जब पौराणिक काल में खीर, कान के मैल और पसीने तक से बच्चे पैदा हो जाते थे तो कलियुग  में पोस्टकार्ड से क्यों नहीं हो सकते, बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने गया में इस बात को घुमाफिरा कर यों कहा कि गरीब दंपती एकदूसरे से प्यार करते हैं और साथ रहते हैं, इसलिए उन के बच्चे ज्यादा होते हैं जबकि अमीर पतिपत्नी अलगअलग शहरों में रहते हैं, इसलिए उन के बच्चे पोस्टकार्ड से हो जाते हैं जो नाजायज होते हैं. ‘गरीब संपर्क यात्रा’ के दौरान गया में उन्होंने इस नई थ्योरी को लौंच किया तो सवर्ण महिलाओं ने उन पर चढ़ाई कर दी.

ओशो भी इस सिद्धांत पर माथा पीट लेते और कहते यह कि जमाना अब ईमेल और एसएमएस का है. भड़ास असल में आर्थिक है जिस का अपना शारीरिक पहलू भी होता है. ज्योंज्यों पौराणिकवादी हल्ला मचाते हैं त्योंत्यों जीतनराम जैसे अनुभवी नेता न्यूटन की गति के तीसरे नियम की तरह प्रतिक्रिया देते उन की कमजोरियां उधेड़ कर उन्हें और बौखला देते हैं.

 यूपी में पुलिस बा

उत्तर प्रदेश में विपक्ष का होना न होना बराबर ही है, इसलिए यह जिम्मेदारी अब जिन गिनेचुने कलाकारों को ढोना पड़ रहा है, लोकगायिका नेहा सिंह राठौर उन में से एक हैं जो ‘यूपी में का बा…’ गा कर योगी सरकार की मनमानियां और नाकामियां उजागर करती रहती हैं.

ऐसा ही उन्होंने कानपुर हादसे पर किया तो पुलिस एक अदद चिथड़ा, जिसे नोटिस कहा जाता है, ले कर उन के द्वार पहुंच गई. शुक्र तो इस बात का रहा कि पुलिस बिना बुलडोजर गई नहीं तो सारी बा बा मिमियाहट में तबदील हो जाती और कोई चूं तक न करता.

पुलिस के सहारे राज कर रहे योगी के खिलाफ बोलना भी संगीन जुर्म है फिर नेहा तो गा रही थी जिस का मनोबल तोड़ने के लिए चलताऊ टोटका अपना कर साबित कर दिया गया कि महाराज को आलोचना पसंद नहीं. जिन्हें इस बात में शक है उन्हें मुनव्वर राणा का हश्र याद कर लेना चाहिए जो मुद्दत से कुछ बोले ही नहीं.

 इंसाफ के सिपाही

यह किसी घिसीपिटी पुरानी हिंदी फिल्म का नहीं, बल्कि 75 वर्षीय दिग्गज वकील व भूतपूर्व कांग्रेसी और अब सपा नेता कपिल सिब्बल के गैरराजनीतिक मंच का नाम है जिस के जरिए वे विपक्षी एकता का दुर्लभ सपना देख रहे हैं. सिब्बल दिग्गज इसलिए हैं कि वे एक पेशी का 15 लाख रुपए लेते हैं और कोई 200 करोड़ की उन की नैट वर्थ है. वे चाहें तो पूरे ऐशोआराम से बाकी जिंदगी गुजार सकते हैं लेकिन इस मंच के जरिए वे एक और दुर्लभ सपना देख रहे हैं.

दूसरा सपना नरेंद्र मोदी के विरोध का नहीं, बल्कि उन के सुधार का है जो कभी पूरा होगा, ऐसा कहने की कोई वजह नहीं. फिर भी, बकौल गालिब, दिल को बहलाने खयाल अच्छा है. अब इस मुहिम के 2 ही नतीजे निकल सकते हैं. उन में से पहला और दूसरा यही है कि जल्द ही कानून के इस रखवाले के यहां भी ईडी जैसी किसी एजेंसी के चरण पड़ सकते हैं. तैयार रहें आप…

 फुस्स हुए विश्वास

जब कविताएं करने में खुद को असहाय और असमर्थ पाने लगे तो रोमैंटिक कवि कुमार विश्वास ने साहित्यिक वैराग्य का एक्सप्रैसवे चुनते रामकथा बांचना शुरू कर दिया. इस से उन्हें मोरारी बापू की तरह इतनी दौलत और शोहरत मिली कि वे अपनी हदें भूल गए. किसी मीनिया के तहत उन्होंने उज्जैन जैसी महा शिवनगरी में वामपंथियों को कुपढ़ और संघियों को अनपढ़ कह दिया. इधर वे तालियां बजने का इंतजार करते रहे और वहां भाजपाइयों ने विरोध में हाथ उठाना शुरू कर दिए तो उन्हें याद आया कि यह बंदर, भालुओं की नहीं, बल्कि भागवत सेना है. सो, झट एक वीडियो के जरिए उन्होंने क्षमा मांग ली.

बात हालांकि दमदार थी पर उस से भी दमदार साध्वी उमा भारती, जो कथावाचन में उन से सीनियर हैं, ने कहा, ‘कुमार, तुम्हारी बुद्धि विकृत है,’ तो कुमार साहब डर कर और डिप्रैस्ड हो कर ऐसे गायब हुए कि लगा कहीं सरयू किनारे न पहुंच गए हों. अब बहुत सा आत्मविश्वास इकट्ठा कर वे रामनवमी पर प्रगट हो सकते हैं.

 

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