जानलेवा कोरोना वायरस संक्रमण से बचने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कभी जनता से ताली-थाली पिटवा रहे हैं तो कभी दिए जलवा रहे हैं. क्या कोरोना वायरस शोर और रोशनी देख कर भाग जाएगा? साहेब, कोरोना से जनता की जान बचानी है तो सबसे पहले देश के डॉक्टर्स और नर्सेज को बचाइए, उनको आवश्यक संसाधन, दवाएं, मास्क, सेनिटाइजर और सुरक्षा मुहैय्या करवाइये ताकि वो पूरी हिम्मत और सुरक्षा के साथ कोरोना संक्रमित मरीज़ों का इलाज कर सकें. मगर यहां हो ये रहा है कि इन तमाम चीज़ों के अभाव में डॉक्टर्स और नर्सेज खुद कोरोना की चपेट में आ कर कोरन्टाइन हुए जा रहे हैं. जब अस्पतालों में डॉक्टर्स ही मरीज़ बन जाएंगे तो फिर कोरोना से लड़ेगा कौन ?
साहेब, ताली पीटने में वक़्त जाया करने से बेहतर है संकट के इस वक़्त में देश के स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर को ठीक करें ताकि ताली-थाली और दिए जलाने जैसे टोने-टोटके की जरूरत ही न पड़े.अपने दिमाग की बत्ती जलाइए। भोली जनता को गुमराह मत करिये. आपके पहले टोटके को पूरा करने के चक्कर में जनता थाली-कलछी ले कर सड़कों पर उतर पड़ी. जगह-जगह जमघट लगा कर सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा गेम ही बजा डाला.अब आपके दूसरे टोटके को पूरा करने में बिजली विभाग के सामने बड़ी आफत आ खड़ी हुई है. पूरे देश में एक साथ बत्ती गुल करा कर आपने तो तमाम ग्रिड फेल करने का इंतज़ाम कर लिया था. ये तो भला हो बिजली विभाग के इंजीनियर्स का कि उन्होंने जल्दी-जल्दी ये सन्देश फैलाना शुरू किया कि प्रधानमंत्री के मन की बात जनता ज़रूर पूरी करे, मगर सिर्फ बल्ब और ट्यूबलाइट ही बुझाये, पंखा, फ्रिज, टीवी आदि चलता रहने दे ताकि बिजली लाइनों में ज़रूरत से ज़्यादा बिजली ना दौड़े और ट्रिप होने का ख़तरा ना उत्पन्न हो. अब ये सन्देश इस महान देश के सभी मोदी-भक्तों तक पहुंच पाया या नहीं, कहा नहीं जा सकता. सोचिये ग्रिड फेल होने और ठीक होने में लगने वाले समय के दौरान देश के कितने अस्पतालों में वेंटिलेटर्स, ऑपरेशन्स व् अन्य काम रुक जाएंगे जो सिर्फ बिजली पर आधारित हैं. इनका आंकलन किये बगैर ही साहेब, जनता को नए नए फरमान सुनाये जा रहे हैं.
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साहेब को इस कठिन समय में अपने मंत्रीगणो के साथ इस बात पर चिंतन करना चाहिए कि इतने बड़े देश की इतनी बड़ी आबादी के लिए जो स्वास्थ्य सुविधा होनी चाहिए, जो बिलकुल भी नहीं है, उन्हें थोड़ा बहुत ही सही मगर कैसे दुरुस्त किया जाए.कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में सबसे आगे खड़े स्वास्थ्य कर्मियों के पास व्यक्तिगत सुरक्षा किट-पीपीई (पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट) तक पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हैं, वह कैसे उपलब्ध कराये जाएँ.गौरतलब है कि सुरक्षा संसाधनों की कमी की वजह से ही डॉक्टरों में भी यह संक्रमण तेजी से फैल रहा है.सरकार के ढुलमुल रवैये से स्वास्थ्य सेवा में जुटा समुदाय बेहद परेशान है. कोरोना से लड़ रहे डॉक्टरों, नर्सों और तमाम दूसरे सहयोगी कर्मचारियों में भी संक्रमण फैलने का खौफ बढ़ता ही जा रहा है.वे ड्यूटी तो निभा रहे हैं मगर सभी यह सोचकर परेशान हैं कि अगर उनको संक्रमण हुआ तो उनकी वजह से उनका परिवार भी संक्रमित हो सकता है.
इस बात पर भी चिंतन करने की ज़रूरत है कि 14 अप्रैल को लॉक डाउन ख़तम होने के बाद अगर कोरोना की थर्ड स्टेज शुरू हो गई और गरीब जनता इसकी चपेट में आ गई तो उनको तो अस्पतालों में एंट्री ही नहीं मिलेगी, क्योंकि वहां ज़रूरी संसाधनों की बेतरह कमी है. साथ ही कोई डॉक्टर या नर्स उनको हाथ नहीं लगाएगा क्योंकि उनके पास खुद को बचाने के साधन नहीं हैं.
साहेब को डॉक्टर्स की हिफाज़त के लिए जल्दी से जल्दी देश के तमाम अस्पतालों में ज़रूरी संसाधन उपलब्ध कराने की घोषणा और कार्रवाई शुरू करनी चाहिए.डॉक्टर्स और नर्सेज को इस बात का भरोसा दिलाना चाहिए कि उनकी जान की हिफाज़त सरकार की जिम्मेदारी और एक बड़ी चिंता है. देश के तमाम डॉक्टर्स, नर्सेज और मेडिकल स्टाफ का बीमा तुरंत हो जाना चाहिए ताकि उनको थोड़ा तो इत्मीनान हो जाए कि मरीज़ों का इलाज करते वक़्त दुर्भाग्य से अगर वे कोरोना का शिकार हो गए और उनकी जान चली गई तो उनके परिवार के सामने आर्थिक संकट से निपटने के लिए कुछ थोड़ा सा इंतज़ाम तो इस सरकार ने कर दिया है.
साहेब, डॉक्टर्स और नर्सिंग स्टाफ में डर का माहौल है। दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल के कुछ डॉक्टर्स और नर्स सहित 108 स्वास्थ्य कर्मियों को क्वारंटाइन किया गया है क्योंकि इस अस्पताल में दो कोरोना के मरीज भर्ती थे, जिनके संपर्क में आ कर मेडिकल स्टाफ भी संक्रमित हो गया. अब इन दोनों मरीज़ों को राममनोहर लोहिया अस्पताल भेजा गया है, जहाँ भी स्वास्थ सुविधाएँ और कोरोना से बचाव के ज़रूरी संसाधन पर्याप्त नहीं हैं.
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देश भर के सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों, नर्सों और मेडिकल स्टाफ के पास मास्क और आवश्यक किट की कमी होने की वजह से वे सभी एक के बाद एक कोरोना से संक्रमित होते जा रहे हैं. कुछ डॉक्टरों के मुताबिक उन्हें नियमित रूप से नए मास्क नहीं मिल रहे हें. कोरोना से बचाने वाली कंप्लीट पीपीई किट सबको नहीं मिल पा रही है.
गृह मंत्रालय सही आंकड़े जारी नहीं कर रहा है कि कोरोना ने चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े कितने लोगों को संक्रमित किया है. एम्स के एक वरिष्ठ डाक्टर का कहना है कि जिन्हें कोरोना वायरस पेशेंट्स को देखने की ड्यूटी नहीं दी गयी थी ऐसे डॉक्टर भी कोरोना की गिरफ्त में हैं. दिल्ली के हिंदू राव अस्पताल के चार डॉक्टरों और कुछ नर्सों ने डर के मारे अपना इस्तीफा भेजा तो उत्तरी दिल्ली म्युनिसिपल कार्पोरेशन ने उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई का नोटिस भेज दिया है।म्युनिसिपल की तरफ से भेजे गये संदेश में साफ कहा गया कि इन डाक्टरों और नर्सों के इस्तीफों को स्वीकार नहीं किया जायेगा और इनके नाम मेडिकल काउंसिल या नर्सिंग काउंसिल को भेज कर इनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जायेगी। अब बताओ कोई अपनी जान भी ना बचाये ? जबरा मारे भी और रोये भी ना दे?
नयी दिल्ली एम्स के रेजीडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन के महासचिव श्रीनिवास राजकुमार कह रहे हैं कि पूरे देश में कोरोना वायरस से लड़ रहे डाक्टरों और नर्सों के पास पर्याप्त संसाधन नहीं हैं जिनसे वह खुद इस बीमारी से बच सकें। तमाम सुरक्षित संसाधनों की कमी की वजह से डॉक्टरों और नर्सों में ही नहीं स्वास्थ्य सेवा में जुटे सभी लोगों में डर का माहौल है.
पोस्टग्रेजुएकट इंस्टीच्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च, चंडीगढ़ के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी महेश देवनानी ने अपने ट्वीटर हैंडल पर देश भर में कोरोना वायरस से संक्रमित स्वास्थ्य समुदाय से जुड़े लोगों के बारे में जानकारियां इकट्ठा की हैं. इसमें दिल्ली, हरियाणा, केरल, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में कोरोना वायरस से संक्रमित डाक्टरों, नर्सों और दूसरे स्वास्थ्य कर्मचारियों की जानकारी मौजूद ह.
वो लिखते हैं कि कुछ अस्पतालों में मुहैया किये गये सुरक्षा संसाधनों और मास्क की क्वालिटी इतनी खराब हैं कि इस्तेमाल करते वक्त ही वह खराब हुए जा रहे हैं. स्वास्थ्य समुदाय नहीं चाहता कि इलाज कर रहे डाक्टर और नर्स खुद इस बीमारी से संक्रमित हो जायें.अगर ऐसा होता है तो वो जिन स्वास्थय कर्मियों के संपर्क में आएं उनका भी पता लगाना होगा. इस प्रकार से यह कड़ी बढ़ती ही जाएगी और हालात को संभालना काफी मुश्किल हो जाएगा.
सफदरजंग अस्पताल के रेजीडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन ने ट्वीटर पर पीपीई किट, एन95 मास्क, ट्रिपल लेयर मास्क और सेनीटाइजर्स मुहैया करने की अपील की है. इस अपील में कहा गया है कि दिल्ली में कोविड 19 के इलाज में लगे डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ के पास पर्याप्त मात्रा में सुरक्षा उपकरण उपलब्ध नहीं हैं. यह भी सवाल उठाये जा रहे हैं कि आखिर पीएम फंड का इस्तेमाल इसके लिए क्यों नहीं किया जा रहा है?
साहेब, कोरोना से जंग लड़ रहे डाक्टरों और दूसरे मेडिकल स्टाफ संसाधनों की कमी की वजह से इस जानलेवा वायरस की चपेट में आने का जोखिम उठा रहे हैं.मगर सरकार अपनी पीठ थपथपाते नहीं थक रही है कि स्वास्थ्य सुविधाओं में कहीं कोई कमी नहीं है. आखिर कब तक झूठ की धुंध में सच को छिपाते रहेंगे? इस वक़्त देश में डॉक्टरों की सुरक्षा ज्यादा मायने रखती है न कि देशवासियों का दीये जलाकर एकजुटता का प्रदर्शन करना.
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कोरोना संक्रमित डॉक्टरों की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है. ताज्जुब इस बात का है कि संकट की इस घड़ी में भी पीएम ऐसी अजीबोगरीब पेशकश करने से नहीं चूक रहे जबकि इस वक़्त तो उन्हें डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए आवश्यक इंतजाम करने में अपनी पूरी ताकत झोंक देनी चाहिए.
फ्रांस में पर्फ्यूम बनाने वाली कंपनियों ने सेनिटाइज़र का उत्पादन युद्ध स्तर पर करना शुरू कर दिया है. कार बनाने वाली फैक्टरियों में वेंटिलेटर्स बड़े पैमाने पर बनाये जा रहे हैं. मगर हम क्या कर रहे हैं? हम थाली बजा रहे हैं, ताली पीट रहे हैं और दिए जला रहे हैं. प्रधानमंत्री देश की जंनता को संबोधित करते हुए कहते हैं कि कोरोना के अंधकार को चुनौती देने के लिए देश की 130 करोड़ जनता को दीया, मोमबत्ती या मोबाइल की लाइटें जलानी चाहिए. ऐसा करके हम कोरोना की महामारी से उपजे अंधकार को प्रकाश की ताकत का परिचय देंगे। अफ़सोस.
कितने खेद की बात है कि दिल्ली के एक अस्पताल में मुआयना करने गये स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन खुद तो एन95 मास्क पहने नजर आ रहे हैं मगर उनके आस पास खड़े डॉक्टर साधारण सर्जिकल मास्क लगाए दिखते हैं। जाहिर सी बात है, हम समझ सकते हैं कि डॉक्टरों के बजाय सरकार मंत्रियों और वीवीआईपी की सुरक्षा में कोई कोताही नहीं बरत रही है. मगर सरकार को समझने की जरूरत है कि जब डॉक्टर ही नहीं रहेंगे तो कोरोना महामारी से हमें बचायेगा कौन? क्या सरकार को अब कर्तव्य निभा रहे डॉक्टरों की जान बचाने की कवायद शुरू नहीं करनी चाहिए? जनता को टोने-टोटके सुझाने की जगह सरकार यदि अपने दिमाग की बत्ती जला ले तो देश और देशवासियों को ज्यादा फायदा होगा.