लेखक- संदीप कुमार

दलहनी वर्ग में मसूर सब से पुरानी और खास फसल है. मसूर का दुनियाभर में भारत की श्रेणी क्षेत्रफल के अनुसार पहला व उत्पादन के अनुसार दूसरा नंबर है और भारत में क्षेत्रफल के अनुसार मध्य प्रदेश की प्रथम श्रेणी है. प्रचलित दालों में सर्वाधिक पौष्टिक होने के साथसाथ इस दाल को खाने से पेट के विकार समाप्त हो जाते हैं. रोगियों के लिए मसूर की दाल अत्यंत लाभप्रद मानी जाती है. यह रक्तवर्धक और रक्त में गाढ़ा लाने वाली होती है. इसी के साथ दस्त, बहुमूत्र, प्रदर, कब्ज व अनियमित पाचन क्रिया में भी लाभकारी होती है. दाल के अलावा मसूर का उपयोग विविध नमकीन और मिठाइयां बनाने में भी किया जाता है. इस का हरा व सूखा चारा जानवरों के लिए स्वादिष्ठ व पौष्टिक होता है यानी सेहत के लिए फायदेमंद है.

मसूर के 100 ग्राम दाने में औसतन 25 ग्राम प्रोटीन, 1.3 ग्राम वसा, 60.8 ग्राम कार्बोहाइडेट, 3.2 ग्राम रेशा, 68 मिलीग्राम कैल्शियम, 7 मिलीग्राम लोहा, 0.21 मिलीग्राम राइबोफ्लेविन, 0.51 मिलीग्राम थाइमिन और 4.8 मिलीग्राम नियासिन पाया जाता है यानी मानव जीवन के लिए आवश्यक बहुत से खनिज, लवण और विटामिनों से भरपूर दाल है. मसूर मध्य व उत्तर भारत के बारानी वर्षा आश्रित क्षेत्रों में आसानी से उगाई जा सकती है. मध्य प्रदेश में लगभग 39.56 फीसदी (5.85 लाख हेक्टेयर) में इस की बोआई होती है. इस के बाद उत्तर प्रदेश व बिहार में 34.36 फीसदी व 12.40 फीसदी है. उत्पादन के अनुसार उत्तर प्रदेश की प्रथम श्रेणी 36.65 फीसदी (3.80 लाख टन) व मध्य प्रदेश 28.82 का द्वितीय स्थान है और अधिकतम उत्पादकता बिहार राज्य (1124 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) व सब से कम महाराष्ट्र राज्य (410 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) है.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...