महज 21 वर्ष की उम्र में श्याम बेनेगल की फिल्म ‘‘सरदारी बेगम’’ में अभिनय कर सर्वश्रेष्ठ सह अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार पा जाने वाली अभिनेत्री राजेश्वरी सचदेव की सबसे बड़ी खुशकिस्मती यह रही कि उन्हे फिल्म हो या टीवी सीरियल हर जगह श्याम बेनेगल व बासु चटर्जी जैसे नामचीन व उत्कृष्ट निर्देशकों के साथ काम करने का अवसर मिला. यह वह दौर था, जब माना जाने लगा था कि श्याम बेनेगल की फिल्म या सीरियल है तो राजेश्वरी सचदेव का होना अनिवार्य है.  जबकि राजेश्वरी सचदेव दूसरे निर्देशकों के साथ भी काम किया.

मसलन-‘सूरज का सातवां घोड़ा’’ करने के बाद राजेश्वरी सचदेव ने बर्नार्डो बर्टोलुसी के निर्देशन में अंग्रेजी भाषा की फिल्म ‘‘लिटिल बुद्धा’’ की. फिर बासु चटर्जी के निर्देशन में ‘त्रिया चरित्र’ की. मेजर कौल के निर्देशन में ‘परमवीर चक्र’, प्रवीण निश्चल की ‘‘इंग्लिश बाबू देसी मेम’’, परेश कामदार की ‘टुन्नू की टीना’ वगैरह वगैरह . . .

वास्तव में राजेश्वरी सचदेव ने खुद को किसी बंदिश में नही बांधा. वह सिर्फ अच्छे किरदार निभाने पर ही जोर देती आयी हैं. तभी तो जब मनीश तिवारी ने उन्हे फिल्म ‘‘चिड़ियाखाना’’ में सिंगल मदर का किरदार सौंपा तो उन्होने उसे भी निभाया, जो कि दो जून को प्रदर्शित हुई.

प्रस्तुत है राजेश्वरी सचदेव से हुई बातचीत के अंश. . .

सुना है आपने बहुत छोटी उम्र से ही अभिनय करना शुरू कर दिया था?

-सच तो यही है. क्योंकि मेरा जन्म ही कला जगत से जुड़े परिवार में हुआ था. मेरे पिता अपनी नौकरी करने के साथ ही थिएटर व फुटबाल के खेल से जुड़े हुए थे. मेरी मां ने मुझे पांच साल की उम्र से ही भरत नाट्यम सिखवाना शुरू कर दिया था. मेरी नृत्य की शिक्षा राज राजेश्वरी डांस स्कूल में चल रही थी. पर मैं दो तीन माह में ही बोर हो गयी. क्योंकि इतने वक्त में वह हमें सिर्फ बैठना ही सिखा रही थी. मतलब नींव मजबूत कर रही थी. तो मैने डांस क्लास में न जाने के लिए बहाने शुरू किए. पर मेरी मां के सामने कोई बहाना काम न आता. मैं आज भी अपनी मां का शुक्रिया अदा करती हूं कि उन्होंने उस वक्त मुझे जबरन डांस क्लास में भेजा. फिर चैदह साल लगातार डांस किया. दसवीं कक्षा में मैने पिता जी से कहा कि अब मेहनत ज्यादा करनी है तो डांस क्लास नही जाती. मेरे पिता जी ने कहा-‘‘आप 24 घंटे नही पढ़ सकती. एक घंटा डांस सीखकर अपना माइंड फ्रेश करके आओ. मुझे मेरे परिवार का सपोर्ट मिला और ‘पुश’ भी मिला. मेरे पिता जी अपने दूसरे काम के साथ ही शौकिया ‘इप्टा’ से जुड़कर नाटक किया करते थे. शाम को नाटक की रिहर्सल में मैं और मेरा भाई अपने पिताजी के साथ जाया करते थे. हमें मजा आता था. पर माहौल तो हमें मिलता ही था. उस वक्त मेरे पिताजी ने नही सोचा था कि मैं क्या करुंगी. पर वह हमें हर तरह का अनुभव दे रहे थे. इसी तरह मैं खेल से भी जुड़ी हुई थी. हमारी एथलेटिक ट्रेनिंग भी होती थी. इस बीच हम कैफी आजमी द्वारा शुरू किए गए ‘इप्टा बाल मंच’ में नाटक करने लगे थे. एम एस सथ्यू के साथ ‘बकरी’ किया. उससे पहले शबाना आजमी के नाटक ‘‘सफेद कुंडली’ में भीड़ का हिस्सा हुआ करती थी. उन दिनों मुझे पृथ्वी थिएटर में जाने में आनंद आता था.

बचपन की बात अलग थी. पर समझदार होने के बाद अभिनय की शुरूआत कैसे हुई?

-घर बैठे हो गयी. पंद्रह साल की उम्र में मराठी फिल्म ‘‘अयात्या घरात घरोबा’’ में अभिनय किया था. हाई स्कूल की परीक्षा खत्म होते ही मुझे मराठी फिल्म ‘‘अयात्या घ्रात घरोबा’’ में सचिन व प्रशांत दामले जैसे दिग्गज कलाकारों के साथ काम करने का अवसर मिला. इसके लिए मुझे महाराष्ट् राज्य की तरु से सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार भी मिला. प्रशांत दामले सहित कई दिग्गज कलाकारों के साथ काम करने का अवसर मिला था. इस फिल्म के रिलीज से पहले ही मुझे मशहूर निर्देशक श्याम बेनेगल की फिल्म ‘‘सूरज का सातवां घोड़ा’’ में अभिनय करने को मिला. फिल्म सफल हो गयी. फिर मैने अंग्रेजी फिल्म ‘‘लिटिल बुद्धा’’ की.  फिर 1996 में श्याम बेनेगल के निर्देशन में फिल्म ‘‘सरदारी बेगम’’ की. इस फिल्म ने मुझे सर्वश्रेष्ठ सह अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार दिला दिया. उसके बाद मैने श्याम बेनगल के साथ हर फिल्म व सीरियल किए. दूसरे फिल्मकारों के साथ भी काम किया और लगातार काम करती जा रही हॅू.

आपने श्याम बेनेगल की हर फिल्म में अभिनय किया. इसकी कोई खास वजह?

-इसका सही जवाब तो श्याम बेनेगल अंकल ही दे सकते हैं कि वह मुझे अपनी हर फिल्म का हिस्सा क्यों बनाते रहे. मैं तो यही मानकर चलती रही हूं कि मैं अच्छा काम करती हूं. इसलिए वह मुझे हर फिल्म का हिस्सा बनाते हैं. मैं खुद को लक्की मानती हूं कि मैने उनके साथ काफी काम किया और एक वक्त ऐसा भी आया जब मैं मान चुकी थी कि उनकी हर फिल्म में मैं रहूंगी. वह मुझसे जो कहेंगे मैं कर लूंगी. ‘सूरज का सातवंा घोड़ा’ के बाद ‘मम्मो’ में एक छोटा सा किरदार दिया था, जिसमें मैं पुरानी अभिनेत्री का गाना गुनगुनाते हुए गुजर जाती हूं. ‘सरदारी बेगम’ के वक्त मेंरे दो तीन किरदार बदल गए थे. पर जो किरदार निभाया, उसने मुझे राष्ट्ीय पुरस्कार दिला दिया. जबकि मैने यह बात सपने में भी नही सोचा था.

कैरियर की शुरूआत और छोटी उम्र में ही राष्ट्रीय पुरस्कार मिलना आपके लिए क्या मायने थे?

-मुझे एक रात पहले पता चला था तो मुझे यकीन ही नही हुआ. फिर मैने कहा कि कल तक बदल तो नहीं जाएगा. खैर, मैं बहुत एक्साइटेड थी. बहुत खुशी मिली थी.

एक निर्देशक के साथ लंबे समय तक काम करते हुए आप निर्देशक की सोच, समझ व कार्यशैली से परिचित हो जाती हैं और निर्देशक आपके कमजोर व सकारात्मक पक्ष को समझ जाता है. ऐसे में मोनोटोनस वाली चीज नही आती?

-कभी नही. श्याम बेनेगल अपने कलाकार को पूरी छूट देते हैं. वह कलाकार से कभी नही कहते कि ऐसा करो. मैंने उनके साथ लगभग हर फिल्म में अलग अलग किरदार निभाए हैं. पर उन्होने मुझसे कभी यह नही कहा कि मुझे ऑडीशन देना होगा. वह कलाकार में जो यकीन दिखाते हैं, वह कलाकार को अंदर से कुछ अलग करने के लिए उकसाता है. मुझे फिल्म ‘हरी भरी’ का वक्त याद आ रहा है. मैं उनसे मिलने गयी तो उन्होने कह दिया कि इस फिल्म में तुम्हारे लायक कोई किरदार नही है. मैने कहा कि ऐसे कैसे हो सकता है?उन्होने स्क्रिप्ट रख दी और कहा बताओ कौन सा किरदार करोगी. हर किरदार उम्र के हिसाब से शबाना आजमी या अलका जी को दिए जा चुके थे. मैने कहा कि यह चौदह साल की लड़की वाला किरदार? वह मुझे कुछ देर देखते रह गए. फिर कहा , ‘जब तुम ‘सूरज का सातवां घोड़ा’ कर रही थी, उस वक्त भी 14 साल से बड़ी थी. अब दस साल बाद कैसे चौदह साल की लगोगी. मैने कहा कि मैं यह किरदार निभाउंगी. जबकि उस वक्त मेरी उम्र 26 वर्ष थी. मैं अपने हिसाब से तैयारी करके सेट पर पहुंची. राज कोठारी कैमरामैन थे. उन्होने मुझे देखते ही कहा कि इसमें कुछ कर रही हो. मैने हामी दी. वह मुस्कुराए. मैं बालों की एक चोटी बनाकर गयी थी. श्याम जी ने देखा और कहा कि दो चोटी बनाओ. क्योंकि स्कूल का सीन है. उनके साथ काम करने का आनंद यही था कि उन्हे यकीन होता था कि उनका कलाकार कर ले जाएगा. हां! ‘वेलकम टू सज्जनपुर’ में उन्होने मुझसे कहा था कि इसे कुछ इस ढंग से करके देखते हैं.

श्याम बेनेगल की कोई ऐसी खास बात जो उन्हे दूसरे निर्देशकों से अलहदा करती हो?

-वह मेंरे लिए बहुत अलग अहमियत रखते हैं. वह मेरे लिए पिता की तरह रहे. मैने उनसे कैरियर ही नहीं जिंदगी के कई मसलों पर कई बार सलाह ली है. उनके साथ हम काम करते हैं, पर हमरे बीच एक रिश्ता भी रहता है. अखिर साथ में काम करते हुए हम एक दूसरे से जुड़े होते हैं. वह सिर्फ निर्देशक नही होते हैं, वह अपने कलाकार के साथ हर कदम पर जुड़े रहते हैं. वह आपकी जिंदगी को चलाते नही है, मगर जब भी आप लड़खड़ाएं, तो वह आपकी उंगली पकड़ने को तैयार रहते हैं. मैं खुद को खुशकिस्मत मानती हूं कि मुझे खाद पानी सही मिला.

क्या आप इस बात से सहमत हैं कि कलाकार और निर्देशक के बीच अच्छी समझ हो, परिवार जैसा रिश्ता हो, तो उसका असर फिल्म पर पड़ता है?

-देखिए, जब हम काम करते हैं, उस वक्त हम पूरी तरह से प्रोफेशनल होकर ही काम करते हैं. पर जब आपसी समझ हो, तो हम कहीं न कहीं निश्चिंत तो हो ही जाते हैं. एक आत्मविश्वास बढ़ जाता है. उसी दौरान मैने बासु चटर्जी जी के साथ भी काम किया.

पर आप कलात्मक फिल्में ज्यादा करती रही?

-देखिए, उस वक्त हम अच्छे किरदार की तरफ ध्यान देते थे. हमें अच्छे किरदार मिलते गए और मैं करती रही. पर मैं डांसर भी हूं. तो मैं भी डांस करने वाले किरदार निभाना चाहती थी. लेकिन इस तरह की फिल्मों के जब आफर आए तो मैने मना किया. मुझे लगा कि इस किरदार में तो कुछ दम ही नही है. उस वक्त मुझसे कहा गया था कि एक अच्छी फिल्म पाने के लिए आपको चार बुरी फिल्में करनी पड़ेगी. जिससे आप लोागे की नजर में बने रहें. लेकिन बहुत सी चीजें आपकी अपनी पसंद व चयन पर निर्भर करती हैं. कई बार यह जरुरी नही होता कि जो आप करना चाहते हो, वह सामने से आपके पास आए. जो आपके पास आया है, उसी में से आपको चुनना होता है. मुझे हमेशा अच्छे निर्देशकों ने अपनी फिल्मों के लिए चुना. मैने हर काम को अपनी तरफ से पूरी इमानदारी के साथ किया.

आपको नहीं लगता कि श्याम बेनेगल और बासु चटर्जी के समय का सिनेमा का जो दौर था, उसमें और आज के सिनेमा के दौर में जमीन आसमान का अंतर आ चुका है?

-देखिए, कहने को सभी कह रहे हैं कि अभी बहुत अच्छी कहानियों पर सिनेमा बन रहा है. पर मैं मानती हूं कि उस वक्त की फिल्मों की कहानियां ज्यादा अच्छी थीं. हम साहित्यिक कहानियों पर फिल्म बनाते थे. पर तब प्लेटफार्म कम थे. आज हर फिल्मकार के पास प्लेटफार्म बहुत हैं. आज आपके पास स्वतंत्रता है कि आप किसी भी फार्मेट में फिल्म बना सकते हैं और अपनी फिल्म किसी भी प्लेटफार्म को दे सकते हैं. लेकिन कहानी कहने या कोई बात बताने की कलाकारी में कमी आ गयी है. रियालिटी के चक्कर में कलाकारी बट जाती है. हम जानते हैं कि एक परिवार में चार सदस्य होते हैं तो भी उन चारों के बात करने का अंदाज अलग अलग होता है. पर हम यहां वेब सीरीज या सीरियल में देख रहे हैं कि परिवार के सभी किरदार एक ही अंदाज, एक ही ढर्रे के संवाद बोल रहे हैं? क्या यह रियालिटी है? माना कि जो बिकता है वही दिखता है, मगर फिर वह छाप भी तो नही छोड़ता.

कैरियर के मोड़ या टर्निंग प्वाइंट क्या रहे?

-एक नहीं ढेर सारे रहे हैं. सभी को सिलसिलेवार बताना थोड़ा मुश्किल है. देखिए, अच्छे काम करने का इंतजार भी कैरियर का एक मोड़ होता है. कई बार आप कोई फिल्म मना करते हैं, तो वह भी एक मोड़ आता है. फिर वह मोड़ आता है, जब हम किसी फिल्म को उसकी विशयवस्तु के कारण स्वीकार कर लेते हैं और वह सफल हो जाती है या कल्ट फिल्म बन जाती है. तो ऐसा मेरे कैरियर में एक नही कई बार हुआ है. मैं फिल्मों के साथ साथ नाटक व टीवी भी कर रही थी. टीवी तो ज्यादा नही कर रही थी. टीवी पर एक काउंट डाउन शो ‘सुपरहिट मुकाबला’ आया था. इसमें लोहड़ी का एक एपीसोड था. हम ठहरे पंजाबी. नाच गाना हमें पसंद है. फोक संगीत तो हम सभी गाते हैं. तो मैने यह एपीसोड कर लिया. गाना भी गा दिया. फिर मेरे पास कई संगीत कंपनियो से उनकी कंपनी के संगीत अलबमों के लिए गाने के आफर आ गए. मैने कुछ तो मना कर दिए. मैने कहा कि मैं अभिनेत्री हूं, गायक नही हूं. मैने संगीत सीखा भी नही है. पर जागरुक नही थे, तो मुझे लगा कि यह सब के सब बेवकूफ तो नही हो सकते. फिर जब मेंरे पास मैग्नासाउंड से आफर आया तो मैने स्वीकार कर लिया. पर अंदर से मैं बहुत डरी हुई थी कि लोग मेरा गायन सुनकर पता नहीं क्या कहेंगे? मगर मैने हिम्मत

दिखायी. अब हम रातों रात कोई कलागीरी दिखा नही सकते. लेकिन हमने सोचा कि अगर मैं अपनी तुलना लता मंगेशकर जी से करती हूं तो यह मेरी मूर्खता होगी. हम लता मंगेशकर तो बन भी नही सकते. इसका मतलब यह नही हुआ कि हमें संगीत के क्षेत्र में कुछ नही करना चाहिए. मैने मैग्नासाउंड को हां कहते समय यही सोचा कि अगर मेरे अंदर कुछ प्रतिभा है और सामने ेसे मौके आ रहे हैं, तो प्रयास करना चाहिए. हम नया अनुभव लेते हुए कुछ तो आगे बढ़ेगे. खैर, नक्श लायलपुरी जी ने मेरे लिए गाना लिखा. संगीतकार ने हिम्मत दी और गाना हिट हो गया. तो मेरे अंदर का गायक जाग गया. मैने सोचा कि अभिनय तो मेरे अंदर है, अब मुझे गायन मंे भी कोशिश करनी चाहिए. मैने एक गाना कुलदीप सिंह के साथ गाया. तो मेरे दो तीन अलबम आ गए. उसके बाद मै फिर से फिल्म व टीवी में अभिनय करने में व्यस्त हो गयी.

मैं थिएटर से लंबे समय से दूर थी. उन दिनों मैं सीरियल ‘बालिका वधू’ की शूटिंग कर रही थी. तभी मुझे लिलेट दुबे ने म्यूजिकल नाटक ‘‘गौहर जान’ का आफर दिया,  जिसमें मुझे गाना भी गाना था. मैने कहा कि मैं गाना तो गा सकती हूं, पर मैं क्लासिकल गायक नही हूं. गौहर जान का किरदार कमाल का था. वह अपने वक्त की इकलौटी रिकार्डिंग आर्टिस्ट थीं. उनकी जिंदगी काफी रोचक रही है. तो ऐसे किरदार के लिए मना भी नही कर सकती थी. पर इस किरदार के लिए काफी तैयारी करनी थी. नाटक के रिहर्सल करना था. गायकी भी सीखनी थी. उन दिनों मेरा बेटा भी चार पांच साल का था. सारी तैयारी करने के लिए हमारे पास सिर्फ एक माह का वक्त था. मैं ‘बालिका वधू’ की शूटिंग में भी व्यस्त थी. यानी कि कई तरह की चुनौतियां सामने थीं. पर मैने मेहनत करने के लिए कमर कस ली और शास्त्रीय संगीत सीखना शुरू किया. मेरे दिमाग में यह बात भी आयी कि अगर हम यह सोचे कि नाटक के पहले शो में कमाल कर देंगें, तो यह संभव नही. अभिनेता के तौर पर काम करने लेने का आत्म विश्वास मेरे अंदर था. मामला तो गायन में अटक रहा था. फिर मैने वही सोचा कि शुरूआत के कुछ शो में मुझे और दर्शकों को भी लग सकता है कि और बेहतर किया जा सकता था. लेकिन इतना तय था कि मैं कुछ सीख कर निकलने वाली थी. कलाकार के तौर पर मेरा विकास तय था. एक अच्छा अनुभव मिलना भी तय था. वैसे मेरा इरादा तो पहले शो में ही कमाल करने का था. पर आप भी जानते हैं कि नाटक के किसी भी नंबर के शो में गड़बड़ी हो सकती है. अंत में मैने तय किया कि ज्यादा गुणा भाग लगाने की बजाय मेहनत की जाए, तो यह नाटक मैं अच्छे से कर ले जाउंगी.

मैने अपनी तरफ से मेहनत की और शो दर शो वह नाटक बेहतर होता गया. मुझे अपने आप पर गर्व है. शायद कोई दूसरा कलाकार मुझसे बेहतर कर सकता था. पर मैने जो किया वह मेरे हिसाब से सर्वश्रेष्ठ किया. मुझे इस नाटक को करके बहुत मजा आया. एक कलाकार जब स्टेज पर जाता है, तो सोचता है कि मैं अभिनेता हूं, गायक हूं और डांसर भी हूं. इसका लुत्फ मैंने इस नाटक को करते हुए उठाया.

इस नाटक को करते हुए आपको अहसास हुआ होगा कि बचपन में आपकी मां ने आपको नृत्य सीखने के लिए भेजकर अच्छा कदम उठाया था?

-जी हां! आप जिंदगी में जो कुछ सीखते हैं, वह कभी भी बेकार नही जाता. आपको हिम्मत करनी पड़ती है. आप यह सोचकर डर नही सकते या चुप नही बैठ सकते कि क्या होगा? जो होना है वह होगा, पर आपको हिम्मत जुटानी पड़ती है. आप यह न समझे कि मुझे डर नही लगता. मुझे भी डर लगता है. कई बार मुझे भी लगता है कि मैं यह नही कर सकती. पर दिमाग लगाना पड़ता है. जब मेरी समझ में आता है कि यह काम करते हुए मुझे मजा आएगा, मैं किसी का नुकसान किए बगैर कुछ नया सीख सकती हूं, तो मैं आगे बढ़ जाती हूं. एक कलाकार के तौर पर हमें कोई मौका नहीं छोड़ना चाहिए. हम यह मानकर चलते है कि हम एक बार गिरेंगे, पर फिर उठना है.

जब आपका अभिनय कैरियर अच्छा चल रहा था, उसी बीच आपने अन्नू कपूर संग जीटीवी पर संगीत के कार्यक्रम ‘‘अंताक्षरी’’ का संचालन किया?

– मजा लेने के लिए किया था. सिर्फ 26 एपीसोड किए थे. मैने इंज्वाॅय किया था. अन्नू कपूर के संग काम करने में मजा आया था. वह ज्ञान के सागर हैं. वह सेट पर जितनी तड़क भड़क और कई तरह की जानकारी के साथ आते थे, उससे मैं हैरान रह जाती थी. इंसान के अंदर हमेशा कुछ नया करने की इच्छा होनी चाहिए. भले ही आप दोबारा उस काम को न करना चाहें. सच कहूं तो एंकरिंग करना मेरे लिए आसान नही था. मेरे लिए चार लोगों के सामने बात करना मुश्किल होता है. मैने स्कूल में तमाम बच्चों के बीच कविताएं पढ़ी हैं. मगर उसमें अंतर है. पर भाशण देना मुश्किल हो जाता था. लेकिन लिखा हुआ पढ़ना है, कुछ पढ़कर उसे एक्सप्रेस करना आनंद देता है. फिर भी मैने ‘अंताक्षरी’ का संचालन करते हुए सब कुछ किया. और मैं तो हर इंसान से कहती हूं कि उसे हर काम करना चाहिए. मैं मानती हूं कि यह कहना गलत होगा कि इंसान कुछ भी कर सकता है. हर इंसान कुछ काम नही कर सकता. मगर यदि आपको एक मौका मिला है और आपको लगता है कि उसे करने से आप एक सीढ़ी, एक पायदान उपर चढ़ सकते हैं, तो अवश्य प्रयास करना चाहिए. इससे आपका अपना आत्म विश्वास बलवान होता है.

जब अभिनय कैरियर उंचाइयों पर था, तभी क्या सोचकर आपने शादी करने का फैसला लिया था?

-सच कहूं तो मैने कुछ सोचा ही नहीं था. मुझे यह लगा कि यह सही वक्त है, मुझे शादी कर लेनी चाहिए. मेरे घर में मुझसे कभी किसी ने यह नही कहा था कि मुझे 18 वर्ष की उम्र में शादी करनी चाहिए. मेरे दादा जी ने कहा था कि , ‘तुम आराम से अपना काम करो. अपने पैर जमाओ. फिर शादी कर लेना. ’’लेकिन मुझे पता था कि हर काम का एक वक्त होता है. पर उस वक्त के चलते किसी से भी शादी करना जरुरी नही है. लेकिन जब वह वक्त होता है, तो सही राह भी दिखा देता है.

जब वरूण मिले,  तो हमें लगा कि हम काफी एक जैसे हैं. हमारे बीच अपनी जगह बनाने की लड़ाई नही है. हम दोनो के परिवारों की पृष्ठभूमि अलग होते हुए भी ऐसा है कि हम दोनों के परिवार एक साथ एक टेबल पर बैठकर बात कर सकते हैं. कुछ तो समानताएं हैं. दोनों परिवारों का कला व साहित्य से जुड़ाव है. वरूण के साथ हमारी दोस्ती थी. हम एक दूसरे को जानते थे.

लेकिन हर दिन मुलाकात नही होती थी. कई बार तो साल भर तक मुलाकात नही होती थी. कभी किसी सीरियल की शूटिंग के सिलसिले में लगातार कई दिन मुलाकात हो गयी. कभी फोन पर बात हुई तो एक घंटे की मुलाकात हो गयी. इन मुलाकातों के दौरान कोई विचार नही आता था. पर शायद जिसे जिस वक्त पर होना होता है, वह उस वक्त पर हो जाता है. हम व वरूण साथ में एक फिल्म की शूटिंग कर रहे थे. शूटिंग खत्म होने वाली थी, तभी बातों बातों में ही बात निकली. वरूण ने शादी का प्रस्ताव रख दिया. मैने कहा कि मेरे पिताजी से जाकर बात कर लो. यदि उनकी हां है, तो मेरी हां है, यदि उनकी ना है, तो ना है.

वैसे तो यह मजाक की बात थी. पर उस वक्त यह गंभीर बात थी. क्योंकि उस वक्त ही नही, अब तक मेरी जिंदगी में कभी ऐसा नही हुआ कि मेरे माता पिता ने मुझे कोई सलाह दी हो और वह गलत साबित हुई हो. पर शादी का निर्णय मेरे लिए बहुत बड़ा निर्णय था. मैं सभी के चेहरे पर मुस्कान देखना चाहती थी. क्योंकि मुझे तो पता था कि मैं सही कदम उठाने जा रही हूं, पर यदि मेरे माता पिता कह दें, तो मुझे यकीन हो जाएगा कि हां मैं सही सोच रही हूं. मेरे माता पिता की खूबी है कि हर निर्णय में वह हमें शामिल करते रहे हैं. तो जाने अनजाने वह सभी का निर्णय होता था.

खैर, मेरा निर्णय, वरूण का निर्णय और मेरे माता पिता का निर्णय एक ही था, तो हमने शादी कर ली. हमें पता था कि शादी के बाद हम गायब नहीं होने वाले हैं. हम लगातार काम करते रहेंगे. तो जो सामने से आए हैं? अच्छे इंसान हैं, उन्हे भगाना ठीक नही लगा. कई मसलों में मेरी व वरूण की सोच एक जैसी है. हम दोनों की प्रोफेशनल अप्रोच भी एक जैसी है. हम दोनों के लिए परिवार भी जरुरी है. हमारे बीच प्रतिस्पर्धा वाली कोई बात नही है. हमारे बीच बहुत अच्छा तालमेल है. हम अपनी गाड़ी बैलेंस बनाकर चला लेते हैं.

शादी का कैरियर पर क्या असर पड़ा?

-मुझे नही लगता कि कोई बुरा असर पड़ा. हम पहले जिस तरह का काम कर रहे थे, शादी के बाद भी उसी तरह का काम कर रहे हैं. मैने कभी यह नही कहा कि मेरे लिए कैरियर महत्वपूर्ण नही है. कैरियर तो आज भी महत्वपूर्ण है. पर कैरियर शब्द का उपयोग करना ठीक नही रहेगा. बल्कि मैं यह कहती हूंू कि यह ऐसा काम है, जो मुझे सकून देता है. मैं अभिनय करते हुए इंज्वाय करती हूं. लोग मुझे कलाकार के तौर पर जानते हैं, पहचानते हैं यह और भी ज्यादा खुशी की बात है. इसी के साथ मुझे पता है कि मेरा घर है, मेरा परिवार है. मेरा बेटा है. तो सब कुछ सामंजस्य बैठाते हुए करना है. शादी से पहले भी जिंदगी में बैलेंस था और शादी के बाद भी है. फर्क इतना है कि अब जिम्मेदारी बढ़ गयी हैं. पर हम जिंदगी जी रहे हैं. जिंदगी में आने वाले उतार चढ़ाव तो हमें झेलने ही हैं. उसी के साथ काम चलता रहेगा.

आप अभिनेत्री, मां, पत्नी, बहू हैं. इन सभी जिम्मेदारियों के बीच किस तरह से तालमेल बिठाती हैं?

-हमारी जिंदगी में उदाहरण काफी अच्छे हैं. सबसे पहले तो हमारे माता पिता हैं. उनको देखते हुए जाने अनजाने हमारे अंदर समझ आती रही कि जिंदगी को कैसे जिया जाए. हर जिम्मेदारी का निर्वाह किस तरह से हंसते हुए किया जाए. हर इंसान की जिंदगी में संघर्ष होता है. हमारे लिए जिंदगी का हर पहलू महत्वपूर्ण है. एक वक्त में एक चीज महत्वपूर्ण है, तब दूसरी चीज बैलेंस करनी ही पड़ेगी. पर इन सारी जिम्मेदारियों को लेकर मैं ज्यादा सोचती नही हूं. सब कुछ अपने आप तालमेल में बैठ जाती हैं. टचवुड सब ठीक से निभ रहा है. पर हमें बहुत ज्यादा चुनौतियां भी नहीं चाहिए.

पर जब बेटा छोटा था, तब बेटे की अपनी मांग रही होगी. वह चाहता होगा कि उसकी मां उसके साथ ज्यादा रहे. . घर से बाहर न जाए?

-मेरा बच्चा तो सोचता है कि उसकी मां कब घर से बाहर जाए. क्यांेकि मैं एक सख्त मां हूं. मैं लाड़ प्यार भी करती हूं. पर मैं उसके लिए आसान नही हूं. वैसे मेरा बेटा बहुत प्यारा है. मुझमें सहनशक्ति ज्यादा नही है. बेटे के पैदा होने के बाद इसी ने मुझे पैशन/ धैर्य रखना सिखाया है. पर वरूण के मुकाबले मेरे अंदर ज्यादा पैशन है. दूसरी बात हमारा बच्चा सिर्फ हम नहीं पालते. पूरा परिवार पालता है. इसलिए हमारा बेटा अच्छे से पल रहा है.

अब तक आप कई किरदार निभा चुकी हैं. कोई ऐसा किरदार रहा जिसने आपकी जिंदगी पर असर किया हो?

-नहीं. . . वास्तव में 1994 में मैं एक फिल्म ‘‘त्रियाचरित्र’’ की शूटिंग कर रही थी. उस वक्त माथे पर एक दाग देने के सीन में मुझे तकलीफ हो रही थी. तब मैने कहा कि यह क्या ? यह तो गलत है. तभी से मैने अपने आपको बदला और मैं स्विच ऑन और स्विच आफ कलाकार बन गयी.

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