मुसलिम रूढ़िवादी देश सोमालिया जहां औरतें सिर से पांव तक नकाब में लिपटी होती हैं वहां रैंप पर जिस्म उघाडू पोशाक में कैटवौक की कल्पना करना मुश्किल है, मगर औरतों ने इसे मुमकिन कर दिखाया.

 

15 जुलाई की रात जब 2024 यूरो कप का फाइनल मुकाबला इंगलैंड और स्पेन के बीच बर्लिन के ओलम्पिया स्टेडियम में खेला जा रहा था और पूरी दुनिया अपने घरों में टीवी स्क्रीन में मुंह घुसाए बैठी थी, उस समय मुसलिम देश सोमालिया में 2 घटनाएं एकसाथ घटीं. पहली सोमालिया की राजधानी मोगादिशु के समुद्रतट पर बने एक होटल में सौंदर्य प्रतियोगिता और दूसरी उस होटल से मात्र एक किलोमीटर की दूरी पर टौप कौफ़ी रैस्टोरैंट के बाहर हुआ कार बम धमाका जिस में 5 लोग मारे गए और 20 से ज्यादा घायल हुए.

सोमालिया एक ऐसा मुसलिम देश है जो जीवन की विखंडित प्रकृति को उजागर करता है. उग्रवादी इसलामी समूह अलशबाब, जो वहाबी इसलाम का समर्थक है और जिस ने 15 वर्षों से अधिक समय से सोमालिया के अधिकांश भाग पर नियंत्रण कर रखा है, का मकसद सोमालिया सरकार को जड़ से उखाड़ फेंकना है. अलशबाब का पूरा नाम हरकत अलशबाब अलमुजाहिदीन है. यह चरमपंथी गुट वर्ष 2006 में अस्तित्व में आया था और इस ने कई आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया. अमेरिका ने 2008 में अलशबाब को एक दुर्दांत आतंकी संगठन घोषित किया था. वर्ष 2012 में अलकायदा में इस का विलय हो गया था. अलशबाब अरबी भाषा का शब्द है, जिस का अर्थ है ‘युवावस्था या तरक्की का दौर’. लेकिन यह अपने नाम से बिलकुल उलट सोमालिया की तरक्की में लगातार बाधा बन रहा है. सोमालिया में सौंदर्य प्रतियोगिता के वक़्त हमले की जिम्मेदारी इसी गुट ने ली.

अलशबाब की गिनती दुनिया के खतरनाक आतंकी संगठनों में होती है. इस का नाता पाकिस्तानी आतंकी संगठन अलकायदा, नाइजीरिया के बोको हरम और आईएसआईएस जैसे आतंकी संगठनों के साथ भी माना जाता है. इस संगठन में कई खूंखार और खतरनाक आतंकवादी हैं. इस के कई आतंकियों पर करोड़ों डौलर का इनाम घोषित है. ये ऐसे आतंकी हैं जो आत्मघाती हमलों को भी अंजाम देने के लिए तैयार रहते हैं. यानी, इन्हें फर्क नहीं पड़ता कि हमले में इन की जान चली जाए. अपने मकसद के लिए ये किसी भी हद तक गुजरने को तैयार होते हैं.

ऐसे में आतंकवादियों से भरे और सांस्कृतिक रूप से रूढ़िवादी देश सोमालिया में स्त्री सौंदर्य प्रतियोगिता करवाना एक बहुत बड़े साहस का काम है. जहां औरतें सिर से पांव तक नकाब में लिपटी होती हैं वहां रैंप पर जिस्मउघाडू पोशाक में कैटवौक की कल्पना करना मुश्किल है, मगर औरतों ने इसे मुमकिन कर दिखाया.
गौरतलब है कि सोमालिया नियमित रूप से महिलाओं के लिए दुनिया की सब से खराब जगहों की सूची में सब से ऊपर रहा है. लेकिन जिस तरह पाकिस्तान के ख़ैबरपख़्तूनख़्वा प्रांत के स्वात जिले में स्थित मिंगोरा शहर की मलाला यूसुफजई ने 11 वर्ष की नन्ही सी उम्र में स्वात पर क्रूर और रूढ़िवादी तालिबान के कब्जे के दौरान स्त्रीजीवन की हकीकत को उजागर करने के लिए छद्म नाम गुल मकाई के तहत ब्लौग लिखने की शुरुआत की थी और 17 साल की उम्र तक पहुंचतेपहुंचते अपनी मातृभूमि स्वात में महिलाओं व बच्चों की शिक्षा के लिए एक मशाल बन गई थी, बिलकुल वैसे ही सोमालिया में इसलामी कट्टरवाद को ललकारते हुए हनी आब्दी गैस ने 2021 में मिस सोमालिया प्रतियोगिता की शुरुआत की थी.

हनी आब्दी गैस केन्या के दादाब शरणार्थी शिविर में पलीबढ़ी, जहां हज़ारों अन्य सोमालियाई लोग युद्ध और सूखे से बच कर भागे थे व शरणार्थी के रूप में रह रहे थे. गैस 2020 में अपने वतन लौट आईं. महिलाओं की मुक्ति के लिए गैस लगातार काम कर रही हैं और इस सौंदर्य प्रतियोगिता के आयोजन का मकसद भी महिलाओं की आवाज को उठाना और उन्हें धार्मिक कट्टरता व अलगाव से बाहर निकालना है. गैस मानती हैं कि इस तरह की प्रतियोगिताओं से एकता और सशक्तीकरण को बढ़ावा मिलता है.

गैस चाहती हैं कि सोमालिया की औरतें भी बाकी दुनिया के साथ विश्व स्तर पर होने वाली सौंदर्य प्रतियोगिताओं में शामिल हों. वे अलगअलग पृष्ठभूमि से आने वाली महिलाओं की आकांक्षाओं और उन के सपनों का जश्न मनाना चाहती हैं. उन के अंदर आत्मविश्वास बढ़ाना चाहती हैं और दुनियाभर में सोमाली संस्कृति की पहचान कायम करना चाहती हैं. उन के इस मकसद से सैकड़ों सोमाली महिलाएं जुड़ चुकी हैं. जान कर आश्चर्य होता है कि उस रात रैंप पर अपने सौंदर्य का जलवा बिखेरने वाली महिलाओं में एक महिला पुलिसकर्मी भी शामिल थी.

इस सौंदर्य प्रतियोगिता का ताज आइशा इकोव नाम की सुंदरी के सिर सजा. आइशा विश्वविद्यालय की स्टूडैंट हैं और साथ ही, मेकअप कलाकार भी हैं. उन्होंने इस प्रतियोगिता में दक्षिणपश्चिम राज्य का प्रतिनिधित्व किया था. 24 वर्षीया आइशा इकोव ने उस रात भड़कीला, चुस्त और उभारों को रेखांकित करने वाला फुल आस्तीन का सुनहरा गाउन पहना था. उन के साथ अन्य प्रतियोगियों के गाउन भी कुछ ऐसे ही भड़कीले व शरीर के कर्व्स को उजागर करने वाले थे, जो आमतौर पर सोमाली महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले गहरे, उदास रंग के वस्त्रों और नकाब से बिलकुल उलट थे.

आइशा इकोव ने जब प्रतियोगिता में जीत का ताज अपने सिर पर पहना तो उन का पहला वाक्य जो हौल में गूंजा, वह था- “मैं इस उपलब्धि का इस्तेमाल कम उम्र में महिलाओं के होने वाले विवाह के ख़िलाफ़ लड़ने और लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने के अवसर के रूप में करूंगी.”

उन्होंने कहा- ”यह प्रतियोगिता महिलाओं के उज्ज्वल भविष्य को न केवल आकार देती है बल्कि सोमाली संस्कृति व सुंदरता का जश्न भी मनाती है.”

जाहिर है, सोमालिया में औरतें इसलामी कट्टरवाद से निकलने के लिए छटपटा रही हैं. वे घरों से बाहर निकल कर पढ़ना चाहती हैं, काम करना चाहती हैं. सिर्फ मर्दों के बिस्तर सजाने और उन के बच्चे पालने की त्रासदी से वे अब उबरना चाहती हैं. वे अपनी काबिलीयत का प्रदर्शन करना चाहती हैं और अपने मुल्क को उन तरक्कीपसंद मुल्कों के बराबर खड़ा करने के लिए लालायित हैं जो धार्मिक कट्टरता की बेड़ियां तोड़ कर विज्ञान के रास्ते पर हैं.

गौरतलब है कि धार्मिक कट्टरता का जुल्म सब से ज्यादा औरतें सहती हैं. औरत धर्म की सब से आसान शिकार है. धर्म कोई हो- हिंदू, मुसलिम, ईसाई, उस को ढोने व उस के रीतिरिवाज निभाने का काम औरत के जिम्मे जबरन डाला गया है. वह न करे तो मारीपीटी जाए, जलील की जाए, उस के साथ सामूहिक बलात्कार हो या उसे पत्थर मारमार कर मौत की नींद सुला दिया जाए. हर धर्म में औरत को ही नकाब, घूंघट, स्कार्फ जैसे परदों में लपेट कर उस से जबरन धार्मिक कृत्य कराए जाए हैं. धर्म के जरिए उस को मर्दों का गुलाम बनाया जाता है जो उस के गोश्त के साथसाथ उस की आत्मा तक नोच डालें. तो जो सब से ज्यादा पीड़ित है वही एक दिन सब से ज़्यादा विस्फोटक हो सकता है. यही हो रहा है सोमालिया में.

संयुक्त राष्ट्र के लैंगिक असमानता सूचकांक में सोमालिया नीचे से चौथे स्थान पर है. इस देश में लगभग 52 फीसदी महिलाओं को लैंगिक हिंसा का सामना करना पड़ता है. वहीं करीब 98 फीसदी महिलाएं खतना जैसी क्रूर प्रथा से गुज़रती हैं. सोमालिया में जब कोई पुरुष किसी महिला के साथ बलात्कार करता था, तो परंपरागत रूप से उस की ‘सज़ा’ यह होती थी कि उसे उस महिला से शादी करनी होती थी, जिस का उस ने यौन उत्पीड़न किया है. वीभत्स!

अमेरिका समर्थित सरकार होने के बावजूद बलात्कार और महिलाओं के खिलाफ अन्य प्रकार के दुर्व्यवहार के प्रति उन के दृष्टिकोण में बहुत अधिक बदलाव देखने को नहीं मिला है. स्वघोषित गणराज्य सोमालीलैंड में धार्मिक नेताओं ने 2018 के यौन अपराध कानून के पारित होते ही उसे रद्द कर दिया था. कानून का संशोधित संस्करण भी महिलाओं को बाल विवाह, जबरन विवाह, बलात्कार या अन्य प्रकार के यौनशोषण से सुरक्षा प्रदान नहीं करता है. ऐसे में अपनी मुक्ति की राह महिलाओं को स्वयं बनानी है, जिस के लिए वे धीरेधीरे सिर उठा भी रही हैं.

मुसलिम देशों में धार्मिक कट्टरता अधिक रही है. कोई कैसे जिए, कैसे कपड़े पहने, कैसे अपने जीवन के फैसले ले, ये फैसले कठमुल्लाओं ने अपने हाथों में ले रखे हैं बिलकुल वैसे ही जैसे भारत में पंडेपंडितों ने एक मनुष्य के जन्म से ले कर उस की मृत्यु तक हर सांस को धर्म की बेड़ियों में जकड़ रखा है. अभी तक दुनिया के अधिकांश मुसलिम देश अपनी जमीन में मौजूद तेल की बदौलत जीवित थे. उन का कट्टरवाद इसी तेल की कमाई पर सदियों तक फलाफूला और मजबूत हुआ. मगर अब धीरेधीरे मुसलिम देशों के पास यह तेल कम होता जा रहा है. कट्टरवाद को जीवित रखने के लिए एक तरफ उन्हें हथियार चाहिए तो दूसरी तरफ अवाम का पेट भरने के लिए रोटी. मगर दुनिया के दूसरे अमीर देश जो धार्मिक कट्टरता और आतंकवाद के खिलाफ हैं, मुसलिम देशों को तब तक कोई मदद नहीं देंगे जब तक वे अपनी धार्मिक कट्टरता को कम नहीं करेंगे. यह बात बहुतेरे मुसलिम देश अब समझने भी लगे हैं और खुद को बदलने की दिशा में उन्होंने काम शुरू कर दिया है. क्योंकि पेट के दावानल के आगे धर्म की आग छोटी मालूम पड़ती है. सऊदी अरब, इंडोनेशिया, क़तर जैसे मुसलिम देश अब काफी उदार और आधुनिक हो चुके हैं. उन्हें पश्चिमी देशों की तरक्की ने भयभीत किया और जल्दी ही उन की समझ में आ गया कि इस से पहले कि धर्म के लबादे उन का गला घोंट दें, इसे उतारने में ही भलाई है.

आज दुबई जैसा कठोर इसलामिक देश बड़ीबड़ी इमारतों, चमकते बीच, बड़ी गाड़ियां, कैसीनो, ख़ूबसूरत रैस्तरां और सोने के जेवरों से लदी खूबसूरत औरतों का देश बन चुका है. दुनियाभर के अमीर दुबई में संपत्तियां खरीद रहे हैं. वहां तरक्की के नित नए द्वार खुल रहे हैं क्योंकि वहां धर्म का बोलबाला कम हुआ है. आज आधुनिक दुबई संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) का सब से ज्यादा आबादी वाला शहर है और मध्यपूर्व का एक प्रमुख व्यापार केंद्र है. दुबई की अर्थव्यवस्था पर्यटन, विमानन, रियल एस्टेट और वित्तीय सेवाओं पर आधारित है. यह शहर अपनी ऊंची इमारतों और गगनचुंबी इमारतों के लिए भी जाना जाता है, जिन में से सब से ऊंची इमारत बुर्ज खलीफा भी है. दुबई ने हाल ही में कई बड़ी निर्माण परियोजनाओं और खेल आयोजनों के ज़रिए भी दुनिया का ध्यान खींचा है.

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