लौट रहा  जमींदारों का युग

अब गांव से बाहर आ कर शहरों में जमींदारी दिखाने का चलन बढ़ गया है. इस वजह से बड़ेबड़े मकान बन रहे हैं. बड़े मकानों के बनने से शहरों में जमीन की कीमतें बढ़ रही हैं जबकि सामान्य लोगों को रहने के लिए किफायती दामों में मकान नहीं मिल पा रहे हैं.

आजादी के बाद देश में जमींदारी उन्मूलन कानून लागू किया गया. इस के जरिए जमींदारों की जमीन को सरकार ने ले लिया और जमीन का पट्टा उन लोगों के नाम किया गया जिन के पास जमीन नहीं थी. जमींदारों के साथ ही साथ राजाओं और रियासतों के साथ भी ऐसा ही किया गया. इस के पीछे सोच यह थी कि देश में रहने वालों के बीच समानता का भाव रहे.

आजादी के 70 सालों बाद अब फिर जमींदारी युग वापस सामने खड़ा हो गया है. इस से शहरों में रहने वालों में अब गैरबराबरी का भाव आ गया है. लोग शहरी और जमींदार शहरी के बीच में बंट गए हैं. जमींदार शहरी को लगता है कि शहर में होने वाली हर घटना और बुराई की जिम्मेदारी सामान्य शहरी की है. शहरों में 2 वर्ग हो गए हैं, एक छोटे घरों वाले सामान्य लोग, दूसरे बड़े घरों वाले जमींदार टाइप के लोग.

आज के दौर में शहरों में रहने वालों के पास बड़ीबड़ी कोठियां हो गई हैं. शहरों में लोगों को मकान उपलब्ध कराने वाले विकास प्राधिकरणों ने इस व्यवस्था को बनाए रखने में पूरी भूमिका अदा की है. इस के तहत शहरों में 3 हजार से 5 हजार वर्ग फुट के प्लौट से ले कर उच्च आयवर्ग (एचआईजी), मध्य आयवर्ग (एमआईजी), निम्न आयवर्ग (एलआईजी) और दुर्बल आयवर्ग (ईडब्लूएस) श्रेणी में मकान बनाए गए. इन श्रेणियों का विभाजन ही आयवर्ग के हिसाब से किया गया, जिस से मकान में रहने वाले की हैसियत को समझने के लिए उस के मकान के टाइप को ही देखना पड़ता है. जैसा मकान का टाइप, वैसी उस की हैसियत.

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