सरकार से किसान आंदोलन संभल नहीं पा रहा है. इसलिए वह अब देश की आवाज बंद करने पर उतारू हो आई है ताकि उस आंदोलन की खबरें लोगों व दुनिया को न मिले सकें. चीनी तौरतरीकों पर न केवल दिल्ली के चारों ओर बैठे किसानों को दुश्मनों की तरह माना जाने लगा है बल्कि उन का समर्थन करने वालों व उन के पक्ष में कुछ कहने वालों को देश का दुश्मन, समाजद्रोही, सरकार को गिराने वाला कहा जाने लगा है. किसान देश की रीढ़ की हड्डी हैं और कभी भी कोई राजा उन्हें नाराज कर के बचा नहीं है. सदियों से राजाओं की आय का स्रोत किसान ही रहे हैं. जिसे हम सोने की चिडि़या कहते हैं वह असल में किसान की पाली होती थीं. किसान से वसूले गए लगान के बल पर सेनाएं खड़ी की गईं, किसान परिवारों के बच्चों को हथियार दे कर सेना में रखा गया था.

यह बात दूसरी है कि पौराणिककाल से ही किसानों को शूद्र समझा गया है और उन्हें बिना पेट भरे काम करने वाला जानवर माना गया है. इस सरकार को वोट भगवा झंडे उठाने वाले किसानों के बेटों से ही मिले थे. मारपीट करने वाले गैंग किसानों के घरों से ही आए थे. अब जब किसान अपनी बात मनवाने के लिए पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश ही नहीं, पूरे देश में उठ खड़े हुए हैं तो पौराणिक सरकार तिलमिला उठी है और वह न केवल उन्हें जेलों में भर रही है, उन के धरनेस्थलों को जेलों जैसा बना रही है और उन के पक्ष की बात करने वालों को जेल में डालने की धमकी दे रही है. अमेरिकी सोशल मीडिया कंपनी ट्विटर तक को धमकी दी जा रही है कि अगर किसान समर्थकों की बातें कहने वालों के अकाउंट बंद नहीं किए तो उन्हें जेल में डाल दिया जाएगा. यह कोरी तानाशाही है और इस तानाशाही का असर किसानों के प्रति सरकारी रुख पर ही नहीं दिख रहा है, हर सरकारी फैसले में भी दिख रहा है. सरकार न किसी तरह का विरोध सह रही है, न लोकतांत्रिक संस्थानों की सुन रही है. वह स्कूलकालेजों, ज्यूडीशियरी, नौकरशाही के किसी सदस्य द्वारा उस से किसी तरह की असहमति जताने वाले को बख्श नहीं रही है. सरकार के कदम की आलोचना करने वाले पत्रकारों को जेल में डाला जा रहा है.

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नए कृषि कानूनों व किसानों के मुद्दे को ले कर इंसाफ की बात करने वालों को डरायाधमकाया जा रहा है. मौजूदा सरकार को समाजसुधार से कोई सरोकार नहीं है. उस का ध्येय केवल सत्ता पर पकड़ मजबूत रखना व अपने चाटुकारों और पूजाकारों को पनपने देने का रह गया है. यह एक भयंकर स्थिति पैदा कर रहा है क्योंकि इस का मतलब यह है कि देश में नए विचारों को कुचल दिया जाएगा. सरकार जन की आवाज पर पहरे लगा रही है. देश को आगे बढ़ने के लिए सैकड़ों सामाजिक सुधारों की आवश्यकताएं हैं, जबकि सरकार ने उन की ओर आंखें ही नहीं मूंद ली हैं, बल्कि उन्हें सरकार ने अपना विरोध मान लिया है. जो पुराणों में नहीं लिखा, वह मौजूदा सरकार को मंजूर नहीं. यह देश को 2,000 साल पीछे ले जाएगा जब मुट्ठीभर विदेशी आते और देश के बड़े हिस्से पर राज करने लगते थे.

हां, मंदिरों के रखवाले हर युग में किसी न किसी तरह रंग बदल कर जीवित रहे और आज मौजूदा पौराणिक सरकार के संरक्षण तले वे शेर बन रहे हैं. कट्टरता बेलगाम उत्तर प्रदेश के चरण सिंह विश्वविद्यालय में खुल्लमखुल्ला हिंदू पंचायत का आयोजन किया गया जिस में एक स्वामी आनंद स्वरूप ने खुल्लमखुल्ला कहा कि अगर मुसलमान भारत में रहना चाहते हैं तो उन्हें कुरान पढ़ना बंद करना होगा और नमाज बंद करनी होगी. इतना ही नहीं, उन्होंने यह कह कर हिंदुओं को उकसाया भी कि हिंदू जनता मुसलिम दुकानदारों से सामान न खरीदे ताकि वे धीरेधीरे हिंदू बन जाएं. अगर ऐसा कुछ कोई मुसलमान अपने प्रभाव के क्षेत्र में हिंदुओं के लिए कहता तो पुलिस 10 घंटे के भीतर न केवल उक्त मुसलमान वक्ता को गिरफ्तार कर चुकी होती, बल्कि हर आयोजक को भी गिरफ्तार कर चुकी होती और हरेक पर विभिन्न कानूनों की 10-12 धाराएं लगा चुकी होती.

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अभी इस मामले में केवल जांच हो रही है जो कभी पूरी नहीं होगी और स्वामी आनंद स्वरूप अगली सभा में सम्मानजनक ढंग से बुलाए जाएंगे. जाहिरी तौर पर मुसलमानों के लिए ऐसा कहा गया है लेकिन परोक्षरूप से ऐसा ईसाईयों, यहूदियों, सिखों, जैनियों और ईश्वर को न मानने वालों के लिए भी कहा जा रहा है. इस के पीछे कट्टर हिंदुओं का उद्देश्य यह है कि हिंदुओं के मन में एक खतरा पैदा कर के रखो ताकि सभी हिंदू कट्टरता को अपनाएं. वहीं, दूसरे धर्म वालों के प्रति नफरतभरी इन बातों का विरोध न किया जाना यह दर्शाता है कि देश की हिंदू जनता आज धर्मप्रचारकों के हाथों की कठपुतली बनी हुई है. और इन धर्मप्रचारकों की पूजापाठ, हवनयज्ञ, दान लेने में रुचि है, देश के निर्माण में नहीं, देश में सामाजिक सुधारों में नहीं, देश की औरतों को इज्जत व बराबरी का स्थान देने में नहीं.

हिंदू संगठनों ने तमाम छुट्टे सांड यानी धर्मप्रचारक छोड़ रखे हैं जो कुछ अति बोल कर जनता को डराते रहें कि देश में जो कुछ होगा वह लंबी दाढ़ी वालों के कहे अनुसार होगा जो भगवा वस्त्र पहनते हैं, चाहे वह शौल हो, जैकेट हो, कमीज हो या स्टौल. इन स्वामी महाराज ने सितंबर में कहा था कि हिंदू का अग्निदाह राशि में केवल काशी में हो सकता है यानी जीवन और मौत दोनों पर क्या किया जाए, यह फैसला धर्म करेगा, व्यक्ति नहीं. इन्हें उन ट्रस्टों पर भी आपत्ति है जो सरकार के अधीन हैं क्योंकि उस के आधार पर ट्रस्टी कोई ईसाई या शास्त्र द्वारा अमान्य व्यक्ति भी बनाया जा सकता है. ये स्वामी बैक टू बेसिक में विश्वास करते हैं, जबकि ये आधुनिक ट्विटर, इंटरनैट, फेसबुक का जम कर इस्तेमाल करने से परहेज नहीं करते जो पौराणिक युग में थे नहीं. वैसे तो ये भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने को कहते हैं जिस में समुद्रपार जाने की बंदिश हो, लेकिन वहीं वे 60 देशों में अपनी परिषद खोलना भी चाहते हैं, शायद इसलिए कि विदेशों में बसे हिंदू कट्टरपंथी काफी अमीर हैं.

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देश को आवश्यकता है कि सभी देशवासी मिल कर नया समाज बनाएं और प्राचीन व संकीर्णवाद समाज को त्यागें जिस में स्त्री को पापयोनि का कहा जाता है और वर्णव्यवस्था का बखान होता है. आज हमारे देश को कर्मठ हाथों की जरूरत है, पर इस तरह के लोग उन हाथों में कमंडल पकड़ा देना चाहते हैं. आरक्षण की हत्या भारतीय जनता पार्टी का बड़ा एजेंडा आरक्षण समाप्त करना रहा है. आज जो समर्थन उसे मीडिया, तथाकथित विद्वानों, नौकरशाही, व्यापारियों से मिल रहा है, उस के पीछे बड़ा कारण है कि वे सभी पौराणिक युग का जातिगत भेदभाव, जो जन्म पर आधारित है, सत्ता में बनाए रखना चाहते हैं और पिछड़े यानी ओबीसियों व दलितों यानी एससीएसटियों को असल सत्ता में बैठा नहीं देखना चाहते. ऐसा ही वे औरतों के साथ करना चाहते हैं कि हर जाति, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य की महिलाएं आगे बढ़ कर सत्ता में बैठें. अब सरकार ने प्रशासनिक सुधारों व कार्यकुशलता के नाम पर 3 जौइंट सैक्रेटरियों और 27 डायरैक्टरों को बिना यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन की परीक्षाओं को पास करने के केवल अनुभव व इंटरव्यू के आधार पर नियुक्त करने का फैसला किया है.

जो पिछड़ी व निचली जातियों के अफसर पदोन्नति के सपने देख रहे थे अब भूल जाएं कि इस सरकार में उन्हें सत्ता मिलेगी. हां, वेतन व मकान की सुविधा के टुकड़े चाहे मिलते रहें. मुख्य मंत्रालय जैसे कौमर्स मंत्रालय, राजस्व मंत्रालय और कृषि मंत्रालयों के अतिरिक्त सचिव अब सीधे प्रधानमंत्री की चाहत पर नियुक्त होंगे और उन्हें वही वरिष्ठता मिल जाएगी जो उस पद पर धीरेधीरे बढ़ते हुए लोगों को मिलती है. 27 बेहद कमाऊ मंत्रालयों में डायरैक्टर पोस्ट पर सीधे नियुक्तियां होंगी. कहने को विज्ञापन दिया जाएगा पर असल में 2 ही तय करेंगे कि कौन, कहां, किस मंत्रालय में जाएगा. यह साफ है कि इन 30 लोगों में इक्कादुक्का ही पिछड़ों या दलितों से होंगे. ये सब अपनेअपने विभागों में एक तरह से सुपर मंत्री होंगे क्योंकि इन की नियुक्ति नई होगी और इन्हें प्रधानमंत्री कार्यालय से आदेश मिलेंगे. सरकार पर शिकंजा कसने के साथ मंत्रियों को उसी तरह निष्क्रिय कर दिया जाएगा जैसे आज एक आम भाजपाई सांसद, मुख्यमंत्री या विधायक हैं. उन्हें बस, सरकार के इशारे पर ट्विटर पर बयान देना होगा. एक देश, एक कानून के साथ ‘एक ही शासक’ की ओर बढ़ रहा यह देश एक ही जाति को पूरी तरह बढ़ावा दे रहा है. कानून का दुरुपयोग बलात्कार के कानून का दुरुपयोग आजकल किसी पर भी किसी बच्ची को सैक्सुअली मोलैस्ट करने या यौन प्रताड़ना के नाम पर किया जा सकता है.

दिल्ली में एक व्यक्ति को छोड़ा नहीं गया हालांकि जमानत मिल गई. उस पर अपने एक जानकार की ढाई साल की बेटी की यौन प्रताड़ना का आरोप लगाया गया था. सीसीटीवी देखने पर पता चला कि यह आरोपी 2 मिनट में घर से वापस आ गया. जबकि 8 घंटे बाद बच्ची के पिता ने एफआईआर दर्ज कराई. बड़ी लड़कियों के बलात्कार की बात तो लोग छिपा जाते हैं क्योंकि उन के चरित्र पर धब्बा लग जाता है. और भारत तो ऐसा देश है जहां लड़कियों पर ही चरित्र के सारे धब्बे पौराणिक युगों से, राम के जमाने से लगते रहे हैं. यहीं अहल्या को पत्थर बनना पड़ा और सीता को घरनिकाला मिला था. इसलिए बच्चियों को ले कर किसी पर भी झूठे आरोप मढ़ना बहुत आसान है. ढाई साल की बच्ची से ओरल सैक्स करवाना, वह भी उस के अपने घर में जब घर वाले मौजूद हों, अटपटा ही लगता है. पर चूंकि ‘हथियार’ कानून ने दे दिया है तो इस का जम कर दुरुपयोग हो रहा है. बच्चों से यौनक्रियाएं करवाना कोई अत्प्रत्याशित बात नहीं है. सैकड़ों नहीं, लाखों बच्चे, जिन में लड़के भी शामिल हैं, जीवनभर बचपन में मिले दंश को ले कर जीते हैं.

आमतौर पर बच्चों के साथ यौनक्रिया घर का कोई नजदीकी ही करता है और इस अपराध में किशोर, गैरशादीशुदा, शादीशुदा और वृद्ध तक शामिल होते हैं. ऐसे में मातापिता का सतर्क रहना बहुत ही आवश्यक है. लेकिन इस कानून का बदला लेने का चलन चलने लगा तो इस का प्रभाव जाता रहेगा. यौनक्षुधा ऐसी है जिस को हजार तरीकों से निबटाया जाता है. अब तक सामाजिक या बायलौजिकल विद्वानों के पास इस का कोई हल नहीं है. अपराध करने पर दंड देना समस्या का हल नहीं, क्योंकि अपराधी यह काम आवेश में करता है जब भी उसे मौका मिले. और तब वह आगापीछा नहीं सोचता. इस का एक सरल हल यही है कि लोगों की भाषा में यौनजनित गालियां कम हों. यौनसंबंध जीवन को सुख देता है जब एकदूसरे का सहयोग हो. पर गाली के साथ जोड़ कर इसे बदला लेने या पाश्विकता के साथ जोड़ दिया गया है. वैसे भगवा सैल इस का भरपूर उपयोग अपने विरोधियों के खिलाफ ट्विटर, इंस्टाग्राम और फेसबुक पर करता है. सारे पढ़ेलिखे उच्च जातियों के लोगों के संस्कार तब आहत नहीं होते जब वे यौन अंगों, वे भी पराई औरतों के, का इस्तेमाल करते हैं.

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