Mohan Bhagwat : तंबाकू बनाने और बेचने वाले ही कैंसर की दवा बनाने लगें तो इसे आप क्या कहेंगे यह आरएसएस प्रमुख के हालिया बयानों से सहज समझा जा सकता है जिसे ले कर संत समाज उन पर भड़का हुआ है जो इशारा यह कर रहा है कि अब हज करने की तुक क्या?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने विगत दिनों एक ऐसा बयान दिया जो चर्चा का विषय बनने के बाद अब हिंदुओं के गले की हड्डी बनता जा रहा है. उन्होंने कहा, “धर्म के नाम पर होने वाले सभी उत्पीड़न और अत्याचार गलतफहमी और धर्म को समझ की कमी के कारण हुए हैं.”
महाराष्ट्र के अमरावती में महानुभाव आश्रम के शताब्दी समारोह में बोलते हुए मोहन भागवत ने कहा, “धर्म महत्वपूर्ण है और इस को उचित शिक्षा दी जानी चाहिए. धर्म का अनुचित और अधूरा ज्ञान अधर्म की ओर ले जाता है.” इस बयान की देशभर में चर्चा है इस के अलगअलग अर्थ निकाले जा रहे हैं लेकिन सब से बड़ा सवाल है कि मोहन भागवत को ऐसा क्यों कहना पड़ा है और इस के भीतर का अर्थ क्या है यह समझना आवश्यक है.
दरअसल, मोहन भागवत के अनुसार, धर्म हमेशा से अस्तित्व में रहा है और सब कुछ इस के अनुसार चलता है, इसीलिए इसे सनातन कहा जाता है.
उन्होंने यह भी कहा कि धर्म का आचरण ही धर्म की रक्षा है और अगर धर्म को सही तरीके से समझा जाए तो इस से समाज में शांति, सद्भाव और समृद्धि आ सकती है.
यह बयान एक महत्वपूर्ण समय पर आया है, जब देशभर में धर्म के नाम पर हिंसा और अत्याचार की घटनाएं बढ़ रही हैं. उत्तर प्रदेश हो या छत्तीसगढ़ अथवा जम्मूकश्मीर, मणिपुर, असम हर एक राज्य में माहौल विषाक्त होता चला जा रहा है. जो आने वाले समय में देश में अनेक संकट और विषमता है पैदा कर सकता है इस दिशा में सत्ता और समाज के अगुवा लोगों को सद्भावना का संदेश देना होगा.

भड़का संत समाज

मोहन भागवत की मंशा बहुत साफसुथरी या स्पष्ट थी इस में शक है लोग किसी नतीजे पर पहुंच पाते इस के पहले ही संत समाज ने धर्म के असल माने बता दिए कि धर्म का शांति, सद्भाव या भाईचारे से कोई लेनादेना नहीं है इस का असल मकसद लोगों के दिलोदिमाग और व्यक्तिगत सामाजिक जिंदगी पर शासन करना है जिस से वे पूजापाठी बने रह कर दानदक्षिणा के कारोबार के ग्राहक बने रहें और जो इस के आड़े आएगा उसे सबक सिखाने में धर्म के ठेकेदार हिचकिचाएंगे नहीं फिर भले ही वे धर्म का मतलब सिखाते रहने वाले मोहन भागवत ही क्यों न हों.

लोग भागवत से सहमत होने की वजह ढूंढ पाते इस से पहले ही साधुसंतों ने उन्हें अपने निशाने पर लेना शुरू कर दिया. ताजा बयान वैष्णव संत रामभद्राचार्य का है जिन्होंने भागवत से सहमत होने से इनकार करते हुए दो टूक कहा कि हम भागवत के अनुशासक हैं वे हमारे अनुशासक नहीं हैं जो भागवत की बात को हिंदू या हम मानें. इस के पहले एक शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने तो और भी तीखे अंदाज में कहा था कि जब उन्हें सत्ता हासिल करना थी तब वह मंदिरमंदिर करते थे अब सत्ता मिल गई तो मंदिर नहीं ढूंढने की सलाह दे रहे हैं.

देखा जाए तो ये संत गलत कुछ नहीं कह रहे हैं जिस का सार यह है कि अब हज करने क्यों जाया जा रहा है? आरएसएस ने अपने उद्भव से ही हिंदुओं को भड़काने का काम किया है और अब अहिंसा परमोधर्म जैसे आउटडेटेड उपदेश दे रहा है. अब बबूल बोकर गुलाब के फूल तो मिलने से रहे.

खास मकसद से दिए गए बयान के बाद भी मोहन भागवत की बातों का असर निम्नलिखित हो सकता है:

मोहन भागवत के बयान से लोगों को धर्म के प्रति नई सोच का आगाज हो सकता है. ऐसा सोचना भी बेईमानी है. वे धर्म को एक नए दृष्टिकोण से देख सकते हैं यह सोचने की भी कोई वजह नहीं और न ही वे इस के मूलसिद्धांतों को भूलने का प्रयास कर सकते हैं. ये बातें भी मन बहलाऊ ही हैं कि मोहन भागवत के बयान से सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा मिल सकता है. लोग धर्म के नाम पर हिंसा और अत्याचार को रोकने के लिए एकजुट हो सकते हैं और समाज में शांति और सद्भाव को बढ़ावा दे सकते हैं. मोहन भागवत के बयान का राजनीतिक प्रभाव भी हो सकता है. यह बयान भारतीय जनता पार्टी को धर्म के प्रति अपनी नीतियों को बदलने के लिए प्रेरित कर सकता है और धर्म के नाम पर हिंसा और अत्याचार को रोकने के लिए कदम उठा सकते हैं. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि लोग दोनों में से किस की बात पर ध्यान देते हैं.

मोहन भागवत के बयान से सामाजिक परिवर्तन की संभावना भी न के बराबर है क्योंकि उन की अब कोई सुनता नहीं और सुनता भी है तो उस पर अमल नहीं करता अगर अमल ही करना होता तो गांधी और नेहरू क्या बुरे थे. मोहन भागवत ने ऐसा बयान देने के पीछे कई कारण हो सकते हैं. यहां कुछ संभावित कारण हैं:

भागवत ने कहा है, ”धर्म की सही समझ और इस के मूलसिद्धांतों का पालन करना ही शांति और समृद्धि का मार्ग है”. यह बयान धर्म की सही समझ को बढ़ावा देने के लिए दिया गया हो सकता है. लेकिन यही धर्म की सही समझ होती तो देश का माहौल बिगड़ता ही क्यों?
भागवत ने कहा है कि धर्म के नाम पर हिंसा और अत्याचार को रोकने के लिए एकजुट होना आवश्यक है. यह बयान सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए दिया गया हो सकता है.

भागवत का बयान राजनीतिक संदेश भी हो सकता है. यह बयान भाजपा की धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक सद्भाव के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाने के लिए दिया गया हो सकता है. लेकिन भाजपा की तरफ से इस आशय का कोई वक्तव्य अभी तक न आना बताता है कि वह दो पाटों के बीच फंस चुकी है.
भागवत ने कहा है कि धर्म की सही समझ और इस के मूलसिद्धांतों का पालन करना ही विश्व शांति का मार्ग है. यह बयान विश्व शांति को बढ़ावा देने के लिए दिया गया हो सकता है.
भागवत का बयान हिंदू धर्म की रक्षा के लिए भी दिया गया हो सकता है. यह बयान हिंदू धर्म के मूल्यों और सिद्धांतों को बचाने और बढ़ावा देने के लिए दिया गया हो सकता है.

यह सवाल काफी संवेदनशील है, और इस का जवाब देना मुश्किल है क्योंकि हर धर्म की तरह हिंदू धर्म की बुनियाद भी हिंसा, बैर और झगड़ेफसाद जंग आदि पर ही रखी गई है.
हाल के वर्षों में भारत में धर्म के नाम पर हिंसा और अत्याचार की घटनाएं अत्यंत बढ़ गई हैं. कई मामलों में, हिंदू धर्म के नाम पर हिंसा और अत्याचार की घटनाएं हुई हैं.

ऐसे में मोहन भागवत का बयान एक प्रयास हो सकता है कि धर्म के नाम पर हिंसा और अत्याचार को रोका जाए. यह बयान एक संदेश हो सकता है कि धर्म की सही समझ और इस के मूलसिद्धांतों का पालन करना ही शांति और समृद्धि का मार्ग है.
लेकिन यह सवाल भी उठता है कि क्या यह बयान पर्याप्त है? क्या यह बयान धर्म के नाम पर हिंसा और अत्याचार को रोकने के लिए पर्याप्त है? यह स्पष्ट है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ हो या दुनिया की सब से बड़ी राजनीतिक पार्टी भाजपा को धर्म के नाम पर हिंसा और अत्याचार को रोकने के लिए और अधिक गंभीर प्रयास करने की आवश्यकता है.

दरअसल, असल लड़ाई दानदक्षिणा की हिस्साबांटी की है. संत समाज को लगता है कि सरकारी पैसे से संघ की इमारतें चमक रही हैं जबकि मोहन भागवत का सोचना यह हो सकता है कि मंदिर तो खूब चमक चुके हैं.

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