आज विज्ञान लगातार नएनए आविष्कार कर रहा है. कुछ सालों पहले जो हमारी कल्पना से परे था आज के इस दौर में वो सब विज्ञान की बदौलत मुमकिन हो रहा है. यह कुछ लोगों के लिए वरदान सिद्ध हुआ है तो कुछ इस का नाजायज फायदा उठा रहे हैं.

सेरोगेसी भी एक ऐसी ही खोज है जिस के जरिए आज बांझ महिला भी मां बनने का सुख प्राप्त कर सकती है. आजकल कम उम्र में ही महिलाओं को गंभीर बीमारियां- ब्रेस्ट कैंसर, सर्विक्स कैंसर या बच्चेदानी में खराबी जैसी कई परेशानियां हो जाती है. कई बार वे ऐसी बीमारियों से तो उभर जाती हैं लेकिन उन की मां बनने की ख्वाहिश अधूरी रह जाती है.

आमतौर पर सेरोगेसी को किराए की कोख के नाम से भी जाना जाता है. जो लोग  मातापिता बनने के सुख से वंचित रह जाते हैं वे इस के जरिए संतानप्राप्ति का सुख पा सकते हैं. इस प्रक्रिया में महिला किसी अन्य कपल के बच्चे को अपने कोख में पालती है और उसे जन्म देती है. इसी प्रक्रिया से पैदा हुए बच्चे को सेरोगेट बेबी कहते हैं और जन्म देने वाली महिला को सरोगेट मां कहा जाता है.

ट्रेडिशनल सेरोगेसी में सेरोगेट मदर ही बायोलौजिकल मदर होती है. इस में पिता का स्पर्म और सेरोगेट मदर के एग को मिलाया जाता है. फिर, डाक्टर कृत्रिम तरीके से इसे सेरोगेट महिला के गर्भाशय में डाल देते हैं. इस से जन्मे बच्चे का बायोलौजिकल रिश्ता पिता से होता है लेकिन यदि स्पर्म डोनर का प्रयोग किया जाता है तो पिता का भी बच्चे से बायोलौजिकल रिश्ता नहीं होता.

जेस्टेशनल सेरोगेसी में सेरोगेट मदर का एग इस्तेमाल नहीं होता, इसलिए बच्चे से उस का बायोलौजिकल रिश्ता नहीं होता. इस में संतान चाहने वाले पुरुष और महिला के स्पर्म व एग को टैस्ट-ट्यूब तरीके से मिला कर भ्रूण तैयार किया जाता है और उसे कृत्रिम तरीके से सेरोगेट मदर के गर्भाशय में डाला जाता है. इस प्रक्रिया से जन्मे बच्चे का संबंध कपल से होता है. अब आते हैं इस की नियमावली पर.

सेरोगेसी मातृत्व सुख पाने के लिए वरदान है लेकिन समाज के कुछ वर्गों को यह रास नहीं आया तो कुछ लोगों ने इस का गलत फायदा भी उठाया. कुछ ऐसे मामले भी सामने आए कि दंपती ने बच्चे को अपनाया नहीं या सेरोगेट मां ने ही बच्चे को देने से इनकार कर दिया. वहीं, कुछ कपल्स बौडी खराब होने से बचने के लिए सेरोगेसी का सहारा लेने लगे. पहले से बच्चे होने के बाद भी सेरोगेसी से बच्चे किए.

इन वजहों से सख्ती करने का फैसला हुआ और कैबिनेट ने सेरोगेसी पर 2022  में कानून बना दिया जिस के चलते दिल्ली में सेरोगेसी के लिए उपराज्यपाल औफिस ने सभी 11 जिलों में मैडिकल बोर्ड बनाने की मंजूरी दे दी है. कानून के बनने से जरूरतमंद कपल्स को अब काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है. इस के लिए 5 तरह के प्रमाण की जरूरत है. सेरोगेसी का सहारा लेने वाले कपल के पास प्रमाण होना चाहिए कि वे मातापिता नहीं बन सकते.

मातापिता बनने कि चाह रखने वाली महिला की उम्र 50 से कम और पुरुष की उम्र 55 से कम होनी चाहिए. पहले से जीवित बच्चा नहीं हो या जीवित बच्चा किसी गंभीर जानलेवा बीमारी से पीड़ित हो तभी यह सर्टिफिकेट मिलेगा. यदि पहले से कोई बच्चा अडौप्ट किया हुआ है तो वह कपल सेरोगेसी का सहारा नहीं ले सकता.

वहीं, सरोगेट बनने वाली महिला फिजिकली फिट हो, उम्र 25 से 35 के बीच हो, पति भी इस के लिए तैयार हो और पहले नौर्मल डिलीवरी हुई हो और 3 बार से ज्यादा मां न बनी हो. सेरोगेट बनने वाली महिला का हौस्पिटल का खर्च, मैडिसिन, फूड, ट्रैवल आदि का खर्च कपल्स को ही उठाना पड़ेगा और किसी प्रकार का लेनदेन अमान्य है.

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