बंगलादेश की प्रधानमंत्री रहीं शेख हसीना का तख्ता वहां की जनता ने पलट दिया है. बताया जा रहा है कि शेख हसीना भारत में शरण ले चुकी हैं. मगर सवाल अब गहरा गया है कि बंगलादेश का अब क्या होगा?
कहते हैं न, बुरे का बुरा ही अंत होता है. बंगलादेश में तानाशाही का राज देखते ही देखते खत्म हो गया. बगावत का आगाज हुआ तो सैन्यशक्ति भी साथ छोड़ कर अलग हो गई औरप्रधानमंत्री को सिर्फ 45 मिनट का समय देश को छोड़ने के लिए दे दिया गया. यहां तक कि एक प्रधानमंत्री होने के बाद भी शेख हसीना देश को संबोधित नहीं कर पाईं.
शेख हसीना ने लोकतंत्र को जिस तरह खत्म कर के अपना वर्चस्व कायम किया था उस का हश्र यही होना था. हाल ही में बंगलादेश में आमचुनाव संपन्न हुए जिस में विपक्षी पार्टियों के नेताओं को जेल में ठूंस दिया गया और बिना विपक्ष, शेख हसीना प्रधानमंत्री बन गई थीं. दूसरी तरफ भारत ने जिस तरह शेख हसीना को मेहमान बनाया है वह नरेंद्र मोदी सरकार की कूटनीतिक विफलता की एक नजीर है. जिसे इतिहास कभी माफ नहीं करेगा क्योंकि शेख हसीना को लोकतंत्र की प्रहरी नहीं कहा जा सकता. उन का चरित्र एक तानाशाह का था.
आइए देखते हैं शेख हसीना के राजनीतिक उतारचढ़ाव को. बंगलादेश में लगातार चौथी बार और अब तक 5वीं बार प्रधानमंत्री निर्वाचित हुईं शेख हसीना को उन के समर्थक ‘आयरन लेडी’ के रूप में याद करते हैं. लेकिन अब उन के 17 साल के शासन व अंतिम कार्यकाल की तानाशाही का अंत हो गया है.
शेख हसीना ने एक समय सैन्यशासित बंगलादेश में स्थिरता प्रदान की थी. लेकिन आगे वे उसी रास्ते पर चल पड़ीं और एक ‘निरंकुश’ नेता बन कर शासन चलाने लगीं. शेख हसीना (76 वर्ष) किसी देश में सब से लंबे समय तक शासन करने वाली दुनिया की कुछ महिलाओं में से एक हैं.
बंगलादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान की बेटी
शेख हसीना का उज्ज्वल पक्ष यह है कि वे बंगलादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान की बेटी हैं. हसीना 2009 से सामरिक रूप से महत्त्वपूर्ण इस दक्षिणएशियाई देश की बागडोर संभाले हुए थीं. और 2024 की जनवरी में हुए 12वें आम चुनाव में लगातार चौथी बार प्रधानमंत्री चुनी गईं. मगर दुनिया ने देखा कि किस तरह चुनाव से पहले उन्होंने विपक्षी पार्टियों के नेताओं को जेल में डाल दिया और संवैधानिक संस्थानों पर अंकुश रखने लगीं.
यह भी एक बड़ा सच है किहसीना ने पिछले 17 सालों में दुनिया की सब से तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक राष्ट्र का नेतृत्व किया और देश के जीवनस्तर में सुधार लाईं. 1960 के दशक के अंत में शेख हसीना ढाका विश्वविद्यालय में अपनी पढ़ाई के दौरान राजनीति में सक्रिय हुईं. पाकिस्तानी सरकार द्वारा अपने पिता की कैद के दौरान उन्होंने उन के राजनीतिक संपर्क सूत्र के रूप में कार्य किया. बंगलादेश को 1971 में पाकिस्तान से स्वतंत्रता मिलने के बाद उन के पिता मुजीबुर रहमान देश के राष्ट्रपति और फिर प्रधानमंत्री बने. हालांकि, अगस्त 1975 में मुजीबुर रहमान, उन की पत्नी और उन के 3 बेटों की सैन्य अधिकारियों द्वारा उन के घर में ही हत्या कर दी गई.
हसीना और उन की छोटी बहन शेख रेहाना विदेश में थीं, इसलिए बच गईं. हसीना ने भारत में 6 साल निर्वासन में बिताए, बाद में उन्हें उन के पिता द्वारा स्थापित पार्टी अवामी लीग का नेता चुना गया. शेख हसीना 1981 में स्वदेश लौट आई थीं. बंगलादेश में 1991 के आम चुनाव में हसीना के नेतृत्व वाली अवामी लीग बहुमत हासिल करने में विफल रही. उन की प्रतिद्वंदी बीएनपी की खालिदा जिया प्रधानमंत्री बनीं. 5 साल बाद, 1996 के आम चुनाव में आखिर हसीना प्रधानमंत्री चुनी गईं.
हसीना को 2001 के चुनाव में सत्ता से बाहर कर दिया गया था, लेकिन 2008 के चुनाव में वे भारी जीत के साथ सत्ता में लौट आईं. 2004 में एक दफा हसीना की हत्या की कोशिश की गई थी जब उन की रैली में एक ग्रेनेड विस्फोट हुआ था. हसीना ने 2009 में सत्ता में आने के तुरंत बाद 1971 के युद्ध अपराधों के मामलों की सुनवाई केलिए एक न्यायाधिकरण की स्थापना की. न्यायाधिकरण ने विपक्ष के कुछ वरिष्ठ नेताओं को दोषी ठहराया, जिस के कारण हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए. इसलामिस्ट पार्टी और बीएनपी की प्रमुख सहयोगी जमात ए इसलामी को 2013 में चुनाव में भाग लेने से प्रतिबंधित कर दिया गया था. बीएनपी प्रमुख खालिदा जिया को भ्रष्टाचार के आरोप में 17 साल की जेल की सजा सुनाई गई थी.
बीएनपी ने 2014 के चुनाव का बहिष्कार किया था, लेकिन 2018 में वह चुनाव में शामिल हुई. इस चुनाव के बारे में बाद में पार्टी नेताओं ने कहा, यह एक गलती थी और आरोप लगाया कि मतदान में व्यापक धांधली और धमकी दी गई थी. अब जब शेख हसीना भारत आ गई हैं, दूसरी तरफ बंगलादेश आगे कब लोकतंत्र के रास्ते पर आएगा, यह समय बताएगा मगर एक संदेश दुनिया में चला गया कि तानाशाही का आखिरकार अंजाम यही होता है. मगर अब सब से बड़ा सवाल यह है कि एक बार फिर भारत में शरणार्थी बन कर शेख हसीना का अवतरण हुआ है, क्या इसे बंगलादेश की नई लोकतांत्रिक सरकार और दुनिया सकारात्मक दृष्टि से देखेगी या फिर…
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