लखनऊ में रहने वाली रेशमा का मायका श्रीनगर में है. रेशमा हर साल ईद में अपने मायके जरूर जाती थी. इस बार की ईद तालाबंदी में गुजरी. अक्तूबर माह से वह अपने मायके में है.
रेशमा कहती है, ‘श्रीनगर पहुंचने के बाद हमें समझ नहीं आ रहा था कि अपने घर कैसे जाएं? कश्मीर में सड़कें सूनी थीं. यातायात के साधन बेहद कम थे. घर से लेने आई कार से हम चले तो रास्ते पूरी तरह से वीरान नजर आ रहे थे. पता चला कि बिना प्रशासन की इजाजत के बाहर निकलना मना है.
‘कश्मीर की जिन वादियों में अद्भुत नजारा रहता था, वह सूना पड़ा था. कई जगह हमें चेकिंग का सामना करना पडा. हमें लग रहा था, जैसे हम अपने वतन में नहीं, गैरमुल्क में आए हैं.
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‘घर पहुंचे तो वहां भी आसपास के माहौल में सन्नाटा पसरा हुआ था. घर के अंदर बैठे लोगों तक में खामोशी थी. ऐसा लग रहा था, जैसे हम बंदिश भरे माहौल में हों.
‘बात केवल बाहर से यहां आने वाले लोगों के लिए ही नहीं है, कश्मीर में एक जिले से दूसरे जिले जाने वाले स्थानीय लोगों को भी दिक्कत हो रही है.’
कश्मीर के श्रीनगर में ही सुरक्षा व्यवस्था में तैनात मैदानी इलाके में रहने वाले एक अधिकारी बताते हैं, ‘यहां फोन की सुविधाएं बहाल हो गई हैं. इंटरनैट की स्पीड 2जी है. ब्रांडबैंड के नैट सर्विस में दिक्कत नहीं है. अनुच्छेद 370 के हटने के बाद माहौल को नौर्मल करने के लिए सरकार ने जब कदम उठाए तो दहशत फैलाने वाली घटनाएं बढ़ने लगीं. ऐसे लोगों के पास हथियार भले नहीं हैं, पर वह किसी न किसी तरीके से दहशत फैलाने का काम करने लगे हैं.
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‘युवाओं को रोजगार देने का काम करना जरूरी है. पत्थर मारने की घटनाओं में कमी आई है. पंचायत चुनाव होने के समय कुछ दहशतगर्दी वाली घटनाएं बढ़ सकती हैं. चुनाव के बाद स्थानीय स्तर पर बदलाव होने संभावना व्यक्त की जा रही है.’
असल में जम्मूकश्मीर में पुलिस के खिलाफ भ्रष्टाचार के ज्यादा आरोप लगते रहे हैं. इस वजह से स्थानीय पुलिस से जुडे़ अपराध भी अधिक होते हैं. जम्मूकश्मीर के बडगाम जिले में जम्मूकश्मीर पुलिस के जवान मोहम्मद अशरफ का शव मिला. इस को आंतकियों के द्वारा मारा गया. ऐसी घटनाएं अब बढ़ने लगी हैं.
सोनिया गुलाटी सितंबर और अक्तूबर माह में 10-10 दिन के लिए 2 बार कश्मीर ग्रुप टूर ले कर गई थीं. वे बताती हैं कि यहां आने वाले पर्यटकों के लिए कोई दिक्कत नहीं होती है. स्थानीय लोग पर्यटकों का खासा खयाल रखते हैं. पर्यटकों के कम आने से यहां के लोगों के सामने बेरोजगारी बढ़ती जा रही है.
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15 माह से अधिक का समय हो चुका है. स्वर्ग से सुंदर कश्मीर के हालात जस के तस हैं. जम्मूकश्मीर के बहुत से इलाकों में अभी भी धारा 144 लागू है. वहां कर्फ्यू जैसे हालात हैं. नेताओं की नजरबंदी हटने के बाद भी कश्मीर की फिजाओं में बेचैनी है. माहौल शांत नहीं है.
स्वर्ग से सुंदर माना जाने वाला कश्मीर वीरान पड़ा है. डल झील में पडे़ शिकारे कबाड़ हो रहे हैं. मोबाइल और इंटरनैट की सेवाएं जैसी पूरे देश में हैं, वैसी कश्मीर में नहीं हैं. स्थानीय लोग घबराए हुए हैं. जो लोग अपनेे परिवार से दूर हैं, उन को घरपरिवार की चिंता है. सोशल मीडिया ही अकेला माध्यम रह गया है, जहां पर लोगों के विचार दुनिया के सामने आ सकते हैं. यहां भी पूरी आजादी नहीं है. शब्दों का चयन बहुत ही चुनचुन कर करना पड़़ता है.
संविधान बदल देने से दिल नहीं बदलते हैं. कश्मीर के नेताओं ने एक मंच बना कर अनुच्छेद 370 की बहाली की मांग उठा दी है. उन की समस्या यह है कि वह अनुच्छेद 370 के पहले के और बाद के हालात की तुलना कर उस की उपयोगिता नहीं बता पा रहे हैं. वह अपनी लड़ाई भाजपा के खिलाफ बता रहे हैं, जिस से उन पर देश के विरोध का ठप्पा न लग सके.
कश्मीर से बाहर रह रहे लोग विस्थापित कश्मीरी पंडितों के सच को भी जानना चाहते हैं. ऐसे में कश्मीर की लड़ाई में मैदानी लोगों को जोड़ना आसान काम नहीं है, वहीं दूसरी तरफ भाजपा कश्मीरी नेताओं की लड़ाई को देश के खिलाफ बता कर मैदानी इलाकों में रहने वाले कट्टरवादियों को सीना फुलाने का मौका दे रही है, जिस से कश्मीर की लड़ाई के सहारे वोटों को धार्मिक ध्रुवीकरण में बदला जा सके.
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मशहूर शायर फिरदौस ने लिखा था, ‘गर फिरदौस बर रूए जमीं अस्त, हमीं अस्तो, हमीं अस्तो, हमीं अस्तो’. इस का मतलब है, ‘धरती पर अगर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है, यहीं है और यहीं है’.
फारसी के शायर फिरदौस की लाइनों से कश्मीर की खूबसूरती को समझा जा सकता है. पूरे देश के लिए कश्मीर का अपना अलग महत्व है. यही वजह है कि 14 मई, 1954 को कश्मीर को अलग राज्य का दर्जा दे कर स्पैशल स्टेट्स दिया गया था.
कश्मीर पर पाकिस्तान की बुरी नजर और आतंकवाद को बढ़ावा देने के चलते यहां आतंकवाद और अलगाववाद बढ़ने लगा. 1965 और 1971 के भारतपाक युद्ध के बाद ये हालात और भी बुरे होते गए.
साल 1990 के बाद कश्मीरी पंडितों के पलायन और वहां आतंकवाद के फैलते पंजे के चलते कश्मीर राज्य के स्पैशल स्टेट्स पर सवाल उठने लगे. अनुच्छेद 370 का पुरजोर विरोध शुरू होने लगा.
5 अगस्त, 2019 को केंद्र सरकार ने कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35ए को खत्म कर दिया. इस के साथ ही 31 अक्तूबर, 2019 को जम्मूकश्मीर के पुनर्गठन ऐक्ट को मंजूरी दे दी. इस के बाद भी जम्मूकश्मीर के जमीनी हालात नहीं बदले हैं.
भारत ने कश्मीर में हालात बदलने के जितने भी प्रयास किए, वे जस के तस रहे. अनुच्छेद 370 के पहले और बाद के हालात में किसी भी तरह का कोई बदलाव नहीं आया है. कश्मीर में अमनचैन, आजादी और विकास सपने की तरह ही रह गया.
कश्मीर को दूर से देखने वाले हिंदू कट्टरवादी लोगों के लिए अनुच्छेद 370 हटने के बाद सीना फुलाने वाला माहौल भले ही बना हो, पर संविधान बदलने से दिल नहीं बदले.
कश्मीर के सभी विरोधी दल एक मंच पर आ कर अनुच्छेद 370 की बहाली की मांग कर रहे हैं. केंद्र सरकार के लिए सब से जरूरी है कि कश्मीर में राजनीतिक माहौल को बहाल करे. जनता को मुख्यधारा से जोडे़. धारा 370 हटाने के बाद केंद्र सरकार ने ऐसे तमाम वादे भी किए थे. एक साल बाद भी इन पर अमल नहीं हुआ.
कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने के बाद सब से बड़ा सब्जबाग यह दिखाया गया कि अब वहां सस्ती जमीन मिलेगी. बडे़ स्तर पर वहां उद्योगपति निवेश करेंगे, जिस से साल 2025 तक कश्मीर स्वर्ग बन जाएगा. लेकिन धारा 370 हटने के एक साल बाद भी बदलाव की कोई शुरुआत होती नहीं दिखी है. केंद्र सरकार ने कश्मीर में इनवैस्टर मीट कराने की योजना बनाई थी. अनुच्छेद 370 हटाने के बाद अगर कश्मीर में अमनचैन बहाल हो गया होता, तो वहां के नेताओं को केंद्र सरकार के विरोध का मौका नहीं मिलता.
मुसीबत खड़ी करेगा नया मोरचा :
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जम्मूकश्मीर से अनुच्छेद 370 को खत्म करने का फैसला वैसा ही था, जैसे कालाधन लाने के लिए नोटबंदी और कोरोना पर काबू करने के लिए तालाबंदी का. 13 माह से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी कश्मीर में ना तो डर का माहौल खत्म हुआ है और ना ही अमनचैन बहाल हो पाया है. कश्मीर के ज्यादातर हिस्सों में जनजीवन ठप सा है.
कश्मीर में बेरोजगारों
की तादाद में तेजी से इजाफा हुआ है. यहां का टूरिज्म और व्यापार पूरी तरह बंद हो चुका है. बड़ी तादाद में लोगों के सामने भुखमरी के हालात बन गए हैं. युवाओं को अपना भविष्य अंधेरे में नजर आने लगा है. यही वजह है कि यहां का माहौल नौर्मल नहीं हो रहा है. विरोधी नेताओं को अब मौका मिलने लगा है.
कश्मीर के नेता डाक्टर फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती और तमाम दूसरे नेताओं को जब 10-11 माह के बाद रिहा किया गया, तो वह आपसी दूरियां भूल कर एक मंच पर खडे़ हो कर अनुच्छेद 370 को बहाल करने की मांग करने लगे हैं. इस के लिए पीपुल्स अलांयस फौर गुपकार डिक्लेरेशन यानी पीएजीडी बना लिया. नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला को अध्यक्ष, पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती को उपप्रमुख, सीपीएम नेता मोहम्मद यूसुफ तारिगामी को समन्वयक, पीपुल्स कांफ्रेंस के सज्जाद गनी लोन को प्रवक्ता पद दिया गया है.
पीपुल्स अलांयस फौर गुपकार डिक्लेरेशन यानी पीएजीडी का झंडा पहले के जम्मूकश्मीर का झंडा होगा. संगठन जल्द ही अनुच्छेद 370 हटने के बाद एक साल के हालात पर एक श्वेतपत्र जारी करेगा.
केंद्रीय मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता रविशंकर प्रसाद ने कहा, ’श्वेतपत्र एक साल का नहीं, बल्कि आजादी के बाद से अनुच्छेद 370 के पहले और बाद का तुलनात्मक अध्ययन करते हुए जारी होना चाहिए. भारत के झंडे के अपमान और कश्मीरी पंडितों के पलायन और अत्याचार के हालात देश के सामने आने चाहिए.
महबूबा का यह कहना कि ‘जब तक कश्मीर का झंडा बहाल नहीं होगा, वह देश का तिरंगा नहीं उठाएंगी, यह राष्ट्रीय ध्वज का अपमान है.‘
महबूबा के बयान को कांग्रेस ने भी सही नहीं माना है. जम्मूकश्मीर में कांग्रेस के प्रवक्ता रविंद्र शर्मा ने कहा कि महबूबा के बयान से कश्मीर की लड़ाई कमजोर होगी. यह बयान किसी भी समाज में बरदाश्त करने योग्य नहीं है.
हिंदुत्व के प्रति नरम होते फारूक :
कश्मीर की लड़ाई में कश्मीर के बाहर रहने वालों को भी साथ लेना होगा. फारूक अब्दुल्ला को यह बात समझ आ रही है. यही कारण है कि पीपुल्स अलांयस फौर गुपकार डिक्लेरेशन का गठन करने के बाद फारूक अब्दुल्ला जम्मूकश्मीर के डलगेट इलाके में 700 साल पुराने बने दुर्गा नाग मंदिर में दर्शन करने गए. यही नहीं, फारूक अब्दुल्ला ने विस्थापित कश्मीरी पंडितों से वापस कश्मीर लौटने की अपील की.
फारूक अब्दुल्ला को यह पता है कि कश्मीर की लड़ाई में जब तक कश्मीर से बाहर के लोग शामिल नहीं होंगे, तब तक यह लड़ाई आसान नहीं होगी. इसी वजह से वह पीपुल्स अलांयस फौर गुपकार डिक्लेरेशन के गठन को भाजपा का विरोधी बताते हैं, देश का नहीं. फारूक कहते हैं कि ‘यह भाजपा विरोधी मंच है, न कि देश विरोधी’.
भाजपा ‘पीपुल्स अलांयस फौर गुपकार डिक्लेरेशन’ को देश विरोधी कह कर प्रचार कर रही है. इस का जवाब देते हुए फारूक अब्दुल्ला कहते हैं, ‘अनुच्छेद 370 को समाप्त कर जम्मूकश्मीर को 2 केंद्रशासित प्रदेशों में बांट कर भाजपा ने संघीय ढांचे को तोड़ा है. देश के संविधान को दरकिनार कर के समाज को बांटने का काम किया है. हमारी केवल इतनी मांग है कि जम्मूकश्मीर और लद्दाख के लोगों के अधिकारों को बहाल किया जाए. यह कोई धार्मिक लड़ाई नहीं है. यह हमारी पहचान की लड़ाई है. इसी पहचान के बलबूते ही एक मंच पर तमाम लोग आए हैं.’
केंद्र के निशाने पर फारूक :
केंद्र सरकार ने कश्मीर के नेता फारूक अब्दुल्ला पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया. केंद्र सरकार ने उन के पीछे ऐनफोर्समैंट डायरैक्ट्रेट यानी ईडी को लगा दिया. फारूक अब्दुल्ला पर यह पुराना मामला है.
फारूक अब्दुल्ला जम्मूकश्मीर क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष थे. साल 2002 से 2011 के बीच जम्मूकश्मीर क्रिकेट एसोसिएशन को 112 करोड़ रुपए दिए गए, जिन में से 43.69 करोड़ रुपयों का गबन किया गया था. ईडी उसी की जांच कर रही है. जुलाई, 2019 में और उस से पहले भी इस सिलसिले में ईडी फारूक अब्दुल्ला से पूछताछ कर चुकी है.
सवाल उठता है कि अगर फारूक अब्दुल्ला के खिलाफ जांच करनी थी तो जब उन को नजरबंद किया गया था, उसी समय क्यों नहीं ऐसा कर लिया गया?
फारूक अब्दुल्ला कहते हैं, ‘वे इस तरह की कार्यवाही से डरने वाले नहीं हैं. वे आगे भी इस के लिए तैयार हैं. अगर अनुच्छेद 370 की बहाली के लिए उन्हें फांसी पर भी चढ़ना पड़े, तो वे इस के लिए तैयार हैं. यह हमारी सियासी लड़ाई है और बहुत लंबी सियासी लड़ाई है. हम यह लड़ाई पूरी ताकत से लड़ेंगे. यह हमारा मकसद है, जो न तबदील हुआ है और न ही तबदील होने वाला है. यह लड़ाई केवल मेरी नहीं है. यह लड़ाई जम्मूकश्मीर के लोगों की लड़ाई है.’
फारूक अब्दुल्ला कश्मीर की लड़ाई में देश के बाकी लोगों खासकर विस्थापित हुए कश्मीरी पंडितों को भी जोड़ना चाहते हैं. वे बारबार इस को हिंदूमुसलिम की लड़ाई से दूर रखना चाहते हैं. पीपुल्स अलांयस फौर गुपकार डिक्लेरेशन में शामिल महबूबा मुफ्ती जैसे नेताओं के भड़काऊ बयान फारूक अब्दुल्ला के प्रयासों को नुकसान पहुंचा सकते हैं.
कश्मीर पर वार पलटवार :
नजरबंदी से आजाद होने के बाद जिस समय कश्मीर के नेता एक मंच पर आ कर केंद्र सरकार के खिलाफ लड़ाई का चैलेंज कर रहे थे, ठीक उसी समय केंद्र सरकार जम्मूकश्मीर में भूस्वामित्त अधिनियम में संशोधन कर के नोटिफिकेशन जारी कर रही थी, जिस के बाद देश का कोई भी नागरिक जम्मूकश्मीर में मकान, दुकान और कारोबार के लिए जमीन खरीद सकता है. अब खेती की जमीन को छोड़ कर कोई पाबंदी नहीं होगी.
जम्मूकश्मीर के एलजी मनोज सिन्हा ने कहा, ‘हम चाहते हैं कि बाहर से आ कर लोग यहां उद्योगधंधे लगाएं. कश्मीर की औद्योगिक जमीन में इनवेस्टमैंट की जरूरत है. हालांकि खेती की जमीन केवल राज्य के लिए ही रहेगी.’
5 अगस्त, 2019 से पहले जब कश्मीर में अनुच्छेद 370 लागू था, तो कश्मीर को अलग राज्य का दर्जा मिला था. उस समय केवल जम्मूकश्मीर के स्थायी नागरिक ही जमीन खरीद सकते थे. देश के अन्य हिस्से के रहने वाले लोग केवल पट्टे के आधार पर शर्तों के साथ ही जमीन प्राप्त कर सकते थे.
कश्मीर पर पूरे देश की नजर लगी है. ऐसे में यह बदलाव देश के अन्य हिस्सों में रहने वालों को पंसद आ रहे हैं. पर कश्मीर के नेता इस का विरोध कर रहे हैं.
पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा, ‘जमीन कानून में बदलाव स्वीकार नहीं है. पूरे जम्मूकश्मीर को बेचने के लिए रख दिया गया है. जमीन के गरीब मालिक की मुसीबतें इस से बढ़ेंगी.’
पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कहा, ‘केंद्र सरकार ने जम्मूकश्मीर को बेचना शुरू कर दिया है. इस का मकसद यहां के लोगों को अधिकारविहीन करना है. यह केंद्र सरकार की साजिश है.‘
फिजा बदलने के इंतजार में कश्मीर :
अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद कश्मीर के तत्कालीन राज्यपाल सतपाल मलिक ने कहा था कि कश्मीर में 50,000 नौकरियां दी जाएंगी. यह बात भी केवल दिखावा भर रही. कश्मीर के विकास को ले कर केंद्र सरकार ने जो छवि पेश की थी, उस के अनुसार कश्मीर बेहद अविकसित प्रदेशों में शुमार किया था. अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद कश्मीर में विकास की गंगा बहाने का वादा किया गया था. कश्मीर को ले कर पूरे देश की एक ही धारणा है कि वहां केवल पर्यटन उद्योग और सेब की बागबानी पर ही पूरी आर्थिक व्यवस्था टिकी है.
जम्मूकश्मीर में देश के कुल सेब उत्पादन का 77 फीसदी हिस्सा पैदा होता है. कश्मीर में तमाम दूसरे तरह के खनिज मिलते हैं, जो पूरे देश में कहीं नहीं मिलते. इस में चूना, पत्थर, संगमरमर, जिप्सम, ग्रेनाइट, बौक्साइड, डोलोमाइट, कोयला और सीसा प्रमुख रूप से उल्लखनीय है. इस तरह के कारोबार को करने वालों के लिए कश्मीर व्यवसाय की नजर से स्वर्ग लग रहा है. कश्मीर में भूमि सुधार कानून लागू था. जिस वजह से देश के दूसरे हिस्सों के मुकाबले यहां की भूमि पर सुधार का असर अधिक पड़ा.
आंकडे़ भी इस अंतर को बताते हैं. 2010-11 में जम्मूकश्मीर में ग्रामीण गरीबी का अनुपात 8.1 था, वहीं पूरे देश में यह 33.8 था. गरीबी रेखा के आंकडे़ को देखें, तो जहां पूरे देश की 21 फीसदी आबादी गरीबी रेखा के नीचे रहती है, वहीं जम्मूकश्मीर में केवल 10 फीसदी आबादी ही गरीबी रेखा के नीचे रहती है.
साल 2011 में जम्मूकश्मीर में साक्षरता दर 68.74 फीसदी थी, जो देश के किसी भी विकसित राज्य के मुकाबले कम नहीं है.
जम्मूकश्मीर राज्य राष्ट्रीय विकास के सूचकांक के दूसरे कई बिंदुओं पर देश के विकसित राज्यों से पीछे नहीं है. सेहत से जुडे़ कई मामलों में तो वह देश के विकसित राज्यों से बेहतर हालत में है. 5 साल से कम उम्र के बच्चों की औसत मृत्युदर पूरे देश में 36 प्रति हजार है, जबकि जम्मूकश्मीर में यह आंकड़ा 35 प्रति हजार ही है. बिजली, स्वच्छ पेयजल, साफसफाई, खाना बनाने में अच्छे ईंधन का प्रयोग, जम्मूकश्मीर में देश के दूसरे राज्यों उत्तर प्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ से बेहतर है.
अनुच्छेद 370 के तहत जम्मूकश्मीर को ले कर कई किस्म की भ्रांतियां पूरे देश में फैली हुई हैं. सब से बड़ी धारणा यह थी कि देश का सब से अधिक पैसा जम्मूकश्मीर को जा रहा है. दूसरे शब्दों में कहें, तो पूरा देश मिल कर जम्मूकश्मीर का पालनपोषण कर रहा था. असल बात इस से अलग है. विशेष राज्य का दर्जा केवल जम्मूकश्मीर को ही नहीं मिला था, बल्कि पिछले कुछ सालों में विशेष राज्य का दर्जा पाने वाले दूसरे प्रदेशों जैसे अरुणाचल और सिक्किम से कम सहायता जम्मूकश्मीर को मिलती थी.
देश में भूमिहीनों की तादाद गांव में रहने वालों की एकतिहाई है, जबकि जम्मूकश्मीर में भूमिहीनों की तादाद केवल गांव की आबादी का महज 2 फीसदी ही है. देश में ऐसा माहौल बन गया था, जैसे कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद विकास की गति बढ़ जाएगी. एक साल के बाद भी ऐसा नहीं हो पाया.