Casteism : सोशल मीडिया कोई दूसरी दुनिया की चीज नहीं है, यह वह भोंडी, सड़ीगली जगह है जो आम लोग बाहर की दुनिया में भीतर से महसूस करते हैं और अपनी उलटी बेझिझक यहां उड़ेलते हैं. ये भड़ास के वे अड्डे हैं, जहां वे अपनी असल पहचान जाहिर करते हैं.

भारत एक ऐसा देश है जहां विविधता और संस्कृति की आड़ में ऊंची जातियां जातिवाद के बचाव में आने से नहीं कतराते. यहां अलगअलग भाषाएं, खानपान और रहनसहन का मोजैक बेशक है मगर सम्प्रदायों और जातियों के तनाव की ऊंची दीवारें भी हैं, जो सदियों से हमारे समाज को विभाजित करती आई हैं.

जाति व्यवस्था भारतीय समाज की एक ऐसी वास्तविकता है जिस ने न केवल हमारे गांवों और शहरों को बांटा है, बल्कि अब यह डिजिटल दुनिया में भी अपनी जड़ें जमा चुकी है. यहां तक कि सोशल मीडिया का मंच जाति के टोलों में बंट चुका है.

फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और व्हाट्सऐप जैसे प्लेटफौर्म्स पर जाति का प्रदर्शन, जातिवादी टिप्पणियां और जाति आधारित ग्रुप्स ने एक नए तरह के सोशल पार्टीशन को जन्म दिया है. गांवदेहातों में जैसे बामनटोला, ठाकुरबाड़ी, चमारटोला, प्रजापति महल्ला, बंसल व अहिरवाल गांव हुआ करते हैं, जिन के घाट, तालाब, पगडंडियां, नल सब बटे हुए होते हैं वैसे ही सोशल मीडिया पर जातियां बंट गई हैं. लोग अपनी जाति के मुताबिक अपने ग्रुप चुनते हैं, अपने दोस्त चुनते हैं, अपने लिए गर्लफ्रैंड या बौयफ्रैंड को चुनते हैं, कई बार शादी के लिए लड़कालड़की इन्हीं ग्रुप्स के इश्तेहारों को देखते हैं.

सोशल मीडिया पर ऊंची जातियों के यूजर्स उपनाम के बहाने अपनी जातियों की घोषणा करते हैं और बताते हैं कि वे शर्मा, श्रीवास्तव, झा, सिन्हा, जोशी, मिश्रा, तिवारी, पांडे, चौहान, पवार, सोलंकी, राजपूत इत्यादि हैं और बाकियों से श्रेष्ठ हैं.

जातिवादी तो छोड़िए, कितने ही ऐसे कथित जातिविरोधी यूजर्स सोशल मीडिया पर जातीय उत्पीड़न संबंधित लंबीलंबी पोस्ट करते नहीं थकते पर जब उन के उपनाम की बात आती है तो गर्व से सिंह, उपाध्याय, बनर्जी, ठाकुर लगाते हैं. यह खुद को सुपीरियर या मसीहा देखने की प्रवर्ती है जो किसी आत्ममुग्द्धा से कम नहीं.

दूसरी तरफ यादव, कुर्मी, पटेल, जाट लठमार अंदाज में दिखाई देते हैं. वे अपनी शक्ति और अपनी संख्या का बखान करते हैं. इन जातियों के युवा इंस्टा रील्स में गैंग बना के घूमते दिखाई देते हैं, बुलेट पर यादव, जाट, गुर्जर लिखवा लेते हैं, तमंचे और दूनाली लहरा रहे होते हैं.

बचीकुची निचली जातियों की ऊपरी जातियां अब कुछ आर्थिक संपन्न होने के चलते जाति व्यवस्था को स्वीकार कर पंडो की दी जाति पर ही गर्व करने लगी हैं.

लेकिन यहां सवाल यह है कि क्या यह सिर्फ पहचान का मामला है या फिर यह एक तरह का जातिवादी अहंकार है? जब लोग अपनी जाति को अपने नाम के साथ जोड़ कर प्रदर्शित करते हैं, खासकर सोशल मीडिया पर, तो क्या वे अनजाने में ही सामाजिक विभाजन को बढ़ावा नहीं दे रहे हैं? बात सिर्फ उपनाम की नहीं बात उन सोशल मीडिया ग्रुप्स की है जिस से वे चाहेअनचाहे जुड़ते चले जाते हैं.

उदाहरण के लिए, फेसबुक पर ‘आल इंडिया ब्राह्मण सेवा मंच’ एक ग्रुप है. इसे लगभग 48 हजार लोग फौलो करते हैं. फौलोवर्स की लिस्ट देखें तो त्यागी, झा, दीक्षित, दुबे, पाठक, कौशिक जैसे उपनाम वाले दिखाई देते हैं. इसे चलाने वाले खुद को सोशल मीडिया एक्टिविस्ट कहते हैं. इन की क्या एक्टिविज्म है आइए देखते हैं.

यह ग्रुप हालिया 10 फरवरी को खेल जगत से जुड़ी जानकारी पोस्ट करता है. पोस्ट में रोहित शर्मा के शतक का जिक्र होता है. यह अपने कैप्शन में लिखता है, “भारतीय ब्राह्मण कप्तान रोहित शर्मा लंबे अरसे बाद शतक बना कर जब लौटे तो नजारा खुशी भरा था. कट्टर हिंदू ब्राह्मण शेर रोहित गुरुनाथ शर्मा.”

ऐसी ही एक पोस्ट हौकी प्लेयर राधिका शर्मा पर भी है, जिस में लिखा गया है, “ब्राह्मण समाज की बेटी राधिका शर्मा को राष्ट्रीय स्तर हौकी टीम में चयन पर बधाई. ब्राह्मण स्वर्ण समाज आप पर गर्व करता है.” यानी कि ब्राह्मण है वही गर्व की बात है.

यह एकमात्र ब्राह्मण ग्रुप नहीं है. फेसबुक पर ब्राह्मण टाइप करते ही दसियों ग्रुप लाइनअप हो जाते हैं. किसी के 2 लाख फौलोअर्स हैं तो किसी के 5 लाख. इन में बधाई संदेश और जातीय श्रेष्टता खूब दिखाई देती है. उम्मीद के मुताबिक़ यहां ऊंची जाति के युवा दिखाई देते हैं. यह हैरानी वाली बात नहीं कि हाल में बेंगलुरु बेस्ड आंत्रप्रेन्योर अनुराधा तिवारी ने एक्स पर अपने मसल्स फ्लेस्क्स करते हुए एक फोटो पोस्ट की जिस का कैप्शन ‘ब्राह्मण जीन्स’ लिखा. विवाद बढ़ा तो वह

सिर्फ ब्राह्मण ग्रुप ही नहीं, सोशल मीडिया पर दूसरी जातियों के ग्रुप्स की भी भरमार है. फेसबुक पर ‘यादव समाज’ टाइप करते ही ढेरों ग्रुप्स दिखाई पड़ते हैं जैसे, ‘यादव ब्रांड’, ‘अहीर औफ इंडिया’, ‘यादव किंगडम’. ऐसे ही ‘जाट समुदाय’, ‘जाट परिवार’, ‘जाट एकता’, ‘जाट के ठाट हुक्का और खाट’ जैसे ग्रुप्स आसानी से मिल जाएंगे. कोई भी जाति जो ब्राह्मवाद की देन है लगभग उन सब जातियों के ग्रुप्स फेसबुक पर दिखाई देते हैं. इन ग्रुप्स में लोग अपनी जाति के बारे में चर्चा करते हैं, अपने समुदाय की समस्याओं को उठाते हैं और कई बार दूसरी जातियों के खिलाफ नफरत फैलाते हैं.

ऐसा ही इंस्टाग्राम पर भी है. इंस्टाग्राम पर किसी जाति का कोई शख्स प्रशासनिक पद पर पहुंचा हो, कोई पार्षदी जीता हो, खेल से जुड़ा हो या गैंगस्टर ही क्यों न हो, उस के स्लो मोशन के साथ बैकग्राउंड म्यूजिक के साथ रील में जाति विशेष के गाने चलने लगते हैं.

ऊंची जातियों के बहुत से गाने पहले ही सोशल मीडिया पर हैं, जैसे-

“हाथ में लेके लट्ठ बामन चाले से
देख के सारा सिस्टम थरथर काम्पे से
दब गया जो बामन तो बामन कौन कवेगा से”

इसी तरह निचली जातियों ने भी खासे गाने बना लिए हैं, जैसे

“जय भीम लिखा रे शीशे पे
वीआईपी नंबर कारा ते
थारे रेंज के बाहर बालक से
छोरे देख चमारा के”

इंस्टाग्राम पर निचली जाति के युवा ज्यादा वोकल नहीं हो पाए हैं. इन में अधिकतर वे ही एक्सप्रेसिव हुए हैं जो इन में भी मजबूत जातियां हैं और आगे बढ़ गए हैं, पर जितनी संख्या में भी हुए हैं उन्होंने अपनी जाति से जुड़े ग्रुप्स जरूर ज्वाइन किए हैं. जैसे, “बेस्ड चमार’, ‘जाटव किंग’, ‘औफिशियल वाल्मीकि समाज’ इत्यादि ये इंस्टाग्राम के कुछ ग्रुप्स हैं. फेसबुक में ऐसे ग्रुप्स की भरमार है क्योंकि वहां ऐसे युवाओं की एक्सेप्टेंसी ज्यादा है वहां रील्स नहीं बनानी पड़तीं और सुंदर दिखने का उतना प्रेशर नहीं है.

हालांकि जातियों के ग्रुप्स में होने वाली चर्चाएं कई बार सकारात्मक होती हैं, जैसे शिक्षा, रोजगार और सामाजिक उत्थान से जुड़े मुद्दे, लेकिन कई बार यहां जातिवादी टिप्पणियां और दूसरी जातियों के प्रति नफरत भरी बातें भी देखने को मिलती हैं. उदाहरण के लिए, ‘भीमटा मुक्त भारत’ ऐसा ग्रुप है जो निचली जातियों व मुस्लिमों को टार्गेट करने के लिए बनाया गया है. इस ग्रुप की अबाउटरी में व्याकरण गलतियों के साथ लिखा हुआ है, “मुसलिम सोचसमझ कर एड होना क्यों कि इस ग्रुप में हलाला पुत्रों का आना मतलब आते ही हिंदू धर्म अपनाना पड़ेगा.”

इस में एक पोस्ट में लिखा गया है, “भीमटादास (दलित) दोहा, क्रमांक 15, अज्ञानी, मूर्ख बेवकूफ सब भीमचट्टों के नाम, ज्ञान की बात पर भी गाली देना जिन का काम.” ऐसे ही ‘इंडिया अगेंस्ट रिजर्वेशन’ नाम से ग्रुप है जो दलितों को टारगेट करने के लिए बनाया गया है.

हालांकि एकदूसरे को टारगेट करने वाले ग्रुप्स सभी जातीयों द्वारा बनाए गए हैं, बावजूद धन, बल और सिस्टेमेटिक तरीके से ऊंची जातियां नीची जातियों को टारगेट करती हैं. दरअसल उन्हें अपनी बातें, ट्रेंड कराने की समझ और टैक्नीक अच्छे से पता हैं, वे संसाधन से लैस हैं, वे ज्यादा टैक्निकल हैं, एआई चलाते हैं, तो सोशल मीडिया पर हावी दिखाई देते हैं. वे यहां तक कि एक्स जैसे प्लेटफौर्म्स पर हैशटैग्स ट्रेंड चलाने की क्षमता रखते हैं.

आंकड़ा 5 साल पुराना है जिसे सीएसडीएस सर्वे ने पब्लिश किया था जो बताता है कि भारत में सोशल मीडिया जैसे, फेसबुक, व्हाट्सऐप, इंस्टाग्राम पर सब ज्यादा कब्जा ऊंची जातियों का है.

सोशल मीडिया पर जातिवाद होने के पीछे कई कारण हैं. कोई कुछ तर्क दे सकता है कोई कुछ कह सकता है पर सब से बड़ा और बुनियादी कारण है बाहरी समाज में सोशल मीडिया से ज्यादा अनुपात में जातिवाद का व्याप्त होना है. सोशल मीडिया कोई दूसरी दुनिया की चीज नहीं है, यह वह भोंडा, सड़ा गला रूप है जो आम लोग बाहर की दुनिया में भीतर से महसूस करते हैं और अपनी उलटी बेझिझक यहां उड़ेलते हैं. ये भड़ास के अड्डे हैं. दरअसल अपनी असली पहचान जाहिर करने के आसियाने हैं.

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