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फटाफट काम के लिए ऐसे करें अपने किचन को तैयार

रसोईघर किसी भी घर का बेहद अहम हिस्सा होता है. त्योहारी मौसम में अपने रसोईघर को किनकिन चीजों से सजाएं आइए जानते हैं:

रसोईघर की सजावट

रंग: अपनी किचन के लिए उपयुक्त कलर का चुनाव करना बहुत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इस से उस की पूरी छवि निर्धारित होती है. बैगनी या हरे जैसे गहरे और गंभीर रंगों से परहेज करें. मनभावन वातावरण बनाने के लिए इन की जगह पीला, मटमैला, नारंगी आदि तटस्थ रंगों का चयन करें.

टाइल्स: सजावटी टाइल्स किचन की दीवारों को दागधब्बों से बचाने के साथसाथ उन का आकर्षण और ज्यादा बढ़ा देती हैं. इन दिनों औनलाइन और औफलाइन दोनों तरीकों से किचन टाइल्स उपलब्ध हैं. पसंदीदा वैराइटीज हैं- मोजेक, सिरैमिक और प्रिंटेड सिरैमिक, रस्टिक, मैट वाल टाइल्स और ग्लौसी सीरीज डिजिटल वाल टाइल्स आदि. आप फलों एवं अन्य भोजन सामग्री के चित्र उकेरी टाइल्स भी पसंद कर सकती हैं.

खिड़कियां: खिड़कियां किसी भी रसोईघर का महत्त्वपूर्ण हिस्सा होती हैं. इसलिए सर्वोत्तम वैराइटी में ही पैसे लगाएं. विंडोज का किचन में प्राकृतिक रोशनी को प्रवेश देने का महत्त्वपूर्ण काम होता है. आजकल झिलमिल सी दिखने वाली खिड़कियां बहुत पसंद की जा रही हैं. रसोईघर को आकर्षक बनाने के लिए कई इंटीरियर डिजाइनर इन का इस्तेमाल कर रहे हैं.

चिमनी: किचन चिमनी में हर साल बहुत बदलाव आ रहे हैं और इस की मांग लगातार बढ़ रही है, क्योंकि यह मौड्यूलर किचन का अनिवार्य हिस्सा बन गई है. किचन चिमनी मुख्यरूप से 3 प्रकार के फिल्टर्स के साथ आ रही हैं- कैसेट फिल्टर, कार्बन फिल्टर और बैफल फिल्टर. इन में बैफल फिल्टर भारतीय किचन के लिए सर्वोत्तम है.

किचन काउंटर टौप: उपयुक्त किचन टौप का चयन करने से किचन की उत्पादकता तो बढ़ती ही है, साथ ही इस का आकर्षण भी बढ़ जाता है. यों तो ग्रेनाइट किचन टेबल या टौप बहुत लोकप्रिय हैं, लेकिन आप संगमरमर (काला और सफेद) और विभिन्न प्रकार की चीनीमिट्टी का भी पसंद कर सकते हैं. किचन काउंटर टौप्स में अब तो कौंपैक्ट क्वार्ट्ज का भी जलवा है और नए जमाने के लोग इसे खूब पसंद कर रहे हैं.

रोशनी: रसोईघर में प्रकाश की व्यवस्था बेहद अनिवार्य है. इसलिए अपनी किचन के संपूर्ण सौंदर्यीकरण के लिए अच्छी क्वालिटी के लैंप, बल्ब आदि लगाने चाहिए. एलईडी और हैलोजन किचन लाइट्स भी काफी पसंद की जा रही हैं.

किचन कैबिनेट: जब बात स्टोरेज की आती है, तो किचन कैबिनेट्स बहुत महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं. प्रीलैमिनेटेड पार्टिकल बोर्ड्स, हार्डवुड, मरीन प्लाई, हाइब्रिड वुड प्लास्टिक कंपोजिट आदि कुछ बेहतरीन किचन कैबिनेट्स हैं.

रसोईघर की सजावट के इन साधनों के अलावा आप किचन केरौसेल का भी इस्तेमाल कर सकती हैं और जगह बचाने के लिए किचन में काम के लिहाज से ऐडजस्ट होने योग्य टेबल भी खरीद सकती हैं.

रसोईघर का सामान

चलिए अब मौजूदा वक्त में रसोईघर में इस्तेमाल हो रहे विभिन्न प्रकार के सामान की जानकारी देते हैं, जो आप के रसोईघर को  और भी आकर्षक बना देंगे:

एअर फ्रायर: यह ऐसा भोजन तैयार करता है, जिस में तेल के जरीए फ्राई किए गए भोजन की तुलना में 80% कम फैट होता है और साथ ही इस के स्वाद में भी कमी नहीं आती है. घर पर एअर फ्रायर होने से पारंपरिक डीप फ्रायर के विपरीत अधिक तेल का इस्तेमाल किए बिना आप पोटैटो चिप्स, चिकन, फिश या पेस्ट्रीज आदि को फ्राई कर सकती हैं.

जूसर: ताजा जूस पैक्ड जूस की तुलना में बेहतर रहता है. यह आप को न सिर्फ तरोताजा बनाए रखेगा, बल्कि उमस वाले इस मौसम में पानी की कमी से भी बचाए रखेगा.

स्मार्ट कुकी ओवन: 10 मिनट के कम से कम वक्त की तैयारी में फ्रैश बेकिंग के लिए स्मार्ट कुकी ओवन शानदार है.

शावरमा ग्रिलर: शावरमा ग्रिलर के साथ घर पर ही शावरमा बनाएं. ये न सिर्फ स्वादिष्ठ होते हैं, बल्कि इन में कई स्वास्थ्यवर्धक गुण भी मौजूद होते हैं. अच्छी तरह से तैयार शावरमा प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट के मजबूत स्रोत हैं. इन में स्वस्थ फैट होता है.

– सुनील गुप्ताए संस्थापक एवं निदेशक, ऐक्सपोर्ट्स इंडिया डौट कौम

घर और औफिस में तालमेल बनाने का उपाय हम आपको बताते हैं

मान्या की शादी 4 महीने पहले ही हुई है. वह बैंक में है. पहले संयुक्त परिवार में रह रही थी. इसलिए उस पर काम का बोझ अधिक नहीं था. लेकिन शादी के 2 महीने बाद ही पति का ट्रांसफर दूसरे शहर में हो गया. मान्या को भी पति के साथ जाना पड़ा. वह जिस बैंक में थी उस की अन्य शाखा भी उस शहर में थी, इसलिए मान्या ने भी वहां तबादला करा लिया.

दोनों परिवार से दूर अनजाने शहर में रह रहे हैं. यहां मान्या के ऊपर घर व औफिस की दोहरी जिम्मेदारियों का बोझ आ पड़ा. बचपन से संयुक्त परिवार में रही थी. इसलिए उस ने अकेले काम का इतना अधिक बोझ कभी नहीं संभाला था. उस का टाइम मैनेजमैंट गड़बड़ाने लगा. वह घर और दफ्तर के कार्यों के बीच अपना सही संतुलन नहीं बना पा रही थी. धीरेधीरे उस की सेहत पर इस का असर दिखने लगा.

एक दिन अचानक मान्या औफिस में बेहोश  हो गई. उसे हौस्पिटल ले जाया गया. डाक्टर ने बताया कि वह तनाव से घिरी है. इस का असर उस के स्वास्थ्य पर पड़ने लगा है. उस के बेहोश होने की वजह यही है.

1 हफ्ता मान्या ने घर पर आराम किया. कई रिश्तेदार और दोस्त उस से मिलने आए. एक दिन उस की एक खास सखी भी आई, जो मल्टीनैशनल कंपनी में मैनेजर थी. उस ने बताया, ‘‘तुम्हारे तनाव और बीमारी की वजह तुम्हारे द्वारा टाइम को सही तरीके से मैनेज नहीं करना है. वर्किंग वूमन के लिए अपने टाइम को इस तरह से बांटना कि तनाव और डिप्रैशन जैसी स्थिति न आए, बहुत जरूरी होता है.’’

आधुनिक समय में कामकाजी महिलाओं को घर और औफिस की दोहरी जिम्मेदारियां उठानी पड़ रही हैं, जिन में वे उलझ जाती हैं. वे हर जगह खुद को साबित करने और अपना शतप्रतिशत देने की चाह में तनाव की शिकार हो जाती हैं. पति और बच्चों के साथ समय नहीं बिता पातीं. सोशल लाइफ से दूर होती जाती हैं. औफिस में घर की परेशानियां और घर में औफिस की परेशानियों के साथ कार्य करना, ऐसे बहुत से कारण हैं, जो उन की जिंदगी में कहीं न कहीं ठहराव सा ला देते हैं, जो उन की सुपर वूमन की छवि पर एक प्रश्नचिह्न होता है.

ऐसे में जिंदगी में आई इन मुश्किलों का सामना जिंदादिली के साथ किया जाए, तो हार के रुक जाने का मतलब ही नहीं बनता. वैसे भी जिंदगी में सफलता का मुकाम कांटों भरी राह को तय करने के बाद ही मिलता है.

दोहरी जिम्मेदारी निभाएं ऐसे

आइए जानते हैं किस तरह वर्किंग वूमन अपनी दोहरी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाते हुए दूसरी महिलाओं के लिए कामयाबी की मिसाल बन सकती हैं:

आज जमाना ब्यूटी विद ब्रेन का है. अत: सुंदरता के साथसाथ बुद्धिमत्ता भी जरूरी है. हमेशा सकारात्मक सोच रखें. नकारात्मक विचारों को खुद पर हावी न होने दें.

ऐसी दिनचर्या बनाएं, जिस में आप अपनी पर्सनल और प्रोफैशनल लाइफ को समय दे सकेें.

अपने व्यक्तित्व पर ध्यान दें. अपनी कमियों को दूर करने का प्रयास करें, क्योंकि यह आप के व्यक्तित्व विकास में बाधक बनती है. अपने अंदर आत्मनिरीक्षण करने की आदत विकसित करें. इस के अलावा अपने दोस्तों, शुभचिंतकों से भी अपनी कमियां जानने की कोशिश करें.

– वर्किंग वूमन के लिए टाइम मैनेजमैंट बहुत जरूरी है. इसलिए औफिस और घर पर समय की बरबादी को रोकने का हर संभव प्रयास करें. कौन सा कार्य कितने समय में करना है, इस की रूपरेखा मस्तिष्क या लिखित रूप में आप के पास होनी चाहिए.

– घर के कामों में परिवार के सदस्यों और बच्चों की मदद जरूर लें. साथ ही अपनी समस्याओं को परिवार के सदस्यों से प्यार से बताएं.

– औफिस में अकसर आप को आलोचना का शिकार भी होना पड़ता होगा. ऐसी बातों को नकारात्मक ढंग से न लें. अपनी कार्यक्षमता, संयमित व्यवहार और अपने आदर्शों से आप किसी न किसी दिन अपने आलोचकों को मुंह बंद कर ही देंगी.

– यदि आप को औफिस में अतिरिक्त जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं, तो उन से पीछा छुड़ाने के बजाय उन्हें सकारात्मक तरीके से निभाएं, क्योंकि ऐसी जिम्मेदारियां आप की कार्यक्षमता की, परीक्षा की जांच के लिए भी आप को दी जा सकती हैं.

  • वीकैंड पति व बच्चों के नाम कर दें. इस दिन मोबाइल फोन से जितनी हो सके दूरी बना कर रखें. बच्चों और पति को उन की फैवरेट डिश बना कर खिलाएं. शाम के समय मूड फ्रैश करने के लिए परिवार के साथ पिकनिक स्पौट या आउटिंग पर जाएं. इस तरह आप खुद को अगले सप्ताह के कामों के लिए फ्रैश और कूल महसूस करेंगी.

– औफिस में अपने काम को पूरी ईमानदारी और लगन से करें. लंच में ज्यादा समय न खराब करें. देर तक मोबाइल पर बातें करने से बचें.

द्य औफिस में सहकर्मियों से न तो अधिक निकटता रखें और न ही अजनबियों जैसा व्यवहार करें. औफिस में सहकर्मियों के साथ फालतू की बहस से बचें. उन के साथ आप को जादा देर तक काम करना होता है. अत: उन के साथ दोस्ताना संबंध बना कर चलें.

– औफिस की परेशानियों को घर न लाएं. ज्यादा देर टीवी देख कर या मोबाइल पर बातें कर के समय खराब न करें.

– जहां तक हो घर जा कर खाना खुद ही बनाएं. रोजरोज बाहर का खाना और्डर न करें. यह आप और आप के परिवार के लिए सही नहीं.

– आप की दोहरी भूमिका निभाने में पारिवारिक सदस्यों का सहयोग बहुत ही जरूरी है. इसलिए  व्यवहारिक जीवन में पतिपत्नी को एकदूसरे की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए और एकदूसरे की परेशानी को हल करने के लिए आपस में काम बांट लेने चाहिए.

आप का अपने लिए भी समय निकालना जरूरी है ताकि आप इस बीच शौपिंग आदि कर के अपना मूड फ्रैश कर सकें. रोजाना औफिस और घर के बीच की भागदौड़ की थकावट आप की सुंदरता कम कर सकती है. इस के लिए पार्लर में जा कर अपने सौदर्य में चार चांद लगाएं. चाहें तो पति को एक दिन के लिए बच्चों की जिम्मेदारी सौंप कर फ्रैंड्स के साथ मूवी देखने का प्रोग्राम बनाएं.

घर संभालता प्यारा पति दे रहा है समाज की संकुचित सोच को चुनौती

सुबह के 8 बजे हैं. घड़ी की सूइयां तेजी से आगे बढ़ रही हैं. स्कूल की बस किसी भी क्षण आ सकती है. घर का वातावरण तनावपूर्ण सा है. ऐसे में बड़ा बेटा अंदर से पापा को आवाज लगाता है कि उसे स्कूल वाले मोजे नहीं मिल रहे. इधर पापा नानुकुर कर रही छोटी बिटिया को जबरदस्ती नाश्ता कराने में मशगूल हैं. इस के बाद उन्हें बेटे का लंचबौक्स भी पैक करना है. बेटे को स्कूल भेज कर बिटिया को नहलाना है और घर की डस्टिंग भी करनी है.

यह दृश्य है एक ऐसे घर का जहां बीवी जौब करती है और पति घर संभालता है यानी वह हाउस हसबैंड है. सुनने में थोड़ा विचित्र लगे पर यह हकीकत है.

पुरातनपंथी और पिछड़ी मानसिकता वाले भारतीय समाज में भी पतियों की यह नई प्रजाति सामने आने लगी है. ये खाना बना सकते हैं, बच्चों को संभाल सकते हैं और घर की साफसफाई, बरतन जैसे घरेलू कामों की जिम्मेदारी भी दक्षता के साथ निभा सकते हैं.

ये सामान्य भारतीय पुरुषों की तरह नहीं सोचते, बिना किसी हिचकिचाहट बिस्तर भी लगाते हैं और बच्चे का नैपी भी बदलते हैं. समाज का यह पुरुष वर्ग पत्नी को समान दर्जा देता है और जरूरत पड़ने पर घर और बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी उठाने को भी हाजिर हो जाता है.

हालांकि दकियानूसी सोच वाले भारतीय अभी भी ऐसे हाउस हसबैंड को नाकारा और हारा हुआ पुरुष मानते हैं. उन के मुताबिक घरपरिवार की देखभाल और बच्चों को संभालने की जिम्मेदारी सदा से स्त्री की रही है, जबकि पुरुषों का दायित्व बाहर के काम संभालना और कमा कर लाना है.

हाल ही में हाउस हसबैंड की अवधारणा पर आधारित एक फिल्म आई थी ‘का एंड की.’ करीना कपूर और अर्जुन कपूर द्वारा अभिनीत इस फिल्म का मूल विषय था- लिंग आधारित कार्यविभेद की सोच पर प्रहार करते हुए पतिपत्नी के कार्यों की अदलाबदली.

लिंग समानता का जमाना

आजकल स्त्रीपुरुष समानता की बातें बढ़चढ़ कर होती हैं. लड़कों के साथ लड़कियां भी पढ़लिख कर ऊंचे ओहदों पर पहुंच रही हैं. उन के अपने सपने हैं, अपनी काबिलीयत है. इस काबिलीयत के बल पर वे अच्छी से अच्छी सैलरी पा रही हैं. ऐसे में शादी के बाद जब वर्किंग कपल्स के बच्चे होते हैं तो बहुत से कपल्स भावी संभावनाओं और परेशानियों को समझते हुए यह देखते हैं कि दोनों में से किस के लिए नौकरी महत्त्वपूर्ण है. इस तरह आपसी सहमति से वे वित्तीय और घरेलू जिम्मेदारियों को बांट लेते हैं.

यह पतिपत्नी का आपसी फैसला होता है कि दोनों में से किसे घर और बच्चों को संभालना है और किसे बाहर की जिम्मेदारियां निभानी हैं.

यहां व्यवहारिक सोच महत्त्वपूर्ण है. यदि पत्नी की कमाई ज्यादा है और कैरियर को ले कर उस के सपने ज्यादा प्रबल हैं तो जाहिर है कि ऐसे में पत्नी को ब्रैड अर्नर की भूमिका निभानी चाहिए. पति पार्टटाइम या घर से काम करते हुए घरपरिवार व बच्चों को देखने का काम कर सकता है. इस से न सिर्फ बच्चों को अकेला या डेकेयर सैंटर में छोड़ने से पैदा तनाव कम होता है, बल्कि उन रुपयों की भी बचत होती है जो बच्चे को संभालने के लिए मेड या डेकेयर सैंटर को देने पड़ते हैं.

हाउस हसबैंड की भूमिका

हाउस हसबैंड होने का मतलब यह नहीं है कि पति पूरी तरह से पत्नी की कमाई पर निर्भर हो जाए या जोरू का गुलाम बन जाए. इस के विपरीत घर के काम और बच्चों को संभालने के साथसाथ वह कमाई भी कर सकता है. आजकल घर से काम करने के अवसरों की कमी नहीं. आर्टिस्ट, राइटर्स ज्यादा बेहतर ढंग से घर पर रह कर काम कर सकते हैं. पार्टटाइम काम करना भी संभव है.

सकारात्मक बदलाव

लंबे समय तक महिलाओं को गृहिणियां बना कर सताया गया है. उन के सपनों की अवहेलना की गई है. अब वक्त बदलने का है. एक पुरुष द्वारा अपने कैरियर का त्याग कर के पत्नी को अपने सपने सच करने का मौका देना समाज में बढ़ रही समानता व सकारात्मक बदलाव का संदेश है.

एकदूसरे के लिए सम्मान

जब पतिपत्नी अपनी ब्रैड अर्नर व होममेकर की पारंपरिक भूमिकाओं को आपस में बदल लेते हैं, तो वे एकदूसरे का अधिक सम्मान करने लगते हैं. वे पार्टनर की उन जिम्मेदारियों व काम के दबाव को महसूस कर पाते हैं, जो इन भूमिकाओं के साथ आते हैं.

एक बार जब पुरुष घरेलू काम और बच्चों की देखभाल करने लगता है तो खुद ही उस के मन में महिलाओं के लिए सम्मान बढ़ जाता है. महिलाएं भी उन पुरुषों को ज्यादा मान देती हैं जो पत्नी के सपनों को उड़ान देने में अपना योगदान देते हैं और स्त्रीपुरुष में भेद नहीं मानते.

जोखिम भी कम नहीं

समाज के ताने: पिछड़ी और दकियानूसी सोच वाले लोग आज भी यह स्वीकार नहीं कर पाते कि पुरुष घर में काम करे व बच्चों को संभाले. वे ऐसे पुरुषों को जोरू का गुलाम कहने से बाज नहीं आते. स्वयं चेतन भगत ने स्वीकार किया था कि उन्हें ऐसे बहुत से सवालों का सामना करना पड़ा जो सामान्यतया ऐसी स्थिति में पुरुषों को सुनने पड़ते हैं. मसलन, ‘अच्छा तो आप की बीवी कमाती है?’ ‘आप को घर के कामकाज करने में कैसा महसूस होता है? वगैरह.’

पुरुष के अहं पर चोट: कई दफा खराब परिस्थितियों या निजी असफलता की वजह से यदि पुरुष हाउस हसबैंड बनता है तो वह खुद को कमजोर और हीन महसूस करने लगता है. उसे लगता है जैसे वह अपने कर्त्तव्य निभाने (कमाई कर घर चलाने) में असफल नहीं हो सका है और इस तरह वह पुरुषोचित कार्य नहीं कर पा रहा है.

मतभेद: जब स्त्री बाहर जा कर काम कर पैसे कमाती है और पुरुष घर में रहता है तो और भी बहुत सी बातें बदल जाती हैं. सामान्यतया कमाने वाले के विचारों को मान्यता दी जाती है. उसी का हुक्म घर में चलता है. ऐसे में औरत वैसे इशूज पर भी कंट्रोल रखने लगती है जिन पर पुरुष मुश्किल से ऐडजस्ट कर पाते हैं.

सशक्त और अपने पौरुष पर यकीन रखने वाला पुरुष ही इस बात को नजरअंदाज करने की हिम्मत रख सकता है कि दूसरे लोग उस के बारे में क्या कह रहे हैं. ऐसे पुरुष अपने मन की सुनते हैं न कि समाज की.

स्त्रीपुरुष गृहस्थी की गाड़ी के 2 पहिए हैं. आर्थिक और घरेलू कामकाज, इन 2 जिम्मेदारियों में से किसे कौन सी जिम्मेदारी उठानी है, यह कपल को आपस में ही तय करना होगा. समाज का दखल बेमानी है.

जानेमाने हाउस हसबैंड्स

ऐसे बहुत से जानेमाने चेहरे हैं, जिन्होंने अपनी इच्छा से हाउस हसबैंड बनना स्वीकार किया है-

भारतीय लेखक चेतन भगत, जिन के उपन्यासों पर ‘थ्री ईडियट्स’, ‘2 स्टेट्स’, ‘हाफ गर्लफ्रैंड’ जैसी फिल्में बन चुकी हैं, ने अपने जुड़वां बच्चों की देखभाल के लिए हाउस हसबैंड बनने का फैसला लिया.

वे ऐसे दुर्लभ पिता हैं, जिन्होंने आईआईटी, आईआईएम से निकलने के बाद अपने बच्चों को अपने हाथों बड़ा किया. हाउस हसबैंड बनने का फैसला उन्होंने तब लिया था जब वे अपने कैरियर में ज्यादा सफल नहीं थे जबकि उन की पत्नी यूबीएस बैंक की सीईओ थीं. चेतन भगत ने नौकरी छोड़ कर भारत आने का फैसला लिया और खुशीखुशी घर व बच्चों की देखभाल में समय लगाने लगे. साथ में लेखन का कार्य भी चलता रहा. आज उसी चेतन भगत के उपन्यासों का लोगों को बेसब्री से इंताजर रहता है.

कुछ इसी तरह की कहानी जानेमाने फुटबौलर डैविड बैकहम की भी है, जिन्होंने प्रोफैशनल फुटबौल की दुनिया से अलविदा कह कर हाउस हसबैंड बनने का फैसला लिया. एक टैलीविजन शो के दौरान उन्होंने स्वीकारा था कि वे अपने 4 बच्चों के साथ समय बिता कर ऐंजौय करते हैं. बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करना, स्कूल छोड़ कर आना, लंच बनाना, सुलाना जैसे सभी कामों को वे बड़ी सहजता से करते हैं.

न्यूटन इनवैस्टमैंट मैनेजमैंट की सीईओ हेलेना मोरिसे लंदन की चंद ऐसी महिला सीईओ में से एक हैं जो 50 बिलियन पाउंड्स से ज्यादा का कारोबार संभालती हैं और करीब 400 से ज्यादा कर्मचारियों पर हुक्म चलाती हैं. वे 9 बच्चों की मां भी हैं. जब हेलेना ने बिजनैस वर्ल्ड में अपना मुकाम बनाया तो उन के पति रिचर्ड ने खुशी से घर पर रह कर बच्चों की जिम्मेदारी उठाना स्वीकारा.

कुछ इसी तरह की कहानी भारत की सब से शक्तिशाली बिजनैस वूमन, इंदिरा नूई की भी है. पेप्सिको की सीईओ और चेयरमैन इंदिरा नूई के पति अपनी फुलटाइम जौब को छोड़ कर कंसलटैंट बन गए ताकि वे अपनी दोनों बच्चियों की देखभाल कर सकें.

इसी तरह बरबेरी की सीईओ ऐंजेला अर्हेंड्स के पति ने भी अपनी पत्नी के कैरियर के लिए अपना बिजनैस समेट लिया और बच्चों की देखभाल व घर की जिम्मेदारियां अपने ऊपर ले लीं.

डिप्लोमैट जेम्स रुबिन ने भी खुशीखुशी अपनी हाई प्रोफाइल जौब छोड़ दी ताकि वे अपनी पत्नी जर्नलिस्ट क्रिस्टीन अमान पोर को सफलता की सीढि़यां चढ़ता देख सकें. उन्होंने जौब छोड़ कर अपने बेटे की परवरिश करने की ठानी.

रूहानी इलाज : रेशमा ने कैसे किए एक तीर से दो शिकार

‘‘नहीं…नहीं,’’ चीखते हुए रेशमा अचानक उठ बैठी, तो उस का पति विवेक भी हड़बड़ा कर उठ बैठा और पूछने लगा, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘वही डरावना सपना…’’ कहते हुए रेशमा विवेक से लिपट कर रो पड़ी.

‘‘घबराओ नहीं, सब ठीक हो जाएगा,’’ विवेक रेशमा को हिम्मत देते हुए बोला, ‘‘शाम को जब मैं दफ्तर से लौटूंगा, तब तुम्हें डाक्टर को दिखा दूंगा.’’

विवेक और रेशमा की शादी को 2 साल हो गए थे, पर रेशमा को अभी तक जिस्मानी सुख नहीं मिल पाया था. वह इस बारे में न तो किसी से कह सकती थी और न इस से नजात पा सकती थी. बस, मन ही मन घुटती रहती थी.

विवेक रात को दफ्तर से वापस आता, तो थकामांदा उस के साथ सोता. फिर पलभर के छूने के बाद करवट बदल लेता और रेशमा जिस्मानी सुख को तरसती रह जाती. ऐसे में बच्चा पैदा होने की बात तो वह सोच भी नहीं सकती थी.

विवेक के दफ्तर जाने के बाद रेशमा की पड़ोसन सीमा उस से मिलने आई और हालचाल पूछा. बातोंबातों में रेशमा ने सीमा को अपने सपनों के बारे में बता दिया.

सीमा बोली, ‘‘घबरा मत. सब ठीक हो जाएगा. यहीं नजदीक में ही एक तांत्रिक पहलवान हैं. वे तंत्र विद्या से रूहानी इलाज करते हैं. उन्होंने कइयों को ठीक किया है. तू भी चलना, अगर मुझ पर भरोसा है तो.’’

‘‘नहीं सीमा, आज शाम विवेक मुझे डाक्टर के पास ले जाने वाले हैं,’’ रेशमा ने कहा, तो सीमा बोली, ‘‘छोड़ न डाक्टर का चक्कर. पहले मोटी फीस लेगा, फिर ढेर सारे टैस्ट लिख देगा और ज्यादा से ज्यादा नींद आने या तनाव भगाने की दवा दे देगा. तुझ पर तो किसी प्रेत का साया लगता है. ये बीमारियां ठीक करना डाक्टरों के बस की बात नहीं. आगे तेरी मरजी.’’

सीमा की बात रेशमा पर असर कर गई. उसे लगा कि तांत्रिक को दिखाने में हर्ज ही क्या है. कुछ सोच कर उस ने हामी भर दी और विवेक को मोबाइल फोन मिला कर सब सच बता दिया.

सीमा और रेशमा तांत्रिक पहलवान के पास पहुंचीं. वहां बाहर ही बड़ा सा बोर्ड लगा था, जिस पर लिखा था, ‘यहां हर बीमारी का शर्तिया रूहानी इलाज किया जाता है’.

उन्होंने तांत्रिक से मिलने की इच्छा जताई, तो वहां बैठे तांत्रिक के अर्दली ने उन्हें बाहर बैठा दिया और बोला, ‘‘अभी पहलवान पूजा सिद्ध कर रहे हैं.’’ फिर वह बड़ी देर तक उन से बातें करता रहा और उन के मर्ज के बारे में  भी पूछा. थोड़ी देर बाद अर्दली पहलवान से इजाजत लेने अंदर गया.

तभी एक और औरत आ कर उन के पास बैठ गई और इन से मर्ज पूछा. साथ ही बताया कि पहलवान बहुत अच्छा इलाज करते हैं.

रेशमा ने उस औरत को सारा मर्ज बता दिया और पहलवान के बारे में जान कर उस का भरोसा और बढ़ गया. इतने में अर्दली आया और बोला, ‘‘चलिए, आप को बुलाया है.’’

अंदर एक मोटीमोटी आंखों वाला लंबाचौड़ा आदमी माथे पर पटका बांधे बैठा था. कमरे में दीवारों पर तंत्रमंत्र लिखे कई पोस्टर लगे थे. चारों ओर धूपबत्ती का धुआं फैला था. वहां सिर्फ जीरो वाट का एक लाल बल्ब रोशनी फैलाता माहौल को और डरावना बना रहा था.

वह आदमी मोबाइल फोन पर किसी से बात कर रहा था. उस ने बात करतेकरते इन्हें बैठने का इशारा किया. फिर बात खत्म कर इन की ओर मुखातिब हुआ, तो रेशमा ने कुछ दबी सी जबान में अपनी बात कही.

रेशमा की दास्तां सुन कर पहलवान तांत्रिक बोला, ‘‘तुम्हें डरावने सपने आते हैं. पति की कमजोरी का खमियाजा भुगत रही हो और न किसी से कह सकती हो और न सह सकती हो. अभी तक कोई बच्चा भी नहीं है… सब के ताने सहने पड़ते हैं…’’

रेशमा हैरान थी कि तांत्रिक यह सब बिना बताए कैसे जानता है. लेकिन उसे वह पहुंचा हुआ तांत्रिक लगा व इस से उस पर रेशमा का भरोसा बढ़ गया.

फिर वह उन से बोला, ‘‘लगता है कि किसी बुरी आत्मा की छाया है तुम पर, जिस ने तुम्हारे दिमाग पर कब्जा कर रखा है. इस का इलाज हो जाएगा, लेकिन जैसा मैं कहूं वैसा करना होगा. 4-5 बार झाड़फूंक के लिए बुलाऊंगा. नतीजा खुद तुम्हारे सामने आ जाएगा.’’

रेशमा को उस के रूहानी इलाज पर भरोसा हो गया था, इसलिए वह रूहानी इलाज के लिए तैयार हो गई और फीस के बारे में पूछा.

इस पर तांत्रिक बोला, ‘‘अपनी मरजी से कुछ भी दे देना. मनमांगी फीस तो हम तब लेंगे, जब काम हो जाएगा. हमें पैसों का कोई लालच नहीं है,’’ कहते हुए तांत्रिक ने नजर से नजर मिला कर रेशमा की ओर देखा.‘‘ठीक है,’’ कह कर रेशमा ने इलाज के लिए हामी भरी, तो सीमा को बाहर भेज कर तांत्रिक ने कमरा बंद कर लिया.

तांत्रिक ने रेशमा को भभूत लिपटा एक लड्डू दिया और वहीं खा कर जाने को कहता हुआ बोला, ‘‘2 दिन बाद फिर आना. पूरी विधि से झाड़फूंक कर दूंगा. असर तो आज से ही पता चल जाएगा तुम्हें.’’

घर पहुंच कर रेशमा को कुछ हलकापन महसूस हो रहा था. उसे लग रहा था कि इस रूहानी इलाज का उस पर असर जरूर होगा. वह चिंतामुक्त हो बिस्तर पर पसर गई. कब आंख लगी, उसे पता ही न चला. आंख खुली तब, जब विवेक ने दरवाजा खटखटाया.

‘ओह, आज कितने अरसे बाद इतनी गहरी नींद आई है. शायद यह रूहानी इलाज का ही असर है,’ रेशमा ने सोचा और दरवाजा खोला.

चाय पीते समय रेशमा ने विवेक को तांत्रिक की बात बता दी. रेशमा को तरोताजा देख कर विवेक को भी यकीन हो गया कि इस इलाज का असर होगा. लेकिन चुटकी लेता हुआ वह बोला, ‘‘कहीं तांत्रिक ने नींद की दवा तो नहीं डाल दी थी लड्डू में, जो घोड़े बेच कर सोई थी?’’

2 दिन बाद रेशमा को फिर तांत्रिक पहलवान के पास जाना था. उस ने फोन कर के पहलवान से मिलने का समय ले लिया और तय समय पर पहुंच गई.

तांत्रिक ने पहले की झाड़फूंक का असर पूछा, तो रेशमा ने बता दिया कि फर्क लग रहा है.

तांत्रिक की घूरती निगाहें अब रेशमा के उभारों का मुआयना कर रही थीं. जीरो वाट के बल्ब की लाल रोशनी में धूपबत्ती के धुएं और बंद कमरे में तांत्रिक ने एक बार फिर रेशमा की झाड़फूंक की और उस से करीबी बनाने लगा.

फिर उस ने रेशमा को भभूत लिपटा लड्डू खाने को दिया, जिसे खाने पर वह बेहोश सी होने लगी. असर होते देख तांत्रिक पहलवान ने रेशमा को अपनी बांहों में जकड़ लिया. अब तांत्रिक को मुंहमांगी मुराद मिल गई थी. उस ने रेशमा के अंगों के साथ खुल कर खेलना शुरू कर दिया.

मनमुताबिक भोगविलास के बाद तांत्रिक पहलवान ने रेशमा को घर भेज दिया. घर आ कर रेशमा बिस्तर पर पड़ गई.

उसे तांत्रिक की इस हरकत का पता चल गया था, लेकिन उस ने जिस्मानी सुख का सुकून भी पाया था, जिसे वह खोना नहीं चाहती थी.

अगली बार रेशमा तांत्रिक के पास गई, तो खुला दरवाजा देख बिना इजाजत अंदर जा पहुंची. अंदर का नजारा देख कर वह दंग रह गई. अंदर तांत्रिक उसी औरत की बांहों में बांहें डाले बैठा था, जिसे उस ने पहले दिन वहां देखा था और सारा मर्ज बताया था.

रेशमा समझ गई कि यह तांत्रिक की ही जानकार है और इसी ने मरीज बन कर सब जान लिया और फोन पर तांत्रिक को बताया था, तभी तो तांत्रिक फोन पर बात करता मिला और हमारे बारे में सब सचसच बता पाया.

रेशमा को देखते ही वह औरत तांत्रिक से अलग हो गई और कमरे से बाहर चली गई. रेशमा भी सबकुछ जानने के बावजूद खामोश रही.

तांत्रिक ने रूहानी इलाज शुरू किया और रेशमा खुद को उस के सामने परोसती चली गई.

अब रेशमा जबतब पहलवान के पास इलाज के बहाने पहुंच जाती और देहसुख का लुत्फ उठाती.

उस दिन रेशमा की सास उन के यहां आई हुई थी. उसे जोड़ों का दर्द व बुढ़ापे की अनगिनत बीमारियां थीं, जिस के लिए विवेक ने उन्हें पहलवान के पास ले जाना चाहा था.

तभी रेशमा उबकाई करती दिखी, तो सास और खुश हो गईं. वे विवेक को बधाई देते हुए बोलीं, ‘‘सचमुच पहलवान का इलाज कारगर है, जो बहू पेट से हो गई.’’ लेकिन रेशमा के मन में हजारों शक पनपने लगे थे. उस ने किसी तरह सास को इलाज के लिए ले जाने को टरकाया व पहलवान से छुटकारे की योजना सोचने लगी.

इधर कुछ दिन से रेशमा को न पा कर पहलवान का दिल मचलने लगा था. उस ने रेशमा को फोन कर के बुलाना चाहा. रेशमा ने आनाकानी की और बताया कि इस से उन के संबंध का भेद खुलने का खतरा है. पर पहलवान की बेचैनी हद पर थी.

तांत्रिक पहलवान बोला, ‘‘अगर तुम नहीं आओगी, तो मैं तुम्हारे इस संबंध के बारे में खुद तुम्हारे पति को बता दूंगा.’’

अब रेशमा दुविधा में थी. पति को बताए तो परेशानी और न बताए तो पहलवान का डर. रेशमा को खुद को बचाना मुश्किल हो रहा था.

उधर पहलवान तांत्रिक ने दोबारा फोन कर के धमकाया, ‘अगर तुम यहां नहीं आईं, तो तुम्हारे पति को बता दूंगा.’

रातभर रेशमा बचने का उपाय सोचती रही. उसे लग रहा था, जैसे उसे पुरानी बीमारी ने फिर आ जकड़ा था. वह गहरे तनाव में थी. अचानक उस के दिमाग में कुछ आया और वह निश्चिंत हो कर सो गई.

सुबह उठी और बाहर जा कर पहलवान को फोन कर दिया कि शाम को वह उस के पास आएगी. इस से वह खुश व संतुष्ट हो गया.

साथ ही, उस ने अपने पति विवेक को विश्वास में लिया और बोली, ‘‘देखो, तुम सासू मां का इलाज पहलवान से करवाने की कह रहे थे, लेकिन मैं तुम्हें बता दूं कि वह ठीक आदमी नहीं है. मंत्र पढ़ते समय उस ने मुझे भी कई बार छूने की कोशिश की.’’

सुनते ही विवेक आगबबूला हो गया और बोला, ‘‘तुम ने पहले क्यों नहीं बताया? मैं करता हूं उस का रूहानी इलाज. आज ही उस के खिलाफ पुलिस में शिकायत करता हूं.’’

रेशमा ने उसे रोका, उसे खुद को भी तो बचाना था. फिर वह बोली, ‘‘मैं आज शाम इलाज के लिए वहां जाऊंगी… अगर उस ने ऐसी कोई बात

अब रेशमा रूहानी इलाज करने वाले पहलवान तांत्रिक के पास पहुंची. रेशमा को देखते ही पहलवान खुश हो गया. वह झूठा गुस्सा दिखाते हुए बोला, ‘‘तुम समझती क्या हो खुद को? मैं जब बुलाऊं तुम्हें आना होगा, वरना मैं तुम्हारे पति को सब बता दूंगा,’’ कहते हुए उस ने दरवाजा बंद किया और रेशमा को अपनी बांहों में जकड़ने लगा. तब तक रेशमा अपने पति को मिस काल कर के संकेत दे चुकी थी.

थोड़ी ही देर में विवेक पुलिस को ले कर आ पहुंचा. पहलवान रंगे हाथों पकड़ा गया. पुलिस उस के कमरे पर ताला जड़ कर उसे साथ ले गई.

उधर रेशमा खुश थी. उस ने एक तीर से दो निशाने जो साधे थे. एक तो उस ने रूहानी इलाज के बहाने जिस्मानी भूख खत्म की, फिर तांत्रिक को पकड़वा कर खुद को उस के चंगुल से निकाल लिया था. साथ ही, पति की नजरों में भी उस ने खुद को बेदाग साबित कर लिया था.

क्या केदारनाथ फिल्म की शूटिंग पूरी हो भी पाएगी या नहीं

सैफ अली खान व अमृता सिंह की बेटी सारा अली खान के करियर की पहली फिल्म ‘‘केदारनाथ’’ को लेकर बौलीवुड में अफवाहों का बाजार गर्म है. बौलीवुड में चर्चाएं हैं कि इस फिल्म के साथ कुछ भी सही नहीं हो रहा है.

रचनात्मक मतभेद के चलते फिल्म के निर्देशक अभिषेक कपूर और सुशांत सिंह राजपूत के बीच कई बार घमासान हो चुका है. यहां तक कि अब सुशांत सिंह राजपूत इस फिल्म की शूटिंग के लिए तारीख नहीं दे रहे हैं.

जबकि कुछ दिन पहले सुशांत सिंह राजपूत ने बंटी वालिया की फिल्म ‘‘रौ’’ यह कर छोड़ी थी कि वह सारा अली खान के करियर की पहली फिल्म का हिस्सा बनना चाहते हैं, इसलिए वह केदारनाथ करेंगे.

‘केदारनाथ’ की शूटिंग का पहला शिड्यूल भी बड़ी मुश्किल से पूरा हो पाया था. सूत्रों का दावा है कि अब सुशांत सिंह राजपूत दूसरे शिड्यूल की शटिंग के लिए समय नहीं दे रहे हैं.

इसी बीच बौलीवुड में यह खबर भी फैली हुई है कि फिल्म के निर्देशक अभिषेक कपूर उर्फ गट्टू किसी की नाराजगी किसी अन्य के सिर फोड़ रहे हैं. ताजा तरीन खबर है कि अभिषेक कपूर ने रचनात्मक मतभेद का बहाना कर अपनी यूनिट यानी कि फिल्म ‘‘केदारनाथ’’ के कैमरामैन, कार्यकारी निर्माता सहित कईयों को फिल्म से बाहर का रास्ता दिखा दिया है.

सूत्र दावा कर रहे हैं कि अभिषेक कपूर ने अब सुशांत सिंह राजपूत से कह दिया है कि वह शूटिंग के लिए जनवरी या फरवरी 2018 में वक्त देंगे, तो भी उन्हे समस्या नहीं है.

तो वहीं बौलीवुड के गलियारों में यह सवाल भी पूछा जा रहा है कि क्या ‘‘केदारनाथ’’ का निर्माण होगा, या इसी तरह हमेशा के लिए अधर में लटकी रहेगी, इस सवाल का जवाब देने के लिए फिलहाल कोई सामने नहीं आ रहा है.

इस प्रक्रिया को अपनाकर iOs से Android में ट्रांसफर करें डाटा

एंड्रौयड यूजर्स को iOS प्लेटफौर्म पर अपने फोन के कौन्टैक्ट्स, फोटोज, वीडियो आदि ट्रांसफर करने में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. एप्पल ने यूजर्स की इसी परेशानी को ध्यान में रखते हुए Move to iOS एप लौन्च की है.

इस एप की मदद से नए आईफोन यूजर अपने एंड्रौयड डिवाइस से सभी डाटा को ट्रांसफर कर सकते हैं. यही नहीं इस एप की मदद से यूजर्स उस एप को भी अपने आईफोन में फ्री डाउनलोड कर सकते हैं, जो वे पहले से ही एंड्रौयड फोन पर यूज कर रहे थे. हम अपनी इस खबर में आपको इसी बात की पूरी जानकारी दे रहे हैं.

स्टेप बाई स्टेप प्रक्रिया

  • अपने आईफोन या आईपैड को तब तक सेट करते रहें जब तक कि “Apps & Data” में न पहुंच जाएं.
  • अब “Move Data from Android” औप्शन पर टैप करें.
  • अपने एंड्रौयड फोन या टेबलेट पर गूगल प्ले स्टोर को ओपन करें और Move to iOS को सर्च करें.
  • Move to iOS app को ओपन करें.
  • अब इसमें इंस्टौल पर टैप करें.
  • इंस्टौल करने के लिए मांग रहे परमिशन रिक्वेस्ट को एक्सेप्ट करें.
  • अब इसके इंस्टौल होने के बाद इसे ओपन करें.
  • अब दोनों डिवाइस में Continue पर टैप करें.
  • Agree पर टैप करें और एंड्रौयड फोन या टैबलेट पर Next पर जाएं.
  • अपने एंड्रौयड डिवाइस पर उस 12 डिजिट के कोड को एंटर करें जो आईफोन या आईपैड पर दिख रहा है.

फोन में कोड एंटर करने के बाद, आपका एंड्रौयड डिवाइस एक पीयर-टू-पीयर वाई-फाई कनेक्शन पर आपके आईफोन या आईपैड से कनेक्ट होगा और इसके बाद यह जांचेगा कि किस डाटा को ट्रांसफर किया जाएगा.

इसके बाद आपसे पूछा जाएगा कि क्या आप अपने गूगल अकाउंट की जानकारियों जैसे कि क्रोम बुकमार्कस, टेक्स्ट मैसेज, कौन्टैक्ट्स, फोटो और वीडियो आदि को ट्रांसफर करना चाहते हैं. आप जिस भी डाटा को ट्रांसफर करना चाहते हैं उसे सेलेक्ट करें.

इसके बाद आपका एंड्रौयड फोन या टैबलेट सेलेक्ट किए हुए डाटा को आपके आईफोन या आईपैड पर ट्रांसफर कर देगा. साथ ही उचित कंटेंट को सही एप्स में प्लेस करता है. अब दोनों डिवाइसेस डिस्कनेक्ट हो जाएंगे और एंडौयड आपके पुराने डिवाइस को एप्पल स्टोर में ले जाने के लिए पौपअप देगा जहां वो इसे फ्री में रिसाइकल करेगा.

ट्रांसफर प्रक्रिया पूरी होने के बाद अपने डिवाइस पर Continue Setting Up iPhone या Continue Setting Up iPad पर टैप करें. अब एक नई एप्पल आईडी बनाए या अपने पुराने आईडी को लौगइन करें.

अल्फोंस साहब, अमीर तो आज कार वाले भी नहीं

अल्फोंस कन्नाथनम का नाम याद रख लीजिए. ये अमीरी का प्रमाणपत्र देते हैं. यदि आप को लगता है कि आप गरीब हैं और आप के पति सिर्फ मोबाइल पर आप को घुमाते हैं तो यह इन्फौर्मेशन टैक्नोलौजी और पर्यटन मंत्री आप को प्रमाणपत्र दे देंगे जिस पर शायद यह लिखा होगा- यह भारत सरकार का पर्यटन मंत्रालय अपने महादानव कंप्यूटर तंत्रों की सहायता से प्राप्त जानकारी के आधार पर प्रमाणित करता है कि आप एक मोबाइल नंबर ????????९९ के मालिक हैं. अत: आप समृद्ध, सुखी, धनी हैं और आप की बाकी सारी संपत्ति पर विशिष्ट अधिकार जनप्रिय, 70 फीसदी जनता की सहमति के आधार पर आप पर अतिरिक्त करों का बोझ डाल कर आप को विकसित देश के प्रति ऋण चुकाने का अवसर देते हुए पर अतिरिक्त करों का भार आप को सहर्ष सादर अर्पित करती है ताकि आप विश्वगुरु के साथसाथ विश्वनेता के देश के नागरिक भी बन जाएं.

हस्ताक्षर- मंत्री अल्फोंस कन्नाथनम (भारत सरकार की मुहर)

यह मखौल नहीं है. यह आज के मंत्रियों की मानसिकता है, जो आम व्यक्ति के दुखदर्द की नहीं सोच रहे. पैट्रोल, डीजल के दाम बढ़ेंगे, रोज की चीजों पर जीएसटी बढ़ेगा तो घर का खर्च बढ़ेगा. बाइक होने से अमीरी नहीं आती. आज तो कार वाले भी अमीर नहीं होते.पैट्रोल, डीजल बाइक या कार में ही नहीं, बस, ट्रक, ट्रैक्टर में भी डलता है और ये सब गरीबों के काम के होते हैं. उन्हें अमीरों की श्रेणी में डालने का अर्थ है कि अल्फोंस साहब शायद महंगे अल्फोंस आमों की तरह हर आम को एकजैसा समझते हैं.

ट्विटर पर नए फौलोअर को अब इस तरह चला जाएगा वेलकम मैसेज

माइक्रो ब्लोगिंग साइट ट्विटर पर आपका भी अकाउंट होगा. आप भी किसी को और कई लोग आपको फौलो करते होंगे. जरा सोचिये कि अगर आपको फौलो करने वाले नए लोगों को खुद बखुद धन्यवाद का मैसेज चला जाए तो कैसा रहेगा. जी हां ये सच है. आपको जल्दी ही ये सुविधा मिलने वाली है. दरअसल, कुछ खास मोबाइल की मदद से ट्विटर पर नए फौलोअर को कुछ भी मैसेज भेज सकते हैं, वो भी बिना औनलाइन आए. जैसे ही कोई व्यक्ति आपको फौलो करेगा तो धन्यवाद का मैसेज अपने आप ही उसके पास चला जाएगा.

अगर आप ट्वीट करके अपने नए फौलोअर को धन्यवाद देना चाहते हैं तो अब यह भी संभव है. मैसेज या ट्वीट भेजने के लिए सबसे पहले आपको unfollowers.com/ पर जाकर लौग-इन करना होगा. फिर ‘वेलकम ट्वीट’ के दिये गये विकल्प को चुनना होगा. इस विकल्प पर जाने के बाद अपना ट्वीट लिख दें और नीचे दिए गए ‘डिफौल्ट पेज’ के विकल्प पर जाकर ‘न्यू फौलोअर्स’ का विकल्प चुन लें. इसके बाद नए फौलोअर्स को अपने आप वेलकम मैसेज और ट्वीट चला जाएगा.

औटोमेटिक मैसेज भेजने के लिए unfollowers.com/ पर जाकर करने के बाद आपको ऊपर की तरफ ‘वेलकम’ लिखा हुआ एक विकल्प दिखाई देगा. उस विकल्प को चुनने के बाद नीचे दिए गए औटोमेट के विकल्प पर क्लिक करें. यहां ‘वेलकम डीएम’ का विकल्प आएगा यहां पर जाकर आपको वह मैसेज लिखना होगा जो आप नए फौलोअर को भेजना जाहते हैं. फिर क्या आप जो भी चाहे यहां पर लिखें. इसके बाद नीचे दिए गए ‘डिफौल्ट पेज’ के विकल्प पर जाकर ‘न्यू फौलोअर्स’ पर क्लिक कर दें. इसके जरिये आप अपने नए फौलोवर को अपना मनचाहा मैसेज भेज दें.

मुझे 4 साल पहले टीबी हो गई थी. अब मैं शादी के बाद गर्भधारण नहीं कर पा रही हूं. क्या इस का टीबी से कोई संबंध है.

सवाल
मेरी उम्र 29 साल है. मुझे 4 साल पहले टीबी हो गई थी. अब मैं शादी के बाद गर्भधारण नहीं कर पा रही हूं. क्या इस का टीबी से कोई संबंध है?

जवाब
अगर आप की शादी को 4 साल हो गए हैं. फिर भी आप गर्भवती नहीं हुई हैं, तो यह आप की प्रजनन क्षमता के लिए अच्छा संकेत नहीं है. आप को अपनी जांच करानी चाहिए. टीबी के कारण गर्भाशय में खराबी आ जाती है, जिस से गर्भधारण करने में समस्या आती है. अगर टीबी के कारण गर्भाशय में अधिक खराबी नहीं आई है, तो इसे इलाज के द्वारा ठीक किया जा सकता है और अगर टीबी ने गर्भाशय को पूरी तरह खराब कर दिया है, तो फिर आप को मां बनने के लिए सैरोगेसी का सहारा लेना पड़ सकता है.

इस एक घटना ने बदल दी थी विराट कोहली की जिंदगी

विराट कोहली का जीवन कितने संघर्षों से गुजरा है, यह किसी से छिपा नहीं है. फर्श से अर्श का सफर उनके लिए बिल्कुल भी आसान नहीं रहा है. विराट कोहली के बारे में पत्रकार राजदीप सरदेसाई की किताब डेमौक्रेसी इलेवन में काफी बातें लिखी हैं.

इसमें उस घटना का भी जिक्र है, जिसने विराट को एक सीरियस क्रिकेटर के रूप में तब्दील कर दिया था. विराट अपने पिता प्रेम कोहली के बेहद करीब थे. वह एक क्रिमिनल लौयर थे, जो 9 साल के विराट को स्कूटर पर बैठाकर पहली बार वेस्ट दिल्ली क्रिकेट अकादमी लेकर गए थे.

प्रेम कोहली (54) की साल 2006 में ब्रेन स्ट्रोक के कारण मौत हो गई थी. उस वक्त विराट की उम्र महज 18 साल थी और वह दिल्ली की रणजी टीम की ओर से खेल रहे थे. पहले दिन कर्नाटक ने पहली पारी में 446 रन बनाए थे. दूसरे दिन दिल्ली की टीम मुश्किल में पड़ गई. उसे पांच विकेट गिर चुके थे. विराट एंड कंपनी के सामने मैच बचाने की चुनौती थी.

दिन खत्म होने तक विराट कोहली और विकेट कीपर पुनीत बिष्ट की मदद से दिल्ली का स्कोर 103 रन पहुंच गया. कोहली 40 रन पर नाबाद लौटे थे. लेकिन उसी रात विराट के लिए सब कुछ बदल गया. 19 दिसंबर 2016 की रात प्रेम कोहली का निधन हो गया.

बात ड्रेसिंग रूम तक पहुंच गई थी. सबको यही लगा कि विराट यह मैच आगे नहीं खेल पाएंगे, क्योंकि उन्हें पिता के अंतिम संस्कार में जाना है. कोच ने एक अन्य खिलाड़ी को उनकी जगह उतरने के लिए कह भी दिया था.

लेकिन सब लोग उस वक्त हैरान रह गए, जब विराट कोहली अगले दिन मैदान पर उतरे और 90 रन बनाकर दिल्ली को फौलोऔन से उबारा. जिस वक्त कोहली आउट हुए दिल्ली को मैच बचाने के लिए सिर्फ 36 रनों की जरूरत थी. इसके बाद कोहली ड्रेसिंग रूम पहुंचे और कैसे आउट हुए यह देखा और फिर पिता के अंतिम संस्कार के लिए चले गए. उस रात ने विराट कोहली को एक लायक क्रिकेटर में तब्दील किया था.

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