पुराने जमाने से ही इनसान अपने भोजन के लिए तमाम तरह की फसलें उगाता रहा है. ये उगाई जाने वाली फसलें मौसम के मुताबिक अलगअलग होती हैं. शुरू से ही किसी खेत में एक ही फसल न उगा कर फसलें बदलबदल कर उगाने की परंपरा चली आ रही है. परंतु यह परंपरा खास वैज्ञानिक सिद्धांतों पर न आधारित हो कर सामान्य जरूरत के मुताबिक चलती आ रही थी. परंतु आज नएनए तजरबों व खोजों के आधार पर यह जान लिया गया है कि लगातार एक ही फसल को उगाने से उत्पादन में कमी आ जाती है. लिहाजा उत्पादकता को बनाए रखने के लिए फसलचक्र का सिद्धांत बनाया गया है.
फसलचक्र : किसी खास रकबे में तय समय के लिए जमीन की उर्वरता को बनाए रखने के मकसद से फसलों को अदलबदल कर उगाने के काम को फसलचक्र कहा जाता?है. यानी किसी तय इलाके में एक तय वक्त पर फसलों को इस क्रम में उगाया जाना कि जमीन की उर्वरा शक्ति का कम से कम नुकसान हो, फसलचक्र कहलाता है.
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फसलचक्र का महत्त्व : मौजूदा वक्त में खेती में उत्पादन व उत्पादकता में?ठहराव या कमी आने की वजहों का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाए तो पता चलता है कि फसलचक्र सिद्धांत का न अपनाया जाना भी इस की एक खास वजह है.?फसलचक्र न अपनाने से जमीन में जीवांश की मात्रा और सूक्ष्म जीवों की कमी हो जाती?है. मित्र जीवों की संख्या में कमी हो जाती है और हानिकारक कीटपतंगों की मात्रा बढ़ जाती है. इस से खरपतवार की समस्या में बढ़ोतरी होती?है और जमीन की जलधारण कूवत में कमी हो जाती?है. जमीन के भौतिक व रासायनिक गुणों में परिवर्तन हो जाता है और क्षारीयता में बढ़ोतरी हो जाती है.
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