ट्रेन की खिडक़ी से बाहर देखतेदेखते मन विभोर सा हो रहा था. पूरा जंगल पलाश के फूलों से लदालदा चंपई रंग में रंगा हुआ लग रहा था. बचपन में जब भी होली नजदीक आती थी तो सब बड़ों को कहते सुनते थे कि जंगल से पलाश के फूल लाएंगे और उन से होली के रंग तैयार करेंगे. सच में ये रंग हैं ही इतने रंगीले, देख कर मन को खूब लुभाते हैं और सारी फिजा को रंगीन कर देते हैं.
मेरे जीवन में भी यही रंग समाया है जब से सुमेर की प्रीत मन में जगी है. मन तो नहीं था उन्हें छोड क़र आने को और वे भी तो कैसे तड़प कर बोले थे- ‘मत जाओ सरोज, मैं इतने दिन तुम्हारे बिना कैसे रहूंगा.’
पर पगफेरी के लिए भी न आती तो लोग क्या कहते और मम्मीपापा का भी तो मन करता होगा बिटिया से मिलने का. ये रिश्ते भी कैसे पल में बदल जाते हैं कि जिस से कभी जानपहचान भी न थी, आज वही मन का मीत है, सब से प्यारा है, दिल का सहारा है. मुझे तो पहली ही नजर में सुमेर भा गए थे. देखनेदिखाने की रस्मों के बीच कब दिल मेरे पहलू से निकल कर उन का बन बैठा, पता ही नहीं चला. प्रीत ने अनछुए मन को ऐसा छुआ कि अब कुछ नहीं भाता था. सारे वक्त खोईखाई सी रहने लगी थी. मन उन्हीं की यादों में खोया रहता.
पिछले साल यही तो दिन थे जब होली नजदीक आ रही थी. सगाई के बंधन में बंधे हम दोनों पूरी तरह एकदूसरे की प्रीत के रंग से सराबोर थे. सुमेर रोज शाम को औफिस से लौटते ही मुझे फोन करते और लगभग एकडेढ़ घंटे तक हम दोनों एकदूसरे की बातों में खो जाते. उस रोज शाम होते ही मुझे उन की याद सताने लगी पर उन का फोन नहीं आया और जब मैं ने फोन किया तो कवरेज क्षेत्र से बाहर बता रहा था. मन की बेचैनी और अधीरता बढ़ती जा रही थी और कुछ आशंकाएं भी होने लगीं. जो हमें सब से प्यारा होता है उस के बारे में अकसर हम डरने लगते हैं, अपनी जान से ज्यादा उस की फिक्र करने लगते हैं. मन घबरा कर उलटासीधा सोच रहा था.
‘न जाने क्या हुआ होगा, फोन क्यों नहीं लग रहा, कहीं कुछ…नहींनहीं, ऐसा नहीं हो सकता. मैं ने अपने इस विचार को झटक दिया और फिर से कोशिश की पर अब भी उन का फोन नहीं लगा. जब बेचैनीहद से ज्यादा बढ़ गई तो मैं ने उस के परिवार की सब से करीबी दोस्त यानी उस की भाभी और मेरी प्यारी जेठानी को फोन करना उचित जाना क्योंकि वही हमारी हमउम्र और राजदार थीं. उन के बारे में सुमेर अकसर बताया करता था. सो, मैं ने उन्हें फोन किया.
मेरी आवाज सुनकर ही वे मेरी परेशानी भांप गईं और हंसती हुई बोलीं, ‘क्या हुआ देवरानी जी, आज देवरजी से बात नहीं हुई क्या जो इतनी बेचैन हो?’
मैं ने सकपकाते हुए कहा, ‘भाभी, सुमेर का फोन नहीं लग रहा, वे ठीक तो हैं न?’
‘वह बिलकुल ठीक हैं, सरोज. असल में सुमेर अपने दोस्तों के साथ पार्टी में गया है. उस ने मुझ से कहा था तुम्हें बता दूं पर मैं भूल गई, सौरी.’
इतना सुनते ही मेरी आंखों से गंगाजमुना बहने लगी. बहुत गुस्सा आ रहा था सुमेर पर. मेरी भावनाओं की कोई कद्र ही नहीं उसे. जब अभी यह हाल है, आगे क्या होगा. दिल के भीतर कुछ टूट कर बिखरता सा लगा. उस शाम मैं ने खुद को कमरे में बंद कर लिया था. रोरो कर सूजी हुई आंखें ले कर मम्मी के पास गई तो मम्मी हैरान रह गईं.
‘क्या हुआ, तेरी आंखें क्यों सूजी हुई हैं, रोर्ई है क्या?’ मम्मी ने बड़े प्यार से मुझे अपने पास बैठाया और सिर पर हाथ फेरती हुई बोलीं, ‘क्या बात है, हमेशा खिलखिलाती रहने वाली हमारी गुडिय़ा रानी आज इतनी उदास कैसे है?’
‘मम्मी, आप यह सगाई तोड़ दो, मैं सुमेर से शादी नहीं करूंगी,’ मैं ने आंसू पोंछते हुए कहा.
‘सगाई तोड़ दो? क्या कह रही है तू, होश में तो है न?’
‘हां मां, मैं पूरे होश में हूं. मैं उस से शादी नहीं करूंगी. उसे मेरी भावनाओं की कद्र नहीं. आज संडे था, मैं ने सारे दिन उस के फोन का इंतजार किया और शाम को खुद फोन किया तो पता चला वह अपने दोस्तों के साथ पार्टी में गया है. यहां मैं इंतजार कर रही हूं और वह है कि… उसे अभी से मेरी परवा नहीं, तो शादी के बाद क्या होगा, बोलो मम्मी?’ यह कह कर मैं ने अपना सिर मम्मी की गोद में रख दिया.
मम्मी मेरे बालों को हौलेहौले सहलाने लगीं, बोलीं, ‘सुन बिटिया, ये रिश्ते बहुत नाजुक होते हैं, बिलकुल रेशम की डोरी की तरह, जरा से खिंचाव से टूट जाते हैं. हम स्त्रियां धैर्य और सहनशीलता की पर्याय मानी जाती हैं. क्या हुआ अगर आज सुमेर दोस्तों के साथ पार्टी में चला गया, रोज तो वह तुझ से बात करता है न. वह तुझ से प्यार करता है पर उस की भी अपनी जिंदगी है. और फिर, अभी शादी नहीं हुई, तो वह आजाद भी है. तू देखना, शादी के बाद वह कैसे अपनी जिम्मेदारी निभाता है.’
मां ने मुझे बहुत समझाया. पर मैं अपनी जिद पर अड़ी रही. किसी के समझाने का मुझ पर असर नहीं हो रहा था. सुमेर पार्टी से देररात घर आया और आते ही सुमन भाभी ने उन्हें मेरे फोन के बारे में बताया. पर उसे मेरी नाराजगी का अंदाजा नहीं था, इसलिए उस ने इस बात को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया और सो गया. फिर सुबह उठते ही औफिस चला गया. औफिस की व्यस्तता में उसे ध्यान नहीं आया. शाम को औफिस से लौटने के बाद उस ने मुझे फोन लगाया. पर मैं ने नहीं उठाया.
उधर फोन बज रहा था और इधर मेरी आंखें बरस रही थीं. जब बहुत देर तक फोन बजता रहा तो मैं ने गुस्से में फोन स्विचऔफ कर दिया. सुबह देखा, तो व्हाट्सऐप पर उस के मैसेज थे.
‘हाय सरोज, कैसी हो? भाभी ने तुम्हारे फोन के बारे में बताया था पर पार्टी से आने में देर हो गई थी, इसलिए सो गया. औफिस में बिजी था, इसलिए शाम को तुम्हें फोन किया. पर तुम ने फोन नहीं उठाया.’
‘क्या हुआ? नाराज हो मुझ से?’
मैं ने मैसेज पढ़ कर फोन पटक दिया. शाम को मम्मी के फोन पर उस का फोन आया तो मम्मी ने अपना फोन मुझे पकड़ा दिया. वह हलोहलो कर रहा था पर मैं ने बात नहीं की. वह कह रहा था- ‘सरोज कैसी हो? मैं जानता हूं तुम फोन पर हो. कुछ तो बोलो, तुम्हारी मीठी आवाज सुने हुए पूरे 2 दिन हो गए. इतने से कुसूर की इतनी बड़ी सजा क्यों दे रही हो मुझे? मुझ से बात करो, प्लीज.’
पर मैं ने बिना कुछ बोले ही मम्मी का फोन उन्हें लौटा दिया और अपनी सहेली के घर चली गई. उस के बाद कुछ दिनों तक उस का फोन नहीं आया और मैं ने भी नहीं किया. मां झुंझला कर कहती रहीं, ‘पता नहीं क्या जिद पकड़ी है इस लडक़ी ने. अरे, इतना अच्छा लडक़ा है, मना रहा था. लेकिन यह मानी नहीं. बस, अकड़ती जा रही है.’
‘मम्मी, मैं आप की बेटी हूं और आप हो कि उसी की तरफदारी करती रहती हो?’ मैं तुनक कर कहा तो मम्मी डांटने लगीं.
‘जो सही है उसी का पक्ष ले रही हूं मैं. इतना भी क्या अकड़ ले कर बैठी है. कल तेरी जेठानी का फोन आया था, कह रही थी, सुमेर आजकल बहुत उदास रहने लगा है.’
यह सुन कर अच्छा महसूस हुआ कि मेरी नाराजगी का असर हो रहा है. पर फिर भी अकड़ी रही.
होली वाले दिन सुबह आंख खुली और बिस्तर से उतरने के लिए पैर नीचे रखे, तो हैरान रह गई. पलाश के ढेर सारे फूल जमीन पर बिछे हुए थे. मैं उन पर पैर रख कर चलने लगी तो देखा ये फूलों की बिछावन गार्डन तक जा रही थी और गार्डन में लगे झूले तक थी और झूला भी फूलों से सजा हुआ था. मैं आश्चर्य से भरी आंखें मलती फूलों पर चलतीचलती झूले पर जा कर बैठी ही थी कि किसी ने पीछे से आ कर मेरे गालों पर गुलाल मल दिया. पीछे मुड़ कर देखा, सुमेर और उस के दोस्त खड़े थे और मुझे देख कर मुसकरा रहे थे.
एक दोस्त बोला, ‘भाभीजी, सुना है आप हम से और हमारे दोस्त से बहुत नाराज हैं?’
मैं ने सकपकाते हुए कहा, ‘नहीं तो.’ और मैं मुसकरा दी.
‘अब नानुकुर मत कीजिए, भाभी. आप को पता भी है, हमारे दोस्त की क्या हालत हो गई है? बेचारा देवदास बन कर रह गया है, देखिए,’ दूसरा दोस्त बोला.
मैं ने सुमेर की ओर देखा तो वह नाटक में मुंह लटका कर खड़ा था. यह देख कर मुझे जोर से हंसी आ गई.
तीसरा दोस्त बोला, ‘अरे भाभीजी, आप को मनाने के लिए हम सब ने मिल कर कितनी मेहनत की है, पता भी है आप को? कल जंगल जा कर जितने भी पलाश के फूल मिले, तोड़ लाए और आज जल्दी उठ कर आप के लिए फूलों की डगर बनाई. अब तो मान जाइए.’
मैं जरा सी मुसकराई तो जैसे उन सब को ग्रीन सिग्नल मिल गया और सब ने मिल कर मुझे रंग डाला. मैं ने भी अपनी पिचकारी से उन सब को खूब भिगोया. हमारे प्रेम की शुरुआत की होली सच में यादगार बन गई.