Father Son Relationship : अकसर मां पति और बेटे के बीच नैतिक पशोपेश में तब फंसती है जब दोनों के फैसलों में से किसी एक का चुनाव करना होता है. पति जिस के साथ जीवन जी रही है और बेटा जो मां का प्यारा होता है. ऐसे में क्या करे मां?
देश में जब भी आजादी की बात होती है 15 अगस्त को बड़ी घूमधाम से मनाया जाता है. असल में 15 अगस्त को देश अंगरेजों से आजाद हुआ था. देश के अंदर तमाम रीति रिवाज, कुरीतियां, ऊंचनीच और भेदभाव आजादी के बाद आज तक कायम है. जिस आजादी का जश्न हम बड़ी धूमधाम से मनाते हैं, क्या हम अपने घरों में उसी तरह से आजाद हैं? आज हमारे घरों में भी विचारों की और अपनी बात कहने की आजादी नहीं है. घरों में मातापिता और बच्चों के बीच यह सवाल बारबार उठता है.
सोशल मीडिया पर एक रील वायरल है. जिस में बेटा अपने पिता को बता रहा होता है कि आज मैं ने मां से पूछा कि ‘मां मैं इतना बड़ा कब हो जाऊंगा कि मैं बिना आप से पूछे घर से बाहर जा सकूं, जो मन हो वह कर सकूं, अपने मन का खा संकू.’ पिता पूछता है ‘तो फिर मां ने क्या कहा ?’ बेटा बोला ‘मां ने जो कहा वह सुन कर मै हैरान हूं. वह बोली इतना बड़ा तो तेरा बाप नहीं हुआ.’
घरों की आजादी का कुछ यही हाल है. आज भी मातापिता ही ज्यादातर मामलों में बच्चों के कैरियर, शादी विवाह और उन के घर आनेजाने के समय को तय करते हैं. थोड़ा बहुत मातापिता बच्चों की बात सुनने लगे हैं पर अभी भी पूरी आजादी नहीं है. ज्यादातर मामलों में पिता पुत्र के बीच टकराव हो जाता है. जैसे लोकसभा और विधानसभाओं में सत्ता पक्ष और विपक्ष होते हैं. अब इन की बहस को रोकने के लिए वहां स्पीकर होता है घर में यह काम मां का होता है. पिता पुत्र के विवाद में वह न्यूट्रल होती है.
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