Gen Z Special: जेन जी के खुलेपन और दबंग रवैये से अनीता पहले ही काफी परेशान थी, मगर जब बेटी ने जेनरेशन अल्फा और बीटा का जिक्र छेड़ा तो वह सोच में पड़ गई.

रात के 9 बज रहे थे. मुंबई के बोरीवली इलाके के एक थ्री बीएचके फ्लैट में डाइनिंग टेबल पर खाना लग चुका था. केतन ऑफिस से आ कर अभी फ्रेश हो रहे थे. उन की पत्नी अनीता काफी तनाव में दिख रही थीं. दरअसल अनीता का मन हो रहा है कि आज वे केतन से अपनी बेटी कुहू को इतनी डांट पड़वाएं कि वह सुधर जाए. आज अनीता मन ही मन जेन जी को कोस रही थीं. हर तरफ इस जेन जी के बिगड़ने का जो शोर मचा है, उस से वे पूरी तरह सहमत हैं. एकदम लापरवाह जेनरेशन बेकार जेन जी, किसी काम की नहीं. कुहू को ही देख लो, अपने में ही गुम. अनीता से रहा नहीं गया. वह बोल ही पड़ीं, ‘‘तुम पर इतना गुस्सा आ रहा है कि क्या कहूं. हर समय हाथ में फोन. अब तो बाथरूम में भी फोन ले कर जाती हो. दिमाग खराब हो गया है इस जनरेशन का. अब भी देखो फोन से नजर ही नहीं हट रही है तुम्हारी. जरा भी शर्म नहीं. इधर देखो, क्या कह रही हूं मैं तुम से?’’ अनीता का चेहरा बेटी को डांटते हुए गुस्से से लाल हो रहा था.  ‘‘क्या बोल रही हो, मम्मी? किसी भी बात पर गुस्सा शुरू कर देती हो. ऐसा नया क्या हो गया है. लो, पापा भी फ्रेश हो कर आ गए. चलो मम्मी, शांति से डिनर करने दो. क्या बनाया है, कुछ बोरिंग तो नहीं है?’’ केतन ने गंभीरता से पत्नी के तमतमाए चेहरे को निहारा और फिर आराम से डोंगे के ढक्कन हटा-हटा कर देखते हुए अपनी इकलौती बेटी कुहू को घूरा, ‘‘थोड़ा ढंग से रहा करो, कुहू?’’ ‘‘मतलब?’’ जवाब अनीता ने दिया, ‘‘इसे बस अपनी पॉकेट मनी, दोस्तों के साथ घूमना पता है, हाथ में हर समय फोन और उल्टे जवाब. घर के किसी काम में कोई रुचि नहीं. कालेज से आ गई तो बस अपने रूम में बंद.’’ ‘‘मम्मी, मैं तो जवाब देती हूं आप को, पता नहीं क्यों आप को उल्टे लगते हैं? पहले तो आप कहती थीं कि मुझे अपने दिल की बात कहने की पूरी छूट है और काम के लिए आप के पास 2 हाउस हैल्प हैं. अच्छा बताओ, मुझसे क्या करवाना है? अभी झाड़ू लगा दूं, बोलो, बोलो?’’ कुहू ने ऐसे भोलेपन से कहा कि अनीता और केतन उसे घूरते हुए खाना निकालने लगे. अचानक कुहू बुरी तरह तुनकी, ‘‘फिर वही दाल और गोभी की सब्जी?’’ केतन ने घूरा, ‘‘यह तुम्हारा रोज का तमाशा है, कुहू. जो बने, चुपचाप खा लिया करो.’’ ‘‘जो मेरी पसंद का नहीं होगा, मैं नहीं खाऊंगी. मैं अपने लिए अभी कुछ ऑर्डर कर लूंगी.’’ ‘‘कुहू, रोज-रोज बाहर का खाना हेल्थ के लिए अच्छा नहीं है, जो बना है, खा लो.’’ ‘‘रोजरोज ये दाल-सब्जी खा कर अगर हेल्थ अच्छी रहती है तो मैं बीमार होना पसंद करूंगी, मम्मी.’’ ‘‘एक हम थे, जो बनता था, चुपचाप खा लेते थे.’’ ‘‘पर सच बताना मम्मी, क्या आप का मन नहीं करता था कि कुछ नया और अच्छा भी खा लें?’’ ‘‘तुम्हारे नानाजी क्लर्क थे तो उन की सैलरी में जो बनता था, हमें उतना ही बहुत लगता था.’’ ‘‘हां, तो मेरे पापा क्लर्क नहीं हैं न. अच्छा-भला कमाते हैं. मैं ऐसा खाना हर दूसरे दिन नहीं खाऊंगी. दोदो हाउसहैल्प हैं, कुछ अच्छा बनवा लिया करो.’’ ‘‘कितनी जुबान लड़ाती है यह जेनरेशन,’’ अनीता ने केतन को देखते हुए दुखी स्वर में कहा.   केतन ने आंखों में दुख के भाव लिए डाइनिंग टेबल पर तन कर बैठी बेटी को देखा, कहा, ‘‘घर का सादा खाना अच्छा रहता है, कुहू.’’ ‘‘तो आप खा लो. मैं ने अपने लिए एक फ्रेंकी और जूस ऑर्डर कर दिया है,’’ कुहू ने खुश होते हुए कहा, ‘‘मैं आप लोगों को हेल्दी खाना खाते हुए देखूंगी. देखो पापा, मैं आप को खुशी से कंपनी दे रही हूं. मेरा आर्डर आ जाएगा तो आप दोनों भी मु झे शांति से खाने देना. आई लाइक पीस व्हेन हैविंग माय डिनर. और बाय द वे, अपनी भजन मंडली में जाते हुए तो बोल जाती हो, ‘कुछ ऑर्डर कर लेना, मेरा तो वहां के प्रसाद से ही पेट भर जाता है.’’ अनीता का मन हुआ, अभी एक थप्पड़ कुहू को रसीद दे, पर फिर दिन-भर के थके पति को देखा और चुप-चाप खाने लगीं. जल्दी ही डोरबेल बजी, कुहू का भी ऑर्डर आ गया. ‘‘वाहवाह, क्या खुशबू है,’’ चहकती हुई कुहू ने अपना ऑर्डर किया फूड अपनी प्लेट में रखा, बाइट लेने से पहले मम्मी-पापा से कहा,  ‘‘टेस्ट करोगे?’’ दोनों ने मना कर दिया. पतली-दुबली, गुड़िया जैसी प्यारी कुहू जरा सी तो थी, जितना शोर खाने के लिए मचाया था, उतना तो खाना भी नहीं था. आधा खा कर ही वह छोड़ने लगी. उस ने कहा, ‘‘कोई टेस्ट करेगा? मेरा पेट भर गया है. बहुत टेस्टी है.’’ ‘‘लाओ इधर, बस, पहले ऑर्डर करना, फिर वेस्ट करना. पैसे की कोई वैल्यू ही नहीं.’’ केतन और अनीता ने गुस्से से पहले कुहू को घूरा, फिर फ्रैंकी खाने लगे. कुहू उन्हें ध्यान से देख रही थी. जब वे खा चुके तब कुहू बोली, ‘‘सच बताना, पापा, यह मम्मी के खाने से ज्यादा टेस्टी था न?’’ अब केतन को हंसी आ गई तो कुहू ने अपनी मम्मी को छेड़ा, ‘‘आप तो रोज पापा को नखरे दिखा दिखा कर बस 2 रोटी खाती हैं, आज तो फ्रेंकी और जूस सब पी गईं, सच बोल दो, मेरी मां, खाना तो यही बढि़या है न?’’ अनीता ने उस की बात का कोई जवाब नहीं दिया. आज वे सचमुच कुहू से नाराज थीं, ‘‘केतन, तुम्हें पता है, यह आज कॉलेज नहीं गई थी. यह दोस्तों के साथ मूवी देख कर आई.’’ ‘‘क्या?’’ केतन ने जोर से पूछा.  ‘‘हां, पापा. मुझसे मेरे फ्रेंड्स ने कहा कि जब मंगलवार को मूवी के टिकट्स हर जगह इतने सस्ते होते हैं तो वीकेंड का क्यों वेट करें, क्यों फालतू खर्च करना है. मुझे वह आइडिया बहुत अच्छा लगा तो हम ‘सैयारा’ देखने चले गए.’’ ‘‘इतनी गलत हरकत और वह भी इतनी बेकार मूवी के लिए?’’ ‘‘पापा, पहली बात तो यह है कि आप की जेनरेशन को यह बेकार लग रही है, हमें तो अच्छी लगी और दूसरी बात यह कि आप ने भी तो कभी स्कूल छोड़ कर कुछ किया ही होगा न. सच बताना, मजा आता था न?’’ ‘‘क्या बेकार की बातें करती हो, कुहू?’’ ‘‘एक तो आप लोगों के साथ प्रॉब्लम यह है कि आप लोग अपने दिन भूल गए हो. हम जो करते हैं, यह सब आप कर चुके हो. हम फोन में कुछ देखते रहते हैं, आप लोग भी तो टीवी में वह क्या बताया था आप ने, कोई चित्रहार हुआ करता था न, वह शौक से देखते थे न? संडे की मूवी का इंतजार रहता था न?  ‘‘दादू बता रहे थे कि स्कूल छोड़ कर खेलने पर आप बहुत पिटे हैं पर खेलने में मजा आता था न? सच बताना, पापा. आप लोग पता नहीं क्यों हमारे सामने इतने आदर्श बन कर खुद को प्रेजेंट करते हो? बस, फर्क यह है कि सोशल मीडिया के कारण हमारा जरा पता चल जाता है, आप लोगों का बहुत कुछ छिपा रह जाता था, है न मम्मी?’’ कुहू ने मां को आंख मारी तो अनीता ने अपने माथे पर हाथ मारा पर थोड़ा सा मुस्कुरा भी दीं. ‘‘देखो मम्मी-पापा, गलतियां तो आप ने भी की हैं. हम से भी होती होंगी पर कभी गिर भी गए तो उठ कर खड़े होना भी सीख लेंगे. अरे हां, नानी ने भी तो बताया था कि आप नाना से छिप-छिप कर फिल्मी गानों पर डांस करती थीं. ‘‘नानी तो फिर भी नाना से आप की शिकायत नहीं करती थीं. एक आप हैं, पापा के सामने मेरी शिकायतों का पुलिंदा खोल कर बैठ जाती हैं. बी लाइक नानी. चलो, अब आप की डाइनिंग टेबल साफ करवा देती हूं, एक-दो तानों से बच जाऊंगी. वैसे, सच बताना मम्मी-पापा, मेरी बातों में लॉजिक तो होता है, है न?’’ इठला कर चलती हुई कुहू बर्तन उठा कर किचन की तरफ जाने लगी. अनीता केतन को देख कर इशारा कर रही थीं, इस का कुछ नहीं हो सकता, बोल भी पड़ीं, ‘‘मैं ही अपनी एनर्जी वेस्ट करती हूं, यह और इस के लॉजिक.’’  किचन से फिर खुशनुमा सी आवाज आ रही थी, ‘‘पर मेरे साथ बातों में मजा तो आता है न, मम्मी पापा, सच बताना?’’ फिर कुहू किचन से आई और जोर जोर से हंसते हुए कहने लगी, ‘‘और हां, सावधान, हमारे बाद आ रही है जेनरेशन अल्फा और उस के बाद जेनरेशन बीटा.’’ केतन और अनीता ने पहले एक-दूसरे को देखा, फिर हंस पड़े. कुहू कह रही थी, ‘‘फिर कुछ सालों बाद आप लोग हमें अच्छा कह रहे होंगे कि बेचारी जेन जी ही ठीक थी. वैसे, सच बताना, हम से डरते तो हैं लोग, है न?’’ अब अनीता हंस रही थीं, ‘‘तुम्हें क्या क्या सच बताएं, छोड़ो.’’ अब कुहू से उन का ध्यान हट चुका था, अब दोनों के दिमाग में चकरघिन्नी काटता टॉपिक था- जनरेशन अल्फा और जनरेशन बीटा! Gen Z Special.

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