लेखक- रोहित

केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने रामायण के प्रसारण को ले कर 27 मार्च को ट्वीट किया कि “जनता की मांग पर 28 मार्च से ‘रामायण’ का प्रसारण दोबारा दूरदर्शन चैनल पर शुरू होगा. पहला एपिसोड सुबह 9 बजे और दूसरा एपिसोड रात 9 बजे प्रसारित किया जाएगा.”

उन्होंने अपने इस ट्वीट में “जनता की मांग” का जिक्र किया. लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया की उन्होंने जनता के बीच इस तरह का सर्वे कब कराया. बेहतर होता कि वह इस सर्वे के आकड़ों की एक कॉपी अपने ट्वीट के साथ संलग्न कर देते.

यह ट्वीट ऐसे वक़्त में किया गया जब देश में लगातार कोरोना से पीड़ित लोगों की संख्या बढ़ रही है. यह संख्या इस समय 700 पार हो चुकी है वहीँ मरने वालों का आकड़ा 20 पहुंच चुका है. साथ ही भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र में लगे कर्मियों के पास मूलभूत सुविधाओं की कमी है. आज पूरी दुनिया सब इस बात को ले कर चिंता में है कि इस खतरनाक बिमारी का अभी तक कोई वैक्सिनैसन तैयार नहीं हो पाया है जिसके लिए भारत समेत पूरी दुनिया के वैज्ञानिक और डाक्टर दिन रात लगे हुए हैं.

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ऐसे में हमारी सरकार द्वारा ऐसी कार्यवाही उन तमाम डाक्टर, नर्सों और कर्मचारियों के दिलों को दुखाने के लिए काफी है जो जीजान लगा कर अपनी सेवाएं दे रहें है.

अभी कुछ दिन पहले की बात है जब देश के प्रधानमंत्री ने जनता कर्फ्यू के दिन शाम 5 बजे, 5 मिनट के लिए इन्ही सेवाकर्मियों के मनोबल के लिए थाली, ताली और घंटियां बजवाई थी. यह साफ़ दिखा रहा था की इस मुश्किल समय में यही सेवाकर्मी है जो इस विपदा से हमें बचा सकते हैं.

सही मायनो में यह बात सत्य भी है, अगर धरती पर कोई है जो इस संक्रमण से सब से आगे खड़े हो मुकाबला कर रहे है वो यही सेवाकर्मी हैं. देश के लोगों ने इस बात को महसूस भी किया और उन का मनोबल बढाने के लिए पूरा सहयोग भी दिया. किन्तु ऐसे समय में इस तरह की धार्मिक घोषणाएं सरकार की खोखली चिंताएं दिखा रहीं हैं.

आज पूरे विश्व में एक साथ पहली बार ऐसा मोका आया है जब लोग तार्किक और वैज्ञानिक सरीके की सोच को बढ़ावा दे रहे हैं. लोग मंदिरमस्जिद की बहस छोड़ अपनेअपने देशों के स्वास्थय विभाग की रिपोर्ट्स को खंगाल रहे हैं. उन्हें अपने असली देश से अवगत होने का मौका मिल रहा है.

लोग यह महसूस कर रहें है कि इस मुश्किल समय में उन के लिए ज्यादा अस्पतालों का होना जरुरी है न की मंदिर-मस्जिद और उनमें कैद भगवानों का. लोग अपनी आम जरूरतों को ले कर बात करने लगे हैं. समाज में फैले अमीरी गरीबी की बढती खाई को समझ रहे हैं. साथ ही उन गरीब मजदूरों के बारे में सोचने लगे हैं जो इस संकट में मरने जैसी स्थिति में पहुंच गए हैं.

आज लोग यहां तक राय रखने लगे है कि मंदिर मस्जिदों में पड़े अरबों के धन का इस्तेमाल मानवजाति को बचाने के लिए इस्तेमाल किया जाए.

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जाहिर सी बात है यह सोच भारत देश में भी तीव्र होती दिखाई दे रही है, लोग मंदिरमस्जिद में दान करने की बजाए अस्पतालों में दान करने को प्राथमिकता देने की बात कर रहे हैं. यही बात इस समय हमारी सरकार को खाए जा रही है. उन्हें चिंता है कि लोग अपने भौतिक जरूरतों पर सोचने लगे है और देश की खराब हालत पर बात कर रहे हैं जिसे छुपाने की सरकार भरसक प्रयास करती रही है.

ऐसे समय में यह भलीभांति समझा जा सकता है कि सरकार इस बात को लेकर घबराई है कि लोग विज्ञान की तरफ उम्मीद लगाए हुए हैं. भगवान के जो प्रतिबिम्ब वह महसूस कर रहे है वह डाक्टरों और वैक्सीन की खोज कर रहे वैज्ञानिकों को ले कर है. लोग देश के अस्पतालों में बेड्स की संख्या, डाक्टरोंनर्सों की कमी इत्यादि के प्रति चिंतित दिखाई दे रहे हैं. लोग आधुनिकता की बात कर रहे हैं. यही कारण है कि लोगों की यह आधुनिक विचारविमर्श सरकार के लिए चिंता का विषय बना है.

सरकार लोगों के दिमाग में अंधविश्वास, दकियानूसीपन, कर्मकांड बनाए रखना चाहती है. इसलिए वह इस समय तमाम तरीके अपना भी रही है. यही कारण है कि 24 तारीख को देशव्यापी लाकडाउन की घोषणा के बावजूद सीएम योगीआदित्यनाथ ने उस घोषणा को धता कर भारी संख्या में समूह के साथ राममंदिर के दर्शन किए.

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जाहिर सी बात है रामायण के प्रसारण से न तो स्तिथि काबू में होगी, न दवाई की खोज होगी और न ही हमारे देश के स्वास्थय क्षेत्र में बेहतर बदलाव होंगे. हां इस से जो हो सकता है वह यह कि विज्ञान और आधुनिकता को आम लोगों से दूर रखा जा सकता है. उन्हें उनकी धार्मिक खोलों में वापस धकेला जा सकता है.

देश के एक बहुत बड़े हिस्से को भगवान के चमत्कार का पाठ पढाया जा सकता है और देश में होने वाली मौतों को उनके कर्म का हिस्सा बताया जा सकता है.

यह फैसला हमारी आधुनिकता और वैज्ञानिक होती सोच पर खतरा है. आज लोग आगे बढ़ना चाह रहे है और सरकार उन्हें पीछे की तरफ खींच रही है.

बेहतर होता कि ऐसे समय में हमारी सरकार के मंत्री देश के लोगों को तालाबंदी में कैसे खानापानी मिल पाए उस के बारे में सोचती. साथ ही स्वास्थय सेवाओं को कैसे दुरुस्त किया जाए उस दिशा में ठोस कदम उठाती.

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