अपने पैरों पर खड़े होने का समय आए और पता चले कि कोई आप की योग्यता का इस्तेमाल करने वाला न हो तो पूरा अस्तित्व कांप उठता है. गहरा मानसिक तनाव हो जाता है. मातापिता,?भाईबहन या सरकारी दान पर भिखारियों की तरह रहना पड़ता है.
इस गम को भुलाने के लिए शराब या किसी अन्य नशे की आदत पड़ जाती है. काम वाले दोस्त साथ छोड़ जाते हैं और बेकारों का गुट बन जाता है. बेकारी की समस्या का मुख्य कारण यह है कि बहुत से युवा इस तरह पारिवारिक या सरकारी लाड़ में पलते हैं कि वे जौब मार्केट के लिए अपने को तैयार ही नहीं करते. वे कम काम वाली नौकरियां ढूंढ़ते हैं. नौकरी पाने पर नई तकनीक या विविधता अपनाने से हिचकते हैं. मेहनत करना भूल जाते हैं. अपना समय व पैसा मौजमस्ती, नाचगाने, खानेपीने में लगा डालते हैं.
हमारे देश में वही बेकार हैं जो कम से कम काम करना चाहते हैं. काम वालों को अगर निकाला जाता है तो कम वेतन पर दूसरी नौकरी मिल ही जाती है. हमारे यहां जो सरकारी नौकरी या मल्टीनैशनल कंपनी में कार्यरत नहीं है, वह अपने को बेकार मानता है. हर जने को, चाहे वह बेकार हो या अच्छीभली पक्की नौकरी पर हो, नई तकनीक सीखने, मेहनत से काम करने, की आदत बनाए रखनी चाहिए. जो बिलकुल बेकार हैं वे अपने कपड़े धोएं, आसपास की सफाई करें, वृद्धों की सहायता करें पर खाली न बैठें. जो काम पर हैं, चाहे सरकारी नौकरी क्यों न हो, अपने को जंग न लगने दें. आगे बढ़चढ़ कर जिम्मेदारी लें. कई घंटे स्वत: काम करें. शरीर को व्यस्त रखें.
अपनी नौकरी बनाए रखनी है, दूसरों के लिए नौकरियां पैदा करनी हैं तो उत्पादकता बढ़ानी होगी. पूंजी का पूरा व सही इस्तेमाल करना होगा. नारेबाजी, धरनेप्रदर्शन कोई शौर्टकट नहीं है. डिगरी पा लेना अकेली योग्यता नहीं है. लगातार मेहनती बदन और वैसी सोच बनाना जरूरी है वरना हाथ मलोगे या हाथ पसारोगे.