कोरोना की दूसरी लहरसे देश में हाहाकार मचा हुआ है, हर दिन सैकड़ों मोतें सरकारी पन्नों में दर्ज हो रही हैं तो कई हजारोंअनामअसमय शमशान घाटों में जलाई जा रही हैंऔर जिन्हें यहां जगह नहीं मिली उन्हें ‘मां’ गंगा में बहाया जा रहा है. तभी तो उत्तर प्रदेश से गंगा में बहते 71 से ऊपर लाशें सीधे बिहार जा पहुंची और देश के “सिस्टम” का दरवाजा खटखटा कर पूछ बैठी कि ‘क्या अभी भी सब चंगा सी?’

मां गंगा सब की है, हालाकि सब मां गंगा के नहीं हैं, यहां प्रधानमंत्री भी आते हैं बड़ेबड़े शो होते हैं और वे उन शो में बजने वाले गानों पर थिरकते भी हैं,यहां लाखों भक्त भी आते हैं और कुंभ में डुबकियां मारते हैं, जिन भक्तों का पाप का घड़ा भर जाता है वे यहां अपने पाप बड़ी आसानी से धो जाते हैं, मरने पर तो उन की राख को मांगंगा के सुपुर्द कर दिया जाता है ताकि आत्मा को शांति पहुंच सके. कितना आसान तरीका है न अपराध से मुक्ति का?किन्तु जब सेफिजा बदली, सरकार बदली, हिंदुत्व प्रचंड हुआ तो भक्तों की राख की जगह अब सीधे शोर्टकट तरीके से भक्तों की लाशें ही बहाई जा रही हैं. चलो यह भी ठीक है,शरीर को तो एक न एक दिन दिन मिट्टी होना ही है मरने के बाद किसे पता क्या हुआ, लाश जला दफना या बहा.मेरा दुख बस यह है कि मोदीजी अपने कामों का पूरा श्रेय नहीं लेते हैं, नोटबंदी के समय गंगा में बहने वाले नोंटों का श्रेय तो उन्होंने ले लिया लेकिन मांगंगा मेंबहती लाशों का श्रेय नहीं ले पाए,देश को उन के खिलाफयह नाइंसाफी कतई नहीं सहनी चाहिए. इसलिए इस का कुछ श्रेय तो उन के सुपुर्द किया ही जाना चाहिए.

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यह भी ठीक है, मौत के बाद के कर्मकांड वैसे ही गरीबों की जेब पर भारी पड़ते थे सो मोदीजी का यह शोर्टकट तरीका भी देरसवेर भक्तों को पसंद आ ही जाएगा.धर्म से बनी सरकार, धर्म के इर्दगिर्द ही सोचती है और मेरा खयाल है उन का सोचना जायज भी है क्योंकि वह येनकेन प्रकारेण धर्म की पीठ पर सवार हो कर ही तो बनी है और देश की “समझदार” जनता ने इन्हें जिताया ही धर्म पर है तो वह इस तरीके को भी हाथोंहाथ ले ही लेगी. मेरा मानना है कि उन्हें इन बहती लाशों से हैरानी तो बिलकुल भी नहीं होनी चाहिए क्योंकि हम जनता ने ही तो ऐसे प्रकांड धर्मांध नेता चुने हैं जिन का विश्वास विज्ञान, डाक्टरों और दवाइयों पर कम, धर्मकर्म, कर्मकांड, अंधविश्वास पर ज्यादा है.

कोरोना की दूसरी लहर जैसे ही तेज होती जा रही है, नेताओं के धार्मिक प्रपंच भी तेज होते जा रहे हैं. यह एक तरह से मान कर चल सकते हैं की ‘हर एक्शन का रिएक्शन’ जैसा है. ऐसे ही मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर ने कोरोना की तीसरी लहर को हराने के लिए अजीबोंगरीब समाधान दे दिया है.उषा ठाकुर एमपी के मऊ से 2018 में विधानसभा का चुनाव जीती थी.

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उषा ठाकुर ने पत्रकारों के साथ बातचीत के दौरान ‘यज्ञ में आहुति देने’को कोरोना के खिलाफ लड़ने में कारगर समाधान बताया. उन्होंने कहा,“तीसरी लहर के लिए हम जागृत हैं. तीसरी लहर बच्चों पर असर डालेगी, उसके लिए हम ने तैयारियां शुरू कर दी हैं. मुझे भरोसा है कि इस तीसरीलहर से भी हम निपट लेंगे. आप सब से प्रार्थना करती हूं कि पर्यावरण की शुद्धि के लिए सब एक साथ आहुतियां डालें क्योंकि महामारी के नाशमें अनादि काल से यज्ञ परंपरा को अपनाया गया है. यह यज्ञ चिकित्सा है, धर्मांधता नहीं है. हम सब दोदो आहुतियां डालें और अपने हिस्से का पर्यावरण शुद्ध करें. तीसरी लहर हिंदुस्तान को छू नहीं पाएगी.”

चलो इस बयान से यह तो साबित हुआ कि मध्यप्रदेश सरकार कोरोना से लड़ने की तैयारियां कर रही हैं भले उन का हथियार यज्ञ ही सही. देश में उषा ठाकुर जैसे महान विद्वानों की कमी नहीं है, ऐसे प्रकांड और तेजस्वी विद्वान जो वेद पुराणों और धार्मिक ग्रंथों से देश चलाने का हुनर रखते हैं. वे संकराचार्य और मनुओं के घोर भक्त हैं इसलिए उन के विचारों को तहेदिल से फौलो भी करते हैं. यह उन धार्मिक ग्रन्थ में पूरी निष्ठा से रखते हैं जिन में महिलाओं और पिछड़ों का शोषण करने की रीतिनीति लिखी हैं, इसलिए यह तो माना जा ही सकता है कि इन के शासन करने का तरीका बांटने का है जोड़ने का नहीं.

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चलो बढ़िया भी है उन्होंने ऐसा कहा वरना देश तो कब से वैक्सीन के आस में बैठा था कि अब लगेगी तब लगेगी, बेचारे लोग क्या जानते थे कि उन की वाट लगेगी. ध्यान रहे इस बयान के बाद अब कोई वैक्सीन की लाइन में नहीं लगेगा, अब सब यज्ञ में आहुति देने का विचार बनाएंगे, कोई अपने मांबाप की आहुति देगा, कोई अपने पति की, कोई पत्नी की तो कोई अपने बच्चों की. वैसे भी इन भले नेताओं के चलते लोग आहुतियां लम्बे समय दे ही रहे हैं, कभी नोटबंदी के नाम पर, कभी जैलबंदी के नाम पर तो कभी देशबंदी के नाम पर.

ऐसा नहीं है कि विद्वान उषा ठाकुर का यह पहलाबयान है, इस से पहले भी इन्होने अपनी तरकश से ऐसे तीर कई बार छोड़े हैं. ताजाताजाहालिया मामला तब बना जब उन्होंने कहा था किगोबर से बने कंडों पर घीं लगा कर किएहवन से घर 12 घंटे तक सैनिटाईज रहता है. वाह…. क्या बात है….जब माता उषा ने ऐसा दावा किया तो सैनिटाईजर बनाने वाली कंपनियां सकते में आ गईं. भई आएं भी क्यों न,अब बनाबनाया मार्किट जाने का खतरा तो बना ही रहता है न? और मेरा तो खयाल है कि कुछ समय बाद एकआध कंपनी सेनिटाईजर की जगह गोबर के कंडे बनाने चालू कर भी देगी.

ऐसे ही थोड़ी उषा ठाकुर नवरात्रों और जगरातों में भजन गाया करती थीं, वहां से मिली ‘स्त्री धर्म’ की शिक्षा वह बखूबी जानती हैं, इसीलिए तो हाल ही में उषा ठाकुर ने महिलाओं को सलीके से रहने का फरमान दे दिया.उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह ने जैसे ही महिलाओं की जींस को ले कर औछि बात कही तो तीरथ साहब धरा गए और चहूं दिशाओं से खूब फजीहतकटी. लेकिन तब उषा ठाकुर प्रकट हुईं और सीएम के समर्थन में कहने लगी की ‘महिलाओं का रिप्ड जींस पहनना ‘अपशकुन’ है और महिलाओं को मर्यादा में रहना चाहिए.’ अपशकुन का तो पता नहीं लेकिन विवाद इतना बढ़ गया कि जनाब तीरथ सिंह रावततो मौका देख कर यूटर्न मार लिए क्योंकि साहब खुद आरएसएस की शाखा में हाफ निक्कर पहन टहला करते थे लेकिन बेचारी उषा जी को फंसा गए. अच्छा तीरथ सिंह भी कम तेजस्वी नहीं हैं, जानकारों का मानना है कि कोरोना की दूसरी वेव के जिम्मेदार जितने बंगाल में राम के नारे लगाने वाले हैंउतना ही यह महाशय भी हैं. सुना है जनाब हरिद्वार कुंभ में देश को कोरोना प्रसाद बंटवाने में खासा मदद कर रहे थे.

ऐसा नहीं कि उषा ठाकुर ऐसा माहौल बनाने वाली कोई नई खिलाड़ी हो, वह तो पहुंची हुई खिलाड़ी है, लगता है भाजपा-आरएसएस से पूरा प्रशिक्षण ले कर ही वह ऐसा कहती हैं.पिछले साल अक्टूबर महीने में इन्होने बिना तथ्यों के मदरसों को देश में ‘आतंक का अड्डा’ बता डाला. उस से एक महीने पहले सितंबर में इन्होने मध्यप्रदेश में आदिवासियों के हित में लड़ने वाली पार्टी ‘जयस’ को देशद्रोही बता डाला. यह वहीँ नेता हैं जिन्होंने मुस्लिमों को नवरात्रे में गरबा खेलने की पाबन्दी की मांग की थी.ठहरो, उन की लीला यहीं खत्म नहीं होती, ये पक्की खिलाड़ी हैं इसलिए जानती हैं कि लोगों को उन के इन बयानों से मजा आता है, तभी उन्हें जिताते भी हैं.वह इतनी आत्मविश्वासी हैं कि देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी दिलाने वाले महापुरुष महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को सच्चा देशभक्त तक बता डाला है. अच्छा, एक बात यह कि उषा ठाकुर और प्रज्ञा ठाकुर कौन किस का गुरु है यह कहना मुश्किल है लेकिन बातव्यवहार और सोचविचार दोनों के लगभग बराबर ही हैं. ठीक गोडसे के सम्बन्ध में यही बात प्रज्ञा ठाकुर भी कह चुकी हैं, अरे वही प्रज्ञा जिन के कैंसर का इलाज वैसे तो एम्स में चला पर बकौल प्रज्ञा गाय के यूरिन पी कर वह ठेक हुई हैं. खैर मूल यह कि, यह बातें कहतेकहते कैसे एक राज्य की संस्कृति मंत्री के पद तक पहुंच गईं हैं, और एक संसद बन गईं,अब इसे भाजपा आरएसएस का इनाम ही समझो.

उषा ठाकुर से पहले भी देश के कई दूसरे नेता कोरोना को हराने के अपने नुस्खे बता चुके हैं. और उम्मीद है कि ऐसे प्रकांड धर्मांध आगे भी ऐसे ही नुस्खे जारी रखेंगे, लिहाजा कोई मंत्री ‘भाभीजी पापड़’बेच रहा है, कोई डार्क चौकोलेट खाने की बात कह रहा है, कोई गायत्री मन्त्र के ऊपर रिसर्च करवा रहा है, कोई नारे लगा कर भगा रहा है, कोई योग कहकह कर अपना माल बेच रहा है तोकोई गोबर का लेप लगाने की बात कर रहा है. गुजरात में तो दोचार खाकी निक्करधारी नमूने… माफ कीजिएगा, मेरा मतलब महानुभावतो इतने सीरियस हो गए कि वे कोरोना से बचने के लिए गायभेंस के गोबर और पेशाब में लौटपौट ही हो लिए. ऐसा कहीं और हो सकता है भला?ऐसे ही थोड़े देश में हम बढ़ते कोरोना मामले और गिरती अर्थव्यवस्था में नंबर 1 बन चले हैं. यह चमत्कार सिर्फ भारत में ही हो सकता है जहां विज्ञान को मात ऐसे महानुभाव देते हैं जो ठीक से अपनी डिग्री तक नहीं दिखा पाते हैं. क्यों? क्योंकि हम “समझदार” लोगों ने ऐसे तेजस्वी नेता जो चुने हैं.

ऐसा नहीं है यह नेता अपने ज्ञान का पिटारा यूंही खोलते हैं, बल्कि ये पूरे तरीके से सोचविचार कर ऐसा कहते हैं, क्योंकि इन्हें भरोसा है कि यह ऐसे ही तो कहबोल कर चुनाव जीते हैं.इस बात को क्या हमारे देश के प्रधानमंत्री नहीं जानते? बखूभी जानते हैं तभी तो पिछले सालउन्होंने पूरे देश से पहले थालियां बजवाईं और फिर दियाटोर्च जलावाया.लगे हाथ भक्ति में हम ने भी तो घरों के कनस्तर फोड़ डाले, हवनयज्ञ, गौमूत्र और मल को कोरोना का इलाज मान कर प्रधानमंत्री की तरह कोरोना को रामभरोसे छोड़ दिया.

मेरा मानना है कि आज के इस ऐतिहासिक हालत के जिम्मेदार नेता नहीं, जनता ही है. जनता ही है जिसे अस्पताल की नहीं बल्कि मंदिर चाहिए था, जनता ही थी जिसे सुनने वाली सरकार नहीं अड़ियल सरकार चाहिए थी,जनता ही है जिसे खाना नहीं भूख चाहिए था, जनता ही है जिसे समाज में प्यार नहीं एकदूसरे से नफरत चाहिए था, जनता ही है जिसे विकास नहीं विनाश चाहिए था. अब जो जनता को चाहिए था वही नेता बखूबी चाहता था.बबूल का पेड़ बोया है तो आम तो मिलेंगे नहीं, हम ही हैं जिन्होंने ऐसे धर्मभीरुओं को देश संभालने को दिया है तो इस के हिस्से के कांटे भी अब हमें ही नसीब होने हैं इसलिए अब अस्पताल, बेड, औक्सीजन इलाज, नौकरी की चिंता छोड़ महायज्ञ की तैयारी कर लो क्योंकि हम यही डिजर्ब करते हैं.

 

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