Manishankar Ayyar : कांग्रेस पार्टी में अनेक ऐसे नेता हैं जो अपनी विलासिता से कभी उबर नहीं पाए. वे अपने ड्राइंग रूम में बैठ कर भाजपा को कोसते हैं. अख़बारों में एडिटोरियल पेज के लिए अपने लेख भेजते हैं, ट्विटर पर एक्टिव रहते हैं. मीडिया में बयानबाजियां करते हैं, अपनी ही पार्टी की मिट्टी पलीद करते हैं मगर गरीब-गुरबा के दरवाजे तक जाना उनके कष्टों से रूबरू होना इन नेताओं को कष्टदायक लगता है. इस प्रवृत्ति के नेता दरअसल भीतर से लोकतंत्र के नहीं बल्कि राजशाही के हिमायती होते हैं.
‘A Maverick in Politics’ को लेकर चर्चा में Manishankar Ayyar
कांग्रेस नेता Manishankar Ayyar अपनी नयी किताब ‘A Maverick in Politics’ को लेकर चर्चा में हैं. वे पहले भी कई बार अपनी बयानबाजियों को लेकर चर्चाओं में रहे. इन्हीं बयानबाजियों के चलते वे पार्टी से निष्कासित भी किये गए और इसी बड़बोलेपन की वजह से आज उनकी पार्टी के भीतर कोई पूछ नहीं है.
अपनी किताब में अय्यर ने अपने पोलिटिकल करियर सहित अपने राजनीतिक अनुभवों को साझा किया है मगर सबसे ज्यादा चर्चा जिस बात की हो रही है वह है गाँधी परिवार से बढ़ती उनकी तल्खियों की. गांधी परिवार और कांग्रेस नेतृत्व के बारे में अय्यर ने अपनी किताब में क़ाफीकुछ लिखा है जो निश्चित रूप से गाँधी परिवार को नुकसान पहुंचाने की नीयत से और अपनी भड़ास निकालते हुए लिखा गया है. इन बातों का फायदा भाजपा खूब उठाएगी इसमें कोई संदेह नहीं है.
कयास इस बात के भी लगाए जा रहे हैं कि 83 साल की उम्र में कहीं Manishankar Ayyar भाजपा में आने की जुगत तो नहीं ढूंढ रहे हैं क्योंकि किताब की बाबत एक इंटरव्यू में उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कभी भी चायवाला कहकर अपमानित नहीं किया.
सोनिया गाँधी पर Manishankar Ayyar का आरोप
कभी राजीव गांधी के ख़ास मित्रों में शुमार होने वाले अय्यर इस बात से बड़े तिलमिलाए नजर आते हैं कि सोनिया गाँधी ने उनको पूछना बंद कर दिया है और राहुल गांधी से मिलने का समय लेने के लिए उनको प्रियंका गाँधी वाड्रा से रिक्वेस्ट करनी पड़ी . वे लिखते हैं कि पिछले 10 साल में उन्हें सोनिया गांधी से सिर्फ एक बार मिलने का मौका मिला हैं. गांधी परिवार ने ही मेरा पॉलिटिकल करियर बनाया और बर्बाद भी किया है.
वे आगे लिखते हैं – एक बार राहुल गांधी को शुभकामनाएं भिजवाने के लिए मुझे प्रियंका गांधी को फोन करना पड़ा था. साथ ही एक बार उन्होंने सोनिया गांधी को मैरी क्रिसमस की शुभकामनाएं दीं तो मैडम ने कहा – ‘मैं क्रिश्चियन नहीं हूँ.’ मणिशंकर ने एक इंटरव्यू में कहा कि पिछले दस सालों में उन्हें राहुल गांधी से सिर्फ एक बार और प्रियंका गांधी से दो बार मिलने दिया गया है. हालाँकि प्रियंका से फ़ोनपर बात हो जाती है.
Manishankar Ayyar ने अपनी किताब में लिखा है कि 2024 के चुनाव में उन्हें राहुल गांधी ने टिकट नहीं दिया. टिकट मांगने पर राहुल ने कहा – हरगिज मणिशंकर अय्यर को टिकट नहीं देंगे क्योंकि वो बहुत बुड्ढे हो गए हैं. बता दें कि 83 वर्षीय अय्यर तमिलनाडु के मयिलादुथुराई से तीन बार लोकसभा चुनाव जीते चुके हैं और राज्यसभा सांसद भी रह चुके हैं.
Manishankar Ayyar को कभी भी उस जनता के बीच जाकर उनकी परेशानिया हल करते नहीं देखा गया, जिस जनता ने उन पर विश्वास कर अपना बहुमूल्य मत उन्हें दिया. अय्यर दिल्ली में अपने आलीशान आवास में विलासिता का जीवन जीते रहे. अक्सर उनके आवास पर देर रात तक उनके पाकिस्तानी मित्रों की महफ़िलें भी सजती रही हैं. जिसमें कुलीन वर्ग की ‘भद्र’ महिलाएं शराब के जाम होंठों से लगाए अपने पुरुष मित्रों के कन्धों पर सिर टिकाये नजर आती थीं. मगर अय्यर के आवास पर गरीब जनता अपनी परेशानिया लेकर खड़ी कभी दिखी ही नहीं. और ना कभी अय्यर जनता के दरवाजे पर उनकी समस्याओं को जानने के लिए पहुंचे. तो अगर राहुल गांधी ने उनका टिकट काटा तो कुछ गलत नहीं किया.
किताब में प्रणब मुखर्जी का दर्द किया बयां
अपनी किताब में मणिशंकर अय्यर ने कांग्रेस नेतृत्व के फैसलों पर ऊँगली उठाई है. अय्यर कहते हैं – प्रणब मुखर्जी को उम्मीद थी कि उन्हें देश का प्रधानमंत्री और मनमोहन सिंह को राष्ट्रपति बनाया जाएगा. यदि मुखर्जी प्रधानमंत्री होते तो कांग्रेस 2014 के लोकसभा चुनाव में इतनी बुरी तरह नहीं हारती. अय्यर खुलासा करते हैं – 2012 से ही कांग्रेस की स्थिति खराब थी. सोनिया गांधी बहुत बीमार पड़ गईं थीं और मनमोहन सिंह को 6 बार बाईपास कराना पड़ा था, जिससे चुनाव में पार्टी अध्यक्ष और प्रधानमंत्री एक्टिव नहीं थे. ऐसी स्थिति प्रणब मुखर्जी बखूबी संभाल सकते थे. परन्तु मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाए रखने और प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति भवन भेजने के निर्णय ने संप्रग की तीसरी बार सरकार बनाने की संभावना खत्म कर दी.
अपनी किताब में Manishankar Ayyar ने अपने राजनीतिक जीवन के शुरुआती दिनों, नरसिम्हा राव के समय, यूपीए वन में मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल और उसके बाद के पतन का भी जिक्र किया है. उन्होंने खासतौर से यूपीए टू के पतन की यादें किताब में लिखी है, कि जब उनकी पत्नी ने टेलीविजन के सामने यह कह कर अपनी निराशा जताई थी कि “आज कोई घोटाला नहीं हुआ.”
Manishankar Ayyar कांग्रेस के लिए कई मौकों पर ‘मणि’ साबित हुए. यूपीए वन और टू के दौरान जब भी पाकिस्तान के साथ रिश्ते बिगड़ने की चर्चा शुरू होने लगती, अय्यर पाकिस्तान उड़ जाते या फिर आगे आकर स्थिति संभाल लेते. लेकिन, साल 2014 के बाद से अय्यर के कुछ विवादित बोल कांग्रेस के लिए ‘विष’ साबित होने लगे. इससे, कांग्रेस ने धीरे-धीरे अय्यर से किनारा कर लिया. खासकर, पाकिस्तान और मुस्लिम प्रेम की वजह से अय्यर कई बार कांग्रेसी नेताओं के निशाने पर आये और भाजपा ने उनके बयानों को खूब भुनाया. उन दिनों भाजपा के बढ़ते हिंदुत्ववादी आडम्बरों से घरबराये राहुल और प्रियंका भी खुद को हिन्दू साबित करने के लिए मंदिरों और नदियों के दर्शन आरती करते नज़र आ रहे थे. राहुल गांधी बाकायदा जनेऊ संस्कार करते और प्रियंका गंगा घाट पर आरती करती दिखाई देती थीं. ऐसे में पाकिस्तान प्रेम और मुसलमान प्रेम में डूबे अय्यर के बोल कांग्रेस के लिए मुसीबत बन रहे थे और जब भाजपा ने उनके बयानों को उछालना शुरू किया तो इससे कांग्रेस को काफी नुक़सान पहुंचा. इससे भी राहुल गांधी अय्यर से चिढ गए थे.
साल 2014 के बाद से लगभग हर चुनाव से पहले मणिशंकर अय्यर का कुछ न कुछ बयान आ जाता, जिससे पार्टी बैकफुट पर आ जाती. अय्यर के पाकिस्तान प्रेम को भाजपा बीते कई चुनावों से इस्तेमाल कर खूब भुनाती आयी है. ऐसे में न चाहते हुए भी कांग्रेस ने बीते कुछ सालों में अय्यर को पार्टी की गतिविधियों से दूर कर दिया. गांधी परिवार ने भी अब अय्यर से काफी दूरी बना ली.
साल 2019 के आम चुनाव से ठीक पहले प्रधानमंत्री मोदी को लेकर अय्यर ने ऐसी अपमानजनक टिप्पणी कर दी, जिसको भाजपा ने चुनाव में बड़ा मुद्दा बना लिया. हालांकि, कांग्रेस पार्टी ने तब तक उन्हें निलंबित कर दिया था लेकिन, पार्टी को तब तक काफी नुकसान हो चुका था. भारत के पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव को भी अय्यर निशाने पर लेते रहे हैं. राव के बारे में तो उन्होंने यह तक कह दिया कि भाजपा के पहले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी नहीं. बल्कि, पीवी नरसिम्हा राव थे. क्योंकि जिस वक़्त बाबरी मस्जिद गिराई जा रही थी उस वक्त राव पूजा में व्यस्त थे.
मोदी को लेकर दिख रहे हैं नरम
83 साल के हो चुके Manishankar Ayyar अब पीएम मोदी को लेकर काफी नरम दिख रहे हैं. उन्होंने अपने इंटरव्यू में कहा है कि उन्होंने कभी भी पीएम मोदी चायवाला नहीं कहा. अय्यर ने कहा है कि साल 2014 में गुजरात के मौजूदा सीएम नरेंद्र मोदी को विजेता के रूप में प्रचारित किया जा रहा था. इस बात से मैं भयभीत था कि जिस व्यक्ति की छवि गुजरात में मुसलमानों के नरसंहार के कारण दागदार है, वह महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू के देश का नेतृत्व करने की आकांक्षा रख सकता है?’
अय्यर ने कहा है कि साल 2014 में कांग्रेस के अधिवेशन के दौरान एक इंटरव्यू में कहा था कि जो आदमी यह नहीं जानता कि सिकंदर कभी पाटलिपुत्र नहीं गया और तक्षशिला पाकिस्तान में है, वह प्रधानमंत्री की उस कुर्सी पर आसीन होगा, जिस पर कभी नेहरू बैठा करते थे. इसलिए मैंने कहा था कि भारत के लोग यह कभी स्वीकार नहीं करेंगे. फिर मैंने मजाक में बोल दिया कि अगर चुनाव हारने के बाद मोदी चाय परोसना चाहते हैं तो हम उनके लिए कुछ व्यवस्था कर सकते हैं.’
खैर, मोदी तो प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हो गए मगर अय्यर की हालत ना घर की ना घाट वाली हो गयी. अब उन्हें इस बात से बड़ी परेशानी हो रही है कि उनको कोई पूछता ही नहीं है. दरअसल लोकतंत्र में जननेता और प्रिय नेता वही है जो जनता के बीच नजर आये. फिर भले वह नेक ना हो, धर्मनिरपेक्ष ना हो, दयालु न हो, लेकिन यदि वह लगातार जनता के संपर्क में है तो जनता उसे सिर आंखों पर बिठाएगी और उसकी जनता के बीच उसकी यही छवि उसकी पार्टी में उसका कद तय करेगी.
योगी आदित्यनाथ हों, अखिलेश यादव हों, राहुल गांधी हो, ममता बनर्जी हों, चंद्रशेखर आजाद रावण हों या नरेंद्र मोदी हों, ये सभी लोकप्रिय नेता इसलिए हैं क्योंकि वे जनता के बीच उठते बैठते हैं. उनकी समस्याएं सुनते हैं (भले उनका निवारण ना करते हों) समस्या सुन लेना ही उनको प्रसिद्धि दिला देता है.
Manishankar Ayyar जैसे और भी कई
कांग्रेस पार्टी में अनेक नेता ऐसे रहे और आज भी हैं जो अपनी विलासिता से उबर नहीं पाए. वे अपने ड्राइंग रूम में बैठ कर भाजपा को कोसते हैं. अख़बारों में एडिटोरियल पेज के लिए अपने लेख भेजते हैं (जो अक्सर अच्छे लेखकों से लिखवाये हुए होते हैं.) वे ट्विटर पर एक्टिव रहते हैं. मीडिया में बयानबाजियां करते हैं, अपनी ही पार्टी की मिट्टी पलीद करते हैं मगर गरीब-गुरबा के दरवाजे तक जाना उनके कष्टों से रूबरू होना इन नेताओं को कष्टदायक लगता है. पार्टी लाइन से भी ये अलग चलते हैं. ऐसे नेता ना जनता के लिए कुछ करने की इच्छा रखते हैं और ना ही अपनी पार्टी को मजबूती देने का विचार इन्हें आता है. ये वही नेता हैं जिन्होंने राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से भी दूरी बनाये रखी.
लोकतंत्र में नेता चाहे सत्ता में रहे या ना रहे परन्तु जनहित की भावना यदि उसकी है तो वह ज्यादा समय जनता के बीच ही नजर आएगा. वह जनता को उसके अधिकारों के प्रति सचेत करता नजर आएगा. उनके अधिकारों के लिए सड़क पर जुलूस निकालेगा. नारेबाजी करेगा. आंदोलन करेगा. भूख हड़ताल पर उतर जाएगा. सत्ता को हिलायेगा ताकि वह गरीब की आवाज पर कान धरे.
अरविन्द केजरीवाल, राहुल गांधी और चंद्रशेखर आजाद इसका उदाहरण हैं. पर मणिशंकर अय्यर, गुलाम नबी आजाद, दिग्विजय सिंह, जयराम रमेश, पी. चिदंबरम, अंबिका सोनी, मीरा कुमार जैसे कांग्रेसी नेताओं को क्या कभी ऐसा करते पाया गया है? फिर वे चाहते हैं कि उनकी पूछ भी बनी रहे. अगर किसी ने पूछना बंद कर दिया तो फिर ये उसके खिलाफ विषवमन करते फिरेंगे. जिस थाली में खाया उसी में छेद करेंगे.