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आपके स्मार्टफोन की बैट्री खराब कर सकते हैं ये ऐप

स्मार्टफोन यूजर्स बैट्री जल्दी खत्म होने की समस्या से परेशान रहते हैं. बैट्री कितनी देर तक टिकती है, यह बात फोन के स्पेसिफिकेशंस और इस्तेमाल पर निर्भर करती है.

स्मार्टफोन्स के जरिए हम कई सारे काम करते हैं. गाने सुनते हैं, विडियो देखते हैं, गेम्स खेलते हैं और कई तरह के ऐप्स इस्तेमाल करते हैं. जाहिर है कि सब तरह के ऐप्स इस्तेमाल करने से बैट्री खर्च होती है, मगर इस मामले में कुछ ऐप्स का प्रदर्शन ज्यादा ही खराब है.

आगे जानें, किस तरह के ऐप्स ज्यादा बैट्री खर्च करते हैं. अगर आप ज्यादा बैट्री लाइफ चाहते हैं तो इन ऐप्स को अनइंस्टॉल कर सकते है.

बैट्री सेवर ऐप्स

आपको यह जानकर हैरानी होगी कि रैम क्लीन करने वाले या बैट्री सेव करने वाले ऐप्स भी ज्यादा बैट्री खर्च करते हैं. दरअसल ये ऐप्स बैकग्राउंड पर रन करते रहते हैं. तब भी, जब आप फोन को इस्तेमाल न कर रहे हों. ये ऐप्स हेंडसैट को लगातार स्कैन करते रहते हैं और जंक फाइल्स वगैरह को क्लीन करते रहते हैं.

गेमिंग ऐप्स

अगर आप गेम्स खेलना पसंद करते हैं तो इन ऐप्स को हटाना शायद आप न पसंद करें. जितने हेवी ऐप्स होंगे, उतनी ही ज्यादा बैट्री खर्च होगी. 3डी ऐनिमेशन वाले ऐप्स बैट्री को जल्दी खत्म करते हैं. अगर आप इंस्टॉल नहीं करना चाहते तो उन्हें फोर्स स्टॉप कर सकते हैं. ये तब तक इनऐक्टिव रहेंगे, जब तक आप इनपर टैप नहीं करेंगे.

ऐंटी वाइरस ऐप्स

बैट्री सेवर और रैम मैनेजमेंट ऐप्स की तरह ऐंटी-वाइरस ऐप्स भी बैकग्राउंड में रन करते रहते हैं, ताकि मोबाइल को खतरों से बचा सकें. स्कैन करने में ये जितना ज्यादा वक्त लेंगे, बैट्री उतनी ही तेजी से खर्च होगी. कुछ ऐंटी वाइरस ऐप्स तो कैमरा का भी ऐक्सस हासिल कर लेते हैं, ताकि आपका हैंडसेट अनलॉक करने की कोशिश करने वाली की तस्वीर ले सके. यह अच्छा फीचर तो है, मगर बैट्री को जल्दी खत्म करता है.

सोशल मीडिया ऐप्स

फेसबुक सबसे पॉप्युलर स्मार्टफोन ऐप है, मगर यह बैट्री भी ज्यादा खर्च करता है. यह ऐप बैकग्राउंड में रन करता रहता है, ताकि आपको नोटिफिकेशंस वगैरह भेज सके. फेसबुक ही नहीं, मेसेंजर ऐप भी फोन की बैट्री को खत्म करने में बड़ी भूमिका निभाता है. स्नैपचैट, स्काइप और इंस्टाग्राम जैसे हेवी सोशल मीडिया ऐप्स भी यही करते हैं.

फोटो-एडिटिंग ऐप्स

अगर आपको तस्वीरें लेकर एडिट करने का शौक है तो आपके स्मार्टफोन में जरूर फोटोएडिटिंग ऐप्स होंगे. ये ऐप्स हेवी होते हैं और इमेज वगैरह प्रोसेस करने में बहुत पावर इस्तेमाल करते हैं. इसलिए या तो इन ऐप्स को कम इस्तेमाल करें या फिर पावरबैंक लेकर चलें.

इंटरनेट ब्राउजर ऐप्स

अगर आपके स्मार्टफोन में एक्स्ट्रा ब्राउजर ऐप्स हैं तो उन्हें हटा दीजिए. एक ही ब्राउजर ऐप रखिए. कुछ ब्राउजर न्यूज या अन्य तरह की नोटिफिकेशन के लिए नेट से जुड़े रहते हैं, जिस वजह से बैट्री खर्च हो जाती है.

फ्रूट बुके : तोहफा सेहतभरा

हमारे यहां शुरू से चाहे बर्थडे पार्टी हो, मैरिज एनिवर्सरी हो, फूलों का बुके देने का चलन है. लेकिन जहां फ्लावर बुके की शोभा कुछ घंटों तक सीमित रहती है, वहीं फ्रूट बुके आकर्षक होने के साथ हैल्दी औप्शन भी देता है. खास मौकों पर फ्रूट बुके भेजने का यह एक यूनिक आइडिया है 28 वर्षीया नेहा अग्रवाल का. नेहा कुछ हट कर करना चाहती थीं, जिस में नयापन हो और लोगों के लिए हैल्दी भी हो. चूंकि नेहा के पास फूड टैक्नौलौजिस्ट की डिगरी थी, सो उन्होंने लोगों के स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए सोचा क्यों न कुछ ऐसा किया जाए कि लोगों को सेहतभरा तोहफा मिले और उन्होंने ‘फ्रूट्ज कौंसैप्ट्स’ के नाम से फ्रूट बुके का काम शुरू किया.

आज नेहा के फ्रूट बुके पसंद करने वालों की लिस्ट दिनबदिन लंबी होती जा रही है. फलों की कलात्मकता के साथ पेश करने का यह आइडिया लोगों को खासा पसंद आ रहा है. फ्रूट बुके में ताजा फलों के साथ चौकलेट्स व ड्राईफ्रूट्स को शामिल किया जाता है. फ्रूट बुके बनाते समय फलों की ताजगी का पूरा ध्यान रखा जाता है. आप चाहें तो अपनी पसंद के अनुसार मनचाहे आकार और फलों का बुके बनवा सकते हैं. यानी आप अपनी पसंद का फ्रूट बुके और्डर कर सकते हैं.

नेहा बताती हैं कि फ्रूट बुके बनाते समय फलों की क्वालिटी व ताजगी का पूरा ध्यान रखा जाता है. बुके होम डिलीवरी करने से कुछ घंटे पहले ही तैयार किया जाता है. फलों का बुके सजाते समय साफसफाई का पूरा ध्यान रखा जाता है. फलों को निर्धारित तापमान पर रखा जाता है, ताकि उन की ताजगी बरकरार रहे. बुके को बनाने के बाद उसे हाइजीनिक और जर्मफ्री रखने के लिए जर्म प्रोटैक्ट शील्ड से कवर किया जाता है.

फ्रूट बुके को आकर्षक बनाने के लिए किस्मकिस्म की टोकरियों और वासेज का प्रयोग किया जाता है. कटर की सहायता से फलों को हार्ट फ्लावर्स आदि की आकर्षक शेप दी जाती है और फलों को इस तरह व्यवस्थित किया जाता है कि वे बुके का रूप ले लें. फ्रूट बुके 3 साइज में उपलब्ध होते हैं — स्मौल, मीडियम और लार्ज. स्मौल फ्रूट बुके 5 लोगों के लिए काफी होता है, मीडियम बुके 8 लोगों के लिए और लार्ज बुके 12 लोगों के लिए काफी होता है. आप सप्ताह के सातों दिन चौबीसों घंटे 24 3 7 औनलाइन और्डर कर सकते हैं. आप बुके में अपनी पसंद के फलों का चुनाव कर सकते हैं. बुके के पेमैंट आप क्रैडिट कार्ड, डैबिट कार्ड, नैट बैंकिंग द्वारा कर सकते हैं.

पेटीएम का सरकारी विकल्प

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 8 नवंबर को नोटबंदी की घोषणा के एक दिन बाद पेटीएम जैसी निजी कंपनी ने अखबारों के पहले पेज पर बड़े विज्ञापन दिए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 8 नवंबर को नोटबंदी की घोषणा के एक दिन बाद पेटीएम जैसी निजी कंपनी ने अखबारों के पहले पेज पर बड़े विज्ञापन दिए तो कई लोग तत्काल समझ नहीं पाए कि उन विज्ञापनों का आशय क्या है.

लेकिन यह जल्दी से समझ आ गया कि यह औनलाइन कारोबार करने वाली कंपनी नकदी की कमी का फायदा उठाना चाहती है. इस के साथ ही मोबिक्विक, फ्रीचार्ज तथा इट्जकैश जैसी कंपनियों का कारोबार रातोंरात बढ़ने लगा. पेटीएम ने सर्वाधिक फायदा कमाया और उस के ग्राहकों की संख्या देश के सब से बड़े स्टेट बैंक औफ इंडिया के ग्राहकों से आगे निकल गई.

औनलाइन कंपनियों में लाभ कमाने की होड़ लग गई लेकिन नैशनल पेमैंट कौर्पोरेशन औफ इंडिया यानी एनपीसीआई की औनलाइन भुगतान कंपनी यूनाइटेड पेमैंट्स इंटरफेस यानी यूपीआई में उस का ज्यादा असर नहीं हुआ. यह पेटीएम की तरह सरकारी क्षेत्र की औनलाइन भुगतान कंपनी है जिस के जरिए सरकार सारे भुगतान औनलाइन करने की प्रक्रिया अपनाना चाहती है.

रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के दिमाग की यह कल्पना इस वर्ष अप्रैल में सामने आई और अगस्त में उस की शुरुआत कर दी गई लेकिन औनलाइन भुगतान का यह सरकारी उपक्रम अब तक कोई रंग नहीं दिखा सका. यूपीआई, दरअसल, सरकारी क्षेत्र का सफेद हाथी है जिस पर रंग सरकारी योजनाओं के अनुसार चढ़ सकता है. इस कंपनी में सबकुछ है लेकिन कर्मचारियों को काम नहीं करना पड़े और यूपीआई सफेद हाथी बना रहे, कंपनी के अधिकारी इसी फिराक में जुटे हैं. वरना ई-कौमर्स के इस दौर में यह कंपनी भी दौड़ती होती और सरकार को फायदा दे रही होती, साथ ही आम नागरिक के लिए अपेक्षाकृत ज्यादा विश्वसनीय भी बनती.

औनलाइन भुगतान व्यवस्था वाले 15 देशों में, विश्वस्तर पर औनलाइन भुगतान करने वाली सब से बड़ी कंपनी मास्टर कार्ड ने कैशलैस व्यवस्था वाले दुनिया के 15 देशों का एक डाटा पेश किया है जिस में भारत सब से निचले पायदान पर है. इन देशों में सर्वाधिक 61 प्रतिशत औनलाइन काम सिंगापुर में होता है जबकि नीदरलैंड 60 प्रतिशत के साथ दूसरे स्थान, 59 प्रतिशत के साथ फ्रांस तीसरे, इतने ही प्रतिशत के साथ स्वीडन चौथे और 57 प्रतिशत के साथ कनाडा 5वें स्थान पर है. दुनिया की महाशक्ति कहलाने वाला अमेरिका 45 प्रतिशत के साथ 8वें, ब्रिटेन 52 प्रतिशत के साथ 7वें और 56 प्रतिशत के साथ बैल्जियम छठे स्थान पर है जबकि आस्ट्रेलिया 35 फीसदी के साथ नवें और दक्षिण कोरिया 29 प्रतिशत के साथ 10वें स्थान पर है.

इस क्रम में 16 प्रतिशत के साथ स्पेन 11वें, 5 प्रतिशत के साथ ब्राजील 12वें, 14 फीसदी के साथ जापान 13वें, 10 फीसदी के साथ चीन 14वें और 2 फीसदी के साथ भारत 15वें स्थान पर है. इसी तरह से एटीएम में भारत 7 प्रमुख देशों में आखिरी पायदान पर है. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ के एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में 1 लाख लोगों पर महज 20 एटीएम हैं जबकि इतनी ही आबादी पर चीन में 254, कनाडा में 221, अमेरिका में 173, रूस में 173, आस्ट्रेलिया में 165, ब्रिटेन में 132, ब्राजील में 129 तथा जापान में 128 एटीएम हैं. ऐसी स्थिति में देश में कैशलैस व्यवस्था को लागू करना कितना मुश्किल है, यह सरकार भी जानती है. मोदी सरकार ने देश को कैशलैस व्यवस्था में लाने का जो संकल्प लिया उस का लाभ बड़ी आबादी को मिलेगा.

जो लोग भुगतान के लिए ई-कौमर्स व्यवस्था का इस्तेमाल कर सकते हैं उन्हें तो इस सिस्टम से जोड़ा ही जा सकता है. एक अनुमान के अनुसार, 32 करोड़ लोग हमारे यहां इंटरनैट का इस्तेमाल कर रहे हैं और अगर 32 करोड़ की यह आबादी नैट बैंकिंग जैसी भुगतान प्रणाली से जुड़ जाती है तो इसे बड़ी उपलब्धि माना जाएगा.

अस्थिरता के बीच मजबूती पर टिके रहे बाजार

नोटबंदी की घोषणा के बाद से बौंबे स्टौक एक्सचेंज यानी बीएसई के सूचकांक में उथलपुथल मची है. यह स्वाभाविक भी है. देश की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर डालने वाले निर्णय के बाद बाजार में अनिश्चितता तो आनी ही थी लेकिन नकदी की किल्लत के कारण यह संकट और बढ़ गया. अगर नकदी का संकट गहराता नहीं तो सूचकांक के लंबी छलांग लगाने के आसार थे. नोटबंदी पर संसद से सड़क तक जो गतिरोध पैदा हुआ उस ने शेयर सूचकांक को ज्यादा अस्थिर कर दिया. रि

जर्व बैंक ने इस बीच ब्याज दरों में उम्मीद के विपरीत कटौती नहीं की, बावजूद उस के रुपया दिसंबर के पहले सप्ताह लगभग 5 सत्र तक मजबूती पर रहा और उस में सुधार देखा गया.

शेयर बाजार भी 4 दिसंबर से पहले लगातार 4 दिन तक तेजी पर रहा. दूसरे बाकी भी बाजारों में मामूली गिरावट के बाद तेजी का ही रुख रहा. जानकारों के मुताबिक भारतीय बाजार में यह रुख वैश्विक स्तर पर शेयर बाजारों में तेजी के माहौल से आया.

विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि आंतरिक स्थितियों से प्रभावित होने के बजाय सूचकांक एक पैंडुलम की तरह नजर आया जिस की दोलन गति दुनिया के बाजारों में उत्पन्न हालात पर आधारित रही है. इन सब परिस्थितियों के बावजूद दिसंबर के दूसरे सप्ताह तक बाजार में तेजी का माहौल रहा और सूचकांक मजबूती पर बंद हुआ. 

पासवर्ड की भूलभुलैया

राकेश सचान पूरे परिवार के साथ छुट्टियां मनाने के लिए औनलाइन टिकट बुक करा रहे थे कि ऐन मौके पर अपने वीजा कार्ड का पासवर्ड भूल गए. नतीजतन, सारी प्रक्रिया लगभग पूरी होने के बावजूद टिकटें बुक नहीं हो सकीं. हारकर उन्हें टिकटें बुक कराने के लिए रेलवे काउंटर पर जाना पड़ा लेकिन तब तक सीटें फुल हो चुकी थीं.

कुलवंत सिंह के साथ तो इस से भी बुरा तब हुआ जब वे अपना फेसबुक अकाउंट खोल रहे थे और अचानक पासवर्ड भूल गए. इस वजह से उन्हें एक जरूरी सूचना कई घंटों बाद मिल सकी जब उन्होंने आखिरकार अपने फेसबुक अकाउंट का पासवर्ड बदला.

आजकल की व्यस्त जीवनशैली में परेशान करने वाली ऐसी तकनीकी घटनाएं काफी आम हो गई हैं. एक साल पहले हुए एक सर्वेक्षण के मुताबिक मोबाइल, इंटरनैट, इंटरनैट बैंकिंग, एटीएम जैसी तमाम तकनीकी सुविधाओं का लाभ उठाने वाले हर 10 में से 3 लोग अपना पासवर्ड भूल जाने या उन के पासवर्ड सार्वजनिक या लीक हो जाने की समस्या से पीडि़त रहते हैं. एक पत्रिका ने अपने विश्वव्यापी सर्वेक्षण में पाया है कि तमाम तरह की तकनीकों का इस्तेमाल करने वाले लोगों में से 30 फीसदी लोग कभी न कभी अपना पासवर्ड भूल जाने की समस्या का सामना करते हैं.

तकनीकी बोझ

पासवर्ड आधुनिक जीवनशैली का एक तकनीकी बोझ है. दोढाई दशकों पहले लोग इस तरह के बोझों से मुक्त थे क्योंकि जिंदगी के सरोकार इतने मशीनी व तकनीक पर आधारित नहीं थे. लेकिन आज पासवर्ड जीवनशैली का अभिन्न हिस्सा बन गए हैं. इस कारण इन की कोई अनदेखी करने की नहीं सोच सकता खासकर ऐसे लोग जो प्लास्टिक मनी, मोबाइल बैंकिग, ईमेल, इंटरनैट जैसी सुविधाओं का हर समय इस्तेमाल करते हैं. आज सक्रिय जीवनशैली जीने वाला कोई व्यक्ति अमूमन 3 से 4 पासवर्ड हर समय ढोता है. लेकिन अगर जैनरेशन एक्स और वाई की बात करें तो यह तो औसतन 5 से 6 पासवर्ड से लैस रहती है. बड़े शहरों से ले कर छोटे और मझोले शहरों तक में रहने वाले लोग इस लत का शिकार हैं. हर गुजरते दिन के साथ लोग पासवर्ड्स के चक्रव्यूह में फंसने के लिए मजबूर होते जा रहे हैं. तमाम आधुनिक संचार साधनों मसलन ईमेल, इंटरनैट का तो बिना पासवर्ड इस्तेमाल संभव ही नहीं है. जिस तरह जिंदगी के सरोकारों में तकनीकी उपकरणों की भूमिका बढ़ती जा रही है, उसी रफ्तार से पासवर्ड्स का बोझ भी बढ़ता जा रहा है.

पासवर्ड और आप

पासवर्ड क्या है? वास्तव में पासवर्ड वह गुप्त तकनीकी चाबी है जिस की बदौलत आप साइबर दुनिया के अपने ठिकानों/खातों में प्रवेश कर सकते हैं. यह चाबी कोई और नहीं बनाता, आमतौर पर इसे आप खुद ही बनाते हैं. पासवर्ड कोईर् गुप्त शब्द या कैरेक्टर हो सकता है जो आप और आप की दुनिया के बीच उस विश्वसनीयता का सुबूत होता है जो यहां तक पहुंचने के लिए जरूरी होता है. इसी चाबी के जरिए आप साबित करते हैं कि आप वही हैं जिस का दावा कर रहे हैं और जब मशीनी तकनीक आप के उस दावे को सही पाती है तो आप की पूरी दुनिया आप के सामने खुली किताब की तरह आ धमकती है. कहने का मतलब यह है कि आप के बैंक में लाखों रुपए हों लेकिन इन रुपयों को आप एटीएम कार्ड के जरिए तब तक नहीं निकाल सकते जब तक मशीन द्वारा पूछे गए पासवर्ड को आप बता न सकें और उस पासवर्ड के जरिए मशीन आप की सत्यता को स्वीकार न कर ले.

पासवर्ड आज की जीवनशैली का एक ऐसा जरूरी माध्यम बन गया है जिस के बिना आप क्रैडिट और डैबिट कार्ड से शौपिंग नहीं कर सकते, रैस्टोरैंट में खाने के बाद बिल नहीं अदा कर सकते और सफर के लिए टिकट नहीं खरीद सकते. पासवर्ड हर जगह आप को, ‘आप’  साबित करता है.

आज की तारीख में पूरी दुनिया में अरबों की संख्या में पासवर्ड हैं. महानगरों में रहने वाला शायद ही कोई सक्रिय व्यक्ति हो जो अपने पास कई तरह के पासवर्ड न रखता हो. पासवर्ड सुरक्षा का तकनीकी उपाय है. यह आप को जहां एक तरफ सुविधाएं हासिल करने के लिए योग्य बनाता है वहीं दूसरी ओर आप की उस निजी दुनिया को उन लोगों से दूर रखता है जो इस का गलत इस्तेमाल कर सकते हैं. एक अनुमान के मुताबिक, इस समय हिंदुस्तान में ही अकेले 4 से 5 अरब पासवर्ड मौजूद हैं जिन का हर दिन 40 करोड़ से ज्यादा लोगों द्वारा इस्तेमाल किया जाता है. सब से ज्यादा पासवर्ड ईमेल सुविधाओं, बैंकिंग सुविधाओं और मोबाइल व एटीएम के लिए इस्तेमाल होता है. पासवर्ड के बिना आजकल आप अपनी ही वैयक्तिक दुनिया में मनचाहे ढंग से विचरण नहीं कर सकते.

कैसे आया पासवर्ड

वैसे, पासवर्ड कोई बिलकुल नई खोज नहीं है. पासवर्ड या वाचवर्ड वास्तव में बहुत पुरानी व्यवस्था है जिस का इस्तेमाल प्राचीनकाल में रोमन सेनाओं को व्यवस्थित रखने के लिए किया जाता था. रात में जब रोमन सेनाएं अपने किसी अभियान के लिए मार्च करती थीं तो वे एक विशेष कोडवर्ड या पासवर्ड के जरिए ही अपने रास्ते में आने  वाली बाधाओं को दूर करती थीं. इसी के जरिए सैनिक शिविर खाली करते थे. इसी तरह किसी विशेष पासवर्ड के जरिए ही शिवाजी की सेनाएं मुगलों पर टूट पड़ने का आपस में संदेश प्रेषित करती थीं. पासवर्ड के जरिए ही अतीत में सेनाएं अपनी सुरक्षा, रखवाली और दुश्मन को जांचनेपरखने का काम करती रही हैं.

लेकिन आधुनिक जमाने में पासवर्ड का यह समाजशास्त्र बदल गया है. आज पासवर्ड सेनाओं या महज तकनीकी दुनिया तक ही सीमित नहीं रह गया बल्कि यह रोजमर्रा की जिंदगी की सुविधाओं को हासिल करने का एक तकनीकी उपाय बन गया है. आज पासवर्ड वह व्यवस्था है जिस के जरिए आप अपनी दुनिया को बहुत मोबाइल बना सकते हैं. दुनिया के किसी भी कोने में रहते हुए अपने बैंक अकाउंट का इस्तेमाल कर सकते हैं, पैसे निकाल सकते हैं, जमा कर सकते हैं और यह जांच सकते हैं कि उस की वास्तविक स्थिति क्या है. पासवर्ड के जरिए ही आप एक तरफ जहां तकनीकी विकास का फायदा उठाते हैं, वहीं दूसरी तरफ इसी के जरिए ही आप इस जटिल दुनिया में अपनी सुरक्षा भी करते हैं.

अपराधियों की पहुंच

लोगों के निजी पासवर्ड तक घुसपैठ कर सकने वाले शातिर अपराधियों की संख्या दिनपरदिन बढ़ती जा रही है, जिस के चलते हर दिन पूरी दुनिया में औसतन 10 लाख पासवर्ड नए बनते हैं. शातिर अपराधी पारंपरिक ढंग से बनाए गए पासवर्डों को अपनी तेजतर्रार तकनीकी जानकारियों की बदौलत तोड़ डालते हैं और आप की दुनिया में घुस कर आप को आर्थिक व सामाजिक नुकसान पहुंचाते हैं. याद करिए डेढ़ दशक पहले का वह वाकेआ जब स्वीडन के एक किशोर लासे लुजान माइक्रोसौफ्ट के पासवर्ड को जान गया था और इस जानकारी के चलते उस ने कंप्यूटर जगत का पर्याय समझी जाने वाली इस कंपनी को कंपा दिया था. हालांकि लासे लुजान ने माइक्रोसौफ्ट को जरा भी नुकसान नहीं पहुंचाया था, न ही उस ने इसे किसी तरह के नुकसान पहुंचाने का इरादा ही जाहिर किया था. लेकिन अपनी इस हरकत के जरिए उस ने बिल गेट्स और पौल एलेन के माथे पर चिंताओं की लकीरें ला दी थीं.

सुरक्षा व्यवस्था का कोड

आज पासवर्ड बहुत नाजुक किस्म की हमेशा चितिंत करने वाली सुरक्षा व्यवस्था बन कर रह गईर् है. हिंदुस्तान में 10 करोड़ से ज्यादा लोग हर दिन इंटरनैट का इस्तेमाल करते हैं. 2 करोड़ से ज्यादा लोग सप्ताह में 1 से 3 दिन इंटरनैट के जरिए शौपिंग करते हैं. रैस्टोरैंट में खाना खाने और सफर के लिए टिकट खरीदने का काम भी चूंकि बड़े पैमाने पर प्लास्टिक मनी के जरिए संपन्न होता है, इसलिए हर पल करोड़ों लोगों की जिंदगी पासवर्ड के दायरे में रहती है.

देश में 8 करोड़ से ज्यादा लोग मोबाइल और इंटरनैट बैंकिंग का इस्तेमाल करते हैं तथा 40 करोड़ से ज्यादा लोग मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं. ये तमाम गतिविधियां बिना पासवर्ड के संभव ही नहीं हैं. यही कारण है कि आज महानगरों में रहने वाली युवा पीढ़ी एकसाथ 5 से 7 पासवर्ड का बोझ ढो रही है.

सवाल है ऐसी स्थिति में क्या पासवर्ड्स का यह चक्रव्यूह उन्हें परेशान भी करता है? उत्तर है, हां. जिस तरह से पासवर्ड्स की संख्या एक कामकाजी आधुनिक, तकनीकीप्रिय युवा के पास बढ़ रही है, उसी तरह पासवर्ड उन के लिए एक सिरदर्द भी बनता जा रहा है. 5-5 पासवर्ड अपने पास रखना और अलगअलग जगहों पर अलगअलग पासवर्ड्स का सफलतापूर्वक सही उपयोग सुनिश्चित करना आसान नहीं है. यही कारण है कि तमाम संचार सुविधाओं के केयर सैंटर्स में हर दिन पासवर्ड खो जाने और नया पासवर्ड बनाने के लिए फोन कौल्स की लाइन लगी रहती है.

पासवर्ड की दुनिया जितनी तेजी से विभिन्न तरह की सुविधाएं हमारे पास लाती है, उतनी ही तेजी से हमें उस खतरे के नजदीक ले जाती है जिस के हम पलक झपकते शिकार हो सकते हैं.

पासवर्ड तक कोई पहुंच न बना सके, इस के लिए हर कोई होशियारी बरतता है और विभिन्न तरह की तकनीकी सुविधाएं देने वाली कंपनियां लगातार लोगों को सजग भी करती हैं. वे समयसमय पर पासवर्ड को जटिल और दुर्लभ बनाने की कवायद भी करती रहती हैं. लेकिन अपराध की दुनिया में एक जुमला हमेशा से इस्तेमाल होता रहा है ‘पुलिस डालडाल तो चोर पांतपांत’ यानी अपराधी, तकनीकी सुविधाओं को सुरक्षित बनाने वालों से हमेशा चार कदम आगे रहते हैं. इसलिए पासवर्ड्स के इस्तेमाल में चाहे जितनी सजगता बरती जाए, कभी न कभी कोई न कोई गलती हो ही जाती है. तकनीक का यह चक्रव्यूह सबकुछ के बावजूद जटिल है.

बहरहाल, पासवर्ड की दुनिया जितने जादुई अंदाज में हमारे सामने सुविधाओं का पिटारा खोलती है, उतनी ही खतरनाक मुश्किलें भी खड़ी कर देती है. लेकिन चाहे फायदे के साथ नुकसान कितने भी हों, कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिन के बिना हम जीने की कल्पना भी नहीं कर सकते. ऐसी ही चीजें या सुविधाओं में पासवर्ड की सुविधा भी है. इसलिए भले यह समस्याओं का चक्रव्यूह हो, इस चक्रव्यूह से बचना कोई अक्लमंदी नहीं है बल्कि अभिमन्यु की तरह बेहतर यही है कि गर्भ में रहते हुए इसे भेदने की कला सीख लेनी चाहिए. लेकिन दूसरों के पासवर्ड भेदने की नहीं, बल्कि अपने पासवर्ड को सुरक्षित बनाए रखने की कला.         

कमजोर पासवर्ड, आसान शिकार

पासवर्ड कभी पूरी तरह से न्यूमेरिक यानी संख्या में होते हैं जैसे कि पर्सनल आइडैंटिफिकेशन नंबर या पिन नंबर जो आमतौर पर एटीएम और मोबाइल के लिए उपयोगी सैटिंग सुलभ कराते हैं तो कई बार ये संख्या और शब्दों के मेल से बनाए जाते हैं. कई बार ये संक्षिप्त होते हैं तो कई बार कुछ बड़े होते हैं. आमतौर पर लोग ऐसे अंकों, नामों या चीजों को पासवर्ड का रूप देना चाहते हैं जो उन के लिए याद करने में आसान हो और दूसरे के लिए जटिल. लेकिन दिक्कत यह होती है कि अकसर जो पासवर्ड उपयोगकर्ता के लिए आसान होता है, वही पासवर्ड हैकर के लिए भी आसान हो जाता है. नतीजतन, आसान पासवर्ड उपयोगकर्ता का सिरदर्द बन जाता है. यही कारण है कि आजकल वो तमाम सुविधाएं जो पासवर्ड के जरिए हासिल होती हैं, उन्हें उपलब्ध कराने वाली कंपनियां जोर डालती हैं कि आप का पासवर्ड आप के लिए सरल मगर दूसरे के लिए बेहद जटिल होना चाहिए. उदाहरण के लिए 3 संख्या वाले पासवर्ड को 7 संख्या वाले पासवर्ड के मुकाबले अनुमान लगाना ज्यादा आसान है. इस के अलावा व्यक्तिगत तथ्यों और ब्योरों पर आधारित पासवर्ड कहीं ज्यादा जटिल होता है. विशेषज्ञों का सुझाव है कि हमेशा ऐसे पासवर्ड विकसित किए जाने चाहिए जो आप की याददाश्त के लिए आसान और अपराधी के लिए बहुत मुश्किल हों.

पासवर्ड की उलझन से कैसे निबटें

पासवर्ड की उलझनें कई तरह की होती हैं. पहली उलझन अलगअलग कामों के लिए जरूरी अलगअलग पासवर्ड इस्तेमाल किए जाने की हो सकती है. मगर इस में दिक्कत यह आती है कि उन्हें याद रखना कठिन होता है और कहीं लिख कर स्टोर करने में खतरा इन के किसी और के हाथ में पड़ जाने का होता है. ऐसे में विशेषज्ञों की मानें तो अगर पासवर्ड की संख्या एक से ज्यादा हो तो उन्हें स्टोर करने के लिए एक फाइल बना लें और एक आसान पासवर्ड से उस फाइल को सुरक्षित रखें. सुरक्षित किए हुए पासवर्ड का बैकअप अपनी पैनड्राइव या डिस्क अथवा कौपी में ले लें जिस से एक से दूसरी जगह रखने के कारण इस के खो जाने की आशंका कम रहे. हालांकि औनलाइन पासवर्ड स्टोर करने का तरीका अभी काफी विवादास्पद है मगर एक अच्छा औनलाइन पासवर्ड मैनेजर चुन कर भी पासवर्ड को सुरक्षित रखा जा सकता है.

पासवर्ड का नाम अपने कुत्ते, प्रेमिका या पत्नी के नाम पर न रखें. अपनी जन्मतिथि, कार के नंबर या ड्राइविंग लाइसैंस का भी इस के लिए इस्तेमाल करने से बचें. क्योंकि पासवर्ड बनाने के ये अनुमानित तरीके हैं और इन अनुमानित तरीकों से बचना ही बेहतर है. वरना आसानी से आप हैकर के अनुमानजाल में फंस जाएंगे और इस से आप को आर्थिक व सामाजिक नुकसान उठाने पड़ सकते हैं.

पासवर्ड को हमेशा मिश्रित संख्याओं और शब्दों के अनुपात में बनाएं यानी इस में कुछ शब्द हों और कुछ संख्याएं. जिस के चलते तब तक किसी को यहां तक पहुंचना मुश्किल होगा जब आप खुद उसे नहीं बताएंगे. पासवर्ड बनाने का एक तरीका यह भी है कि आप किसी ऐसी चीज को पासवर्ड का रूप दें जिस की कल्पना ही न की जा सके. मसलन, बचपन में आप स्कूल जिस बस से जाते थे अगर उस बस का नंबर और रूट नंबर याद हो तो उस का इस्तेमाल करें. हैकर सोच भी नहीं सकता कि ऐसा भी पासवर्ड हो सकता है. अपने किसी पसंदीदा हीरो और उस की किसी खूबी को पासवर्ड की शक्ल में डाल सकते हैं और अनुमान लगाने वालों के लिए मुश्किल होगी.              

हौकी के अच्छे दिन

भारतीय हौकी पिछले कुछ महीनों से सुर्खियों में है. सुर्खियों में रहने का कारण कोई विवाद नहीं है बल्कि भारतीय टीम फिलहाल शानदार खेल का प्रदर्शन कर रही है. वह अपने सुनहरे दिनों को हासिल करने के लिए लगातार प्रयासरत है और एशियाई चैंपियंस टूर्नामैंट में यह देखने को मिल भी चुका है जिस में पाकिस्तान को धूल चटा कर उस ने अपने खेल का लोहा मनवाया.

फिलहाल जूनियर हौकी वर्ल्ड कप की मेजबानी भारत दूसरी बार कर रहा है और जूनियर खिलाडि़यों में भारतीय टीम के कप्तान हरजीत सिंह, स्ट्राइकर मनदीप सिंह, ड्रैग फ्लिकर हरमनप्रीत सिंह और गोलकीपर विकास दहिया जैसे ऐसे युवा खिलाड़ी हैं जो विपक्षी टीम को धूल चटाने का माद्दा रखते हैं. इस से पहले भारत ने 2001 में आस्ट्रेलिया के हौबर्ट में फाइनल में अर्जेंटीना को 6-1 से हरा कर विश्वकप जीत कर देश का नाम रोशन किया था. उस दौर के कई खिलाड़ी भारतीय हौकी टीम में भी अपना नाम कमा चुके हैं.

उम्मीद है कि इस बार भी भारतीय हौकी की जूनियर टीम से कुछ ऐसे खिलाड़ी भी उभर कर निकलेंगे जो खेल को बुलंदियों तक पहुंचाने में भूमिका निभाएंगे.

भारतीय हौकी टीम के खिलाडि़यों को अपनी फिटनैस पर ध्यान देना होगा, उन्हें चुस्तदुरुस्त रहना होगा. भारतीय टीम को यदि आगे ले जाना है तो खिलाडि़यों को कड़ी मेहनत करनी होगी क्योंकि इन दिनों दुनिया की कई बड़ी टीमें लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं.

आस्ट्रेलिया, नीदरलैंड और जरमनी जैसी टीमों से मुकाबला करने के लिए खास रणनीति बनानी होगी. खेल संघों में एकजुटता दिखानी होगी. हौकी के नाम से राजनीति करने

वाले पदाधिकारियों को हौकी के हित के लिए सोचना होगा क्योंकि बहुत सालों बाद हौकी का प्रदर्शन पहले के मुकाबले अच्छा हो रहा है.    

क्रिकेट का एक चेहरा यह भी

भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने छठी बार एशिया कप अपने नाम किया लेकिन न ही अखबार की सुर्खी बनी और न ही खबरिया चैनलों ने तवज्जुह दी. क्रिकेट को धर्म की तरह मानने वाले इस देश में पुरुष और महिला खिलाडि़यों के बीच भेदभाव देखने को मिलता है तो चिंता होती है. भारतीय महिला क्रिकेट टीम की खिताबी जीत को जनसामान्य में उतनी जगह नहीं मिल पाती जितनी पुरुष टीम को मिलती है. महेंद्र सिंह धौनी कौन हैं, इस बात को तकरीबन सभी जानते होंगे मगर मिताली राज कौन हैं, हो सकता है कि बहुत से लोगों ने इस नाम को पहली बार ही सुना हो.

दरअसल, भेदभाव क्रिकेट का नहीं बल्कि लैंगिक का है. पुरुष खिलाडि़यों के मुकाबले महिला खिलाडि़यों को सारी सुविधाएं नहीं मिलतीं. एक मैच खेलने के लिए पुरुष खिलाड़ी को जितना पैसा दिया जाता है उतना पैसा एक महिला खिलाड़ी को नहीं मिलता. यहां तक कि महिला टीम जब मैच खेलती है तो दर्शकों को मामूली रेट पर टिकट मिलते हैं. बावजूद इस के, स्टेडियम में दर्शक नहीं जुटते. वहीं, जब पुरुष टीम खेलती है तो स्टेडियम खचाखच भर जाते हैं जबकि टिकटों के रेट भी अधिक होते हैं.

महिला टीम की मिताली राज इस मुद्दे को कई बार उठा चुकी हैं. महिला क्रिकेट के एक कोच ने भी एक बार गंभीर सवाल उठाए थे कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड पुरुष क्रिकेट टीम पर पानी की तरह पैसा बहाता है जबकि महिला क्रिकेट को आगे बढ़ाने के लिए कुछ भी नहीं करता.

महिला क्रिकेट टीम में भी विराट कोहली और महेंद्र सिंह धौनी जैसे धुरंधरों की कमी नहीं है.

 

कुछ यादें तेरी

कुछ बातें याद रखता हूं
कुछ मुलाकातें याद रखता हूं
कुछ चेहरे याद रखता हूं
कुछ पहरे याद रखता हूं

कुछ माफियां याद रखता हूं
कुछ बेवकूफियां याद रखता हूं
कुछ चोरी याद रखता हूं
कुछ सीनाजोरी याद रखता हूं

कुछ मुस्कराहट याद रखता हूं
कुछ आहट याद रखता हूं
कुछ आंखें याद रखता हूं
कुछ जज्बात याद रखता हूं

कुछ ताने याद रखता हूं
कुछ फसाने याद रखता हूं
जब तक है कुछ यादें तेरी…
तब तक और सिर्फ तब तक

कुछ सांसें याद रखता हूं…

– विकास कुमार महतो

नोटबंदी के बाद कैशलैस

नोटबंदी के धड़ाम से औंधेमुंह गिर जाने के बाद और कालेधन का अंशभर भी नहीं निकलने पर नरेंद्र मोदी ने देश को एक और काले कुएं में धकेलने का फैसला कर लिया है. अफसोस यह है कि उन के कैशलैस हवन में चाहे पूरा लाक्षागृह जल जाए पर भक्तों को सुध नहीं आएगी और वे उसी तरह जपतप व जयजयकार करते रहेंगे जैसे सदियों से इस देश में होता रहा है.

‘भगवान भला करेंगे और पूजापाठ करो. संतोंमहंतों की सेवा करो, इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में कल्याण होगा ही’ की तर्ज पर नरेंद्र मोदी ने प्रकांड पंडित और महात्मा का बाना ओढ़ लिया है और नोटबंदी व कैशलैस के अखंड जागरण में देश को धकेल दिया है. वे तो अपने को अब संसद से भी ऊपर समझने लगे हैं. संसद में कुछ कहने के बजाय जमा की हुई भक्तों की भीड़ में प्रवचन दे कर देश के कल्याण का जपतप कर रहे हैं.

गनीमत बस यही है कि दुनिया के बाकी सभी देश किसी न किसी उलझन में फंस गए हैं. अमेरिका ने डोनाल्ड ट्रंप जैसे सिरफिरे को राष्ट्रपति चुन लिया है. चीन में लगातार आर्थिक गिरावट आ रही है. यूरोप का एक होने का सपना ब्रिटेन के बाहर जाने के  फैसले के कारण टूट गया है. रूस तेल के दामों में कमी को ले कर यूरोप को धमका कर पूरा करने की कोशिश में अपनी कमजोरी छिपा रहा है.

ऐसे में भारत में यदि कुछ खराब हो रहा है तो दुनिया में किसी को चिंता नहीं है और विदेशी समाचारों पर निर्भर हमारा मीडिया खुश है कि भारत की नोटबंदी व कैशलैस स्ट्राइकों पर दुनिया की नजर ज्यादा नहीं है, तो ये अच्छे ही होंगे. अगर बैंकों व एटीएमों के बाहर लंबी कतारें न लगतीं तो शायद इस पूरे जंजाल की पोल भी न खुलती. नोटबंदी से कालाधन निकला नहीं और कैशलैस आम जनता रोटीकपड़ामकानलैस हो जाएगी, यह डर नहीं बैठता.

आधुनिक तकनीक अपनाई जाए, इस की वकालत करना ठीक है पर यह फैसला सरकार का एक मुखिया बिना सहमति के देश पर थोप दे, यह स्वीकार्य नहीं है. नरेंद्र मोदी का कैशलैस सपना और लालकृष्ण आडवाणी का बाबरी मसजिदलैस अयोध्या एकजैसे हैं. जैसे 2002 के दंगों के बाद गुजरात से मुसलमान गायब नहीं हो गए हैं, राम मंदिर अभी तक नहीं बना है (और बन भी जाए तो क्या वह कोई कल्याण करेगा?) वैसे ही कैशलैस सपना भूखी जनता के कई निवाले छीन कर भुला दिया जाएगा.

 

बच्चों के मुख से

मेरा 3 साल का बेटा तोतली भाषा में बोलता है. अगर हमें उस की कोई बात समझ नहीं आती तो वह किसी भी तरह हमें समझा ही देता है, जैसे वह फ्रूट को फ्लूट बोलता है और हम बांसुरी समझते हैं. वह उदाहरण दे कर कहता है कि जैसे मैंगो, बनाना, वो फ्रूट.

एक रात वह बिना कुछ खाएपिए सो गया था. अचानक सो कर उठा और भूतभूत कहने लगा. मैं बारबार उस से ‘भूतवूत कुछ नहीं होता’, कह कर सुलाने लगी. अंत में उसे कहना पड़ा, ‘भूत इस द सीक्रेट औफ माई एनर्जी वाला भूत.’ यानी कि बूस्ट जिसे दूध में डाल कर उसे पीना था. आज भी हम उस के कहे बूस्ट को भूत कह कर चिढ़ाते हैं.

सुजाता एस., जमशेदपुर (झारखंड)

*

मेरा 10 वर्षीय भतीजा हिंदी सीख रहा था. एक दिन वह हमारे घर पर आया तो घर पर शेयर बाजार की बात चल रही थी. मेरे ससुरजी मेरे भाई को बता रहे थे कि उन्होंने एक शेयर सुबह खरीदा और दाम बढ़ने पर शाम को बेच दिया. बड़ों की बात वहीं खत्म हो गई. मेरा भतीजा बहुत देर तक सोचता रहा और जब उस से रहा न गया तो मेरे भाई से बोला, ‘‘पापा, दादाजी शेर सुबह खरीदते हैं और शाम को ही कैसे बेच देते हैं?’’

थोड़ी देर बाद जब हमें उस का मतलब समझ में आया तो हम अपनी हंसी रोक नहीं पाए. दरअसल, वह शेयर को शेर (हिंदी में) समझ बैठा था.

अनुजा गोयल, मुंबई (महा.)

*

मैं ने अपने पोते को अंगरेजी स्कूल में नर्सरी में दाखिला दिलाया. धीरेधीरे अंगरेजी में एबीसीडी…सीखने लगा. कुछ ही समय में ए से जैड तक बोलना सीख लिया.

 उसे हिंदी की वर्णमाला अआइईउऊ… सिखाने हेतु मैं ने मैडम से कहा तो वह बोली, ‘‘अब वह हिंदी के वर्ण अ से ज्ञ तक बोलना सीख गया है.’’ एक दिन मैं उसे पढ़ाने के लिए बैठा और उस से हिंदी की वर्णमाला अआ… बोलने को कहा. वह उत्साह के साथ बड़ी तेजी से बोला, ‘‘अआइईउऊएऐओ… पीक्यूआरएसटीयूवीडब्लूएक्सवाईजैड.’ मैं उस के उत्साह व तेजगति से धाराप्रवाह बोलने पर प्रसन्न था परंतु हिंदी के साथ अंगरेजी का समावेश सुन कर उस का मुंह देखता रह गया.

जगदीश लाल सोनी, जालौर (राज.)

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