राजनेता चिराग पासवान को ले कर बिहार चुनाव में जो हल्ला मचाया गया उस की मंशा का अनावरण 10 नवंबर के बाद होगा, लेकिन यह जरूर उजागर हो गया कि नरेंद्र मोदी, बहैसियत राम, जिन के दिलों में रहते हैं उन में से एक युवा चिराग भी हैं. इस नाते चिराग के दिमाग में भी कर्मकांडों का कूड़ाकरकट पाया जाना निहायत ही स्वाभाविक है. चिराग ने अपने पिता के अंतिम संस्कार में मुंडन करा कर बाद के पाखंड भी पूरे विधिविधान से किए और श्राद्ध में खीर, मेवे और तर घी की पूरियों वाला ब्रह्मभोज दिया जिस में पवित्रता के मद्देनजर शूद्रों के फटकने की सख्त मुमानियत रहती है.

लोजपा के संस्थापक, दलित नेता, रामविलास पासवान की राजनीति की बुनियाद ब्राह्मण और ब्राह्मणत्व के विरोध पर रखी है. यह और बात है कि उन्होंने अपने जीवनकाल में ही इस पर एक मंजिल भगवा भी बना ली थी, जिस के दम पर वे आखिरी सांस तक राजयोग भोगते रहे. चिराग ने तो पूरी बिल्ंिडग ही भगवा रंग में पुतवा कर यह संदेश दे दिया कि अब दलित हित जैसे विचार ऐतिहासिक मूर्खताएं सरीखे हैं. रहस्यमय होती दाढ़ी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दाढ़ी क्यों बढ़ा रहे हैं? इस सवाल या मसले पर, बस, अब सट्टा लगना ही बाकी रह गया है. पहले लोगों को लगा था कि वे ऋषिमुनियों जैसे लुक के लिए श्वेत धवल दाढ़ी को विस्तार दे रहे हैं, फिर लगा कि कोरोना के भागने तक दाढ़ी रखने की मन्नत उन्होंने मांगी है, फिर किसी ज्ञानी ने यह रायता लुढ़काया कि मोदीजी नहीं चाहते कि कोई हरिराम टाइप नाई उन के पास फटके और तोहफे में कोरोना दे जाए.

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बिहार के बाद होने वाले पश्चिम बंगाल चुनाव के मद्देनजर नई सनसनी अब यह फैल रही है कि दरअसल वे वहां के वोटर्स को लुभाने के लिए गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर जैसे दिखना चाहते हैं, इसलिए दाढ़ी को आकार टैगोर कट दे रहे हैं. अब सोशल मीडिया के उन लोगों को लफंगा और देशद्रोही ही कहा जाना चाहिए जो यह कमैंट करते हैं कि असल में फकीर के ?ाला उठा कर जाने का वक्त नजदीक आ रहा है. यह पत्रिकारिता नहीं आसां… पत्रकारिता के क्षेत्र में अनुराधा भसीन बहुत जानामाना और पहचाना नाम नहीं है क्योंकि वे चिल्लाने वाली नहीं, बल्कि लिखने वाली पत्रकार हैं. जम्मूकश्मीर के प्रमुख इंग्लिश अखबार ‘कश्मीर टाइम्स’ की मालकिन और कार्यकारी संपादक अनुराधा आम कश्मीरी लड़कियों जैसी ही खूबसूरत हैं, लेकिन इन दिनों उतनी ही हैरानपरेशान हैं जितना कि मौजूदा दौर यानी मोदी युग में किसी भी प्रतिबद्ध पत्रकार को होना चाहिए. प्रतिबद्धता के पुरस्कारस्वरूप उन के दफ्तर का साजोसामान संपदा विभाग ने निहायत ही उदारतापूर्वक फेंका और सरकारी ताला जड़ दिया.

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अनुराधा कट्टरवादियों और सरकार की ज्यादतियों के खिलाफ लगातार लिखने की जुर्रत कर रही थीं. उन्हीं की पहल पर सुप्रीम कोर्ट ने कश्मीर में फोन, मोबाइल और इंटरनैट जैसी सेवाएं बंद करने पर सरकार को फटकार लगाई थी. अब अनुराधा के सामने पहला रास्ता संघर्ष और दूसरा रास्ता समर्पण है, जिस से देश के कई मीडिया हाउस पूरी शानोशौकत और विलासिता से चल रहे हैं. भाजपा के विभीषण 6 बार विधायक रहे महाराष्ट्र के दिग्गज भाजपाई नेता एकनाथ गणपतराव खड़से अपनी बेटी रोहिणी सहित अब एनसीपी के हो गए हैं. शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के गठबंधन वाली सरकार को गिराने के लिए भाजपा जाल बिछा रही थी, अब उसे अपने इरादे बदलने होंगे क्योंकि एकनाथ के बाद उन के समर्थक विधायकों, 2-4 ही सही, के प्रस्थान का उस का डर बेवजह नहीं है.

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एकनाथ लेवा पाटिल समाज के सर्वमान्य नेता हैं. उन्होंने ही उत्तर महाराष्ट्र, खासतौर से जलगांव और उस के इर्दगिर्द, भाजपा को खड़ा किया था. पूरा खड़से परिवार राजनीति से जुड़ा हो कर अहम पदों पर है, खासतौर से बहू रक्षा निखिल खड़से लोकसभाई सीट रावेर से भाजपा की सांसद हैं. महाराष्ट्र का पिछड़ा वर्ग चाहता था कि भाजपा एकनाथ को बतौर मुख्यमंत्री पेश करे. लेकिन भाजपा से ब्राह्मण मोह नहीं छूटा जिस का खमियाजा भी उसे भुगतना पड़ा.

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