Indian Law : दहेज कानून का दुरुपयोग तो खैर पत्नियां करती हैं, जिस के कारण उन के पति और पति के नातेदार सालोंसाल जेल की सलाखों में कैद रहते हैं. मगर पीएमएलए कानून का दुरुपयोग खासकर सत्ताधारी पार्टी करती है ताकि अपने विरोधियों को अधिक से अधिक समय तक जेल में रख सके.

दहेज उत्पीड़न के मामलों में महिलाओं द्वारा बिना सबूत के ससुराल वालों को फंसाने की बढ़ती प्रवृत्ति पर देश के कई हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट चिंता व्यक्त करते आए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने तो एक दशक पहले यहां तक कह दिया था कि 498ए की धाराओं में ससुरालियों के खिलाफ दर्ज कराये जा रहे 99 फीसदी मामले फर्जी होते हैं. पिछले दिनों पुणे में पत्नियों द्वारा दहेज प्रताड़ना और घरेलू हिंसा के फर्जी मामलों में फंसाए गए 75 हजार पतियों ने जुलूस निकाल कर अपनी वेदना सामने लाने की कोशिश की.

दहेज कानून का दुरुपयोग तो खैर पत्नियां करती हैं, जिस के कारण उन के पति और पति के नातेदार सालों साल जेल की सलाखों में कैद रहते हैं. केस लड़तेलड़ते उन की घर, व्यवसाय, नौकरी, धन, इज्जत सब नष्ट हो जाता है. सुप्रीम कोर्ट के बार बार कहने के बाद बड़ी मुश्किल से इस कानून के दुरुपयोग में कुछ हद तक कमी आई है. अब अगर कोई महिला पति और ससुरालियों पर दहेज उत्पीड़न या घरेलू हिंसा का आरोप लगाती है तो 498ए की धाराओं में केस दर्ज करने से पहले डिप्टी एसपी रैंक के अधिकारी को इसकी पूरी पड़ताल करनी पड़ती है कि आरोपों में कुछ सच्चाई और सुबूत हैं अथवा नहीं. मगर अब सुप्रीम कोर्ट एक और कानून के दुरुपयोग को ले कर परेशान है. यह कानून है मनी लौन्ड्रिंग का, जिस में सत्ताधारी पार्टी प्रवर्तन निदेशालय जैसी केंद्रीय जांच एजेंसी के माध्यम से अपने राजनीतिक विरोधियों को डराने और उन्हें जेल में डालने के लिए इस कानून का जबरदस्त दुरुपयोग करती है.

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने मनी लौन्ड्रिंग के एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि पीएमएलए (धन शोधन निवारण अधिनियम) का बारबार लोगों को जेल में रखने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. प्रवर्तन निदेशालय की खिंचाई करते हुए पीठ ने कहा कि इस कानून का बिलकुल ‘दहेज कानून की तरह दुरुपयोग हो रहा है.’

सुप्रीम कोर्ट में अभय एस ओका और औगस्टीन जौर्ज मसीह की दो जजों की पीठ ने छत्तीसगढ़ के पूर्व आबकारी अधिकारी अरुण पति त्रिपाठी को मनी लौन्ड्रिंग के मामले में जमानत देते हुए कहा कि पीएमएलए के प्रावधानों का इस्तेमाल किसी को हमेशा के लिए जेल में रखने के लिए नहीं किया जा सकता है.

उल्लेखनीय है कि त्रिपाठी पर छत्तीसगढ़ शराब घोटाला मामले में धन शोधन का आरोप लगाया गया था और उन्हें 2023 में गिरफ्तार किया गया था. ईडी जांच के नाम पर लगातार उन की जमानत का विरोध कर रहा था मगर केस में कोई प्रगति नहीं थी. हालांकि अब जबकि सुप्रीम कोर्ट ने त्रिपाठी को जमानत दे दी है फिर भी उन्हें रिहा नहीं किया जा सकेगा क्योंकि उन्हें आर्थिक अपराध शाखा द्वारा दर्ज एक अन्य मामले का सामना भी करना पड़ रहा है.

कानून के दुरुपयोग को ले कर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय एजेंसियों की आलोचना की है और राजनीतिक नेताओं समेत आरोपियों को बिना सबूत के जेल में रखने के लिए उन की खिंचाई की है. सुप्रीम कोर्ट बारबार इस पर जोर देता रहा है कि ‘बेल नियम है, जेल अपवाद’. यह हाईकोर्ट से ले कर निचली अदालतों तक को यही संदेश देता रहा है कि बेवजह लम्बे समय तक आरोपी को जेल में रखने का कोई औचित्य नहीं है. यदि बाहर रह कर वह सबूतों और गवाहों से छेड़छाड़ नहीं करता तो उसे नियमानुसार जमानत दी जानी चाहिए. गौरतलब है कि भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ भी बारबार जमानत की बात पर जोर देते थे.

न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने आबकारी नीति मामले में आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह को भी जमानत देते हुए कहा था कि “कुछ भी बरामद नहीं हुआ है… ‘साउथ ग्रुप’ को शराब लाइसेंस आवंटित करने के लिए आप द्वारा कथित तौर पर रिश्वत के रूप में प्राप्त धन का कोई निशान नहीं है.”

गौरतलब है कि धन शोधन निवारण अधिनियम या पीएमएलए गैरजमानती है, क्योंकि अन्य कानूनों के विपरीत, इस के तहत आरोपी को यह साबित करना होता है कि वह दोषी नहीं है. किसी अभियुक्त को जमानत तभी मिलती है जब अदालत इस बात से संतुष्ट हो जाती है कि यह मानने के लिए उचित आधार मौजूद हैं कि वह अपराध का दोषी नहीं है, तथा जमानत पर रहते हुए उस के द्वारा कोई और अपराध करने की संभावना नहीं है.

अक्तूबर 2024 में अनिल टुटेजा की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय को फटकार लगाई थी. कोर्ट ने जांच एजेंसी से कहा था कि अनुच्छेद 21 देश में सभी के लिए है और मनी लौन्ड्रिंग के मामलों में जिस तरह से लोगों को परेशान किया जा रहा है, वो ठीक नहीं है. किसी भी आरोपी के साथ उस के मौलिक अधिकारों का हनन नहीं होना चाहिए. जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस औगस्टीन जौर्ज मसीह की पीठ ने पूर्व आईएएस अधिकारी अनिल टुटेजा को जल्दबाजी में समन और गिरफ्तार करने पर नाराजगी जताई थी.

कोर्ट ने कहा था कि अनिल टुटेजा को जब ईडी ने बुलाया था तब वो भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) के दफ्तर में पूछताछ के लिए मौजूद थे. ईडी ने उन्हें तुरंत पेश होने को कहा. जब टुटेजा तय समय पर हाजिर नहीं हुए तो ईडी ने कुछ घंटों बाद दूसरा समन भेज दिया. जब व्यक्ति पूछताछ के लिए एक एजेंसी के पास है तो वह तुरंत ईडी की समक्ष कैसे पहुंच सकता है? जाहिर है ईडी की मंशा उसे गिरफ्तार करने की ही थी.

पिछले साल आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की जमानत के मामले में सुनवाई करते हुए भी सुप्रीम कोर्ट की एक अन्य बेंच ने कानून के दुरुपयोग पर अहम टिप्पणी की थी. जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा था कि हम ने गिरफ्तारी की ज़रूरत और अनिवार्यता का अतिरिक्त आधार उठाया है. जस्टिस खन्ना ने कहा था, ‘गिरफ्तारी की नीति क्या है, इस का आधार क्या है, हम ने उल्लेख किया है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘गिरफ़्तारी, आखिरकार, मनमाने ढंग से और अधिकारियों की मर्जी और मिजाज पर नहीं की जा सकती है. इसे कानून द्वारा निर्धारित मापदंडों को पूरा करते हुए वैध ‘विश्वास करने के कारणों’ के आधार पर किया जाना चाहिए.’

पीएमएलए की धारा 19, जो गिरफ्तारी से संबंधित है, कहती है कि ईडी अधिकारी किसी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है, यदि उस के पास मौजूद सामग्री के आधार पर उस के पास यह विश्वास करने का कारण है कि कोई व्यक्ति इस अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध का दोषी है. न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि चूंकि पीएमएलए के तहत जमानत के लिए मानदंड सख़्त हैं, इसलिए गिरफ्तारी का अधिकार भी सख़्त और नियंत्रित होना चाहिए.

अदालत ने साफ कहा कि ईडी को यदि पीएमएलए के तहत गिरफ्तारी करनी हो तो उसे विशेष अदालत से संपर्क करना होगा और उसको बताना होगा कि वह आरोपी को हिरासत में लेना चाहती है. यानी ईडी को गिरफ्तारी से पहले अदालत की मंजूरी लेनी होगी.

पिछले साल अगस्त में दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को भी जमानत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर आरोपी ने लंबे समय तक जेल में सजा काटी है तो जमानत देने की सख्त ‘दोहरी शर्तों’ में ढील दी जा सकती है. त्वरित सुनवाई के उन के अधिकार पर विचार करते हुए अदालत ने कहा था कि भविष्य में मुकदमे के पूरा होने की दूरदूर तक कोई संभावना नहीं है, इसलिए जमानत दी जाती है.

दरअसल सीबीआई हो या ईडी, दोनों ही केंद्रीय एजेंसियां केंद्र सरकार के हाथ का खिलौना हैं. सीबीआई को तो सुप्रीम कोर्ट सरकार का तोता तक कह चुका है. इन दोनों ही एजेंसियों का इस्तेमाल केंद्र सरकार चुनावों के वक्त सब से ज्यादा करती है और विरोधी पार्टियों के नेताओं को किसी न किसी केस में उठा कर जेल भिजवा देती है ताकि वह अपनी पार्टी के चुनाव प्रचार से दूर हो जाए, उस की छवि वोटरों के आगे बिगड़ जाए और उस की पार्टी का मनोबल टूट जाए.

याद होगा उत्तर प्रदेश में पिछले विधानसभा चुनाव के वक़्त कैसे कांग्रेस नेता प्रियंका वाड्रा गांधी के पति रोबर्ट वाड्रा को ईडी अधिकारी पूछताछ के लिए बार बार तलब कर रहे थे. प्रियंका वाड्रा गांधी सुबह पति को ईडी दफ्तर छोड़ने के बाद चुनाव प्रचार के लिए निकलती थीं. यह नजारा अनेकों बार देखा गया. प्रियंका को चुनाव प्रचार से दूर रखने के लिए सारा ड्रामा चल रहा था. मगर प्रियंका ने भी हार नहीं मानी. चुनाव खत्म होते ही रोबर्ट वाड्रा को ईडी द्वारा बुलाना भी बंद हो गया.

ऐसा ही कुछ दिल्ली की पिछली आम आदमी पार्टी की सरकार को हटाने और मिटाने की साजिश के तहत बीते कई सालों से हो रहा है. ईडी और सीबीआई ने आम आदमी पार्टी के सभी पहली पंक्ति के नेताओं को लम्बेलम्बे समय तक जेल की सलाखों में रखने में कामयाबी पाई और अंततः भाजपा ने आम आदमी पार्टी को सत्ता से हटाने और उस के नेताओं का मनोबल तोड़ने में सफलता हासिल कर ही ली.

सर्वोच्च न्यायालय वर्तमान में कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है, जिन में आरोप लगाया गया है कि धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (पीएमएलए) का राजनीतिक लाभ के लिए दुरुपयोग किया जा रहा है.

पीएमएलए क्या है

पीएमएलए मनी लौन्ड्रिंग को रोकने और उससे प्राप्त संपत्ति से निपटने के लिए कानून है. मनी लौन्ड्रिंग का मतलब है हथियारों की तस्करी और ड्रग्स के व्यापार जैसे गैरकानूनी तरीकों से प्राप्त धन को इस तरह से परिवर्तित करना कि ऐसा लगे कि यह वैध स्रोतों से प्राप्त किया गया है. रियल एस्टेट में निवेश, विदेशी बैंकों में लेन-देन आदि मनी लौन्ड्रिंग के कुछ तरीके हैं.

पीएमएलए के तहत ‘मनी लौन्ड्रिंग’ का आरोप किस पर लगाया जा सकता है?

कोई भी व्यक्ति जो मनी लौन्ड्रिंग की प्रक्रिया में सीधे तौर पर शामिल है या किसी भी चरण में सहायता करता है, वह अधिनियम के तहत उत्तरदाई है. वह व्यक्ति संपत्ति को छिपाने, रखने, खरीदने, इस्तेमाल करने, पेश करने या दावा करने में शामिल हो सकता है.

पीएमएलए किन अपराधों को कवर करता है?

कई अपराधों को पीएमएलए के दायरे में लाया गया है. पीएमएलए की अनुसूची में उन अपराधों की सूची दी गई है जो मनी लौन्ड्रिंग की प्रक्रिया में हो सकते हैं. इस में कर चोरी, आईपीसी अपराध जैसे आपराधिक साजिश, भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ना या छेड़ने का प्रयास करना आदि शामिल हैं, साथ ही नारकोटिक ड्रग्स और साइकोट्रोपिक पदार्थ अधिनियम 1985, विस्फोटक पदार्थ अधिनियम 1908, विस्फोटक पदार्थ अधिनियम 1908 आदि जैसे विशिष्ट अधिनियमों के तहत अपराध भी शामिल हैं. हालांकि, पीएमएलए के तहत अपराध माने जाने के लिए, कथित अपराध के साथ ‘पूर्वानुमानित अपराध’ भी होना चाहिए.

‘पूर्ववर्ती अपराध’ वह अपराध है जो किसी बड़े अपराध का हिस्सा बनता है. कुछ उदाहरणों में नशीली दवाओं की तस्करी, मानव तस्करी, कर चोरी, भ्रष्टाचार, जालसाजी, हत्या, तस्करी, अवैध वन्यजीव तस्करी आदि शामिल हैं. ऐसी अवैध गतिविधियों से प्राप्त ‘मौद्रिक आय’ का उपयोग संपत्ति खरीदने या निवेश करने के लिए किया जा सकता है. इस तरह से अर्जित संपत्ति या निवेश को ‘वैध या बेदाग संपत्ति’ के रूप में पेश किया जा सकता है. यह मनी लौन्ड्रिंग है.

पीएमएलए अपराधों की जांच के लिए कौन से प्राधिकारी जिम्मेदार है?

वित्तीय खुफिया इकाई केंद्रीय राष्ट्रीय एजेंसी है जो संदिग्ध वित्तीय लेनदेन से संबंधित जानकारी प्राप्त करने, प्रसंस्करण, विश्लेषण और प्रसार के लिए जिम्मेदार है. वे आर्थिक अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न जांच एजेंसियों का समन्वय करते हैं. यह वित्त मंत्री की अध्यक्षता वाली आर्थिक खुफिया परिषद को रिपोर्ट करता है.

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) विशेष रूप से पीएमएलए अपराधों की जांच करता है. वे अन्य अनुसूचित अपराधों की आगे की जांच के लिए सीबीआई, सीमा शुल्क विभाग आदि जैसी अन्य एजेंसियों से भी सहायता ले सकते हैं.

जब किसी पर धनशोधन का आरोप लगाया जाता है तो क्या होता है?

मनी लौन्ड्रिंग का मामला शुरू होने पर ईडी प्रवर्तन मामला सूचना रिपोर्ट (ई.सी.आई.आर.) दर्ज करता है. यह आपराधिक मामलों में पुलिस स्टेशन में दर्ज की जाने वाली प्राथमिकी रिपोर्ट के समान है. ईडी अपनी जांच पूरी करने के बाद, विशेष रूप से नामित ‘पीएमएलए अदालतों’ को रिपोर्ट सौंपता है. वे शामिल व्यक्ति/व्यक्तियों की संपत्ति जब्त करने या बैंक खातों को फ्रीज करने का आदेश दे सकते हैं. इस के अलावा, वे मनी लौन्ड्रिंग की प्रक्रिया में प्राप्त ‘दागी संपत्ति’ की कुर्की का आदेश भी दे सकते हैं. यदि न्यायालय आरोपी को धन शोधन का दोषी पाता है तो वह उसे 3 से 7 वर्ष तक के कठोर कारावास और जुरमाने से दंडित कर सकता है.

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