भारत भूषण श्रीवास्तव व रोहित

सत्ता देश की जनता को किसी को पराया घोषित करने की खुली छूट देगी तो नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल की जैसी सांप्रदायिक व नफरती बातें मुंह से निकलेंगी ही. धर्म का कोई दुकानदार अपने धर्म के बारे में सच सहन नहीं कर सकता पर वह दूसरे धर्म के बारे में न कही जाने वाली बातें बोलेगा ही. नूपुर शर्मा का मामला दर्शाता है कि धर्म आधारित राजनीति करना ?ाल में जमी बर्फ पर नाचनाकूदना है, न जाने कब कमजोर बर्फ की परत टूट जाए और भयंकर ट्रैजडी हो जाए.

सैय्यदा उज्मा परवीन लखनऊ की जानीमानी नेता हैं जो महिला और मानवाधिकारों के लिए भी काम करती हैं. सोशल मीडिया पर उज्मा का विवादों से गहरा नाता है. राजनीति में भी उन्होंने हाथ आजमाने की कोशिश की थी पर नाकामी मिली थी. सीएए आंदोलन के दौरान उन्होंने अपने बच्चे को ले कर धरनाप्रदर्शन में हिस्सा लिया था. इस के एवज में लखनऊ वालों ने उन्हें ‘?ांसी की रानी’ कहना शुरू कर दिया था. इस के बाद वे चर्चा में तब आईं जब पिछले साल स्वाधीनता दिवस (15 अगस्त) के मौके पर सार्वजनिक तौर पर घंटाघर प्रांगण में वे तिरंगा ?ांडा फहराना चाहती थीं लेकिन पुलिस ने उन्हें हाउस अरैस्ट कर दिया.

अब बीती 5 जून को उज्मा ने ट्वीट किया, ‘‘आज मेरे घर के नीचे बल तैनात किया गया, स्पैशल स्कौट भेजा गया है. आखिर कोई बताएगा कि मेरा कुसूर क्या है. सिर्फ इतना कि मैं ने नूपुर शर्मा को गिरफ्तार किए जाने के लिए आवाज उठाई, जिस ने हमारे नबी की शान में गुस्ताखी की. मैं डरने वाली नहीं हूं, न दबने वाली हूं. मु?ो अल्लाह के सिवा किसी का डर नहीं.’’

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