नए साल का जनवरी महीना किसानों के लिए खास होता है. वजह, यह महीना खेती, पशुपालन, मधुमक्खीपालन, मछलीपालन, मुरगीपालन, मशरूम उत्पादन, फूलों की खेती समेत सब्जियों की खेती के लिए मुफीद माना जाता है. वैसे तो इस महीने कड़ाके की सर्दी पड़ती है, जो कुछ फसलों के लिए फायदेमंद है, तो कुछ फसलों को ठंड व पाले से बचाने के लिए ज्यादा देखभाल की जरूरत पड़ती है. तो आइए जानते हैं जनवरी महीने में खेती से जुड़े कामों के बारे में :

रबी सीजन में ज्यादातर किसान बोआई और जुताई से जुड़े काम निबटा चुके होंगे. ऐसे में खेती से जुड़े अपने यंत्रों की मरम्मत और देखभाल पर विशेष ध्यान दें, ताकि इन कृषि यंत्रों में स्थायी खराबी आने से बचा जा सके. इस से इन की काम करने की कूवत भी बढ़ जाती है. वहीं दूसरी ओर ऐसे में ट्रैक्टर के ब्रेक, तेल का स्तर, फिल्टर वगैरह को जरूरत के मुताबिक ठीकठाक कर लेना चाहिए और समयसमय पर जांचपरख कर लेनी चाहिए. किसान अपने रोटावेटर, हैप्पी सीडर, जीरो टिलेज, रोटो सीड ड्रिल, स्ट्रा रीपर, निराईगुड़ाई के स्वचालित यंत्र, लेजर लैंड लैवलर, स्वचालित और ट्रैक्टर से चलने वाले छिड़काव यंत्रों की साफसफाई कर लें. इस के अलावा यंत्रों के नटबोल्ट की जांच अवश्य करें.

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अगर नटबोल्ट ढीले हैं, तो उन को तुरंत दुरुस्त कर दें. मशीन के बेरिंग व अन्य घूमने वाले भागों में मोबिल औयल व ग्रीस अवश्य डालें. बेरिंग के ढक्कन को ढक कर रखें. कृषि यंत्रों के ऐसे भाग, जो उर्वरक व मिट्टी के संपर्क में आते हों, उन्हें अच्छी तरह से साफ करना चाहिए. जुताई से जुड़े कृषि यंत्रों के जो भाग घिस गए हैं, उन में धार लगा लेनी चाहिए. कृषि यंत्रों के उचित गति से काम करने के लिए यंत्र में एडजस्टमैंट कर लेना चाहिए, जिस से बेल्ट आदि का तनाव ठीक रहे और यंत्र ढंग से काम करे. बीज व उर्वरक बोआई यंत्र और फसल सुरक्षा यंत्रों वगैरह का परीक्षण के अंतर्गत कैलिब्रिशन कर के ठीक कर लेना चाहिए, जिस से उचित मात्रा में बीज व उर्वरक डाले जा सकें.

साथ ही, सभी प्रकार के स्प्रेयर के नोजल के छेदों को अच्छी तरह से साफ कर लें और दवा टैंक को धो कर रखें, जिस से जंग वगैरह न लगे. गेहूं की खेती करने वाले किसान अपनी फसल में दूसरी सिंचाई बोआई के 40-45 दिन बाद कल्ले निकलते समय करें और तीसरी सिंचाई बोआई के 60-65 दिन बाद गांठ बनने की अवस्था पर करें. जिन किसानों ने जौ की फसल ले रखी है, वे जौ की फसल की दूसरी सिंचाई बोआई के 55-60 दिन बाद गांठ बनने की अवस्था पर करें. जौ और गेहूं की फसल को चूहों से बचाने के लिए जिंक फास्फाइड से बने चारे अथवा एल्यूमिनियम फास्फाइड की टिकिया का प्रयोग करें. चना की फसल में फूल आने के पहले एक हलकी सिंचाई अवश्य करें. जिन किसानों ने मटर की खेती की है, वे फसल में फूल आने से पहले एक हलकी सिंचाई कर दें.

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इस के अलावा फसल में भभूतिया यानी पाउडरी मिल्ड्यू रोग के लक्षण दिखने पर घुलनशील गंधक 80 प्रतिशत डब्लूपी 2.5 ग्राम मात्रा प्रति लिटर की दर से छिड़काव करें. इस की एक हेक्टेयर में 1.5 किलोग्राम मात्रा की जरूरत पड़ती है या फफूंदीनाशक फ्लूसिलाजोल 40 प्रतिशत ईसी की 120 मिली मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 600 से 800 लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें. राई और सरसों में दाना भरने की अवस्था में दूसरी सिंचाई करें, वहीं जिन किसानों ने शीतकालीन मक्का की खेती कर रखी है, वे फसल की दूसरी निराईगुड़ाई, बोआई के 40-45 दिन बाद कर के खरपतवार निकाल दें. साथ ही, यह भी ध्यान रखें कि मक्का फसल की दूसरी सिंचाई बोआई के 55-60 दिन बाद करें व तीसरी सिंचाई बोआई के 75-80 दिन बाद अवश्य करें.

इस महीने किसान गन्ने की फसल की कटाई कर चीनी मिलों को बेच दें, जिस से ग्रीष्मकालीन सब्जियों के लिए खेत समय से खाली हो जाएं. इस के अलावा इस महीने गन्ने से बनाया जाने वाला गुड़ ज्यादा स्वादिष्ठ होता है. ऐसे में गुड़ का व्यवसाय करने वाले किसान इस महीने गुड़ बना कर ज्यादा मुनाफा ले सकते हैं. जिन किसानों ने बैंगन और टमाटर की पौध लगा रखी है, वे जनवरी महीने के आखिरी सप्ताह तक इस की रोपाई कर दें. रोपाई के तुरंत बाद पहली सिंचाई करें, इस के बाद 8-10 दिन बाद सिंचाई करें. जिन किसान भाइयों ने टमाटर और बैंगन की शरद मौसम की फसल लगा रखी है, वे अच्छी गुणवत्ता और कीमत के लिए समय पर फलों की तुड़ाई करें.

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बैंगन में फल तब तोड़े जाने चाहिए, जब वे मुलायम हों और उन में ज्यादा बीज न बने हों. फूलगोभी की खेती करने वाले किसान यह ध्यान दें कि फूल उस समय काटने चाहिए, जब वे ठोस, सफेद व धब्बेरहित बिलकुल साफ हों. फूल तेज धार वाले चाकू से काटे जाएं और फूल के साथ पत्तियों के कम से कम 2 चक्र भी हों. यदि कटाई में देर हो गई तो फूल सकता है. कटाई करते समय 2-3 बाहरी पत्तियां रखें, जिस से बाजार ले जाते समय गांठें खराब न हों. आलू की खेती करने वाले किसान इस महीने के पहले सप्ताह तक हर हाल में पौधों के ऊपरी भाग यानी डंठल को काट दें. उस के बाद आलू को 20-25 दिन तक जमीन के अंदर ही पड़ा रहने दें.

ऐसा करने से आलू का छिलका कड़ा हो जाएगा और खराब नहीं होगा. जो किसान चप्पन कद्दू की खेती करना चाहते हैं, वे जनवरी महीने के पहले सप्ताह में बोआई जरूर कर लें. बोआई के पहले यह सुनिश्चित कर लें कि खेत में पर्याप्त मात्रा में नमी हो. इस से बीजों का अंकुरण व बढ़वार अच्छा होता है. इस की उन्नत किस्में आस्ट्रेलियन ग्रीन, पूसा अलंकार, अर्ली यलो प्रोलिफिक, पंजाब चप्पन कद्दू व मैक्सिको चप्पन कद्दू हैं. जनवरी महीने के दूसरे सप्ताह से खीरा की बोआई की जा सकती है. इस समय बोई जाने वाली उन्नत प्रजातियों में हिमांगी, जापानी लौंग ग्रीन, ज्वाइंट सैट, पूना खीरा, पूसा संयोग, शीतल, फाइन सेट, स्टेट 8, खीरा 90, खीरा 75, हाईब्रिड 1 और हाईब्रिड 2, कल्यानपुर हरा खीरा शामिल हैं. वहीं दूसरी ओर इसी दौरान ककड़ी भी बोई जा सकती है.

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इस के लिए एक एकड़ भूमि में एक किलोग्राम बीज की जरूरत होती है. जो किसान अरबी की खेती करना चाहते हैं, वे इस महीने खेत की तैयारी जरूर कर लें, जिस से फरवरी महीने में समय से बोआई की जा सके. जनवरी महीने में गरमियों के लिए पालक की बोआई की जा सकती है. ऐसे में जो किसान पालक की फसल लेना चाहते हैं, वह जनवरी महीने में बोआई कर सकते हैं. जो किसान मचान विधि से सब्जियों की खेती करना चाहते हैं, वे इस महीने करेला, लौकी, तोरई, नेनुआ की बोआई करें. जायद में मिर्च और भिंडी की फसल के लिए खेत की तैयारी अभी से शुरू कर दें. मशरूम की खेती करने वाले किसान तैयार फसल की समय से तुड़ाई कर साइज व क्वालिटी के अनुसार ग्रेडिंग कर पैकिंग लें. इस से बाजार मूल्य अच्छा मिलता है. तुड़ाई के पश्चात जल्द से जल्द मशरूम को बाजार में पहुंचाने का बंदोबस्त करें. बागों की निराईगुड़ाई और सफाई का काम करें.

आम के नवरोपित व अमरूद, पपीता और लीची के बागों की सिंचाई करें. जनवरी महीने में आंवला के बाग में गुड़ाई करें और थाले बनाएं. आंवला के एक साल के पौधे के लिए 10 किलोग्राम गोबर या कंपोस्ट खाद, 100 ग्राम नाइट्रोजन, 50 ग्राम फास्फेट व 75 ग्राम पोटाश देना आवश्यक होता है. 10 साल या उस से ऊपर के पौधे में यह मात्रा बढ़ा कर 100 किलोग्राम गोबर या कंपोस्ट खाद, 1 किलोग्राम नाइट्रोजन, 500 ग्राम फास्फेट व 750 ग्राम पोटाश देनी चाहिए. गुलाब के फूलों की खेती में समयसमय पर सिंचाई व निराईगुड़ाई करें. जरूरत पड़ने पर बंडिंग व इस के जमीन में लगाने का काम कर लें. जनवरी महीने में अधिक सर्दी पड़ती है, इसलिए पशु सुस्त व थकान सी महसूस करता है. ऐसे में सामान्य से नीचे तापमान जाने पर पशुपालकों को उन के खानपान व रखरखाव पर अधिक ध्यान देने की जरूरत होती है, जिस से पशु के बीमार होने की संभावना कम हो जाती है. जनवरी महीने में पशुओं के नीचे सफाई का विशेष ध्यान रखें. ज्यादा देर तक उन्हें गीले में न बैठने दें.

धूप निकलने पर उन्हें शेड के अंदर से बाहर निकालें. रात में पशुओं को ठंडा पानी न पिलाएं. जनवरी महीने में अगर अत्यधिक ठंड पड़ रही हो, तो ऐसी दशा में पशुओं को नहलाएं नहीं, केवल उन की ब्रश से सफाई करें, जिस से पशुओं के शरीर से गोबर, मिट्टी आदि साफ हो जाए. सर्दियों के मौसम में पशुओं व छोटे बछड़ेबछियों को दिन में धूप के समय ही ताजा व कुनकुने पानी से नहलाएं. कई बार सर्दी में पशुओं को निमोनिया, इनफ्लुएंजा यानी नजला, निमोनाइटिस यानी फेफड़ों का संक्रमण व टाइफाइड हो जाने से पशु की मौत हो जाती है. सर्दी के मौसम में पशुओं के बच्चों का भी खास ध्यान रखें. उन्हें अधिक दूध पिलाने के साथसाथ कृमिनाशक दवा पिलानी चाहिए.

बीमारी का अंदेशा होने पर तुरंत पशु चिकित्सक के परामर्श के अनुसार उपचार दिलाएं. ठंड में पैदा होने वाले बछड़ेबछियों के शरीर को बोरी, पुआल आदि से रगड़ कर साफ करें, जिस से उन के शरीर को गरमी मिलती रहे और खून का संचार भी ठीक रहे. ठंड में बछड़ेबछियों को सफेद दस्त, निमोनिया आदि बीमारियों से बचाया जा सके. याद रहे, पशुघर को चारों तरफ से ढक कर रखने से अधिक नमी बनी रहती है, जिस से रोगजनक कीटाणु के बढ़ने की संभावना होती है. यह भी ध्यान रहे, छोटे बछड़ों के बाड़ों के अंदर का तापमान 7-8 डिगरी सैंटीग्रेड से कम न हो. यदि आवश्यक सम झें तो रात के समय इन शेडों में हीटर का इस्तेमाल भी किया जा सकता है. बछड़ेबछियों को दिन के समय धूप में कुछ समय के लिए खुला छोड़ दें, ताकि वे दौड़भाग कर स्फूर्तिवान हो जाएं. नोट : कृषि यंत्रों के रखरखाव से जुड़ी जानकारी विशेषज्ञ कृषि विज्ञान केंद्र, सुल्तानपुर के वैज्ञानिक कृषि अभियंत्रण इं. वरुण कुमार द्वारा सु झाए गए हैं.

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