Struggle With Cancer : मौत उस के सामने खड़ी थी लेकिन कितना कुछ करना था अभी अंशुमान को. शरीर का दर्द उसे हरा रहा था लेकिन वह हार कैसे मान सकता था. उस का हौसला ही तो उस के परिवार का हौसला था.

सूरज की हलकी किरणें खिड़की से छन कर कमरे में आ रही थीं. रोशनी में धूल के कण तैरते हुए दिख रहे थे. कमरे के एक कोने में एक बिस्तर पड़ा था, जिस पर एक दुबला-पतला व्यक्ति लेटा हुआ था, नाम था अंशुमान. कभी जिंदगी से भरपूर रहने वाला यह शख्स अब मौत से जंग लड़ रहा था.

अंशुमान को जब पहली बार डाक्टर ने बताया कि उसे कैंसर हो गया है तो वह हंस पड़ा था. उसे लगा कि यह कोई मजाक है लेकिन जब रिपोर्ट्स उस के सामने रखी गईं तो उस की हंसी कहीं खो गई.

‘क्या मेरी जिंदगी का सफर अब यहीं खत्म हो जाएगा?’ उस ने खुद से पूछा.

पत्नी सुरेखा उस के पास बैठी थी. उस की आंखों में आंसू थे, लेकिन उस ने उन्हें बहने नहीं दिया. वह जानती थी कि अब उसे मजबूत बनना है, अंशुमान के लिए.

घर में अब वही पुरानी रौनक नहीं थी. बेटे और बेटी, जो हमेशा घर में चहकते रहते थे, अब चुपचाप रहते.

डॉक्टरों ने बताया था कि बीमारी अंतिम चरण में पहुंच चुकी है लेकिन अंशुमान ने हार मानने से इनकार कर दिया. उस ने सोचा, ‘अगर मुझे कुछ समय ही जीना है तो क्यों न इसे खुशी से जिया जाए?’

लेकिन यह केवल बीमारी की लड़ाई नहीं थी. कैंसर के साथ-साथ उसे अपने ऑफिस और परिवार की आर्थिक परेशानियों का भी सामना करना पड़ रहा था. उस की नौकरी अब खतरे में थी, क्योंकि इलाज के चलते वह महीनों से काम पर नहीं जा पा रहा था. बैंक बैलेंस तेजी से खत्म हो रहा था और घर के खर्चे बढ़ते जा रहे थे. उसे चिंता थी कि अगर वह चला गया तो सुरेखा और बच्चों का क्या होगा? उन की पढ़ाई, घर का किराया, रोजमर्रा की जरूरतें आदि सब कुछ अधर में लटक जाएगा.

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