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पेशेवर कुश्ती लीग-2 नोटबंदी के कारण स्थगित

ऐसा लगता है कि नोटबंदी का असर खेलों पर भी पड़ने लगा है और पेशेवर कुश्ती लीग (पीडब्ल्यूएल) का दूसरा सत्र 15 दिसंबर से शुरू नहीं हो पाएगा क्योंकि फ्रेंचाइजियों और हितधारकों को अपनी योजनाएं दोबारा तैयार करने के लिए अधिक समय चाहिए.

पीडब्ल्यूएल के प्रमोटर प्रो स्पोर्टीफाई के निदेशक विशाल गुरनानी ने कहा, ‘नोटबंदी के बाद पीडब्ल्यूएल फ्रेंचाइजी और हितधारकों ने अपनी योजना दोबारा तैयार करने के लिए समय मांगा है. इसलिए लीग को स्थगित किया गया है.’

इस बीच सूत्रों ने कहा कि पीडब्ल्यूएल-2 दिसंबर के अंतिम हफ्ते से पहले शुरू नहीं हो पाएगी. सूत्रों ने कहा, ‘लीग को दिसंबर के अंतिम हफ्ते में आयोजित किया जाएगा. साथ ही नवंबर के मध्य में होने वाली खिलाड़ियों की नीलामी टूर्नामेंट की शुरुआत से 15 दिन पहले होगी.’

साथ ही पहले टूर्नामेंट की छह टीमों की तुलना में इस बार आठ टीमें उतारने की योजना थी लेकिन पीडब्ल्यूएल ने कहा कि टीमों की संख्या में कोई बदलाव नहीं होगा और पहले सत्र की तरह छह टीमें ही चुनौती पेश करेंगी.

बेंगलुरु की फ्रेंचाइजी बेंगलुरू योद्धास हालांकि टूर्नामेंट से हट गई है और उसकी जगह जयपुर की फ्रेंचाइजी लेगी. दिल्ली और उत्तर प्रदेश की टीमों के मालिक भी बदल गए हैं. गुरनानी ने इस बीच कहा कि टूर्नामेंट की तारीखें आगे बढ़ने के बावजूद शीर्ष विदेशी और भारतीय पहलवानों ने टूर्नामेंट में हिस्सा लेने की पुष्टि कर दी है.

रुपयों का पेड़ उगाएं

बहुत सारे पढ़ेलिखे लोग रुपएपैसे के मामले में ज्यादा जानकारी नहीं रखते हैं. जबकि बहुत सारे अनपढ़ लोग वित्तीय निर्णय के मामले में पढ़ेलिखे लोगों से भी ज्यादा समझदार व बुद्घिमान होते हैं. कई लोग पैसों को फुजूलखर्ची से बचा कर उस की हिफाजत करना और उन्हें सुरक्षित जगह इकट्ठा कर के रखना ही बुद्धिमानी भरा कदम मानते हैं. जबकि यह बिलकुल नामसमझी और अपने पैसों को नुकसान पहुंचाने वाला निर्णय होता है. ऐसा करने वाले अपने संचित धन की क्रयशक्ति को छीजने के लिए छोड़ देते हैं.

बुद्घिमान लोग अपनी बचत और कमाई के पैसों को वित्त बाजार रूपी खेत में बीज की तरह इस्तेमाल कर के उस से रुपयों के पेड़ उगाते हैं. इन्हें पैसों की खेती करनी आती है और सही जगह निवेश कर के रुपयों का पेड़ उगाना आता है. संचित धन कभी बढ़ता नहीं, बल्कि छीजता है जबकि निवेशित धन निरंतर बढ़ता है और अपने स्वामी को पूरा लाभ पहुंचाता है.

आइए जानते हैं कुछ बातें जिन से आप भी अपनी बचत के बीजों को रुपयों के पेड़ में तबदील कर सकेंगे.

पैसा छिपाएं नहीं, लगाएं :  ज्यादातर लोगों में एक आम प्रवृत्ति होती है, पैसे को छिपा कर रखने और उस का गुप्त भंडारण करने की. इस की मूल वजह है टैक्स की बचत. लेकिन इस से मन में सदैव डर, संदेह और कर विभाग द्वारा जब्ती का जोखिम बना रहता है. वहीं, अगर आप पैसा एक नंबर में रखते हैं और उसे किसी अच्छी जगह निवेश करते हैं, तो न आप के मन में डर या संदेह रहेगा, न कर विभाग द्वारा छापामारी का भय. साथ ही, आप की रकम के बढ़ने की उम्मीद भी रहेगी.

ध्यान रहे, टैक्स की चोरी कर के, चोरीछिपे रखा धन आप का होने के बावजूद आप कभी भी उस के स्वामित्व का दावा नहीं कर सकते और न ही खुल कर उस का मजा ले सकते हैं. बेहतर होगा कि कर सलाहकार से टैक्स बचाने की तकनीकी जानकारी हासिल कर के उसे किसी अच्छी जगह लगाएं ताकि वह बढ़ कर आप के पास आए.

निवेश और बचत में फर्क :  बचत और निवेश 2 अलगअलग चीजें हैं. माना कि बचत एक अच्छी आदत है लेकिन निवेश के बिना इस का पूरा फायदा नहीं उठाया जा सकता और असली मकसद भी पूरा नहीं हो सकता. जैसे, एक अच्छा बचतकर्ता बनने के लिए अनुशासन और दीर्घ अवधि की लगन की जरूरत होती है, ठीक उसी प्रकार उस के निवेश के लिए बेहद सावधानी और चुस्त,  सक्रिय दिमाग की जरूरत होती है. सही निवेश के लिए आप को थोड़ा सा लालची भी होना पड़ेगा ताकि आप अपनी गाढ़ी कमाई से बचाई गई रकम का अधिक से अधिक फायदा उठाने के लिए तत्पर रहें.

कई लोग यह सोच कर कि उन्हें तो वित्तीय मामलों की जानकारी नहीं, अपडेट, विश्लेषण करने की क्षमता नहीं, हाथ पर हाथ धर कर बैठ जाते हैं और अपने पैसे बैंक अकाउंट में डाल कर संतुष्ट हो जाते हैं या फिर इधरउधर से सुनीसुनाई टिप्स के आधार पर शेयर्स खरीद लेते हैं. ऐसे लोगों को समझना होगा कि जैसे आप चिकित्सा के लिए डाक्टर और मुकदमा लड़ने के लिए वकील की मदद लेते हैं, ठीक उसी प्रकार वित्तीय मामलों के लिए अच्छे फाइनैंशियल एडवाइजर की मदद लेनी पड़ती है.

बचत खाते में न रखें सारा पैसा :  आप के बचत खाते में सारी रकम को इकट्ठा रखना नादानीभरा निर्णय है. इस से आप को बमुश्किल 4-5 फीसदी सालाना ब्याज मिल पाता है. अगर आप के पास पैसा है और आप उस के सही निवेश का निर्णय नहीं ले पा रहे या निवेश के लिए सही समय या माध्यम का इंतजार कर रहे हैं, तो भी बड़ी रकम को बचत खाते में संचित रखना बेकार है.

इस के बजाय आप को उक्त अवधि के लिए बैंक में फिक्स्ड डिपौजिट कर देना चाहिए जहां आप को 8.5 फीसदी के आसपास रिटर्न मिलता रहता है या फिर बैंक में ‘स्विप इन’ या फ्लैक्सी अकाउंट खोलें, जिस में एक खास सीमा के बाद आप के रुपए फिक्स्ड डिपौजिट अकाउंट में चले जाते हैं, जिन्हें आप जब चाहें बिना पैनल्टी दिए निकाल सकते हैं.

अलग अलग जगह लगाएं पैसा :  इन्वैस्टमैंट का एक गोल्डन रूल है- सारा पैसा कभी भी एक जगह निवेश न करें. दरअसल, कोई भी जगह या माध्यम सौ फीसदी सुरक्षित या जोखिम रहित नहीं है. अपने वित्तीय सलाहकार और अपने शुभचिंतक, क्वालीफाइड लोगों से राय लेने के बाद, खुद की सूझबूझ से रकम को अलगअलग कई हिस्सों में बांट लें और उन्हें रिटर्न मिलने व जोखिम की दर के मुताबिक कम या ज्यादा अलगअलग जगह निवेश कर दें.

निवेश के लिए कई रास्ते हैं जैसे म्यूचुअल फंड में कुछ पैसा एकमुश्त लगाएं, तो कुछ पैसा एसआईपी यानी सिस्टेमैटिक इन्वैस्टमैंट प्लान के माध्यम से लगाएं, कुछ पैसा बैंक में फिक्स्ड डिपौजिट करें, कुछ पैसा शेयर बाजार में फंडामैंटली स्ट्रौंग कंपनियों के शेयर खरीदने में लगाएं, कुछ पैसों का सोना खरीदें और प्रौपर्टी भी खरीदें. इस प्रकार आप का पैसा चौतरफा लगा रहेगा, तो कभी भी किसी अनहोनी में आप पर वज्रपात जैसी स्थिति उत्पन्न नहीं होगी. वैसे तो लाइफ इंश्योरैंस पौलिसी का मूल उद्देश्य मृत्यु के बाद पतिपत्नी और बच्चों के लिए कुछ व्यवस्था करने का होता है पर यह भी अप्रत्यक्ष रूप से निवेश  का एक साधन है, जिसे हर किसी को अपनाना चाहिए.

फाइनैंस वर्ल्ड की रखें खबर :  वित्त संबंधी निर्णय सही तरीके से लेने में खुद को सक्षम बनाने के लिए आप को मनी वर्ल्ड की खबरों से अपडेट होना पड़ेगा. यह काम बहुत कठिन नहीं है. बस, आप को अपने दैनिक अखबार में फाइनैंस और कारोबार से जुड़ी खबरों पर ध्यान देना होगा, फाइनैंस से जुड़े अखबार पढ़ने की आदत डालनी होगी और बिजनैस खबरों पर केंद्रित व फाइनैंस से जुड़े टीवी चैनल देखने होंगे.

इन सब चीजों से आप को वित्तीय जगत से जुड़ी बहुत सारी जानकारियां मिलने लगेंगी और आप काफी हद तक निवेश व रुपएपैसों से जुड़ी बारीकियां समझने लगेंगे. इन सब के साथ, अच्छे लेखकों व वित्तीय सलाहकारों की किताबें पढ़ने की आदत भी डालें. इस से आप को निवेश की सही योजना बनाने में सुविधा होगी.

कैशलैस भुगतान के फायदे

पायल अपने जन्मदिन पर कपड़े लेने के लिए शौपिंग मौल गई और बड़े जतन से अपनी पसंद के कपड़े और अन्य सामान ट्रौली में भर कर बिल काउंटर पर पहुंची. बिलिंग काउंटर पर बिल बनवाने के बाद पैसे निकालने के लिए जैसे ही उस ने अपना पर्स खोला तो उस के होश उड़ गए क्योंकि पर्स में वौलेट ही नहीं था. पहले तो उसे लगा कि वौलेट किसी ने उड़ा लिया जिस में ढेर सारी नकदी, क्रैडिट और डैबिट कार्ड थे. उस ने घटना की सूचना देने के लिए घर में फोन किया तो मम्मी ने बताया कि जल्दबाजी में उस ने वौलेट घर पर ही छोड़ दिया था और घर में  मम्मी के अलावा और कोई नहीं था जो उस का वौलेट उसे ला कर दे जाता.

अब उस के पास घर जा कर अपना वौलेट लाने के सिवा और कोई चारा नहीं था. यही सोच कर उस ने काउंटर क्लर्क से कहा कि घर जा कर अपना वौलेट ले कर आने में उसे करीब 2 घंटे लगेंगे तब तक वह सामान वैसे ही रखे लेकिन काउंटर क्लर्क ने अधिक देर तक सामान रखने से मना कर दिया. पायल ने इतनी मेहनत से अपनी पसंद के रंग और साइज के कपड़े निकाल कर अच्छी तरह से पहन कर चैक किए थे और वह इसे इतनी आसानी से उन्हें वापस नहीं लौटाना चाहती थी परंतु उस के पास ऐसा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. 

उस दिन पायल यही सोच रही थी कि काश कोई ऐसा मोबाइल ऐप होता जिस के माध्यम से वह अपने स्मार्ट फोन से ही यह भुगतान कर देती. पायल जैसे कई लोग हैं जिन्हें  इस तरह की समस्याएं आती हैं. दूसरी ओर नकद खरीदने में कई बार खुले पैसे नहीं होने के कारण अधिक पैसे भी देने पड़ते हैं या उस राशि का ऐसा सामान खरीदना पड़ता है जो उन के लिए कतई जरूरी नहीं होता वहीं नकदी नोट के लुटने, खोने या फटने का भी खतरा होता है. सब से बड़ी बात तो नकदी लेनदेन से कालेधन को भी बढ़ावा मिलता है जिस के कारण देश की अर्थव्यवस्था काफी प्रभावित होती है. यही कारण है कि सरकार ही नहीं अब कंपनियां भी कैशलैस यानी नकदी रहित भुगतान को बढ़ावा देने के लिए कदम बढ़ा रही हैं. 

8 नवंबर, 2016 को जब प्रधानमंत्री ने रात 8 बजे राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में देश में भ्रष्टाचार, कालेधन एवं आतंकवाद को रोकने की दिशा में पुराने 500 एवं 1000 के नोटों पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की तो सारा देश उन के इस निर्णय से स्तब्ध रह गया क्योंकि देश की अर्थव्यवस्था से लगभग 80 प्रतिशत नकदी को अचानक बाजार से बाहर किए जाने के निर्णय ने देशवासियों को परेशानी में डाल दिया. हालांकि, औनलाइन बैंकिंग, डैबिट कार्ड, चैक, मोबाइल वौलेट आदि अन्य वैकल्पिक माध्यमों से भुगतान करने वालों को कोई परेशानी नहीं हो रही है. यह बात दूसरी कि यदि मंडियां बंद हो गईं और ट्रांसपोर्ट सिस्टम ढीला हो गया तो औनलाइन व्यापार भी ठप हो सकता है. 

26 अगस्त को ही कैशलैस भुगतान के क्षेत्र में एक नई शुरुआत करते हुए भारतीय रिजर्व बैंक ने भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम यानी एनपीसीआई के सहयोग से 21 बैंकों में यूनिफाइड पेमैंट्स इंटरफेस यानी यूपीआई सेवा की शुरुआत कर दी थी. भारतीय रिजर्व बैंक ने इस वर्ष 11 अप्रैल को ही इस सेवा की शुरुआत की घोषणा की थी परंतु तकनीकी कारणों से इस में थोड़ा विलंब हो रहा था पर अब ऐसा नहीं है. 

एनपीसीआई भारत में विभिन्न प्रकार के भुगतान इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करता है. इस में भारत का अपना प्लास्टिक कार्ड, रुपे कार्ड भी शामिल है जिस का उपयोग कर के किसी भी बैंक के एटीएम से पैसा निकाला जा सकता है. यूपीआई मोबाइल के जरिए कैशलैस भुगतान एवं राशि अंतरण की सब से नई तकनीक होगी. इस के माध्यम से भुगतान वैसे ही होगा जैसे आप कोई मोबाइल संदेश भेजते हैं. हालांकि

यह सुविधा एनईएफटी, आरटीजीएस या आईएमपीएस जैसे नकदी अंतरण सुविधा के समान ही है जिस में बैंक के एक खाते से दूसरे खाते में पैसा अंतरित किया जाता है पर यूपीआई इन सेवाओं का एडवांस वर्जन है जिस में क्रैडिट/डैबिट कार्ड का विवरण देने या नैटबैंकिंग या वौलेट पासवर्ड की परेशानी नहीं होती.

यूपीआई भुगतान का एक ऐसा चैनल है जो किसी भी यूपीआई प्रतिभागी बैंक के मोबाइल ऐप पर कई बैंक खातों से जोड़ सकता है. कई बैंकिंग फीचरों को एकसाथ मिला कर आसान निधियों का अंतरण एवं मर्चेंट्स का भुगतान आप के मोबाइल से कर सकता है. यह इंटरफेस एनपीसीआई के तत्काल भुगतान सेवा यानी आईएमपीएस का एडवांस वर्जन है जो 24?7 फंड ट्रांसफर सेवा है.  इस सेवा के माध्यम से एक दिन में 50 रुपए से 1 लाख रुपए तक के लेनदेन किए जा सकते हैं.   

एनपीसीआई ने 26 अगस्त, 2016 को 21 बैंकों के मोबाइल ऐप को मंजूरी दे दी जोकि अब गूगल के प्लेस्टोर में शीघ्र ही उपलब्ध होंगे. फिलहाल आंध्रा बैंक, ऐक्सिस बैंक, बैंक औफ महाराष्ट्र, भारतीय महिला बैंक, केनरा बैंक, कैथोलिक सिरियन बैंक, डीसीबी बैंक, फैडरल बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, टीजेएसबी सहकारी बैंक, ओरिएंटल बैंक, कर्नाटक बैंक, यूको बैंक, यूनियन बैंक औफ इंडिया, युनाइटेड बैंक औफ इंडिया, पंजाब नैशनल बैंक, साउथ इंडियन बैंक, विजया बैंक और येस बैंक सहित कुल 19 बैंकों के ऐप गूगल के प्लेस्टोर पर एंड्रौयड फोन उपलब्ध हैं. भारतीय स्टेट बैंक, बैंक औफ बड़ौदा, बैंक औफ इंडिया और कुछ अन्य बड़े बैंक आने वाले कुछ दिनों में इस भुगतान व्यवस्था से जुड़ जाएंगे. 

यूपीआई ऐप ऐसे करें डाउनलोड

सब से पहले गूगल के प्ले स्टोर पर अपने बैंक की यूपीआई ऐप की तलाश करें.  उस के बाद अपने बैंक के यूपीआई ऐप को डाउनलोड कर अपने मोबाइल में इंस्टौल करें. फिर ऐप को लौगइन करें.  लौगइन करने के बाद पंजीकरण हेतु पंजीकरण पर क्लिक करें और सुरक्षा प्रश्न सहित सभी आवश्यक जानकारी को भरें. ध्यान रहे कि सुरक्षा प्रश्न और उस के उत्तर को हमेशा याद रखें क्योंकि बाद में पासवर्ड भूलने की स्थिति में पासवर्ड रिकवरी करने के लिए इन की आवश्यकता पड़ेगी.

इसी पेज पर आप को पासवर्ड बनाने हेतु विकल्प मिलेगा. यह आप का लौगइन पासवर्ड होगा. उस के बाद अपना वर्चुअल पता बनाएं फिर बाद में अपने बैंक खाते के साथ उसे जोड़ दें. और अपने पसंद के अनुसार एक मोबाइल पिन (एमपिन) निर्धारित करें.  बस हो गई यूपीआई से भुगतान करने की प्रक्रिया पूरी. अब आप यूपीआई का उपयोग अपने पसंद के अनुसार कर सकते हैं. 

यूपीआई की कार्यप्रणाली

यूपीआई भुगतान के क्षेत्र के एक ऐसी क्रांति की शुरुआत है जिस से मोबाइल भुगतान के क्षेत्र में तेजी से विस्तार संभव हो पाएगा और सुरक्षित मोबाइल बैंकिंग को बढ़ावा मिलेगा परंतु यह नई भुगतान व्यवस्था आखिर कैसे काम करेगी और कैसे हम इस व्यवस्था के तहत पल में पैसे अंतरित कर सकते हैं. आइए इस संबंध में विस्तृत चर्चा करते हैं.

एनपीसीआई के अनुसार, यूपीआई एक ऐसी भुगतान सुविधा प्रस्तुत करेगा जो किसी भी बैंक ग्राहक को ईमेल के समान वर्चुअल पते के रूप में पहचान करेगा.  इतना ही नहीं यह ग्राहकों के व्यक्तिगत आंकड़ों की निजता सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न बैंकों में विभिन्न खाते हेतु एक से अधिक वर्चुअल पते रखने की भी अनुमति प्रदान करता है.

इस सुविधा के अंतर्गत ग्राहक के अपने बैंक के अलावा कहीं भी खाता मैप नहीं होता है. इस में एक सुविधा यह भी है कि यदि कोई ग्राहक चाहे तो अपना मोबाइल नंबर भी अपने वर्चुअल पते के रूप में उपयोग कर सकता है. यही कारण है कि इस सुविधा का लाभ उठाने वाला ग्राहक ब्रेफिक्र हो कर अपना वर्चुअल वित्तीय पता किसी को भी दे सकता है. 

इस सुविधा के अंतर्गत ग्राहक सिर्फ एक क्लिक से ही अपना लेनदेन प्रमाणीकृत कर सकता है क्योंकि इस में भुगतान प्रेषित करने या प्राप्त करने के लिए वर्चुअल पता ही भुगतान पहचानकर्ता का काम करता है. बैंक खाता अथवा कार्ड आदि का उपयोग नहीं करने के बावजूद यह सुविधा बेहद सुरक्षित ही नहीं, बल्कि सुविधाजनक भी है क्योंकि भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा इस सुविधा के लिए भी एक क्लिक पर 2 फैक्टर प्राधिकरण अनिवार्य बनाया गया है. 

हालांकि इस प्रक्रिया में वन टाइम पासवर्ड के स्थान पर एमपिन द्वारा लेनदेन प्राधिकृत किया जा सकता है. आमतौर पर एमपिन मोबाइल बैंकिंग के रूप में पंजीकृत कराने के बाद बैंक द्वारा ग्राहकों को प्रदान किया जाता है. इस से ग्राहकों को अपना भुगतान प्राधिकृत करने में आसानी होती है. मोबाइल फोन पर ग्राहकों को मोबाइल ऐप पर अपने डैबिट या क्रैडिट कार्ड का विवरण डालने में काफी परेशानी होती है और कई बार गलत पासवर्ड डालने पर खाता लौक होने का खतरा भी बना रहता है. 

कैसे होगा लेनदेन

यूपीआई के तहत कोई भी व्यक्ति भुगतान के लिए डैबिट अनुरोध दे सकता है. इस समय कोई भी भुगतान तकनीक यह सुविधा नहीं देती. इस सुविधा के अंतर्गत विभिन्न बैंकों के बीच तत्काल भुगतान की सुविधा मिल सकती है.  यूपीआई तकनीक बेहद सरल है. इस में डिजिटल तरीके से आसानी से रकम भेजी व प्राप्त की जा सकती है. इस में वर्चुअल पते, मोबाइल नंबर, आधार नंबर आदि की जानकारी के साथ भुगतान होता है यानी अब ग्राहकों को राशि अंतरण करने के लिए बैंक का नाम, आईएफएससी कोड एवं बैंक खाता संख्या देने की आवश्यकता नहीं होगी. इस सुविधा के अंतर्गत ग्राहकों को किसी भी प्रकार का भुगतान करने के समय दुकानदार को अपना एक वर्चुअल पता देना होगा. आप का वर्चुअल एड्रैस प्राप्त करते ही दुकानदार आप के वर्चुअल एड्रैस में भुगतान विवरण डाल देगा. 

उदाहरण के लिए किरण ने मौल से 15,999 रुपए की खरीदारी की. यदि उस के स्मार्ट फोन में यूपीआई की सुविधा होती तो उसे बस अपने भारतीय स्टेट बैंक खाते से भुगतान करने के लिए काउंटर कैशियर को अपने एसबीआई खाते का वर्चुअल एड्रैस देना होता. काउंटर क्लर्क द्वारा उस वर्चुअल एड्रैस में 15,999 रुपए से संबंधित विवरण डालते ही किरण के मोबाइल पर एक संदेश आता. किरण उस संदेश को अपने बैंक के एमपिन प्राधिकृत करती और तत्काल राशि उस के भारतीय स्टेट बैंक खाते से दुकानदार के खाते में अंतरित हो जाती. इस प्रक्रिया के अंतर्गत भुगतान आसानी से होगा और दुकानदार क्रैडिट/डैबिड कार्ड की तरह विवरण अथवा पिन नहीं देख पाएगा.  इसलिए यह पूर्णत: सुरक्षित भुगतान प्रक्रिया है. 

यूपीआई का वर्चुअल एड्रैस   

इस भुगतान व्यवस्था का उपयोग करने के लिए सब से पहले आप को अपने बैंक से संपर्क करना होगा कि उन का मोबाइल ऐप यूपीआई समर्थन के लिए अपडेट किया गया है. विभिन्न  बैंकों का वर्चुअल एड्रैस देने के संबंध में अलगअलग व्यवस्था हो सकती है और आवश्यकता पड़ने पर उसे समाप्त भी किया जा सकता है.

आप बैंक के ऐप पर बैंक की अनुमति से बिटकौइन की तरह एकबारगी उपयोग करने लायक वर्चुअल एड्रैस खुद भी बना सकते हैं.  इस के लिए आप को अपने बैंक से यूपीआई के लिए अपना पंजीकरण कराना होगा, पंजीकरण कराते ही आप का वर्चुअल एड्रैस बना दिया जाएगा जिसे आप के मोबाइल के साथ मैप कर दिया जाएगा. भुगतान के लिए यूपीआई लाभार्थी के इस वर्चुअल पते की पहचान करता है और राशि तत्काल अंतरित हो जाती है.

यह एकल सिंगल क्लिक टू फैक्टर प्राधिकृत प्रक्रिया के आधार पर कार्य करता है.  आमतौर पर विभिन्न बैंकों में विभिन्न खातों में विभिन्न प्रकार के वर्चुअल एड्रैस बनाने की अनुमति भी  मिल सकती है. 

इस सुविधा के अंतर्गत किसी भी प्रकार का बिल, सामान खरीदने के बाद नकदी देने के स्थान पर पैसा अंतरण, बारकोड को स्कैन कर भुगतान करने पर आधारित भुगतान, स्कूल आदि की फीस, किसी संस्थान को दान देने आदि के अलावा कई अन्य तरीके से भी इस का लाभ उठाया जा सकता है.  

इस सुविधा से बैंकों को भी फायदा होगा जैसे उन्हें एक से अधिक लेनदेन के मामले में एक ही क्लिक पर उस लेनदेन के लिए प्राधिकृत किया जा सकता है. इस व्यवस्था में लेनदेन के लिए यूनिवर्सल ऐप का प्रयोग किया जाता है. बैंक वर्तमान इन्फ्रास्ट्रक्चर के प्रयोग द्वारा ही यह सुविधा उपलब्ध कराने में सफल हो सकता है.

ग्राहकों को फायदा

इस नई भुगतान व्यवस्था में बैंक को ही नहीं बल्कि ग्राहकों को भी फायदा है.  एक ओर तो ग्राहक को कभी भी कहीं भी पैसा प्राप्त हो सकता है, दूसरी ओर उसे विभिन्न बैंकों के खाते तक पहुंचने के लिए एक ही ऐप का उपयोग करना पड़ेगा.  सब से बड़ी बात है कि ग्राहक को लेनदेन के लिए अपना कोई भी विवरण नहीं देना पड़ेगा बल्कि उसे सिर्फ अपने बैंक की अनुमति से अपनी पसंद के अनुसार तैयार किया गया वर्चुअल पता ही देना होगा.   

नकदी व्यवस्था के नुकसान

नकदी आधारित व्यवस्था में कुछ आर्थिक नुकसान भी हैं. एक ओर कालेधन में निरंतर वृद्धि से देश की अर्थव्यवस्था चौपट होती है, दूसरी ओर रिजर्व बैंक और व्यावसायिक बैंक की फिलहाल मुद्रा परिचालन लागत लगभग 21,000 करोड़ के आसपास है. नकदी का उपयोग कम किया जाए तो बचत राशि को देश के विकास के लिए व्यय किया जा सकता है. भारत सरकार नकदी लेनदेन को कम करने के लिए कई कदम उठा रही है.  हाल ही में भारत सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक ने अर्थव्यवस्था में नकदी लेनदेन रोकने के लिए एक समिति का गठन किया है. यह समिति कैशलैस भुगतान को बढ़ावा देने के साथसाथ देश में प्लास्टिक कार्ड द्वारा भुगतान की अधिकतम स्वीकार्यता बढ़ाने पर बल देगी.

रिजर्व बैंक द्वारा जारी आंकड़े के अनुसार, मार्च 2016 की समाप्ति पर भारत में 2.45 करोड़ क्रैडिट कार्ड, करीब 66 करोड़ डैबिट कार्ड और 13 लाख पौइंट औफ सेल्स (पीओएस) हैं. 

डिजिटल भुगतान को बढ़ावा

इंटरनैट ऐंड मोबाइल ऐसोसिएशन औफ इंडिया द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2010 और 2013 के बीच डिजिटल भुगतान में करीब 10 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है.  वह भी तब जब 2013 में औनलाइन भुगतान का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा औनलाइन यात्रा, 23 प्रतिशत वित्तीय सेवाओं और सिर्फ 12 प्रतिशत औनलाइन रिटेलिंग में हुआ है.

ताज्जुब की बात तो यह है कि इन लेनदेन का 80 प्रतिशत हिस्सा डैस्कटौप और लैपटौप पर हुआ है और इस में मोबाइल फोन एवं टैबलेट का हिस्सा  नाममात्र था परंतु भारत में मोबाइल भुगतान वर्ष 2011 में लगभग 602 करोड़ रुपए की तुलना में प्रतिवर्ष 68 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए 2016 में लगभग 150 करोड़ रुपए तथा वर्ष 2022 तक इस के लगभग 1150 करोड़ रुपए होने का अनुमान है.   

प्लास्टिक मुद्रा का महत्त्व

डिजिटल इंडिया का मुख्य उद्देश्य भारत में फैले नकदी आधारित व्यवस्था  को हाशिए पर लाना है जो इस समय भ्रष्टाचार की मुख्य जड़ है. इसी सिलसिले में सरकार इलैक्ट्रौनिक/प्लास्टिक मुद्रा के जरिए भुगतान करने वालों को कर में भी छूट देने पर विचार कर रही है.  दूसरी ओर सरकार विभिन्न सरकारी योजनाओं में भी व्याप्त भ्रष्टाचार दूर करने हेतु चरणबद्ध तरीके से समस्त सरकारी योजनाओं एवं सब्सिडी का भुगतान डीबीटी यानी प्रत्यक्ष लाभ अंतरण व्यवस्था से जोड़ने की दिशा में तेजी से काम कर रही है.

इसी कड़ी में प्रधानमंत्री जनधन योजना के तहत खोले गए लगभग 20 करोड़ खातों में रुपे कार्ड वितरित किए गए हैं.  इस योजना के अंतर्गत भुगतान को तकनीकी आधारित भुगतान समाधान के साथ जोड़ा जाएगा.

स्मार्ट फोन होंगे संचालक

ग्लोबल रिसर्च फर्म ईमार्केटर ने दिसंबर 2015 के अंत में किए गए एक सर्वेक्षण में कहा है कि भारत में इस समय लगभग साढ़े 12 करोड़ स्मार्ट फोन हैं और अमेरिका में साढ़े16 करोड़ स्मार्ट फोन हैं परंतु यहां स्मार्ट फोन की संख्या जितनी तेजी से बढ़ रही है वैसे में भारत 2016 तक स्मार्ट फोन के मामले में अमेरिका को पीछे छोड़ देगा.  

भारत  में  35 वर्ष से कम उम्र के युवाओं की संख्या 70 करोड़ से भी अधिक है. यह पीढ़ी अपना अधिकांश समय मोबाइल फोन व इंटरनैट पर व्यतीत करती है तथा सदैव त्वरित एवं आसान सेवाओं के प्रति आकर्षित होती है.  भारतीय बैंकिंग उद्योग ने भी समय के साथ प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में काफी प्रगति करते हुए तकनीकी रूप से उन्नत पीढ़ी के लिए विश्वस्तरीय सेवाएं उपलब्ध करा दी हैं जिस के कारण डिजिटल भुगतान का प्रचलन दिनप्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है.   

औफर्स से वंचित उपयोगकर्ता

क्रैडिट कार्ड का इस्तेमाल करने वाले ग्राहकों को एक ओर खरीदारी की तिथि से उस राशि के भुगतान के लिए अधिकतम 50 दिनों का समय मिलता है तो दूसरी ओर इस अवधि में उस राशि का अन्यत्र उपयोग अथवा बैंक में राशि पड़े होने की स्थिति में कुछ ब्याज राशि भी अर्जित कर सकता है.

आज कार्ड कंपनियां विभिन्न कंपनियों के साथ समझौता कर अपने ग्राहकों को खरीदारी करने पर 5 व 10 और कभीकभी 15 प्रतिशत तक की छूट अथवा कैशबैक देती हैं जोकि अभी की व्यवस्था  के अनुसार यूपीआई उपयोगकर्ताओं को उपलब्ध  नहीं हो पाएगी. वहीं क्रैडिट कार्ड ग्राहकों को अपने कार्ड द्वारा व्यय की गई राशि पर रिवार्ड पौइंट भी मिलते हैं जोकि 1 से 1.5 प्रतिशत तक होते हैं. इस रिवार्ड पौइंट का नकदीकरण भी किया जा सकता है. यह सुविधा भी यूपीआई उपयोगकर्ताओं को नहीं मिल पाएगी. 

सरकार द्वारा उठाए गए इस कड़े कदम के बाद निश्चित तौर पर नकदी का प्रचलन कम होगा और लोग कैशलैस भुगतान की ओर आकर्षित होंगे. इतना तो तय है कि यूपीआई औनलाइन या औफलाइन खरीदारी हेतु क्रैडिट कार्ड का विकल्प तो नहीं बन पाएगा परंतु खरीदारी हेतु डैबिट कार्ड का विकल्प जरूर बन पाएगा क्योंकि डैबिट कार्ड में भी पैसा खरीदारी के समय ही तत्काल अंतरित हो जाता है परंतु कार्ड का उपयोग आज के बढ़ते साइबर अपराध के युग पर काफी असुरक्षित हो गया है और यहीं यूपीआई प्लास्टिक कार्ड पर भारी पड़ेगा और लोगों को पूरी तरह से सुरक्षा उपलब्ध करा पाने में सफल हो पाएगा.

जहां तक एनईएफटी/आरटीजीएस और आईएमपीएस के विकल्प  बनने की बात है तो यहां यूपीआई उपयोगकर्ताओं को दोहरा लाभ मिलेगा. एक तो भुगतान तत्काल होगा वहीं इस के उपयोगकर्ताओं को साइबर धोखाधड़ी से भी पूरी तरह से सुरक्षा मिलेगी.

इस प्रकार यूपीआई आने वाले समय में डिजिटल भुगतान के क्षेत्र में एक नई क्रांति का सूत्रपात करेगा. बस जरूरत है ग्राहकों में इस सेवा एवं इस के उपयोग के बारे में जागरूकता फैलाने की ताकि देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए कैशलैस भुगतान व्यवस्था का उपयोग बढ़ाया जा सके.           

कूलपैड नोट 5: फीचर्स ज्यादा, कीमत कम

स्मार्टफोन का बाजार दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है. साथ ही बढ़ती जा रही है प्रतिद्वंदिता. इसी सिलसिले में कई नई कंपनियां इस बाजार का हिस्सा बन रही हैं तो पुरानी कंपनियां बाजार में बने रहने के लिए नए स्मार्टफोन्स बाजार में उतार रही हैं.  

इस समय बाजार में 10,000 रूपये की कीमत के आस-पास कई स्मार्टफोन आपको मिल जायेंगे, तकरीबन हर स्मार्टफोन कंपनी इसी रेंज में फोन लॉन्च कर रही है. ऐसे में चीन की स्मार्टफोन निर्माता कंपनी कूलपैड भी लेकर आयी है अपना नया बजट स्मार्टफोन नोट 5, जिसका रिव्यू हम आपके लिए लेकर आये हैं.

कई मायनों में यह फोन हमारी उम्मीदों पर खरा उतरता है, लेकिन क्या इन सबके बावजूद भी यह फोन हिट कर पाएगा यह देखने वाली बात होगी. क्योंकि इस समय रेडमी नोट 3 और लेको Le2 जैसे फोन लोगों को काफी पसंद किए जा रहे हैं.

डिस्प्ले: नया कूलपैड नोट 5 आता है 5.5 इंच के फुल HD डिस्प्ले के साथ और इसका PPi 401 हाई क्वालिटी वाला है. यह डिस्प्ले 2.5 डी कर्व्ड ग्लास प्रोटेक्शन के साथ आता है. डिस्प्ले ब्राइट है और इसके कलर्स भी रिच हैं यानी फोटो और विडियो देखने में मजा आएगा.

कनेक्टिविटी: कनेक्टिविटी के लिए यह डुअल 4G VoLTE को सपोर्ट करता है साथ ही इसमें वाइ-फाइ 802.11, ब्लूटूथ और जीपीएस जैसे फीचर्स दिए गए हैं. Meizu m3s में डिजिटल कंपास, ग्रेविटी सेंसर और एंबियट लाइट सेंसर जैसे फीचर्स भी हैं.

हार्डवेयर-परफॉरमेंस: फोन में 1.5GHz का क्वालकॉम SD617 ऑक्टा कोर प्रोसेसर दिया गया है. इसके आलावा यह 4GB रैम और 32 GB इंटरनल स्टोरेज के साथ आता है और माइक्रो SD कार्ड की मदद से 64GB तक बढ़ा सकते है. गेमिंग और मल्तिटास्किंग के लिए फोन अच्छा है लेकिन थोड़ा यूज करने पर ही यह हीट होने लगता है और यहां पर कूलपैड को सुधार करना होगा. इसके अलावा फोन एंड्राइड 5.1 लॉलीपॉप पर चलता है और इस पर OS 5.1 स्किन दी गयी है. फोन में 4010mAh की पॉवरफुल बैट्री दी गयी है जो आराम से से डेढ़ दिन चल जाती है. इतना ही नहीं स्टैंड बाय मोड पर यह बैट्री 350 घंटे तक रहती है और यह एक प्लस प्वाइंट होगा इस फोन के लिए.

कैमरा: फोटोग्राफी के लिए फोन में 13 मेगापिक्सल का रियर कैमरा LED फ्लैश के साथ कैमरा दिया गया है. जबकि सेल्फी लवर्स के लिए इसमें 8 मेगापिक्सल का कैमरा भी LED फ्लैश के साथ है. दोनों ही कैमरे अच्छे रिजल्ट देते हैं हालांकि कम रोशिनी में ये रिजल्ट उतने बेहतर नहीं हैं.

लुक: कूलपैड नोट 5 लुक्स के मामले में अच्छा फोन है. इसका फील, फिट और फिनिश अच्छी है. इसका मैटल और ग्लास का कॉम्बिनेशन शानदार है. फोन का वजन 173.4 ग्राम है. इसके टॉप पर 3.5mm का जैक मिलेगा जबकि नीचे की तरफ माइक्रो USB पोर्ट दिया गया है इसके अलावा राईट साइड पर सिम ट्रे और पॉवर कीज़ दी गयी हैं. वहीं, लेफ्ट साइड पर वॉल्यूम की दी गयी है. बैक साइड पर कैमरा, LED फ्लैश और ठीक नीचे फिंगरप्रिंट स्कैनर मिलेगा. तो कुल मिलाकर इस फोन का बढ़िया है.

कीमत: नया कूलपैड नोट 5 सिर्फ एक ही वेरिएंट में है जिसकी कीमत 10,999 रूपये रखी गयी है. अमेजन इंडिया से आप इस फोन को खरीद सकते है. यह फोन ब्लैक और गोल्ड कलर्स में उपलब्ध है.

नतीजा: कूलपैड नोट 5 कम कीमत में एक अच्छा फोन साबित हुआ है, इसका लुक्स आपको पसंद आएगा जबकि परफॉरमेंस के हिसाब से भी यह बेहतर कहा जा सकता है लेकिन फोन का हीट होना निराश करता है.

बचत के विकल्प

नौकरीपेशा मध्यवर्गीय वर्ग के परिवारों के लिए फरवरी मार्च का महीना बड़ा कष्टकारी व अग्निपरीक्षा वाला रहता है. कारण यह कि हर साल फरवरी माह में इनकम टैक्स असैसमैंट भरना होता है. इसी आधार पर फरवरी माह के वेतन से टैक्स कटौती होती है और मार्च में मिलने वाला वेतन कभीकभी आधे से भी कम होता है. काफी खर्च रुक जाते हैं, कई बार तो जरूरी आकस्मिक खर्च, जैसे बीमारी, बच्चों की फीस आदि के लिए इधरउधर मुंह ताकना पड़ता है.

आज के मध्यवर्ग को मुख्य रूप से 3 वर्गों में बांट सकते हैं. पहला, कम आय का मध्यवर्ग, दूसरा, मध्यआय वाला मध्यवर्ग जहां परिवार का मुखिया क्लास वन या टू के पद पर है और तीसरा, ज्यादा आय वाला मध्यवर्ग, जहां पतिपत्नी दोनों ही व्यावसायिक दक्षता वाले प्रोफैशनल हैं, जैसे कि सौफ्टवेयर इंजीनियर आदि. लगभग सभी परिवारों के बचत व बजट के मामले में परिस्थिति एक सी होती है कि परिवार का खर्च आमदनी से ज्यादा होता है और लगता है कि जरूरी खर्चों के लिए ही रुपए कम हैं तो बचत करने की तो बात करनी ही बेकार है.

बाजार के हालात आमदनी और खर्च को प्रभावित करते हैं. जब बाजार में महंगाई बढ़ती है तो हमारी क्रयशक्ति कम होने लगती है. परिवार में किसी सदस्य को कैंसर जैसी गंभीर बीमारी या किसी के बच्चे आईटी या आईएएस की कोचिंग कर रहे हों तो ऐसी परिस्थितियां हमारे बचत करने के अवसरों को और भी कम कर देती हैं. एक कारण और है जो कि आसानी से परिलक्षित नहीं होता लेकिन बड़ा मजेदार है, कम आयवर्ग वाला मध्यवर्गीय परिवार रहनसहन और रोजमर्रा के जीवन की सुविधा के मामले में मध्य आयवर्ग वाले मध्यवर्गीय परिवार से होड़ करने की चेष्टा करता है. मध्यम आयवर्ग के परिवार ज्यादा आयवर्ग वाले परिवारों से व ज्यादा आय वाले परिवार उच्च आयवर्ग के धनी परिवारों में शुमार होने की कोशिश में लगे हैं.

यूरोप, अमेरिका आदि से भारत के परिवारों की तुलना की जाए तो यह पाया जाएगा कि वहां के लोग मौजमजे, घूमनेफिरने और आधुनिक जीवन की सुखसुविधा पर हम से ज्यादा खर्च करते हैं. भारत में निश्चितरूप से पहले की अपेक्षा आधुनिक जीवनशैली पर ज्यादा खर्च किया जा रहा है, लेकिन ज्यादातर परिवारों के पास ठोस बचत नहीं है और वे सिर्फ अपने से अमीर परिवारों की जीवनशैली की अंधाधुंध नकल करने में जुटे हैं.

खर्च व बचत में तालमेल का अभाव

भारत में पारिवारिक आमदनी, खर्च और बचत का ठीक तालमेल नहीं है. हम भौतिक सुखसुविधा, पर्यटन आदि पर खर्च करने लगें तो हमारे पास कोई बचत नहीं होगी. हम अपने आकस्मिक व जरूरी खर्चों के लिए कठोरता से बचत करते हैं तो हम को आधुनिक सुखसुविधा और घूमनेफिरने से वंचित रहना होगा. अगर हम बीच का रास्ता अपनाते हैं तो भी कई बार हमारी ऐसी स्थिति हो सकती है कि आकस्मिक जरूरी खर्च के लिए हमें कर्ज लेना पडे़. जब कभी कम उम्र के बच्चे किसी महंगी चीज की फरमाइश करते हैं तो मातापिता बुढ़ापे का हवाला दे कर कहते हैं कि कुछ बुढ़ापे के लिए बचा कर रखने दो. यह चीज जब तुम कमाओ तब लेना. जीपीएफ/इपीएफ का पैसा आदि आखिरी वक्त में मकान बनवाने व बच्चों की शादी आदि में लग जाता है.

आखिर वह जादू की कौन सी छड़ी है जिस से हम अपना जीवन हंसीखुशी, मस्ती में आधुनिक जीवनशैली का लुत्फ उठाते हुए पर्याप्त बचत के साथ जी सकते हैं.

अमेरिकी उद्योगपति वारेन बफेट कहते हैं, ‘‘आप एक ही आमदनी के भरोसे कभी न रहें. इस का छोटा सा उदाहरण मैं ने दिल्ली में पालिका बाजार के बाहर एक चाय की दुकान पर काम करने वाले लड़के में देखा. जब उस ने मुझे चाय दी और पूछा कि क्या मेरे लिए वह सिगरेट ला कर दे, मैं ने कहा कि मैं सिगरेट नहीं पीता तो उस ने कहा कि जब तक मैं चाय पिऊंगा तब तक वह मेरे जूते पौलिश करवा कर ला देगा.

‘‘इस पर मैं सहमत हो गया. इस सेवा के बदले मैं ने उसे कुछ टिप दी और उस ने पौलिश वाले से हो सकता है कुछ कमीशन भी लिया हो. कुछ लोग हो सकता है कहें कि ऐसा वे नहीं कर सकते. लेकिन मैं इस बात को जोर दे कर कहूंगा कि व्यक्ति के जीवन में अनेक विकल्प अतिरिक्त आय के होते हैं चाहे वह नौकरीपेशा ही क्यों न हो. बहुत छोटी ही क्यों न हो, अतिरिक्त आमदनी बड़ा सहारा होती है.’’

आजकल ज्यादातर मध्यवर्गीय परिवारों में पतिपत्नी दोनों काम करते हैं. कभीकभी दोनों की अच्छी नौकरी होती है या कुछ महत्त्वाकांक्षी समझदार पत्नियां घर से कुछ काम कर अतिरिक्त आय का जुगाड़ करती हैं. अगर आप की यह अतिरिक्त आमदनी निश्चित नहीं है, उदाहरण के लिए आप सिलाई कर के कुछ पैसा कमाती हैं तो आप उसे कभी खर्च न करें. उस का निवेश किसान विकासपत्र, एनएससी आदि में करें. ये छोटी राशि के भी मिल जाते हैं और इन को कभी भी पोस्टऔफिस से खरीदा जा सकता है. अगर आप थोड़े तिकड़मी हैं तो एक छोटी कार या टैक्सी का परमिट ले कर किसी ट्रैवल एजेंसी से अटैच कर सकते हैं. मतलब यह है कि कैसे भी हो, कुछ अतिरिक्त कमाई की कोशिश जरूर करें.

आम मध्यवर्गीय परिवार के जरूरी घरेलू खर्च

जैसे किसी राष्ट्र की उन्नति का अंदाजा उस की जीडीपी से लगाया जाता है वैसे ही किसी परिवार की आर्थिक स्थिति का अंदाजा उस की क्रय शक्ति से लगाया जाता है. एकल परिवार में पतिपत्नी के अलावा 2 बच्चे होते हैं. कभीकभी ऐसे परिवार के साथ परिवार का एक बुजुर्ग, जोकि अपने साथी की मृत्यु के कारण अकेला रह गया है, भी साथ में होता है. मकान किराए पर या लोन पर खरीदा है तो उस की मासिक किस्त, बच्चों के स्कूल की फीस, औफिस आनेजाने व बच्चों के स्कूल बस या आटो का किराया/पैट्रोल व्यय, वाहन जोकि लोन पर है उस की मासिक किस्त, जीवन बीमा आदि और यदि आपने कोई घरेलू इलैक्ट्रौनिक उपकरण एलसीडी टीवी या रैफ्रिजरेटर आदि लोन पर लिया है तो उस की मासिक किस्त आदि नितांत जरूरी खर्च हैं जिन का भुगतान परिवार के मुखिया को वेतन में से सब से पहले करना चाहिए.

जब गरमी की छुट्टी में बच्चे पूछते हैं कि इस बार घूमने कहां चलेंगे तो उस के लिए भी कुछ बचत करनी चाहिए. यूरोप, अमेरिका आदि में लगभग हर परिवार साल में एक बार किसी दूसरे देश जरूर पर्यटन पर जाता है. इस के लिए वे लोग शुरू से ही पैसा बचाते हैं. वहां उस राशि का उपयोग इसी कार्य के लिए किया जाता है. हम अगर दूसरे देश नहीं जा सकते तो कम से कम अपने परिवार के साथ अपने ही देश के पर्यटन स्थलों में से किसी एक को चुन सकते हैं.

आप के पास नियमित बचत के अनेक विकल्प हैं. यदि आप की अतिरिक्त आय अनियमित है तो जब भी आप के पास रुपए हों तो छोटी राशि जैसे 500 रुपए के एनएससी अपने नजदीक के पोस्टऔफिस से खरीद सकते हैं. यदि आप की नियमित आय है तो आप पोस्टऔफिस की रेकरिंग डिपौजिट में 5 वर्ष या 1 वर्ष के लिए निवेश कर सकते हैं. खासतौर पर यदि आप परिवार के साथ हर साल छुट्टियां मनाने जाना चाहते हैं तो पोस्टऔफिस के एक वर्षीय रेकरिंग में निश्चित धनराशि जमा कर सकते हैं. आप पोस्टऔफिस के एक और बचत विकल्प पीपीएफ यानी प्राइवेट प्रौविडैंट फंड, जो राष्ट्रीयकृत बैंकों में भी खोला जा सकता है, में नियमित निवेश कर सकते हैं. यह नौकरीपेशा या निजी व्यवसाय में संलग्न कामकाजी महिलाओं के लिए उपयोगी है.

पीपीएफ अकाउंट है फायदेमंद

पीपीएफ अकाउंट की खास बात यह है कि वर्ष में इस में कम से कम 100 रुपए से ले कर अधिक से अधिक कितनी भी राशि जमा कराई जा सकती है. आप जब चाहें तब इस में राशि जमा करा सकते हैं. इस राशि पर इनकम टैक्स में छूट मिलती है. लेकिन इस खाते से आप धनराशि पहले 3 वर्षों के बाद पहले वर्ष में कुल जमाराशि का सिर्फ 50 प्रतिशत ही निकाल सकते हैं. इस खाते का एक अन्य लाभ यह होता है कि जैसे, शासकीय प्रौविडैंट फंड से लोन लिया जाता है उसी प्रकार इस से भी आप की जमा धनराशि पर लोन लिया जा सकता है. यह खाता प्रत्येक नौकरीपेशा को नौकरी के शुरुआती दिनों में ही खोल लेना चाहिए. इस खाते की कम से कम अवधि 15 वर्ष है.

भारत में आंकड़ों के मुताबिक, 78 प्रतिशत लोग बीमार होने पर अपनी जेब या अपनी बचत का पैसा लगाते हैं. आप के परिवार के किसी सदस्य का अचानक ऐक्सीडैंट होने पर या गंभीर रूप से बीमार होने पर स्थिति भयावह हो जाती है और तब आप की बचत का सारा पैसा खर्च हो जाता है. जबकि अमेरिका में सिर्फ 14.55 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जिन का मैडिकल इंश्योरैंस नहीं है. इसलिए आप को अत्यंत जरूरी काम यह करना चाहिए कि आप अपने परिवार का एक मैडिकल इंश्योरैंस प्लान लें.

इस प्लान में आप अपने मातापिता को जरूर शामिल करें. इस से एक ओर जहां उन के अस्वस्थ होने पर उचित इलाज की व्यवस्था हो सकेगी वहीं दूसरी ओर सीनियर सिटीजन के लिए ली जाने वाली मैडिकल पौलिसी पर आप को इनकम टैक्स में अतिरिक्त छूट भी मिलेगी. वहीं, परिवार के मुखिया का जीवन बीमा जरूर होना चाहिए.

जीवन बीमा में आप की धनराशि पर ज्यादा रिटर्न नहीं मिलता है लेकिन परिवार के मुखिया की असामयिक मृत्यु होने पर परिवार के सदस्यों की मूलभूत जरूरतें आसानी से पूरी हो जाती हैं और परिवार को संभलने का मौका मिल जाता है. जीवन बीमा लेते समय ध्यान रखें कि उस में अनेक विकल्प न चुनें क्योंकि अतिरिक्त विकल्पों पर अतिरिक्त प्रीमियम राशि भरनी होती है जिसे बीमा कंपनियों की भाषा में राइडर कहते हैं.

इस के अलावा आप प्रौपर्टी, जैसे फ्लैट आदि में अपनी क्षमता अनुसार निवेश कर सकते हैं. इस के लिए नौकरी के शुरुआती 2-4 साल बाद ही कोशिश कर के फ्लैट ले लेना चाहिए क्योंकि उस समय बच्चे छोटे होते हैं और पारिवारिक जिम्मेदारियां कम होती हैं. अपने पेशे और आमदनी के अनुसार, कई परिवार शेयर बाजार, म्यूचुअल फंड आदि में निवेश कर सकते हैं. परंतु इस के लिए मार्केट के उतारचढ़ाव की ठीक जानकारी होनी चाहिए वरना नुकसान उठाना पड़ सकता है.        

भारत ने जीता मैच, हसीब हमीद ने दिल

मोहाली टेस्ट में हार के साथ ही इंग्लैंड टीम को एक और बड़ा झटका लगा है. लेकिन इंग्लैंड के एक युवा बल्लेबाज का जुझारूपन ने विराट का दिल जीत लिया. 19 वर्षीय हसीब हमीद ने इंग्लैंड की दूसरी पारी में टूटी उंगली के साथ करीब 3 घंटे तक बल्लेबाजी की और भारत को पारी के अंतर से जीत दर्ज नहीं करने दी. यह देख विराट ने हमीद की सराहना की.

सीरीज से टेस्ट डेब्यू करने वाले 19 साल के हसीब हमीद अंगुली में चोट के कारण भारत दौरा बीच में ही छोड़ कर इंग्लैंड वापस जा रहे हैं. कप्तान एलिस्टेयर कुक ने इस बात की जानकारी दी.

मोहाली टेस्ट की पहली पारी में हमीद तेज गेंदबाज मुहम्मद शमी की गेंद पर चोटिल हो गए थे, लेकिन इसके बाद भी वह दूसरी पारी में आठवें नंबर पर बल्लेबाजी करने उतरे और नाबाद 59 रन की पारी खेली. इंग्लैंड टीम के लिए यह बड़ा झटका है, क्योंकि उन्होंने बल्ले से बेहतरीन प्रदर्शन किया. साथ ही कप्तान कुक को सलामी जोड़ी की समस्याओं से भी मुक्त किया था.

विराट ने कहा, मैं हमीद के जुझारूपन से प्रभावित हुआ. इस तरह की चोट के बावजूद टीम की स्थिति को देखते हुए उनका समर्पण देखते ही बनता था. वो निश्चित रूप से भविष्य के सितारा खिलाड़ी हैं.

हमीद के साहस और जुझारूपन को इसलिए सलाम करना चाहिए क्योंकि इस गंभीर चोट के बावजूद उन्होंने सिर्फ दो दर्दनिवारक गोलियों के साथ करीब तीन घंटे (170 मिनट) तक बल्लेबाजी की. इस दौरान उन्होंने 156 गेंदों का सामना किया और 6 चौकों और 1 छक्के की मदद से 59 रन बनाए और अंत तक आउट नहीं हुए.

राजकोट में टेस्ट डेब्यू करते हुए हमीद ने 82 रन की बेहतरीन पारी खेल सबका दिल जीत लिया था. चौथा टेस्ट मुंबई में आठ दिसंबर से शुरू होगा, लेकिन उससे पहले इंग्लैंड टीम प्रबंधन को कुक का नया जोड़ीदार ढूंढ़ना होगा.

मोहाली टेस्ट की दूसरी पारी में कुक ने जो रूट के साथ सलामी जोड़ी बनाई थी, लेकिन इससे टीम के मध्यक्रम पर असर पड़ा. भारतीय दौरे पर अश्विन के सामने बेबस दिखे बेन डकेट ने बांग्लादेश दौरे में सलामी बल्लेबाज की भूमिका निभाई थी, लेकिन उन्हें मोहाली टेस्ट से बाहर किया गया था. दूसरी तरफ गैरी बैलेंस भी टीम के साथ हैं. हालांकि उन्हें मध्यक्रम का बल्लेबाज माना जाता है. ऐसे में देखना होगा कि इंग्लैंड कुक के साथ किसे सलामी बल्लेबाज बनाता है.

मोदी ने ढाई साल में प्रचार में फूंके 1100 करोड़

केंद्र सरकार ने पिछले ढाई साल के कार्यकाल में पीएम मोदी पर केंद्रित विज्ञापनों पर 1100 करोड़ रुपए खर्च किए हैं. आरटीआई कार्यकर्ता रामवीर सिंह के सवालों पर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने यह जानकारी दी है. यह खर्च एक जून 2014 से 31 अगस्त 2016 के बीच किया गया. हिसाब लगाया जाए तो इसका मतलब है कि सिर्फ विज्ञापनों पर सरकार ने 1.4 करोड़ रूपए रोज़ाना खर्च किए हैं. देखा जाए तो यह भारत के मंगल अभियान मंगल यान के खर्च से दोगुना है. इसे दुनिया का सबसे कम खर्चीला अंतरग्रहीय अभियान माना जाता है, जिसकी कीमत सिर्फ 450 करोड़ रुपए है.

आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार मोदी सरकार ने ब्रॉडकास्ट, कम्युनिटी रेडियो, डिजिटल सिनेमा, इंटरनेट, दूरदर्शन, प्रोडक्शन, एसएमएस, टेलीकास्ट पर अबतक करीब 11 अरब यानी 1100 करोड़ रुपये खर्च किए. इसमें प्रिंट विज्ञापन, होर्डिंग्स, पोस्टर, बुकलेट और कैलेंडर शामिल नहीं हैं. अगर ये खर्च भी जोड़ लिए जाएं तो कुल खर्च की राशि काफी अधिक हो सकती है. सिर्फ एसएमएस पर डीएवीपी ने 17 करोड़ रुपए से अधिक खर्च कर दिया, जो दो लाख रुपए रोजाना है.

सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, 1 जून 2014 से 31 मार्च 2015 तक लगभग 448 करोड़ रुपये खर्च किए गए. 1 अप्रैल, 2015 से 31 मार्च, 2016 तक 542 करोड़ रुपये और 1 अप्रैल, 2016 से 31 अगस्त, 2016 तक 120 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं. इस तरह कुल 1111 करोड़ 78 लाख रुपये से अधिक का सरकारी धन मोदी सरकार के प्रचार पर खर्च हो चुका है.

आरटीआई कार्यकर्ता रामवीर सिंह कहते हैं- कहा जाता रहा है कि मोदी चाय के पैसे भी खुद दिया करते थे, ऐसे में विज्ञापन को लेकर सवाल उठने पर आरटीआई लगाई थी. अंदाजा था मोदी के विज्ञापनों पर 5 से 10 करोड़ का खर्च किया होगा. लेकिन ढाई साल में 1100 करोड़ खर्च का पता लगने के बाद निराशा महसूस हुई. साथ ही इसकी तुलना उन्होंने अमेरीका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से की और कहा कि वहां सरकार के चुनाव प्रचार में 800 करोड़ रूपये खर्च हुए हैं, जबकि हमारे देश में एक केंद्र सरकार इतना ने इतना सारा पैसा खर्च कर दिया, ये बहुत ही निंदनीय है. अगर इन पैसों को जनता के काम में लगाया जाता तो ज्यादा बेहतर होता.

कुछ महीने पहले इसी तरह का आरोप आम आदमी पार्टी पर भी लगा था. एक आरटीआई से पता चला था कि दिल्ली की आप आदमी पार्टी सरकार विज्ञापनों पर प्रतिदिन 16 लाख रुपए खर्च कर रही है. साल 2015 में आप सरकार ने पूरे वित्तीय वर्ष में विज्ञापनों पर 526 करोड़ रूपए खर्च किए थे. उस वक्त बीजेपी ने आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल पर खुद का महिमा मंडन करने का आरोप लगाया था. तब बीजेपी ने कहा था, ‘आप ऐसी पार्टी बन गई है, जिसका काम सिर्फ अपना प्रचार करना रह गया है.’

विद्या बालन दूसरी बार बनेंगी रेडियो जॉकी

लगभग तीन साल के अंतराल के बाद एक बार फिर विद्या बालन काफी व्यस्त होती जा रही हैं. उनकी एक फिल्म ‘‘कहानी 2 : दुर्गारानी सिंह’’ दो दिसंबर को प्रदर्शित होने वाली है. जबकि उन्होंने एक अन्य फिल्म ‘‘बेगम जान’’ की शूटिंग पूरी कर ली है. वह दिसंबर के दूसरे सप्ताह से कमलादास की बायोपिक फिल्म ‘अमी’ की शूटिंग शुरू करने वाली हैं. इसी के साथ उन्होने ‘इलीप्सिस इंटरटेनेमंट’ और‘ टीसीरीज’ की फिल्म ‘‘तुम्हारी सुलु’’ अनुबंधित की है, जिसमें वह रेडियो जॉकी का किरदार निभा रही हैं. यह ऐसी रेडियो जॉकी है जो कि देर रात के कार्यक्रमों का संचालन करती है. उसका नाम सुलोचना है, मगर लोग उसे सुलु बुलाते हैं.

यूं तो विद्या बालन 2006 में प्रदर्शित फिल्म ‘‘लगे रहो मुन्नाभाई’’ में रेडियो जॉकी का किरदार निभा चुकी हैं. लेकिन सुरेष त्रिवेणी के निर्देशन में बनने वाली फिल्म ‘तुम्हारी सुलु’ में विद्या बालन का किरदार काफी अलग होगा. खुद विद्या बालन कहती हैं-‘‘यह किरदार नींबू जैसा है. हम सभी खाद्य पदार्थों में जिस तरह से स्वाद के लिए नींबू डालते हैं, उसी तरह से यह रोचक किरदार है. इस फिल्म में मेरा नॉटी पक्ष उभरकर आएगा.’’

फिल्म के निर्देशक सुरेष त्रिवेणी का दावा है कि उन्होंने विद्या बालन को ही दिमाग में रखकर इस फिल्म की पटकथा लिखी थी और पिछले एक वर्ष से वह उसे जीते आए हैं.

क्या ममता उखाड़ पाएंगी मोदी को

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पूरे दमखम और आत्मविश्वास से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उखाड़ फेकने का एलान कर दिया है, तो इसे वक्ती तौर का जोश या गुस्सा कहते मानते नजरंदाज नहीं किया जा सकता, क्योंकि कभी पश्चिम बंगाल से वामपंथियों को उखाड़ फेंकने का करिश्माई और नामुमकिन दिखने वाला काम वे करके दिखा चुकी हैं, जिसे आजादी के बाद लाख कोशिशों के बाद कांग्रेस भी नहीं कर पाई थी.

एक क्षेत्रीय नेता की छवि वाली ममता के लिए क्या मोदी को उखाड़ फेकना संभव है. मौजूदा हालात देख बात लोगों या राजनैतिक विश्लेषकों के गले न उतरना उतनी ही स्वभाविक बात है जितनी साल 2013 में नरेंद्र मोदी को बतौर देश का प्रधानमंत्री मान लेने की थी. राजनीति में हालात और समीकरण हर कभी ऐसे बदलते हैं कि आप उनकी कल्पना भी नहीं कर पाते. ताजा उदाहरणों से देखें तो एक वक्त मे मोदी का नाम सुनकर ही मुंह बिगाड़ लेने बाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उसी नोट बंदी के मसले पर मोदी की तारीफ़ों में कसीदे गढ़ते थक नहीं रहे, जिस नोट बंदी को लेकर ममता हद से ज्यादा बौखलाई और तिलमिलाइ हुई हैं.

सपा प्रमुख मुलायम सिंह के तेवर भी ढीले पड़ रहे हैं, किसकी किससे क्या डील हो रही है यह बहुत जल्द सामने आ जाने वाला है, पर ममता को एक उम्दा बहाना या मकसद मिल गया है जो वाकई बहुत दूर की देख पा रहीं हैं कि सचमुच में नरेंद्र मोदी अनियंत्रित और लगभग निरंकुश हो चले हैं और अब उन्हे कोई रोक भी नहीं सकता, सिवाय मतदाता के जिसके हाथ मे बहुत बड़ी ताकत वोट की होती है.

जाहिर है मोदी को उखाड़ फेकने के लिए उन्हे कांग्रेस सहित तमाम क्षेत्रीय दलों के साथ की दरकार होगी, क्योंकि पश्चिम बंगाल के बाहर तृणमूल कांग्रेस की न तो कोई जमीन है और न ही कोई ढांचा है, लेकिन ममता की छवि देश शेष में एक जुझारू और जिद्दी नेत्री की है जिसे भुनाने वे तमाम  दलों को न्योता सा दे रही हैं. स्पष्ट यह भी दिख रहा है कि वे हाल फिलहाल प्रधानमंत्री पद की दावेदारी पेश करने की गलती नहीं करेंगी, उनका पहला काम देश भर में मोदी विरोधी माहौल बनाना रहेगा. हिन्दी भाषी राज्यों मे पैठ बनाने के लिए वे हिन्दी सीख रहीं हैं और इससे ज्यादा अहम काम दोस्तों की लिस्ट तैयार कर रही हैं.

कभी लालू प्रसाद यादव ने भी मोदी मुक्त भारत का नारा दिया था, पर जल्द ही वे खामोशी से पीछे भी हट गए, इसकी वजह कुछ भी हो लेकिन नतीजा सामने है कि नीतीश कुमार मोदी युक्त भारत मुहिम के समर्थक हो चले हैं. 2019 तक कांग्रेस कहने भर को रह जाएगी, यह बात भी किसी सबूत की मोहताज नहीं, ऐसे में उसे अपना अस्तित्व बनाए रखने एनसीपी मुखिया शरद पवार के अलावा ममता बनर्जी की भी जरूरत होगी, बल्कि हैरानी नहीं होनी चाहिए कि वह इन दोनों की मोहताज ही हो जाए.

अरविंद केजरीवाल ममता के मुरीद हो चुके हैं, लालू नीतीश दोनों या इनमे से कोई एक उनका साथ दे सकता है. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव मे सपा और बसपा में से जो पिछड़ेगा वह तय है ममता की साथ खड़ा होने में ही अपनी बेहतरी समझेगा. उमर अब्दुल्ला जैसे नेता भी ममता को समर्थन दे सकते हैं, दक्षिण भारत के क्षेत्रीय दल भी ममता की मोदी उखाड़ो मुहिम का हिस्सा बन सकते हैं, लेकिन यह आसान काम नहीं है, यह ममता को भी मालूम है इसलिए तय है वे कोई नया फार्मूला निकालेंगी.

महा गठबंधन और संयुक्त विपक्ष के तमाम फार्मूले बेअसर और बेकार ही साबित हुये हैं, क्योंकि उनका दायरा केवल 2 राज्य ही थे, बाकी नेता तो महज मुंह दिखाई की रस्म निभाने वाले थे. जिन राज्यों मे कोई तीसरा दल नहीं है, वहां कांग्रेस ममता की इमेज भुना सकती है, क्योंकि इन राज्यों से सोनिया राहुल गांधी को वोटर ने खारिज कर दिया  हैं. मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, छतीसगढ़ और हिमाचल प्रदेश मे लोगों का भाजपा से ऊबना तो शुरू हो गया है, पर यहां की विकल्पहीनता की स्थिति ममता का स्वागत कर सकती है. अब देखना दिलचस्प होगा कि जिद्दी और अक्खड़ ममता कहां से क्या क्या शुरुआत करती हैं, पर इतना तय है कि वे आसानी से तो अब मोदी को बिना सबक सिखाये छोड़ने वाली नहीं.     

डोनाल्ड ट्रंप की जीत के माने

अमेरिका में चुनावों के जो परिणाम आए हैं वे भारत के नोटबंदी के फैसले की तरह एक डराने वाले भविष्य का संदेश लाए हैं. डोनाल्ड ट्रंप को रिपब्लिकन पार्टी का टिकट मिल जाना ही एक आश्चर्य माना जा रहा था और तमाम पूर्वानुमानों को अटलांटिक महासागर में डुबोते हुए हिलेरी क्लिंटन पर उन की जीत और साथ ही अमेरिकी संसद के दोनों सदनों में अच्छे बहुमत ने एक सिरफिरे, खब्ती, बड़बोले, सैक्सी, बकबकी शख्सीयत को असीमित ताकत के ढेर पर बैठा दिया है.

दुनियाभर के देशों में सुरसुरी फैल गई है कि सब से शक्तिशाली देश पर राज करने का मौका एक ऐसे व्यक्ति को मिला है जिस में नेतृत्व के गुण दिखते ही नहीं हैं और जो केवल अपने पैसे, दंभ और अमेरिकी जनता में फैल रहे डर के कारण अच्छी अप्रत्याशित जीत पा सका है.

अमेरिका अपने उदार विचारों और हर संस्कृति, रंग, धर्म, देश के लोगों को मैल्ंिटग पौट में खपा लेने के लिए जाना जाता रहा है. दुनियाभर के सताए लोगों को यह उम्मीद रहती थी कि उन पर यदि उन की ही सरकार ने कुछ अति की तो अमेरिका का दबाव पड़ सकता है. खूंखार देशों के आसपास के छोटे देशों को भरोसा रहता था कि रूस व चीन जैसे देश अपनी विशाल सेनाओं का दुरुपयोग कर छोटे देशों को हड़पने की हिम्मत अमेरिका की मौजूदगी के कारण नहीं करेंगे.

अमेरिका में अपनी चाहे लाख कमियां हों फिर भी वह हर तरह के सताए गए और नई उम्मीदों की चाह रखने वालों का भी पनाहगार रहा है पर पहली बार ऐसा व्यक्ति राष्ट्रपति बन गया जो गोरे, कट्टरपंथियों का खुल्लमखुल्ला समर्थक है, जो काले, पीले, भूरे कामगारों के खिलाफ है, जो औरतों को अपनी हद में रहने की वकालत करता है, जो अमीरों का हमदर्द है, जिसे गरीबों पर कोई दया नहीं है, जो दुनियाभर के तानाशाहों को आदर्श मानता है.

अमेरिका को गोरे मध्यवर्ग ने उभरती, चीखती, पुकारती, मिश्रित जनता को सबक सिखाया है कि अमेरिका में रहना है तो गोरों को आदर दो, उन की मनमानी सहो, चर्च का हुक्म मानो और अमेरिका के हर बंदूकधारी नागरिक को अपनी सुरक्षा के नाम पर आक्रामक तक हो जाने दो.

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की जीत अमेरिका को विनाश की ओर ले जाएगी. अमेरिका की महानता उस की खुले विचारों को सम्मान देने की प्रवृत्ति रही है पर अब अमेरिका ने इस भावना को कुचल दिया है. अब अमेरिका को रूस और चीन की तरह विशाल व समृद्ध देश समझा जा सकता है पर उदारता का केंद्र नहीं. दुनियाभर के मानवीय हकों के लिए लड़ रहे लोगों के लिए डोनाल्ड ट्रंप की जीत एक उसी तरह का धमाका है जैसा पश्चिम एशिया में रोज दिख रहा है.

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