Working Women : मैं एक बैंक में मैनेजर के पद पर हूं, मेरे 2 छोटे बच्चे हैं (6 और 9 वर्ष के). औफिस का प्रैशर, बच्चों की पढ़ाई और घर की जिम्मेदारी मुझे मानसिक रूप से थका देती है. न मुझे खुद के लिए समय मिलता है और न ही मैं बच्चों को पूरा समय दे पाती हूं. मुझे लगता है, मैं हर जगह अधूरी हूं. मां के रूप में भी और प्रोफैशनल के रूप में भी.

जवाब : यह संघर्ष आज की हर कामकाजी मां का है. सब से पहले आप खुद को दोष देना बंद करें. ‘परफैक्ट’ बनने की कोशिश में हम अकसर खुद की सेहत और मानसिक संतुलन को भूल जाते हैं. आप मां हैं, एक प्रोफैशनल हैं और इंसान भी हैं.

हर भूमिका में सौ फीसदी देना संभव नहीं है. यह समझना ही मानसिक शांति का पहला कदम है.

एक व्यावहारिक तरीका अपनाएं, घर के कामों को बांटना सीखें. आप के पास समय सीमित है तो सोचना होगा कि किस काम को कम किया जाए, किसे बांटा जाए और किसे छोड़ा जा सकता है. हर हफ्ते एक ‘प्लानर’ बनाएं, उस में औफिस, बच्चों और खुद के लिए समय बांटें.

हर जिम्मेदारी सिर्फ आप के कंधों पर क्यों हो? थोड़ा बोझ बांटना सीखिए. पति से और बच्चों से छोटी जिम्मेदारियां लें. बच्चों को भी थोड़ी जिम्मेदारी दें, जैसे स्कूलबैग तैयार करना, खुद खाना लेना. उन्हें यह आत्मनिर्भर बनाएगा और आप को हलका.

कोशिश करें कि औफिस का काम औफिस तक ही सीमित रहे. औफिस में भी जहां संभव हो, कुछ जिम्म्मेदारियां डेडीगेट करें. आप मैनेजर हैं, सब खुद करने की जरूरत नहीं.

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