Acid Attack : भारत में 2013 से एसिड के खुले बाजार में बिक्री पर रोक है, इस के बावजूद यह खुलेआम बिकता है. एसिड अटैक होने पर अगर जान बच जाए तो भी जिंदगी नरक बन जाती है.
जीवन में कभी न कभी हर किसी को रिजैक्शन का सामना करना पड़ता है. फिर चाहे बात शिक्षा की हो, नौकरी की या रिश्तों की. लेकिन कुछ लोग रिजैक्शन को बरदाश्त नहीं कर पाते. इसी वजह से बहुत से लोग तनावग्रस्त हो जाते हैं. कुछ गलत कदम उठा लेते हैं. बात यदि रिश्तों में मिलने वाले रिजैक्शन की करें तो हम खुद की जिंदगी खत्म करने तक की सोच लेते हैं. लेकिन कुछ लोगों को इस बात की तकलीफ होती है कि आखिर उन में ऐसी क्या कमी है, जिस की वजह से उन्हें रिजैक्शन का सामना करना पड़ा.
वह व्यक्ति बदला लेने की सोचने लगता है. ऐसा ही एक मामला वैलेंटाइन डे पर सामने आया. जहां सिरफिरे ने लड़की से रिजैक्शन मिलने पर चाकू से वार कर तेजाब फेंक दिया. लेकिन सवाल यहां यह खबर देने का नहीं है, सवाल है आखिर कब तक लड़कियां इन दरिंदों के हाथों शिकार होती रहेंगी. इन सिरफिरों के बदला लेने की आग जाने कितने मासूमों के चहरे ही नहीं बल्कि उन के मनोबल, आत्मविश्वास, सपने, उम्मीदों सब को अपने बदले की संतुष्टि पाने के लिए जलाते रहेंगे.
क्या हमेशा लड़कियां इन सिरफिरों के हत्थे एसिड अटैक की शिकार होती रहेंगी. जिस तरह से दवा के लिए कैमिस्ट को डाक्टर का प्रिस्क्रिप्शन दिखाना अनिवार्य होता है, उस तरह तेजाब के लिए क्यों नहीं? जबकि, यह तो जहर की दवा से भी बदतर मौत देता है. जहर खा कर मनुष्य कुछ देर तड़पता है और फिर मृत्युलोक सिधार जाता है लेकिन एसिड अटैक से तड़पती ये लड़कियां रोज तिलतिल मरती हैं.
वे हर रोज अपने जिंदा होने का अफसोस मनाती हैं. माना कि कुछ लड़कियों ने अपना जज्बा न खो कर मिसाल गढ़ी है लेकिन सोचें तो उन को कितनी तकलीफों से गुजरना पड़ता है. हंसतीखेलती महिला को यह घाव समाज में दोयम दर्जे का नागरिक बना देता है. जहां वह जीवन को खूबसूरत बनाने के सपने संजोती हैं, उस की जगह उसे एसिड सर्वाइवर का टैग मिलता है. जब भी वह खुद को आईने में देखती होगी तो वह दिल दहला देने वाला मंजर आंखों से दिखना बंद होने पर भी उसे साफ नजर आता होगा.
कैसे ये सिरफिरे आशिक खुलेआम इन वारदातों को अंजाम दे पाते हैं?
भारत समेत दक्षिण एशियाई देशों में यह बेहद गंभीर समस्या है. स्वयंसेवी संस्था एसिड सर्वाइवल ट्रस्ट इंटरनैशनल (एएसटीआई) के अनुसार, दुनिया में सब से ज्यादा एसिड हमले ब्रिटेन में होते हैं. वहां इस का ज्यादा इस्तेमाल गैंगवार में होता है. ब्रिटेन के बाद भारत का नंबर आता है. यहां हर साल एक हजार से ज्यादा मामले सामने आते हैं.
नैशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार एसिड अटैक के साल 2019 में 150 मामले, साल 2020 में 105, साल 2021 में 102 मामले आए. ऐसे मामलों में पश्चिम बंगाल पहले नंबर पर, दूसरे पर उत्तर प्रदेश और तीसरे पर दिल्ली रहा.
2021 के मामलों पर गौर करें तो देश में 107 पीड़ितों के साथ एसिड हमले की 102 घटनाएं और एसिड हमले के प्रयास के 48 मामले दर्ज किए गए थे. जहां चार्जशीट दर्ज करने की दर 89 फीसदी रही जबकि दोषसिद्धि की दर 20 फीसदी ही दर्ज की गई. ये बेहद चिंताजनक आंकड़े हैं.
इस में सजा का प्रावधान देखें तो एसिड अटैक के मामले आईपीसी की धारा 326 ए के तहत दर्ज किए जाते हैं, जबकि एसिड अटैक के प्रयास के मामले आईपीसी की धारा 326 बी के तहत दर्ज किए जाते हैं. जिस में न्यूनतम 10 वर्ष की सजा से ले कर आजीवन कारावास के साथ आर्थिक दंड का प्रावधान है.
मनोविज्ञान के अनुसार देखें तो ऐसे हमले अतिआवेशभरे व्यवहार के कारण होते हैं, जिन्हें इंपल्सिव डिसऔर्डर कहा जाता है. यह व्यवहार एकदो दिन की गणना नहीं है बल्कि बचपन में ही इस की नींव रखी जा चुकी होती है. जब मांबाप बच्चे को न सुनने का आदी ही नहीं रहने देते तो उस के व्यक्तित्व में इनकार सुनने जैसे शब्दों कि जगह होती ही नहीं. जिस कारण यदि कोई उस का कहा न माने तो आवेग में आ कर वह कुछ भी करगुजरने को तैयार हो जाता है.
देखा जाए तो आने वाले समय में ऐसे बच्चों की तादाद में और भी इजाफा होगा क्योंकि आजकल एकल परिवार में रहने वाले बच्चे ऐसी परवरिश पाते हैं कि जिन्हें सिर्फ प्यार, समय से पहले मिलने वाली सुविधा की लत सी लग गई है. इसलिए जरूरी है कि अपना कल अच्छा बनाना है तो अपने आज में न कहने की आदत डालें.
आज जरूरत है कि बच्चों के प्रशिक्षण के साथ नए कानून बनाए जाएं जहां सजा का प्रावधान ऐसा हो कि तेजाब तो दूर वे पानी फेंकने तक की हिम्मत न जुटा पाएं. चोटिल काया तो सब को नजर आ जाती है लेकिन जहन पर लगे घावों की पीड़ा एक सर्वाइवर ही जानती है, जिस की जिंदगी बेहद बोझिल और दर्दनाक हो कर रह जाती है.
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तेजाब हमलों का शिकार महिलाएं ही नहीं, अब पुरुष भी बन रहे निशाना
जब भी हम एसिड अटैक की बात करते हैं तो हमारे मन में महिलाओं की तसवीर आती है. यह माना जाता है कि तेजाब हमले सिर्फ महिलाओं पर होते हैं लेकिन अब तो पुरुष भी इस घातक हमले का शिकार बन रहे हैं. अपराधी अपनी खुन्नस निकालने के लिए, आवेग में आ कर कुछ भी करगुजर सकता है, किसी भी व्यक्ति को निशाना बना सकता है, चाहे वह महिला हो या पुरुष.
बीते कई सालों से पुरुषों पर एसिड अटैक की वारदातें बढ़ती जा रही हैं. आएदिन सुनने में आता है कि प्रेमिका ने प्रेमी पर तेजाब फेंका, ससुर ने दामाद पर तेजाब फेंका, इंजीनियर युवती ने सबक सिखाने के लिए सहकर्मी इंजीनियर युवक पर तेजाब हमला करवाया आदिआदि.
लड़कियों के तेजाब फेंकने की वजहें भी लड़कों जैसी ही होती हैं या फिर अलग होती हैं. प्यार रिजैक्शन, पुरानी रंजिश, बदला और बरबाद करने देने के जनून में लड़कियां तेजाब फेंकती हैं. एसिड अटैक की घटनाएं इसलिए भी ज्यादा होती हैं क्योंकि गन या अन्य हथियार की तुलना में यह आसानी से मिल जाता है.
प्रधानमंत्री नैशनल रिलीफ फंड से महिला एसिड अटैक पीड़ितों को 1 लाख रुपए की फाइनैंशियल मदद की जाती है. पुरुष पीड़ितों के मामले में चोटों की गंभीरता और अन्य मानदंडों के आधार पर 1 लाख रुपए तक की वित्तीय सहायता दी जाती है.
वहीं, पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह द्वारा एसिड अटैक पीड़ितों के लिए 8,000 रुपए मंथली पैंशन शुरू की गई थी. अब 7 वर्षों बाद वहां आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार ने पैंशन को बढ़ा कर 10,000 रुपए प्रतिमाह करने का प्रस्ताव किया है.
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