Psychological Trauma : रगड़-रगड़ कर उस के शरीर की चमड़ी उधड़ गई थी लेकिन बदबू थी कि जा ही नहीं रही थी. कैसे छुटकारा मिलेगा उसे इस बदबू से? बस, अब तो एक ही रास्ता उसे सूझ रहा था.
आनंद आने वाला था. ऐसा नहीं था कि वे दोनों पहली बार मिल रहे थे. फिर भी पता नहीं क्यों निद्रा बेचैन थी. हालांकि आनंद ने ही उसे बुलाया था लेकिन वह अभी तक आया नहीं था. वह बेचारी पार्क में बैठी कब से उस का इंतजार कर रही थी.
आनंद आया हाथों को पीछे बांधे. शायद, कुछ छुपाने की कोशिश. उस की मूरत देख उस की आंखों में चमक उठी. अधर पर हल्की मुस्कान तैरने लगी. इंतजार करवाने का जो मासूम गुस्सा था वह आनंद के आने की खुशी में पिघल गया. वह आया, उस के नजदीक बैठा. फूली हुई नाक से उसे एहसास हो गया था कि थोड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी. हर बार की तरह इस बार भी वह सामने की ओर देखने लगी थी मानो गुस्सा दिखाने का एक छोटा सा प्रयास ताकि अगली बार इंतजार न करना पड़े पर वैसा करना मुश्किल था. आंखें यहां-वहां हो रही थीं शायद आनंद का अगला कदम देखने की कोशिश थी यह. पर वह भी उस की तरह ही सामने की ओर देखने लगा. पता नहीं दोनों उस खाली आसमान में क्या ढूंढ़ रहे थे.
‘‘सौरी,’’ आनंद ने कहा.
‘‘अब तुम्हें पता है मैं माफ तो करूंगी ही. क्या करूं ज्यादा देर तक एक ही मूड में रह नहीं सकती न,’’ निद्रा ने उस की तरफ देखते हुए कहा.
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