सच्चे अर्थों में कहा जाए तो यह गलत नहीं होगा कि छत्तीसगढ़ मैं अजीत प्रमोद कुमार जोगी एक किवंदती बन गए हैं. अपने बूते ऐसी ऐसी ऊंचाइयां स्पर्श की जो एक रिकार्ड बन चुकी है. अजीत जोगी नाम छत्तीसगढ़ अंचल के जन-जन में ऐसा घुल मिल चुका है जो एक जनप्रिय लोकप्रिय नेता को ही नसीब होता है. अजीत जोगी का देहावसान हो चुका है यह कल्पना भी लोगों को मथ रही है. लोगों ने उन्हें व्हील चेयर पर देखा और पूरे जीवटता और जिजीविषा के साथ जीवन का संघर्ष करते हुए भी मगर हास्य उनके चेहरे पर सदैव उनकी अमिट पहचान बन चुका है. अजीत जोगी के संदर्भ में कम से कम शब्दों में कहा जाए तो जहां वे एक तेजतर्रार कुटिल राजनीतिज्ञ थे वही साफ स्वच्छ मन के जननेता और गरीब दुखियों के सब कुछ थे.
एक राजनीतिक दुर्ग का अवसान
छत्तीसगढ़ में कभी छत्तीस किले अथवा कहे दुर्ग हुआ करते थे. जिसके कारण छत्तीसगढ़ का नाम पड़ा. अजीत जोगी नि:संदेह छत्तीसगढ़ की राजनीति के एक बड़े किले थे कहा जाए तो गलत नहीं होगा.
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एक ऐसा किला जो कभी अभेद्य था ,कभी जर्जर हुआ, कभी जीर्ण-शीर्ण हुआ और एक दिन समाज और राजनीति को झकझोरता समय के विराट काल में तिरोहित हो गया.
जी हां! अजीत प्रमोद कुमार जोगी छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री के रूप में अपना नाम इतिहास में दर्ज कराने के अलावा और भी बहुत दूर तलक चमकने वाले ध्रुव नक्षत्र की तरह है. जिन्होंने छत्तीसगढ़ के घुर आदिवासी बिलासपुर जिले के पेंड्रा तहसील के गांव जोगी डोंगरी में जन्म लिया गरीबी,गुरबत में अंधेरे में रोशनी बन कर निकले और एक दिन इंजीनियर बन गए इसके बाद रुके नहीं आगे आईपीएस की परीक्षा दी और सफलता प्राप्त की फिर आईएएस बने और जिलाधीश के रूप में अपनी छाप छोड़ी. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अजीत जोगी के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए ठीक ही कहा है- अजीत जोगी रूकने वाले शख्स नहीं थे वे सदानीरा की भांति कल-कल बहते रहने वाले विलक्षण राजनेता थे.
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शायद यही कारण है की राज्यसभा, लोकसभा, विधानसभा और कांग्रेस पार्टी के प्रखर प्रवक्ता के रूप में अपनी भूमिका निभाते हुए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री पद तक पहुंचे.
और मुख्यमंत्री बन गये
अजीत जोगी ने राजीव गांधी के पसंदीदा नौकरशाह बनने के बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. अर्जुन सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में अजीत जोगी सीधी के बाद रायपुर के जिलाधीश बने थे और मुख्यमंत्री की मंशा अनुरूप छत्तीसगढ़ के सबसे प्रभावशाली शुक्ल बंधुओं अर्थात विद्याचरण व श्यामाचरण पर नकेल कसने का काम बखूबी किया. केरवा बांध भ्रष्टाचार अजीत जोगी पर एक काला धब्बा था. मगर वह एक आईएएस के रूप में आगे बढ़ते चले गए और एक दिन कलेक्ट्री छोड़ दी और सीधे राज्यसभा सदस्य बनकर राजनीति की डोर से बंध गए. राजीव गांधी के पश्चात श्रीमती सोनिया गांधी के निकटस्थ हो गए और जब छत्तीसगढ़ का निर्माण अटल बिहारी बाजपाई के प्रधानमंत्तित्व काल में हुआ तो छत्तीसगढ़ के सबसे प्रभावी व कद्दावर शख्सियत विद्याचरण शुक्ल को पीछे छोड़कर सोनिया गांधी का आशीर्वाद प्राप्त कर सीधे मुख्यमंत्री बन गये. जबकि उस वक्त जोगी विधायक भी नहीं थे .
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अजीत जोगी एक समय अविभाजित मध्य प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस के शीर्ष पर थे अपनी निष्ठा और तेवर, कार्यप्रणाली के कारण हाईकमान के खासमखास बन गये थे.
मुख्यमंत्रित्व के वह तीन साल
1 नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ राज्य अस्तित्व में आया और अजीत प्रमोद कुमार जोगी के रूप में प्रदेश को कथित रूप से पहली बार एक आदिवासी मुख्यमंत्री की सौगात मिली. अजीत जोगी ने अपने अल्प कार्यकाल में कई इतिहास रच डालें.जिनमें सबसे पहला था कांग्रेस पार्टी को मुख्यमंत्री का जेबी संगठन बना डालना, जो आगे चल उनके लिए नुकसान प्रद साबित हुआ.
अजीत जोगी ने प्रदेश में आदिवासी व अनुसूचित जाति, पिछड़े वर्ग की राजनीति को इस कदर हवा दी कि ब्राह्मण व वैश्य वर्ग के होश फाख्ता हो गए वे साफ कहा करते थे वैश्य दुकानदारी करें राजनीति छत्तीसगढ़ के मूल लोगों के लिए छोड़ दें. यही कारण है की शनै: शनै: विपक्ष कमजोर दिखाई पड़ने लगा भाजपा अध्यक्ष त्राहिमाम-त्राहिमाम करने लगे. चंहु और जय जोगी जय जोगी के नारे हवाओं में गुंजायमान हो उठे. मगर अजीत प्रमोद कुमार जोगी यहीं धोखा खा गये शांतिप्रिय छत्तीसगढ़ मे शांतिप्रिय जनता ने उन्हें 2003 के विधानसभा चुनाव में ऐसी पटखनी दी की फिर कांग्रेस को संभालने में 15 वर्षों का समय लग गया.
जोगी : खुबिया और खामियां
अजीत जोगी में खुबियो की कमी नहीं थी वे सच्चे अर्थों मैं गरीबों, दलितों, पिछड़ों के मसीहा थे. सिर्फ कागजी और मुंह देखी नहीं छत्तीसगढ़ का शायद ही कोई इलाका होगा जहां चार आदमी ऐसे नहीं होंगे जिन्हें वे जानते थे और नाम लेकर बातें करते थे. वे जनता के बेहद नजदीक के राजनेता थे वे दूरियां पसंद नहीं करते थे सहज और सरल थे. उनकी खासियत थी वे पैसे वालों की अपेक्षा आम गरीब आदमी के साथ संबंध बनाते और उसे निभाते थे. दूसरी तरफ उनमें कुछ ऐसी खामियां थी जिनके कारण राजनीति में वे पिछड़ते चले गए.
अजीत जोगी अगर सहज सरल भाव से छत्तीसगढ़ का नेतृत्व करते तो छत्तीसगढ़ के बीजू पटनायक हो जाते, नीतीश कुमार अथवा लालू जैसे होकर वर्षों मुख्यमंत्री रहते. मगर प्रारब्ध को शायद कुछ और मंजूर था.
कभी भुलाया नहीं जा सकेगा
छत्तीसगढ़ की राजनीति और इतिहास में अजीत जोगी सदैव के लिए स्वर्ण अक्षरों में रेखांकित हो गए हैं. एक सामान्य किसान का बेटा ऐसी ऊंचाइयां छू सकता है यह अजीत जोगी ने सिद्ध कर दिखाया. विलक्षण बुद्धि के स्वामी अजीत जोगी जहां रहे अपनी अमिट छाप छोड़ी. उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में जो लाइन खींची उस पर 15 वर्षों तक मन बेमन से रमन सिंह चलते रहे.
छत्तीसगढ़ की आवाम के चहेते अजीत जोगी एक लेखक, राजनेता, बौद्धिक शख्स के साथ-साथ प्रखर वक्ता थे उन्हें सुनने भारी भीड़ जुटती थी आवाम की नब्ज उनके हाथों में थी वे एक ऐसे राजनेता थे जिन्हें सच्चे शब्दों में जन नेता कहा जा सकता है.