आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के चेयरमैन और नदवा कॉलेज के प्रमुख मौलाना राबे हसनी नदवा ने नदवा कॉलेज में छात्रों के द्वारा कोरोनो के लिए कैंडिल जलाने की घटना को सही नही माना और छात्रों से नाराजगी जाहिर की है.

कहते है संकट के समय दुश्मन भी दुश्मनी भूल कर एकजुट हो जाते है. जब बाढ़ आती है तो सांप जैसे खतरनाक जीव भी चुपचाप एक कोने में सिकुड़ कर बैठ जाते है. लेकिन “कोरोना संकट” के इस दौर में भी देश मे हिन्दू-मुस्लिम एक जुट हो कर संकट का मुकाबला नही कर रहे.

उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद और बरेली जिलों में झगड़ो के बाद यह साफ हो गया कि “कोरोना  संकट” के समय भी हिन्दू मुस्लिम आपस मे एकजुट नही हो पा रहे. इलाहाबाद में छोटी सी बात में हत्या हो गई तो बरेली में पुलिस टीम पर हमला करके पुलिस अधिकारी को घायल कर दिया गया.

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निशाने पर जमात :

दिल्ली में जमात की बैठक के बाद बड़ी संख्या में कॅरोना प्रभावितों में जमात के लोगो के मिलने के बाद यह तनाव पूरे देश मे फैल गया. जिस तरह से प्रशासन और सरकार ने जमात में शामिल लोगों को चिन्हित किया उससे कोरोना संकट कम हुआ या नही पता नही चल रहा पर हिंदू मुस्लिम समुदाय के बीच दूरियां बढ़ गई. इसमे सोशल मीडिया की भूमिका बहुत असमाजिक रही. सोशल मीडिया पर जमात के बहाने आपस मे टकराव होने लगता है. इस विचारधारा के लोग मानते है जैसे कोरोना संकट केवल जमात के कारण ही फैल रहा है.

असल मे सोशल मीडिया पर जो बातें उठ रही है उनके पीछे राजनीतिक कारण भी है. उत्तर प्रदेश में सरकार से जब लॉक डाउन खोलने पर सवाल किया गया तो प्रदेश सरकार के अफसरों ने अपने बयान में कहा कि जमात के कारण घटनाएं बद्व गई इस कारण अभी कुछ नही कहा जा सकता है. अफसरों के बयान से कोई भी यह सोच सकता है कि अगर जमात के लोगो ने गड़बड़ी नही की होती तो 14 अप्रैल से लोक डाउन खुल सकता था. हो सकता है कि जमात के कारण हालत कुछ और ज्यादा खराब हो रहे हो पर इसको मुद्दा बनाने से आपसी समन्वय खराब हो रहा है.

वोट बैंक की चिंता

जमात को लेकर सोशल मीडिया पर जो हालत बने है असल मे यह एक वोट बैंक की लड़ाई है. कॅरोना संकट के समय मे भी नेताओ में यह मुद्दा बना हुआ है. वो इस समय भी अपने धार्मिक मुद्दे से पीछे नही हटना चाहते है.

कोरोना संकट के समय नागरिकता कानून का विरोध कर रही महिलाओं को उनके धरने हटाने पर विवश किया गया. वँहा से बनी यह दूरी और भी बढ़ गई. सरकार के कहने पर कुछ मुस्लिम  धर्मगुरुओं में कैंडल जलाए तो कुछ उसके विरोध में आ खड़े हुई. ऐसे में जनता में यह भी एक मुद्दा बन गया.

देश मे ऐसा धर्मिक माहौल तैयार किया जा रहा है जिसमें किसी और धर्म मे लिए जगह नही बन रही है. धर्म का प्रभाव इस तरह बद्व गया है कि राजनीतिक दल भी इस मुद्दे पर ज्यदातर लोग चुप्पी साध गए है और जो लोग धर्म के प्रभाव पर बोल भी रहे तो बहुत छिपे शब्दो मे बोल रहे है.  कोरोना को लेकर जिस तरह से धार्मिककरण किया जा रहा है उससे साफ है कि देश मे कितनी भी बड़ी विपत्ति आ जाये वोट बैंक की चिंता पहले लोगो को होगी.

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