सरकार घरेलू उत्पाद को बढ़ावा देने की नीति पर तेजी से काम कर रही है. इस के लिए हाल में राष्ट्रीय इस्पात नीति को मंत्रिमंडल ने मंजूरी प्रदान की है. इस से पहले राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति बनाई गई जिसे भी संसद से मंजूरी मिल चुकी है. लोकसभा में यह नीति व्यापक विचारविमर्श के बाद पारित हुई है.

अब सरकार इस्पात के लिए राष्ट्रीय नीति बना रही है. इसे घरेलू स्तर पर तैयार किया जा सकेगा. लेकिन सवाल यह है कि घरेलू स्तर पर तैयार होने वाले इस्पात के लिए नीति क्यों बनाई जा रही है? निविदाओं में घरेलू इस्पात के इस्तेमाल पर जोर देने के लिए सरकार को विवश क्यों होना पड़ रहा है? इन का सीधा जवाब यही है कि आयात किए जाने वाले स्टील की तुलना में देश में तैयार होने वाला इस्पात गुणवत्ता के लिहाज से कमजोर है.

कम गुणवत्ता वाला इस्पात कौन और क्यों तैयार किया जा रहा है, इस पर ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है. भ्रष्टाचार निश्चितरूप से इस की बुनियाद में है और उस पर नकेल कसे जाने की आवश्यकता है. कई बार घरेलू उत्पाद ज्यादा अच्छे होते हैं लेकिन उपभोक्ता उस के महंगा होने के कारण देश में कचरा बढ़ा रहे चीनी सामान की तरफ ज्यादा आकर्षित होता है.

चीनी सामान कीमत के लिहाज से राहत देने वाला है लेकिन वह टिकाऊ बिलकुल नहीं है, फिर भी पूरा देश चीनी सामान खरीद रहा है और उस की बिक्री ने घरेलू उत्पादों का कारोबार ठप कर दिया है. सरकार को चाहिए कि वह घरेलू सामान की गुणवत्ता बढ़ाने और उस के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए भी नीति बनाए ताकि देश में कचरा पैदा करने वाले हलकेफुलके चीनी माल की खरीद पर रोक लगाई जा सके.

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