गांव बसा नहीं लुटेरे पहले आ गए, वाली कहावत कोरोना से पैदा हुये संकट पर एकदम सटीक बैठती है जिसकी कुछ झलकियां देख लेने के बाद ही लगता है कि खामोख्वाह में दुनिया भर के वैज्ञानिक कोरोना से निबटने प्रयोगशालाओं में अपना सर फोड़ रहे हैं. कोई और बात होती या मौका कोई और होता तो इन वैज्ञानिकों को यह सलाह दी जा सकती थी कि वे लैब छोड़कर सीधे अपने निकटतम धर्म स्थल जाएं और वहां दुकान चला रहे पादरी, पंडे या मोमिन से मिलें,  हजार दो हजार रु में कोरोना को नष्ट करने मंत्र, सामग्री या उपाय ले आयें और बंद करें वैक्सीन की खोज दवाई की ईजादी जैसे फिजूल के काम.

मानव मात्र के कल्याण का ठेका तो इन दलालों के पास है लेकिन यह कोरोना बड़ा अजीब और नास्तिक किस्म का बेहूदा वायरस निकला जिसने बाजार में आते ही धर्म स्थलों तक के दरवाजे बंद करवा दिये. ज्ञात इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि सब की रक्षा और कल्याण करने बाले  भगवान के द्वार भी बंद हो गए.

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कैसे कैसे कोरोना के नाम पर अंधविश्वास फैलाये जाकर ग्राहकों को भगवान नाम के आदिम प्रोडक्ट की तरफ से निराश न होने के टोटके किए जा रहे हैं यह सब भी बताने की जरूरत न पड़े अगर लोग यह समझ लें कि वाकई कोरोना ने यह तो साबित कर दिया है कि ईश्वर कहीं नहीं है. वह तो कुछ चालाक और धूर्त लोगों द्वारा गढ़ी गई एक गप्प है. अगर वह होता तो कोरोना को भस्म और नष्ट कर देता.

दरअसल में धर्म का कारोबार उन लोगों से चलता है जिन्हें शुरू में ही यह रटा दिया जाता है कि सब कुछ भगवान का बनाया हुआ है और वह इस तरह की लीलाएं किया करता है. (जिससे धर्म के दुकानदारों की रोजी रोटी चलती रहे).

इस बार जाने क्यों उस पालनहार ने कुछ ज्यादा ही टफ टास्क दे दिया है जिससे लगता है कि वह भक्तों की नहीं बल्कि दलालों का इम्तिहान ले रहा है कि अब चलाओ कैसे चलाओगे धर्म का धंधा, तो धंधेबाजों के जबाब भी हाजिर हैं. आइये कुछेक पर नजर डाल लें जिससे पता चले कि इलाज डाक्टर और नर्स बगैरह कर रहे हैं एक तरफ तो वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं में कोरोना की पृकृति  का अद्ध्यन कर रहे हैं तो दूसरी तरफ धर्म के दुकानदार इनके सफल होने का इंतजार कर रहे हैं कि इनकी सफलता का श्रेय कैसे कैसे झटकना है.

शुरुआत दुनिया के सबसे छोटे लेकिन सम्पन्न जैन धर्म के सबसे बड़े गुरु विद्ध्यसागर जी  जिनका दर्जा भक्तों की नजर में भगवान से कम नहीं से करें तो उन्होने देश के सबसे बड़े अखबार के जरिये नुस्खा बताया कि घर में परमात्मा का ध्यान करने से कोरोना से बचा जा सकता है. उन्होंने इससे यानि कोरोना से बचने का रास्ता ब्रह्मचर्य और दान को बताया. अपनी बात को विस्तार देते उन्होने कहा, ब्रह्मचर्य यानि अपनी आत्मा में, स्वभाव में लीन होना.

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जब व्यक्ति बाहर जाता है तो दुनिया उसे अशांत करती है इसके उलट जब वह आत्मा की और जाता है तो उसे ब्रह्म दिखाई देता है. जो शांति देता है . आज के वक्त में सबसे अच्छा साधन है परमात्मा का ध्यान उनका स्मरण करना.

यह अब कोई भारीभरकम फ़िलासफी नहीं रह गई है बल्कि हाजमे के चूर्ण जैसी बात हो चली  है कि जब भी पेट में मरोड़े उठें तो 2 चम्मच फांक लो सुबह पेट साफ हो जाएगा. क्या इस प्रवचन या फलसफे को कोरोना का इलाज आज के इस वैज्ञानिक युग में माना जा सकता है.  इस सवाल का कड़वा जबाब है हरगिज नहीं यह तो कोरोना के सामने एक हताश धर्म गुरु का झुनझुना है जिससे एक ही आवाज निकल रही है कि पूजा पाठ करते रहो.

कोरोना न लगे तो परमात्मा की कृपा और लग जाये तो मान लेना कि तुम्हारे पाप जरूरत से ज्यादा थे यानि फोकस पूजा पाठ की आदत और दान की लत पर ही है जिस पर कोरोना का रेपर भी लपेट दिया गया है. कोरोना को नहीं मालूम कि अंदर कहाँ होता है और बाहर कहाँ होता है, अब तक का अद्ध्यन तो यही बताता है कि यह वायरस सांस के जरिये गले को गिरफ्त में लेता है. जिनकी इम्यूनिटी अच्छी होती है और जिन्हें वक्त पर इलाज मिल जाता है वे ठीक भी हो जाते हैं.

अगर किसी को विद्ध्यसागर जी की बात में कोई दम नजर आता है तो उन्हें फौरन सरकार पर दबाब बनाना चाहिए कि खत्म करो ये लाक डाउन और आइसोलेशन बगैरह सभी संक्रमितों को तुरंत भगवान के ध्यान और ब्रह्मचर्य में लगा दो .  जानें भी बच जाएंगी और पैसा भी बच जाएगा.

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बहुसंख्यक हिंदुओं के एक शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द ने बरेली में कोरोना का इलाज तो नहीं बताया लेकिन उसके होने की वजह बता दी कि वैदिक धर्म से विमुखता की वजह से कोरोना फैला. इन महाराज जी ने तो 15 मार्च को यह तक कह डाला कि समाज और विकास के लिए वर्ण व्यवस्था जरूरी है. पत्रकार पूछ रहे थे कोरोना के बारे में और वे कर रहे थे सनातन धर्म का प्रचार. अब एक पल को मान भी लिया जाये कि वैदिक धर्म से विमुखता ही कोरोना फैलने की वजह है तो इस वायरस को वाया चीन भारत आने की क्या सूझी. मकसद चूंकि यह बताना था कि आजकल पूजा पाठ , वेद पुरानों के मुताबिक नहीं हो रहे हैं इसलिए कोरोना जैसे क्षुद्र वायरस तो तबाही मचाएंगे ही इसलिए पहले पूजा पाठ का तरीका सुधारो.

एक और शंकराचार्य स्वामी वासुदेव तो मध्यप्रदेश के कटनी जिले में भविष्यवाणी कर गए कि घबराओ मत गर्मी आते ही कोरोना खतम हो जाएगा. अब इस भविष्यवाणी का आधार क्या था इसे बारीकी से समझें तो बात स्पष्ट हो जाती है कि कोरोना संकट दूर करने किए जा रहे उपाय और वैज्ञानिकों की कोशिशें हैं जिन्हें भुनाने यही धर्म गुरु कहेंगे कि देखो धर्म और भगवान में आस्था से सब कुछ संभव है, तो भक्तो चढ़ाओ इसी बात पर दक्षिणा और यकीन मानें लोग चढ़ाएंगे भी.

कोरोना का प्रकोप नवरात्रि के दिनों में भी रहा जिससे दान दक्षिणा और पूजा पाठ का कारोबार भी ठप्प सा रहा. लाक डाउन के चलते भक्त मंदिर नहीं गए लेकिन इन दुकानदारों ने आस नहीं छोड़ी और लोगों को नया पाठ यह पढ़ाया कि आप घर से ही पूजा पाठ करो फल उतना ही मिलेगा जितना पहले मिलता था . अब अगर ऐसा है तो क्यों नहीं इन मंदिरों पर ताले स्थायी रूप से जड़ दिये जाते जिससे जरूर कई फायदे होंगे. अरबों खरबो की मंदिरों बाली जमीन सार्वजनिक उपयोग में आएगी और लोगों का बेशकीमती वक्त भी बचेगा.

आगरा की वास्तुविद और ज्योतिषी डाक्टर शोनू महरोत्रा ने एक दिलचस्प लेकिन चालाकी भरी बात यह कही कि सनातन धर्म व ज्योतिष आदिकाल से ही देश–काल एवं परिस्थिति को महत्व देता आया है आप यानि भक्तगन इस नवरात्र अपने घरों में उपलब्ध सामग्री से ही पूजा पाठ करें, हवन करें फल मिलेगा क्योंकि ईश्वर भाव के प्रेमी होते हैं वस्तुओं के नहीं. यही बात दिल्ली के प्रमोद पाण्डेय और भोपाल के जीवन दुबे ने भी अपने अपने तरीकों से कही, हर छोटे बड़े शहर के छोटे बड़े पंडित ने कही कि कुछ भी करो लेकिन पूजा पाठ मत छोड़ देना.

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ऐसा सिर्फ इसलिए कि रोजी रोटी चलती रहे और जैसे ही कोरोना संकट दूर हो तो लोगों को बेवकूफ बनाते यह कहा जा सके कि इसी पूजा पाठ के चलते कोरोना भागा नहीं तो समझिए प्रलय आ ही गया था . इन लोगों का मकसद साफ है कि कोरोना के प्रकोप का श्रेय भी भगवान को दो और प्रकोप को दूर करने पूजा पाठ करते रहो. लाक डाउन के चलते भक्त मंदिर नहीं जा पाये तो उन्हें घर से ही कर्मकांड करने की सलाह दी गई. एक तरह से देखा जाये तो खुद ही धर्म स्थलों की पोल इनहोने ही खोल दी लेकिन लोग जागरूक और तर्कशील होकर सवाल न करने लगें इसलिए पूजा पाठ करने अपीलें की जाती रहीं.

इस हालत के लिए मीडिया और सरकार भी कम दोषी और जिम्मेदार नहीं . अखबारों ने खूब स्थानीय पंडे पुजारियों की अपीलें छापकर पूजा पाठ का अंधविश्वास घर घर पहुंचाया तो न्यूज़ चेनल्स ने ब्रांडेड पंडितों को बुलाकर उनके विचार दर्शकों तक पहुंचाए जिससे लोगों को भी लगा कि कोरोना नाम के इस जानलेवा वायरस से अब भगवान ही बचा सकता है .  बाकी इलाज कर रहे डाक्टर और स्वास्थकर्मी बगैरह तो निमित्त मात्र हैं . वैज्ञानिक खुद रिसर्च करते कोरोना की दवा नहीं खोज रहे हैं बल्कि सब कुछ ईश्वरीय प्रेरणा से हो रहा है .

मोदी सरकार ने लाक डाउन की हडबड़ाहट को छोड़ दें तो कोई शक नहीं मुस्तैदी से काम किया लेकिन खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ही किए पर पानी फेर लिया या यूं कहना बेहतर होगा कि जानबूझकर धार्मिक पाखंडों को हवा दी . 2 अप्रेल को प्रधानमंत्री ने वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिये सभी मुख्यमंत्रियों से कहा कि वे सभी धर्मो के गुरुओं को कोरोना के खिलाफ लड़ी जा रही जंग में शामिल करें और इसके लिए राज्य से लेकर थाना स्तर के धर्म गुरुओं को महत्व दें . बस इतना होना था कि पंडे पुजारी मुल्लों और फादरों की पूछपरख सरकारी तौर पर शुरू हो गई और उन्होने जोश में आकर प्रचार करना शुरू कर दिया कि होगा वही जो भगवान चाहेगा इसलिए कोरोना से मुक्ति चाहते हो तो पूजा पाठ करो .

फिर  ताली थाली बजबाकर और दिये जलबाकर किसका आभार व्यक्त किया गया. दरअसल में ये ड्रामे अघोषिततौर पर धार्मिक ही थे जिससे कोरोना का कोहरा छंटने के बाद पाखंडों की उजड़ती दुकान की पुनर्स्थापना की जाकर श्रेय धर्म गुरुओं के खाते में डाला जा सके.

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