सब से खास अनाज गेहूं के उत्पादन में भारत विश्व में दूसरे नंबर पर है. राष्ट्रीय अन्न उत्पादन में साल 1964-65 में गेहूं का योगदान करीब 34 फीसदी यानी 12.3 मीट्रिक टन था, जो साल 2012-13 में बढ़ कर 92.46 मीट्रिक टन हो गया. देश की मौजूदा उत्पादकता 3.21 टन प्रति हेक्टेयर है, जबकि विश्व की औसत उत्पादकता 3.16 टन प्रति हेक्टेयर है. उत्पादकता के इस अंतर का पूरा श्रेय शोध, प्रचार कार्यक्रमों व देश के प्रगतिशील किसानों को दिया जाना चाहिए.

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गेहूं की कम उत्पादकता की खास वजहें

* बासमती धान गेहूं फसलचक्र के कारण देर से गेहूं की बोआई का होना.

* धान के बाद गेहूं की बोआई में खरपतवारों का ज्यादा प्रकोप होना.

* समय से उन्नतशील प्रजातियों के बीज मौजूद न होना.

* बीज उपचार न करना. सही विधि से सही गहराई पर बोआई न करना.

* सही खरपतवारनाशी का इस्तेमाल न करना.

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* सही उर्वरकों का इस्तेमाल न करना.

*  सही ढंग से सिंचाई न करना व सही समय पर कीटों व बीमारियों की रोकथाम न करना. प्रजातियों का चुनाव : सही उन्नतशील प्रजाति का चयन कर के समय पर सही विधि से बोआई करने से पैदावार में 15-20 फीसदी का इजाफा हो जाता है.

तापमान : गेहूं की अच्छी पैदावार के लिए जमाव के समय 20-22 डिगरी सेंटीग्रेड, बढ़वार के समय 15-20 डिगरी सेंटीग्रेड और दाना भरते समय 25 डिगरी सेंटीग्रेड तापमान सही होता है.

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बोआई की विधि व बीज की मात्रा

* छिटकवां विधि : 125-130 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर.

* शून्य या बिना जुताई : 80-100 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर.

* हल के पीछे कूंड़ों में (पोरा विधि) : 80-100 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर.

* फर्टिकम सीड ड्रिल: 80-100 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर.

* बेड बोआई : 40-50 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर.

बीज उपचार : मिट्टी के बरतन में 20 लीटर कुनकुने पानी में 10 किलोग्राम बीज डालने से बेकार व हलके बीज पानी के ऊपर तैरने लगते हैं. उन्हें निकाल कर अलग करें  बाकी बीजों को इस्तेमाल में लें. उस के बाद 4 लीटर देशी गाय का मूत्र, 3 किलोग्राम वर्मी कंपोस्ट व 2 किलोग्राम गुड़ आपस में खूब अच्छी तरह मिलाएं. तैयार मिश्रण 1 एकड़ के हिसाब से है.

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तैयार मिश्रण को 6-8 घंटे के लिए अलग रखें. इस के बाद जूट के बोरे में मिश्रण रख कर हलका पानी छिड़कें व बीजों में अच्छी तरह मिलाएं. फिर 2 ग्राम बाविस्टीन व 1 ग्राम थीरम प्रति किलोग्राम बीज की दर से या 2-3 ग्राम ट्राइकोडर्मा जैविक फफूंदीनाशक, 7.5 ग्राम पीएसवी कल्चर व 6 ग्राम एजोवैक्टर को प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजों पर अच्छी तरह चढ़ाएं. इस के बाद करीब 10-12 घंटे तक इन बीजों को किसी नमी मुक्त जूट के बोरे में अंकुरण के लिए रखें, अंकुरण के बाद बीज बोआई लायक तैयार हो जाते हैं. जहां दीमक या भूमिगत कीटों का प्रकोप होता है, उस इलाके में ब्यूवेरिया वेसियान 2.5-3.0 किलोग्राम को 80-100 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद/वर्मी कंपोस्ट में मिला कर बोआई से पहले खेत में अंतिम जुताई के समय मिला दें.

उर्वरक : मिट्टी की जांच के आधार पर उर्वरकों का इस्तेमाल करना चाहिए. सामान्य हालात में 150:60:40:25 के अनुपात में क्रमश: नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश व जिंक प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल करने के लिए 263-275 किलोग्राम यूरिया, 130-140 किलोग्राम डीएपी, 67-70 किलोग्राम म्यूरेट आफ पोटाश और 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट का इस्तेमाल करना चाहिए. देरी से बोआई करने पर 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस, 30 किलोग्राम पोटाश और 20-25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए. काफी देरी से बोआई करने पर 140 किलोग्राम यूरिया, 94 किलोग्राम डीएपी, 50 किलोग्राम पोटाश व 20-25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए. नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फास्फोरस, पोटाश व जिंक की पूरी मात्रा बोआई के समय जड़ क्षेत्र में डालनी चाहिए (नीचे खाद ऊपर बीज). बाकी आधी नाइट्रोजन (यूरिया) की आधी मात्रा पहली सिंचाई के बाद (25-25 दिनों बाद) और बाकी मात्रा दौज बनने की अवस्था में दूसरी सिंचाई के बाद (45-50 दिनों बाद) जब पैर चिपकने लगें तब डालनी चाहिए. बढ़वार की अवस्था में 2 फीसदी यूरिया के घोल का छिड़काव करने से 20-30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से यूरिया की बचत की जा सकती है.

जिंक की कमी : जिंक की कमी से सब से पहले ऊपर से तीसरी पत्ती पर सफेदपीले ऊतकों की एक पट्टी बन जाती है, जो आमतौर पर बीच की शिरा पर व पत्ती के किनारों के बीच दिखाई देती है. शिराओं के भागों में धब्बे दिखाई देते हैं. 5 किलोग्राम जिंक व 2.5 किलोग्राम बुझा चुना प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें या लक्षण दिखाई देने पर 0.5 फीसदी जिंक के छिड़काव के लिए 2.5 किलोग्राम जिंक सल्फेट व 1.25 किलोग्राम बुझा चूना या 12.5 किलोग्राम यूरिया 500 लीटर पानी में घोल कर 15 दिनों के अंतराल पर 2 बार छिड़काव करें.

मैंगनीज की कमी के लक्षण दिखाई देने पर 0.5 फीसदी मैंगनीज सल्फेट के छिड़काव के लिए 2.5 किलोग्राम मैंगनीज सल्फेट 500 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें.

सिंचाई : गेहूं में अमूमन 5-6 बार सिंचाई की जाती है. यह मिट्टी व मौसम पर निर्भर करती है. पहली सिंचाई ताज मूल अवस्था पर न होने की दशा में उपज में भारी गिरावट आती है.

सिंचाई की अवस्थाएं

पहली सिंचाई : ताज मूल अवस्था (बोआई के 20-21 दिनों बाद).

दूसरी सिंचाई : बढ़वार अवस्था (बोआई के 60-65 दिनों बाद).

तीसरी सिंचाई : फुटाव व दुधवा अवस्था (बोआई के 80-85 दिनों बाद).

चौथी सिंचाई : फूल आने व दुधवा अवस्था (बोआई के 100-105 दिनों बाद).

पांचवीं व छठी सिंचाई : गरम मौसम होने पर जरूरत के मुताबिक.

खरपतवार नियंत्रण : गेहूं की खेती में ज्यादातर गेहूं का बथुआ, चटरीमटरी, हिरन खुरी, सेंजी, जंगली गाजर, कृष्ण नील, जंगली पालक, जंगली जई, मोथा और गेहूंसा वगैरह खरपतवार खास होते हैं. सब से अच्छा तो यह है कि बोआई के 30-35 दिनों व 56-60 दिनों बाद खुरपी व कुदाल वगैरह का इस्तेमाल कर के खरपतवार निकाल दिए जाएं.

खास कीट

गुजिया विविल : मटमैले रंग के ये कीट सूखी जमीन में दरारों में रहते हैं और

उगने वाले पौधों को जमीन की सतह से

काट कर नुकसान पहुंचाते हैं.

दीमक : इस कीट का ज्यादातर हमला फसल  की जड़ों पर होता है. इस से फसल को बचाने के लिए क्लोरोपाइरीफास 20 ईसी की 400 मिलीलीटर दवा 02 लीटर पानी में घोल कर प्रति क्विंटल की दर से बीजों को उपचारित कर के व सुखा कर बोआई करें. खड़ी फसल में क्लोरोपाइरीफास की 3 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करनी चाहिए.

जैविक रोकथाम के लिए बवेरिया ब्रेसियाना की 2-2.5 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी गोबर की खाद में मिला कर इस्तेमाल करें.

माहू : एमिडाक्लोरोप्रिड की 0.5 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी की दर से इस्तेमाल करनी चाहिए.

चूहे : एल्यूमीनियम फास्फाइड दवा को आटे में मिला कर गोलियां बना कर इस्तेमाल करें.

भंडारण : मईजून में सही नमी में भंडारण करना चाहिए. भंडारगृह में 15 दिनों के अंतर पर न्यूवान 5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी का घोल बना कर दीवारों, छतों व फर्श पर छिड़काव करना चाहिए. भंडारगृह में दीवारों से 1 फुट दूरी पर लकड़ी या प्लास्टिक के पैकेटों पर गेहूं रखना चाहिए. भंडारगृह में रखने के बाद पालीथीन से ढक कर सल्फास 3 ग्राम की 2-3 गोलियां प्रति टन बीज की दर से रखनी चाहिए.

डा. हंसराज सिंह, डा. अरविंद कुमार,
डा. विपिन कुमार, डा. पीके मडके (कृषि विज्ञान केंद्र, मुरादनगर, गाजियाबाद)

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