सबरीमाला मंदिर में मासिक धर्म के दौरान महिलाएं प्रवेश नहीं कर सकती यह मुकदमा तीन दशक तक चला था. तब कहीं जा कर सुप्रीम कोर्ट ने 28 सितंबर, 2018 को यह फैसला दिया था कि सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का बहिष्कार असंवैधानिक है. तब विवाद या धार्मिक एतराज इस बात को ले कर था कि 10 से 50 साल तक की महिलाएं मासिक धर्म से होती हैं इसलिए उन्हें मंदिर में प्रवेश नहीं दिया जाना चाहिए.

तब सब से बड़ी अदालत के अलावा देशभर के बुद्धिजीवी वर्ग में संविधान के अनुच्छेद 14 के आलावा जो शब्द चर्चा में रहे थे वे पवित्रता, अशुद्धि, वगैरह थे. मामला महिलाओं के लिहाज से अहम था जिस में धर्म, परंपराओं, बंदिशों, संस्कृति, प्रथाओं जैसे विषयों पर कई तारीखों में व्यापक चर्चा हुई थी.

कोलकाता हाई कोर्ट की हद

इस मामले पर अब भी यदाकदा चर्चा होती रहती है. लेकिन आजकल कोलकाता हाई कोर्ट का एक फैसला चर्चा में है जिस में उस ने कहा है कि कम उम्र की लड़कियों को अपनी यौन इच्छाएं कंट्रोल में रखनी चाहिए और 2 मिनिट के सुख के लिए अपनी गरिमा से समझौता नहीं कर लेना चाहिए. बकौल हाई कोर्ट के जस्टिस चितरंजन दास एवं जस्टिस पार्थ सारथी, जब वे 2 मिनट के सुख के लिए खुद को सौंप देती हैं तो समाज की निगाह में लूजर हो जाती हैं.

लड़कियों को ले कर अदालत की कुंठा ने और विस्तार लेते हुए यह भी कहा कि युवा लड़के लड़कियों समझना चाहिए कि यौन इच्छाएं खुद की तमाम गतिविधियों से पैदा होती हैं. ये नौर्मल नहीं हैं. युवाओं को हर हाल में इन्हें काबू में रखना चाहिए ताकि वे किसी गलत स्थिति में या किसी कानूनी पचड़े में न पड़ें.

सुप्रीम कोर्ट की फटकार

इस हैरान और सकते में डाल देने वाले फैसले पर अच्छी बात यह है कि किसी को सुप्रीम कोर्ट नहीं जाना पड़ा जिस ने 8 दिसंबर को खुद संज्ञान लेते हुए कोलकाता हाई कोर्ट को फटकार लगा दी कि जजों को अपनी राय नहीं व्यक्त करनी चाहिए. ऐसा आदेश किशोर वय के अधिकारों का हनन है. नाबालिग लड़की के एक दोस्त से रोमांटिक अफेयर पर हाई कोर्ट ने दोषी को बरी भी कर दिया था इसे भी सुप्रीम कोर्ट ने अनुचित माना.

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय श्रीनिवास ओका और जस्टिस पंकज मिथल ने हाई कोर्ट की इस टिप्पणी को गैरजरूरी और आपत्तिजनक बताते हुए कहा कि जजों से यह अपेक्षा नहीं की जाती कि वे उपदेश दें.

उपदेशों का हाल तो यह है कि

मामला अभी आयागया नहीं हुआ है, जिस पर दुखद बात समाज की उदासीनता और जानबूझ कर की गई अनदेखी रही जिस से लगता है कि हम तेजी से पौराणिक होते माहौल के गुलाम होते जा रहे हैं. 18 अक्तूबर, 2023 को कोलकाता हाई कोर्ट ने यह फैसला सुनाया था जिस पर किसी के कान पर जागरूकता, संवैधानिक अधिकारों या नारी स्वतंत्रा की जूं नहीं रेंगी और आखिरकर खुद सुप्रीम कोर्ट को ही संज्ञान लेना पड़ा.

बात जहां तक उपदेशों की है तो देश में उन्हीं का दौर है, खासतौर से लड़कियों और उन की आजादी के मामलों में तो धर्म के पैरोकारों ने मुहिम सी छेड़ रखी है. सोशल मीडिया पर उन के फैशन, नौकरी, प्यार और शादी करने के तौरतरीकों तक पर एतराज जताया जाता है.

सैक्स पर हालात या ताजी मानसिकता क्या है इस की एक बानगी करवाचौथ के दिन एक भगवानवादी वैबसाइट पर देखने में आई जिस में नसीहत दी गई थी कि धर्म को जानने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि करवाचौथ व्रत के दिन दंपति को शारीरिक संबंध नही बनाने चाहिए यहां तक कि इस प्रकार के विचार भी अपने दिमाग में नहीं आने देना चाहिए. इस प्रकार के कामों को व्रत में वर्जित माना गया है. हिंदू धर्म ग्रंथों में यह भी लिखा है कि चाहे व्रत कोई भी हो करवाचौथ तीज या नवरात्रि का महापर्व, इन दिनों में किसी भी पुरुष या स्त्री के मन में गलत विचार रखना गलत होता है इस से वैवाहिक जीवन को नुकसान होता है.

मुहूर्त देख कर करें सैक्स

इस तरह का प्रचारप्रसार कोई नई या अनूठी बात नही है क्योंकि धर्म कोई भी हो वह लोगों को अपने हिसाब से हांकना चाहता है जिस से उस का नियन्त्रण समाज पर बना रहे और दुकान फलतीफलती रहे. धर्म तो सहवास के मुहूर्त भी बताता है. इतनी बंदिशें खासतौर से महिलाओं पर धर्म ने सैक्स को ले कर थोप रखी हैं कि उन का सैक्स करना ही दूभर हो जाए.

कोलकाता हाई कोर्ट का फैसला इसी माहौल की झोंक की देन लगता है. नहीं तो कोई वजह नहीं है कि वह संविधान का उल्लंघन करते फैसला दे, राज धार्मिक टाइप के लोगों का है समाज पर कब्जा उन्हीं का है, घरों के बेडरूम तक में उन का दखल बढ़ रहा है. पूजापाठ, पाखंड व शबाब पर हैं. ऐसे में कोर्ट अगर अदालतें भी बहकने लगें तो फिर देश का भगवान ही मालिक है.

सबरीमाला के फैसले से जो उम्मीद महिलाओं को बंधी थी वह फिर खतरे में है. सुप्रीम कोर्ट की पहल स्वागत योग्य है लेकिन बड़ा दोष उन लोगों का है जो बात बात पर हल्ला मचाते रहते हैं. लेकिन बात लड़कियों की आजादी पर बंदिश की आती है तो धर्म के साथ हो लेते हैं. यही लोग चाहते हैं कि लड़कियां नौकरी कर पैसे तो ला कर दें लेकिन घूमेफिरें नहीं. लड़कों से दोस्ती न करें, शादी पेरेंट्स की मर्जी से करें, सैक्स तो बिलकुल न करें और घर में गाय की तरह बंधी रहें. अब अगर धर्म और अदालत भी ऐसा ही कहने लगे हैं तो ये तो मुंह में दही जमा कर रखेंगे ही.

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