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दोहरे मापदंड

‘‘यह कैसी जगह है? यहां तो किसी से कोई मतलब ही नहीं रखता. तुम तो औफिस चले जाते हो, मेरे लिए वक्त काटना भारी पड़ता है,’’  मैं ने सचिन के औफिस से वापस आते ही हमेशा की तरह शिकायती लहजे में कहा.

‘‘यह मुंबई है श्वेता, यहां आने पर शुरू में सब को ऐसा ही लगता है, लेकिन बाद में सब इस शहर को, और यह शहर यहां आने वालों को अपना लेता है. जल्दी ही तुम भी यहां के रंगढंग में ढल जाओगी.’’

मुझे धौलपुर में छूटे हुए अपने ससुरालमायके की बहुत याद आती. शादी के बाद मैं सिर्फ 2 महीने ही अपनी ससुराल में रही थी लेकिन सब ने इतना प्यारदुलार दिया कि महसूस ही नहीं हुआ कि मैं इस परिवार में नई आई हूं. सचिन का परिवार उस के दादाजी की पुश्तैनी हवेली में रहता था. उस के परिवार में उस के चाचाचाची, मातापिता और एक विवाहित बहन पद्मजा थी.

पद्मजा थी तो सचिन से छोटी मगर उस की शादी हमारी शादी से एक साल पहले ही हो चुकी थी. उस की ससुराल भी धौलपुर में ही थी, इसलिए वह जबतब मायके आतीजाती रहती थी. चाचाचाची की कोई अपनी संतान नहीं थी, सो वे दोनों अपने अंदर संचित स्नेह सचिन और पद्मजा पर ही बरसाया करते थे. ऐसे हालात में जब मैं शादी के बाद ससुराल में आई तो मुझे एक नहीं, 2 जोड़े सासससुर का प्यार मिला.

सब के प्यार के रस से भीगी हुई मैं ससुराल नहीं छोड़ना चाहती थी. मगर ब्याहता तो मैं सचिन की थी और उन की नौकरी धौलपुर से मीलों दूर मुंबई में थी, इसलिए शादी के कुछ महीनों बाद जब मैं मुंबई आई तो मन में दुख और सुख के भाव साथसाथ उमड़ रहे थे.

एक तरफ अपने छोटे से घरौंदे में आने की खुशी तो दूसरी तरफ ससुरालमायके का आंगन पीछे छूटने का गम. ऊपर से मुंबई की भागमभाग जिंदगी जहां किसी को किसी के दुखसुख से मतलब नहीं. बस, लगे हैं ‘रैट रेस’ में अपनीअपनी रोजीरोटी की फिक्र में, जिस के पास जितना है उस से ज्यादा पाने की होड़ में. झोंपड़पट्टी वाले खोली में, खोली वाले अपार्टमैंट और अपार्टमैंट वाले बंगले के ख्वाब में जिंदगी के ट्रेडव्हील पर दौड़े जा रहे हैं.

हमारे अपार्टमैंट के हर फ्लोर पर 4 फ्लैट थे. हमारे फ्लोर का एक फ्लैट खाली पड़ा था. एक में हम रहते थे. बाकी बचे 2 फ्लैट्स में से एक में अधेड़ दंपती रहते थे और दूसरे में एक बैचलर. अधेड़ दंपती उत्तर भारत से आए हुए हर व्यक्ति को भइया लोग कह कर बुलाते थे और सोचते थे कि अगर उन्होंने अपना उठनाबैठना भइया लोगों के साथ बढ़ाया तो मुंबइया महाराष्ट्रियन उन का हुक्कापानी बंद कर देंगे. और वह बैचलर, वह तो उन से भी एक कदम आगे था. वह जब भी सामने आता तो मुसकराने तक की जहमत न उठाता. ऐसा लगता कि अगर वह मुसकरा दिया तो भारत सरकार उस पर अतिरिक्त कर लगा देगी.

जब तीसरे और महीनों से खाली पड़े हुए फ्लैट में उत्तर भारतीय निकिता और राज आए तो मेरी खुशी का ठिकाना न रहा. मैं दूसरे ही दिन उन के यहां चाय का थरमस और ताजी बनी मठरियों के साथ पहुंच गई. निकिता भी मुझ से ऐसे मिली जैसे कि अपनी किसी पुरानी सहेली से मिल रही हो.

2-3 दिनों तक मैं उन के घर ऐसे ही चाय ले कर जाती रही और नए घर में सामान लगाने में उन की मदद करती रही. निकिता और राज एक प्राइवेट बैंक में काम करते थे. उन का एक 6-7 साल का बेटा दिग्गज भी था. राज की माताजी भी उन के साथ ही रहती थीं.

 

जब घर व्यवस्थित होने के बाद उन की दिनचर्या ढर्रे पर आ गई तो निकिता ने मुझे और सचिन को अपने घर खाने पर आने का न्योता दिया, ‘‘श्वेता, तुम ने तो हमारे लिए बहुत किया वरना यहां मुंबई में कौन किसे पूछता है. मैं बहुत खुश हूं कि मुझे यहां आते ही तुम्हारे जैसी पड़ोसिन और सहेली मिल गई. अब आने वाले इतवार को तुम और सचिन हमारे यहां डिनर पर आओ. इसी बहाने सचिन और राज भी एकदूसरे से मिल लेंगे.’’

मैं ने निकिता का निमंत्रण बड़ी तत्परता के साथ स्वीकार कर लिया क्योंकि मैं जब भी उस के घर जाती तो निकिता की सास उस की पाककला की तारीफ करते न थकती थीं. मैं ने मन ही मन सोचा कि जिस खाने की तारीफ मैं इतने दिनों से सुनती आ रही हूं, अब उसे खाने का मजा भी मिलेगा.

‘‘तुम इतना सारा खाना कैसे बनाओगी, मैं भी अपने घर से एकदो चीजें बना लाऊंगी,’’ मैं ने निकिता का मन रखने के लिए ऊपरी तौर पर पूछ लिया.

‘‘कुछ मत बना कर लाना. बस, आ जाना टाइम से,’’ निकिता ने सामने पड़े हुए कपड़ों के गट्ठर में से एक तौलिया तह करते हुए कहा.

इतवार की शाम दोनों परिवार निर्धारित समय पर निकिता के घर में डाइनिंग टेबल के इर्दगिर्द बैठे थे. जायकेदार खाने के दौरान हर तरह की गपशप चल रही थी. राज की अत्यंत सौम्य स्वभाव की माताजी बड़े ही दुलार से सब की प्लेटों पर नजर रखे हुए थीं. किसी की भी प्लेट में जरा सी भी कोई चीज कम होती तो वे बड़ी ही मनुहार के साथ उस में और डाल देतीं. खाखा कर हम सब बेहाल हुए जा रहे थे.

गपशप भी अपनी चरम सीमा पर थी. पहले राज ने सचिन से उस के कामकाज के बारे में जानकारी ली, फिर उस ने अपने और निकिता के काम के बारे में उसे बताया. खेलकूद और राजनीति पर भी चर्चा हुई. घूमतेफिरते बातों ही बातों में वे सवाल भी पूछ लिए गए जो कि जब नए जोड़े पहली बार अनौपचारिक माहौल में मिलते हैं तो अकसर पूछ लेते हैं.

‘‘वैसे तुम्हारी शादी हुए कितना वक्त हो गया?’’ उस हलकेफुलके माहौल में सचिन ने राज और निकिता से पूछा.

‘‘सिर्फ 2 साल,’’ राज ने संक्षिप्त जवाब दे कर फिर से राजनीतिक मुद्दों की तरफ बात मोड़नी चाही, मगर उस का जवाब सचिन की जिज्ञासा बढ़ा चुका था.

‘‘क्या…सिर्फ 2 साल?’’ ऐसा कैसे हो सकता है, तुम्हारा बेटा दिग्गज ही करीब 6-7 साल का होगा, सचिन ने आश्चर्र्य से पूछा.

‘‘हां, हमारा बेटा अगले महीने पूरे

7 साल का हो जाएगा. बहुत ही प्याराप्यारा बेटा है मेरा,’’ राज के स्वर में गर्व और खुशी दोनों का भाव एकसाथ था.

‘‘वह तो ठीक है, सभी बच्चे अपने मांबाप को प्यारे ही लगते हैं. मगर जब तुम्हारी शादी को ही 2 साल हुए हैं तो यह 7 साल का बेटा तुम्हारा कैसे हो सकता है. अभी हम भारतीयों में शादी के पहले बच्चे पैदा करने का रिवाज तो नहीं है.’’

‘‘तुम ने बिलकुल सही कहा सचिन. हमारे समाज में विवाहपूर्व बच्चों की स्वीकृति अभी बिलकुल भी नहीं है. हां, कुछ हद तक लिवइन का ट्रैंड तो अब आ चुका है. असल में दिग्गज निकिता की पहली शादी की संतान है,’’ राज ने सलाद की प्लेट से एक गाजर का टुकड़ा उठा कर उसे कुतरते हुए कहा.

सचिन राज की तरफ ऐसे देख रहे थे जैसे कि उन का सामना किसी दूसरी दुनिया के प्राणी से हो गया हो. उन की जिज्ञासा अब हैरानी में बदल चुकी थी. वे अपने मुंह के खाने को चबाना भूल कर अधखुले मुंह से हक्केबक्के से मेजबान परिवार के सदस्यों को ताक रहे थे.

राज की अनुभवी माताजी ने सचिन की हालत को भांपते हुए बात आगे बढ़ाई, ‘‘बेटा सचिन, राज जो कह रहा है वह सच है. दिग्गज निकिता की पहली शादी की संतान है. मगर अब वह मेरा पोता है और राज ही उस का पिता है.’’

‘‘जब राज ने भोपाल में बैंक में काम शुरू किया तो मैं वहां पहले से ही काम करती थी. एक बार हम सब साथी काम के बाद डिनर पर गए. वहीं बातों ही बातों में मेरी एक सहेली से राज को पता चला कि मेरे पति की एक कार दुर्घटना में मृत्यु हो चुकी है. साथ ही, बताया कि मेरे बेटे का जन्म मेरे पति की मृत्यु के करीब 2 महीने बाद में हुआ था. बेचारे दिग्गज को तो उस के बायोलौजिकल पिता की छाया तक देखने को नहीं मिली,’’ बतातेबताते निकिता की आवाज कंपकंपाने लगी थी.

निकिता की बात को राज ने आगे बढ़ाया, ‘‘भोपाल में हमारी बैंक की शाखा में महीने में एक बार काम के बाद सब का एकसाथ डिनर पर जाने का अच्छा चलन था. ऐसे ही एक डिनर के बाद मैं ने निकिता से कहा था, ‘निकिता तुम दूसरी शादी क्यों नहीं कर लेती? अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है? ऐसे अकेले कहां तक जिंदगी ढोओगी? शादी कर लोगी तो तुम्हारे बेटे को अगर पिता का नहीं, तो किसी पिता जैसे का प्यार तो मिलेगा.’

‘‘इस पर निकिता ने अपनी शून्य में ताकती निगाहों के साथ मुझ से पूछा था, ‘ये सब कहने में जितना आसान होता है, करने में उतना ही मुश्किल. कौन बिताना चाहेगा मुझ विधवा के साथ जिंदगी? कौन अपनाएगा मुझे मेरे बेटे के साथ? क्या तुम ऐसा करोगे राज, अपनाओगे किसी विधवा को एक बच्चे के साथ?’

‘‘निकिता के शब्दों ने मेरे होश उड़ा दिए थे और उस वक्त मैं सिर्फ ‘सोचूंगा, और तुम्हारे सवाल का जवाब ले कर ही तुम्हारे पास आऊंगा,’ कह कर वहां से चला आया था.

‘‘मैं चला तो आया था मगर निकिता के शब्द मेरा पीछा नहीं छोड़ रहे थे. मेरे मन में एक अजब सी उथलपुथल मची हुई थी. मेरे मन की उलझन मां से छिपी न रह सकी. उन के पूछने पर मैं ने निकिता के साथ डिनर के दौरान हुए वार्त्तालाप का पूरा ब्योरा उन्हें दे दिया.

 

‘‘सब सुनने के बाद मां ने कहा, ‘सीधे रास्तों पर तो बहुत लोग हमराही बन जाते है मगर सच्चा पुरुष वह है जो दुर्गम सफर में हमसफर बन कर निभाए. बेटा, एक विधवा हो कर अगर मैं ने दूसरी विधवा स्त्री के दर्द को न समझा तो धिक्कार है मुझ पर. यह मैं ही जानती हूं कि तुम्हारे पिता की मृत्यु के बाद तुम्हें कैसेकैसे कष्ट उठा कर पाला था. कहने को तो मैं संयुक्त परिवार में रहती थी पर तुम्हारे पिता के दुनिया से जाते ही मुझे जीवन की हर खुशी से बेदखल कर दिया गया था.

‘‘‘घर और घर के लोग मेरे होते हुए भी बेगाने हो चुके थे. तुम्हारी परवरिश भी तुम्हारे चाचाताऊ के बच्चों की तरह न थी. जहां उन के बच्चे अच्छे कौन्वैंट स्कूल में जाते थे वहीं तुम्हें मुफ्त के सरकारी स्कूल में भेज दिया गया. जिन कपड़ों को पहन कर उन के बच्चे उकता जाते, वे तुम्हारे लिए दे दिए जाते.

‘‘‘राज बेटा, उस माहौल में मेरा तुम्हारा जीना, जीना नहीं था, सिर्फ जीवन का निर्वाह करना था. बेटा, मुझे तुम पर गर्व होगा अगर तुम निकिता और उस के बच्चे को अपना कर, उन की जिंदगी के पतझड़ को खुशगवार बहार में बदल दो.’ मां ने छलकते हुए आंसुओं के बीच आपबीती बयां की थी.

‘‘दूसरे दिन जब मैं ने निकिता को लंचटाइम में अपनी मां के साथ हुई सारी बातचीत बताई और कहा कि मैं उस से शादी करना चाहता हूं, तब निकिता बोली, ‘मैं किसी की दया की मुहताज नहीं हूं, कमाती हूं, जैसे 4 साल काटे हैं वैसे ही बची जिंदगी भी काट लूंगी.’

‘‘‘निकिता पैसा कमाना ही अगर सबकुछ होता तो संसार में परिवार और घर की परिकल्पना ही न होती. जिंदगी में बहुत से पड़ाव आते हैं जब हमसब को एकसाथी की जरूरत होती है.’

‘‘‘और अगर मुझे अपनाने के कुछ सालों बाद तुम्हें अपने निर्णय पर पछतावा होने लगा तो मैं कहीं की नहीं रहूंगी. पहले ही वक्त का क्रूर प्रहार झेल चुकी हूं, अब और झेलने की हिम्मत नहीं है. मुझ में. इसलिए किसी से भी मन जोड़ने से घबराती हूं, न मैं किसी से बंधन जोडूं, न वक्त के सितम ये बंधन तोड़ें.’

‘‘‘निकिता, डूबने के डर से किनारे पर खड़े रह कर उम्र बिता देने में कहां की बुद्धिमानी है? ऐसे ही खौफ के अंधेरों को दिल में बसा कर जिओगी तो उम्मीदों का उजाला तो तुम से खुदबखुद रूठा रहेगा.’

‘‘ऐसी ही कुछ और मुलाकातों, कुछ और तकरारों व वादविवादों के बाद अंत में निकिता और मैं शादी के बंधन में बंध गए.’’

राज की माताजी ने अब दिग्गज को अपना नातीपोता ही मान लिया था. वे नहीं चाहती थीं कि निकिता और राज के कोई दूसरी संतान पैदा हो और दिग्गज के प्यार का बंटवारा हो.

उन सब की बातें सुन कर मेरी आंखें छलछला गईं. मैं ने ऐसे महान लोगों के बारे में कहानियों में ही पढ़ा था, आज आमनेसामने बैठ कर देख रही थी. श्रद्घा से ओतप्रोत मेरा मन उन के सामने नतमस्तक होने को मचल रहा था. किसी तरह से मैं ने अपनी उफनती हुई भावनाओं पर काबू पाया और आज की शाम को खुशगवार बनाने के लिए धन्यवाद देते हुए विदाई लेने को उठ खड़ी हुई.

‘‘क्या बेवकूफ आदमी है,’’ राज के घर से दस कदम दूर आते ही सचिन का पहला वाक्य था.

‘‘कौन?’’

‘‘राज, और कौन.’’

‘‘क्यों, ऐसा क्या कर दिया उस ने. इतने अच्छे से हम दोनों का स्वागत किया, अच्छे से अच्छा बना कर खिलाया, और कैसे होते हैं भले लोग? तुम्हें इस सब में बेवकूफी कहां नजर आ रही है?’’

‘‘जो एक बालबच्चेदार सैकंडहैंड औरत के साथ बंध कर बैठा है, वह बेवकूफ नहीं तो और क्या है? देखने में अच्छाखासा है, बैंक में मैनेजर है, अच्छी से अच्छी कुंआरी लड़की से उस की शादी हो सकती थी. जिस ने भरीपूरी थाली को छोड़ कर किसी की जूठन को अपनाया हो, उसे बेवकूफ न कहूं तो और क्या कहूं.’’

‘‘मगर सचिन…’’

‘‘जैसा राज खुद, वैसी ही उस की वह मदर इंडिया. कह रही थीं कि उन्हें खुद का कोई नातीपोता भी नहीं चाहिए, और दिग्गज ही उन के लिए सबकुछ है. भारत सरकार को उन्हें तो मदर इंडिया के खिताब से नवाजना चाहिए.’’

सचिन राज और उस की मां की बुरी तरह से खिंचाई कर रहे थे. मैं ने चुप रहना ही ठीक समझा. इन विषयों पर बहस करने की कोई सीमा नहीं होती. तर्क का जवाब तो दिया जा सकता है पर कुतर्क का नहीं.

वक्त के साथ मेरी और निकिता की दोस्ती पक्की होती जा रही थी. वैसे, मैं निकिता से ज्यादा वक्त उस की सास के साथ बिताती क्योंकि निकिता तो अपनी नौकरी के कारण ज्यादातर घर में होती ही नहीं थी. पुराने जमाने की और कम पढ़ीलिखी होने के बावजूद उन के खयालात कितने ऊंचे थे. वे लकीर की फकीर नहीं थीं, लीक से हट कर सोचती थीं.

उन्हें देखते ही मेरा मन उन का सौसौ नमन करने लगता. वे हमेशा ही बहुत अच्छा बोलतीं, अच्छी सीख देतीं. उन के पास उठनेबैठने का दोहरा फायदा होता था, एक तो मेरी बोरियत का इलाज हो जाता, दूसरे मुझे बहुत सी ऐसी नैतिक बातें सीखने को मिलतीं जो कि दुनिया के किसी भी विश्वविद्यालय में सिखाई नहीं जाती हैं.

इधर, सचिन के विचारों में कोई परिवर्तन नहीं था. जब कभी भी मेरे घर में राज का जिक्र आता तो सचिन उस को उस के नाम से न बुला कर सैकंडहैंड बीवी वाला कह कर बुलाते. मैं ने उन्हें कई बार समझाने की कोशिश की कि किसी के लिए भी ऐसे शब्द बोलना अच्छी बात नहीं. ऐसे शब्द बोलने से दूसरे का अपमान होता है. सो, वे राज के लिए ऐसी बात न किया करें और उस को उस के नाम से बुलाने की आदत डालें. मगर मेरा उन्हें समझाना चिकने घड़े पर पानी डालने जैसे था.

आखिर में समझाने का कोई असर न होते देख मैं ने उन से इस बारे में कुछ भी कहना बंद कर दिया. हालांकि मेरा मन अपने उच्चशिक्षित पति के इस रवैए से बेहद आहत था. मुझ को हैरानी थी कि इतने शिक्षित होने पर भी सचिन कितनी संकीर्ण मानसिकता रखते हैं. अगर किसी के अच्छे कर्म की प्रशंसा करने का हौसला नहीं रखते थे तो कम से कम उस का यों सरेआम मजाक तो न बनाते.

दिनचर्या अपने ढर्रे पर चल रही थी. सचिन की हाल ही में पदोन्नति हुई थी. काम में उन की व्यस्तता दिनबदिन बढ़ती जा रही थी, इसलिए दीवाली पर भी हम धौलपुर न जा पाए. एक दिन सचिन ने औफिस से आते ही बताया कि उन के पापा का फोन आया था और तत्काल ही हम दोनों को धौलपुर बुलाया है. मेरी ननद पद्मजा के पति अस्पताल में भरती थे. पिछले कुछ दिनों से उन की तबीयत ठीक नहीं चल रही थी. सचिन के फोन पर बहुत बार पूछने पर भी ससुर साहब ने नहीं बताया कि क्या बीमारी है. बस, यह कहा कि जितनी जल्दी हो सके, धौलपुर आ जाओ.

‘‘इस में इतना सोचना क्या? जब घर में कोई बीमार है तो हमें जाना ही चाहिए. वैसे भी हम दीवाली पर भी जा नहीं पाए,’’ बुलावे की खबर सुनते ही मैं ने धौलपुर जाने की तत्परता जताई.

‘‘ठीक है, तो फिर जल्दी से दिल्ली की फ्लाइट बुक करा लेता हूं, फिर दिल्ली से टैक्सी ले कर धौलपुर चले चलेंगे.’’

फ्लाइट बुक होतेहोते और धौलपुर तक पहुंचने में 3 दिनों का वक्त लग गया. पहुंचने पर पता चला कि पद्मजा के पति की 2 घंटे पहले ब्रेन हेमरेज होने से मृत्यु हो चुकी है. सारे घर में मातम छाया हुआ था. पद्मजा का रोरो कर बुरा हाल था. उस के मुंह से कोई आवाज नहीं निकल रही थी. वह आंखें बंद किए हुए कोने में बेसुध सी बैठी थी और उस की पलकों के बांध को तोड़ कर गालों पर आसुंओं का सैलाब उमड़ रहा था.

उस की मुसकराहट से तर रहने वाले गुलाबी होंठ सूख कर चटख रहे थे. उस की इस हालत को देख कर मुझे विश्वास ही न होता था कि यह मेरी वही प्यारी सी ननद है जो सिर्फ 8 महीने पहले मेरी बरात में नाचती, गाती, हंसती, मुसकराती, गहनों से लदी हुई आई थी. तब मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था कि तब के बाद सीधे उसे इस बदहाल स्थिति में देखूंगी.

सचिन चाह कर भी धौलपुर में ज्यादा समय न रुक पाए. तेरहवीं के तीसरे दिन ही उन्हें मुंबई लौटना पड़ा. तेरहवीं के कुछ दिनों बाद ससुरजी पद्मजा को उस की ससुराल से ले आए थे. मैं ने उस के साथ रहना ही ठीक समझा, सोचा कि जब महीनेदोमहीने में परिवार पर आए हुए दुख के बादल थोड़े छंट जाएंगे तब मैं मुंबई लौट जाऊंगी. अभी पद्मजा को मेरे साथ की बहुत जरूरत थी. अगर वह कभी गलती से मुसकराती थी तो मेरे साथ, खाना खाती तो मेरे साथ और मेरे आग्रह करने पर. वह मेरे साथ सोती और मुझ से ही थोड़ीबहुत बातचीत करती.

इन हालात को देख कर परिवार के सभी बड़ों ने फैसला किया कि पद्मजा को भी मेरे साथ मुंबई भेज दिया जाए. इसी में उस की भलाई भी थी. मुंबई वापस आ कर मैं ने जैसेतैसे उसे एमबीए करने के लिए राजी कर लिया. दुखों के भार को दूर रखने का सब से सही तरीका होता है खुद को इतना व्यस्त करो कि दुखों को क्या, खुद को ही भूल जाओ.

पद्मजा को पढ़नेलिखने का शौक तो था ही, अब यह शौक उस का संबल बन गया. वह दिनरात असाइनमैंट्स और परीक्षाओं की तैयारी में व्यस्त रहती. अपनी जिंदगी के नकारात्मक पहलू को सोचने का ज्यादा वक्त ही न मिल पाता उसे. इस संबल की बदौलत उस की जिंदगी की उतरी हुई गाड़ी फिर से धीरेधीरे पटरी पर आने लगी थी.

एमबीए पूरा करते ही उसे एक कंपनी में नौकरी भी मिल गई और वह अपने इस नए माहौल में पूरी तरह से रम चुकी थी. अब उस के चेहरे पर पुरानी रंगत कुछ हद तक वापस आने लगी थी.

मगर सचिन के दिल को चैन नहीं था. वे कहा करते, ‘‘पद्मजा मेरी बहन है, मुझे अच्छा लगता अगर यह अपने पति के साथ हमारे पास कभीकभी छुट्टियां बिताने आतीजाती और अपने पति के घर में आबाद रहती. शादी के बाद बहनबेटियां इसी तरह आतीजाती अच्छी लगती हैं, दयापात्र बन कर बापभाई के घर में उम्र बिताती हुई नहीं. पद्मजा का इन परिस्थितियों में हमारे पास उम्र बिताना तो वह घाव है जिस पर वक्त मरहम नहीं लगाता बल्कि उस को नासूर बनाता है.’’

यह सच भी था, हम चाहे पद्मजा का कितना भी खयाल रख लें, कितना भी प्यार और सुखसुविधाएं दे लें, हमारे घर में उस का उम्र बिताना उस की जिंदगी की अपूर्णता थी. सचिन जब भी उस की तरफ देखते, उन की आंखों की बेबसी छिपाए न छिपती.

इधर कुछ दिनों से पद्मजा के हावभाव बदल रहे थे. वह औफिस से भी देर से आने लगी थी. पूछने पर कहती कि एक सहयोगी काम छोड़ कर चला गया है, सो, वह उस के हिस्से का काम करने में भी बौस की मदद कर रही है.

मगर उस के हावभाव कुछ और ही कहानी कहते से लगते. अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा वह अपने रखरखाव, कपड़ों और सौंदर्य प्रसाधनों पर खर्च करती. उस का मोबाइल उस के हाथ से न छूटता था. खातेपीते, टैलीविजन देखते हुए भी वह चैट करती रहती.

 

पहले तो मैं ने इसे मुंबई की हवा का असर समझा, मगर मेरा दिमाग ठनका जब मैं ने देखा कि वह मोबाइल को टौयलेट में भी अपने साथ ले जाती थी. जो मोबाइल पहले वह सिर्फ कौल करने और सुनने के लिए प्रयोग करती थी वह अब उस की लत बन गया था.

मैं ने सचिन से कई बार इस बारे में बात करनी चाही मगर उन्होंने मेरी बात को हर बार अनसुना कर दिया. आखिर मैं ने ही इस पहेली को सुलझाने का निश्चय किया और सही मौके का इंतजार करने लगी. और वह मौका मुझे जल्दी ही मिल गया.

रविवार का दिन था और पद्मजा अपनी किसी महिला सहकर्मी सोनाली के साथ सिनेमा देखने जाने वाली थी. आदतानुसार वह सुबह से उठ कर चैट कर रही थी. जब अचानक उसे खयाल आया कि जाने से पहले उसे अभी नहाना भी है, तो वह जल्दीजल्दी कपड़े समेट कर बाथरूम में भागी. इस हड़बड़ी में कपड़ों के बीच में रखा उस का मोबाइल बाथरूम के दरवाजे पर गिर गया और उसे पता न चला.

उस के बाथरूम का दरवाजा बंद करते ही मैं ने मोबाइल उठा लिया. चूंकि वह 2 सैकंड पहले ही उस पर चैट कर रही थी, इसलिए वह अभी अनलौक ही था. मैं ने फटाफट उस के मैसेज कुरेदने शुरू कर दिए. उस की कौल हिस्ट्री में सब से ज्यादा कौल किसी देवांश की थीं.

जब मैं ने देवांश के संदेशों को पढ़ा तो सारी स्थिति समझने में मुझे देर न लगी. वह सिनेमा देखने भी उसी के साथ जा रही थी किसी सोनाली के साथ नहीं. खैर, मैं ने अपनी भावनाओं को काबू में रख के पद्मजा का मोबाइल उस के हैंडबैग में ले जा कर रख दिया और किचन में जा कर काम करने लगी. वह गुनगुनाती हुई बाथरूम से निकली और मुझ से गले मिल कर खुशीखुशी सिनेमा देखने चली गई.

मैं ने धीरज रखा और सोचा कि जब वह वापस आएगी तब इत्मीनान से बैठ कर बात करूंगी. अभी मैं ने सचिन से भी इस बारे में कुछ कहना ठीक न समझा. बात को आगे बढ़ाने के पहले मैं खुद उस की तह तक जाना चाहती थी, इसलिए मैं पहले पद्मजा के मुंह से सबकुछ सुनना चाहती थी.

उस रात मैं घर का काम खत्म कर के पद्मजा के कमरे में आ कर उस के पास लेट गई और यहांवहां की बातें करने लगी.

‘‘मूवी कैसी थी पद्मजा?’’

‘‘ठीक ही थी, वैसी तो नहीं जैसी कि सोनाली ने बताई थी, जब वह पिछले हफ्ते देख कर आई थी.’’

‘‘सोनाली, क्या मतलब? वह यह मूवी पहले देख चुकी थी और आज फिर से तुम्हारे साथ गई थी.’’

‘‘भाभी वो मैं…’’

‘‘वो मैं क्या, पद्मजा, मुझे नहीं लगता कि तुम सोनाली के साथ मूवी देखने गई थीं.’’

‘‘मगर भाभी मैं…’’

‘‘अगरमगर क्या? मैं जानती हूं कि तुम किसी देवांश के साथ गई थीं.’’

‘‘पर आप ऐसा कैसे कह सकती हैं?’’

‘‘क्योंकि तुम जब नहाने गईं तो तुम्हारा मोबाइल बाथरूम के बाहर गिर गया था और मैं ने तुम्हारे कुछ मैसेजेस देख लिए थे. मुझे परेशानी इस बात की नहीं कि तुम किसी पुरुष मित्र के साथ गई थीं, दुख इस बात का है कि तुम ने मुझ से झूठ बोला और मुझे बेगाना समझा. शायद मैं ने ही तुम्हारे रखरखाव में कुछ कमी की होगी जो मैं तुम्हारा विश्वास न जीत सकी.’’

‘‘नहीं भाभी, ऐसी बात नहीं है. मेरी अच्छी भाभी, ऐसा तो भूल कर भी न सोचिए. आप ही हैं जो बुरे वक्त में मेरा सब से बड़ा सहारा, सब से अच्छी दोस्त बनीं. बताना तो मैं बहुत समय से चाहती थी मगर समझ नहीं आ रहा था कि कैसे बात शुरू करूं. डर था कि न जाने भैया की क्या प्रतिक्रिया हो.’’

‘‘ठीक है, कोई बात नहीं. पर अब तो जल्दी से मुझे सब बताओ.’’

‘‘देवांश मेरे साथ मेरे औफिस में काम करता है, भाभी वह बहुत अच्छा लड़का है. वह यह जानता है कि मैं एक विधवा हूं फिर भी वह मुझे अपनाने को तैयार है.’’

‘‘और तुम्हारी क्या मरजी है?’’

‘‘मेरा दिल भी उसे चाहता है, अभी मेरी उम्र भी क्या है. मैं अपने दिवंगत पति की यादों की काली चादर ओढ़ कर, जिंदगी के अंधेरों में उम्रभर नहीं भटक सकती.’’

‘‘हम ही कौन सा तुम्हें एकाकी जीवन बिताते हुए देख कर सुखी हैं. तुम और देवांश वयस्क हो, अपना भलाबुरा समझते हो. तुम दोनों जो भी फैसला करोगे, ठीक ही करोगे. और हां, अब ज्यादा देर न लगाओ, अगले ही इतवार को देवांश को घर बुला लो, हम से मिलने के लिए.’’ मैं ने पद्मजा के गालों पर बिखरे हुए बालों को हटाते हुए कहा.

‘‘ठीक है, मेरी अच्छी भाभी,’’ कह कर पद्मजा भावविभोर हो कर छोटे बच्चे की तरह मुझ से लिपट गई.

कहते हैं कि घर में जितने ज्यादा सदस्य होते हैं, उतना ही वहां सूनापन कम होता है. मगर जब से पद्मजा विधवा हो कर मेरे घर आई थी, तब से सूनेपन का बसेरा हो गया था घर में. ऐसा सूनापन जो नाग की तरह हम तीनों के हृदय में घर कर के हमें अंदर ही अंदर डस रहा था. आज पद्मजा की आंखों की चमक उस नाग पर वार कर के उसे पूर्णरूप से खत्म करने को तत्पर थी.

 

अगले रविवार की शाम मेरे घर में रूपहला उजाला सा बिखरा हुआ था और पद्मजा इस उजाले में सिर से पांव तक नहाई सी प्रतीत हो रही थी. रोशनखयाल देवांश ने कुछ ही घंटों में सचिन पर अपना प्रभुत्व कायम कर लिया.

‘‘औरत केवल एक शरीर नहीं है, पूरी सृष्टि है. जब विधुर पुरुष का विवाह अविवाहित स्त्री से हो सकता है तो फिर अविवाहित पुरुष एक विधवा को अपनाने में क्यों इतना सोचते हैं? रही बात समाज और रीतिरिवाजों की, तो ये सब इंसान के लिए बने हैं, इंसान  इन के लिए नहीं.

इंसानों के बदलने से युग परिवर्तन हुए हैं क्योंकि ये युग प्रवर्तक अच्छी सोच को करनी में उतारते हैं, कथनी तक सीमित नहीं रहने देते हैं,’’ कहतेकहते देवांश थोड़ा रुका, उस की आंखें पद्मजा पर एक सरसरी दृष्टि डालती हुई सचिन के चेहरे पर जम गईं और उस ने घोषणात्मक स्वर में ऐलान किया, ‘‘मैं पद्मजा को अपना जीवनसाथी बनाना चाहता हूं. अगर आप न भी करेंगे तो भी मैं ऐसा करूंगा क्योंकि मैं जानता हूं कि पद्मजा की खुशी इसी में है और मेरे लिए संसार में उस की खुशी से बढ़ कर कुछ नहीं हैं.’’

कुछ देर के लिए कमरे में गहरी चुप्पी छाई रही, सभी एकदूसरे के चेहरे ताक रहे थे. मन ही मन विचारों की कुछ नापतौल सी चल रही थी.

अंत में सचिन ने ही चुप्पी तोड़ी, ‘‘अरे भाई, जब तुम दोनों ने सबकुछ पहले से ही फाइनल कर लिया है तो मैं क्या, कोई भी तुम्हारा निर्णय नहीं बदल सकता,’’ कहते हुए सचिन अपनी जगह से उठे और उन्होंने पद्मजा का हाथ ले देवांश के हाथों में पकड़ा दिया. फिर दोनों को एकसाथ अपनी बाहों में ले कर अपने कलेजे से लगा लिया.

उस रात डिनर के बाद देवांश खुशीखुशी विदा हो गया था अपनी शादी की तैयारियां जो शुरू करनी थी उसे. पद्मजा के कमरे से खुशी के गीतों की गुनगुनाहटें आ रही थीं. सब से ज्यादा फूले नहीं समा रहे थे सचिन. वे बिना रुके देवांश की तारीफों के पुल बांधे जा रहे थे, ‘‘क्या कमाल का लड़का है, कैसे उत्तम विचार हैं उस के. अपने मांबाप का इकलौता बेटा है.

‘‘बहुतेरे लोग अपनी बेटी का रिश्ता उस से जोड़ने को दरवाजे पर खड़े रहते होंगे. मगर इसे कहते हैं संस्कार. बड़े ही ऊंचे संस्कार दिए हैं उस के मांबाप ने उसे. युगपुरुष, महापुरुष वाली बात है उस में. बहुत बड़ी बात है कि जो ऐसे उच्च विचारों का व्यक्ति हमारे यहां रिश्ता जोड़ रहा है.’’

और मैं हैरान, जड़वत सी, दोगली मानसिकता के शिकार अपने पति के दोहरे मापदंडों की गवाह बनी खड़ी थी.      

बदन गुनगुना गया

तुम ने मुझे छुआ तो बदन जगमगा गया

कोई जला चराग, सहन जगमगा गया

ये फूल कौन सा तेरे माथे पे खिल गया

गुजरे इधर से तुम जो, चमन महमहा गया

इस दर पे तेरा नाम हवाओं ने लिखा था

खुशबू के बोझ से ये बदन थरथरा गया

इतनी थी आरजू कि मेरे दर पे वो रुकें

आए जो मुकाबिल तो कदम डगमगा गया

चलते हो धूप में कभी साए में बैठ लो

देखो तो किस तरह ये बदन तमतमा गया

हम ने तो उस परी से कोई बात भी न की

किस के ये बोल थे कि बदन गुनगुना गया.

 

– राकेश भ्रमर

बच्चों के मुख से

मेरी सहेली राजश्री के साढ़े 3 साल का बेटा उपार्जित अपने मामा की शादी में गया. शादी की रस्मों को उस ने बड़े ध्यान से देखा. एक दिन स्कूल जाने के लिए आनाकानी कर रहा था तो उस की मम्मी ने समझाया कि पढ़लिख कर बड़ा आदमी बनना है तो स्कूल जाना पड़ेगा. यह सुन कर उपार्जित तपाक से बोला, ‘‘मुझे बड़ा नहीं बनना है. बड़ा हो गया तो आप मेरी शादी कर दोगी. मेरे कपड़े उतार कर पटरे पर बिठा कर सब लोग मेरे शरीर पर तेल लगाएंगे.’’ उस की भोली बातें सुन कर सब को हंसी आ गई.     

मंजू अग्रवाल रिमा

*

मेरी बेटी अरूनांशी 5 साल की है. वह अभी एलकेजी कक्षा में पढ़ती है. उस के जन्मदिन के लिए मैं केक बना रही थी. केक की आइसिंग करने में मुझे थोड़ा समय लग गया. इस पर उस ने मुझ से पूछा, ‘‘मम्मी, आप को केक बनाने में इतना टाइम क्यों लग रहा है?’’ मैं ने कहा, ‘‘बेटा, किसी चीज को सुंदर बनाने में समय लगता है.’’

कुछ दिनों बाद मेरी बेटी की हिंदी की नोटबुक में रिमार्क लिखा आया, ‘स्लो इन राइटिंग’.

मैं ने जब उस से कहा, ‘‘बेटा, आप की नोटबुक में टीचर ने ‘स्लो इन राइटिंग’ क्यों लिखा है? आप समय पर कक्षा कार्य नहीं करती हो?’’

बेटी तपाक से बोली, ‘‘मम्मी, मैडम को कौन समझाए कि सुंदर लिखने में टाइम लगता है.’’

एक पाठिका

*

मेरा 7 वर्षीय बेटा मोहक बहुत ही शरारती व चंचल है. हमारे घर में मेरी ननद की शादी में कई तरह के व्यंजन बनाए गए थे. बाकी मिठाइयां तो खत्म हो गईं पर गुलाबजामुन बहुत ज्यादा बच गए थे. काफी सारे गुलाबजामुन हम ने परिचितों एवं पड़ोसियों के यहां बांट दिए. घर पर भी नाश्ते, लंच और डिनर के समय गुलाबजामुन खिलाए जा रहे थे.

एक शाम को खाना बनाते समय मैं ने अपनी सासूमां से पूछा, ‘अम्मा, सब्जी क्या बनानी है?

सासूमां कुछ जवाब देतीं, उस से पहले मोहक तपाक से बोला, ‘‘मम्मी, गुलाबजामुन की सब्जी बना लो.’’

मोहक की बात सुन कर हम सभी की हंसी नहीं रुकी.      

पुष्पलता शर्मा

घरेलू उत्पादों के इस्तेमाल के लिए बने राष्ट्रीय नीति

सरकार घरेलू उत्पाद को बढ़ावा देने की नीति पर तेजी से काम कर रही है. इस के लिए हाल में राष्ट्रीय इस्पात नीति को मंत्रिमंडल ने मंजूरी प्रदान की है. इस से पहले राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति बनाई गई जिसे भी संसद से मंजूरी मिल चुकी है. लोकसभा में यह नीति व्यापक विचारविमर्श के बाद पारित हुई है.

अब सरकार इस्पात के लिए राष्ट्रीय नीति बना रही है. इसे घरेलू स्तर पर तैयार किया जा सकेगा. लेकिन सवाल यह है कि घरेलू स्तर पर तैयार होने वाले इस्पात के लिए नीति क्यों बनाई जा रही है? निविदाओं में घरेलू इस्पात के इस्तेमाल पर जोर देने के लिए सरकार को विवश क्यों होना पड़ रहा है? इन का सीधा जवाब यही है कि आयात किए जाने वाले स्टील की तुलना में देश में तैयार होने वाला इस्पात गुणवत्ता के लिहाज से कमजोर है.

कम गुणवत्ता वाला इस्पात कौन और क्यों तैयार किया जा रहा है, इस पर ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है. भ्रष्टाचार निश्चितरूप से इस की बुनियाद में है और उस पर नकेल कसे जाने की आवश्यकता है. कई बार घरेलू उत्पाद ज्यादा अच्छे होते हैं लेकिन उपभोक्ता उस के महंगा होने के कारण देश में कचरा बढ़ा रहे चीनी सामान की तरफ ज्यादा आकर्षित होता है.

चीनी सामान कीमत के लिहाज से राहत देने वाला है लेकिन वह टिकाऊ बिलकुल नहीं है, फिर भी पूरा देश चीनी सामान खरीद रहा है और उस की बिक्री ने घरेलू उत्पादों का कारोबार ठप कर दिया है. सरकार को चाहिए कि वह घरेलू सामान की गुणवत्ता बढ़ाने और उस के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए भी नीति बनाए ताकि देश में कचरा पैदा करने वाले हलकेफुलके चीनी माल की खरीद पर रोक लगाई जा सके.

अब फ्रिज, टीवी जैसे सामान भी मंगाएं औनलाइन

ब्रैंडेड सामान की खरीद के लिए बड़े मौल या अच्छे शोरूम में जाने का समय नहीं है, तो लोग औनलाइन सेवाप्रदाता कंपनियों की सेवा ले कर अपनी यह जरूरत भी पूरी कर लेते हैं. महानगरों में यह सेवा लोगों के पास समय की कमी के कारण अत्यंत लोकप्रिय है. नतीजतन, औनलाइन बाजार के खिलाड़ी अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं.

स्नैपडील, फ्लिपकार्ट तथा अमेजौन जैसी न जाने कितनी बड़ी कंपनियां इस कारोबार में लगी हैं. इस से बाजार में जबरदस्त प्रतिस्पर्धा आई है. इसी प्रतिस्पर्धा के लिए फ्लिपकार्ट ने 1 साल में अपना कारोबार सौ फीसदी बढ़ाने के लिए फ्रिज जैसे बड़े सामान की औनलाइन डिलीवरी करने की योजना बनाई है. इस के तहत सैमसंग के साथ समझौता किया गया है और ग्राहक को टीवी, फ्रिज, कूलर आदि औनलाइन उपलब्ध कराया जाएगा.

ग्राहक को पसंद का सामान औनलाइन बुक कराना है, कंपनी यह सामान उस के घर पर पहुंचा देगी. फ्लिपकार्ट को टक्कर देने और अपना कारोबार 1 साल में 30 फीसदी तक बढ़ाने के लिए औनलाइन सेवा देने वाली दूसरी कंपनी अमेजौन अपने वेयरहाउस जैसे साधन स्थापित करने की दिशा में कदम बढ़ा रही है. इस से बाजार में भारी स्पर्धा आएगी. ग्राहक को जरूर उस का फायदा मिलेगा. लेकिन गलीमहल्लों के कारोबार पर इस का नकारात्मक असर भी पड़ेगा.

बड़ी कंपनियों की एजेंसी ले कर गलीमहल्ले में खुली दुकानों की तुलना में औनलाइन मिलने वाला फ्रिज निश्चितरूप से सस्ता होगा और ग्राहक को सुरक्षित घर पर मिलेगा तो स्थानीय डीलर के पास जाना कोई पसंद नहीं करेगा. औनलाइन बाजार अब महानगरों और बड़े शहरों से आगे निकल कर जिला मुख्यालयों तक पहुंच गया है. जो जिला मुख्यालय यातायात के अच्छे नैटवर्क से जुड़े हैं, वहां यह सेवा तेजी से फैल रही है. शायद वह समय भी दूर नहीं होगा जब दोपहिया वाहन भी कागजी कार्यवाही के साथ उपभोक्ता को घर पर ही मिलें.

यह भी खूब रही

मेरे देवर मुझ से बहुत मजाक करते हैं. एक दिन मैं ने राजमा बनाया. सभी को खाना खिलाने के बाद कुछ राजमा बच गया. मैं ने अपने देवर को हंसी का पात्र बनाने की ठान ली. इसलिए बचे राजमा को खूब गरम कर उस में एक चम्मचभर मिर्च डाल दी. इस के बाद मैं अपने कमरे में चली गई. थोड़ी देर में ही मेरा देवर आया और उस ने कटोरी उठा कर राजमा खाना शुरू कर दिया. गरम और मिर्चें लगने से वह घबरा गया. फिर वह आआ, सीसी करने लगा. उस की हालत देख कर हम सब हंसने लगे.  

दीपा गुलाटी

*

हम पतिपत्नी यह मानते हैं कि अपनी आय का कुछ प्रतिशत जरूरतमंदों को देना चाहिए. हम वर्ष में 6 साडि़यां और कुछ कंबल जरूरतमंदों को देते हैं. हम ने 6 साडि़यां खरीदी थीं. एक अपनी कामवाली सविता को दी. वह प्रसन्न हो गई. निकट ही उस का गांव था जहां जरूरतमंद परिवार थे. एक रविवार को हम उसे कार में बैठा कर उस के गांव ले गए. कार हम ने झोंपडि़यों के सामने रोकी. 4-5 परिवार आश्चर्यवश बाहर आ गए. सविता को देख कर सब मुसकराए. मेरी पत्नी ने 1-1 साड़ी 5 परिवारों की महिलाओं को दी. सब साड़ी ले कर बहुत खुश हुईं.

2 महिलाओं ने मेरी पत्नी से कहा, ‘‘इस बढि़या साड़ी के लिए धन्यवाद. अब यह बताइए कि वोट किस पार्टी को देना है?’’ हम पतिपत्नी चकित रह गए. हम ने सोचा भी नहीं था कि चुनाव निकट हैं और वोट के लिए उम्मीदवार उपहारों की बौछार करते हैं निजी स्वार्थ के लिए.

सत्य स्वरूप दत्त

*

घटना मेरे एक रिश्तेदार के विवाह की है. विवाहपंडाल के गेट के अंदर एक गुब्बारे वाला आ कर खड़ा हो गया. वह आसपास खड़े छोटे बच्चों को गुब्बारे देने लगा. कई बच्चों ने सुंदर आकृति वाले महंगे गुब्बारे ले लिए. उन्हें ले कर जैसे ही बच्चे आगे बढ़ने को हुए, गुब्बारे वाले ने बच्चों के मातापिता से उन की कीमत मांग ली. यह देख कर वे हैरान रह गए. उन में से कुछ के चेहरे देखने लायक थे.

कुछ लोग यही समझ बैठे थे कि अनेक शादियों में बच्चों को लुभाने वाली अनेक चीजें, जैसे जोकर, झूले, गेम्स या पौपकौर्न आदि लोग रखते है, वैसे ही गुब्बारे भी मुफ्त (फ्री) हैं. लोगों की नाराजगी देख कर गुब्बारे वाले ने पैसे ले कर जल्दी ही बाहर जाने में भलाई समझी.       

सिद्धांत कुमार

आखिर क्यों घटा भारत का जीडीपी ग्रोथ रेट

वित्त वर्ष 2017 के दौरान सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की विकास दर 7.1 फीसदी रही. वहीं वित्त वर्ष की चौथी तिमाही (जनवरी से मार्च) के दौरान जीडीपी विकास दर 6.1 फीसदी रही है. कृषि क्षेत्र के काफी अच्छे प्रदर्शन के बावजूद वृद्धि दर नीचे आई है.

सरकार ने 500 और 1,000 के बड़े मूल्य के पहले से चल रहे नोटों को आठ नवंबर को बंद करने की घोषणा की थी. इस नोट बदलने के काम में 87 फीसदी नकद नोट चलन से बाहर हो गए थे. नोटबंदी के तत्काल बाद की तिमाही जनवरी-मार्च में वृद्धि दर घटकर 6.1 फीसदी रही है.

केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) के आंकड़ों के अनुसार 31 मार्च को समाप्त वित्त वर्ष में सकल मूल्यवर्धन (जीवीए) घटकर 6.6 फीसदी पर आ गया, जो कि 2015-16 में 7.9 फीसदी रहा था. नोटबंदी से 2016-17 की तीसरी और चौथी तिमाही में जीवीए प्रभावित हुआ है. इन तिमाहियों के दौरान यह घटकर क्रमश: 6.7 फीसदी और 5.6 फीसदी पर आ गया. जो इससे पिछले वित्त वर्ष की समान तिमाहियों में 7.3 और 8.7 फीसदी रहा था.

नोटबंदी के बाद कृषि को छोड़ कर अन्य सभी क्षेत्रों में गिरावट आई. विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर चौथी तिमाही में घटकर 5.3 फीसदी रह गई. जो एक साल पहले समान तिमाही में 12.7 फीसदी रही थी. निर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर भी नकारात्मक रही. बेहतर मानसून की वजह से कृषि क्षेत्र को फायदा हुआ. 2016-17 में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 4.9 फीसदी रही, जो इससे पिछले वित्त वर्ष में 0.7 फीसदी रही थी. चौथी तिमाही में कृषि क्षेत्र का जीवीए 5.2 फीसदी बढ़ा, जबकि 2015-16 की समान तिमाही में यह 1.5 फीसदी बढ़ा था.

कोयला, कच्चा तेल व सीमेंट उत्पादन में गिरावट के चलते नए वित्त वर्ष में भी आठ बुनियादी उद्योगों की वृद्धि दर अप्रैल में घटकर 2.5 फीसदी रही. इन उद्योगों ने पिछले साल अप्रैल में 8.7 फीसदी वृद्धि दर्ज की थी. इनमें उद्योग कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्पाद, उर्वरक, इस्पात, सीमेंट और बिजली शामिल हैं. सरकारी आंकड़ों के अनुसार कोयला, कच्चा तेल व सीमेंट उत्पादन में क्रमश: 3.8 फीसदी, 0.6 फीसदी व 3.7 फीसदी की गिरावट आई.

प्रमुख क्षेत्रों में धीमी वृद्धि से औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आइआइपी) पर भी असर पड़ेगा, क्योंकि कुल औद्योगिक उत्पादन में इन क्षेत्रों का योगदान करीब 38 फीसदी है. रिफाइनरी उत्पाद व बिजली उत्पादन की वृद्धि दर अप्रैल में कम होकर क्रमश: 0.2 फीसदी और 4.7 फीसदी रही, जो पिछले साल इसी माह में क्रमश: 19.1 फीसदी व 14.5 फीसदी थी. हालांकि प्राकृतिक गैस, उर्वरक और इस्पात क्षेत्र में क्रमश: 2 फीसदी, 6.2 फीसदी व 9.3 फीसदी की वृद्धि हुई.

अर्थशास्त्री इस गिरावट की बड़ी वजह कंस्ट्रक्शन और नॉन फूड क्रेडिट सेक्टर के कमजोर प्रदर्शन को मान रहे हैं. गौरतलब कि चौथी तिमाही में कंस्ट्रक्शन सेक्टर की ग्रोथ पिछली तिमाही के 6 फीसदी से घटकर -3.7 फीसदी रही है. वहीं सालाना आधार पर इस सेक्टर की ग्रोथ 5 फीसदी से घटकर 1.7 फीसदी रह गई है.

नॉन फूड फाइनेंस सेक्टर में मंदी

बैंकों इस तिमाही में कर्ज का वितरण कम कर सके. खासतौर पर नॉन फूड फाइनेंस सेक्टर में कर्ज का वितरण धीमा रहा. तिमाही आधार पर फाइनेंनशियल, इंश्योरेंस, रियल्टी और प्रोफेशनल सर्विसेज की ग्रोथ 9 फीसदी से घटकर 2.2 फीसदी रह गई. वहीं सालाना आधार पर वित्त वर्ष 2017 में इस सेक्टर की ग्रोथ 10.8 फीसदी से घटकर 5.7 फीसदी रही.

संशोधित हुई दरें

वित्त वर्ष 2015 की जीडीपी ग्रोथ 7.2 फीसदीी से संशोधित होकर 7.5 फीसदीी हो गई. वित्त वर्ष 2014 की जीडीपी ग्रोथ 6.5 फीसदीी से संशोधित होकर 6.4 फीसदीी हो गई. वित्त वर्ष 2013 की जीडीपी ग्रोथ बिना बदलाव के 5.5 फीसदीी पर बरकरार रही.

ये हैं चैंपियंस ट्रॉफी के सबसे युवा खिलाड़ी

1 जून से आइसीसी चैंपियंस ट्रॉफी 2017 का आगाज हो रहा है. टूर्नामेंट में वनडे क्रिकेट के 8 धुरंधर देश खिताब जीतने के इरादे से मैदान पर उतरेंगे. डिफेंडिंग चैंपियन टीम इंडिया अपना खिताब बचाना चाहेगी. सभी 8 टीमों में कुछ युवा खिलाड़ी होंगे और कुछ सीनियर खिलाड़ी. अनुभव और युवा जोश का ये मिश्रण हर टीम की ताकत होगी.

आइए आपको रूबरू करवाते हैं चैंपियंस ट्रॉफी के 5 सबसे युवा खिलाड़ी जो मैदान पर दिखायेंगे अपना जलवा.

शादाब खान (पाकिस्तान)

पाकिस्तान के स्पिनर शादाब खान की उम्र 18 वर्ष 240 दिन है और वो इस बार टूर्नामेंट में खेलने वाले सबसे कम उम्र के खिलाड़ी होंगे. पाकिस्तान अंडर-19 टीम में दम दिखाने के बाद उनको राष्ट्रीय टीम में जगह मिली है.

मेहदी हसन (बांग्लादेश)

बांग्लादेश के मेहदी हसन की उम्र 19 वर्ष 219 दिन है. वो इस टूर्नामेंट में उतरने वाले दूसरे सबसे कम उम्र के खिलाड़ी होंगे. इस युवा ऑलराउंडर को भी अंडर-19 क्रिकेट में अच्छा प्रदर्शन करने के बाद राष्ट्रीय टीम का बुलावा मिला.

मोसाडेक होसैन (बांग्लादेश)

तीसरे नंबर पर भी बांग्लादेश के ही खिलाड़ी का कब्जा है. मोसाडेक की उम्र 21 वर्ष 172 दिन है. वो एक बेहतरीन बल्लेबाज हैं और तमाम क्रिकेट लीग में भी अपना दम दिखा चुके हैं.

एंडाइल फेहलुकवायो (दक्षिण अफ्रीका)

एंडाइल दक्षिण अफ्रीका के पेसर-ऑलराउंडर हैं. उनकी उम्र इस समय 21 वर्ष 89 दिन है. वो अब तक अपने देश की तरफ से 16 वनडे मैच खेल चुके हैं.

कगीसो रबाडा (दक्षिण अफ्रीका)

चैंपियंस ट्रॉफी में खेलने वाले पांचवें सबसे कम उम्र के खिलाड़ी हैं दक्षिण अफ्रीकी गेंदबाज कगीसो रबाडा. वो कुछ दिन पहले ही 22 साल के हुए हैं. साथ ही साथ चैंपियंस ट्रॉफी से ठीक पहले इस युवा गेंदबाज ने गेंदबाजों की आइसीसी वनडे रैंकिंग के शीर्ष स्थान पर भी कब्जा जमा लिया है.

सपनों से हासिल होती है मंजिल

हाल ही में एक कहानी पढ़ी थी. एक अनपढ़ लड़का था, भेड़-बकरियां चरा कर या लोगों के छोटे-मोटे काम करके अपना गुज़ारा करता था. पास में ही एक बौद्ध मठ था जो अपने ज्ञान के लिए विख्यात था. एक दिन उस लड़के ने सोचा कि मेरा जीवन यूं ही व्यर्थ बीत जाएगा, क्यों न मठ में जाकर लोगों की सेवा करूं. काम का काम हो जाएगा और दो अक्षर ज्ञान के कानों में पडेंगे तो जीवन संवर जाएगा. बस जा पहुंचा मुख्य लामा के पास और जाकर बोला कि “मैं बरतन साफ करने से लेकर साफ-सफाई तक हर काम करने को तैयार हूं, पर आप मुझे अपनी शरण में ले लें”. लामा उसे ऊपर से नीचे देखते हुए बोले कि “हर इंसान को अपनी उपयोगिता सिद्ध करनी होती है. तुमको भी करनी होगी. तुममें कोई हुनर है?”

“हुनर. हुनर तो कोई नहीं लेकिन हां मुझे शतरंज खेलनी आती है. बचपन में सीखी थी.”

शतरंज मंगवाई गई और दोनों खेलने बैठ गए. “रुको, शतरंज का खेल शुरू करने से पहले एक शर्त रखते हैं कि जो जीतेगा वो हारनेवाले की नाक काटेगा. बोलो मंज़ूर है?”

लड़के ने हामी भर दी और खेल शुरू हुआ. लड़का लामा के सामने घबराया सा था सो हारने लगा. हारता गया, फिर उसकी नज़र तलवार पर पड़ी और शर्त याद आ गई. नाक कटने के डर से अब संभल कर खेलना शुरू हुआ और एक-एक करके बाजियां जीतने लगा. लामा के चेहरे पर चिंता के भाव आने लगे. आखिरी बाजी थी और जीत लड़के के पाले में थी. जैसे ही वो आखिरी बाजी चलने लगा. रुक गया. सोचने लगा कि अगर हारने पर मेरी नाक कट जाए तो किसी को कोई फर्क नहीं पड़ेगा पर लामा की नाक कटी तो लोग इनका मजाक बनांएगे. हो सकता है शर्म के मारे लामा शिक्षा देना बंद कर दें. इससे कितने विद्यार्थियों का नुकसान होगा. और उसने अगली चाल गलत चल दी और हार गया. लामा मंद-मंद मुस्कराने लगे और बोले कि आज से तुम इस मठ में रह सकते हो. शिष्यों ने पूछा कि हारने पर नाक काटने की बजाए आप इसे निरक्षर को मठ में रख रहे हैं.

“मैं इसके हालातों को शांतिपूर्वक संभालने के हुनर और दूसरों के प्रति करूणामय रवैये के कारण इसे यहां रहने की अनुमति दे रहा हूं. ये चाहता तो मुझे आसानी से हरा सकता था पर इसने ऐसा नहीं किया. जो इंसान जीवन में अपनी गलतियों से सीखता है वे असफल होकर भी सफल हो जाता है.”

मैं सोचने लगी कि कितनी बड़ी फिलासफी है इस कहानी में. कई बार होता है कि हम सही रास्ते पर चल रहे होते हैं लेकिन शुरुआती नाकामियों से रास्ता बदल लेते हैं फिर जब कभी पीछे मुड़कर देखने का मौका मिलता है तो पता चलता है कि मंजिल कितने करीब थी. गलतियों से सीखने की बजाए दूसरों में. मौकों में कमियां निकालने लग जाते हैं. हो सकता है जितनी समझदारी से आज चीजों को समझ रहे हैं,अनुभव की कमी के कारण. मकसदहीनता के कारण तब न समझ पा रहे हों, चाहे कैरियर हो, शौक हों या रिश्ते हर चीज समय और निष्ठा मांगती है. लगन से आप बड़ी से बड़ी मुश्किलों को पार कर लेते हैं. स्टीव ने एप्पल का आविष्कार गैराज में किया था. एडीसन की लैब रेल का डिब्बा था. हालातों को मेहनत और धैर्य से बदला जा सकता है.

किसी ने सही कहा है कि अगर किसी बड़े काम को करना है तो रोज थोड़ा-थोड़ा करो. रोज़ थोड़ा-थोड़ा करने से एक दिन वो पूरा खत्म हो जाएगा. पर छोड़ देने से कभी नहीं. सपने देखने के साथ-साथ उन्हें पूरा करने का हौंसला भी रखना पड़ता है क्योंकि तरक्की का कोई शार्ट कट नहीं होता, बस वो कदम हैं जो चाहे छोटे हैं पर हैं आगे की ओर. और जो कदम चल रहे हैं वो हमें मंजिल तक जरूर पहुंचाते हैं. अब्राहम लिंकन ने कहा है कि मैं चाहे धीमे चलता हूं पर चलता आगे की और हूं. कभी नहीं भूलना चाहिए कि हर कामयाब संस्थान पहले विचार होती है, फिर कागज और फिर इमारत. हमारी इमारत भी हमारे हौंसलों की तामील है.

– विम्मी करण सूद

..तो ऑस्ट्रेलियाई टीम की जर्सी पहनकर घूमेंगे दादा

दुनिया की टॉप-8 क्रिकेट टीमें आज से शुरू हो रहे मिनी वर्ल्ड कप यानी चैंपियंस ट्रॉफी में खिताबी मुकाबले के लिए कमर कस चुकी है. एक जून से 18 जून तक चलने वाले इस टूर्नामेंट में दो सेमीफाइनल और एक फाइनल सहित कुल 16 मैच खेले जाएंगे. 2013 में हुए पिछले सीजन में खिताब अपने नाम करने वाली भारतीय टीम खिताब बचाने के इरादे से मैदान पर उतरेगी.

इस महामुकाबले से पहले दुनिया भर के दिग्गजों ने अपने पसंदीदा टीमों का चयन कर लिया है. इन्हीं नामों में पूर्व कप्तान सौरव गांगुली और दिग्गज लेग स्पिनर शेन वॉर्न भी शामिल हैं.

एक निजी चैनल के प्रोग्राम में पहुंचे दोनों पूर्व खिलाड़ियों ने खुल कर बताया कि कौन-कौन सी टीमें खिताब की प्रबल दावेदार हैं. साथ ही यह भी बताया कि इस प्रतियोगिता किन खिलाड़ियों को दबदबा रहेगा. साथ ही टीम इंडिया के सामने खड़ी सबसे बड़ी चुनौतियों पर भी चर्चा की गई. इस मौके पर पूर्व वर्ल्ड कप चैंपियन कप्तान माइकल क्लार्क ने भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच फाइनल के भविष्यवाणी की.

मगर टीम इंडिया के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली इस बात से इत्तेफाक रखते नजर नहीं आए. दादा ने कहा कि इंग्लैंड अपने घर में काफी खतरनाक है और उसने हाल ही में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ वनडे सीरीज जीती है. ऐसे में वो इस खिताब की प्रबल दावेदार है. इस पर दिग्गज स्पिनर शेन वॉर्न ने कहा कि भारत किसी भी कंडीशन में अच्छा खेल सकती है और इसी वजह से वो भी खिताब की बड़ी दावेदार है.

इस मौके पर वॉर्न ने चुटकी लेते हुए दादा से शर्त भी लगा ली. वॉर्न ने कहा कि यदि ऑस्ट्रेलिया चैंपियंस ट्रॉफी जीत जाता है तो सौरव को एक दिन के लिए ऑस्ट्रेलियाई जर्सी पहननी होगी और यदि इंग्लैंड जीता, तो वॉर्न खुद इंग्लैंड की जर्सी पहनेंगे. दोनों ने एक-दूसरे की चुनौती को स्वीकार किया.

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