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वर्णव्यवस्था की शिकार साफसफाई, क्या है इसका उपाय

6 अगस्त, 2017, दिल्ली के लाजपत नगर में गटर की सफाई कर रहे 3 मजदूरों की जहरीली गैस के रिसाव के चलते मौत हो गई. यह पहली घटना नहीं है. इस से पहले दक्षिणी दिल्ली के घिटोरनी इलाके में सैप्टिक टैंक में मजदूरी करने उतरे 4 लोग भी मौत के मुंह में समा चुके हैं. इसी तरह 3 मई, 2017 को पटना, बिहार में सफाई करने के दौरान गटर में गिरने से 2 सफाईकर्मियों की मौत हो गई.

स्वच्छ भारत अभियान के तहत नेता व अफसर हाथों में झाड़ू ले कर फोटो खिंचवा लेते हैं और इश्तिहारी ढोल बजा कर मीडिया में गाल भी बजा लेते हैं. लेकिन सचाई यह है कि साफसफाई के मामले में हम आज भी अमीर मुल्कों से कोसों पीछे हैं. सही व्यवस्था नहीं होने के कारण 1 सितंबर को दिल्ली के गाजीपुर में कचरे का पहाड़ का एक हिस्सा धंस जाने से 2 लोगों की मौत हो गई. ज्यादातर गांवों, कसबों व शहरों में आज भी गंदगी के ढेर दिखाई देते हैं.

वर्णव्यवस्था का जाल

हमारी धार्मिक, सामाजिक व्यवस्था ने हमें अपनी गंदगी, कूड़ाकरकट स्वयं साफ करने की सीख नहीं दी. हमें सिखाया गया है कि आप अपनी गंदगी वहीं छोड़ दें या बाहर फेंक दें. कोई दूसरा वर्ग है जो इसे उठाएगा. गंदगी उठाने वाले वर्ग को यह कार्य उस के पूर्वजन्म के कर्मों का फल बताया गया. गंदगी को उस की नियति करार दिया गया. इसलिए निचले वर्गों को बदबूदार गंदगी के ढेर में रहने की आदत है.

वर्णव्यवस्था में शूद्रों यानी पिछड़ों का काम ऊपर के 3 वर्णों की सेवा करना, उन का बचा हुआ भोजन खाना और उतरा हुआ कपड़ा पहनना बताया गया. इस व्यवस्था की वजह से यह वर्ग भी गंदगी को त्याग नहीं पाया. वहीं इन चारों वर्णों से बाहर का एक पांचवां वर्ण था दलित. उसे गांव, शहर से बाहर रहने का आदेश दिया गया. उसी का काम गंदगी उठाना, साफसफाई करना और मरे हुए पशुओं को ठिकाने लगाना था. सदियों बाद भी यह वर्ग इस सब से उबर नहीं पाया है.

आबादी का बड़ा हिस्सा पुलों के नीचे, सड़कों व नालों के किनारे, उड़ती धूल व कीचड़ के पास बनी झुग्गी बस्तियों में रहता है. गंदगी के कारण बहुत से लोग बीमारियों से

भरी जिंदगी जीते हैं. ठेलेखोमचों पर चाटपकौड़ी व खानेपीने की दूसरी बहुत सी चीजें खुली हुई बिकती रहती हैं और लोग बड़े आराम से उन्हें खातेपीते रहते हैं.

सिर्फ एअरपोर्ट, महानगरों की पौश कालोनियों, रईसों के बंगले, अमीरों के फार्महाउस व नेताओं की कोठियों आदि कुछ अपवादों को छोड़ कर देश के ज्यादातर इलाकों में गंदगी की भरमार है. नदी, नाले, गली, महल्ले, बसअड्डे, रेलवेस्टेशन, रेल की पटरियां, प्लेटफौर्म, सिनेमाघर, सड़कें, पार्क, सरकारी दफ्तर, स्कूल, अस्पताल आदि सार्वजनिक इमारतों में जहांतहां गंदगी पसरी रहना आम बात है.

भारी गंदगी के कारण देश में तरक्की के बजाय पिछड़ापन, निकम्मापन व बदइंतजामी दिखती है. इस वजह से विदेशी सैलानी भारत के नाम पर नाकभौं सिकोड़ते हैं. वे हमारे देश में आने से हिचकते हैं. सो, हमारे रोजगार के मौके घटते हैं. गंदगी से बहुत सी बीमारियां फैलती हैं. इस के चलते इंसान की कम वक्त में बेहतर व ज्यादा काम करने की कूवत घटती है. परिणामस्वरूप, उस की आमदनी कम होती है.

हक से बेदखल

बहुत से लोग आज भी गंदे रहते हैं क्योंकि हमारे समाज में धर्म के ठेकेदारों ने अपनी चालबाजियों से जातिवाद के जहरीले बीज बोए. सारे अच्छे काम अपने हाथों में ले कर शूद्रों को सिर्फ सेवा करने का काम दिया. जानबूझ कर इन को हर तरह से कमजोर बनाया गया. धर्म की आड़ में चालें चली गईं कि सेवाटहल करने वाले माली व अन्य पिछड़े वर्ग सामाजिक तौर पर ऊपर न उठने पाएं. नियम बना कर उन्हें गंदा व गांवों से बाहर गंदी जगहों में जानवरों के साथ व जानवरों की तरह जीने, रहने पर मजबूर किया गया.

दलितों व पिछड़ों को बुनियादी हकों से बेदखल रखा गया. इसी कारण ज्यादातर लोग आज भी गंदगी में ही रहने, खाने व जीने के आदी हैं. आबादी का बड़ा हिस्सा दलितों व पिछड़ों का है और उन्हें सदियों से गंदा रहने के लिए मजबूर किया जाता रहा है. जहांतहां पसरी भयंकर गंदगी की असली वजह यही है. इस में सब से बड़ी व खास बात यह है कि निचले तबके के लोग अपनी मरजी से नहीं, बल्कि उन पर जबरदस्ती थोपे गए सामाजिक नियमों के कारण गंदगी में रहते हैं.

सब से बड़ी खोट तो अगड़ों की उस गंदी व पुराणवादी हिंदू पाखंडी सोच में है जिस में वे खुद को सब से आगे व ऊपर रखने के लिए दूसरों, खासकर कमजोरों, को जबरदस्ती धकेल कर नीचे व पीछे रखा जाता है. बेशक, आगे बढ़ना अच्छा है लेकिन यह हक सभी का है. सिर्फ अपनी बढ़त के लिए दूसरों को उन के अधिकारों से बेदखल करना सरासर गलत तथा समाज, संविधान व इंसानियत के खिलाफ है. इसलिए सफाई के लिए दिमाग के जाले साफ करने भी जरूरी हैं.

ऊंची जातियों की साजिश

मुट्ठीभर ऊंची जातियों वाले अमीर दबंग वर्णव्यवस्था के नाम पर अपनी दबंगई, अमीरी व बाहुबल पर सदियों से दलितों व पिछड़ों पर राज करते रहे हैं. अपने हक में तरहतरह के नियम बना कर निचले तबकों को नीचे व पीछे रखने की साजिशें रचते रहे हैं. उन्हें कुओं पर चढ़ने, मंदिरों में घुसने व बरात निकालने व मरने पर आम रास्ते से लाश ले जाने तक से वंचित किया गया. पिछले दिनों बिहार में दलितों को अपने संबंधी की लाश को तालाब से हो कर ले जाना पड़ा था.

मंदिर कोई पैसा कमा कर नहीं देते पर उन में घुसने न देना दलितों में हीनभावना भर देता है. पंडेपुजारियों की मदद से अगड़ों द्वारा दलितों व पिछड़ों के खिलाफ बनाए गए सामाजिक नियमों की फेहरिस्त बहुत लंबी है. पुनर्जन्म और पिछले जन्म के कर्मों का फल बताने के साथ नीच व मलेच्छ बता कर उन के नहानेधोने, नल से पानी लेने, साफसुथरे रहने, अच्छे कपड़े पहनने, पक्के घर बनाने व पढ़नेलिखने तक पर पाबंदियां लगाई गईं. गंदगी में रह कर जानवरों से बदतर जिंदगी जीने पर उन्हें मजबूर किया गया ताकि वे ऊपर उठ कर या उभर कर किसी भी तरह मजबूत न होने पाएं.

धर्मग्रंथों में अगड़ों के कुल वंश में जन्म लेने को पुण्य का परिणाम व दलितों को पाप की पैदाइश बताया गया है. हालांकि हमारे संविधान में सभी को बराबरी का दरजा हासिल है लेकिन दलित व पिछड़े आज भी गंदगी में रहते हैं क्योंकि वे अगड़े, अमीरों व दबंगों के रहमोकरम पर जीते हैं. आज कुछ को मंदिरों में जाने दिया जा रहा है लेकिन उन्हें दूसरे दरजे के देवीदेवता दिए गए हैं.

साफसुथरे रह कर कहीं वे सामने आ कर मुकाबला करने लायक न हो जाएं, इस डर से अगड़ों ने दलितों व पिछड़ों को सदियों तक किसी भी तरह उबरने नहीं दिया. उन का खुद पर से यकीन तोड़ने के लिए ही उन्हें उतरन व जूठन की सौगातें बख्शिश में दी जाती हैं. इतना ही नहीं, ऊपर से उन्हीं के सामने जले पर नमक बुरकते हुए यह भी कहा जाता है कि ये तो गंदगी में रहने के ही आदी हैं.

दोषी कौन?

आम आदमी की जिंदगी में जो कुछ भरा गया, जहां जैसे खराब माहौल में उन्हें रखा गया, सामाजिक नियमों के चलते जो गंदे हालात उन्होंने देखे, उसी के मुताबिक वे आज भी गंदगी में जीते, खाते व रहते हैं. इस में दोष उन का नहीं है. असल दोषी तो वे हैं जिन्होंने अपने मतलब की वजह से समाज में उन्हें

गंदा बनाए रखने के नियम बनाए. उन्हें साफसफाई की अहमियत नहीं जानने दी. साफसुथरा नहीं रहने दिया. सो, जागरूक हो कर इन चालबाजियों को समझना बेहद जरूरी है ताकि जिंदगी दुखों की गठरी न साबित हो.

ज्यादातर अगड़े, अमीर खुद साफसफाई जैसे किसी भी काम को हाथ नहीं लगाते. दरअसल, उन की नजर में काम करना तो सिर्फ दलितों व पिछड़ों का फर्ज व जिम्मेदारी है. अमीर मुल्कों में नेता, अफसर व अमीर सब खुद अपनी मेज आदि साफ करने में जरा भी नहीं हिचकते, जबकि यहां इसे हिमाकत समझा जाता है. हर काम के लिए दलितों का सहारा लिया जाता है. इसलिए हमारे देश में गंदगी की समस्या भयंकर होती जा रही है.

समाज में आज भी ऐसे घमंडी सिरफिरों की कमी नहीं है जो जाति के आधार पर ऊंचनीच का फर्क करते हैं, कमजोरों के साथ भेदभाव करते हैं. उन्हें दलितों व पिछड़ों की खुशहाली खटकती है. दलितों, पिछड़ों के पास वाहन व पक्के घर होना, उन का साफसुथरे रहना भी अगड़ों को जरा नहीं सुहाता. सो, वे उन्हें पीछे और नीचे रखने की सारी कोशिशें करते हैं.

बदलें हालात

अपवाद के तौर पर पुरानी लीक, अंधविश्वास, गरीबी व दबंगों के चंगुल से दूर रहने वाले कुछ दलित व पिछड़े पढ़लिख कर आगे निकले और वे शहरों में बस गए. लेकिन ज्यादातर आज भी गंदगी व गरीबी के शिकार हैं. उन की दुनिया आज भी जस की तस है. वे आज भी घासफूंस व खपरैल की छत वाली कच्ची झोंपडि़यों में अपने जानवरों के साथ रहते हैं. जरूरत उन की जिंदगी में सुखद बदलाव लाने की, उन्हें हिम्मत व हौसला देने की है.

साफसुथरा रहना महंगा, मुश्किल या नामुमकिन नहीं है. कम खर्च में भी साफसुथरा रहा जा सकता है, अपने आसपास का माहौल बेहतर बनाया जा सकता है. उत्तराखंड के पंतनगर के पास एक गांव है नंगला. वहां बंगालियों के बहुत से परिवार रहते हैं. उन में से बहुतों की आर्थिक हालत अच्छी नहीं है, लेकिन उन के घरों के अंदरबाहर साफसफाई व सजावट देखते ही बनती है. इसलिए आज जरूरत गंदगी से उबर कर ऐसी ही मिसाल कायम करने की है.

हर इलाके में रहने वालों को अब खुद तय करना होगा कि कूड़ा, मलबा आदि इधरउधर बिलकुल नहीं फैलाना है. कचरे का निबटारा हमेशा ठीक तरीके से करना है. नालेनालियों में गोबर व पौलिथीन आदि नहीं फेंकने हैं. साफसफाई के लिए सरकारी कर्मचारियों का इंतजार किए बिना खुद अपने हाथपैरों को भी हिलाना है.

यह नजरिया बदलना होगा कि सफाई करना दलितों, पिछड़ों व सफाई कर्मचारियों की जिम्मेदारी है. यह भी जरूरी है कि उन्हें गंदगी में रहने

को मजबूर न किया जाए. उन्हें भी साफसुथरा रहने का हक है. इसलिए पहले दिमाग में बसी ऊंचनीच व गैरबराबरी की गंदगी दूर करें, तभी समाज में बाहरी गंदगी दूर होगी. वरना गंदगी रुकने वाली नहीं है. और ऐसेमें स्वच्छता अभियान भी सिर्फ एक ढकोसला बन कर रह जाएगा.

त्योहारों पर बधाई संदेश व्हाट्सऐप नहीं फोन से दें

त्योहारों के आते ही बधाई संदेशों का सिलसिला तेज हो जाता है. समय के साथसाथ बधाई संदेशों का चलन बदलता जा रहा है. टैलीग्राम, ग्रीटिंगकार्ड, ईमेल, एसएमएस से गुजरते हुए बधाई संदेश व्हाट्सऐप और फेसबुक तक पहुंच गए. एसएमएस और व्हाट्सऐप से बधाई संदेश भेजने में यह सहूलियत होने लगी कि एकसाथ सैकड़ों लोगों को ये भेजे जा सकते हैं. एसएमएस के जरिए केवल टैक्सट यानी लिखे हुए मैसेज ही भेजे जा सकते हैं. व्हाट्सऐप में लिखे हुए मैसेज के साथ फोटो, वीडियो और वौयस मैसेज भी भेजे जाने की सुविधा मिल गई. यह एसएमएस से अधिक प्रभावी दिखने लगा. मल्टीमीडिया फोन के चलन में आने के बाद से एसएमएस लगभग पूरी तरह बंद हो गए. अब ज्यादातर व्हाट्सऐप के जरिए ही बधाई संदेशों को भेजा जाता है.

व्हाट्सऐप में कटपेस्ट कर के एक ही मैसेज, फोटो, बधाई संदेश या औडियोवीडियो संदेश कई दोस्तों को भेजे जा सकते हैं. व्हाट्सऐप में ब्रौडकास्ट और व्हाट्सऐप ग्रुप जैसे औप्शन मिलने लगे जिन के जरिए हर तरह के बधाई संदेश एकसाथ सैकड़ों लोगों को भेजे जाने लगे. समय के साथ बधाई संदेश देने का पुराना साधन पीछे छूटता गया. बधाई संदेश देने का नया साधन आगे बढ़ता गया. एसएमएस के जमाने में टैलीकौम कंपनियां होली, दीवाली, क्रिसमस और नए साल पर एसएमएस वाले अपने रैगुलर पैकेज बंद कर देती थीं क्योंकि वे कम बजट वाले होते थे. बधाई संदेश के लिए टैलीकौम कंपनियां ज्यादा पैसे वसूलने लगी थीं.

अपनेपन से दूर बधाई संदेश

मल्टीमीडिया फोन आने के बाद व्हाट्सऐप और फेसबुक बधाई संदेश देने के नए माध्यम बन गए. फेसबुक मैसेंजर और फेसबुक वाल पर बधाई संदेश का चलन बढ़ा तो सामान्य लिखे मैसेज वाले बधाई संदेश पुराने दिनों की बात हो कर रह गए. फेसबुक के साथ इंस्ट्राग्राम और ट्विटर भी बधाई संदेश देने के साधन बन गए हैं. आज के समय में व्हाट्सऐप ने बाकी बधाई संदेश देने के औप्शंस को सीमित कर दिया है. व्हाट्सऐप के बधाई संदेश लोगों को शुरुआत में बहुत पसंद आए पर बाद में ये बहुत औपचारिक से लगने लगे. बहुत ही जल्द व्हाट्सऐप के बधाई संदेश अपनेपन से दूर भी होने लगे.

व्हाट्सऐप पर रोज ही सुबहशाम गुडमौर्निंग, गुडईवनिंग के अलावा और भी तरह के मैसेज आते रहते हैं. मैसेज की अधिकता के कारण व्हाट्सऐप से बधाई संदेश देने में नएपन का एहसास खत्म होने लगा. बधाई संदेश आने पर कुछ नयापन नहीं लगता.

कई बार एक ही बधाई संदेश बारबार अलगअलग लोगों से मिलता है. जिस से यह लगता है कि कहीं से आया मैसेज, कहीं भेज दिया गया. इस से बधाई संदेश का आकर्षण खो जाता है.

व्हाट्सऐप से बधाई संदेश देने के लिए अपनी वौयस रिकौर्ड कर के भी बधाई संदेश दे सकते हैं. इस से पाने वाले को अलग किस्म का एहसास होगा. बेहतर यह होगा कि एक ही रिकौर्ड को सभी को न भेजें. सब के लिए अलगअलग वौयस रिकौर्ड करें. जब आप वौयस रिकौर्ड करते समय उस का नाम लेंगे या उस को अपनेपन सेसंबोधित करेंगे तो पाने वाले को अलग लगेगा. इस से आप सीधे तौर पर जुडे़ भी होंगे और अच्छी तरह से आप की बात सामने वाले तक पहुंच भी जाएगी.

लाजवाब थे ग्रीटिंग कार्ड

बधाई संदेश की बात चलती है तो आज भी लोग सब से अधिक ग्रीटिंगकार्ड को पसंद करते हैं. आज समय पर डाक और कूरियर की व्यवस्था न होने के कारण इस का चलन कम हो गया है पर यह अपनेपन का अलग ही एहसास कराते हैं.

ग्रीटिंगकार्ड को भेजने से पहले खरीदने और फिर पोस्टऔफिस या कूरियर तक पहुंचाने के लिए की जाने वाली जद्दोजेहद से पता चलता था कि जिसे हम भेज रहे हैं वह कितना खास है. ग्रीटिंगकार्ड की खाली जगह में अपने हाथ से कुछ सुंदर पक्तियां लिखना सहज एहसास कराता है. कई टैलेंटेड लोग तो अपने हाथ से तैयार कर के ग्रीटिंगकार्ड भेजते थे. ऐसे बधाई संदेश रिश्तों को नई मजबूती देते थे.

ग्रीटिंगकार्ड की खरीदारी करते समय देने वाले की आयु, रिश्तों और अवसर का पूरा ध्यान रखा जाता था. खरीदने वाला हर संभव यह कोशिश करता था कि पाने वाले का दिल ग्रीटिंगकार्ड देख कर ही खुश हो जाए. इस के लिए कईकई दुकानों में कार्ड खेजे जाते थे.

फोन है बेहतर जरिया

ग्रीटिंगकार्ड को भेजना तो अब बहुत पुराना अंदाज हो गया है. व्हाट्सऐप के बधाई संदेश की जगह पर अगर आप अपनों को फोन से बधाई संदेश दें तो यह दिल को छूने वाला संदेश होगा. फोन से बात करने पर एकदूसरे के बारे में पता चल जाता है. कई बार हम कई दोस्तों, रिश्तेदारों से बात नहीं करते, क्योंकि

कोई काम नहीं होता है. दीवाली की शुभकामनाएं देते समय ऐसे लोगों से बात हो जाती है जिस से उन को भी रिश्तों के नएपन का एहसास होता है.

आज के दौर में जब सभी व्हाट्सऐप पर बधाई संदेश दे रहे हों और अचानक उसी समय किसी का फोन बधाई संदेश देने के लिए आ जाए तो दिल खुश हो जाता है.  फोन से ही लगता है कि उस के दिल में कितना सम्मान रहा होगा. फोन से बात करने पर एकदूसरे से अच्छी तरह से बात हो जाती है. बधाई के साथ भावनाओं का आदानप्रदान हो जाता है. फोन से बधाई संदेश देना अपनेपन का एहसास कराता है. ऐसे में व्हाट्सऐप के साथ फोन से भी बधाई संदेश दे सकते हैं.

जीवंत होते हैं फोेन से दिए संदेश

व्हाट्सऐप पर वौयस रिकौर्डिंग के साथ भी बधाई देने का सिलसिला चल रहा है. इस के बाद भी यह फोन का विकल्प नहीं हो सकता. वौयस रिकौर्डिंग एक तरफ से होती है. उस में नयापन होता है पर जीवंतता का एहसास नहीं रहता. दूसरे, सामने वालों के एहसास को समझ नहीं सकते. फोन से बधाई संदेश देने से एकदूसरे की भावनाओं को समझा जा सकता है. सब से बड़ी बात यह है कि फोन से दिया गया बधाई संदेश इस बात का एहसास कराता है कि आप का महत्त्व क्या है.

फेसबुक और व्हाट्सऐप में बहुत सारी कलात्मकता हो सकती है पर जीवंतता का अभाव होता है. व्हाट्सऐप और फेसबुक के बधाई संदेशों

से यह लगता है जैसे मशीनी अंदाज में दिया गया हो. यह सच है कि फेसबुक और व्हाट्सऐप के बधाई संदेश कम समय में अधिक लोगों तक पहुंच जाते हैं पर वहीं यह भी सच है कि ये अपनेपन के एहसास को मिटा देते हैं.

सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के बीच आप को अपने करीबी रिश्तों में नएपन के एहसास को बनाए रखना जरूरी होता जा रहा है. ऐसे में फोन से दिए गए संदेश बहुत उपयोगी हो सकते हैं. ये रिश्तों में नया एहसास जगा सकते हैं.

तो विराट कोहली नहीं तोड़ पाएं धोनी का ये रिकार्ड

एम. चिन्नास्वामी स्टेडियम में खेला गया चौथा वनडे मैच औस्ट्रेलिया ने 21 रनों जीतकर भारत के विजयरथ को रोक दिया. इस जीत के साथ औस्ट्रेलिया ने पांच वनडे मैचों की सीरीज में अपना खाता खोला. हालांकि हार के बाद भी मेजबान भारत 3-1 की अजेय बढ़त लिए हुए है. भारतीय कप्तान विराट कोहली के लिए यह एक बड़ा झटका है, क्योंकि वह पूर्व कप्तान एम एस धोनी का रिकौर्ड नहीं तोड़ पाए. अगर भारतीय टीम यह मैच जीत जाती तो कोहली वनडे मैचों में लगातार जीत के महेंद्र सिंह धोनी के रिकार्ड को तोड़ देते. धोनी के नाम वनडे में लगातार नौ जीत का रिकौर्ड है. कोहली ने इंदौर में खेले गए इस सीरीज के तीसरे मैच में जीत हासिल करते हुए धोनी के रिकार्ड की बराबरी तो कर ली थी, लेकिन वह इस रिकौर्ड को तोड़ नहीं सके.

गौरतलब है कि चौथे वनडे में मिली शिकस्त के बाद टीम इंडिया का न सिर्फ 5-0 से जीतने का सपना टूट गया, बल्कि आईसीसी वनडे रैंकिंग में उसे नंबर 1 का ताज भी गंवाना पड़ा. टीम इंडिया को 21 रनों से मिली हार के बाद एक बार फिर द.अफ्रीका 5957 पौइंट्स के साथ पहले नंबर पर पहुंच गया है. जबकि टीम इंडिया के 5828 पौइंट्स हैं. 5879 पौइंट्स के साथ औस्ट्रेलिया तीसरे नंबर पर काबिज है.

बेंगलुरु के एम.चिन्नास्वामी स्टेडियम में खेले गए चौथए वनडे में औस्ट्रेलियाई टीम ने अपना खाता खोला. पहले बल्लेबाजी करते हुए डेविड वौर्नर (124) और एरौन फिंच (94) के बीच पहले विकेट के लिए हुई 231 रनों की साझेदारी के दम पर भारत के सामने 335 रनों का विशाल लक्ष्य रखा. मेजबान टीम केदार जाधव (67), रोहित शर्मा (65) और अजिंक्य रहाणे (53) की अर्धशतकीय पारियों के बावजूद भी लक्ष्य हासिल नहीं कर सकी और पूरे 50 ओवर खेलने के बाद आठ विकेट के नुकसान पर 313 रन बना सकी.

विशाल लक्ष्य का पीछा करने उतरी भारतीय टीम को रोहित और रहाणे ने मनमाफिक शुरुआत दी और पहले विकेट के लिए 18.2 ओवरों में 106 रनों की साझेदारी की. लेकिन इसके बाद अजिंक्य रहाणे आउट हो गए. कुछ देर बाद रोहित और कप्तान विराट कोहली (21) के बीच रन लेने में गलतफहमी हुई और रोहित पवेलियन लौट गए. कप्तान कोहली भी 21 रन बनाकर चलते बने.

यहां से बेहतरीन फॉर्म में चल रहे हार्दिक पांड्या (41) और जाधव ने टीम को संभाला और चौथे विकेट के लिए 78 रन जोड़े. पांड्या ने एक बार फिर लेग स्पिनर एडम जाम्पा को अपना निशाना बनाया, लेकिन जाम्पा ने ही 38वें ओवर में उन्हें वार्नर के हाथों कैच कराया. जाधव ने इसके बाद मनीष पांडे (33) के साथ टीम की जीत दिलाने के लिए संघर्ष किया, लेकिन यह दोनों खिलाड़ी असफल रहे. 69 गेंदों का सामना करते हुए सात चौके और एक छक्का मारने वाले जाधव 46वें ओवर में पवेलियन लौट लिए. 47वें ओवर की पहली गेंद पर पांडे आउट हुए. महेंद्र सिंह धौनी ने 10 गेंदों में एक चौका और एक छक्का मार टीम को जीत दिलाने की कोशिश की लेकिन रिचर्डसन ने 48वें ओवर में उनकी पारी का अंत किया.

तो रणवीर सिंह ने नहीं दी अपने ड्रायवर को दो महीने से सैलरी

संसार का नियम है कि हर बड़ा इंसान, छोटे इंसान को न सिर्फ परेशान करता है, बल्कि उसे दबाकर रखना चाहता है. इससे बौलीवुड भी अछूता नही है. एक वेब पोर्ट की के अनुसार बौलीवुड में अपने आपको स्टार कलाकार मानने वाले अभिनेता रणवीर सिंह ने अपने ड्रायवर सूरज पाल की बकाया सैलरी के 85000 हजार नहीं दिए. जब ड्रायवर ने अपनी सैलरी मांगी, तो उसे नौकरी से निकाल दिया.

फिल्म ‘‘पद्मावती’’से जुड़े सूत्रों के अनुसार मुंबई के फिल्मसिटी स्टूडियो में फिल्म ‘‘पद्मावती’’की शूटिंग चल रही थी, वहीं पर सेट के बाहर रणवीर  सिंह के ड्रायवर सूरज पाल ने रणवीर सिंह के मैनेजर से अपनी सैलरी के बकाया 85000 की मांग की. इस पर रणवीर सिंह के मैनेजर ने सूरज पाल को झिड़क दिया.

इतना ही नहीं मैनेजर के कहने पर रणवीर सिंह के बौडीगार्ड ने सूरज पाल की पिटाई शुरू कर दी. सेट के बाहर हंगामा होने पर संजय लीला भंसाली और रणवीर सिंह बाहर आए. सूरज पाल की बात सुनने की बजाय रणवीर सिंह ने तुरंत सूरज पाल को नौकरी से निकालने का ऐलान कर दिया. पर उसकी सैलरी अब तक नहीं दी.

सूत्रों की माने तो सूरज पाल ने इस संबंध में रणवीर सिंह की बहन से भी बात की, पर कोई फायदा नहीं हुआ. अब सूरज पाल अपने पैसे को पाने के लिए वह एशोसिएशन में शिकायत दर्ज कराने वाले हैं.

इस प्रकरण पर बौलीवुड में कई तरह की बातें की जा रही है. कुछ लोग सवाल कर रहें हैं कि क्या रणवीर सिंह इतने कंगाल हो गए हैं कि वह अपने ड्रायवर का मेहनताना नहीं दे पा रहे हैं? अथवा वह जानबूझकर उसे परेशान कर रहे हैं?

इन गलतियों से हो सकता है आपके फेसबुक का डाटा हैक

फेसबुक दुनिया की सबसे बड़ी सोशल नेटवर्किंग साइट है जिसे करोड़ो लोग अपने प्रयोग में लाते हैं. फेसबुक अपने यूजर्स की प्राइवेसी को गंभीरता से लेते हुए हर रोज नए प्राइवेसी टूल्स उपलब्ध करा रहा है. पर इन सबके बावजूद हैकर्स बड़ी आसानी से यूजर्स के फेसबुक अकाउंट को हैक कर लेते हैं और इसकी जानकारी यूजर्स को नहीं होती है.

ऐसे में हम इस खबर में हैकर्स द्वारा अकाउंट हैक करने करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले तरीकों के बारे में बता रहे हैं. इन बातों को जानकर आप अपने अकाउंट को ज्यादा सिक्योर रख सकते हैं.

फेसबुक फीशिंग अटैक

किसी फेसबुक अकाउंट को हैक करने के लिए फिशिंग अटैक एक आसान तरीका है. इसके लिए हैकर्स एक फेक लौगिन पेज बनाता है जो कि बिल्कुल रियल फेसबुक पेज की तरह ही दिखता है. इसके बाद, हैकर्स दूसरे यूजर को इसे लौग इन करने के लिए कहता है. यूजर द्वारा एक बार फेक पेज को लौगइन करने के बाद उसके ईमेल एड्रेस और पासवर्ड को टेक्स्ट फाइल में स्टोर कर लिया जाता है. अब हैकर टेक्स्ट फाइल को डाउनलोड करने करने के बाद यूजर के फेसबुक पेज को हैक कर लेता है.

इससे कैसे बचें

  • किसी दूसरे डिवाइस से फेसबुक अकाउंट को लौगइन न करें.
  • हमेशा क्रोम बाउजर का इस्तेमाल करें.
  • ऐसे ईमेल्स को नजरअदांज करें जो आपको फेसबुक अकाउंट को लौगइन करने को कहे.

की लौगइन के जरिए

की लौगिंग एक फेसबुक पासवर्ड हैक करने का सबसे आसान तरीका है. की लौगर मूल रूप से एक छोटा सा प्रोग्राम है, जिसे यूजर के कंप्यूटर पर इंस्टौल कर देने के बाद यह आपकी सारी डिटेल्स को रिकौर्ड करता है. इसके बाद, यूजर्स की डिटेल्स हैकर्स को FTP के जरिए या फिर सीधे हैकर्स के ईमेल एड्रेस में भेजी जाती है.

इससे कैसे बचें

  • हमेशा विश्वसनीय वेबसाइट से ही सौफ्टवेयर को डाउनलोड करें
  • अपने USB ड्राइव को हमेशा स्कैन करें.
  • अपने सिस्टम में एक अच्छे एंटीवायरस को डाउनलोड करें.

ब्राउजर में सेव रखें पासवर्ड वरना हैक हो सकता है

हम सभी अपनी सुविधा के लिए कंप्यूटर के ब्राउजर में अकाउंट के पासवर्ड को सेव रखते हैं. ऐसे में यह हमारे लिए खतरा हो सकता है. इससे हैकर्स बड़ी आसानी से अपने पासवर्ड को आपके कंप्यूटर से निकाल कर आपके अकाउंट को हैक कर सकता है.

इससे कैसे बचें

  • कभी भी अपने ब्राउजर पर लौगिन क्रेडेंशियल्स को सेव न करें.
  • हमेशा अपने कंप्यूटर पर स्ट्रौन्ग पासवर्ड का उपयोग करें.

सेशन हाइजैकिंग

यदि आप फेसबुक का इस्तेमाल करने के लिए HTTP (नौन सिक्योर) कनेक्शन का प्रयोग करते हैं तो यह आपके लिए खतरनाक हो सकता है. सेशन हाइजैकिंग के जरिए हैकर यूजर के ब्राउजर कुकी को चुराता है जिसका इस्तेमाल वेबसाइट पर यूजर को प्रमाणित करने के लिए किया जाता है. साथ ही, यूजर के खाते तक पहुंचने के लिए इसका इस्तेमाल करता है.

मोबाइल फोन हैकिंग के जरिए

अधिकांश लोग अपने मोबाइल फोन के माध्यम से फेसबुक का उपयोग करते हैं. अगर हैकर यूजर के मोबाइल फोन को हैक कर लें तो उसे फेसबुक समेत दूसरे अकाउंट की जानकारी भी मिल जाएगी. मसलन, हैकर आसानी से यूजर के फेसबुक अकाउंट का एक्सेस प्राप्त कर सकता है. औनलाइन ऐसे कई सौफ्टवेयर या एप्स है जो आपके स्मार्टफोन पर नजर रखते हैं. सबसे लोकप्रिय मोबाइल फोन स्पाइंग सौफ्टवेयर Mobile Spy और Spy Phone Gold हैं.

लेजर तकनीक से कौस्मैटिक उपचार क्या है फायदेमंद, आप भी जानिए

लेजर्स ऐसी मैडिकल डिवाइस होती हैं जो अत्यधिक ऊर्जा, प्रकाश और गरमी पैदा करती हैं. इन्हें गहन शोध और व्यापक क्लिनिकल अनुभव के बाद हासिल किया गया है. इन का प्रयोग त्वचा व शरीर के विभिन्न प्रकार के ऊतकों पर कारगर तरीके से किया जाता है. लेजर लाइट में ऊर्जा की मात्रा और वितरण को बहुत ही बारीकी से पहुंचाया जाता है. इसलिए कई सौंदर्य संबंधी व चिकित्सकीय परिस्थितियों के सफल उपचार के लिए उपकरणों या रसायनों के प्रयोग के मुकाबले इस से ज्यादा लाभ हो सकता है.

लेजर्स त्वचा, बालों को कम करने, त्वचा के कायाकल्प और त्वचा पर होने वाले घावों के उपचार के लिए 3 चीजें करती हैं :

अनचाहे बालों को खत्म करना

कौस्मैटिक प्रक्रिया में अनचाहे बालों को हटाने के लिए डायोड जैसे एक शक्तिशाली लेजर का इस्तेमाल किया जाता है.

यह प्रकाशस्रोत त्वचा में बालों के छिद्रों को गरम करता है और उन्हें नष्ट कर देता है. इस से बालों की वृद्घि थम जाती है. यह उपचार शरीर में मुख्यरूप से चेहरे, टांगों, बांहों, अंडरआर्म और बिकिनी लाइन जैसी जगहों पर किया जाता है.

यह अत्यधिक बालों की परेशानी से पीडि़त महिलाओं के लिए लाभदायक हो सकता है. आमतौर पर यह पीली त्वचा और काले बालों वाली महिलाओं के लिए कारगर है.

उपचार के लिए 4 से 6 सप्ताह के दौरान 6 सैशन लेने की सलाह दी जा सकती है. संभव है कि लेजर हेयर रिमूवल के बाद भी बाल हमेशा के लिए खत्म न हों. उन्हें पूरी तरह खत्म होने में कुछ सप्ताह से ले कर कुछ महीनों तक का वक्त लग सकता है. उचित परिणाम हासिल करने और उन्हें बनाए रखने के लिए नियमित सत्रों की आवश्यकता हो सकती है. इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि इस से सभी बाल खत्म हो ही जाएंगे. इसलिए प्रशिक्षित डाक्टर को तलाशने के लिए समय निकालें जिस के पास उपयुक्त योग्यता हो और जो स्वच्छ, सुरक्षित व उचित माहौल में काम करता हो.

डाक्टर से समय लेने से एक दिन पहले उपचार के हिस्से से बाल हटाने होते हैं. उपचार के दिन उस दौरान आंखों को सुरक्षित रखने के लिए विशेषरूप से डिजाइन किया गया चश्मा भी पहनना होता है.

उपचार करने में लोकल एनेस्थिसिया जरूरी नहीं है. उपचार करने वाला व्यक्ति आमतौर पर त्वचा के उस हिस्से में एक कूल जेल या कूलिंग एयर स्प्रे का इस्तेमाल करता है. इस के बाद वह हाथ से इस्तेमाल की जाने वाली एक डिवाइस को त्वचा के पास दबाता है और लेजर को भी दबाता है. प्रत्येक सैशन में 15 मिनट से ले कर 1 घंटे से अधिक समय भी लग सकता है. व्यक्ति को कितने सैशन की जरूरत है, यह लेजर का इस्तेमाल किए जाने वाले हिस्से और इस्तेमाल की गई प्रणाली पर निर्भर करता है.

उपचार के 24 घंटे तक उस जगह पर चकत्तों के साथ लाल निशान देखने को मिल सकते हैं. त्वचा को एक आइस पैक से ढकने से मदद मिल सकती है. लेजर हेयर रिमूवल के बाद त्वचा धूप में अत्यधिक संवदेनशील हो जाती है. ऐसे में उपचार के करीब एक सप्ताह तक धूप और टैनिंग बेड्स से बचाव व सनस्क्रीन का प्रयोग जरूरी है.

त्वचा को नया रूप देना

लेजर रिसरफेसिंग में कार्बन डाईऔक्साइड जैसी विशेष रूप से तैयार की गई थर्मल एनर्जी की बीम का इस्तेमाल किया जाता है. यह त्वचा  सतहों के भीतर काफी गहराई तक जा कर काम करती है.

त्वचा की सतह उतरने या छूटने के उलट हीट की ये लेजर बीम मुख्यरूप से खराब हो चुकी त्वचा को लक्ष्य बनाती है और उन्हें ठीक करती है. पुरानी त्वचा में घाव करने से रिसरफेसिंग से बाहरी त्वचा को हटाया जाता है और यह त्वचा की भीतरी सतह तक पहुंचती है जो नई कोलाजेन पैदा करती है. इस से त्वचा की स्थिति में सुधार होता है और नई त्वचा उभर कर सामने आती है.

आमतौर पर इस उपचार का प्रयोग झुर्रियों या मुहांसों के धब्बों को कम करने या त्वचा की अन्य खामियों को सुधारने के लिए किया जाता है. उपचार में लगने वाला समय उपचार की जगह और आकार पर निर्भर करता है. होंठ के ऊपरी हिस्से और ठुड्डी जैसी छोटी जगहों में 20-30 मिनट लगते हैं.

बर्थ मार्क, टैटू और त्वचा के घावों को हटाना

शरीर के निशानों को खत्म करने के मामले में लेजर उपचार काफी कारगर साबित हुआ है. लेजर द्वारा इन निशानों का कारण रही असामान्य रक्तनसों का आकार कम कर दिया जाता है. परिणामस्वरूप, उपचार किए हिस्से का रंग दब जाता है. त्वचा की वृद्घि, चेहरे पर उभरी नसें, मस्सों और कुछ टैटू को लेजर सर्जरी से ठीक किया जा सकता है.

ज्यादातर मौकों पर एक से अधिक बार लेजर उपचार की जरूरत होती है लेकिन कुछ चीजें एक ही बार में ठीक हो जाती हैं. टैटूज को एक विशेष प्रकार के लेजर द्वारा हटाया जा सकता है.

नई प्रौद्योगिकी के साथ इस्तेमाल करने के लिहाज से लेजर सुरक्षित हो गए हैं. लेकिन एक प्रशिक्षित कौस्मैटिक सर्जन के पास जाना आवश्यक है, जिस के पास इस प्रकिया के दौरान लेजर के प्रयोग की जानकारी हो.

उचित ढंग से प्रयोग न किए जाने पर लेजर्स नुकसानदायक हो सकती हैं. प्लास्टिक सर्जन आमतौर पर न्यूनतम लेजर तीव्रता का प्रयोग करते हैं. न्यूनतम तीव्रता की वजह से उपचार के लिए कई बार जाना पड़ता है. हालांकि न्यूनतम तीव्रता जहां तक संभव है ऊतकों को सेहतमंद बनाए रखती है. इस के प्रयोग से सौंदर्य के लिहाज से उपयुक्त परिणाम देखने को मिलते हैं. इन में से कई लेजर सर्जरी अस्पतालों में बाह्यरोगी उपचारों के तौर पर की जाती हैं.

सर्जन द्वारा सर्जरी में लेजर के उपयोगी होने के संकेत देने के बाद वह लेजर की उपयोगिता व उस के परिणामों के बारे में बताता है. प्रत्येक प्रकार की सर्जरी की ही तरह लेजर की अपनी सीमाएं हैं. आमतौर पर परिणाम बहुत ही अच्छे रहे हैं. सर्जन विशेष प्रकार की प्रक्रिया के लिए आप को सर्वश्रेष्ठ जानकारी देगा.

कुछ सर्जन सर्जरी से पहले उपचार के हिस्से को सुन्न करने के लिए लोकल एनेस्थिसिया का प्रयोग कर सकते हैं. कई बार सर्जरी सर्जन के औफिस में की जा सकती है, कई बार यह सर्जरी एक क्लिनिक या अस्पताल में बाह्यरोगी विभाग में की जा सकती है. सर्जन सर्जरी की प्रकृति के मुताबिक उचित तरीका तय करेगा. चूंकि सुरक्षा लेजर के प्रयोग का एक अहम तत्त्व है, इसलिए सर्जन सर्जरी से पहले सुरक्षा संबंधी सावधानियों के बारे में बताता है.

सर्जरी के बाद संभवतया कई दिनों तक कुछ हद तक सूजन और त्वचा में लालपन महसूस होता है. घाव भरने की प्रक्रिया के दौरान एंटीबायोटिक औइंटमैंट का प्रयोग किया जा सकता है. मरीज के लिए सर्जन द्वारा औपरेशन के बाद के लिए बताए गए दिशानिर्देशों का पालन करना महत्त्वपूर्ण है, खासतौर पर सन ब्लौक क्रीम का प्रयोग करने और धूप से बचने को ले कर दिए गए निर्देशों का पालन करना.

(लेखक दिल्ली के अपोलो अस्पताल में सीनियर कंसल्टैंट हैं.)

अपनों से बनाएं मजबूत भावनात्मक तालमेल

कल मैं अपने औफिस की रिटायर्ड सहकर्मी अनामिका के घर गई तो बड़ी व्यस्त और कहीं जाने की तैयारी में दिखीं. ड्राइंगरूम में रखे लगेज को देख कर मैं ने पूछा,  ‘‘बड़ी व्यस्त दिख रही हैं, कहीं जाने की तैयारी है, दीदी?’’

‘‘हां, कल हम दोनों बड़े बेटे बब्बू के पास जा रहे हैं. परसों उस का जन्मदिन है न,’’ वे खुशी से बोलीं.

‘‘क्या सब के जन्मदिन पर जाते हैं आप दोनों, रांची से पुणे की दूरी तो बहुत है?’’

‘‘हां, कोशिश तो यही रहती है कि जीवन के प्रत्येक खास दिन पर हमसब साथ हों. आनेजाने से हमारा शरीर तो ऐक्टिव रहता ही है, बच्चों और पोतेपोती का हम से जुड़ाव व लगाव बना रहता है. वे अपने दादादादी को पहचानते हैं और उन की चिंता करते हैं. बच्चों को तो इतनी छुट्टियां नहीं मिल पातीं और हम फ्री हैं, तो हम ही चले जाते हैं. मिलना चाहिए सब को, फिर चाहे कोई भी आए या जाए वे या हम लोग. दूरी का क्या है, बच्चे पहले ही फ्लाइट से रिजर्वेशन करवा देते हैं. कोई परेशानी नहीं होती,’’ अनामिका मुसकराती हुई बोलीं.

भावनात्मक लगाव की कमी

बच्चों के पास उन का जाने का उत्साह देखते ही बन रहा था. जीवन एक सतत प्रक्रिया है जिस में विवाह, बच्चे, उन का बड़ा होना और फिर उन का एक स्वतंत्र व पृथक व्यक्तित्व और अस्तित्व का होना एक प्राकृतिक जीवनचक्र है. जो आज हमारे बच्चे कर रहे हैं वही कल हम ने भी तो किया था. हम सब के जीवन में यह दौर आता ही है जब बच्चे अपना एक अलग नीड़ बना लेते हैं और मातापिता अकेले हो जाते हैं. आज ग्लोबलाइजेशन और मल्टीनैशनल कंपनियों में नौकरी लगने के कारण मातापिता से दूर जाना उन की विवशता भी है और आवश्यकता भी.

जो लोग इस नैसर्गिक परिवर्तन को जीवन की सहज और स्वाभाविक प्रक्रिया मान कर बच्चों के साथ खुद को ऐडजस्ट कर के चलते हैं उन के लिए कहीं कोई समस्या नहीं होती. परंतु जो लोग अपने अहंकार और कठोर स्वभाव के कारण स्वयं को परिवर्तित ही नहीं करना चाहते उन के लिए यह दौर अनेक समस्याओं का जनक बन जाता है. वे बच्चों से उतनी अच्छी बौंडिंग ही नहीं कर पाते कि वे बच्चों के साथ और बच्चे उन के साथ सहजता से एकसाथ रह सकें. परिणामस्वरूप, वे सदैव हैरानपरेशान से अपने बच्चों और नई पीढ़ी को दोष देते ही नजर आते हैं.

ओमप्रकाश की 5 संतानें हैं. 4 बेटियां और एक बेटा होने के बावजूद 8 वर्ष पूर्व बेटे की शादी होने के बाद से वे दोनों अकेले ही रहना पसंद करते हैं. बच्चों के यहां गए उन्हें सालों हो जाते हैं. बच्चों के पास जा कर उन्हें वह आजादी नहीं मिलती जो उन्हें अकेले रहने में मिलती है. यदि यदाकदा जाते भी हैं तो उन का वहां मन ही नहीं लगता क्योंकि प्रथम तो पारस्परिक मेलमिलाप के अभाव में अपनत्व ही जन्म नहीं ले पाता. दूसरे, वहां वे स्वयं को बंधनयुक्त महसूस करते हैं. जैसेतैसे 4-6 दिन काट कर वापस आ जाते हैं.

वहीं दूसरी ओर, कांता और रमाकांत हैं जिन के दोनों बेटेबहू सर्विस में हैं. मुंबई और इंदौर में उन्हें कोई फर्क ही महसूस नहीं होता. जब भी वे इंदौर स्थित अपने निवास पर आते हैं, 8-10 दिनों में ही बेटेबहू उन्हें अपने पास बुलाने के लिए फोन करने लगते हैं. साल में कम से कम एक बार वे सब एकसाथ किसी पर्यटन स्थल पर घूमने जाते हैं. वे अपने साथसाथ बहू के मातापिता को भी ले जाते हैं जिस से बहू भी अपने मातापिता की ओर से आश्वस्त रहती है.

वास्तव में देखा जाए तो बच्चों की खुशी ही मातापिता की खुशी होती है. बच्चों और आप की सोच में फर्क होना तो स्वाभाविक है परंतु बच्चों से कुछ पूछना, उन्हें तरजीह देना, उन के अनुसार थोड़ा सा ढल जाना, या उन की पसंद के अनुसार काम करने में क्या बुराई है? रमा कभी सलवारसूट नहीं पहनती थी पर जब मुंबई में उस की बहू ने सूट ला कर दिया तो उस ने बड़ी खुशी से सूट पहनना शुरू कर दिया. साथ ही, बर्गर, पिज्जा, चायनीज, कौंटीनैंटल जैसे आधुनिक भोजन खाना भी सीख लिया जिन के उस ने कभी नाम तक नहीं सुने थे. यह सब इसलिए ताकि बच्चों को उस के कारण किसी प्रकार की परेशानी का सामना न करना पड़े और बाहर जा कर भी वे कंफर्टेबल महसूस करें.

परस्पर समझ की बात

श्रीमती घुले और उन के पति साल के 8 महीने अपने बेटों के पास रहते हैं. उन के बच्चे उन्हें आने ही नहीं देते. वे कहती हैं कि आज की पीढ़ी हम से अधिक जागरूक और बुद्घिमान है. तो उन के अनुसार थोड़ा सा ढलने में क्या परेशानी है. श्रीमती घुले बताती हैं कि जब पोता हुआ तो उन्होंने बहू के अनुसार ही उस की देखभाल की क्योंकि हमारे जमाने की अपेक्षा अब बहुत आधुनिक हो गया है और उसे मेरी अपेक्षा बहू अधिक अच्छी तरह समझती है.

सर्विस और विवाह हो जाने के बाद बच्चों का अपना स्वतंत्र अस्तित्व होता है और वे इसे अपने तरीके से जीना चाहते हैं. कई बार बच्चे वही कार्य कर रहे होते हैं जो आप को लेशमात्र भी पसंद नहीं. ऐसे में आप को सोचना होगा कि वे अब बच्चे नहीं रहे जो हर बात आप से पूछ कर करेंगे. वे आप को आज भी उतना ही पूछें और आप के अनुसार आज भी चलें, इस के लिए आप को स्वयं समझदारी से कोशिशें करनी होंगी.

रीमा की मां ने जब उसे 5 साडि़यां दिलाई तो उस ने दुकानदार से अपनी सास को दिखा कर फाइनल करने की बात कही. जब उस की सास ने साडि़यां देखीं तो बोलीं, ‘‘मुझे क्या दिखाना, तेरी पसंद ही मेरी पसंद है.’’

वे कहती हैं, ‘‘मेरी बहू ने इतने मन से खरीदी हैं, मैं क्यों उस के मन को मारूं. उस की पसंद ही मेरी पसंद है.’’

सास की जरा सी समझदारी से बहू भी खुश और सास का मान भी रह गया.

आप बच्चों का सहारा बनें, न कि मुसीबत. आप का व्यवहार बच्चों के प्रति ऐसा हो कि वे सदैव आप को अपने पास बुलाने के लिए लालायित रहें, न कि आप के आने की बात सुन कर अपना सिर पकड़ कर बैठ जाएं. आप की और उन की भावनात्मक बौंडिंग इतनी मजबूत हो कि आप के बिना वे स्वयं को अपूर्ण अनुभव करें. इस के लिए आप को कोई बहुत अधिक परिश्रम नहीं करना है, उन पर विश्वास रखना है और उन्हें जताना है कि आप के लिए वे कितना महत्त्व रखते हैं. यह भी कि पहले की ही भांति आज भी आप की दुनिया उन के आसपास की घूमती है.

बच्चों को अपना बनाएं

बच्चों के दुख, तकलीफ और विवशताओं को समझें. उन के जन्मदिन, विवाह की वर्षगांठ आदि पर उन के पास जाएं. इच्छा और सामर्थ्य के अनुसार उन्हें उपहार दें. गरिमा की सास को जैसे ही पता चला कि उन की बहू गर्भवती है, वे तुरंत बहू के पास आ गई. उस का ध्यान रखने के साथसाथ उस का मनपसंद, स्वादिष्ठ और पौष्टिक भोजन खिलातीं. गरिमा कहती है, ‘‘इतना ध्यान तो मेरी मां ने कभी नहीं रखा जितना कि मेरी सास रखती हैं.’’ आप के द्वारा की गई छोटीछोटी बातें बच्चों को खुश कर देती हैं.

ईगो को प्रतिष्ठा का प्रश्न न बनाएं

हम आज तक किसी के सामने नहीं झुके तो अब इस उम्र में क्यों झुकें? हमें किसी की भी जरूरत नहीं है. हम अपने को नहीं बदल सकते. उन्हें जो करना हो, सो करें. ऐसी बातें कह कर बच्चों का दिल न दुखाएं. उन के सामने अपने ईगो को न रखें और न ही किसी बात को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाएं.

न दें छोटी छोटी बातों को तूल

बहू आप की पसंद की हो या बेटे की, अब वह आप के परिवार की एक सम्मानित सदस्य है. इसलिए कभी भी छोटीछोटी बातों को तूल न दें. आज की लड़कियां जींस, टौप, शौर्ट्स, स्कर्ट जैसे आधुनिक वस्त्र पहनना पसंद करती हैं. आप का दायित्व है कि अपनी बहू के पहनावे पर कोई प्रतिबंध न लगाएं. वह जो पहनना चाहती है, पहनने दें. ताकि आप के रहने से वह किसी भी प्रकार का बंधन महसूस न करे. किसी भी मनचाही बात के न होने पर तुरंत सब के सामने प्रतिक्रिया देने के स्थान पर अकेले में बड़े ही प्यार और अपनेपन से समझाएं ताकि आप जो कहना चाह रही हैं, बहू उसे उसी रूप में समझ सके. बहू को इतना प्यार और अपनत्व दें कि वह खुद को कभी पराया न समझे और उसे मायके की अपेक्षा ससुराल में रहना अधिक भाए. बहू को बेटी समझें ही नहीं, उसे बेटी बना कर रखें.

न करें अनावश्यक टोकाटाकी

बच्चों के पास जा कर अनावश्यक टोकाटाकी न करें. उन के लिए नित नई समस्याएं खड़ी करने के स्थान पर उन का सहारा बनें. उन्हें इतना प्यार और अपनापन दें कि वे स्वयं आप के पास खिंचे चले आएं. उन्हें यह विश्वास हो कि कुछ भी और कैसी भी परिस्थिति हो, आप का संबल उन्हें अकेला नहीं होने देगा. आप ध्यान रखें, बच्चों की भी अपनी जिंदगी हैं और उन्हें इसी जिंदगी में जीना है.

न करें भेदभाव

कई मातापिता बच्चों में ही भेद करना प्रारंभ कर देते हैं. 2 बच्चों में से एक के पास अधिक रहेंगे, दूसरे के पास कम. इस से बच्चों में आपस में ही प्रतिस्पर्धा प्रारंभ हो जाती है. आप अपने सब बच्चों के पास जाएं और सब को भरपूर प्यार व अपनत्व दें, ताकि किसी को शिकायत का मौका न मिले. हां, किसी बच्चे को आप के सहारे की आवश्यकता है तो अवश्य उस के काम आएं. इस से बच्चों में भी परस्पर जुड़ाव होता है.

बच्चों को परस्पर जोड़ें

बच्चों का विवाह करने के साथ ही मातापिता का उत्तरदायित्व समाप्त नहीं हो जाता. अपना स्वतंत्र अस्तित्व हो जाने के बाद सभी बच्चे अपने परिवार के साथ अलगअलग रहने लगते हैं. अब उन्हें आपस में जोड़ने और परस्पर भरपूर प्यार बनाए रखने के लिए आप को मजबूत कड़ी की तरह कार्य करना होगा. नवीन साहब के 3 बेटों में से 2 विदेश में और एक दिल्ली में रहते हैं. जब भी उन के बेटे विदेश से आते हैं तो वे सब एक ही स्थान पर एकत्र हो जाते हैं. यही नहीं, सभी आपस में बात कर के एक ही समय पर आना सुनिश्चित भी करते हैं. वर्ष में कम से कम एक बार वे सब परिवार सहित एकसाथ होते ही हैं. इस से सभी में परस्पर प्यार और सौहार्द्र की भावना बनी रहती है. वरना, कुछ परिवारों में तो भाइयों के बच्चे एकदूसरे को पहचानते तक नहीं.

जब मैच के बीच में ही अंपायर ने काट दिए गावस्कर के बाल

क्रिकेट की दुनिया में कई ऐसी घटनाएं देखने को मिलती हैं, जो लंबे समय तक याद रखी जाती हैं और यादगार बन जाती है. ऐसी ही एक घटना भारत-इंग्लैंड के मैच के वक्त देखने को मिली. इस मैच में अंपायर ने सुनील गावस्कर के बालों पर कैंची चला दी थी.

दरअसल यह बात 1974 की है. टीम इंडिया इंग्लैंड के खिलाफ ओल्ड ट्रैफर्ड में मैच खेल रही थी. सुनील गावस्कर भी इस मैच में खेल रहे थे. उन दिनों खिलाड़ी बल्लेबाजी करते क्त हेलमेट नहीं लगाते थे. सुनील पिच पर जमे थे और रन बरसा रहे थे.

मैदान में हल्की-हल्की हवा चल रही थी जिसके कारण बार बार उनके बाल उड़ रहे थे. वह बार-बार उनके माथे और आंखों पर आ रहे थे. चेहरे पर बाल आने से वह गेंद पर फोकस नहीं कर पा रहे थे. सुनील ने पहले तो कुछ गेंदें खेलीं. लेकिन जब ज्यादा दिक्कत होने लगी, तो उन्होंने यह बात अंपायर डिकी बर्ड को बताई.

फिर खुद ही उनसे अपने बाल काटने के लिए कहा. तब अंपायर डिकी बर्ड ने मैच के बीच में ही गावस्कर के बालों पर कैंची चलाई थी. तब जाकर उन्हें बल्लेबाजी करने में थोड़ी आसानी हुई थी. तो इस तरह से मैदान पर एक अंपायर ने टीम इंडिया के खिलाड़ी की मैदान पर ही हेयरकटिंग कर दी थी.

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