Central Government : केंद्र सरकार के आर्थिक सर्वे ने बहुत सी मतलब की और बहुत सी बेमतलब की बातों में स्वास्थ्य सुधारने का दावा करने वाले हैल्थ फूड्स की बढ़ती बिक्री पर चिंता जाहिर की है और उन्हें कीमती कर के उन की खपत कम करने की सिफारिश की है. यह संभव है कि विज्ञापनों के बल पर इन हैल्थ फूड्स में बहुत सी चीनी, प्रिजर्वेटिव, अनावश्यक मैटल व कैमिकल डाले जा रहे हों पर उन्हें टैक्स लगा कर महंगा करना गलत होगा.
अगर ये स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं तो इन्हें प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिए और इन को बनाने वालों से पूछताछ की जानी चाहिए. वहीं यह भी देखना चाहिए कि आखिर लोग क्यों कमजोरी महसूस करते हैं और क्यों एडवरटाइज किए गए हैल्थफूड लेते हैं? क्या इसलिए कि उन्हें इन का पर्याय नहीं मालूम?
हमारे देश में स्वास्थ्य के जोखिम तो गंदी हवा, गंदा पानी, गंदगीभरी सड़कें, गंदगी में लिपटा स्ट्रीट फूड, गंदे बरतनों में बनाया गया खाना है. हर शहर की हर सड़क पर 10-20 खोमचे खाना बेचते नजर आ जाएंगे और वह खाना कैसी गंदगी में बनता है और कैसे परोसा जाता है, यह साफ दिखता है.
हमारे यहां दूध देने वाली गाय-भैंसों को कैसे रखा जाता है, इस के लिए सर्वे की जरूरत नहीं है. मीट प्रोडक्ट्स को किस तरह हैंडल किया जाता है, यह साफ दिखता है. गंदे पानी से सब्जियां धोई जाती हैं, यह भी दिखता है और कीटाणु इन सब में अंदर तक चले जाते हैं, यह कोई बताने की बात नहीं.
हैल्थ फूड्स को बलि का बकरा सिर्फ टैक्स इकट्ठा करने के लिए बनाया जा रहा है. सरकार तो शराब, भांग पर भी टैक्स लेने से परहेज नहीं करती और देशभर की सरकारें इन्हें पिलाखिला कर खरबों रुपए कमा रही हैं.
हैल्थ फूड्स की बिक्री 13.7 फीसदी सालाना बढ़ रही है और घरों में 10-11 फीसदी का खर्च हैल्थ फूड्स पर हो रहा है. ये आंकड़े सिर्फ टैक्स जमा करने की बुरी नीयत से दिए जा रहे हैं.
अगर सरकार जागरूक होती तो दिल्ली चुनावों में यमुना के पानी को ले कर महासंग्राम न छिड़ता कि वह प्रदूषित ही नहीं, विषैला भी है. हमारी सारी नदियां गंदे पानी से भरी हैं और नलों में आने वाला पानी पीने लायक न हो, ऐसी साजिश सरकार ने कर रखी है ताकि बौटल वाले पानी का व्यापार जम कर हो. मीठे ड्रिंक भी इसीलिए बिकते हैं कि अच्छा पानी म्युनिसिपल कमेटियां कहीं भी उपलब्ध करा ही नहीं सकतीं.
हैल्थ फूड काम के हैं या नहीं, यह बहस अलग है. असली बात तो यह है कि इन पर टैक्स की बात क्यों की जाए? सरकार सेहत के नाम पर अपनी जेब क्यों भरे?