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प्यार ही बना प्यार की राह का कांटा

घंटी बजते ही फराह ने मोबाइल उठा कर स्क्रीन पर नजर डाली तो अनायास ही उस के मुंह से निकल गया, ‘अम्मी का फोन.’ फोन रिसीव करते हुए उस ने उत्साह से कहा, ‘‘अम्मी सलाम.’’

‘‘वालेकुम सलाम, कैसी हो फराह?’’ अम्मी ने पूछा.

‘‘ठीक हूं अम्मीजान, आप कैसी हैं?’’

‘‘सब ठीक है बेटी, आप के शौहर हैं घर पर?’’

‘‘वह तो दुकान पर गए हैं. क्यों, क्या बात है?’’ फराह ने पूछा.

‘‘कोई खास बात नहीं है. आज सलीम मामू के बेटे शोएब की बर्थडे पार्टी है, आप दोनों को भी आना है. शोएब खासतौर पर तुम दोनों के लिए कह कर गया है.’’

‘‘हम उन से पूछ लेंगे, अगर इजाजत दे दी तो जरूर आएंगे.’’ कह कर फराह ने फोन काट दिया. इस के बाद उस ने अपने शौहर पुष्पेंद्र को फोन कर के घर बुला लिया. पुष्पेंद्र ने इस तरह बुलाने की वजह पूछी तो फराह ने कहा, ‘‘अम्मी का फोन आया था, कह रही थीं कि हम दोनों को मामू के यहां बर्थडे पार्टी में आना है.’’

‘‘तुम ने क्या कहा?’’ पुष्पेंद्र ने पूछा.

‘‘मैं क्या कहती, कह दिया कि इजाजत मिली तो जरूर आ जाएंगे.’’ फराह बोली.

‘‘तुम चली जाओ. बेटी को भी साथ ले जाओ. मैं तुम दोनों को छोड़ आऊंगा. तुम तैयारी करो, जब तैयार हो जाओ तो मुझे फोन कर देना, मैं दुकान से आ जाऊंगा.’’ पुष्पेंद्र ने कहा.

जवाब में फराह बोली, ‘‘आप बिना वजह परेशान होंगे. हम दोनों रिक्शे से चले जाएंगे.’’

‘‘ठीक है, पर रात गहराती दिखे तो फोन कर देना. मैं छोड़ आऊंगा.’’ कह कर पुष्पेंद्र दुकान पर चला गया.

फराह बेटी स्नेहा को तैयार कर के खुद तैयार होने लगी. तैयार होने के बाद फराह बेटी को ले कर रिक्शे से मायके पहुंचीं तो वहां उस के बड़े भाई तारिक और अम्मी तैयार थे, उन्हें ले कर फराह शोएब की बर्थडे पार्टी में शामिल होने मामू के घर पहुंच गईं.

चांद सी सुंदर फराह को आया देख शोएब ने पलकें बिछा दीं. जब तक फराह वहां रही, वह उसी के इर्दगिर्द घूमता रहा, उस की खातिरदारी में लगा रहा. घर जाने से पहले फराह ने शोएब से हंसते हुए कहा, ‘‘शोएब, अब मैं आप के निकाह की दावत खाने वलीमा में ही आऊंगी.’’

‘‘आप मुझे बददुआ मत दीजिए. मैं निकाह की बात ख्वाब में भी नहीं सोच सकता.’’ शोएब ने दुखी स्वर में कहा.

‘‘क्यों, कहीं प्यार में चोट खाई है क्या आप ने?’’ चंचल स्वभाव की फराह ने यूं ही पूछ लिया.

‘‘कुछ लोगों को तो मन की मुरादें मिल जाती हैं, जबकि कुछ लोग मेरी तरह रह जाते हैं.’’

‘‘क्यों नहीं हो पाई मुराद पूरी?’’ फराह ने यूं ही पूछ लिया.

‘‘मेरी ही गलती थी फराह, जिसे मैं चाहता था, उस से कभी कह नहीं पाया कि मैं तुम्हें प्यार करता हूं.’’

‘‘कौन थी वह और अब कहां है? आप मुझे बताएं. मैं बात करती हूं उस से.’’ फराह ने अफसोस जताते हुए शोएब से मदद की पेशकश की.

‘‘क्या करेंगी जान कर आप?’’ कह कर शोएब ने पल्ला झाड़ना चाहा, पर फराह अपनी आदत से मजबूर थी.

वह उस के पीछे पड़ने वाले अंदाज में बोली, ‘‘शोएब, अगर तुम उसे दिल से चाहते हो तो मैं वादा करती हूं, वह तुम्हारे कदमों में होगी. मुझे पूरा यकीन है, वह तुम्हें जरूर मिल जाएगी.’’

‘‘अगर हम आप से कहें कि वह लड़की आप ही थीं तो..?’’ शोएब ने मन की बात कह दी.

‘‘शोएब, लगता है आप की दीवानगी से आप का दिमाग घूम गया है.’’ चेहरे पर हलका सा गुस्सा लाते हुए फराह ने कहा, ‘‘आप मेरे मुंह पर ही मेरी मोहब्बत को गाली दे रहे हैं. यह जानते हुए भी कि मैं किसी की बीवी हूं और एक बच्ची की मां भी.’’

‘‘आप खामख्वाह ताव में आ गईं. आप पूछती रहीं और मैं टालने की कोशिश करता रहा. लेकिन आप ने मुझे मजबूर कर दिया तो मैं अपने जज्बात को छिपा नहीं पाया.’’ कह कर शोएब वहां से चला गया.

फराह अपनी 7 साल की बेटी स्नेहा के साथ घर लौट आई. दुकान पर दोस्तों के साथ गप्पें मारता पुष्पेंद्र उसी के फोन का इंतजार कर रहा था. रात साढ़े 10 बजे फराह ने फोन कर के कहा, ‘‘आज घर नहीं आना क्या?’’

‘‘तुम अकेली ही आ गईं? मैं तो तुम्हारे फोन का इंतजार कर रहा था, बता देतीं तो मैं आ जाता लेने.’’

‘‘बड़े भाई छोड़ गए थे. आप घर आ जाइए.’’ कह कर फराह ने पूछा, ‘‘सब्जी क्या बनाऊं?’’

‘‘खाना बनाने की जरूरत नहीं है. मैं ने होटल से मंगा कर खा लिया है. मैं घर आ रहा हूं.’’ कह कर पुष्पेंद्र ने दुकान का शटर गिरा कर ताले लगाए और मोटरसाइकिल से घर के लिए चल पड़ा.

फराह और पुष्पेंद्र एकदूसरे पर जान न्यौछावर करते थे. दोनों की मुलाकात सन 2006 में अलीगढ़ शहर के एक सिनेमाघर में हुई थी. पुष्पेंद्र शहर के थाना सासनीगेट के मोहल्ला खिरनीगेट (हाथरस अड्डा) निवासी हेमेंद्र अग्रवाल का बड़ा बेटा था. वह अपने पिता के साथ कारोबार में हाथ बंटाता था.

जबकि फराह शहर के थाना सिविललाइंस की पौश कालोनी मैरिस रोड निवासी मोहम्मद शमीम की बेटी थी. उन की 2 संतानों में बड़ा बेटा था तारिक और छोटी बेटी थी फराह. मांबाप के लाड़प्यार ने खूबसूरत फराह को बंदिशों से आजाद कर रखा था.

पुष्पेंद्र से हुई मुलाकात में न जाने ऐसी क्या कशिश थी कि फराह के दिल में अजीब सी हलचल मच गई थी. यही वजह थी कि सिनेमाहाल में बैठेबैठे दोनों ने एकदूसरे के नाम तक जान लिए थे. इतना ही नहीं, दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर भी दे दिए थे.

इस के बाद दोनों के बीच मोबाइल पर लंबीलंबी बातें होने लगीं. इस का नतीजा यह निकला कि फराह और पुष्पेंद्र ने जल्दी ही एकदूसरे के दिलों में ऐसी जगह बना ली, जहां से पीछे लौटना संभव नहीं था. दोनों ने प्यार में साथसाथ जीनेमरने की कसमें खाते हुए वादा कर लिया कि जल्दी ही शादी के बंधन में बंध कर अपनी अलग दुनिया बसा लेंगे.

आखिर पुष्पेंद्र ने फराह की जिद पर कोर्ट मैरिज कर ली. जब वह फराह को दुलहन के रूप में ले कर घर पहुंचा तो उसे उलटे पांव लौटना पड़ा. घर वालों ने मुसलिम लड़की को बहू के रूप में स्वीकार नहीं किया और साफ कह दिया कि वह उसे ले कर कहीं दूसरी जगह जा कर रहे.

पुष्पेंद्र ने जरा भी हिम्मत नहीं हारी. फराह को ले कर वह कभी कहीं तो कभी कहीं रहता रहा. दूसरी ओर कट्टरपंथियों ने फराह द्वारा एक हिंदू युवक से शादी करने की बात को तूल दे कर अलीगढ़ में तनाव की स्थिति पैदा करने की कोशिश की.

लेकिन फराह की दृढ इच्छाशक्ति के सामने कट्टरपंथियों को घुटने टेकने पड़े. धीरेधीरे माहौल शांत हो गया. कुछ समय बाद पुष्पेंद्र ने फराह के नाम शहर की पौश कालोनी मैरिस रोड पर नंदनी अपार्टमेंट में 55 लाख रुपए में एक शानदार फ्लैट खरीदा और उसी में रहने लगा. पुष्पेंद्र थोक दवाओं की बाजार फफाला मार्केट में दवाइयों की थोक की दुकान थी. वह अपनी उसी दुकान पर बैठता था. चूंकि आमदनी अच्छी थी, इसलिए उसे परिवार द्वारा अलग कर दिए जाने के बाद भी कोई परेशानी नहीं हुई.

डेढ़ साल बाद फराह और पुष्पेंद्र एक बेटी के मातापिता बन गए. उन्होंने बेटी का नाम रखा स्नेहा. धीरेधीरे 4 साल गुजर गए. गुजरते वक्त के साथ फराह के मायके वालों की उस के प्रति कटुता खत्म होती गई. जब फराह की मां का दिल नहीं माना तो उन्होंने एक दिन बेटी से फोन पर बात कर के घर आने का न्यौता दे दिया.

पुष्पेंद्र से पूछ कर फराह बेटी स्नेहा को ले कर मायके चली गई. जब मायके वालों को पता चला कि पुष्पेंद्र ने जो फ्लैट खरीदा है, वह फराह के नाम है तो उन्हें खुशी हुई. इस के बाद फराह मायके आनेजाना शुरू हो गया. धीरेधीरे मायके के अलावा दूसरी करीबी रिश्तेदारियों में भी उस का आनाजाना शुरू हो गया.

इसी के चलते फराह शोएब की बर्थडे पार्टी में गई थी, जहां शोएब से उस की जो बातें हुईं, उन्हें सुन कर उस के दिल को चोट सी लगी.

29 अक्तूबर, 2016 की रात फराह को जो खबर मिली, उसे सुन कर वह बेहोश हो कर गिर पड़ी. छोटी दिवाली की रात 9 बजे से पहले फराह ने पुष्पेंद्र को फोन कर के कहा था, ‘‘आप कह कर गए थे कि तैयार रहना बाजार चलेंगे. मैं तैयार हूं, आप आ जाइए.’’

पुष्पेंद्र ने 15 मिनट में आने को कह कर फोन काट दिया. वह दुकान बंद कर के केलानगर के पास पहुंचा ही था कि पीछा कर रहे बदमाशों ने उसे घेर लिया. उन्होंने पहले उस के साथ लूटपाट की, उस के बाद उसे गोली मार कर हत्या कर दी. लूटा हुआ माल ले कर वे फरार हो गए.

यह सूचना थाना क्वारसी पुलिस को मिली तो वह तुरंत घटनास्थल पर पहुंची. इंसपेक्टर श्रीप्रकाश चंद्र यादव ने आननफानन में घायल पुष्पेंद्र को अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

श्रीप्रकाश चंद्र यादव को पता चल गया था कि मृतक थोक दवा विक्रेता पुष्पेंद्र अग्रवाल है. उन्होंने उस की पत्नी फराह के साथसाथ उस के घर वालों को भी घटना की सूचना दे दी थी. हत्या की सूचना पा कर फराह का रोरो कर बुरा हाल था. वह बदहवास हालत में अस्पताल पहुंची तो पति की लाश देख कर बेहोश हो गई.

पुष्पेंद्र की विधवा मां राजरानी और घर के अन्य लोग भी रोतेबिलखते अस्पताल पहुंचे. इस घटना से क्षेत्र में सनसनी फैल गई थी. पुष्पेंद्र की हत्या की खबर पा कर जिला कैमिस्ट ऐंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष शैलेंद्र सिंह टिल्लू, महामंत्री आलोक गुप्ता भी अन्य पदाधिकारियों के साथ अस्पताल आ गए थे. उन्होंने पुलिस के प्रति आक्रोश जताते हुए हत्यारों को तुरंत पकड़ने की मांग की.

दवाई व्यापारी की हत्या की सूचना पर एसएसपी राजेश पांडेय, एसपी (सिटी) अतुल श्रीवास्तव, सीओ तृतीय राजीव सिंह भी घटनास्थल पर पहुंच गए थे. घटनास्थल का निरीक्षण कर के सभी लोग अस्पताल गए, जहां अध्यक्ष शैलेंद्र सिंह टिल्लू सहित तमाम दवा विक्रेताओं की पुलिस से नोकझोंक भी हुई. काफी मशक्कत के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजा जा सका.

लूट और हत्या का यह मामला थाना क्वारसी में अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज किया गया. एसपी (सिटी) के निर्देशन में थाना क्वारसी के थानाप्रभारी श्रीप्रकाश चंद्र यादव की टीम हत्यारों की टोह में लग गई. दवा विक्रेताओं की एसोसिएशन के अध्यक्ष शैलेंद्र सिंह टिल्लू ने पुलिस को अल्टीमेटम दिया कि अगर 7 दिनों में हत्याकांड का खुलासा नहीं हुआ तो सभी दवा व्यापारी हड़ताल करने को बाध्य हो जाएंगे.

30 अक्तूबर, 2016 दिवाली के दिन पोस्टमार्टम के बाद पुष्पेंद्र के शव को उस के पैतृक निवास हाथरस अड्डा, खिरनीगेट लाया गया, जहां नारेबाजी के साथ पुलिस को अल्टीमेटम दे कर अंतिम संस्कार किया गया. दवा व्यापारियों ने फफाला मार्केट बंद करने का ऐलान कर दिया. अगले दिन थोक दवा व्यापारियों ने एकजुटता का परिचय देते हुए सभी दुकानें बंद रखीं.

श्रीप्रकाश चंद्र यादव को घटना के तीसरे दिन इस बात का अहसास हो गया था कि पुष्पेंद्र की हत्या में अप्रत्यक्ष रूप से कहीं न कहीं उस की पत्नी फराह का हाथ है. लेकिन शोकग्रस्त पत्नी की हालत देखते हुए वे उस पर हाथ डालने में घबरा रहे थे. वैसे भी जब तक ठोस सबूत हाथ में न आ जाएं, तब तक पुलिस चुप ही रहना चाहती है. बहरहाल श्रीप्रकाश चंद्र रातदिन लग कर इस केस की कडि़यां जोड़ने में लगे थे.

पुलिस जब 7 दिनों में हत्याकांड का खुलासा करने के आश्वासन को पूरा नहीं कर सकी तो अध्यक्ष शैलेंद्र सिंह टिल्लू ने शहर भर की दवा की दुकानों को बंद करने का ऐलान कर दिया. शहर भर की दवा की दुकानें यहां तक कि निजी नर्सिंग होम के अंदर की दुकानों पर भी ताले जड़ दिए गए. 2 दिन तक दुकानों के बंद होने से मरीज इधरउधर भटकते रहे.

तीसरे दिन शहर के साथ ब्लौक और देहातों की दवाई की दुकानें भी बंद रखने का ऐलान कर दिया गया. पूरे अलीगढ़ जिले के दवाई व्यापारी दुकानें बंद कर के आंदोलन में शामिल हो गए. मरीजों की परेशानी के साथ पुलिस की कार्यशैली की चारों ओर भर्त्सना होने से एसएसपी राजेश पांडेय ने एसोसिएशन के सभी पदाधिकारियों के साथ मीटिंग कर कहा कि पुलिस हत्याकांड के खुलासे के एकदम करीब पहुंच चुकी है, इसलिए उन्हें 72 घंटे की मोहलत और दी जाए.

अध्यक्ष शैलेंद्र सिंह टिल्लू और अन्य उपस्थित पदाधिकारियों ने 72 घंटे की मोहलत दे कर दुकान खोलना स्वीकार कर लिया. इस के बाद पुलिस के काम में तेजी आ गई. एसपी सिटी के निर्देशन में लगी सर्विलांस टीम प्रभारी के साथ तेजतर्रार एसओजी प्रभारी छोटेलाल के अलावा कई अन्य तेजतर्रार पुलिस वालों को भी इस में लगा दिया गया.

2 दिनों तक यह टीम श्रीप्रकाश चंद्र यादव के साथ पुष्पेंद्र की हत्या व लूट के खुलासे में लगी रही, तब कहीं जा कर श्रीप्रकाश चंद्र को उम्मीद की किरण दिखाई दी. उन का अनुमान सही साबित हुआ. सीसीटीवी कैमरे और सर्विलांस की मदद से पता चला कि पुष्पेंद्र की हत्या में उस की पत्नी फराह और उस के प्रेमी शोएब, निवासी 179 नई आबादी, केलानगर, मैरिस रोड का हाथ था.

श्रीप्रकाश चंद यादव ने महिला पुलिस की मदद से मृतक की पत्नी फराह और उस के प्रेमी शोएब को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. पुलिस पूछताछ में फराह ज्यादा देर तक नहीं टिक सकी और अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

हत्या किस उद्देश्य से की गई, उस ने सब कुछ साफसाफ बता दिया. शोएब ने भी हत्या और लूट की कहानी बयान करते हुए अपने साथियों के नामपते बता दिए. पुलिस ने समय गंवाए बिना अरहम, निवासी मोहल्ला रंगरेजान मामूभांजा, थाना गांधीपार्क, अलीगढ़, दीपक चौधरी निवासी गांव आमरी, शिकोहाबाद, जिला फिरोजाबाद को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस उस के एक अन्य साथी आशू को गिरफ्तार नहीं कर पाई.

पुलिस ने गिरफ्तार किए गए शोएब, अरहम और दीपक से लूटे गए 1 लाख 53 हजार रुपयों में से 42 हजार रुपए के अलावा एक 32 बोर की पिस्टल, 2 तमंचे, कारतूस, करिज्मा बाइक नंबर यूपी81ए के5766, बैग और चाबियां बरामद कर लीं.

पूछताछ में फराह ने हत्या के बारे में विस्तार से जो कुछ बताया, उस से पुष्पेंद्र की हत्या की कहानी कुछ इस तरह सामने आई.

फराह जब शोएब की बर्थडे पार्टी में गई थी, वहां शोएब से हुई बातों के बाद उस का खिंचाव शोएब की ओर होने लगा था. फोन पर दोनों के बीच घंटों बातें होने लगी थीं. इस के बाद दोनों की घर के बाहर मुलाकातें भी होने लगीं. इन मुलाकातों ने जब जिस्मानी संबंध का रूप ले लिया तो फराह पूरी तरह शोएब की होने की योजना बनाने लगी.

अब वह पुष्पेंद्र के प्यार को भूल जाना चाहती थी. लेकिन शोएब की वह तभी बन सकती थी, जब पुष्पेंद्र रास्ते से हट जाता. इस के लिए वह शोएब के साथ मिल कर पुष्पेंद्र को रास्ते से हटाने की योजना बनाने लगी.

पुष्पेंद्र पत्नी में आए बदलाव का जरा भी अंदाजा नहीं लगा सका. फराह की बेरुखी को उस ने बेटी के साथ व्यस्तता माना. उस ने फराह के सामने बेटी की देखरेख के लिए किसी आया को रखने का प्रस्ताव भी रखा, लेकिन उस ने मना कर दिया.

पुष्पेंद्र सुबह दुकान पर जाता था तो रात 9-10 बजे तक लौटता था. इस लंबे वक्त में फराह किस से मिलती है, कहां आतीजाती है? पुष्पेंद्र को भनक तक नहीं थी. जबकि खुद को वफा की देवी बताने वाली फराह अपने प्रेमी के साथ रंगरलियां ही नहीं मनाती थी, बल्कि उस की हत्या की योजना भी बना रही थी.

शोएब भी कम घाघ नहीं था. उस की नीयत पुष्पेंद्र के फ्लैट, बैंकों में जमा धन और फराह व उस की बेटी की लाखों की एफडी पर थी, जो सब मिला कर करोड़ों की रकम थी. फ्लैट फराह के ही नाम था, जिस पर वह गिद्धदृष्टि जमाए बैठा था. इसी के लिए उस ने फराह को अपने जाल में फंसाया था.

फराह के प्यार में अंधे पुष्पेंद्र को फराह की साजिश का आभास तक नहीं हुआ. जबकि वह अपने यार के साथ मिल कर उस की हत्या की योजना बना चुकी थी. पहले इन लोगों की योजना पुष्पेंद्र को दुर्घटना में मरवाने की थी. लेकिन इस में उस के बच जाने का डर था, इसलिए उसे गोली मारने का फैसला लिया गया.

शोएब ने अपने साथियों को एकत्र कर के लूट की योजना बना डाली. किसे लूटना है, उस ने अपने साथियों को यह भी बता दिया. दोस्तों को इस बात का जरा भी आभास नहीं था कि लूट के पीछे शोएब का असल मकसद क्या है.

लूट की तारीख तय हुई 27 अक्तूबर, 2016. लेकिन उस दिन ये लोग कामयाब नहीं हुए. इस के बाद 29 अक्तूबर को पांचों लोग केलानगर तक पुष्पेंद्र के पीछे लगे रहे. मौका मिलते ही उन्होंने उस की स्कूटी रुकवा ली और गन पौइंट पर उस से एक लाख 53 हजार रुपए का बैग छीन लिया.

पुष्पेंद्र ने कोई विरोध नहीं किया. करिज्मा मोटरसाइकिल पर पीछे बैठे शोएब ने पिस्तौल से 3 गोलियां पुष्पेंद्र के शरीर में उतार कर उसे हमेशाहमेशा के लिए शांत कर दिया. गाड़ी चला रहे आशू ने उस से तुरंत कहा कि जब उस ने चुपचाप रकम हमारे हवाले कर दी थी, तो तूने उस की हत्या क्यों की? शोएब चुप बैठा रहा. काम हो जाने के बाद शोएब ने इस की सूचना फराह को दे दी.

पकड़े जाने के बाद शोएब के साथियों को पता चला कि उस का असल मकसद हत्या करना था. पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारियों ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर के इस पूरी घटना का खुलासा किया. 23 नवंबर, 2016 को फराह, शोएब, अरहम व दीपक चौधरी को कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया गया.

थाना क्वारसी इंसपेक्टर श्रीप्रकाश चंद्र यादव की भूमिका प्रशंसनीय रही, जिन्होंने लूट और हत्या के दूसरे ही दिन इस गहरी साजिश बताते हुए मृतक की पत्नी को अपने राडार पर ले लिया था. लेकिन ठोस सबूत न मिल पाने की वजह से उन्होंने फराह पर हाथ नहीं डाला था.

बच्चों के लिए खतरनाक हैं ये ऐप

आज के समय में स्मार्टफोन पर बढ़ती निर्भरता के कारण आने वाली पीढ़ी को डिजिटल बोला जा सकता है. वर्तमान में 10 साल के बच्चे भी स्मार्टफोन का यूज करते हैं. माता पिता बच्चों की सुरक्षा और उनसे जुड़े रहने के लिए उन्हें स्मार्टफोन देते हैं. लेकिन उन्हें पता नहीं होता कि बच्चे फोन में क्या क्या देख रहे हैं या फोन का इस्तेमाल किसलिए कर रहे हैं. बाजार में ऐसे बहुत से ऐप हैं जिनका उपयोग बच्चों को नहीं करना चाहिए लेकिन इन खतरनाक ऐप के यूजर्स में बच्चे और टिनेजर्स सबसे अधिक संख्या में शामिल हैं.

हॉट और नॉट (Hot or Not)

कुछ साल पहले हॉट और नॉट एक वेबसाइट के रूप में शूरु हुई थी और अब ये ऐप के रूप आ गया है. इस ऐप में आपके आस-पास की जगह के सबसे हॉट लोगों के बारे में बताया जाता है एवं उनके साथ डेटिंग फिक्स की जाती है.

हालांकि इस ऐप में 17 साल से कम उम्र के लोग चैटिंग नहीं कर सकते लेकिन इसमें कोई एज वेरिफिकेशन सिस्टम नहीं दिया गया है. कोई भी आसानी से अपनी एज गलत बता सकता है.

पॉकैट गर्लफ्रेंड ऐप (Pocket Girlfriend App)

यह ऐप एक ऐडल्ट वीडियो गेम ऐप है. जिसमें स्क्रीन पर पूरे कपड़े पहने हुई लड़की को अनड्रेस करना होता है. ये पूरी तरह से ऐडल्ट ऐप है, इसे गूगल प्लेस्टोर पर बैन कर दिया गया है. लेकिन यह थर्ड पार्टी पर उपलब्ध है.

स्कॉट (Skout)

ये ऐप टिनेजर्स और ऐडल्ट के फ्लर्ट करने के लिए बनाया गया है. इस ऐप में लोगों की आस-पास की जगह में वैलिड डेट होती है तो आपके पास नोटिफिकेशन आता है और प्वांट्स देकर उस इंसान की डिटेल्स लेनी होती है. इस ऐप में भी एज वेरिफिकेशन नहीं है. बच्चे भी इस ऐप का इस्तेमाल कर सकते हैं.

न्यूड इट ऐप (Nude it App)

ये एक फन ऐप है जो थर्ड पार्टी स्टोर्स में उपलब्ध है. इस ऐप में आप अपने दोस्तों को न्यूड देख सकते हैं लेकिन असल में इस ऐप का इस्तेमाल सिर्फ जोक्स शेयर करने के लिए किया जाता है. इस ऐप का इस्तेमाल करने से बच्चे साइबर बुलिंग का शिकार हो सकते हैं.

सेक्स ड्राइव ऐप (Sex Drive App)

ये ऐप्पल यूजर्स के लिए ही उपलब्ध है. ये पेड ऐप खास टोन में आपको मैसेज सुनाता है जो आपकी सेक्स लाइफ बेहतर करने के फॉर्मूले बताता है.

नशेड़ी यार किस के

9 अक्तूबर, 2016 की रात 10 बजे पंजाब के शहर जालंधर के कैंट इलाके की हाऊसिंग बोर्ड कालोनी अर्बन स्टेट फेज-1 में अपनी मां और नवविवाहिता पत्नी के साथ रहने वाला वरुण अरोड़ा जैसे ही रात का खाना खाने डाइनिंग टेबल पर बैठा, वैसे ही उस के मोबाइल फोन की घंटी बज उठी. वरुण ने फोन रिसीव किया तो फोन किस का है, यह न तो बगल में बैठी पत्नी डिंपल को पता चला न मां शशि अरोड़ा को. लेकिन धीरेधीरे शुरू हुई बातचीत एकाएक बहस का रूप धारण करते हुए झगड़े में बदल गई तो डिंपल ने कहा, ‘‘किस का फोन है, काट क्यों नहीं देते. पहले खाना खा लो, उस के बाद बात करना.’’

फोन काटने के बजाए वरुण हाथ से पत्नी को चुप रहने का इशारा कर के लगभग 7-8 मिनट तक फोन पर उसी तरह लड़ता रहा. इस के बाद वरुण ने फोन काटा तो पत्नी के साथ मां ने भी पूछा, ‘‘बेटा, किस का फोन था, किस बात को ले कर बहस हो रही थी?’’

‘‘आप नहीं जानती मां, है एक कमीना. मुझे धमकी दे रहा था. शायद अपनी औकात भूल गया.’’ वरुण ने कहा.

इस के बाद यह बात यहीं खत्म हो गई. खाना खाने के बाद डिंपल बरतन समेट कर रसोई में चली गई तो वरुण ने ड्राईंगरूम से ऐक्टिवा स्कूटर की चाबी ले कर कहा, ‘‘डिंपल, मैं जरा सिगरेट लेने जा रहा हूं. अगर तुम्हें कुछ मंगाना हो तो बता दो, मैं लेते आऊंगा.’’

‘‘नहीं, मुझे कुछ नहीं मंगाना. लेकिन आप जरा जल्दी आ जाइएगा.’’ डिंपल ने कहा.

‘‘सरकार का जो आदेश.’’ कह कर वरुण चला गया.

वरुण सिगरेट लेने चला गया तो शशि अरोड़ा अपने कमरे में जा कर लेट गईं. डिंपल भी रसोई का काम निपटा कर गिलास में दूध ले कर बैडरूम में आ गई और वरुण का इंतजार करने लगी. 10 बजे के करीब घर से निकला वरुण साढ़े 11 बजे तक नहीं लौटा तो डिंपल को चिंता हुई. उस ने वरुण के मोबाइल पर फोन कर के पूछना चाहा कि उसे देर क्यों हो रही है तो पता चला कि उस का फोन बंद है.

यह हैरान करने वाली बात थी. डिंपल ने न जाने कितनी बार वरुण को फोन किया, लेकिन हर बार एक ही जवाब मिला कि फोन बंद है. यह चिंता की बात थी, इसलिए वह सास के कमरे में जा पहुंची और उन्हें सारी बात बताई. घर में कोई दूसरा मर्द नहीं था, इसलिए सास के कहने पर उस ने वरुण के मामा राजीव नागपाल को फोन कर के वरुण के घर न आने की बात बताई तो उन्होंने कहा कि वह तुरंत आ रहे हैं.

वह पास में ही रहते थे, इसलिए पत्नी के साथ तुरंत आ गए. उन्होंने बहन और डिंपल को सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘इतना भी परेशान होने की बात नहीं है. नईनई शादी हुई है, कोई खास यारदोस्त मिल गया होगा, पीने बैठ गया होगा.’’

‘‘नईनई शादी है, इसलिए इतनी रात को उसे घर पर होना चाहिए न कि दोस्तों के साथ.’’ शशि अरोड़ा ने कहा.

सास की इस बात पर डिंपल को रुलाई आ गई, क्योंकि उसे किसी अनहोनी की आशंका हो रही थी. राजीव नागपाल ने भी उन लोगों को सिर्फ सांत्वना देने के लिए यह बात कही थी, जबकि वह भी जानते थे कि यह समय दोस्तों के साथ बैठने का नहीं था. अंदर ही अंदर वह भी चिंतित और घबराए हुए थे.

बहरहाल, रात को ही सब ने हर उस जगह जा कर वरुण की तलाश कर ली, जहांजहां उस के मिलने की संभावना थी. खबर पा कर डिंपल के पिता करन पुरी भी परिवार के साथ बेटी के यहां आ गए थे. सभी वरुण की तलाश में लगे थे, लेकिन पूरी रात तलाश करने के बावजूद वरुण का कहीं पता नहीं चला था.

10 अक्तूबर, 2016 की सुबह साढ़े 6 बजे के करीब अर्बन एस्टेट से लगभग एक फर्लांग की दूरी पर स्थित सुरेंद्र सिंह के खेतों पर उन का नौकर रामू जानवरों के लिए चारा काटने गया तो ट्यूबवैल की पानी वाली हौदी के पास उस ने एक नौजवान की लाश पड़ी देखी.

लाश देख रामू घबरा गया. चारा काटना भूल कर वह सीधे सुरेंद्र सिंह की कोठी पर पहुंचा और उन्हें हौदी के पास लाश पड़ी होने की बात बताई. खेतों पर लाश पड़ी होने की बात सुन कर सुरेंद्र सिंह कुछ परिचितों को ले कर खेत पर पहुंचे और पानी की हौदी के पास लाश देख कर इस की सूचना थाना कैंट पुलिस को दे दी.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी इंसपेक्टर सुखदीप सिंह कुछ सिपाहियों को ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए. चलने से पहले उन्होंने इस बात की सूचना अधिकारियों को भी दे दी थी, इसलिए उन के पहुंचने के कुछ देर बाद ही डीएसपी हरजीत सिंह क्राइम एक्सपर्ट टीम को ले कर पहुंच गए थे.

पुलिस घटनास्थल और लाश का निरीक्षण करने लगी. मृतक की उम्र 25-26 साल थी. उस का सिर फटा हुआ था और पूरे शरीर में छेद थे, जिन से अभी भी खून रिस रहा था. वह जींस और शर्ट पहने था, जो कई जगहों पर फटी हुई थी. लाश के पास ही नल का हत्था पड़ा था, जिस से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि इसी हत्थे से मृतक के सिर पर वार किया गया था.

लेकिन वहां इस तरह का कोई औजार नहीं मिला, जिस से मृतक के शरीर में छेद किए गए थे. जहां लाश पड़ी थी, उस से लगभग सौ मीटर की दूरी पर घसीटने के निशान थे. इस से अंदाजा लगाया गया कि हत्या कहीं और कर के लाश यहां ला कर फेंकी गई थी.

अब तक हाऊसिंग बोर्ड कालोनी वालों को भी सुरेंद्र सिंह के खेत में लाश पड़ी होने की सूचना मिल गई थी. इस कालोनी में ज्यादातर फौजी रहते हैं. लाश मिलने की सूचना पा कर कालोनी के तमाम लोग वहां आ गए थे. उन्हीं लोगों ने लाश की शिनाख्त कर दी थी.

वह लाश ओमप्रकाश अरोड़ा के बेटे वरुण अरोड़ा की थी, जो रात से गायब था. पुलिस इस बात की जानकारी मृतक वरुण के घर वालों तक पहुंचाती, उस के पहले ही किसी ने शशि अरोड़ा को खबर दे दी थी. इस अनहोनी की खबर पा कर शशि अरोड़ा, उन की बहू डिंपल, भाईभाभी तथा समधीसमधन रोतेबिलखते घटनास्थल पर आ पहुंचे.

इस के बाद वहां रोनेचिल्लाने का ऐसा हृदयविदारक दृश्य बना कि देखने वाले भी अपने आंसू नहीं रोक पाए. जवान बेटे की लाश देख कर शशि अरोड़ा ही नहीं, उन की बहू डिंपल भी बेहोश हो गई थी. दोनों को अस्पताल भिजवाना पड़ा था.

थानाप्रभारी सुखदीप सिंह ने किसी तरह सभी को समझाबुझा कर बड़ी मुश्किल से हालात पर काबू पाया और अपनी काररवाई आगे बढ़ाते हुए लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवाया. इस के बाद थाने आ कर वरुण की हत्या का मुकदमा अज्ञात के खिलाफ दर्ज कर के जांच शुरू कर दी.

वरुण के हत्यारों तक पहुंचने के लिए सुखदीप सिंह ने एक पुलिस टीम बनाई, जिस में उन्होंने एसआई चरण सिंह, एएसआई जसवंत सिंह, गुरदीपचंद, हैडकास्टेबल कुलदीप सिंह, सुरेंद्रपाल, रामपाल और कांस्टेबल मलकीत सिंह को शामिल किया.

उन्हें अपने मुखबिरों से पता चला कि वरुण महंगा वाला नशा करता था. वह ऐसा नशा था, जिस में एक बार में ही हजार, डेढ़ हजार रुपए खर्च हो जाते थे. इतने महंगे नशे के लिए वरुण पैसे कहां से लाता था, यह सोचने वाली बात थी. कहीं नशापूर्ति के लिए वह किसी लूटपाट करने वाले गैंग में तो नहीं शामिल था. बंटवारे में कहासुनी हो गई हो और उस की हत्या कर दी गई हो.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, सिर पर किसी भारी चीज की गंभीर चोट और सूजे से जगहजगह गोदे गए घावों से खून बह जाने की वजह से वरुण की मौत हुई थी. छाती पर लगे सूजे से उस के हार्ट में भी छेद हो गया था.

बहरहाल, वरुण के अंतिम संस्कार के बाद उस के घर वाले कुछ सामान्य हुए तो सुखदीप सिंह ने घर जा कर सभी से विस्तार से पूछताछ की. इस पूछताछ में जब उन्हें पता चला कि घर से निकलने से पहले वरुण की फोन पर किसी से कहासुनी हुई थी तो उन्हें जांच की दिशा मिल गई.

वरुण का फोन और जिस ऐक्टिवा स्कूटर से वह घर से निकला था, वह भी गायब था. सुखदीप सिंह ने वरुण का मोबाइल सर्विलांस पर लगवाने के साथ उस के नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि रात 9 बज कर 38 मिनट पर उस के नंबर पर जिस नंबर से फोन आया था, उस पर 8 मिनट 38 सेकेंड बात हुई थी. इस के बाद उसी नंबर पर वरुण ने 10 बज कर 10 मिनट पर फोन किया था तो मात्र 57 सैकेंड बात हुई थी.

सुखदीप सिंह ने उस नंबर के बारे में पता किया तो वह नंबर स्पेयर पार्ट्स नाने वाली फैक्ट्री में काम करने वाले शिवप्रकाश का निकला. उन्होंने उसे थाने ला कर पूछताछ की तो उस ने बताया कि लगभग ढाई महीने पहले 25 अगस्त, 2016 को फैक्ट्री में काम करते समय उस का फोन चोरी हो गया था, जिस की उस ने थाने में रिपोर्ट भी दर्ज करा दी थी.

उस का कहना था कि वह किसी वरुण को नहीं जानता. हां, वह इतना जरूर जानता है कि उस का फोन अतुल ने चुराया था. सुखदीप सिंह ने उस से अतुल के बारे में पूछा तो उस ने कहा कि वह कई दिनों से गायब है. इस के बाद उन्होंने अतुल के पीछे अपने मुखबिरों को लगा दिया.

आखिर दिनरात मेहनत कर के उन्होंने पता लगा ही लिया कि अतुल, साहिल, शिवप्रकाश और वरुण एक साथ नशा करते थे. घटना वाली रात भी ये चारों रामामंडी चौक के पास देखे गए थे. यह जानकारी मिलने के बाद साफ हो गया कि शिवप्रकाश ने अपना पीछा छुड़ाने के लिए पुलिस से झूठ बोला था.

पुलिस शिवप्रकाश के घर दोबारा पहुंची तो वह घर से गायब मिला. इस के बाद पुलिस शिवप्रकाश, अतुल और साहिल की तलाश में लग गई. इस का नतीजा यह निकला कि मुखबिर की सूचना पर जालंधर बाईपास से साहिल और शिवप्रकाश को उस समय गिरफ्तार कर लिया, जब दोनों वैष्णो देवी जाने की फिराक में वहां खड़े थे. थाने ला कर दोनों से पूछताछ की गई तो उन्होंने बिना किसी सख्ती के वरुण की हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया. उन्होंने बताया कि उन्हीं लोगों ने उस की हत्या कर लाश को खेतों में ले जा कर फेंक दिया था. हत्या में अतुल भी शामिल था. इस के बाद दोनों को अदालत में पेश कर के पूछताछ एवं सबूत जुटाने के लिए 2 दिनों के रिमांड पर लिया गया. पुलिस ने हत्या के इस मुकदमे में धारा 201, 34 और जोड़ दी थी. शिवप्रकाश और साहिल जालंधर के गढ़ा मोहल्ला में रहते थे, जबकि इन का फरार साथी अतुल रामामंडी में रहता था. तीनों ज्यादा पढ़ेलिखे नहीं थे. आवारा किस्म के ये युवक कहने को तो फैक्ट्रियों में काम करते थे, पर इन का असली काम नशे के लिए चोरीराहजनी करना था. क्योंकि ये ऐसा नशा करते थे, जो महंगा तो था ही, मिलता भी मुश्किल से था. यह ऐसा नशा है, जो न मिलने पर आदमी छटपटाने लगता है.

शिवप्रकाश एवं साहिल द्वारा की गई पूछताछ में वरुण की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह अच्छेभले घर के एक युवक की नशे की लत लगा लेने के बाद आवारा युवकों के बीच फंस कर जान गंवाने की थी.

5 साल पहले वरुण के पिता ओमप्रकाश अरोड़ा की मौत हो चुकी थी. उस के बाद वह और उस की मां शशि अरोड़ा रह गई थीं. वह टाटा मोटरर्स कंपनी के शोरूम में नौकरी करता था. अगस्त, 2016 के आखिरी सप्ताह में जालंधर की ही बस्ती शेख के मोहल्ला सोहिया की रहने वाली डिंपल से उस की शादी हुई थी. वह शराब तो पहले से ही पीता था, इधर न जाने कैसे पिछले कुछ दिनों से उसे महंगे नशे की लत लग गई थी.

नशे के ही चक्कर में उस की मुलाकात साहिल से हुई तो दोनों साथ मिल कर नशा करने लगे. साहिल ने ही उस की मुलाकात अतुल और शिवप्रकाश से कराई थी. अतुल बेहद चालाक और मतलबी आदमी था. वह नशा तो करता ही था, जरूरतमंद लोगों को नशे का सामान बेचता भी था. बेचने के बाद नशे का जो सामान बच जाता था, उसी से अपनी जरूरत पूरी कर लेता था. यही वजह थी कि नशेड़ी उस के पीछे लगे रहते थे. वरुण भी उस से नशे का सामान खरीदता था. जब कभी उस के पास पैसे नहीं होते थे, अतुल उसे उधार भी नशे का सामान दे देता था. इस में मजे की बात यह थी कि उधार के उस नशे के सामान में अतुल ही नहीं, साहिल और शिवप्रकाश भी नशा करते थे. अतुल के वरुण पर इस समय भी 7-8 हजार रुपए उधार थे. अगस्त में जब वरुण की शादी हुई तो वह नशा छोड़ने की कोशिश करने लगा था, जिस से अतुल उस से अपने रुपए वापस मांगने लगा था.

जबकि वरुण कह रहा था कि अभीअभी उस की शादी हुई है, इसलिए उस के पास पैसे नहीं हैं. पैसे होते ही वह उस के पैसे लौटा देगा. यही नहीं, अतुल, साहिल और शिवप्रकाश चाहते थे कि वह नशा करना बंद न करे.

वरुण असमंजस की स्थिति में था. इधर नशे को ले कर बदनाम हुई पंजाब सरकार ने सख्ती की तो अतुल का धंधा बंद हो गया. इस के बाद चोरीराहजनी कर के वह अपनी नशे की लत पूरी कर रहा था. यही वजह थी कि उस ने वरुण पर पैसे लौटाने के लिए दबाव बनाया. एक तो वरुण के पास पैसे नहीं थे, दूसरी ओर वह अतुल से उधार का जो नशे का सामान लिया था, उस में सभी ने नशा किया था, इसलिए अब वह कहने लगा था कि जब नशा सब ने किया है तो वह अकेला सारा खर्च क्यों उठाए.

अतुल को जब लगा कि वरुण सीधे पैसे नहीं देगा तो उस ने उस से पैसा वसूलने के लिए एक योजना बनाई. उसी योजना के तहत उस ने 9 अक्तूबर, 2016 की रात फोन कर के पहले तो पैसे मांगे, जिस से दोनों में कहासुनी हो गई. उस के बाद उस ने कहा कि ईरान का बहुत बढि़या माल आया है, अगर वह खरीदना नहीं चाहता तो कोई बात नहीं, आ कर साथ में 2-4 कश मार कर देख ले. ईरान के माल के बारे में सुन कर वरुण के मुंह में पानी आ गया और वह खुद को रोक नहीं सका. खाना खाने के बाद सिगरेट लेने के बहाने वह घर से निकला और फोन कर के अतुल के पास बाईपास पर पहुंच गया. उस के साथ शिवप्रकाश और साहिल भी थे.

चारों बाईपास से कैंट स्थित खेतों में बैठ कर अतुल द्वारा लाए समान से नशा करने लगे. नशा करने के बाद एक बार फिर अतुल ने वरुण से पैसे मांगे तो बात झगड़े तक पहुंच गई. तीनों ने पहले से जो योजना बना रखी थी, उस के अनुसार उन्होंने वरुण के हाथपैर बांधने चाहे. अतुल का सोचना था कि वरुण की नईनई शादी हुई है, इसलिए उस के घर में काफी पैसा होगा. अगर वे उस का अपहरण कर लें तो घर वालों से फिरौती के रूप में मोटी रकम मिल सकती है. फिरौती मिलने के बाद वे उस की हत्या कर देंगे. वरुण जवान भी था और तगड़ा भी. इसलिए वह उन तीनों पर भारी पड़ा. जब उन्होंने देखा कि वे उसे काबू नहीं कर सकते तो अतुल ने वहां लगे हैंडपंप का हत्था निकाला और पूरी ताकत से उस के सिर पर वार कर दिया. उसी एक वार में वरुण का सिर फट गया और वह चकरा कर जमीन पर गिर पड़ा.

साहिल अपने साथ बर्फ तोड़ने वाला सूजा ले आया था. उस ने उसी सूजे से वरुण का पूरा शरीर गोद दिया. वरुण की मौत हो गई तो तीनों ने लाश को घसीट कर सुरेंद्र सिंह के खेतों में बनी पानी की हौदी के पास फेंक दिया. इस के बाद वे उस की ऐक्टिवा स्कूटर और मोबाइल फोन ले कर चले गए. वरुण की मौत होने के बाद अतुल की अपहरण कर फिरौती की योजना पर पानी फिर गया था. पूछताछ के बाद सुखदीप सिंह ने शिवप्रकाश और साहिल की निशानदेही पर वरुण की ऐक्टिवा स्कूटर और मोबाइल फोन बरामद कर लिया था. नल का हत्था पहले ही बरामद हो चुका था, बाद में सूजा भी बरामद कर लिया गया. रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद 14 नवंबर को पुन: दोनों को अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. वरुण की बुरी लत की वजह से एक नवविवाहिता की जिंदगी तो बरबाद हुई ही, शशि का बुढापे का सहारा भी छिन गया. कथा लिखे जाने तक अतुल पकड़ा नहीं जा सका था. पुलिस उस की तलाश कर रही थी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

किस्मत को दे मात, बने बॉलीवुड के उस्ताद

बॉलीवुड एक ऐसा उद्योग है जिस पर देश की आँखें हमेशा टिकी होती हैं और हमें यहां से बहुत सी जानकारी के साथ साथ, लाइफ में आगे बढ़ने की प्रेरणा भी मिलती हैं. फिल्म इण्डस्ट्री में, साधारण नौकरियों में फंसे आम इंसान से स्क्रीन पर एक परिचित चेहरा बनने तक के कुछ उत्कृष्ट उदाहरण हमारे बीच हैं. ऐसी बड़ी उपलब्धियों के पीछे एक अच्छी, बहादुर और भावुक मानसिकता होती है. ऐसे ही कुछ 7 हस्तियों की यहाँ हम बात कर रहे हैं जिन्होंने एक बहुत ही सामान्य जीवन से उठकर बॉलीवुड में अपनी अलग पहचान बनाई है. ये सभी बॉलीवुड में आने से पहले कुछ ऐसी नौकरियों करते थे..

बोमन ईरानी: वेटर और रूम सर्विस अटेन्डेंट

कहते हैं बोमन ईरानी ऐसे जोक्स क्रैक करते हैं जो हमारी नॉरमल सोसाइटी आराम से हजम नहीं कर पाती और इसके बाद भी बोमन जब भी मीडिया से, दूसरे कलाकारों से या और भी किसी से मिलते हैं तो बहुत ही सभ्य तरीके से मिलते है. कहा जाता है कि यही बोमन का स्टाइल है. टेलेन्टेड बोमन को देख कर लोग यही सोचते हैं कि वे एक्टिंग या थियेटर बेग्राउंड से ही संबंध रखते हैं, पर सच्चाई यह है कि बोमन ईरानी ताजमहल पैलेस एंड टॉवर मुंबई जैसे बड़े होटल में एक वेटर और रूम सर्विस स्टाफ के रूप में काम किया करते थे. बाद में वे अपनी मां के साथ उनकी पैतृक बेकरी में हाथ बटाने लगे और बॉलीवुड में एक्टिंग में कैरियर बनाने से पहले तक वे एक प्रोफेशनल फोटोग्राफर की तरह भी काम कर चुके हैं.

जॉनी लीवर: पेन विक्रेता

अगर आप बहुत उदास हैं तो तुरंत एक कारगर तरीका है अपनाऐं और जॉनी लीवर द्वारा एक हास्य दृश्य आप देख लें. जॉनी लीवर एक बहुत हा काबिल अभिनेता और हास्य जगत का एक जाना माना चेहरा हैं. यहां यह बहुत आश्चर्य की बात है कि एक इतने प्रतिभाशाली हास्य अभिनेता कभी सड़कों पर कलम बेचकर अपना जीवन यापन किया करते थे.

नवाजुद्दीन सिद्दीकी: चौकीदार

आपको जानकर हैरानी होगी कि बॉलीवुड में करियर बनाने से पहले नवाजुद्दीन सिद्दीकी एक दवा की दुकान पर काम किया करते थे. इतना ही नहीं वे एक चौकीदार के रूप में भी काम कर चुके हैं. नवाजुद्दीन द्वारा भारतीय सिनेमा में एक सफल मुकाम पाना वाकई सराहनीय है.

राकेश ओमप्रकाश मेहरा: स्पॉट बॉय

'रंग दे बसंती' और 'भाग मिल्खा भाग' जैसी फ़िल्मों का निर्देशन करने वाले राकेश, फिल्म के सेट पर एक स्पॉट बॉय की तरह काम कर चुके हैं. वे फिल्मों की टीम को चाय देने व और भी अन्य बातों के लिए फिल्म सेट पर  स्पॉट बॉय की तरह मोजूद हुआ करते थे. आज राकेश मेहरा खुद फिल्मों के उद्योग में अच्छे और बड़े फिल्म निर्माताओं में से एक हैं.

आर माधवन: पब्लिक स्पीकिंग बिजनेस

माधवन एक दक्षिण भारतीय अभिनेता हैं, हालांकि वे कुछ प्रमुख हिंदी फिल्मों में भी दिखाई दिए हैं और उनके प्रशंसकों के लिए यह तथ्य जानना बहुत मजेदार हो सकता है कि अभिनेता आर माधवन बॉलीवुड में करियर बनाने से पहले अपना खुद का व्यवसाय चलाते थे जो एक कमयुनिकेशन और पब्लिक स्पीकिंग बिजनेस था.

जॉन अब्राहम: मीडिया प्लानर या मीडिया योजनाकार

बाइक्स के लिए अपनी सनक और "युवाओं के उत्साह" के अनुसार फिल्मों में भूमिका निभाने और पूरी लगन के साथ काम करने के लिए जॉन  बॉलीवुड के एक बहुत फेमस अभिनेता हैं. मीडिया उद्योग का सबसे बोरिंग व्यवसाय है कि यहां एक मीडिया प्लानर के तौर पर काम करना और वास्तव में यह सच है कि बॉलीवुड में आने से पहले जॉन अब्राहम भी एक मीडिया प्लानर ही थे.

जैकलिन फर्नांडीज: टेलीविजन रिपोर्टर

अभिनेत्री जैकलिन फर्नांडीज मिस श्रीलंका यूनिवर्स प्रतियोगिता की विजेता रह चुकी हैं. बॉलीवुड में करियर बनाने से पहले जैकलिन एक टेलीविजन पत्रकार हुआ करती थी. जैकलिन फर्नांडीज की कहानी भी कुछ ऐसी ही है जो कई उत्साहित फिल्मों की तुलना से अधिक प्रेरक है.

जानें बीसीसीआई की नई टीम के बारे में

सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई के लिए चार सदस्यीय प्रशासनिक समिति का गठन कर दिया है. पूर्व नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) विनोद राय चार सदस्‍यीय प्रशासकों के उस दल की अगुवाई करेंगे जो भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) का संचालन करेगा.

सुप्रीम कोर्ट ने राय के अलावा मशहूर इतिहासकार रामचंद्र गुहा, आईडीएफसी के प्रबंध निदेशक विक्रम लिमये और पूर्व महिला क्रिकेटर डायना एडुलजी को भी इसमें स्‍थान मिला है.

जानिए इन प्रशासकों के बारे में.

विनोद राय

1972 बैच के केरला कैडर से आईएएस विनोद राय 2008 से लेकर 2013 तक नियंत्रक महालेखा परीक्षक (CAG) के प्रमुख रहे हैं. साल 2016 में भारत सरकार ने उन्हें सिविल सर्विस में उल्लेखनीय योगदान के लिए पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित किया. वर्तमान में वह संयुक्त राष्ट्र के एक्सटर्नल ऑडिटर्स पैनल के अध्यक्ष हैं.

इसके अलावा वह रेलवे की काया कल्प परिषद के अवैतनिक सलाहकार भी हैं. उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में जन्मे राय ने दिल्ली विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातक की उपाधि लेने के बाद उन्होंने लोक प्रशासन में हार्वर्ड विश्वविद्यालय से मास्टर की डिग्री हासिल की.

रामचंद्र गुहा

58 वर्षीय रामचंद्र गुहा प्रसिद्ध इतिहासकार हैं. गांधी बिफोर इंडिया और इंडिया आफ्टर गांधी उनकी चर्चित रचनाए हैं. पर्यावरण, समाज, राजनीति जैसे विषयों में उन्होंने काफी शोध किया है. क्रिकेट प्रशासकों की सूची में उनका नाम देखकर कुछ लोगों ने हैरानी जताई, लेकिन वास्तविकता यह है कि गुहा क्रिकेट के भी जानकार हैं. बताया जाता है कि प्रथम श्रेणी क्रिकेट पर वह बारीक नजर रखते हैं. क्रिकेट के इतिहास पर भी उनकी जानकारी बहुत समृद्ध है. देहरादून में जन्मे गुहा देश के जानेमाने स्तंभकार भी हैं. 2009 में उन्हें पद्म भूषण सम्मान दिया गया. 2011 में साहित्य अकादमी अवॉर्ड से नवाजे गए.

डायना इदुल्जी

61 वर्षीय डायना इदुल्जी सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित बीसीसीआई प्रशासनिक समिति में एकमात्र क्रिकेटर हैं. वह भारतीय महिला टीम की पूर्व कप्तान हैं. 1976 में वह टीम इंडिया के लिए चुनी गईं. भारत की ओर से वह 20 टेस्ट और 34 वनडे टीम में शामिल रहीं. बाएं हाथ से गेंदबाजी करने वाली डायना ने टेस्ट मैचों में भारत की ओर से सर्वाधिक 63 विकेट झटके. इसके अलावा वह इंडियन रेलवे और नैशनल टीम की ओर से भी खेल चुकी हैं. उन्हें 1983 में अर्जुन अवॉर्ड और 2002 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया. शांता रंगास्वामी के साथ वह देश की महिला क्रिकेटर्स के लिए सबसे बड़ी प्रेरणा मानी जाती हैं.

विक्रम लिमये

विक्रम लिमये आईडीएफसी के एमडी हैं. बीसीसीआई प्रशासनिक समिति सदस्य के रूप में वह अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (ICC) में बीसीसीआई का प्रतिनिधित्व करेंगे. लिमये आर्थिक मामलों के जानकार हैं. सीए की पढ़ाई करते हुए उन्होंने अपने करियर की शुरुआत 1987 में अर्थर एंडरसेन के साथ की. 1994 में एमबीए के लिए अमेरिका जाने से पहले उन्होंने सिटी बैंक को भी अपनी सेवा दी. पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने अमेरिका के शेयर मार्केट में 8 साल तक काम किया. 2004 में वह मुंबई वापस आए. वह सरकार की ओर से गठित कई समितियों में शामिल रहे हैं.

प्रशासकों की नियुक्ति मामले में जुड़ी खास बातें…

1. सुप्रीम कोर्ट ने 24 जनवरी को बीसीसीआई से प्रशासक के लिए नाम सुझाने को कहा था. एमिकस क्‍यूरी गोपाल सुब्रमण्‍यम और एडवोकेट अनिल दीवान की ओर से सुझाए गए 9 नामों को बहुत अधिक मानते हुए कोर्ट ने 4 सदस्यी टीम की समिति गठित करने का निर्देश दिया था.

2. अपनी नियुक्ति पर पूर्व कैग विनोद राय ने कहा, 'मुझें लगता है कि मेरी भूमिका नाइट वॉचमैन की होगी जिसका काम सुचारू संचालन सुनिश्चित करना होगा.' उन्‍होंने कहा कि ‘मेरे पास बीसीसीआई में काम करने का अनुभव नहीं है लेकिन मैं क्रिकेट के खेल का दीवाना हूं.’

3. इस मामले की सुनवाई उस समय 30 जनवरी तक टाल दी गई थी जब बीसीसीआई और केंद्र ने दलील दी थी कि उन्‍हें भी सीलबंद लिफाफे में नाम देने की इजाजत दी जाए.

4. जस्टिस दीपक मिश्रा, एएम खानविलकर और डीवाय चंद्रचूड़ की बेंच ने बीसीसीआई को आईसीसी की बैठक का प्रतिनिधित्‍व करने के लिए अपने उन पदाधिकारियों में से तीन नाम चुनने को कहा था जो अभी ऑफिस संभालने की योग्‍यता रखते हैं.

5. अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने बीसीसीआई के लिए प्रशासक की नियुक्ति का विरोध किया था. उन्‍होंने सुप्रीम कोर्ट ने सुब्रमण्‍यम और दीवान की ओर से सुझाए नाम को अंतिम रूप देने का फैस्‍ला टालने का आग्रह किया था.

6. यूनिवर्सिटीज, रेलवे और सेना का प्रतिनिधित्‍व करते हुए अटॉर्नी जनरल ने 18 जुलाई 2016 के सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश को भी वापस लेने को कहा था जिसमें बीसीसीआई को लोढ़ा पैनल की सिफारिशों को पूरी तरह लागू करने का निर्देश दिया गया था. उन्‍होंने आग्रह किया था की सरकारी अधिकारियों को इन संस्‍थाओं के ऑफिस संभालने की इजाजत दी गई और इन्‍हें वोटिंग राइट भी मिले. 

7. शीर्ष अदालत ने इस बात की पुष्टि की थी कि सौंपे गए नौ नामों में कुछ पूर्व क्रिकेटरों के नाम भी हैं, हालांकि इन नामों का खुलासा नहीं किया गया था. 

8. सुप्रीम कोर्ट ने दो जनवरी को अनुराग ठाकुर को बीसीसीआई प्रमुख पद से हटाने का आदेश दिया था. इसके साथ ही बोर्ड सचिव अजय शिर्के को भी हटाया गया था. कोर्ट ने सख्‍त लहजे में कहा था कि लोढ़ा पैनल की सिफारिशों लागू की जानी चाहिए.

9. सुप्रीम कोर्ट ने 20 जनवरी के अपने आदेश में यह साफ किया था कि राज्‍य एसोसिएशनों और बीसीसीआई में पदाधिकारी के तौर पर नौ वर्ष के कार्यकाल को एक साथ नहीं गिना जाएगा यानी वे राज्‍य क्रिकेट संघों और बीसीसीआई में अलग-अलग नौ-नौ साल का कार्यकाल कर सकते हैं.

10. जस्टिस आरएम लोढ़ा की अगुवाई में तीन सदस्‍यीय लोढ़ा पैनल को सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2015 में नियुक्‍त किया था और इसे बीसीसीआई की कार्यप्रणाली और सुधारों के बारे में सिफारिशें देनी थीं.

डीएम अंकल की पाठशाला

 

पटना के बांकीपुर स्कूल की लड़कियां सुबह से उत्साह में थी और बार-बार उनकी निगाहें दरवाजे की ओर उठ जाती थी. सवा एक बजे एक शख्स क्लासरूम में दाखिल होता है. किसी भी सूरत से वह स्कूल का मास्टर नहीं लग रहा था. वह शख्स थे पटना के जिलाधीश संजय कुमार अग्रवाल. जिलाधीश ने खुशबू कुमारी की कौपी उठा कर पढ़ाई-लिखाई के बारे में पूछा तो उसने कहा कि स्कूल में पढ़ाई ही नहीं होती है सर. कोचिंग इंस्टीट्यूट में पढ़ने जाना पड़ता है.

छात्राओं ने उन्हें बताया कि कई सब्जेक्ट के टीचर नहीं हैं. ऐसे में पढ़ाई ठीक से नहीं होती है. जिलाधीश ने जब इस बारे में स्कूल प्रशासन से पूछा तो पता चला कि भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, भूगोल, हिंदी, उर्दू, टाइपिंग और संगीत के टीचर हैं ही नहीं. जब जिलाधीश ने बच्चियों से पूछा कि वे लोग कोचिंग क्यों जाती है तो मामूम बच्चियों ने यह कह कर एक झटके में एजुकेशन सिस्टम की कलई खोल दी कि स्कूल में तो पढ़ाई होती ही नहीं है. सभी छात्राओं का यही दर्द था कि अगर वे कोचिंग नहीं करेंगी तो कोर्स पूरा होगा ही नहीं.

जिलाधीश ने छात्राओं से कहा कि स्टूडेंट लाइफ दुबारा नहीं मिलने वाली है, इसलिए अभी मन लगा कर पढ़ाई करें और अपना लक्ष्य तय कर लें. उसके बाद टारगेट को पूरा करने में पूरी ताकत लगा दें. इससे ही कामयाबी मिलती है.

बिहार की शिक्षा व्यवस्था से रू-ब-रू होने के लिए पटना के जिलाधीश 27 जनवरी को एक सरकारी स्कूल में छात्राओं को पढ़ाने पहुंचे. जिलाधीश के इस कदम की तारीफ हो रही है तो आलोचनाएं भी हो रही हैं. उन्होंने पटना के तमाम सरकारी स्कूलों में पढ़ाने के लिए अफसरों की टीम बनाई है. शिक्षा विभाग के एक सूत्र बताते हैं कि अफसर अपना काम तो ठीक से करते नहीं हैं, एक्सट्रा काम वह क्या खाक करेंगे. मास्टरों का काम टीचर से कराके एजुकेशन सिस्टम को ठीक करने की बात सोचना जागते आंखों से सपना देखने की ही तरह है. सरकारी स्कूलों की बदहाली के लिए तो अफसरशाही ही जिम्मेवार है.

कुछ भी हो सरकारी स्कूलों को दुरूस्त करने के लिए पटना के जिलाधीश ने अनोखी पहल की है. उन्होंने 200 अफसरों की टीम तैयार की है जो हरेक सप्ताह स्कूलों में जाकर एक घंटे तक बच्चों के बीच गुजारेंगे और स्कूल की कमियों को दूर करने की कोशिश करेंगे. हर दिन अफसरों को सामान्य काम में रुकावट नहीं आए इसके लिए रोस्टर तैयार किया गया है. यह रोस्टर 30 जनवरी से लागू हो जाएगा. डीएम, एसडीएम, एडीएम, डीएसपी, बीडीओ, सीओ, थानेदार, सीडीपीओ, और शिक्षा विभाग के तमाम बड़े अफसरों को सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता सुधरने की मुहिम में लगाया गया है.

संजय अग्रवाल ने बताया कि आमतौर पर जब कोई अफसर किसी स्कूल का दौरा करता है तो उनके पहुंचने से पहले ही स्कूल प्रशासन वहां की तमाम व्यवस्थाओं को आनन-फानन दुरूस्त कर लेता है. अफसर के लौटने के बाद स्कूल की हालत फिर से बदतर हो जाती है. अब अफसर जब रोज स्कूल जाएंगे तो वहां की हालत हमेशा दुरूस्त रहेगी. अफसर भी स्कूल की कमियों को दूर करने का काम करेंगे.

अफसर जिस भी स्कूल में जाएंगे, वहां केवल बच्चों को किताबी या नैतिक बातें ही नहीं पढ़ाएंगे, वहां की कमियों को भी देखेंगे और दूर करने के उपाय करेंगे. हरेक अफसर स्कूल के रजिस्टर पर अपनी हाजिरी भी बनाएंगे. अफसरों के इस काम की मौनेटरिंग भी होगी. जिलाधीश की पहल तो अच्छी है पर जब अफसरों की मौनेटरिंग की ठोस व्यवस्था बनाने की बात कर रहे हैं तो मास्टरों की मौनेटरिंग की ठोस व्यवस्था क्यों नहीं की जा रही है?

मैं किसी ‘स्टार लिस्ट’ में नहीं हूं : सोनू सूद

व्यवसायी परिवार से संबंध रखने वाले सोनू सूद लुधियाना, पंजाब के हैं. फिल्मी बैकग्राउंड से न होने के बावजूद उन्होंने फिल्मों में अपनी पहचान बनायीं. वैसे तो उन्होंने इलेक्ट्रोनिक इंजीनियरिंग में बीटेक किया है, लेकिन बचपन से ही उनकी इच्छा एक्टर बनने की थी. माता-पिता चाहते थे कि वे अपनी पढाई पूरी करें. उन्होंने वैसा ही किया और मॉडलिंग के बाद फिल्मों की ओर रुख किया. बॉलीवुड में उनकी पहली फिल्म ‘शहीद-ए-आज़म’ थी, जिसमें उन्होंने भगत सिंह की भूमिका निभाई थी. इसके बाद उन्होंने कई फिल्में की. जिसमें जोधा अकबर, सिंह इज किंग, एक विवाह ऐसा भी, शूटआउट एट वडाला, हैप्पी न्यू इयर, दबंग, गब्बर इज बैक आदि प्रमुख हैं. उन्होंने हिंदी के अलावा कन्नड़ा, तमिल, तेलगू, पंजाबी आदि भाषाओं में भी फिल्में की हैं.

साल 2016 में उन्होंने अपना प्रोडक्शन हाउस ‘शक्ति सागर प्रोडक्शन्स’ अपने स्वर्गीय पिता शक्ति सागर के नाम पर खोला है. सोनू सूद अपनी बॉडी को लेकर काफी सजग रहते हैं और फिटनेस पर काफी ध्यान देते हैं. यही वजह है कि अभिनेताओं की अच्छी बॉडी की लिस्ट में उनका नाम भी शामिल है. इन दिनों वे ‘कुंग फु योगा’ फिल्म को लेकर काफी उत्सुक हैं, जिसमें उन्होंने अभिनेता जैकी चैन के साथ अभिनय किया है, साथ ही वे उस फिल्म के निर्माता भी हैं. अपने ‘फिट एंड फाइन’ अंदाज़ में वे सामने आये, बातचीत रोचक थी, पेश है अंश.

प्र. इस प्रोजेक्ट में आप कैसे शामिल हुए, इसमें शामिल होने की खास वजह क्या थी?

मुझे एक दिन फोन आया कि हम जैकी चैन की एक फिल्म बना रहे हैं जिसमें ‘फिट एक्टर’ की लिस्ट में आपका नाम सबसे ऊपर है. उन्होंने स्क्रिप्ट भेजी, वीडियो कांफ्रेंसिंग पर बात हुई और मैं इसमें शामिल हो गया. इस फिल्म की खास आकर्षण मेरे लिए अभिनेता जैकी चैन और निर्देशक स्टैनले टोंग है, जो बहुत ही कमाल की एक्शन फिल्म बनाते हैं. मुझे बहुत इच्छा थी कि अगर मुझे एक्शन फिल्म करनी है तो जैकी चैन की फिल्म में काम करना है और वह सपना जो मैंने बचपन से देखा था, वह पूरा हो रहा है. उनकी सारी फिल्में मैंने देखी है.

प्र. किस प्रकार की तैयारी की है?

मैंने बीजिंग में करीब सात से आठ महीने जैकी चैन स्टाइल कुंग फू सीखने के लिए गया हूं. सुबह चार से पांच बजे उठकर माइनस दस डिग्री तापमान में रोज प्रैक्टिस करता था. यह केवल फिल्म के लिए ही नहीं किया बल्कि आगे भी मैं ऐसे एक्शन को भारत में ला सकता हूं. मैंने चाइनीज भाषा भी सीखी है.

प्र. आपके करियर में इतने उतार-चढ़ाव आये, फिर भी आप डटे रहे और काम करते रहे, इसे कैसे देखते हैं?

ये सही है कि मैं छोटे शहर से आया था. लेकिन माता-पिता का सहयोग हमेशा रहा, उनके सपोर्ट के बिना मैं यहां तक नहीं पहुंच सकता था. काम मिलेगा, इसी विश्वास के साथ मैं यहां आया था और धीरे-धीरे रास्ते खुलते गए. मैं तो एक इंजीनियर था, पर मेरी कद-काठी को देखकर दोस्त हमेशा एक्टर बनने की सलाह देते थे. मैंने भी पढ़ाई पूरी करने के बाद सोचा कि चलो एक साल कोशिश करते हैं, अगर सही हुआ तो यही रहेंगे, नहीं तो वापस जायेंगे. एक साल कैसे सालों में बदल गया पता ही नहीं चला.

प्र. मुंबई आने के दौरान सबसे अधिक संघर्ष कहां था?

मैंने फिल्म की प्रोसेस को बहुत एन्जॉय किया है, लेकिन जब आप परिवार से दूर रहते हैं, तो आप अपनी सारी बातें फोन पर ही शेयर कर पाते हैं, ऐसे में आप उन्हें अच्छी बातें ही शेयर करते हैं. कठिनाइयों को आप बता नहीं पाते. वहीं अधिक ‘मिस’ करता था, वहीं संघर्ष था. यह सिर्फ मेरे लिए ही नहीं, बल्कि हर बाहर से आने वाले एक्टर कर लिए मुश्किल होता है.

प्र. इस फिल्म का प्रोडक्शन आप कर रहे हैं, निर्माता बनना कितना मुश्किल होता है?

ये सही है कि कठिन है, लेकिन मुझे करना था. मैंने जैकी चैन को बीजिंग से चार्टेड प्लेन से मुंबई लाया, मुझे याद आता है जब मैं पहली बार मुंबई आया था तो मेरे पास टिकट का रिज़र्वेशन नहीं था. मैं लुधियाना से चलने वाली डिलक्स ट्रेन के चालू टिकट में आया था. इस तरह ये जर्नी बुरी नहीं है, भले ही मैं बड़े स्टार लिस्ट में शामिल नहीं हुआ हूं, लेकिन जो भी मेरी जिंदगी में हुआ है, उस दौरान मुझे सीखने को बहुत कुछ मिला है. मैंने इस फिल्म की डिस्ट्रीब्यूशन को भी संभाला हुआ है. फिल्म को बनाना एक ‘थीसिस’ लिखने जैसा है, जिसे एक पेन से लेकर हॉल तक जाकर खत्म होती है. इसका श्रेय मैं अपने पिता को देता हूं, जो एक व्यवसायी थे, ‘सेल्फ मेड’ थे. उनका कुछ असर मुझपर भी पड़ा है. इसके अलावा मैंने बहुत काम सीखा हुआ है, जब मुंबई आया था तो काम कम था. उस दौरान मैंने कैमरे को पकड़ना, साउंड रिकॉर्डिंग, एडिटिंग आदि फिल्म की सारी बारीकियां सीख ली हैं. मेरे घर में इस तरह की कई किताबें भी रखी हुई हैं. मैं इंजीनियरिंग बैकग्राउंड का हूं और मुझे सीखने की बहुत इच्छा रहती है. जिसका लाभ अब मुझे मिल रहा है.

प्र. क्या जीवन में कोई मलाल रह गया है?

(भावुक होकर) जिंदगी में मलाल यही रहेगा कि जो सफलता मुझे मिली, मेरे माता-पिता उसे देखने के लिए नहीं रहे.

प्र. क्या कोई ड्रीम प्रोजेक्ट है?

मैं एक बायोपिक बनाना चाहता हूं.

प्र. परिवार के साथ समय कैसे बिता पाते हैं?

मैं बहुत व्यस्त रहता हूं, लेकिन समय मिलने पर परिवार के साथ रहता हूं.

प्र. आपकी फिटनेस का राज क्या है?

मेरी फिटनेस की वजह मेरे मुंह पर एक जिप का लगना है, जो कुछ भी खाने नहीं देती. मैं पूरे दिन में तीन घंटे जिम करता हूं, कितना भी व्यस्त रहूं, जिम अवश्य जाता हूं.

प्र. यूथ के लिए क्या मेसेज देना चाहते हैं?

मैं यूथ से यह दुआ करता हूं कि सपने आप देखे, पर मेहनत खूब करें. सपने अगर टूटते हैं, तो अपने आप को और अधिक मजबूत करना सीखे. साथ ही यह सिद्ध करने की कोशिश करें कि दुनिया की कोई भी ताकत आपको आगे बढ़ने से रोक नहीं सकती. कर्म करते रहें, फल अपने आप मिल जायेगा.

दलबदल के घाव पर राम मंदिर का मलहम

बड़ी संख्या में बाहरी लोगों को पार्टी का टिकट देने से नाराज भाजपा कार्यकर्ताओं और नेताओं को समझाने के लिये पार्टी ने अपने घोषणापत्र में राम मंदिर को सबसे नीचे जगह दी है. राम मंदिर के लिये भाजपा के घोषणापत्र और प्रदेश अध्यक्ष का बयान आपस में मेल नहीं खाता. भाजपा के घोषणापत्र में कहा गया है कि संवैधानिक तरीके से हल निकाल कर पार्टी राम मंदिर बनवाने का काम करेगी. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष केशव मौर्य कहते हैं ‘प्रदेश में बहुमत की सरकार बनते ही राम मंदिर के बनाने का रास्ता साफ हो जायेगा.’ अपने कैडर को खुश करने के लिये भाजपा ने मुसलिम वर्ग के प्रत्याशी को टिकट नहीं दिया है.

असल में भाजपा के नेता और कार्यकर्ता दोनो को ही राम मंदिर बनाने में कोई दिलचस्पी नहीं है. दूसरे दलों की ही तरह से यह लोग भी चुनाव जीतने और सत्ता में रहने की कोशिश में रहते हैं. जब भी नाराजगी का मसला आता है तो राम मंदिर की याद आ जाती है. भाजपा ने उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में पार्टी के कमजोर होते जनाधार को देखते हुये बड़ी संख्या में दलबदल को बढ़ावा दिया. दूसरे दलों के नेताओं के आने से भाजपा का वोटर नाराज न हो इसके लिये पार्टी ने राम मंदिर की बात को कह दिया.

इसके पहले पार्टी कई बार यह की चुकी है कि राम मंदिर का मुद्दा उनका चुनावी एजेंडा नहीं है. अगर राम मंदिर चुनावी मुद्दा नहीं है तो इसे घोषणापत्र में शामिल क्यों किया गया? असल में राम मंदिर के मलहम को लगा भाजपा अपने नाराज लोगों को पार्टी से जोड़े रखना चाहती है. पार्टी अंदरखाने यह प्रचार भी कर रही है कि वह अकेली ऐसी पार्टी है जिसने एक भी मुसलिम को चुनाव लड़ने के लिये टिकट नहीं दिया है.

भाजपा ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की शुरुआत में मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती को प्रदेश में चुनावी प्रचार का हिस्सा बनाने का प्रयास किया था. उत्तर प्रदेश के लोगों का उमा भारती के प्रति उत्साह न देख कर अब सांसद योगी आदित्यनाथ को अपने प्रचार अभियान से जोड़ा है. योगी आदित्यनाथ अपनी उपेक्षा से नाराज थे. वह हिन्दू महासभा के टिकट पर चुनाव लड़ कर खुद को मुख्यमंत्री का प्रत्याशी घोषित करना चाहते थे. योगी के अलग होने से भाजपा का नुकसान होता, ऐसे में पार्टी ने घोषणापत्र जारी करते समय योगी आदित्यनाथ को तवज्जों दी और राम मंदिर को चुनावी घोषणापत्र में शामिल किया.

अयोध्या के संत ज्ञानदास कहते हैं ‘राममंदिर मसला सुप्रीम कोर्ट में है. कोर्ट के फैसले से ही जो होगा वह हो सकता है. भाजपा केवल राम मंदिर बनाने की बात करती है. उसे हर बार यह बात चुनावों के समय ही याद आती है. जनता इस बात को समझती है. ऐसे में वह किसी झांसे में नहीं आने वाली. राम मंदिर बनाने में प्रदेश सरकार की कोई भूमिका नहीं है. केन्द्र सरकार ही पहल कर समझौते या आपसी समझौते से राम मंदिर का निर्माण कर सकती है. केन्द्र में भाजपा की ताकतवर सरकार को ढाई साल हो गया. राम मंदिर पर कोई कदम नहीं उठा. ऐसे में चुनाव के घोषणापत्र मे इसको शामिल करना केवल वोटरों को बरगलाने का हिस्सा भर है.’

मुझे संवाद रटने की जरूरत नहीं पड़ती : मोहम्मद सउद

‘‘स्टार प्लस’’ पर 26 जनवरी से हर शाम साढ़े छह बजे प्रसारित हो रहे सीरियल ‘‘मेरी दुगा’’ में दुर्गा के साथ स्कूल में पढ़ने वाले तथा दुर्गा की बदमाश मानी जाने वाली चार सदस्यीय टीम का हिस्सा बंसी ने महज चार एपीसोड के प्रसारण में ही हर किसी को अपना दीवाना बना लिया है. जबकि बंसी का किरदार निभा रहे बाल कलाकार मोहम्मद सउद ने अभिनय की कोई ट्रेनिंग नहीं ली है. तो फिर उसके अभिनय के लोग दीवाने क्यों हो रहे हैं? इसकी मूल वजह यह है कि वह उस वक्त से अभिनय करते आ रहा है, जब वह अभिनय का नाम तक नहीं जानता था. मोहम्मद सउद का दावा है कि उसकी मां ने ही उसे बताया कि उसका जन्म गुजरात के अहमदाबाद शहर में हुआ था और वह दो माह की उम्र से ही विज्ञापन फिल्मों में अभिनय करने लगा था.

कक्षा सातवीं के छात्र तेरह वर्षीय मोहम्मद सउद ने विज्ञापन फिल्में करते करते सीरियल ‘‘जय जय बजरंग बली’’ में राम का किरदार निभाकर टीवी पर कदम रखा. उसके बाद से वह ‘कुमकुम भाग्य’, ‘एक था राजा एक थी रानी’, ‘प्रतिज्ञा’ सहित कई सीरियलों में अभिनय कर चुके हैं. इतना ही नहीं मोहम्मद सउद ने फिल्म अभिनेता इमरान हाशमी के साथ एक सीरियल में प्रमोशनल एपीसोड किया था, उसके बाद उसे फिल्म ‘‘अजहर’’ में मो. अजहरुद्दीन के बचपन का किरदार निभाने का अवसर मिला. इसके अलावा मोहम्मद सउद ने जैगम इमाम की शिक्षा को बढ़ावा देने वाली और मदरसा व कंवेंट शिक्षा को लेकर बनायी गयी फिल्म ‘‘अलिफ’’ में भी मुख्य भूमिका निभाई है. यह फिल्म तीन फरवरी को पूरे देश के सिनेमाघरों में प्रदर्षित हो रही है. इस फिल्म के लिए उसे सर्वश्रेष्ठ बाल कलाकार का इंटरनेशनल अवार्ड भी मिल चुका है.

सीरियल ‘‘मेरी दुर्गा’’ तो दुर्गा नामक लड़की की कहानी है. इसमें आप क्या कर रहे हो?

– आप एकदम सही कह रहे हैं. सीरियल के नाम के अनुरूप इसकी कहानी दुर्गा के इर्द गिर्द घूमती है. मगर हकीकत यह है कि यह सीरियल हरियाणा की पृष्ठभूमि की कहानी है, जो कि लड़कियों को पढ़ाने का संदेश देता है. इस सीरियल में लोग मुझे बंसी के किरदार में देख रहे हैं. बंसी और उसके दो जिगरी दोस्त हैं. जो कि दुर्गा के ही गांव में रहते हैं और दुर्गा के ही साथ एक ही कक्षा में पढ़़ते हैं. यानी कि दुर्गा की यह चार सदस्यीय टोली है. जो कि आपको पूरे गांव व स्कूल में एक साथ हमेशा नजर आते रहेंगे. अब बंसी और दुर्गा के बीच किस तरह का रिश्ता आगे बढ़ेगा, किस तरह की रोचक घटनाएं होने वाली हैं, वह सब जानने के लिए तो सीरियल ‘‘मेरी दुर्गा’’ देखना ही पड़ेगा. मगर यह सच है कि इस सीरियल में मेरा बंसी का किरदार  भी अहम है.

सीरियलों में किन किन लोगों के साथ काम कर चुके हो?

– शब्बीर अहलूवालिया, दृष्टि धामी, श्रृति झा, सिद्धांत, उपासना सिंह सहित कई कलाकारों के साथ काम करते हुए इंज्वाय किया है.

सेट पर बड़े कलाकारों के साथ आप काम करते हैं. उनसे आपकी किस तरह की बातचीत होती है?

– मेरे लिए सेट पर कलाकार बड़े नही होते हैं. सब मेरे भाई या बहन होते हैं. मसलन मैं इमरान हाशमी को इमरान भइया, शब्बीर आहलुवालिया को शब्बीर भइया ही या दृष्टि धामी को दृष्टि दीदी ही कहता हूं. यह सभी मुझे सेट पर अपने छोटे भाई की तरह प्यार देते हैं. हमारे साथ मस्ती मजाक भी करते हैं. हम खेल भी करते हैं. सच कहूं तो जब हम सेट पर शूटिंग करते हैं, तो मुझे यह नहीं लगता है कि हम कोई बड़ा काम कर रहे हैं. हां! जब सीरियल प्रसारित होता हैं या फिल्म रिलीज होती है, तो पता चलता है कि हां मैंने कुछ काम किया था. हम सेट पर अपने कलाकारों के साथ स्क्रिप्ट को लेकर भी चर्चा करते हैं. शब्बीर भईया और दृष्टि दीदी के साथ तो हम सेट पर खूब मस्ती करते हैं. उपासना दीदी के साथ तो हम सेट पर मस्ती के साथ साथ पढ़ाई भी कर लेते हैं. गौरव शर्मा भइया तो सिर्फ मस्ती ही करते हैं. हां! इमरान हाशमी भइया के साथ थोड़ी मस्ती कम हुई थी. वह कम बोलते हैं और थोड़ा गंभीर किस्म के हैं.

सेट पर कभी ऐसा भी हुआ होगा कि आप चार पांच बच्चों का सीन है. तो कभी आप संवाद भूल जाते होंगे. या कभी आपका दूसरा साथी संवाद भूल जाता होगा?

– अब तक तो मैं कभी अपने संवाद नहीं भूला. पर जब मेरा कोई दूसरा दोस्त अपना संवाद भूलता है, तो हम उसे चियरअप करने की कोशिश करते हैं. मैं तो उसे उसका संवाद याद दिलाने की कोशिश करता हूं.

तो क्या आप दूसरे बच्चों के भी संवाद याद कर लेते हो?

– ऐसा नही है. सेट पर सहायक निर्देशक हम लोगों को संवाद सुनाया करते हैं. जिसके चलते हम अपने दोस्त के उन संवादों को दोहरा देते हैं. इसके अलावा सामने वाला कोई शब्द भूल रहा है, तो हम अपने होंठ चलाकर भी उसे बता सकते हैं. कई बार तो मैं भी अपने साथी को सीन के बारे में समझा देता हूं कि कैसे करना चाहिए. तो वहीं सेट पर जब शब्बीर आहलुवालिया भइया हों, तो वह मुझे सीन के बारे में समझा देते हैं.

क्या आप अपने संवाद रटते हो?

– संवाद रटने की जरूरत नहीं पड़ती. सब कुछ एकाग्रता वाली बात है. हम सुबह सेट पर पहुंचते हैं. निर्देशक उस दिन की पूरी स्क्रिप्ट हमें दे देते हैं. हम स्क्रिप्ट को दो तीन बार पढ़ लेते हैं. उसके बाद जब मेरे सीन की शूटिंग होती है, तब हम अपने सीन के संवाद को दो तीन बार पढ़ते हैं. फिर रिहर्सल में चार पांच बार संवाद दोहराते हैं. रटने की जरूरत नहीं पड़ती है. रिहर्सल के दौरान निर्देशक बताते हैं कि हमें किस तरह मूव करना है.

इसके बाद क्या करने वाले हो?

– यह कहना मुश्किल है. जब तक दर्शक हमें पसंद करेंगे, तब तक हम ‘मेरी दुर्गा’ में बंसी के किरदार में नजर आते रहेंगे. वैसे एक सीरियल के पायलट एपीसोड की शूटिंग कलकत्ता में कर चुका हूं. पर इस सीरियल का प्रसारण कब शुरू  होगा, इसकी जानकारी मुझे नहीं है.

मियां बीवी में नाराजी, तो क्या करेगा काजी

हिंदू विवाह कानून 1956 में लिखा हुआ है कि यदि तलाक हो जाए तो भी 6 माह तक टूटे पतिपत्नी विवाह नहीं कर सकते और उन्हें एक बार फिर अदालत आ कर आवेदन करना होगा कि उन के तलाक पर अंतिम मुहर लगाई जाए ताकि वे नए सिरे से जिंदगी शुरू कर सकें. इस कानून की धारा के खिलाफ सहमति से तलाक पाए एक जोड़े ने सुप्रीम कोर्ट जा कर गुहार लगाई कि उन्हें 6 माह की शर्त से मुक्ति दिलाई जाए, क्योंकि युवती इंगलैंड जा कर बसना चाहती थी और वहां से फिर 6 माह बाद लौटना नहीं चाहती थी. न जाने क्यों सुप्रीम कोर्ट को इस भूतपूर्व जोड़े पर दया आ गई और उस ने युवती की गुजारिश मान ली और उन्हें तुरंत मुक्त कर दिया.

असल में भारत में आज भी विवाह कानून संस्कार है कि एक बार विवाह हो गया तो 7 जन्मों तक का साथ होगा पर यह शर्त केवल पत्नी के लिए है, पति चाहे तो दूसरा विवाह कर सकता था या फिर पत्नी को घर से निकाल सकता था. 1956 में हिंदू विवाह अधिनियम व हिंदू विरासत कानून बनने के बाद औरतों को बहुत से अनाचारी नियमों से छुटकारा मिला है, बहुविवाह बंद हुआ, बालविवाह बंद हुआ, बिना तलाक लिए दूसरा विवाह बंद हुआ, संपत्ति में हिस्सा मिला, तलाक के बाद गुजाराभत्ता मिलने लगा. लेकिन इन अधिकारों को पाने में मशक्कत बहुत करनी पड़ती है.

पतिपत्नी का रिश्ता चाहे कितने ही प्रेम का हो, बच्चों के साथ बंधा हो, होता यह कच्ची डोर का सा है. कानून और समाज ने सदियों से इसे एक विशिष्ट मान्यता दी है और धर्मों ने इस पर अपने बनाए ईश्वर की मुहर लगवा दी ताकि उसे ईश्वर की आवाज माना जाए पर पहले भी रिश्ते टूटते थे आज भी टूट रहे हैं.

पहले सिर्फ आदमी तोड़ते थे और अगर औरतें तोड़ती थीं तो कुलटा कहलाई जाती थीं. आज कानूनों में सुधार के कारण वे पुनर्विवाह के लायक भी हैं, पर कानूनी प्रक्रिया अभी भी लंबी और निरर्थक है. बेमतलब के कानूनों में तलाक के लिए लंबी लड़ाई लड़नी होती है. कभीकभार तलाक मिलता ही नहीं यानी बंधे रहो एकदूसरे से. सहमति से मिले तलाक में भी हजारों अडं़गे हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केवल उसी जोड़े को छूट दी, सब को नहीं दी, यह गलत है. यह प्रावधान हटना ही चाहिए. तलाक हो गया तो फिर 6 माह के कूलिंग पीरियड का क्या लाभ है? इसे सभी के लिए समाप्त कर दो.      

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