पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पूरे दमखम और आत्मविश्वास से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उखाड़ फेकने का एलान कर दिया है, तो इसे वक्ती तौर का जोश या गुस्सा कहते मानते नजरंदाज नहीं किया जा सकता, क्योंकि कभी पश्चिम बंगाल से वामपंथियों को उखाड़ फेंकने का करिश्माई और नामुमकिन दिखने वाला काम वे करके दिखा चुकी हैं, जिसे आजादी के बाद लाख कोशिशों के बाद कांग्रेस भी नहीं कर पाई थी.
एक क्षेत्रीय नेता की छवि वाली ममता के लिए क्या मोदी को उखाड़ फेकना संभव है. मौजूदा हालात देख बात लोगों या राजनैतिक विश्लेषकों के गले न उतरना उतनी ही स्वभाविक बात है जितनी साल 2013 में नरेंद्र मोदी को बतौर देश का प्रधानमंत्री मान लेने की थी. राजनीति में हालात और समीकरण हर कभी ऐसे बदलते हैं कि आप उनकी कल्पना भी नहीं कर पाते. ताजा उदाहरणों से देखें तो एक वक्त मे मोदी का नाम सुनकर ही मुंह बिगाड़ लेने बाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उसी नोट बंदी के मसले पर मोदी की तारीफ़ों में कसीदे गढ़ते थक नहीं रहे, जिस नोट बंदी को लेकर ममता हद से ज्यादा बौखलाई और तिलमिलाइ हुई हैं.
सपा प्रमुख मुलायम सिंह के तेवर भी ढीले पड़ रहे हैं, किसकी किससे क्या डील हो रही है यह बहुत जल्द सामने आ जाने वाला है, पर ममता को एक उम्दा बहाना या मकसद मिल गया है जो वाकई बहुत दूर की देख पा रहीं हैं कि सचमुच में नरेंद्र मोदी अनियंत्रित और लगभग निरंकुश हो चले हैं और अब उन्हे कोई रोक भी नहीं सकता, सिवाय मतदाता के जिसके हाथ मे बहुत बड़ी ताकत वोट की होती है.
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