भारत भूषण श्रीवास्तव व रोहित

सत्ता देश की जनता को किसी को पराया घोषित करने की खुली छूट देगी तो नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल की जैसी सांप्रदायिक व नफरती बातें मुंह से निकलेंगी ही. धर्म का कोई दुकानदार अपने धर्म के बारे में सच सहन नहीं कर सकता पर वह दूसरे धर्म के बारे में न कही जाने वाली बातें बोलेगा ही. नूपुर शर्मा का मामला दर्शाता है कि धर्म आधारित राजनीति करना ?ाल में जमी बर्फ पर नाचनाकूदना है, न जाने कब कमजोर बर्फ की परत टूट जाए और भयंकर ट्रैजडी हो जाए.

सैय्यदा उज्मा परवीन लखनऊ की जानीमानी नेता हैं जो महिला और मानवाधिकारों के लिए भी काम करती हैं. सोशल मीडिया पर उज्मा का विवादों से गहरा नाता है. राजनीति में भी उन्होंने हाथ आजमाने की कोशिश की थी पर नाकामी मिली थी. सीएए आंदोलन के दौरान उन्होंने अपने बच्चे को ले कर धरनाप्रदर्शन में हिस्सा लिया था. इस के एवज में लखनऊ वालों ने उन्हें ‘?ांसी की रानी’ कहना शुरू कर दिया था. इस के बाद वे चर्चा में तब आईं जब पिछले साल स्वाधीनता दिवस (15 अगस्त) के मौके पर सार्वजनिक तौर पर घंटाघर प्रांगण में वे तिरंगा ?ांडा फहराना चाहती थीं लेकिन पुलिस ने उन्हें हाउस अरैस्ट कर दिया.

अब बीती 5 जून को उज्मा ने ट्वीट किया, ‘‘आज मेरे घर के नीचे बल तैनात किया गया, स्पैशल स्कौट भेजा गया है. आखिर कोई बताएगा कि मेरा कुसूर क्या है. सिर्फ इतना कि मैं ने नूपुर शर्मा को गिरफ्तार किए जाने के लिए आवाज उठाई, जिस ने हमारे नबी की शान में गुस्ताखी की. मैं डरने वाली नहीं हूं, न दबने वाली हूं. मु?ो अल्लाह के सिवा किसी का डर नहीं.’’

उम्मीद के मुताबिक प्रतिक्रियाएं मिलने पर उज्मा ने एक के बाद एक ट्वीट करने का रिवाज निभाते और भी ट्वीट किए जिन में योगी सरकार पर ताना कसने सहित संविधान और कानून की भी दुहाई दी और खुद के हाउस अरैस्ट होने व नूपुर शर्मा के खुले घूमने पर एतराजनुमा हैरानी जताई थी. उज्मा का एतराज आना भी था, क्योंकि इसी प्रकार का बयान अगर कोई मुसलिम या दलित किसी हिंदू देवीदेवता के लिए दे देता तो पुलिस इतनी चाकचौबंद रहती कि खुद ही एफआईआर दर्ज कर गिरफ्तार कर लेती. जैसा कि हालफिलहाल में कई मुसलिमों को इसलिए गिरफ्तार किया गया क्योंकि उन्होंने सोशल मीडिया पर शिवलिंग को ले कर ‘आपत्तिजनक कमैंट’ किए. ऐसे ही दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास के दलित प्रोफैसर रतन लाल को शिवलिंग पर किए गए उन के सोशल मीडिया पोस्ट के चलते गिरफ्तार किया गया. उन्हें नोटिस नहीं भेजा गया, जैड सिक्योरिटी नहीं दी गई, बल्कि सीधे थाने में बंद कर दिया गया.

‘नबी के बारे में ?ाठ’ किसी भी मुसलमान के लिए उतना ही संवेदनशील और भड़काऊ मुद्दा है जितना किसी हिंदू के लिए राम, कृष्ण, शंकर या किसी दूसरे देवीदेवता के सही?ाठ के बारे में होता है.

नूपुर शर्मा ने सारी हदें पार करते हुए पैगंबर मोहम्मद पर अपमानजनक टिप्पणी कर डाली थी जिस का देशभर के मुसलमानों ने उज्मा सरीखा विरोध किया. बहुत जगह विरोध हिंसक भी हो उठा और उस के बाद की सरकारी कार्यवाही तो एक कदम आगे जा पहुंची, जिस पर बाद में आया जाएगा.

नूपुर शर्मा ने टाइम्स नाउ न्यूज चैनल पर नाविका कुमार के प्राइम टाइम शो, जो ‘ज्ञानवापी विवाद’ को ले कर चल रहा था, में कहा, ‘‘तुम्हारे उड़ते हुए घोड़े… कुरान में लिखा है बाकायदा, उस का मजाक बनाना शुरू कर दें…’’ कहते हुए कुछ तथ्य देने शुरू कर दिए. गोदी पत्रकार धार्मिक डिबेट टीवी पर रातदिन चलाएंगे, एक तरफ भगवा बिग्रेड और दूसरी तरफ मौलाना बिग्रेड की धार्मिक फौजों को दिनरात बैठाएंगे तो वे एकदूसरे के धर्म के खिलाफ लफ्फाजी तो उगलेंगे ही, फिर वह चाहे उन के खुद के धर्म और धर्मग्रंथों में महिलाओं को दबाए रखने की लंबीचौड़ी दास्तान ही क्यों न लिखी हो.

खैर, धर्म के कारोबार और राजनीति के खेल में औरतों का इस्तेमाल कोई नई या हैरानी की बात नहीं रह गई है. यह तो धर्म की पैदाइश से होता आ रहा है जिस का मकसद दुकानदारी को और चमकाना रहता है, ताकि लोग धार्मिक अंधता में डूबते हुए एकदूसरे का सिरफुटौवल करते रहें और किसी भी हाल में चंदे की दुकानदारी बरकरार रहे. नूपुर और उज्मा दोनों इस धूर्तता को सम?ा नहीं पा रहीं और दौलत व शोहरत के लिए अपनी मरजी से मोहरा बन रही हैं.

धर्म के अंधे कुएं में एक के बाद एक छलांग लगाते जा रहे हैं और उन्हें भड़काने वाले गिरोह जश्न मना रहे हैं क्योंकि सालों बाद देश में सांप्रदायिकता और कट्टरता का नंगा नाच हो रहा है. हिंदू स्वाभाविक रूप से भारी पड़ रहे हैं क्योंकि सबकुछ उन के हक में है. यह और बात है कि अक्ल और धर्म के इन अंधों को यह सम?ा नहीं आ रहा कि यह दरअसल, एक मिशन और औपरेशन है जिस का अगला निशाना दलित व पिछड़े ही होंगे, या यों कहें कि ये साथ ही साथ निशाना बनते चले जा रहे हैं. औरतें चाहे किसी भी जाति या धर्म की हों, लगातार धर्म की गुलामी के फंदों में और फंसती जा रही हैं.

धीरेधीरे इस धार्मिक जनून में दलित, आदिवासी, पिछड़े और महिलाएं भगवा गैंग की रीतिनीतियों के रडार में आने लगे हैं. मुसलिमों को तो जैसा लताड़ा जा सके लताड़ लिया जाए, पर इस की आड़ में यह गैंग ‘एंटी रिजर्वेशन कैंपेन’ चला रहा है. इस भगवा गैंग वाले दलितपिछड़ों को उन के हक व अधिकारों से वंचित रखने की बातें करते हैं. वे औरतों को पूजापाठ में धकेलना चाहते हैं.

नफरती भगवा गैंग वाले दलित, आदिवासियों को निचले और मैलेकुचैले बनाए रखना चाह रहे हैं. सरकारी नौकरियों में कटौती से वे इस काम को आधिकारिक तौर पर तो अंजाम दे ही चुके हैं. महिलाओं के पैरों में बेडि़यां जकड़ने का काम तो शुरू भी कर चुके हैं. बजाय इस के कि महिलाओं को सुरक्षा की गारंटी मिले, महिला समानता के मुद्दों पर कोई रोडमैप हो, हिंदू राष्ट्र की प्रयोगशाला बन चुके उत्तर प्रदेश में तो महिलाओं को सुरक्षा के नाम पर रात को नौकरी करने से भी उन्हें रोका जा रहा है और अस्पतालों, होटलों व रैस्तराओं  में उन की भरती बंद किए जाने की कोशिश की जा रही है ताकि वे सिर्फ बच्चे पालें व मंदिरों में जाएं.

सजा या इनाम

नूपुर शर्मा के नफरती बयान पर देशविदेश में हल्ला मचना ही था. पहले देश में, फिर देश के बाहर जब बवाल बढ़ने लगा तो भाजपा ने नूपुर शर्मा सहित अपने एक और प्रवक्ता नवीन जिंदल को पार्टी से निष्कासित कर कड़वा घूंट पी लिया. यह सोचना बेमानी होगी कि पार्टी की तरफ से मिला यह निष्कासन कोई सजा है. अगर यह सजा ही होती तो भाजपा देश में मुसलिम नागरिकों के भारी विरोध के बाद ही या ऐसा बयान देने के तुरंत बाद ही नूपुर शर्मा व नवीन जिंदल को पार्टी से निकाल देती, इतनी देर न लगाती और भारतीय मुसलमानों के विरोध की लाज रख लेती पर प्रधानमंत्री के 56 इंच के सीने को अपने नागरिकों के आगे ?ाकने के बजाय खाड़ी देशों के आगे ?ाकना ज्यादा बेहतर लगा.

दरअसल यह भाजपा की बड़ी मजबूरी भी हो गई कि इसलामिक राष्ट्र, जिन के साथ भारत के अतीत में मजबूत रिश्ते हुआ करते थे, एतराज जताने लगे थे जिसे धौंस कहना ज्यादा सटीक होगा. ओमान में प्रमुख मुफ्ती शेख अहमद बिन हमद अल-खलील का ट्वीट इस का उदाहरण है कि किस प्रकार की प्रतिक्रिया इसलामिक देशों से आई, जिस में उन्होंने कहा, नूपुर शर्मा की टिप्पणी ‘हर मुसलमान के खिलाफ युद्ध’ घोषित करने के समान थी.

बयान और खाड़ी दबाव

नूपुर के बयान के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी सोशल मीडिया पर विदेशी मुसलमान खुलेआम कोसने लगे. सोशल मीडिया हैशटैग ‘स्टौप इनसल्ंिटग प्रौफेट मोहम्मद’ ट्रैंड करने लगा, जिसे भारी संख्या में अरब लोग ट्रैंड कराते रहे. मोदी की ग्लोबल लीडर की इमेज बिगड़ने लगी. कतर में तो ‘बायकौट इंडिया’ कैंपेन शुरू कर दिया गया. भारतीय सामानों के बहिष्कार की बातें शुरू हो गईं. कुवैत के डिपार्टमैंटल स्टोर पर भारतीय उत्पादों के खिलाफ नोटिस लगाए गए. इस नोटिस के कथित वीडियो सोशल मीडिया पर अब भी वायरल हो रहे हैं. कुछ वीडियोज में भारतीय उत्पादों को स्टोर से हटाए जाने वाले चलचित्र दिखाई दे रहे हैं.

अब हम चीन सरीखे तो हैं नहीं कि वहां की फुल?ाड़ी लाइट का बायकौट कर मन ही मन उन्हें सबक सिखा दें और उन्हें बाल बराबर भी फर्क न पड़े. हमारी इकोनौमी वैसे ही ढुलमुल हो चुकी है और बड़े पूंजीपतियों का दबाव अलग से प्रधानमंत्री पर पड़ने लगा तो लाइनहाजिरी देते भारतीय दूतावास को कहना पड़ गया कि यह भाजपा और भारत सरकार की सोच नहीं है, ये तो फ्रिंज एलिमैंट्स हैं.

यूएई, ओमान, इंडोनेशिया, इराक, मालदीव, जौर्डन, लीबिया और बहरीन जैसे देश दुनिया के उन देशों की बढ़ती सूची में शामिल हो गए हैं जिन्होंने पैगंबर के खिलाफ बीजेपी नेताओं की टिप्पणी की निंदा की है. इन नफरती भाजपाइयों के बयां के चलते ही तीन-दिवसीय कतर यात्रा पर गए भारत के उपराष्ट्रपति

एम वेंकैया नायडू के सम्मान में कतर के उप अमीर द्वारा आयोजित रात्रिभोज को रद्द कर दिया गया.

खैर, विरोध जता रहे देशों की इस सूची में अब तक करीब 15 देशों ने भारत से अपना विरोध जताया है, जिस की शुरुआत कुवैत, ईरान, सऊदी अरब से हुई थी. इस के अलावा 57 सदस्यीय देशों का इसलामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) ने भी नूपुर शर्मा व नवीन कुमार के खिलाफ टिप्पणी की कड़ी आलोचना की और कड़े शब्दों में कहा कि भारत में मुसलिमों के खिलाफ हिंसा हो रही है, मुसलिमों पर पाबंदियां लगाई जा रही हैं. स्थिति ऐसी आ गई कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे देशों से भी भारत को खरीखरी सुननी पड़ रही है.

गौर किया जाए तो साल 92 में बाबरी मसजिद तोड़े जाने के बाद जब पूरे दक्षिण एशिया में दंगे हो रहे थे, तब खाड़ी देशों ने वहां रहने वाले लाखों भारतीयों की जानमाल की हिफाजत की थी और कहीं से भी एक घटना तक सुनने को नहीं मिली थी क्योंकि बाबरी मसजिद गिराने में कांग्रेस सरकार का हाथ नहीं था.

भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने ओआईसी की ओर से निंदा के बाद अपने बयान में कहा कि ‘भारत सभी धर्मों का सम्मान करता है. एक धार्मिक व्यक्तित्व को बदनाम करने वाले आपत्तिजनक ट्वीट और टिप्पणियां कुछ लोगों द्वारा की गई थीं. वे किसी भी रूप में भारत सरकार के विचारों को प्रतिबिंबित नहीं करती हैं. उन व्यक्तियों के खिलाफ संबंधित संस्थाएं पहले ही कार्यवाही कर चुकी हैं.’

जाहिर है जिस तरह का रिऐक्शन खाड़ी देशों से मिला वह भारत के लिए चिंता का विषय है. आज खाड़ी देशों में भारतीयों की अच्छीखासी संख्या बसी है. यूएई में भारत के एनआरआई और पीआईओ को मिला कर 34 लाख 25 हजार हैं, जोकि वहां की कुल आबादी के 34 प्रतिशत के आसपास हैं. ऐसे ही सऊदी अरब में 26 लाख भारतीय बसे हैं जिन का कुल पौपुलेशन का साढ़े 7 प्रतिशत है. यह संख्या अपनेआप में बहुत बड़ी है, जिस में बड़ी तादाद में हिंदू हैं.

ऐसे ही कुवैत, कतर, ओमान, बहरीन में बड़ी संख्या में भारतीय लोग बसे हैं. अतीत में खाड़ी देशों के साथ भारत के शुरू से अत्यंत मैत्रीपूर्ण संबंध रहे. आज हमारे देश के कई परिवार गल्फ से आने वाले पैसे पर निर्भर हैं. ये लोग गल्फ देशों में कमाई और भारत में खर्च कर भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का ही काम कर रहे हैं. यह सिर्फ रोजगार मुहैया कराने का मसला नहीं, भारत आज के समय क्रूड औयल का बड़ा हिस्सा इन्हीं खाड़ी देशों से आयात भी करता है. देश में क्रूड औयल का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा मुसलिम देशों से निर्यात होता है.

आज से पहले इन देशों से कभी भारतविरोधी आवाज सुनने को नहीं मिली थी. यह इस बात को दर्शाता है कि पहले की सरकारों ने कितनी मेहनत से इन खाड़ी देशों के साथ अपने रिश्तों को मजबूत बनाया था पर धन्य हो भगवा गैंग का जिस ने भारत की इज्जत मिट्टीपलीद करने का कृत्य कर दिया है.

जो होगा देखा जाएगा

आज भारत सरकार के तारतार हो गए सम्मान को बचाने के लिए उस धर्मनिरपेक्षता को काम में लाया गया जिसे भगवा गैंग रोज छलनी करता रहता है, गालियां देता है, जिस का मजाक उड़ाता है और अंगरेजी सैकुलरिज्म को सिकमूलरजिम यानी बीमार वाद कहता है. नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल को पार्टी से निकालते भाजपा ने बड़ी मासूमियत से कहा कि वह सभी धर्मों का सम्मान करती है और किसी धर्म के पूजनीय लोगों का अपमान स्वीकार नहीं करती है. यह वही भाजपा है जिस के मदर संगठन की हर रोज सुबह की केवल पुरुषों की पाठशाला की कखगघ ही दूसरे धर्म के प्रति घृणा की भावना पैदा कर के होती है, जहां हिंदू राष्ट्र बनाने की कसमें खिलाई जाती हैं, वह हिंदू राष्ट्र जो धर्म के आधार पर बनेगा.

नूपुर के पहले कई उद्दंड, कट्टर और भड़काऊ विशेषज्ञ साध्वियां भगवा नर्सरी से निकल चुकी हैं जिन में उमा भारती, ऋतंभरा और प्रज्ञा भारती के नाम उल्लेखनीय हैं. बीमार और बूढ़ी होती इन उग्र साध्वियों की जगह नूपुर जैसी नए दौर की साध्वियों की भरती भगवा गैंग एक खास मकसद से ही कर रहा है. पुरानियों को मरी मक्खियों की तरह निकाल दिया.

पेशे से वकील 37 वर्षीय नूपुर शर्मा का लिबास भले ही आमतौर पर भगवा न रहता हो लेकिन उन के विचार पूरी तरह गेरुए हैं. नूपुर शर्मा ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के कानून विभाग से अपनी पढ़ाई की है. उन्होंने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत साल 2008 में उस वक्त की जब वे हिंदूवादी आरएसएस की छात्र संघ अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) की उम्मीदवार के तौर पर दिल्ली यूनिवर्सिटी छात्रसंघ की अध्यक्ष चुनी गईं.

लंदन स्कूल औफ इकोनौमिक्स से इंटरनैशनल बिजनैस लौ में मास्टर्स करने के बाद जब वे भारत लौटीं तो आक्रामक शैली के चलते उन का राजनीतिक कैरियर ग्राफ तेजी से आगे बढ़ने लगा. अंगरेजी और हिंदी में निपुण नूपुर को उन की कार्यक्षमता के चलते 2013 दिल्ली विधानसभा चुनावों में भाजपा मीडिया कमेटी का हिस्सा बनाया गया. 2 वर्षों बाद जब फिर से चुनाव हुए तो उन्हें आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल के खिलाफ बीजेपी की तरफ से उतारा गया.

चुनाव हारने के बाद भगवा एजेंडे को आगे बढ़ाने में वे तनमनधन से जुट गईं. भाजपा की दिल्ली इकाई का प्रवक्ता बनाया गया और फिर 2020 में उन्हें बीजेपी का राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाया गया. पैगंबर के बारे में उन के शब्द उसी विचार के सीखेसिखाए हिस्से रहे हैं जो बचपन से सुने थे. पैगंबर पर दी टिप्पणी उसी मानसिकता की देन है.

नूपुर ने सफाई देते यह भी कहा कि टीवी डिबेटों में अपने आराध्य महादेव शंकर का रोजरोज अपमान किया जा रहा था. मेरे सामने यह कहा जा रहा था कि वह शिवलिंग नहीं फौआरा है. मु?ा से यह भी कहा गया कि दिल्ली के फुटपाथ पर बहुत शिवलिंग पाए जाते हैं, जाओ, जा कर पूजा कर लो. हमारे महादेव शिवजी का अपमान मैं बरदाश्त न कर पाई और मैं ने गुस्से में आ कर कुछ चीजें कह दीं.

इस में 2 बातें निकलती हैं. गोदी मीडिया की रोजरोज की टीवी डिबेट धर्म के इर्दगिर्द ही बुनी जा रही है. इन टीवी डिबेट को किस के इशारे पर और क्यों करवाया जा रहा है, यह बात चाहे मोदीभक्त हों या मोदीविरोधी सब सम?ाने लगे हैं. अब इन चैनलों से यकीनन इस तरह की भड़काऊ बयानबाजी निकलना कोई को-इंसिडैंट नहीं या कोई उकसावा नहीं, बल्कि धार्मिक विवादों की ये फुजूल बहसें ही अन्य फुजूल बहसों को जन्म देती हैं. यह आपराधिक कृत्य करने का बेसिक फार्मूला है जिसे लगातार व खुल्लमखुल्ला अंजाम दिया जा रहा है.

नूपुर शर्मा की बौखलाहट की एक बड़ी वजह यह थी कि एक मुसलमान ने एक मार्के की बात कह दी थी जिस से कोई भी हिंदू मुकर नहीं सकता. फुटपाथों पर न केवल शिवलिंग बल्कि दीगर देवीदेवताओं की मूर्तियां, तसवीर वगैरह बिकना आम बात है. तीजत्योहारों के दिनों में तो ये तसवीरें कूड़े के ढेर में पाई जाती हैं. ?ांकियों के बाद हजारों मूर्तियां विसर्जन के इंतजार में नदी और तालाबों के किनारे पड़ी नजर आती हैं और इस पर खुद हिंदूवादी अकसर चिंता जताते रहते हैं लेकिन आम लोगों की पूजापाठ की लत है कि वे बाज नहीं आते.

हकीकत में तो किसी भी धार्मिक सिद्धांत या उपासना पद्धति की जरूरत ही देश को नहीं. देश को जरूरत है स्कूलों, अस्पतालों, सड़कों, कारखानों, फैक्टरियों और रोजगार की, क्योंकि मंदिरों की तरह इन पर भी सभी तरह के हिंदुओं का हक नहीं है. हम कैसे इन बुनियादी जरूरतों से धर्म और जानबू?ा कर पैदा किए जा रहे धार्मिक विवादों की आड़ में भ्रमित, वंचित और शोषित किए जा रहे हैं. इस पर सरिता के मई (द्वितीय) अंक में विस्तार से लेख ‘भड़काऊ नैरेटिव की गुलामी’ शीर्षक से प्रकाशित किया गया है. उस में बताया गया कि भगवा गैंग का ‘फूट डालो और राज करो’ का फार्मूला तबीयत से गुल खिला रहा है.

हकीकत यह है कि सांप्रादायिक उग्रता के प्रसार से समाज का धु्रवीकरण होता है. इस में जो जिस खेमे की बात जोरशोर से उठा ले जाए वह उस के वोट बटोर लेता है. आज तथ्य यही है कि सांप्रदायिकता की इस खेमेबंदी में भाजपा हिंदू वोट बटोर ले जाती है. इसे उलट कर ऐसे भी कहा जा सकता है कि भाजपा अगर सांप्रदायिक खेमेबंदी न करे तो उस की राजनीतिक पैंतरेबाजी चंद सालों तक भी न चल पाए. सांप्रदायिक खेमेबंदी उस के लिए जीवन निवारक की तरह है. इस के बगैर वह सांस नहीं ले सकती. इन सब चीजों से चुनाव में भाजपा को फायदा तो होता है पर देश… उस का क्या होता है?

वर्ष 2019 में भाजपा के लोकसभा चुनाव दोबारा जीतने के बाद कोई समय ऐसा नहीं रहा जब हिंदूमुसलिम विवाद देश में न पसरा हो. जैसेजैसे भाजपा शासनकाल में देश के आर्थिक हालात खराब होते गए वैसेवैसे इस में तीव्रता आई है. वर्ष 2014 से 2020 के बीच लगातार हेट स्पीच के मामलों में बढ़ोतरी हुई है. साल 2014 में जहां 336 मामले दर्ज थे वहीं साल 2020 में लगभग 600 गुना की बढ़ोतरी के साथ 1,804 मामले हेट स्पीच को ले कर दर्ज किए गए. हैरानी की बात यह है कि जैसेजैसे हेट स्पीच की संख्या बढ़ती रही, वैसेवैसे इन में सजा मिलने की दर घटती रही है. पिछले एक साल से तो धार्मिक विवाद रुकने का नाम ही नहीं ले रहे. रोजगार, महंगाई, शिक्षा, स्वास्थ्य, दलित उत्पीड़न, महिला सुरक्षा के मामले तो जैसे देश में अहमियत ही नहीं रखते.

आज संभव है कि ज्ञानवापी विवाद, कानपुर हिंसा, कश्मीर में हिंदुओं की टारगेट किलिंग और खाड़ी देशों की चिंता को देखते भगवा गैंग अब कुछ विराम चाहता हो पर मुमकिन है इस के पीछे गहरी साजिश है.

विराम नहीं, मध्यांतर

छिपे फार्मूले के तहत पहले तो हिंदुओं को तरहतरह से मुसलमानों के खिलाफ भड़काया गया, फिर अब पुचकार कर उन्हें खामोश रहने का उपदेश दिया जा रहा है. आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने नागपुर के प्रशिक्षण शिविर में कुछ ऐसी ही ज्ञान की बातें कहीं जिन्हें कांग्रेसी अपनी पैदाइश से कहते रहे हैं, लेकिन बड़ा फर्क यह है कि मोहन भागवत बेकाबू होते हालात को देख कर ऐसा कह रहे हैं और भविष्य के लिए फिर विवादों की गुंजाइश छोड़ रहे हैं. उन्होंने कहा-

ज्ञानवापी एक मुद्दा है. यह इतिहास है जिसे हम बदल नहीं सकते. इसे न आज के हिंदुओं ने बनाया और न ही आज के मुसलमानों ने. यह उस समय घटा.

आज के मुसलमानों के पूर्वज हिंदू ही थे.

आपस में मिलबैठ कर सहमति से कोई रास्ता निकालिए लेकिन हर बार नहीं भी निकलता.

ज्ञानवापी के बारे में हमारी कुछ श्रद्धाएं हैं परंतु हर मसजिद में शिवलिंग क्यों देखना?

संघ मंदिरों को ले कर आगे कोई आंदोलन नहीं करेगा.

नूपुर शर्मा जैसे नेता शायद वक्त की कमी के चलते इस शाकाहारी वक्तव्य को सुन और सम?ा नहीं पाए जो यह मान कर चल रहे थे कि हमारा काम तो मुसलमानों को कोसना और उन्हें यह एहसास कराना है कि तुम बाहरी हो, पराए हो इसलिए चलते बनो और अगर यहीं रहना चाहते हो तो रोजरोज की जलालत बरदाश्त करना सीख लो. इस पर भी वे चुप रहें तो सीधे उन के आराध्य के बारे में अपशब्द कह दो जिस से वे चुप न रह पाएं.

इन की भी यही जबां

मोहन भागवत के नागपुर के संबोधन के कुछ दिनों पहले ही जमीयत उलेमा ए हिंद के मुखिया मौलाना अरशद मदनी भी देवबंद में उन्हीं की तरह ज्ञान बांट रहे थे. मोहन भागवत की बातें सुन कर लगा यही कि वे मदनी की कौपी ही कर रहे हैं पर मदनी की पीड़ा मुसलमानों को दोयम दरजे का बना देने को ले कर ज्यादा थी. उन्होंने कहा-

नफरत फैलाने वालों के सामने सरकार की खामोशी बहुत हैरान कर देने वाली है. हमें हमारे ही मुल्क में अजनबी बना दिया गया है. हमारा चलना मुश्किल कर दिया गया है.

इस जुल्म के आगे मुसलमान ?ाकेंगे नहीं. हम हर चीज से सम?ाता कर सकते हैं लेकिन न तो अपने ईमान से सम?ाता करेंगे और न ही अपने देश के सम्मान से, यह ताकत हमें कुरआन ने दी है.

हम अगर मोहब्बत और प्यार का पालन करेंगे तो आग लगाने वाले खुद खत्म हो जाएंगे. दादरी में भीड़ द्वारा अखलाक की हत्या के बाद जिन लोगों ने अपने पुरस्कार वापस किए थे उन में ज्यादातर हिंदू थे.

मदनी मोहन भगवत की इस बात से इत्तफाक रखते हैं कि हिंदुओं और मुसलमानों के पूर्वज एक थे और कई हिंदू, मुसलमान बन गए थे. इन बातों से किसी को कुछ हासिल होगा, यह सोचना फुजूल की बात है. तुक और चिंता की बात नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल जैसे युवाओं की फौज है जिसे भाईचारे के इन उपदेशों से कोई सरोकार नहीं.

यहां गौरतलब यह भी है कि मोहन भागवत सभी हिंदुओं के और मदनी सभी मुसलमानों के सर्वमान्य मुखिया नहीं हैं. ये उन लोगों के नेता हैं जो इन के डमरू पर नाचने में ही अपनी भलाई सम?ाते हैं. कश्मीर और कानपुर की हिंसा ने इन दोनों को ही चिंता में डाल दिया है क्योंकि इन के आधे अनुयायी हालात देख कर घबराने लगे हैं और आधे और ज्यादा उग्र होने लगे हैं.

भगवा गैंग को यह सम?ा आ गया है कि मुसलमान न तो ?ाकेंगे और न ही जरूरत से ज्यादा डरेंगे, इसलिए अब वह भाईचारे टाइप की बातें कर लीपापोती की कोशिश कर रहा है. लेकिन उस की लगाई आग आसानी से बु?ोगी, ऐसा लग नहीं रहा क्योंकि आफ्टर औल ये लोग कर तो राजनीति ही रहे हैं.

टूटता सामाजिक तानाबाना

भगवा गैंग की व उस की भारतीय जनता पार्टी की सांप्रदायिक राजनीति से देश का सामाजिक तानाबाना पूरी तरह से टूट चुका है. रिपोर्ट लिखे जाने तक नूपुर की गिरफ्तारी नहीं हो पाई. नूपुर पुलिस प्रोटैक्शन भोग रही है. उस के बयान को कट्टर हिंदू संगठन खुला समर्थन दे रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ, देश के मुसलिमों का एक तबका ‘नबी की शान’ के नाम पर हिंसक प्रदर्शन पर उतारू है. मामले को सम?ाने व गंभीरता से हल करने की जगह सरकारें बुलडोजर कुनीति से मुसलिमों को डराने में लगी हुई हैं.

ऐसे में आज यह सोचना जरूरी बन गया है कि हम किन हालात में आ गए हैं, जहां हर तरफ धर्म का ही राग बजाया जा रहा है. वर्ष 1990 तक हमारे समानांतर चलने वाला चीन हम से कितना आगे निकल गया है. इसे इस बात से सम?िए कि हम अपनी तुलना पाकिस्तान, अफगानिस्तान और हम से छोटेमोटे व गिरेपड़े देशों से कर रहे हैं. वही चीन जो कभी हमारे बराबर हुआ करता था, वह गरदन ऊंची कर सीधे अमेरिका से मुकाबला कर रहा है. आखिर ऐसा क्यों हुआ, क्या इस पर कभी सोचा है?

90 के बाद नई आर्थिक नीति आई, देश ने तेजी से विकास तो किया पर साथ में दक्षिणपंथ ने भी तेजी से पैर पसारने शुरू किए. चीन में भले एक दल की कठोर सरकार शासन में रही पर धर्म के मसलों से वहां की सरकार किनारे रही. वहीं भारत में धर्म की अधिकाधिक घुसपैठ होने लगी. बाबरी मसजिद के विवाद ने धर्म की राजनीति के दावे को मजबूती दी. धर्म के नाम पर लोगों की भावनाओं का इस्तेमाल कर आप आसानी से वोट पा सकते हैं और अपने अंध कट्टर समर्थक बना सकते हैं, यह बात भाजपा ने सम?ा ली. यही कारण रहा कि विकास और समाज कल्याण की राजनीति पिछड़ती चली गई और धर्म की राजनीति हावी होने लगी.

जनहित के मुद्दे गायब

आज देश में सारे मुद्दे गायब हैं. रोजगार, शिक्षा, महंगाई, स्वास्थ्य जैसे जरूरी मुद्दे बहस में हैं ही नहीं. हर तरफ धर्म का शोर मचा हुआ है. बंगलादेश, भूटान और नेपाल जैसे देश अपने देश की बेहतरी व आर्थिक तरक्की के लिए आगे बढ़ रहे हैं जबकि हम मसजिदों की खुदाई करने में व्यस्त हैं. भारत का सामाजिक तानाबाना टूट रहा है. लोग एकदूसरे पर विश्वास नहीं कर रहे. एक समुदाय दूसरे समुदाय से या तो डर में जी रहा है या आशंकित है. यह डर सिर्फ लोगों में नहीं, बल्कि बड़ेबड़े इन्वैस्टरों में भी पनपने लगा है.

कोई देश तभी तरक्की कर सकता है जब देश शांत हो और उथलपुथल न के बराबर हो. जिस देश में हर रोज तमाशे हो रहे हों, खासकर धार्मिक तमाशे, वहां कोई इन्वैस्टर अपना इन्वैस्ट करने से बचता है. हालिया हिजाब, हलाल जैसे बेबुनियाद उठाए विवादों और रामनवमी व हनुमान चालीसा के जुलूसों के बाद आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन और बायोकोन की संस्थापक व प्रमुख किरण मजूमदार शा ने इस बात को ले कर भारत को चेताया भी कि अल्पसंख्यक विरोधी छवि भारतीय प्रोडक्ट्स के लिए बाजार को नुकसान पहुंचा सकती है. इस तरह की सांप्रदायिक घटनाएं हमारे वैश्विक नेतृत्व को नष्ट कर देंगी.

ये बातें अनायास नहीं कही गईं. आज जिस तरह के हालात बनते दिख रहे हैं उस से यही लगता है कि भारत विश्वगुरु ऐसे तो कतई नहीं बन सकता, क्योंकि यह गुरु गैरबराबरी की मूल भावना पर चल रहा है. नूपुर शर्मा का मामला दर्शाता है कि धर्म व नफरत पर आधारित राजनीति करना ?ाल में नईनई जमी बर्फ पर नाचनाकूदना है. न जाने कब कमजोर बर्फ की परत टूट जाए और ट्रैजडी हो जाए, जैसे भारत के साथ विश्व मंच पर हो गई.

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