Atul Subhash & Nikita Case : बिहार के समस्तीपुर में रहने वाले अतुल सुभाष पेशे से एआई इंजीनियर थे. उन के परिवार में मां पार्वती, पिता पवन कुमार और भाई विकास हैं. अतुल बैंगलुरु की एक कंपनी में बड़े पद काम करते थे. वे बैंगलुरु के ही मंजूनाथ लेआउट अपार्टमैंट में रहते थे.
साल 2019 में एक मैट्रिमोनी साइट से मैच मिलने के बाद अतुल ने उत्तर प्रदेश के जौनपुर की रहने वाली निकिता सिंघानिया से शादी की थी. वह भी आईटी कंपनी में काम करती थी. निकिता के घर में उस की मां और पिता थे. पिता दिल के मरीज थे. 10 साल से उन का पीजीआई अस्पताल में इलाज चल रहा था. इसी वजह से अतुल और निकिता की शादी बड़ी जल्दबाजी में हो गई थी.
साल 2020 में उन्हें एक बेटा हुआ. इस के कुछ दिन बाद से ही दोनों के बीच अनबन शुरू हो गई. निकिता साल 2021 में बेटे को ले कर बैंगलुरु छोड़ कर जौनपुर चली गई.
इसी बीच निकिता के पिता की मौत हो गई. तभी निकिता ने आरोप लगाया कि अतुल ने दहेज में 10 लाख रुपए की मांग की थी, जिस के चलते उस के पिता को सदमा लगा और उन की मौत हो गई.
अतुल की पत्नी निकिता सिंघानिया ने पहली बार अतुल, उन के भाई और मातापिता के खिलाफ साल 2022 में दहेज उत्पीड़न के आरोप में प्राथमिकी दर्ज कराई थी. जौनपुर पुलिस के मुताबिक, 24 अप्रैल, 2022 को निकिता ने सुभाष के खिलाफ स्थानीय कोतवाली में मुकदमा दर्ज कराया था.
पुलिस के मुताबिक, निकिता ने 24 अप्रैल, 2022 को दहेज के लिए सताने और मारपीट करने का आरोप लगाते हुए जौनपुर में शिकायत दर्ज कराई थी, जिस में पति, सास, ससुर और देवर को आरोपी बनाया था.
निकिता ने कहा कि उस ने 26 अप्रैल, 2019 को वाराणसी जिले में हिंदू रीतिरिवाजों के अनुसार अतुल से शादी की थी, मगर दहेज में 10 लाख रुपए की मांग को ले कर अतुल और उस के परिवार वाले उसे मारतेपीटते थे. निकिता ने दावा किया था कि अतुल शराब पी कर उसे पीटते थे. वे उसे धमका कर उस के खाते से पूरी तनख्वाह अपने खाते में डलवा लेते थे.
निकिता ने दावा किया था कि बाद में ससुराल के लोगों से परेशान उस के पिता की अचानक तबीयत खराब हो गई थी और 17 अगस्त, 2019 को दिल का दौरा पड़ने से उन की मौत हो गई.
Atul Subhash & Nikita Case : तब की महिला उपनिरीक्षक प्रियंका ने मामले की जांच कर 30 अगस्त, 2022 को कोर्ट में आरोपपत्र दायर कर दिया था. निकिता ने दहेज उत्पीड़न, हत्या की कोशिश, अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करने जैसे कई आरोप लगाए थे.
इस के बाद अतुल और निकिता का मामला फैमली कोर्ट में चलने लगा, जहां निकिता ने 40,000 रुपए महीना के गुजारा भत्ता के अलावा 2-4 लाख रुपए की और मांग की.
अतुल कुछ समय तक इस पैसे को देता रहा. इन मुकदमों के लिए उस को हर पेशी पर जौनपुर आना पड़ता था. 2 साल में 120 पेशी उस की लगी थीं.
निकिता के रिश्तेदार सुरेंद्र सिंघानिया के मुताबिक, निकिता और अतुल की शादी तकरीबन 5 साल पहले हुई थी और शादी के बाद दोनों बैंगलुरु में काम करते थे और वहीं रहते थे. उन का एक बेटा भी हुआ.
सुरेंद्र ने कहा कि पिछले 2 साल से निकिता अतुल से तलाक लेना चाहती थी और इसी के मद्देनजर उस ने जौनपुर की अदालत में 3-4 मामले भी दायर किए थे.
उन्होंने कहा कि फिलहाल निकिता अपने बेटे के साथ दिल्ली में रहती है और वहीं काम करती है.
सुरेंद्र ने यह भी कहा कि दोनों के बीच विवाद के चलते निकिता गुजारा भत्ता चाहती थी और अतुल इसे देने के पक्ष में नहीं था, जबकि जौनपुर की अदालत में लगातार मामले की तारीखें दी जा रही थीं.
निकिता के वकील दिनेश मिश्रा ने बताया कि निकिता ने अतुल के खिलाफ कई मामले दर्ज कराए थे, जिन में से एक अहम मामला पारिवारिक कोर्ट में लंबित है.
उन्होंने कहा कि इस मामले में निकिता ने अपने और बच्चे के भरणपोषण के लिए कोर्ट में याचिका दायर की थी, लेकिन कोर्ट ने पत्नी को गुजारा भत्ता देने का निर्देश देने से इनकार कर दिया, हालांकि, बच्चे के भरणपोषण के लिए हर महीने 40,000 रुपए देने का आदेश दिया था.
सवाल उठता है कि जब पत्नी भी नौकरी कर रही है तो क्या उस को गुजारा भत्ता दिया जा सकता है? सैक्शन 24 के तहत अंतरिम गुजारा भत्ता देने के लिए कह सकता है. वेतन का 20 फीसदी गुजारा भत्ता दिया जा सकता है. यह अदालत के विवेक पर निर्भर करता है.
फैमिली कोर्ट ज्यादातर मसलों में औरतों का पक्ष ज्यादा लेती है. न्याय व्यवस्था में खामियों के चलते छोटेछोटे मसले सालोंसाल चलते हैं, जिन से आरोपी पक्ष जलील होता रहता है. कई बार वह घातक कदम उठा लेता है.
खुदकुशी के बाद चर्चा में आया मसला
अतुल सुभाष ने 9 दिसंबर, 2024 को इंटरनैट पर 1 घंटा, 20 मिनट का वीडियो जारी कर बताया था कि उस के पास खुदकुशी के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है.
खुदकुशी के बाद पड़ोसियों ने उन के घर का दरवाजा तोड़ा तो उन की बौडी फंदे पर लटकी मिली. कमरे में ‘जस्टिस इज ड्यू’ यानी ‘इंसाफ होना बाकी है’ लिखी एक तख्ती मिली. पुलिस को घर से 24 पन्ने का एक सुसाइड नोट मिला, जिन में चार पन्ने हाथ से और 20 कंप्यूटर से प्रिंट किए गए थे.
24 पेज के इस लैटर में अतुल ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से इंसाफ की गुहार लगाई है. अतुल ने देश के क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम की खामियों के बारे में लिखा और मर्दों के खिलाफ झूठे केस दर्ज कराने के ट्रेंड के बारे में बताया. एक और नोट में उन्होंने लिखा कि वे अपनी पत्नी की तरफ से दायर कराए गए सभी मामलों के लिए खुद को बेकुसूर बता रहे हैं.
इन में दहेज प्रतिरोध कानून और महिलाओं के खिलाफ अत्याचार का केस शामिल है. उन्होंने कहा कि मैं कोर्ट से रिक्वैस्ट करता हूं कि इन झूठे केसों में मेरे मातापिता और भाई को परेशान करना बंद करें.
Atul Subhash ने सुसाइड से पहले रिकौर्ड किए गए वीडियो में पूरा मामला बताया. उन्होंने कहा कि 2019 में एक मैट्रिमोनी साइट से मैच मिलने के बाद शादी की थी. अगले साल उन्हें एक बेटा हुआ. उन की पत्नी और पत्नी का परिवार उन से हमेशा पैसों की डिमांड करता रहता था, जो वे पूरी भी करते थे.
उन्होंने लाखों रुपए अपनी पत्नी के परिवार को दिए थे, लेकिन जब उन्होंने और पैसे देना बंद कर दिया तो पत्नी 2021 में उन के बेटे को ले कर बैंगलुरु छोड़ कर चली गई.
मैं उसे हर महीने 40,000 रुपए देता हूं, लेकिन अब वह बच्चे को पालने के लिए खर्च के तौर पर 2-4 लाख रुपए महीने की डिमांड कर रही है. मेरी पत्नी मुझे मेरे बेटे से न तो मिलने देती है, न कभी बात कराती है. पूजा या कोई शादी हो, निकिता हर बार कम से कम 6 साड़ी और एक गोल्ड सैट मांगती थी.
मैं ने अपनी सास को 20 लाख रुपए से ज्यादा दिए, लेकिन उन्होंने कभी नहीं लौटाए. पत्नी ने दहेज और पिता के मर्डर का आरोप लगा कर केस दर्ज कराया.
इसके अगले साल पत्नी ने उन के और उन के परिवार के लोगों के खिलाफ कई मामले दर्ज कराए. इन में मर्डर और अप्राकृतिक सेक्स का केस भी शामिल था. अतुल ने कहा कि उन की पत्नी ने आरोप लगाया कि उन्होंने 10 लाख रुपए दहेज मांगा था, जिस के चलते उस के पिता का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया.
Atul Subhash ने कहा कि यह आरोप किसी फिल्म की खराब कहानी जैसा है, क्योंकि मेरी पत्नी पहले ही कोर्ट में सवालजवाब में इस बात को स्वीकार कर चुकी है कि उस के पिता लंबे समय से गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे और पिछले 10 साल से दिल की बीमारियों और डायबिटीज के लिए पीजीआई में उन का इलाज चल रहा था. डाक्टरों ने उन्हें जीने के लिए कुछ ही महीने का समय दिया था, तभी हम ने जल्दबाजी में शादी की थी.
अतुल ने कहा कि मेरी पत्नी ने ये केस सैटल करने के लिए पहले 1 करोड़ रुपए की डिमांड की थी, लेकिन बाद में इसे बढ़ा कर 3 करोड़ रुपए कर दिया. उन्होंने कहा कि जब इस 3 करोड़ रुपए की डिमांड के बारे में उन्होंने जौनपुर की फैमिली कोर्ट की जज को बताया तो उन्होंने भी पत्नी का साथ दिया.
अतुल ने कहा कि मैं ने जज को बताया कि एनसीआरबी की रिपोर्ट बताती है कि देश में बहुत सारे मर्द झूठे केस की वजह से आत्महत्या कर रहे हैं, तो पत्नी ने बीच में कहा कि तुम भी आत्महत्या क्यों नहीं कर लेते हो?
इस बात पर जज हंस पड़ीं और कहा कि ये केस झूठे ही होते हैं, तुम परिवार के बारे में सोचो और केस को सैटल करो. मैं केस सेटल करने के 5 लाख रुपए लूंगी.
अतुल ने बताया कि जब इस मामले को ले कर उस ने सास से बात की, तो सास ने कहा कि तुम ने अभी तक सुसाइड नहीं किया. मुझे लगा आज तुम्हारे सुसाइड की खबर आएगी.
इस पर अतुल ने उन्हें जवाब दिया कि मैं मर गया तो तुम लोगों की पार्टी कैसे चलेगी. उस की सास ने जवाब दिया कि तुम्हारा बाप पैसे देगा. पति के मरने के बाद सब पत्नी का होता है. तुम्हारे मांबाप भी जल्दी मर जाएंगे. उस में भी बहू का हिस्सा होता है. पूरी जिंदगी तेरा पूरा खानदान कोर्ट के चक्कर काटेगा.
अतुल ने कहा कि इस के बाद मैं सोचने लगा कि मेरे कमाए हुए पैसे से मुझे और मेरे परिवार को ही परेशान किया जा रहा. मुझे लगता है कि मेरे लिए मर जाना ही बेहतर होगा, क्योंकि जो पैसे मैं कमा रहा हूं उस से मैं अपने ही दुश्मन को बलवान बना रहा हूं. मेरा कमाया हुआ पैसा मुझे ही बरबाद करने में लग रहा है.
मेरे ही टैक्स के पैसे से यह अदालत, यह पुलिस और पूरा सिस्टम मुझे और मेरे परिवार और मेरे जैसे और भी लोगों को परेशान करेगा. मैं ही नहीं रहूंगा तो न तो पैसा होगा और न ही मेरे मांबाप और भाई को परेशान करने की कोई वजह होगी.
Atul Subhash ने यह भी कहा कि मेरी आखिरी ख्वाहिश यह है कि मेरे बेटे को मेरे मातापिता को दे दिया जाए. मेरी पत्नी के पास कोई वैल्यू नहीं है, जो वह मेरे बेटे को दे पाए. यहां तक कि वह तो उसे पालने के काबिल भी नहीं है. इस के अलावा मेरी पत्नी को मेरे मृत शरीर के पास भी न आने दिया जाए. मेरी अस्थियों का विसर्जन भी तब हो, जब मुझे इस केस में इंसाफ मिले, नहीं तो मेरी अस्थियों को गटर में बहा दिया जाए.
अतुल ने अपनी आखिरी इच्छा में लिखा ‘मेरे केस की सुनवाई का लाइव टैलीकास्ट हो. पत्नी मेरा शव न छू सके. जब तक प्रताड़ित करने वालों को सजा न हो, मेरी अस्थियां विसर्जित न हों. यदि भ्रष्ट जज, मेरी पत्नी और उस के परिवार वालों को कोर्ट बरी कर दे तो मेरी अस्थियां उसी अदालत के बाहर किसी गटर में बहा दी जाएं. मेरे बेटे की कस्टडी मेरे मातापिता को दी जाए.’
अतुल का कहना था कि उस के बयान को मृत्यु के पहले का बयान मान कर सुबूत समझा जाए.
Atul Subhash की पत्नी और परिवार पर कायम हुआ मुकदमा
अतुल सुभाष की खुदकुशी के बाद पुलिस ने 4 लोगों पर एफआईआर दर्ज की, जिस में अतुल की पत्नी निकिता सिंघानिया, सास निशा सिंघानिया, साले अनुराग सिंघानिया और चाचा ससुर सुशील सिंघानिया का नाम है. अतुल के भाई विकास कुमार ने बैंगलुरु के मराठाहल्ली पुलिस स्टेशन में शिकायत की थी.
इसी के आधार पर पुलिस ने पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 108 (आत्महत्या के लिए उकसाना), धारा 3(5) (जब दो या ज्यादा लोग शामिल हों तो सामूहिक जिम्मेदारी बनती है) का केस दर्ज किया है.
क्या है दहेज कानून
अतुल सुभाष की बात इसलिए उठ गई, क्योंकि उस ने खुदकुशी कर ली. हमारे देश और समाज में कानून से कम भावनाओं से ज्यादा काम लिया जाता है. ऐसे में आज ऐसा लग रहा है जैसे पूरा देश दहेज कानून के खिलाफ है.
दहेज निषेध अधिनियम 1961 में दहेज प्रथा पर रोक लगाने और दहेज से जुड़े शोषण उत्पीड़न को रोकने के लिए बनाया गया था. इस को 1 जुलाई, 1961 से लागू किया गया था. इस कानून के तहत, दहेज देने और लेने दोनो को अपराध बनाया गया था. यह कानून पूरे भारत में हर जाति या धर्म पर लागू होता है. समयसमय पर जरूरत के हिसाब से इस कानून में संशोधन भी किए गए हैं.
दहेज प्रथा पर अंकुश लगाने के लिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में धारा 498 ए और धारा 304 बी शामिल की गईं. साल 2005 में घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम पारित किया गया.
वैसे तो इस कानून का मकसद समाज से दहेज की बुराई को खत्म करना था. इस के लागू होने के बाद भी दहेज समस्या का समाधान नहीं हुआ. यह समस्या और बढ़ती गई. विडंबना यह है कि दहेज का विवाद होने पर केवल दहेज मांगने वाले पर ही मुकदमा होता है. दहेज देने वाले से सवाल नहीं किया जाता है.
दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के तहत दहेज लेने या देने पर कम से कम 5 साल की जेल और कम से कम 15,000 रुपए का जुर्माना हो सकता है.
दहेज मांगने पर कम से कम 6 महीने की जेल और 10,000 रुपए तक का जुर्माना हो सकता है. दहेज उत्पीड़न के मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए के तहत 3 साल की जेल और जुर्माना हो सकता है.
अगर किसी महिला की शादी के 7 साल के अंदर दहेज उत्पीड़न की वजह से मौत हो जाती है, तो भारतीय दंड संहिता की धारा 304-बी के तहत पति और रिश्तेदारों को कम से कम 7 साल की जेल से लेकर उम्रकैद हो सकती है. अगर कोई लड़की के पति और ससुराल वाले उसे स्त्रीधन सौंपने से मना करते हैं, तो धारा 406 के तहत 3 साल की जेल या जुर्माना या दोनों हो सकता है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट लखनऊ बैंच के एडवोकेट राजेश तिवारी कहते हैं, “शादी में जो नकद और उपहार दिए जाते हैं, उन को स्त्री धन मान लिया जाता है. जब कोई मुकदमा होता है तो यही सब दहेज मान लिया जाता है. अब ज्यादातर मामलों में दहेज के साथ ही साथ घरेलू हिंसा की धारा की तहत भी मुकदमा लिखा दिया जाता है.
“जब से घरेलू हिंसा कानून बना है इस के गलत इस्तेमाल की घटनाएं बढ़ गई हैं, जिन पर बारबार सुप्रीम कोर्ट भी चिंता जता चुका है. सरकार से भी इस कानून में बदलाव के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, लेकिन सरकार ने बदलाव किया नहीं है.
“जब नया कानून बन रहा था तक उम्मीद की जा रही थी कि कुछ राहत मिलेगी, लेकिन धाराओं की संख्या बदलने के अलावा इस में सुधारात्मक कदम नहीं उठाया गया है.”
सुप्रीम कोर्ट उठा रहा सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक मतभेदों से पैदा हुए घरेलू विवादों में पति और उस के घर वालों को आईपीसी की धारा 498ए में फंसाने की बढ़ती सोच पर गंभीर चिंता जताई.
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने 10 दिसंबर को कहा कि धारा 498ए (घरेलू प्रताड़ना) पत्नी और उसके परिजनों के लिए हिसाब बराबर करने का हथियार बन गई है. इस के पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने सभी अदालतों को चेतावनी दी थी कि वे यह तय करें कि घरेलू क्रूरता (डोमैस्टिक वौयलैंस) के मामलों में पति के दूर के रिश्तेदारों को बेकार में न फंसाया जाए.
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से मौजूदा कानून में संशोधन करने को कहा था. धारा 498 ए (बीएनएस की धारा 85 और 86) पर अकसर सवाल उठते रहे हैं. माना जाता है कि इन का इस्तेमाल औरतें अपने पति और ससुराल वालों को आपराधिक मामलों में फंसाने के लिए करती हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने घरेलू विवाद में झूठे मुकदमों में फंसाने पर चिंता जताई. कोर्ट ने कहा कि ऐसे झूठे मुकदमों से भले ही वे बरी हो जाएं, लेकिन जो जख्म उन्हें मिलते हैं, वे कभी नहीं भर सकते.
अगस्त में बॉम्बे हाईकोर्ट ने 498ए के गलत इस्तेमाल पर चिंता जाहिर करते हुए कहा था कि दादादादी और बिस्तर पर पड़े लोगों को भी फंसाया जा रहा है. मई महीने में केरल हाईकोर्ट ने कहा था कि पत्नियां अकसर बदला लेने के लिए पति और उस के परिवार के सदस्यों के खिलाफ ऐसे मामले दर्ज करवा देती हैं.
जुलाई, 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने 498ए का गलत इस्तेमाल रोकने के लिए तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी. तब सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि जांचपड़ताल के बाद ही पुलिस गिरफ्तारी का ऐक्शन ले सकती है.
साल 2022 में भी सुप्रीम कोर्ट ने इसे ले कर कुछ निर्देश जारी किए थे. तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, अगर किसी औरत के साथ क्रूरता हुई है, तो उसे क्रूरता करने वाले लोगों के बारे में भी बताना होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पीड़ित औरत को साफ बताना होगा कि किस समय और किस दिन उस के साथ पति और उस की ससुराल वालों ने किस तरह की क्रूरता की है. केवल यह कह देने से कि उसके साथ क्रूरता हुई है, इस से धारा 498ए का मामला नहीं बनता है.
जुलाई 2022 में झारखंड हाईकोर्ट ने कहा था कि धारा 498ए को शादीशुदा औरतों को उन के पति और ससुराल वालों की क्रूरता से बचाने के लिए लाया गया था, लेकिन अब इस का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है.
कानून की धाराएं बदलीं व्यवस्था नहीं
खुदकुशी करने वाले एआई इंजीनियर अतुल सुभाष ने सुसाइड नोट में जौनपुर की फैमिली कोर्ट की जज रीता कौशिक पर सैटलमैंट कराने के बदले में 5 लाख रुपए की रिश्वत मांगने का आरोप लगाया है. उन्होने यह भी लिखा कि वहां मौजूद पेशकार 500 से 1,000 रुपए तक की घूस मुकदमे में सुविधाजनक तारीख लेने के बदले ले लेता था. इस ने एक तरह से न्याय व्यवस्था की पूरी पोल खोल दी है.
क्यों लगता है धारा 377 का आरोप
अतुल सुभाष की पत्नी निकिता ने आईपीसी की धारा 377 का इस्तेमाल भी किया है. यह धारा अप्राकृतिक यानि अननैचुरल सैक्स की वजह से लगाई जाती है.
यह धारा बताती है कि 2 बालिगों में रजामंदी से बने अप्राकृतिक संबंध अपराध हैं. ऐसा साबित होने पर 10 साल से ले कर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है. जब यह धारा लगती है तो कोर्ट जल्दी जमानत नहीं देती है. ऐसे में बदला लेने के लिए पतिपत्नी संबंधों में भी इस धारा का इस्तेमाल किया जाता है.
जमानत देने में क्या है दिक्कत
दहेज और घरेलू हिंसा के मामलों में ही कोर्ट जमानत देने में देरी करती है. दूसरे कानूनों में भी जमानत देने से कोर्ट परहेज करती है. ऐेसे में कोर्ट को नए तरीके से मुकदमों को देखना चाहिए. जमानत को ले कर भी सुप्रीम कोर्ट कई बार कह चुकी है कि जल्दी जमानत दे दी जाए. इस के बाद भी सालोंसाल जमानत नहीं मिलती है. जमानत देने में कोई दिक्कत नहीं होती है. जब फैसला हो तब सजा दें.