Hindi Social Story: नीलू ने सुमन मैम के आदर्शों को अपने जीवन में उतारा था। वे उसके लिए एक आदर्श, परोपकारी रूप थीं। उन्हीं मैम को भिखारिन के लिबास में देखकर वह सन्न रह गई थी।

“पक्का ही ये तो मैम ही हैं!” नीलू ने एक बार फिर उन्हें गौर से देखा।

उसे याद आया कि जब उसने 12वीं में टॉप किया था, तब वह मैम से मिलने उनके ऑफिस में गई थी। वैसे, मैम बहुत कड़क स्वभाव की और अनुशासनप्रिय थीं, इसलिए हर कोई उनसे ऐसे ही नहीं मिल सकता था। लेकिन वह चूँकि स्कूल की होशियार छात्राओं में शामिल थी और मैम उसे मार्गदर्शन देती रहती थीं, इसलिए उसने उनसे मिलने का निश्चय किया।

बाहर चपरासी बैठा रहता था।

“क्या है?”

“मुझे मैम से मिलना है।”

“अरे, मैम स्टूडेंट्स से नहीं मिलतीं, तुम इतना भी नहीं जानती?” — उसने बेरुखी से कहा।

“हाँ, लेकिन मुझे उन्हें धन्यवाद बोलना है। मैंने कक्षा 12वीं की परीक्षा पास कर ली है और अब स्कूल से विदा ले रही हूँ।”

“तो बहुत सारी छात्राओं ने 12वीं पास की है, क्या मैम सब से मिलेंगी?”

मुझे समझ में आ गया था कि यह मुझे मैम के ऑफिस के अंदर नहीं जाने देगा, इसलिए मैंने बाहर से ही आवाज लगा दी थी —

“मैम, मैं नीलू हूँ, मुझसे मिलिए।”

मेरे आवाज लगाने पर चपरासी हड़बड़ा गया था।

“ओके, अंदर आ जाओ।”

जैसे ही मैम ने अंदर आने को कहा, मैं बेधड़क ऑफिस का दरवाजा खोलकर अंदर चली गई।

मैम ने आसमानी रंग की साड़ी पहनी हुई थी, बालों का जूड़ा बनाया हुआ था, जिसके एक कोने में सफेद पारिजात का फूल लगा था। वैसे तो मैम का रंग सांवला ही था, पर वे बहुत खूबसूरत लगती थीं। एक बड़ी सी टेबल थी, जिसके एक ओर करीने से फाइलें सजी हुई थीं और सामने कुछ कागज़ रखे थे जिन्हें मैम पढ़ रही थीं। इसी टेबल पर उनकी नेमप्लेट रखी थी —

“सुमन।”

वे केवल इतना ही नाम लिखती थीं — न नाम के आगे ‘सुश्री’ और न नाम के बाद उपनाम।

मेरे ऑफिस के अंदर प्रवेश करते ही उन्होंने अपनी आँखों पर लगा चश्मा उतारकर गले में लटका लिया। उनके चेहरे पर मुस्कान दौड़ गई।

“मेरे स्कूल की होनहार छात्रा नीलू, यस!”

“जी मैम,” कहकर मैं उनके पैर छूने के लिए आगे बढ़ी, लेकिन उन्होंने मुझे गले से लगा लिया —

“अरे, हमारे यहाँ बेटियों को गले से लगाकर रखा जाता है। तुम भी मेरी बेटी ही तो हो।”

उनका स्नेहभरा स्पर्श पाकर मुझे बहुत अच्छा लगा, मातृत्व का भाव महसूस हुआ। उन्होंने अपनी टेबल की दराज खोलकर मिठाई निकाली —

“ये लो, मीठा खाओ।”

उन्होंने पूरे स्नेह से मुझे मीठा खिलाया और मेरी पीठ पर हाथ फेरा,

“अभी तुम्हारे जीवन के बहुत सारे इम्तिहान बाकी हैं। तुम मेरी स्टूडेंट हो, मुझे उम्मीद है कि तुम हर इम्तिहान में टॉप करती रहोगी। गुडलक!”

मैम के ऑफिस से बाहर निकलते समय मैं यही सोच रही थी कि मैम तो इतनी सरल और सहज हैं, फिर वे कड़क मैडम की छवि क्यों बनाए रखती हैं।

मैं भी उन्हें इसी रूप में ही जानती रही हूँ। इस स्कूल में मेरा एडमिशन कक्षा एक में हुआ था, यानी मैं यहाँ बारह सालों से पढ़ रही थी और मैम भी स्कूल में पहले क्लास टीचर रहीं, फिर यहीं प्रिंसिपल बन गईं।

स्कूल में उनका अनुशासन बहुत प्रसिद्ध था। इसलिए हर अभिभावक चाहता था कि उसकी बच्ची का एडमिशन इसी स्कूल में हो। वे पढ़ाई पर पूरा ध्यान देती थीं — कोई भी छात्रा या शिक्षक लापरवाही नहीं कर सकता था। क्लास विधिवत लगती, और वे खुद भी दिनभर पूरे स्कूल का निरीक्षण करती रहतीं। कोई शिक्षक अनुपस्थित होता, तो वे उसकी क्लास में जाकर पढ़ाने लगतीं। हर विषय वे सहजता से पढ़ा लेती थीं।

वे छात्राओं से प्यार भी बहुत करतीं और उनकी मदद भी करती रहतीं।

“सुनो प्रिया, तुम शाम को मेरे घर आ जाना। मुझे लगता है कि तुम्हें गणित पढ़ने में दिक्कत हो रही है।”

उनकी आवाज भले ही कड़क होती, पर उसमें सामने वाले के प्रति चिंता झलकती।

वे अपने घर पर ऐसे सभी छात्राओं को पढ़ातीं, पर कोई शुल्क नहीं लेतीं।

“अरे, तुम मेरी बेटी हो — तुम्हें पढ़ाने का शुल्क लेंगे क्या?”

वे सभी को चाय-नाश्ता भी करातीं।

उनके घर में एक बेटा और एक बेटी थी। वे दोनों उनके स्कूल में नहीं पढ़ते थे। उनका एडमिशन उन्होंने जानबूझकर दूसरे स्कूल में कराया था। अपने स्कूल जाने से पहले वे दोनों को उनके स्कूल छोड़ने जातीं, फिर अपने स्कूल आतीं। इस चक्कर में उन्हें अपने घर से जल्दी निकलना पड़ता, पर शाम को वे उन्हें भी पढ़ाती थीं।

वे अपने दोनों बच्चों को गोद में बिठा लेतीं और उनके सिर पर हाथ फेरते हुए पूरे लाड़ से पढ़ाती रहतीं।

कक्षा 12वीं पास करने के बाद उनके दोनों बच्चे आगे की पढ़ाई के लिए दूसरे शहर चले गए थे। अब वे अपने घर में अकेली पड़ गई थीं। उनके पति के बारे में कोई कुछ नहीं जानता था और न ही उन्होंने कभी इस पर बात की।

नीलू ने एक बार फिर देखा — ये तो वाकई मैम ही हैं, पर यहाँ कैसे और इस हाल में!

वह तो स्कूल से निकलने के बाद मैम से मिली ही नहीं थी, इसलिए उसे उनकी बाकी ज़िंदगी के बारे में कुछ पता नहीं था। उसका ट्रांसफर इस शहर में कुछ ही दिनों पहले हुआ था।

अपनी आदत के अनुसार जॉइनिंग लेकर पूरे शहर का चक्कर लगाने और शहर के मिज़ाज को समझने के लिए वह निकली थी। उसके साथ अफसरों की पूरी टीम थी।

वह यहाँ पहली बार डीएम बनकर आई थी, इसलिए उसके मन में उत्साह भी था। रेलवे स्टेशन की ओर उसकी गाड़ियाँ निकल पड़ी थीं।

अपनी कार की खिड़की से झाँकते हुए उसने मैम को फटी साड़ी और गंदे से कंबल में ओढ़े भिखारियों की लाइन में बैठे देखा। उसने अपनी गाड़ी रुकवा ली।

सारे अधिकारी अपनी-अपनी गाड़ियों से बाहर निकल आए, पर वह अपनी गाड़ी में बैठी अभी भी मैम की ओर ही देख रही थी।

चेहरे पर झुर्रियाँ पड़ चुकी थीं। हमेशा खिला रहने वाला उनका चेहरा अब उदासी के बोझ से दबा हुआ था। पर बालों का जूड़ा अब भी वैसा ही बना था जैसा मैम तब बनाती थीं — बस, अब उनके बालों में सफेदी आ चुकी थी।

नीलू को बाहर बैठे भिखारियों की ओर देखते हुए उसके साथ आए अफसर घबरा गए। पुलिस अफसरों को लग रहा था कि यहाँ बैठे भिखारियों की वजह से उन्हें डाँट पड़ने वाली है। सो, वे हड़बड़ी में भिखारियों को भगाने की कोशिश करने लगे।

एक पुलिस अधिकारी ने अपने हाथ में डंडा थाम लिया था। जैसे ही नीलू की निगाह उस अधिकारी पर गई, वह बिफर पड़ी। गुस्से में गाड़ी का गेट खोलकर बाहर निकल आई।

“शट अप! क्या बदतमीज़ी है?”

नीलू ने भिखारियों को मारने के लिए उठे हाथ को जोर से पकड़ लिया था।

पुलिस अफसर घबरा गया —

“वो… मैम… वो…”

“आई डोंट लाइक इट, यू कैन गो!”

उसके हाथ से छीना डंडा नीलू ने गुस्से में नीचे फेंक दिया।

“सॉरी मैम,” पुलिस अधिकारी को समझ में नहीं आ रहा था कि उससे गलती क्या हो गई है। समझ में तो साथ चल रहे दूसरे अधिकारियों को भी नहीं आ रहा था।

पुलिस वालों के चिल्लाने की आवाज़ और डंडा मारने की हरकत से भयभीत होकर वहाँ बैठे भिखारी भागने लगे। लेकिन वह बैठी रही — जिसे नीलू अपनी मैम समझ रही थी।

एकाएक वह उठी और उसने एक पुलिस वाले का हाथ पकड़ लिया —

“हाउ डेयर यू!”

उसने गुस्से के साथ पुलिस वाले की ओर देखा।

पुलिस वाला चौंक गया। उसने तो उम्मीद भी नहीं की थी कि कोई भिखारिन उससे अंग्रेज़ी में बात करेगी।

“चल हट यहाँ से, बड़ी अंग्रेज़ी बोलने वाली आई है!”

पुलिस वाले के पास धैर्य कहाँ होता है — आम आदमी उसके लिए आम ही होता है, फिर वह तो भिखारिन थी।

“यू शट अप! बोलने की तमीज़ नहीं है तुम्हें?”

अबकी बार वह जोर से दहाड़ी। उसकी चिल्लाने की आवाज़, चारों ओर उठ रहे शोर के बावजूद, सबको सुनाई दे गई थी।

नीलू को भी आवाज़ सुनाई दे चुकी थी — “यह तो मैम की ही आवाज़ है!”

अब नीलू को पूरा यकीन हो गया कि वह भिखारिन उसकी टीचर ही हैं।

जिस पुलिस वाले को उसने जोर से डांटा था, वह कुछ देर तक शांत रहा, फिर उसे एहसास हुआ कि एक भिखारिन ने उसकी बेइज़्जती कर दी है। अब उसका गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुँचा। उसने अपने हाथ में रखी लाठी को घुमा दिया।

इससे पहले कि उसकी लाठी भिखारिन के शरीर को छूती, नीलू ने उसे अपने हाथों से रोक लिया।

पुलिस वाला सकपका गया। डीएम उसकी ओर ख़ूंखार निगाहों से देख रही थीं।

“नालायक! तुम्हें वर्दी ऐसे ही अत्याचार करने के लिए दी जाती है क्या?”

चारों ओर बिखरे अधिकारी अब वहाँ सिमट आए थे।

“सॉरी मैम!” — एसपी ने माफी माँगी।

यह डीएम नई आई थीं, इसलिए किसी को भी उनके स्वभाव का अंदाज़ा नहीं था। अधिकारी अकसर अपने बड़े अधिकारी के रुख़ के अनुसार अपनी कार्यशैली बदलते रहते हैं।

एसपी ने ‘सॉरी’ बोला, पर डीएम का गुस्सा शांत नहीं हुआ —

“ये कौन है? इसे मेरे ऑफिस में पेश करो!”

वे गुस्से के कारण ज़्यादा कुछ बोल नहीं पा रही थीं।

वैसे भी, नीलू एक संवेदनशील अधिकारी थी। उसे गरीबों पर अत्याचार होते देखना कभी अच्छा नहीं लगता था।

इससे पहले, ट्रेनिंग के दौरान जब वह एक शहर में एसडीएम के पद पर नियुक्त थी, तब उसने एक पटवारी को नौकरी से निलंबित कर बर्खास्त करने की सिफारिश कर दी थी — सिर्फ इसलिए कि उसने एक बेसहारा महिला की ज़मीन हड़पकर दूसरे के नाम पर दर्ज कर दी थी।

वह बुजुर्ग महिला रोती-बिलखती उसके ऑफिस पहुँची थी। उसकी सिसकियाँ सुनकर नीलू खुद अपने ऑफिस से बाहर आई।

“क्या हुआ, अम्मा?” — नीलू अकसर बुजुर्ग महिलाओं को ‘अम्मा’ कहकर बुलाती थी।

अम्मा कहने में आत्मीयता झलकती थी। उसने प्यार से बुजुर्ग महिला के सिर पर हाथ फेरा, चपरासी से पानी मंगवाया और उसे पिलाया। अधिकारी का स्नेह पाकर उस बुजुर्ग महिला की आँखों से आँसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा।

नीलू ने सारी बातें सुनीं, फिर उस पटवारी को बुलाकर तहसीलदार को एक घंटे में जांच रिपोर्ट देने का आदेश दिया। तब तक नीलू ने उस बुजुर्ग महिला को अपने चेंबर में बैठा रखा।

बाहर से खाना मंगवाकर उसे खिलाया —

“अम्मा, आप तो अब तब ही जाएँगी जब आपकी ज़मीन आपको मिल जाएगी।”

“हां बिटिया, मेरे पास और कुछ है ही नहीं। इस ज़मीन का चारा काटकर ही अपने खाने की व्यवस्था कर लेती हूँ।”

उसकी आवाज़ के दर्द ने नीलू को अंदर तक हिला दिया।

नीलू ने तत्काल जनपद पंचायत के सीईओ को उस महिला की ‘निराश्रित पेंशन योजना’ और ‘गरीबी रेखा राशन कार्ड’ बनाने का आदेश दिया।

दोपहर तक तहसीलदार ने पटवारी की बेईमानी की पूरी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी। साथ ही, नई बही बनवाकर एसडीएम के सामने रख दी। कार्यपालन अधिकारी भी निराश्रित पेंशन और नीला राशन कार्ड लेकर आ गया।

वह महिला भावविभोर होकर नीलू के पैरों पर गिर पड़ी। नीलू ने उसे उठाकर गले से लगा लिया —

“अम्मा, मैं तो आपकी ही बेटी हूँ न! मुझे स्कूल में मेरी मैम ने यही सिखाया था — यह मेरी ड्यूटी है, मैंने कोई एहसान नहीं किया।”

नीलू के गले लगकर वह बुजुर्ग महिला बहुत देर तक रोती रही। नीलू उसके सिर पर हाथ फेरती रही। उसे बहुत अच्छा लग रहा था — मानो उसने आज अपने गुरु का ऋण चुका दिया हो।

तहसीलदार ने अपनी गाड़ी में बैठाकर उस महिला को उसके गाँव तक छोड़ा और गाँव वालों को समझा दिया कि अगर उन्होंने उस महिला के साथ कोई हरकत की तो “हमारी मैडम खाल खींच लेंगी।”

जब उसका कलेक्टर बनने का ट्रांसफर ऑर्डर आया, तो नीलू उस बुजुर्ग महिला के गाँव गई थी।

“अम्मा, अब मैं दूसरे शहर जा रही हूँ। आपका आशीर्वाद बना रहे।”

उन्होंने नीलू को अपनी आगोश में भर लिया। उनकी आँखों से आँसू बह रहे थे — मानो वे अपनी बिटिया को विदा कर रही हों।

यहाँ घटी घटना ने नीलू को गुस्से से भर दिया था। वह तो वैसे भी किसी पर अत्याचार देख नहीं सकती थी — और फिर जिस महिला से वह पुलिस वाला बदतमीज़ी कर रहा था, वे उसकी मैम थीं!

नीलू के गुस्से को वहाँ उपस्थित सभी लोगों ने महसूस कर लिया था।

वह भिखारिन भी भारी गुस्से के साथ अंग्रेज़ी में धाराप्रवाह बोलती जा रही थी। वहाँ उपस्थित सभी लोग हैरान थे — एक भिखारिन इतनी अकड़ के साथ अंग्रेज़ी कैसे बोल सकती है!

नीलू ने एक बार फिर मैम की ओर देखा। वे भी उसी की ओर देख रही थीं।

अचानक नीलू दौड़ी और उस भिखारिन को अपनी आगोश में भर लिया —

“मैम! मैम!”

बहुत देर से दबे नीलू के आँसू अब बह निकले थे।

भिखारिन चौंक गई। उसे कतई उम्मीद नहीं थी कि कोई अफसर उसे यूँ गले लगा लेगी। उसने नीलू की आवाज़ सुनी — वह पहचानने की कोशिश कर रही थी।

भिखारिन सकपका गई —

“हू आर यू?”

अबकी बार उसकी आवाज़ में गुस्सा नहीं था।

“मैम, मैं… मुझे देखो तो!”

भिखारिन ने ध्यान से उसकी ओर देखा, पर पहचान नहीं पाई।

पहचानती भी कैसे? नीलू अब बड़ी हो चुकी थी। उन्होंने तो उसे हमेशा स्कूल की यूनिफ़ॉर्म में ही देखा था — दो चोटियाँ, गले तक सलीके से लिपटा दुपट्टा।

वह बहुत छोटी थी तब। एक बार वह केवल एक चोटी बनाकर स्कूल आई थी।

प्रार्थना के समय ही मैम ने आवाज़ लगाई —

“नीलू, मेरे ऑफिस में आओ।”

सभी छात्राओं को लगा, आज नीलू की क्लास लगने वाली है, क्योंकि मैम बहुत गुस्से में हैं।

वह भी डरते-डरते उनके ऑफिस पहुँची।

मैम ने उसे देखा — गुस्से में ही थीं।

“इधर आओ।”

वह डरते हुए उनके पास जा खड़ी हुई।

मैम ने अपनी टेबल की दराज़ खोली तो नीलू और डर गई। उसे लगा कि मैम अब रूल निकालेंगी और हथेली पर मारेंगी।

“सॉरी, मुझसे गलती हो गई मैम, मुझे माफ़ कर दो।” — उसके आँसू निकल आए।

“क्या गलती हुई है, जानती हो, या ऐसे ही माफ़ी मांग रही हो?”

नीलू सचमुच नहीं जानती थी कि गलती क्या है।

“नहीं, पर कोई न कोई गलती तो अवश्य हुई है। इस बार माफ़ कर दो, फिर कभी गलती नहीं करूँगी।”

डर के मारे नीलू ने आँखें बंद कर लीं।

“ओके, तुम इस स्कूल की टॉपर छात्रा हो, इसलिए इस बार माफ़ कर रही हूँ, पर अगली बार नहीं करूंगी, समझीं?”

“जी मैम।”

नीलू ने आँखें खोलीं — मैम उसकी चोटी खोल रही थीं। उन्होंने कंघी से उसके बाल सँवारे और दो चोटियाँ बना दीं।

“स्कूल में दो चोटी करके ही आने का नियम है, अगली बार ध्यान रखना।”

नीलू को अब समझ में आया कि उसकी गलती क्या थी।

“जी मैम।”

एकाएक मैम ने उसे गले से लगा लिया —

“तुम मेरी बेटी जैसी हो।”

और हँस दीं।

नीलू उस भिखारिन को देख रही थी और भिखारिन नीलू को।

आसपास खड़े किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि यह हो क्या रहा है।

चारों ओर एक अजीब सी निस्तब्धता छा गई थी।

“नो, नो… मैं नहीं जानती तुम्हें।”

भिखारिन अपने दिमाग पर ज़ोर डाल रही थी।

नीलू मुस्कराई —

“मैम, मैं… नीलू! याद कीजिए, आपके स्कूल की टॉपर — जिसे आप अपनी बिटिया कहती थीं।”

कुछ देर तक शांति रही, फिर भिखारिन बोली —

“यस… ओह! माई डॉटर, नीलू!”

अब उसके चेहरे पर अपनापन झलकने लगा।

“जी मैम।”

नीलू के चेहरे पर संतोष के भाव थे।

दोनों कुछ देर तक एक-दूसरे को देखती रहीं, फिर भिखारिन दौड़कर नीलू के गले लग गई —

“माई डॉटर!”

उसकी आँखों से आँसुओं की बाढ़ आ गई।

उसे गले लगाकर नीलू की आँखें भी बरसने लगीं।

भीड़ में मौजूद कई लोगों की आँखें भी नम थीं।

नीलू मैम को अपने साथ गाड़ी में बिठाकर अपने बंगले पर ले आई।

वैसे तो उसके मन में यह जानने की उत्सुकता थी कि आखिर ऐसी कौन सी परिस्थिति आ गई कि मैम को भीख मांगनी पड़ी —

पर नीलू ने पहले उन्हें पूरा आराम करने दिया।

नहाकर, तैयार होकर सुमन पहले जैसी लगने लगीं। उनके चेहरे का तेज़ लौट आया।

नीलू ने उन्हें आसमानी रंग की वही साड़ी दी — जिसमें वे हमेशा बहुत सुंदर लगती थीं।

सुमन ने पहले जैसी ही जूड़ा बनाकर बालों में कंघी की, चश्मा लगाया — अब उन्हें देखकर कोई यकीन नहीं कर सकता था कि वे वही भिखारिन हैं।

रात के भोजन पर दोनों साथ बैठीं।

नीलू वैसे भी अकेली रहती थी — उसके पति दूसरे जिले में कलेक्टर थे, और माता-पिता कभी-कभी ही आते थे।

“अब कैसी हैं, मैम आप?” — नीलू ने बातचीत शुरू की।

उसने अपने यहाँ तक पहुँचने की पूरी कहानी सुनाई —

कैसे उसने जीवन में सुमन मैम के आदर्शों को अपनाया और पहले ही प्रयास में UPSC परीक्षा पास की।

सुमन भावुक हो गईं। उनकी आँखों से आँसू झरने लगे।

अब बारी सुमन की थी —

“रिटायरमेंट के समय तक दोनों बच्चे विदेश जा चुके थे। वे वहीं बस गए।

मैं जिस गर्ल्स स्कूल में थी, उसके बुज़ुर्ग मालिक का निधन हो गया। उनके बेटे सौरभ ने स्कूल संभाल लिया।

धीरे-धीरे मुझे पता चला कि वह स्कूल की कुछ लड़कियों को अपने घर बुलाता है। फिर वे लड़कियाँ गायब हो जातीं।

मैंने सारी कड़ियाँ जोड़नी शुरू कीं और महसूस किया कि सौरभ ही इसमें शामिल है।

मैंने उसे समझाया —

‘देखो सौरभ, तुम मेरे बेटे जैसे हो। तुम्हारे पिता की बहुत प्रतिष्ठा रही है, इसलिए मैं चाहती हूँ कि तुम यह गलत काम छोड़ दो।’

सौरभ घबरा गया। बोला — ‘ऐसी कोई बात नहीं, मैडम। आप सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान दें।’

मैंने कहा — ‘मैं सब जानती हूँ। अगर तुमने यह काम नहीं छोड़ा, तो मैं पुलिस में जाऊँगी।’

उसने धमकी दी — ‘आप अपने काम से काम रखें, वरना…’

और वाक्य अधूरा छोड़ दिया।

मैंने उसी समय इस्तीफ़ा दे दिया।

सौरभ डर गया कि कहीं मैं सब बता न दूँ। उसने अपने दोस्त एसपी के साथ मिलकर मुझ पर ही आरोप लगवा दिए —

‘प्राचार्या लड़कियों की ट्रैफिकिंग करती हैं!’

जब यह ख़बर फैली, मैं रातों-रात शहर छोड़कर चली आई।

तब से भिखारिन का वेश धारण कर यहाँ रह रही थी।”

नीलू स्तब्ध थी।

उसे याद आया — उसी शहर का नया एसपी उसका क्लासमेट है।

उसने तुरंत पीए से कहा, “एसपी मयंक को कॉल मिलाओ।”

“हैलो मयंक, मैं नीलू — डीएम बोल रही हूँ।”

“ओह! नीलू जी! आप तो हमेशा होशियार थीं। कैसी हैं?”

“ठीक हूँ। पर एक ज़रूरी बात करनी है।”

नीलू ने सारी बातें विस्तार से बता दीं।

मयंक बोला — “हाँ, उस स्कूल में गर्ल्स ट्रैफिकिंग की शिकायत है। पुलिस जांच कर रही है। पर आपकी मैम मुख्य आरोपी हैं।”

“वो मेरे साथ हैं — मेरे बंगले पर। तुम उनकी बातों के आधार पर जांच करो।”

“ओके। लेकिन मैम को कहीं मत जाने देना जब तक जांच पूरी न हो जाए।”

“वे यहीं रहेंगी।”

तीन दिन बाद मयंक का फ़ोन आया —

“नीलू मैम, आपकी मैम की सारी बातें सही निकलीं। सौरभ को गिरफ्तार कर लिया गया है।”

यह सुनकर नीलू ने जब मैम को बताया कि वे आरोपमुक्त हो चुकी हैं, तो सुमन की आँखों से आँसू झरने लगे।

“बिटिया, तूने आज अपना गुरु-ऋण चुका दिया। वरना मैं लाख चिल्लाती रहती, कोई मेरी बात नहीं सुनता।”

नीलू ने उन्हें गले से लगा लिया —

“आपने ही तो मुझे सिखाया था सच्चाई और न्याय के रास्ते पर चलना, मैम। अब आप कहीं नहीं जाएँगी — हमेशा मेरे साथ रहेंगी।”

दोनों माँ-बेटी की तरह एक-दूसरे की बाँहों में थीं —

आँसू थे, भावनाएँ थीं, और एक अमर रिश्ता — गुरु और शिष्या का। Hindi Social Story.

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