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हंसल मेहता के समर्थन में उतरे राजकुमार राव

हंसल मेहता निर्देशित फिल्म ‘‘सिमरन’’ का विवाद ठंडा होने का नाम नहीं ले रहा है. फिल्म के निर्देशक हंसल मेहता ने जब से कंगना रानौट को ‘एडीशनल स्क्रिप्ट एंड डायलाग राइटर’ की क्रेडिट दी है, तब से फिल्म ‘सिमरन’ के एडीटर व लेखक अपूर्वा असरानी लगातार हंसल मेहता पर आरोपों की बौछार लगाए हुए हैं. अपूर्वा असरानी ने हंसल मेहता को कायर व बिना रीढ़ वाला इंसान कह दिया है. मगर पूरी फिल्म इंडस्ट्री चुप है. जो लोग हंसल मेहता के संग काम कर चुके हैं, वह भी मूक दर्शक बने हुए हैं.

मगर हंसल मेहता की हर फिल्म में अभिनय करने वाले अभिनेता राज कुमार राव ने हंसल मेहता का पक्ष लेते हुए अपनी जुबान खोली है. राज कुमार राव ने कहा है,‘‘अपूर्वा का आहत होना ठीक है. मगर हंसल मेहता कायर या बिना रीढ़ की हड्डी वाले कमजोर इंसान नहीं है…..’’ वाह क्या बात है..बालीवुड में लोग राज कुमार राव की इस स्वामी भक्ति के कायल हो गए हैं..बालीवुड से जुड़े कुछ लोगों की राय में राज कुमार राव के लिए हंसल मेहता की तारीफ में बोलना मजबूरी है. उन्हे कुछ अच्छी फिल्में करने का अवसर हंसल मेहता ने ही दिया है.

मगर राज कुमार राव यह भूल जाते हैं कि बिना अच्छी पटकथा के कोई फिल्म अच्छी नहीं बन सकती. इसलिए लेखक को नजरंदाज नहीं किया जा सकता. इतना ही नहीं राज कुमार राव यह भी भूल गए कि जिन फिल्मों में राज कुमार राव ने कंगना रानौट के साथ काम किया, उन फिल्मों की सारी क्रेडिट कंगना रानौट ही खा गयी, उन्हे सफल फिल्म का श्रेय तक नहीं मिला.

बहरहाल, विद्या बालन ने कंगना रानौट की अतिमहत्वाकांक्षा पर अपरोक्ष रूप से तंज कसते हुए एक तस्वीर सोशल मीडिया पर डाली है.

मिरर गेम:अब खेल शुरू – मनोविज्ञान पर स्तरहीन फिल्म

मूलतः आईटी प्रोफेशनल विजित शर्मा पहली बार बतौर लेखक व निर्देशक रहस्य व रोमांच प्रधान मनोवैज्ञानिक फिल्म ‘‘मिरर गेमःअब खेल शुरू’’ लेकर आए हैं. मनोचिकित्सक प्रोफेसर के इर्द गिर्द घूमने वाली यह फिल्म प्रभावित नहीं करती. दर्शकों को दुविधा में डालने के प्रयास में रहस्यमय परिस्थितियों को पैदा करते हुए लेखक निर्देशक स्वयं कन्फ्यूज हो गए हैं.

फिल्म की कहानी के केंद्र में मनोचिकित्सक प्रोफेसर जय वर्मा (परवीन डबास) हैं. प्रोफेसर वर्मा के एक विद्यार्थी रणवीर भार्गव ने दो वर्ष पहले आत्महत्या कर ली थी, जिसके लिए प्रोफेसर जय वर्मा खुद को दोषी मानते हैं, इसलिए वह अपना ईलाज डा.सोनल से करवा रहे हैं. वह अपने प्रोफेसर के काम को भी सही ढंग से अंजाम नहीं दे पा रहे हैं. विश्वविद्यालय में उनकी पत्नी तान्या वर्मा (शान्ति अकिनेनी) का रोनी (ध्रुव बाली) के साथ रोमांस की चर्चाएं हैं. पर जय वर्मा को तान्या के प्रेमी का नाम नहीं पता. घर के अंदर पति पत्नी के बीच मधुर संबंध नहीं हैं. तान्या चाहती है कि जय वर्मा उसे तलाक दे दे, मगर जय वर्मा ऐसा नहीं करना चाहते. जय की सोच है कि जो उनकी नहीं हो सकती, वह दूसरे की कैसे हो जाए. इसलिए वह तान्या की हत्या करना चाहते हैं.

इस बीच रोनी उनके पास विद्यार्थी बनकर आता है और उनसे अपने शोधकार्य में मदद चाहता है. जय वर्मा को लगता है कि इसके माध्यम से वह अपना काम कर सकते हैं. जय वर्मा, रोनी की मदद इस शर्त पर करने के लिए तैयार होते हैं कि वह उनकी पत्नी की हत्या उनकी योजना के अनुसार कर दे. जय वर्मा की योजना है कि वह रोनी व तान्या दोनों को खत्म कर देंगे. उसके बाद शुरू होता है रहस्य का खेल.

तान्या के गायब हो जाने के बाद पुलिस की जांच शुरू होती है. पुलिस जांच अधिकारी शेणाय (स्नेहा रामचंद्रन) पुलिस मनोचिकित्सक डा. राय (पूजा बत्रा) भी इस जांच का हिस्सा बन जाती हैं. पुलिस को लगता है कि जय वर्मा सीजोफ्रेनिया का शिकार है. उसके दो रूप हैं और उसी ने अपनी पत्नी तान्या को गायब किया है. पता चलता है कि यह रोनी ही तान्या का प्रेमी है जो कि प्रोफेसर जय वर्मा से अपने भाई रणवीर भार्गव की मौत का बदला लेने के लिए तान्या से झूठा प्यार का नाटक कर रहा है. जय वर्मा के फंस जाने पर  रोनी खुद ही तान्या को सच बताकर उसकी हत्या कर देता है. उधर जय वर्मा की शतरंजी चाल में फंस कर रोनी मारा जाता है. बाद में जय वर्मा भी सारे आरोपों से बरी हो जाते हैं. और डा. सोनल के साथ नई जिंदगी शुरू करते हैं.

लेखक निर्देशक विजित शर्मा यदि अपनी फिल्म को इंसानी मनोविज्ञान तक ही सीमित रखते तो शायद फिल्म बेहतर बन जाती. मगर बदले की भावना की कहानी के साथ दर्शकों के मन में शक की सुई इधर उधर घुमाने के चक्कर में जिस तरह के घटनाक्रम गढ़े गए हैं, उससे फिल्म स्तरहीन हो जाती है. फिल्म सीजोफ्रेनिया और मल्टीपल पर्सनालिटी डिसआर्डर की बात करती है, मगर लेखक व निर्देशक की अपनी कमजोरियों के चलते यह बात ठीक से उभर नहीं पाती कि इस तरह की बीमारी से ग्रसित इंसान के दिमाग में उस वक्त क्या चल रहा होता है.

इस विषय पर अति रोचक व अति संजीदा फिल्म बन सकती थी, लेकिन विजित शर्मा पूरी तरह से असफल रहे. पूरी फिल्म में एक भी दृश्य में जय वर्मा अपनी दिमागी बीमारी से जूझते नजर नहीं आते. दवा का सेवन बंद करने के बावजूद वह एक उच्च स्तर के प्रोफेसर की तरह कई तरह की बुद्धिमत्तापूर्ण योजनाएं बनाते रहते हैं. दूसरी बात फिल्म में तकनीकी शब्द उपयोग किए गए हैं और उनका अर्थ भी नहीं स्पष्ट किया गया, जिससे आम दर्शक बोर हो जाता है. किसी भी किरदार को पूरी गहराई के साथ पेश नहीं किया गया. फिल्म का अंत क्या होगा, यह इंटरवल से पहले ही समझ में आ जाता है.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो परवीन डबास और शांति अकिनेनी ने ठीक ठाक अभिनय किया है. मगर सीजोफ्रेनिया ग्रसित इंसान की दिमागी हालत को परवीन डबास ठीक से परदे पर नहीं ला सके, अब इसमें पटकथा लेखक व निर्देशक की भी कमजोरी रही है. पर फिल्म में पूजा बत्रा को छोटे से किरदार में जाया किया गया है. स्नेहा रामचंद्रन का किरदार भी उभर नही पाता. ध्रुव  बाली कुछ दृश्यों में ही जम पाए हैं.

एक घंटे 47 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘मिरर गेमःअब खेल शुरू’’ का निर्माण राहुल कोचर, सह निर्माण, लेखन व निर्देशन विजित शर्मा ने किया है. कैमरामैन जोश इथेवारिया, गीतकार सिद्धांत कौशल तथा कलाकार हैं-परवीन डबास, पूजा बत्रा, ध्रुव बाली,  स्नेहा रामचंद्रन, शांति अकिनेनी व अन्य.

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